Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 216
________________ ( ५ ) • न पामी शके केमके जे एकाकी बिहार करनार होय ते निःशंक होय कोइनी शंका लाखे एटले अकार्य करवानुं चित्त थाय तो कोइनी शंका नघरे सुखे अकार्य करे. गाथा"पिल्लिज्जे सणमिक्को, पइन्नपमयाजणाउ निश्च भयं । काउमणोवि अकजं, न तरह काऊण बहुमझे ॥१॥" इत्युपदेशमालायां तथा चित्तना अभिप्राय ते भाव कही में ते भावनुं जे परावर्त्त . के ० पलटावधुं तेणेकरी जेवा पोताना अभिप्राय थाय तेनुं कांइक आलंबन पामीने तत्काल ते आलंबन घरे के० अंगीकार करे ते आलंबन केनुं होय ते कहे छे सपंक के० मेलुं होय एटले ए भाव जे चितना अध्यवसाय तो क्षणे क्षणे पलटाय के ते चित्तना अभिप्राय कोइक अवसरें हीणा थाय अने निमित्त पण तेवुंज मले ते वारें पोते पण तेवोज थाय. यतः -- "एगदिवसेण बहुआ, सुहाय असहाय जीव परिणामा । इक्को असुहपरिणओ, चडन आलंबणं लड़ें ||१||" आलबन हिणु पामीने चइज्ज के० संयमने छांडे इत्युपदेशमालायां वली एक जणे एकलो विहार कीधो एटले बीजाने पण एकला विचरवानुं मन थाय तेमज श्रीनो तथा चोथो इत्यादिक जुदा जुदा थातां एटले अवस्था न रहे तथा थिविर कल्पनो भेद थाय एटले आपमतें कोइक क्रिया एक रीते करे कोइक बीजी रीते करे एम भिन्नभिन्न थाय तेथी लोकनां मन डोलाय जे अमुक साधु करे छे ते खरुं छे के अमुक साधु करे छे ते खरु के इत्यादिक विकल्प लोकने उपजे तेथी धर्मनो उच्छेद थाय कोइ उपर प्रतित रहे नहीं ते वारें लोकलगो धर्म मूकी आपे. गाथा - " सम्वनिणप्पडिकुठं, अणवत्या थेरकप्पभेओ य । " इत्युपदेशमालायां ॥ ८ ॥ टोले पण जो भोलें अंध प्रवाह निपांत, आणा विण नवि संघ छे अस्थि तणो संघात । तो गीतारथ उद्धरे जेम हरी जलथी वेद, अगीतारथ नाव जाणे ते सवि विधिनो भेद ॥ ९ ॥ अर्थ- वली टोले पण जो भोलें के० कदाचित टोलुं होय ने जो भोलुं होय तेमां कोइ गीतार्थ न होय तो ते टोलामां वसवुं ते पण अंध प्रवाह निपांत के० आंधलानीज श्रेणीमां पडलुं ययुं एम जाणवुं कारणके आणा बिना संघ न कहीये पण अस्थितणो संघात केव्हाढकानो समूह जाणवो. यतः - एगो साहू एगा य, साहुणी सावओ व सट्ठी वा । आणाजुत्तो संघो, सेसो पुण अहिसंघाय || १ ||” एम संबोधसित्तरीमां कहां छे. ते माटे जे गीतार्थ होय तेज संसारसमुद्रमांची भव्य जीवने उद्धरे के० उद्धार करे जेम हरी जलथी वेद के० जे रीते श्रीकृष्णे समुद्रमांथी वेद उद्धरया ए दृष्टांते तेनी कथा कहे छे-शंख नामे दैत्य उपज्योते ब्रह्मापासे वेद भणवा बेठो एवामां ब्रह्माने वगाएं आन्युं 'ते बगाएं छ महीने पुरुं थयुं त्या ब्रह्मानुं मुख मोकल देखी शंख दैत्यें विचारयुं जे वेद भणतां क्यारे पार iti मा ब्रह्माना पेटमा प्रवेश करी वेद लेइ जाउँ एम विचारी पेटमां पेसीने वेद लेइ

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