Book Title: Saral Samudrik Shastra
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Index सरल सामुद्रिक शास्त्र Topics 1. Introduction 2. Lines on Forehead & their Effects 3. Effect of Hairs on Human Body 4. The Importance of Hand Symtomps 5. The Effect of First Finger 6. Legs 7. Parts of the Body 8. Female Native Page 2 21 42 46 ...... 52 61 67 77 1 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. Introduction अध्याय-1 अंगविद्याप्रकाशोऽयं, गूढार्थव्याससंयुतः । हस्तसंजीवनग्रन्थः, भूयाद् दैवविदां मुदे ।। श्रीवर्धमानो जयतु सर्वज्ञानशिरोमणिः । पंचहस्तोत्तरो वीरः सिद्धार्थनृपनन्दनः ।। ज्ञानियों में शिरोमणि श्री वर्धमान सबसे उत्कृष्ट हैं, उनकी जय हो। वे सदा संसार के भले के लिए तत्पर रहते हैं, वे ही दीर्घ शरीर के स्वामी हैं तथा सिद्धार्थ राजा के पुत्र हैं। निमित्त शास्त्रों के आठ भेद अङ्गविद्या निमित्तानामष्टानामपि गीयते। मुख्या शुभाशुभज्ञाने नारदादिनिवेदिता।। मनुष्य के शुभाशुभ फल के ज्ञान हेतु नारद, पराशर, गर्ग आदि महर्षियों ने सामुद्रिकशास्त्र का निर्माण किया और आठ विद्याओं के बारे में विस्तार से विवेचन किया। जिनमें हस्तरेखा मुख्य है। आठ विद्याएं इस प्रकार है। अंग, स्वप्न, स्वर, भूमि, व्यंजन, लक्षण, उत्पात, तथा अन्तरिक्ष । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र पंचांगुली देवी हाथ मनुष्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह कल्याण की चरम सीमा को धारण करने वाला है, अर्थात् हाथ से ही इस संसार में धन-सम्पत्ति तथा शोभा-श्री प्राप्त की जाती है। इस हाथ की पांचों अंगुलियां अधिष्ठात्री देवियां हैं जो साक्षात् इन्द्र की शक्तियां हैं। हस्तेन पाणिग्रहणं पूजाभोजनशान्तयः। साध्या विपक्षविध्वंसप्रमुखाः सकलाः क्रियाः ।। Jain PANESH श्री पंचागुली महादेवी Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र हाथ ही समस्त कर्मों का साधन है। इसके द्वारा ही संसार के धर्म के पालन के लिए विवाह किया जाता है। इसी से पूजा, यज्ञ, दान, भोजन, शान्ति तथा शत्रुनाश किया जाता है। अतः यह हाथ सभी क्रियाओं का कारण है। इन सब क्रियाओं के लिए भी हाथ में अंगुलियों का होना परम आवश्यक है। यही कारण है कि हाथ की अंगुलियों को महादेवी कहा गया है । इसीलिए हस्तशास्त्र के ग्रंथों में पंचांगुली महादेवी की उपासना का विधान है। इसकी सिद्धि प्राप्त करने पर हस्तरेखा विद्वान निश्चय ही सफल भविष्यवक्ता बन जाता है। यहां पर पंचांगुली महादेवी की सिद्धि का विधान दे रहे हैं जिससे साधक लाभान्वित हो सकेगा। . " श्री पंचागुली यंत्र Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र साधना विधि ध्यान ॐ पंचागुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने। अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितः।। मंत्र ॐ नमो पंचांगुली परशरी परशरी माता भयमंगल वशीकरणी लौहमयदंडमणिनी चौंसठकाम विहंडिनी रणमध्ये राउलमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनीमध्ये शाकिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गारुडीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ उपरे बुरे जो करावे जड़े जड़ावे तत चिन्ते चिन्तावे तसमाथे श्रीमाता पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ऊँ ठः ठः ठः स्वाहा। पंचांगुली साधना को कार्तिक मास में हस्त नक्षत्र के दिन शुभ लग्न में देवी का षोडशोपचार पूजा आदि करके यह साधना आरंभ की जाती है। एक मास व्यतीत होने के पश्चात मार्गशीर्ष महीने में, हस्त नक्षत्र के दिन तक यह साधना की जाती है। साधना काल में मन, शरीर, आहार तीनों की शुद्धि आवश्यक है। साधना समय में प्रति दिन सूर्योदय के समय पंचागुली मंत्र का 108 बार रुद्राक्ष माला पर जप करने के पश्चात पंचमेवायुक्त अनेक द्रव्य डालकर हवन सामग्री द्वारा 10 आहुतियां दें। ऐसा एक महीना पर्यन्त करते रहें, इस तरह एक महीने में यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा। मंत्र सिद्ध होने के बाद प्रातःकाल उठकर 7 बार इस मंत्र को पढ़कर अपने हाथों पर फुक मारे और हाथों को अपने शरीर पर फिरा लें। इस क्रिया को करने के बाद हस्तरेखा का अध्ययन करने पर निश्चय ही भविष्यवाणी सत्य होती है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र पंचागुली साधना विधान पंचांगुली देवी के बारे में अनेक प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है और उसमें यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति नियम पूर्वक पंचांगुली देवी की साधना करे तो शीघ्र ही वह सफल भविष्यवक्ता बन सकता है। किसी भी व्यक्ति का हाथ देखते ही उस व्यक्ति का भूत, वर्तमान और भविष्य उसके सामने साकार हो जाता है। साथ ही वह अनेक सूक्ष्म रहस्यों से भी भली भाँति परिचित हो जाता है। पंचांगुली साधना में शुभ मुहूर्त का विवेचन इस प्रकार है। मास यह साधना किसी भी महीने से प्रारंभ की जा सकती है। पर बैसाख, कार्तिक, आश्विन तथा माघ मास विशेष शुभ माने गये हैं। तिथि यह साधना शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, अथवा पूर्णमासी से प्रारम्भ की जा सकती है। वार रवि, बुध, गुरु तथा शुक्रवार इसे प्रारंभ करने के लिये श्रेष्ठ माने गये हैं। नक्षत्र कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, अनुराधा तथा श्रवण नक्षत्र विशेष अनुकूल माने जाते हैं। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र लग्न स्थिर लग्न, वृष, सिंह, वृश्चिक कुंभ लग्न प्रशस्त मानी गयी है। स्थान तीर्थभूमि, गंगा यमुना संगम, नदी का तट, पर्वत, गुफाएं तथा मन्दिर इसके लिये शुभ हैं। यदि ये स्थान सुलभ न हों तो घर के एकान्त कमरे का उपयोग किया जा सकता है। पूजन सामग्री कुंकुम, नरियल (जटा वाले) दीपक अबीर चावल दही बादाम शक्कर गुलाल मौली अखरोट पान । पान सुपारियां काजू भोज-पत्र केशर किसमिस पीपल के पत्ते बताशा मिश्री कच्चा दूध दुग्ध प्रसाद अगरबत्ती घृत कपूर लौंग पुष्प इलायची काली मिर्च पुष्पमाला, हवन सामग्री यज्ञोपवीत शहद गंगा जल फल कुएं का शुद्ध जल Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र इस साधना में कुछ बातें अत्यन्त आवश्यक हैं, जो निम्नलिखित हैं1. स्त्री संसर्ग तथा स्त्री चर्चा साधना काल में त्याज्य है। 2. क्षौरकर्म न करें। 3. संध्या, गायत्री स्मरण निश्चित हो। 4. नग्नावस्था में, बिना स्नान के, अपवित्र हाथ से, सिर पर कपड़ा रख कर जप करना निषिद्ध है। 5. जप के समय माला पूरी हुए बिना, बातचीत नहीं करनी चाहिए। 6. छींक अप्रश्य, अपान वायु होने पर हाथ धोवें तथा कानों को जल से स्पर्श करें। 7. आलस्य, जमहाई, छींक, नींद, थूकना, डरना, अपवित्र वस्त्र, बातचीत, क्रोध आदि जपकाल में वर्जित है। 8. पहले दिन जितना जप किया जाए रोज उतना ही जप करें इसे घटाना बढ़ाना उचित नहीं है। 9. जपकाल में शौच जाने पर पुनः स्नान कर जप में बैठे। जपकाल के नियम जपकाल में निम्न नियमों का भी पालन किया जाना चाहिए 1. भूमि शयन, 2. ब्रह्मचर्य, 3. नित्य स्नान, 4. मौन, 5. नित्य दान, 6. गुरु सेवा 7. पापकर्म परित्याग 8. नित्य पूजा 9. देवतार्चन 10. इष्टदेव व गुरु में श्रद्धा, 11. जप निष्ठा 12. पवित्रता। नास्ति हस्तात्परं ज्ञानं त्रैलोक्ये सचराचरे। यद्ब्राह्मयं शास्त्रकं हस्ते धृतबोधाय जन्मिनाम्।। तीनों लोकों में हस्तज्ञान सबसे बढ़कर ज्ञान माना गया है। इसकी रचना स्वयं ब्रह्माजी ने की है। वास्तव में यह ब्रह्माजी द्वारा लिखा गया एक ऐसा ग्रन्थ है जो जीवन भर मनुष्य का मार्गदर्शन कराता है। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र में ग्रहों का कारकत्व हाथ का अध्ययन करते समय ग्रहों के स्थान को भली प्रकार निरीक्षण कर अनेक बातों का भविष्य बताया जाता है। यदि कोई ग्रह नीच है या किसी ग्रह के क्षेत्र में दूषित रेखाएं अथवा अशुभ चिन्ह हो तो उस ग्रह से सम्बन्धित विषय को बताना चाहिए। सूर्य आत्मा, स्वभाव, स्वास्थ्य राज्य रोग, सिरदर्द, अपच, टी.बी, बुखार, दस्त, पेचिस, नेत्ररोग, पिता, अपमान व कलह आदि । चन्द्र- बात, कफ, राजकृपा, शारीरिकबल मनोवृत्ति, सम्पत्ति, पीलिया, जुकाम, दमा, बुखार, खाँसी, मूत्ररोग, गुप्तरोग, भ्रमण, पेट व मस्तिष्क आदि । . मंगल - खून, पित्त, रक्तवाहिनी, माँस, संक्रामक रोग (टिटनेस), भाई-बहिन, सम्पत्ति, पदाधिकार, शासन, राजयोग, आदि । बुध नपुंसकता, त्रिदोष, व्यापार, गूढ़ विद्याएँ, चिकित्सा कला, वाणी, गुप्तरोग, कागजी कार्रवाई, संग्रहणी, गूंगापन, सफेदकोढ़ आदि । गुरु चर्बी, कफ, पुत्र, पौत्र, धर्म, घर, सूजन वाले रोग । शुक्र- स्त्री कामशक्ति गाना, कविता, नेत्र, गहने, माता तथा सुखभोग आदि । शनि नपुंसकता, वायुविकार, विदेशी भाषा, माता-पिता, आयु बल, उदारता, मुसीबत, ऐश्वर्य, मोक्ष कीर्ति, नौकरी, काली वस्तुएँ, व्यापार, तथा बेहोशी वाली व हृदय की बीमारियाँ, आपरेशन आदि । राहु हृदय रोग, भ्रमण, मुसीबत, दुर्घटना, बाएँ अंग की चोट, हानि आदि । केतु - खाल के रोग, भूख, मृत्यु, हाथ-पाँव, ऐश्वर्य तथा मातृपक्ष आदि । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र मुखाकृति पर तिल और उनका प्रभाव 1. यदि चेहरे पर दाहिने भाग में लाल या काला तिल हो, तो वह व्यक्ति यशस्वी, धनवान तथा सुखी होता है। 2. यदि शुक्र रेखा के बाईं ओर काला तिल या लाल तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति कामी या पर स्त्री-गामी होता है। 3. यदि चन्द्र रेखा के दाहिनी ओर तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति समाज में यशस्वी होता है और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है। 4. यदि मंगल रेखा के मध्य में तिल हो, तो वह सन्ताहीन होता है। यहां पर दोनों तिलों का एक ही फल समझना चाहिए। 5. यदि सूर्य रेखा के दाहिनी ओर तिल हो, तो वह व्यक्ति जमीन जायदाद आदि से लाभ उठाता है। 6. यदि गुरु रेखा पर ललाट के मध्य में काला या लाल तिल, हो, तो वह व्यक्ति बुद्धिमान और चतुर होता है। 7. यदि गुरु रेखा के दाहिनी ओर तिल हो, तो वह उन्नति करने वाले होते हैं। यहां पर लाल तिल का भी यही फल है। 8. यदि चन्द्र रेखा पर लाल या काला तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति अल्पायु होता है और उसे गुप्त रोग होते हैं। 9. यदि नीचे के होठ पर तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति निर्धन होता है तथा जीवन भर गरीबी में दिन व्यतीत करता है। ऊपर के होंठ पर शुभ माना गया है। 10. यदि बायें कान के ऊपरी सिरे पर तिल का चिन्ह हो, तो वे व्यक्ति दीर्घायु पर कमजोर शरीर के होते हैं। 11. यदि सूर्य रेखा के बाईं ओर तिल हो, तो उसका गृहस्थ जीवन समस्या-प्रधान बना रहेगा। 10 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 12. यदि नासिका के मध्य भाग में तिल हो, तो वह व्यक्ति यात्रा करने वाला तथा दुष्ट स्वभाव वाला होता है। 13. यदि चन्द्र रेखा के बाईं ओर लाल या काले तिल का चिन्ह हो तो ऐसा व्यक्ति दूसरों को तकलीफ देने वाला होता है। 14. यदि ललाट की दाहिनी कनपटी पर तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति प्रेमी, समृद्ध तथा सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाला होता है। 15. यदि ऊपर के होठ पर तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति अत्यधिक विलासी और काम पिपासु होता है। 16. यदि बायें गाल पर तिल का चिन्ह हो, तो उसके जीवन में धन का अभाव रहता है, परन्तु उसका गृहस्थ जीवन सामान्यतः सुखमय रहता है। 17. यदि ललाट में शुक्र रेखा के ऊपर लाल या काला तिल हो, तो वह व्यक्ति भौतिक दृष्टि से पूर्ण सुखी व सम्पन्न होता है। 18. यदि सूर्य रेखा के मध्य में तिल हो, तो वह व्यक्ति वैभव सम्पन्न सुखी तथा यशस्वी होता है। 19. यदि बुध रेखा के बाईं ओर काला या लाल तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति डरपोक, कायर तथा अपना काम स्वयं बिगाड़ने वाला माना जाता है। 20. यदि ठोड़ी पर तिल हो, तो वह व्यक्ति अपने काम में ही लगा रहने वाला होता है तथा लगभग स्वार्थी होता है। 21. यदि दाहिने कान के ऊपरी सिरे पर तिल का चिन्ह हो, तो वे व्यक्ति सरल स्वभाव के तथा युवावस्था में पूर्ण उन्नति करने वाले होते हैं। 22. यदि दाहिने कान के पास तिल हो, तो ये व्यक्ति साहसी होते हैं। 23. यदि शनि रेखा के मध्य में या उसके नीचे तिल हो, तो वह डरपोक होता है। लाल तिल होने पर भी यही फल पाया जाता है। 24. यदि दाहिने भाग के भौंह के पास में तिल हो, तो इनकी आंखें कमजोर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र होती हैं। 25. यदि दाहिने गाल पर तिल का चिन्ह हो, तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान तथा उन्नति करने वाला होता है। 26. यदि काला तिल शनि रेखा के बाईं ओर हो, तो वह व्यक्ति जीवन में कई यात्राओं से धन कमाता है। 27. यदि गर्दन पर तिल हो, तो वे व्यक्ति-बुद्धिमान होते हैं तथा अपने प्रयत्नों से धन संचय करते हैं। 28. यदि दाहिनी आंख के नीचे तिल का चिन्ह हो, तो वे समृद्ध तथा सुखी होते 29. यदि बुध रेखा के दाहिनी ओर काला या लाल तिल हो, तो वह व्यक्ति सफल व्यापारी होता है। 30. यदि नासिका के बाएं भाग पर तिल हो, तो बहुत अधिक प्रयत्न करने के बाद सफलता प्राप्त होती है। 31. यदि बाएं नेत्र की भौंहों के पास में तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति एकान्तवासी तथा सामान्य जीवन निर्वाह करने वाला होता है। 32. यदि दोनों भौंहों के बीच में तिल का चिन्ह हो, तो ये दीर्घायु धार्मिक तथा उदार हृदय के होते हैं। 33. यदि दाहिनी हथेली पर लाल तिल का चिन्ह होता है, तो वह धनवान होता है। 34. यदि बाएं हाथ में तिल होता है, तो वह बुद्धिमानी से व्यय करने वाला होता ललाट, नाशिका, मुख ललाट क्षेत्र का विकास जातक की मानसिक, बौद्धिक एवं सात्विक शक्ति का सूचक है। नाशिका क्षेत्र जातक के भौतिक, व्यावहारिक एवं राजसिक प्रवृत्तियों 12 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र का सूचक है । मुख क्षेत्र जातक की जैविक वासनात्मक एवं मानसिक इच्छाओं का सूचक है जिस जातक का ललाट और नाशिका क्षेत्र उन्नत तथा विस्तृत होता है, वह बुद्धिमान, ज्ञानवान, विचारशील, व्यावहारिक चतुर तथा साहसी तथा सफल होता है। जिस जातक का मुख क्षेत्र विस्तृत होता है, वह गम्भीर, चालाक, चतुर, धूर्त, विचारवान, कामी और स्थिति को पहचानने वाला होता है ऐसे जातक अधिक स्वार्थी होते हैं। ये आवश्यकता पड़ने पर असत्य एवं अन्याय का भी सहारा लेने से पीछे नहीं हटते। यदि किसी जातक के नासिका क्षेत्र की अपेक्षा मुख क्षेत्र अधिक विकसित होगा तो व्यक्ति कामुक वासनायुक्त, असभ्य, एवं हिंसक होगा। यदि नासिका क्षेत्र मुख क्षेत्र से अधिक विकसित हो तो जातक, जल्दबाज, स्पष्टवक्ता, मनमौजी संरक्षक एवं न्यायप्रिय होगा । मुखाकृति 1 सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार भिन्न- 2 मुखाकृति के जातक का भिन्न- 2 स्वभाव और गुण पाया जाता है। मुख्यतः यह आकृति पांच प्रकार की मानी गयी है, 1. वर्गाकार मुखाकृति, 2. उल्टे घड़े के समान मुखाकृति 3. वृत्ताकार 4. सूर्पाकार, 5. अण्डाकार। यदि जातक की मुखाकृति का ठीक-ठीक अध्ययन किया जाय तो यह जाना जा सकता है कि जातक का स्वभाव एवं गुण कैसा है । 13 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. वर्गाकार मुखाकृति वर्गाकार मुखाकृति के जातक, पृथ्वी तत्व प्रधान होते हैं। यदि ऐसे जातक के मुखाकृति पर चारों ओर से चतुष्कोण खींचा जाय तो ऐसे जातक की मुखाकृति चतुष्कोण में पूरी तरह फिट हो जाती है। वर्गाकार मुखाकृति के जातक का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होता है तथा इनकी शरीर सुडौल होती है साथ ही इनमें शक्ति भी अधिक पायी जाती है। ऐसे जातक व्यवहार कुशल, उद्यमी, और उद्योगशील होते हैं। व्यवहार कुशल अधिक होने के कारण इन्हें भौतिक साधनों का सुख मिलता है। यदि वर्गाकार मुखाकृति के जातक में पृथ्वी तत्व की अधिकता होती है तो इनमें हठ, आलस्य, विलासिता आदि की अधिकता होती है तथा अपने कार्यों के कारण बाद में दुःखी होते हैं। ऐसे जातक आसानी से अन्य के प्रभाव में नहीं आते हैं, और न ही अपने सिद्धान्त को आसानी से बदलते हैं। वर्गाकार मुखाकृति के स्त्री जातक का शरीर स्थूल एवं भारी होता है तथा इनकी चाल धीमी और मतवाली होती है। ऐसी स्त्रियाँ कर्मठ व्यवहार कुशल तथा मनमौजी होती हैं, अगर इनमें पृथ्वी तत्व की अधिकता होती है तो चरित्र की दृष्टि से दुर्बल होती हैं। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 2. घड़े के समान मुखाकृति ऐसे जातक को ध्यान केन्द्रित करके देखा जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे शरीर पर गर्दन सहित उल्टा घड़ा रखा गया हो ऐसे जातक आकाश तत्व से प्रभावित होते हैं, दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि इनमें आकाश तत्व की अधिकता होती है। उल्टे घड़े के समान मुखाकृति वाले जातक के चेहरे पर अदभुत कान्ति एवं आंखों में विशेष तेज पाया जाता है। ऐसे जातक हृदय के मनमानी, महत्वाकांक्षी, स्वाभिमानी, आदर्शविचार, एकान्तप्रिय, तेजस्वी, अध्यात्मवादी एवं असाधारण प्रकृति के होते हैं। ऐसे जातक स्वतः के कार्य क्षेत्र में सफल होते हैं तथा उच्च पद पर आसीन होते हैं। ये जातक ऐसा कार्य करना पसंद करते हैं जिससे समाज का भला हो । 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 3. वृत्ताकार मुखाकृति वृत्ताकार मुखाकृति के जातक जल तत्व से प्रभावित होते हैं, यदि इनके मुखाकृति का चित्र एक गोले में फिट किया जाय तो वह आसानी से फिट हो जाता है। वृत्ताकार मुखाकृति के जातक का गाल, मांसल से भरा हुआ एवं चिकना होता है, इनका शरीर स्थूल तथा उदर लम्बा होता है। ऐसे जातक कल्पनाशील, भावुक, स्वप्नदर्शी, प्रसन्नचित्त, मिलनसार एवं संवेदनशील होते हैं। वृत्ताकार मुखाकृति के जातक अधिक परिश्रम में पीछे हट जाते हैं तथा आराम करना अधिक पसंद करते हैं। यदि ऐसे जातक में जल तत्व की अधिकता होती है तो संघर्ष से दूर भागते हैं और निराशावादी होते हैं । वृत्ताकार मुखाकृति वाले स्त्री जातक श्रृंगारप्रिय, पतिव्रता, चंचल, स्नेही, उदार होती हैं । यदि वृत्ताकार मुखाकृति की स्त्री जातक में जल तत्व की अधिकता होगी तो वह दुर्बल निराश एवं रोग ग्रस्त होगी । 16 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र जोडा होने से ऐसा हठी होते है। साक्ति में 4. सूर्पाकार मुखाकृति सूर्पाकार मुखाकृति वाले जातक अग्नि तत्व प्रधान जातक होते हैं। यदि इनके चेहरे को चतुष्कोण में फिट किया जाये तो ललाट वाला भाग चौड़ा होगा तथा नीचे ठोढ़ी वाला भाग संकरा होगा। दूसरे शब्दों में इसे उल्टी बाल्टी के सदृश का कहा जा सकता है। ऊपर का भाग चौड़ा होने से ऐसे जातक स्वस्थ, साहसी, बृद्धिमान, दूरदर्शी चिंतक, स्पष्टवक्ता, अभिमानी नेतृत्वप्रिय तथा हठी होते हैं। ऐसे जातक का यदि कहीं वाद-विवाद हो जाये तो पीछे नहीं हटते कारण कि ये शक्ति में अधिक विश्वास रखते हैं। ऐसे ही स्वभाव के कारण ये जातक ध्वंसात्मक एवं रचनात्मक दोनों प्रकार के कार्य सम्पन्न करते हैं। यदि ऐसे जातक में अग्नि तत्व की अधिकता होगी तो ये अत्यन्त क्रोधी एवं पाशविक प्रवृत्ति के होंगे तथा हिंसात्मक कार्य करेंगे। सूर्पाकार मुखाकृति की स्त्रियां स्वतन्त्रताप्रिय, असहिष्णु एवं अधिक बोलने वाली होती है। ऐसी स्त्रियां गृहस्थ जीवन में कम सफल होती हैं इनका मुख्य कारण यह है कि इन्हें जरा-2 सी बात पर क्रोध आ जाता है। अगर इन्हें नौकरी या राजनीति क्षेत्र में अवसर मिले तो अधिक सफल होती हैं। 17 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. अण्डाकार मुखाकृति अण्डाकार मुखाकृति का जातक वायु तत्व प्रधान जातक होता है, ऐसे जातक का ललाट विशाल होता है। ऐसे जातक का कद् सामान्य, गाल चिकने और लुभावने होते हैं तथा इनकी आंखे खूबसूरत होती हैं। अण्डाकार मुखाकृति के जातक स्वछन्द, साहसी, आशावादी, तथा तर्कपूर्ण बातें करने वाले होते हैं। इनमें हमेशा ज्ञान की जिज्ञासा होती है ये आनंद की खोज शान्ति की चाह करते हुए प्रगति की राह पर चलते हैं। यदि ऐसे जातक के चेहरे का निचला भाग पुष्ट हो तो प्रेम और सौंदर्य का इच्छा, काम पिपासा, व्यर्थ के आचरण की वृद्धि होगी। यदि ललाट का भाग कुछ संकुचित होगा (उल्टे अण्डे की तरह) तो उनकी बुद्धि का विकास कम होगा , ऐसे लोग हास्य, व्यंगप्रिय, मनमौजी तथा सामान्य स्वभाव के होते हैं। यदि चेहरे के निचले भाग में वायु तत्व की प्रधानता होगी तो जातक असत्यवादी, अस्वस्थ एवं स्वभाव से चिड़चिड़े होंगे। अण्डाकार मुखाकृति की स्त्री जातक सामान्य होती हैं, तथा थोड़े से प्रयत्न से अच्छी जीवन साथी सिद्ध हो सकती हैं। 18 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र कर्क सिंह कुम्भ वृष मिथुन मेष तुला माश्चक मीन कन्या मकर मुखाकृति पर 12 राशियों का स्थान Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अभ्यास प्रश्नावली 1. सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार सूर्य, बुध और शनि ग्रह का प्रभाव बतायें ? 2. मुखाकृति पर दाहिनी ओर काला तिल का क्या प्रभाव है ? 3. सर्वोत्तम नासिका की पहचान बतायें ? 4. अण्डाकार मुखाकृति वाले जातक के बारे में लिखें ? 20 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय- 2 2. Lines on Forehead & their Effects प्राचीन मुनियों ने ललाट पर सात रेखाएं बताई हैं। उनके अनुसार इन रेखाओं तथा उनसे सम्बन्धित ग्रहों के नाम इस प्रकार हैं1. ललाट में केशों के निचले भाग की रेखा के स्वामी शनि हैं। 2. इस रेखा के नीचे जो दूसरी रेखा है, उसके स्वामी गुरु हैं। 3. तीसरी रेखा के स्वामी मंगल हैं। 4. चौथी रेखा के स्वामी सूर्य हैं। 5. पांचवीं रेखा के स्वामी शुक्र हैं। 6. छठी रेखा के स्वामी बुध हैं। शुक्र रेखा क्षेत्र शनि रेखा क्षेत्र - गुरु रेखा क्षेत्र मंगल रेखा क्षेत्र चन्द्र रेखा क्षेत्र दायी आंखी बांयी आ सूर्य रेखा क्षेत्र बुध रेखा क्षेत्र Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. शनि रेखा ललाट पर पायी जाने वाली शनि रेखा से जातक में - निश्चय भावना, समझ उदासीनता, दूरदर्शिता, गंभीरता खिन्नता, आदि बातों को जाना जाता है। 1. जिस जातक के ललाट पर दाहिनी ओर शनि रेखा । से एक छोटी रेखा ऊपर की ओर जाय तो जातक को निकट भविष्य में कुछ परेशानियों का सामना करना होता है। 2. यदि शनि रेखा से एक छोटी रेखा बाई आंख के ऊपर की ओर जाये तो जातक की स्त्री झगड़ालू और चंचल प्रवृत्ति की होती है। 3. बाई आंख के ऊपर शनि रेखा से निकल कर एक छोटी रेखा बालों तक जाती है तो ऐसे जातक की स्त्री हस्तिनी जाति की होती है। जादिनी आंख / 3 4. शनि रेखा पर दाहिनी आंख 0 के ऊपर अंग्रेजी वर्णाक्षर V की तरह हो तथा बाई ओर तीन छोटी रेखायें मिलकर U का आकार बनायें तो जातक को अनेक तरह की परेशानियों का सामना होता है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. शनि रेखा केशों के समीप हो तथा अखण्ड हो साथ ही सीधी हो तो जातक की बौद्धिक क्षमता अच्छी होती 6. शनि रेखा टेढ़ी या खण्डित होने से जातक उदासीन, शिकायती एवं चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। 7. शनि रेखा पर नीचे की ओर त्रिभुज होने से वह जातक धर्म परिवर्तन करता है अथवा अन्य जाति में विवाह करता है। 8. शनि रेखा से आकर एक टेढ़ी रेखा गुरु रेखा को काटे तथा सूर्य रेखा के ऊपर से जाती हुई छोटी रेखा से पुनः गुरु रेखा कटने पर जातक को साधना के क्षेत्र में लाभ दिलाता है। जाती ह 9. शनि रेखा बार-बार खण्डित हो, गुरु रेखा छोटी हो, मंगल रेखा दोषपूर्ण हो, सूर्य व चन्द्र रेखा अच्छी हो तो जातक को सामान्य कहा जायेगा साथ ही जातक का स्वभाव चंचल और यदा-कदा परेशानी का सामना होगा। 018 23 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 10. शनि रेखा लम्बी सीधी और अखण्ड होने से जातक निश्चय भावना वाला, बौद्धिक विचार वाला, समझदार, दूरदर्शी और गम्भीर होता है। 11 24 13 11. शनि रेखा कई बार खण्डित हो, गुरु रेखा लम्बी तथा सीधी हो, मंगल रेखा बीच में कटी हो, सूर्य रेखा धनुषाकार हो, 10 शुक्र रेखा बीच से कटी हो तो वह जातक सत्य भाषी सरल, विनम्र सबका प्रिय नेता, आदि होता है। 12. शनि और गुरु रेखा पर अर्ध चन्द्राकार का निशान हो तथा सूर्य या चन्द्र रेखा परस्पर मिली हो तो वह परम् सौभाग्यशाली माना जाता है। 12 13. शनि रेखा बीच में कटी हो तथा टेढ़ी हो, रेखा बीच से टेढ़ी हो तथा दांये भाग में कटी हो, मंगल तथा सूर्य रेखा दांयी ओर सर्पाकार हो। 14. शनि रेखा छोटी हो, गुरु रेखा बीच में खण्डित हो, मंगल रेखा लम्बी और टेढ़ी हो साथ ही एक ओर अधिक झुकी हो, शुक्र रेखा बीच से खण्डित हो साथ ही दायी ओर एक रेखा उसे काटती हो, तो ऐसा जातक अभिमानी, क्रोधी, मित्रों द्वारा तिरस्कृत, व्यभिचारी कामातुर आदि अवगुणों वाला होता है। 14 गुरु Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 15. शनि रेखा गहरी तथा टेढ़ी हो, गुरु रेखा लम्बी हो तथा दोनों ओर झुकी हो, सूर्य रेखा बीच में खण्डित हो, तो जातक सुन्दर, सुखी, उदार, विद्वान, यशस्वी, धर्मात्मा तथा भाई बन्धुओं का सम्माननीय होता हैं। 16. शनि और गुरु रेखा ऊपर की ओर चन्द्राकार हो, शनि रेखा छोटी हो, दोनों भौहें परस्पर मिली हों ऐसा जातक, धनी, असत्य भाषी, कामातुर और व्यभिचारी होता है। 16 17. शनि रेखा धनुषाकार हो, गुरु रेखा साकार हो, मंगल रेखा लम्बी हो, सूर्य रेखा शाखा युक्त हो, शुक्र रेखा बीच में कटी हो, वह जातक, पराक्रमी, लोभी, अशान्त तथा असफल जीवन वाला होता है। 17 18. शनि रेखा लम्बी हो, गुरु रेखा सर्पाकार हो, वह जातक अपनी पत्नी से भय और कष्ट पाता है। / 18 19. शनि रेखा सीधी हो तथा बीच में दो रेखाओं द्वारा काटी जाय, मंगल व गुरु रेखा बीच में खण्डित हो, ऐसे जातक की सम्पत्ति को खतरा होता है। 25 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 20. दायीं आंख के ऊपर शनि रेखा पर V का निशान होने से आर्थिक नुकसानों का सामना होता है। 21. शनि रेखा पर ऊपर की। ओर तथा शुक्र रेखा से नीचे की ओर जाती हुई दो-दो रेखायें होने से कर्ज लेना पड़ता है। 22. शनि रेखा पर एक सर्पाकार एक आड़ी रेखा ऊपर की ओर जाये तो जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। 22 26 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 2. गुरु रेखा ललाट पर पायी जाने वाली गुरु रेखा से जातक में - भक्ष्याभक्ष (खान-पान) ईमानदारी, नैतिकता, नियम-संयम, साफ-सफाई, भेद-भावन, आध्यात्म, आत्मचिंतन, ज्ञान, श्रद्धा, भक्ति, उपासना, आदि के बारे में जाना जाता है। 1. जिस जातक के ललाट पर गुरु रेखा पर नीची की ओर एक या दोनों ओर एक धुमावदार रेखा होगी तो जातक को स्वास्थ्य की परेशानी का संकेत देती है। 2. गुरु रेखा मध्य में नीचे की ओर V आकार में घूमकर पुनः सीधी होकर आगे बढ़ जाये तो ऐसा जातक स्वतः के जीवन काल में अधिकाधिक धन खर्च करता है। 3. गुरु रेखा दो भागों में बंटने से जातक को आर्थिक संकटों का सामना होता है तथा उसके मन में अशान्ति होती है। 4. गुरु रेखा अखण्ड तथा स्पष्ट होने से जातक को ईमानदार, संयमी, ज्ञानी और उपासक बनाती है। 27 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. गुरु रेखा टेढ़ी हो, खण्डित हो तो जातक में अनियमितता तथा भक्ष्याभक्ष्य का भेद भाव नहीं होता । 6 28 8 6. गुरु रेखा के नीचे सूर्य रेखा के ऊपर यदि त्रिभुज का निशान बने तो जातक दैवीय शक्ति प्राप्त करता है । 7. सूर्य क्षेत्र के ऊपर गुरु रेखा को एक अन्य छोटी, सर्पाकार रेखा काटे तो जातक महान सिद्धि प्राप्त करता है ऐसे जातक का गृहस्थ जीवन असफल होता है। 8. गुरु रेखा पर सूर्य रेखा की ओर एक वृत्त बने तो ऐसा जातक सांसारिक दुःखों का शिकार और भ्रमित होता तो ऐसा जातक मूर्ख, उपद्रवी, ठग, मनमौजी, कठोर स्वभाव, तथा झगड़ालू होगा । 5 9. गुरु रेखा छोटी हो, मंगल रेखा गहरी हो शनि रेखा टेढ़ी एवं निचले भाग में टूटी हो सूर्य रेखा बीच से खण्डित और टेढी हो 7 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 3. मंगल रेखा ललाट पर पायी जाने वाली मंगल रेखा से जातक में - साहस, कार्य-सफलता, कायरता, आक्रोश, राजसेवा आदि के बारे में जाना जाता है। 1. ललाट पर पायी जाने वाली मंगल रेखा यदि टुकड़ों में बंटी हुई अथवा खण्डित होगी तो जातक में साहस की कमी होगी एवं गुप्त शत्रु का सामना होगा। 52. जिस जातक के ललाट पर मंगल / रेखा की शाखायें सूर्य रेखा की ओर जाती है अथवा सूर्य रेखा को काटती हैं तो जातक को आर्थिक परेशानी का सामना करना होता है। 3. यदि मंगल रेखा ललाट के मध्य में हो तथा छोटी हो तो ऐसे जातक को भी आर्थिक परेशानी का सामाना करना होता है। 4. यदि मंगल रेखा से सूर्य रेखा की ओर एक सीधी शाखा एवं एक वक्री शाखा जाती है तो जातक को शीघ्र ही अच्छी नौकरी या नये व्यवसाय की ओर उन्मुख करती है और लाभ दिलाती है। 29 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. मंगल रेखा लम्बी और निर्दोष हो तथा मोटी हो तो जातक को बलवान, सैनिक, साहसिक प्रवृत्ति का बनाती है । खण्डित मंगल रेखा से व्यक्ति झगड़ालू एवं क्रोधी स्वभाव का होता है। 6 7. मंगल रेखा टेढ़ी हो, खण्डित हो, दोषपूर्ण हो, तो वह जातक अधिकांश कार्यों में असफल रहता है एवं उसके कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। 6. मंगल रेखा सर्पाकार हो साथ ही 5 शनि रेखा सर्पाकार हो एवं दोनों के मध्य में वज्र का निशान हो, ऐसे जातक का मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा वह निराश होकर आत्म हत्या को आतुर होता 8 30 7 8. सीधी व स्पष्ट मंगल रेखा होने से जातक सभी कार्यों में सफल होता है क्योंकि उसमें साहस की अधिकता होती 9. मंगल एवं शनि रेखा बीच में टूटी हो, गुरु रेखा दोनों के बीच में झुकी हो तो ऐसा जातक धनी, दूरदर्शी एवं सौभाग्यशाली होता है यदि शनि और गुरु रेखा खण्डित होकर आपस में मिलेंगी तो अशुभ है ऐसी स्थिति में जातक स्वयं अपना जीवन बरबाद करता 9 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 10. यदि मंगल रेखा चन्द्र रेखा की ओर झुकी हो और उस पर मस्सा हो, शनि रेखा लम्बी एवं गहरी हो गुरु रेखा छोटी हो ऐसे जातक कठोर एवं हिंसक हृदय के स्वामी होते हैं। 11. मंगल रेखा छोटी हो गुरु रेखा टेढ़ी हो शनि रेखा सीधी हो तो जातक भाग्यशाली होता है। / 10 12. मंगल रेखा बीच में टूटी हो सूर्य रेखा लम्बी हो तो जातक धनी, दानी, / 11 दयालु एवं बुद्धिमान होता है। ऐसे जातक अनेक लोगों को सुख प्रदान करने वाले होते हैं। AME 31 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 4. सूर्य रेखा ललाट पर पायी जाने वाली सूर्य रेखा से जातक में – धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सम्मान, प्रलोभन, खर्चीला स्वभाव, बौद्धिक क्षमता आदि के बारे में जाना जाता है। सूर्य रेखा लम्बी एवं निर्दोश होना शुभ माना जाता है। चेहरा विज्ञान में सूर्य रेखा देखकर जातक के जीवन में धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सम्मान, प्रलोभन, कार्य, खर्चीला, स्वभाव, बौद्धिक क्षमता आदि के बारे में जाना जा सकता है ये रेखा दाहिनी आंख के भैंह के ऊपर पायी जाती है। कभी-कभी इस रेखा की लम्बाई अधिक होने से चन्द्र रेखा में मिल जाती है तथा अधिक छोटी होने पर चन्द्र रेखा से दूर रहती है। 1. जिस जातक के ललाट पर सूर्य रेखा स्पष्ट एवं पूर्ण हो तो ऐसे जातक धन सम्पत्ति से सम्पन्न होते हैं तथा इनकी बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। यदि सूर्य रेखा दोषी हो, खण्डित हो तो जातक में लोभ की भावना बढ़ जाती है वह अधिक लालची और स्वार्थी बन जाता है इस रेखा के अभाव में व्यक्ति ऐश्वर्य और सम्मान से वंचित रह जाता है। 2. ललाट पर सूर्य रेखा कुछ गोलायी में हो तो जातक स्पष्ट बोलने वाला तथा कार्यों को सोच विचार कर करने वाला होता है और कार्यों में सफलता भी प्राप्त करता है। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 3. सूर्य रेखा दोष पूर्ण या खण्डित होने से व्यक्ति में कंजूसी की भावना बढ़ जाती है तथा बौद्धिक क्षमता को भी प्रभाव पड़ता है। ISBN 4. जिस जातक के ललाट पर शनि क्षेत्र में अर्ध चन्द्राकार कई रेखायें होंगी, साथ ही गुरु एवं मंगल रेखा लम्बी एवं सर्पाकार होगी। ऐसे जातक / 3 दुःखी, भयभीत, चिंतित एवं चंचल हृदय के स्वामी होते हैं। ऐसे जातक को पानी से सावधान रहना चाहिए क्योंकि शनि क्षेत्र में चन्द्राकार कई रेखा होने से जल द्वारा हानि होती है। 5. शनि रेखा अपने निचले भाग में टूटी हुई हो तथा सीधी हो। गुरु रेखा पर बाई ओर धनुषाकार चिन्ह हो। मंगल रेखा शाखायुक्त हो। सूर्य रेखा सर्पाकार हो। शुक्र रेखा अपने ऊपरी भाग में गहरी तथा बीच में कटी हो तो ऐसे जातक गुणवान, विद्वान, दानी, धर्मात्मा, उपदेशक, यशस्वी तथा यात्रा प्रेमी होते हैं। 5 D6. शनि रेखा गहरी हो गुरु रेखा छोटी मंगल रेखा गहरी । तथा पतली हो। सूर्य रेखा झुकी हो एवं दो रेखाओं से कटी हो, तो वह जातक कामी, क्रोधी, कलहप्रिय, झगड़ालू एवं हथियार से चोट खाता है। 33 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. चन्द्र रेखा ललाट पर पायी जाने वाली चन्द्र रेखा से जातक में कल्पना, विचार शक्ति, यात्रा, प्रेम, बौद्धिक चंचलता, मनोभावना, आदि के बारे में जाना जाता है। 1. चन्द्र रेखा उत्तम तथा पूर्ण होने से जातक में कल्पना शीलता, देशाटन भावना, तथा बौद्धिक चंचलता की वृद्धि होती है। 2. चन्द्र रेखा दोषपूर्ण अथवा खण्डित होने से जातक की । बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करके उसे मंद बुद्धि वाला बनाती हैं चन्द्र रेखा खण्डित होने से जातक सत्यवादी नहीं होता है तथा देशाटन में बाधायें आती है। 3. यदि जातक के ललाट पर चन्द रेखा का अभाव हो तथा ललाट पर एक ही रेखा हो और वह धनुषाकार हो, तो जातक में यात्रा करने की भावना अधिक पायी जाती है। ऐसे जातक का स्वभाव अच्छा नहीं होता तथा बुरे कार्यों की चेष्टा करता है ऐसे जातक का अधम स्वभाव माना जाता हैं 4. स्पष्ट तथा गोलायी युक्त चन्द्र रेखा जातक में अच्छे विचार उत्पन्न करती है तथा यात्रायें अधिक करवाती है। ऐसे जातक की | विचार शक्ति और प्रेम भावना अच्छी होती है। T OP 5. ललाट पर चन 5. ललाट पर चन्द्र रेखा का अभाव हो तथा अन्य रेखायें छोटी-छोटी होने से जातक में अच्छे बुरे दोनों गुण पाये जाते हैं तथा ऐसे जातक दीर्घायु नहीं होते हैं। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. शुक्र रेखा ललाट पर पायी जाने वाली शुक्र रेखा से जातक में- स्त्री सुख, विपरीत लिंग की ओर सम्पन्नता, सुख, सच्चा प्रेम, दाम्पत्य जीवन आकर्षण, आदि के बारे में जाना जाता है । सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. शुक्र रेखा अखण्ड व स्पष्ट होने से स्त्री सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक अच्छे प्रेम के स्वामी होते हैं ऐसे I जातक का दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है। 2 4 2. शुक्र रेखा दोषपूर्ण या खण्डित होने से जातक का दाम्पत्य जीवन अधिक सुखी नहीं होता तथा ऐसे जातक दिखावटी प्रेम करता है। 3. यदि ललाट में चार रेखायें हो तथा शुक्र और शनि रेखा किसी अन्य छोटी रेखा द्वारा कटती हो तो वह जातक बुद्धिमान सच्चरित्र और सरल स्वभाव का होता है । 4. शुक्र रेखा से कई छोटी रेखायें चन्द्र रेखा की ओर जाने से जातक की आर्थिक स्थिति खराब होती है तथा कर्जा लेना पड़ता है। 3 35 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 7. बुध रेखा ललाट पर पायी जाने वाली बुध रेखा से जातक में – विद्वत, वाणी, वाक्पटुता, तर्क शक्ति, बौद्धिक गुण, निर्णय क्षमता, अच्छे बुरे की समझ, गणित आदि के बारे में जाना जाता है। 1. जिस जातक की बुध रेखा निर्दोष एवं स्पष्ट हो, तो वह जातक अनेक लोगों का मित्र होता है। यदि यह रेखा खण्डित हो तो जातक को दुःख भुगतना पड़ता है। अच्छी बुध रेखा जातक में तर्क शक्ति, वाक्पटुता एवं अच्छे बुरे की समझ उत्पन्न करती हैं। 2. दोषपूर्ण या खण्डित बुध रेखा जातक , में वाद-विवाद की भावना उत्पन्न करती है तथा गणित विषय में ONO असफलता दिलाती है। 3. बुध रेखा स्पष्ट मोटी और नीचे की ओर चन्द्राकार होने से जातक में भाषण की दक्षता, विद्वता, एवं ख्याति दिलाती है। 4. बुध रेखा क्षेत्र में अधिक रेखा होने से जातक अधिकाधिक बोलने के कारण स्वतः का सम्मान खोता है और दुःखी रहता है। 5. यदि ललाट में एक सर्पाकार रेखा हो तथा बुध रेखा क्षेत्र में दो से अधिक खड़ी रेखायें हो तो जातक अच्छा वक्ता और स्त्रियों के मध्य रहने वाला होता है। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र ललाट एवं ललाट रेखायें सामान्य भाषा में सिर के अग्र भाग को ललाट कहते हैं। ललाट की आकृति और उस पर पायी जाने वाली रेखाओं के संबंध में अनेक ग्रन्थों में वर्णित है। ललाट व रेखाओं से जातक की बौद्धिक क्षमता, ज्ञान, विचार, साहस, व्यवहार आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। निःस्वा विषम भालेन दुःखिता ज्वर जर्जराः। परकर्मं करा नित्यं प्राप्यन्ते वध वन्धनम।। (सामुद्रिक शास्त्र) जिस जातक का ललाट नीचा हो, अविकसित हो, ऐसा जातक जीवन में ज्वर से पीड़ित होता है तथा निम्न कोटि का कार्य करने वाला होता है एवं जीवन में सफलता और सम्मान से वंचित होता है। ललाटेनार्धं चन्द्रेण भवन्ति पृथ्वीश्वराः। विपुलेन ललाटेन महानरपतिः स्मृतः ।। श्लेक्ष्णेन तु ललाटेन नरो धर्मरस्तथा। (भविष्यपुराण) जिस जातक का ललाट अर्ध चन्द्राकार होता है तथा उन्नत एवं फैला होता है, वह जातक भूमि और सम्पत्ति का स्वामी होता है तथा ऐसे जातक सुखी होते हैं। यदि ऐसे जातक का ललाट चिकनाई युक्त होवे तो जातक में धर्म कार्य करने की रुचि बढ़ जाती है। • जिस जातक के ललाट पर हंसते समय भौंहों के बीच दो खड़ी रेखा स्पष्ट हो जाय तो ऐसे जातक अच्छे गुणों से सम्पन्न होते हैं तथा सुख भोगते हैं। • जिस जातक का ललाट बहुत नीचा हो साथ ही ललाट में नसें उभरी हों तो ऐसे जातक दुःखी, और पापी होते हैं। • जिस जातक के ललाट में त्रिशूल वज्र या धनुष का चिन्ह हो तो ऐसे जातक को उच्च पदों वाली स्त्रियां पसंद करती हैं। 37 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र • जिस जातक के ललाट पर नीली नसों के उभरने से तिलक जैसा चिन्ह प्रतीत हो तथा साथ ही ललाट का आकार अर्धचन्द्र सा हो तो जातक सुखी और धनवान होता है। • जिस जातक की ललाट रेखायें न दिखती हों तथा ढलवा और चिकना हो परन्तु उत्तेजना के समय ये नसें दिखती हों, ऐसा जातक अति बुद्धिमान जातक होता है। • जिस जातक का ललाट नीचा हो तथा रुखा हो, ऐसे जातक हिंसक प्रवृति एवं क्रूर कर्म करने वाले होते हैं। ऐसे जातक सुख से वंचित होते हैं तथा संघर्षमय जीवन बिताते हैं। • जिस जातक का ललाट नाक के बराबर ऊँचा तथा नाक की लम्बाई से दुगुना चौड़ा तथा कनपटी विकसित हो तो ऐसे जातक श्रेष्ठ माने गये हैं। ललाट पर ग्रहों के चिन्ह तथा स्थान 1. सूर्य 2. चन्द्र 3. मंगल इसका चिन्ह मध्य बिन्दु युक्त वृत्त का चिन्ह होता है। इसका स्थान दाहिने नेत्र में रहता है। धनुष के आकार का इसका चिन्ह होता है। बाएं नेत्र में इसका निवास होता है। तीन शाखाओं वाला मंगल का चिन्ह सिर के ऊपरी भाग पर दिखाई देता है। एक खड़ी रेखा पर तिरछी रेखा जैसा चिन्ह बुध का होता है। यह मुंह पर वास करता है। दो के समान चिन्ह गुरु का होता है। इसका निवास दाहिने कान पर होता है। धन के चिन्ह के चारों ओर गोलाकार हो ऐसा चिन्ह शुक्र का होता है यह भौहों के बीच में होता है। 4. बुध 5. गुरु 6. शुक्र 38 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. शनि सरल सामुद्रिक शास्त्र ईकार के समान इसका चिन्ह होता है इसका निवास बाएं कान पर रहता है। ललाट रेखा फल ऊपर ललाट पर सात रेखाओं का वर्णन पीछे की पंक्तियों में किया जा चुका है। अधिक सूक्ष्मता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि दाहिने नेत्र के ऊपरी भाग में छोटी-सी रेखा होती है, वह सूर्य की रेखा कहलाती है। इसी प्रकार बाएं नेत्र के ऊपरी भाग में चन्द्र की रेखा मानी जाती है। भौंहों के बीच में शुक्र की रेखा तथा नासिका के अग्रभाग में विद्वान् लोग बुध की रेखा मानते हैं । 1. यदि गुरु रेखा में शाखाएं निकलती हों, तो वह व्यक्ति असत्य भाषी तथा दुष्ट होता है। 2. यदि गुरु और मंगल की रेखाएं बीच में टूटी हुई हों, तो उसके पास निरन्तर धन का अभाव रहता है। 3. यदि शनि व मंगल की रेखाएं टूटी हुई हों तथा गुरु की रेखा नीचे की तरफ झुकी हुई हो, तो वह सौभाग्यशाली एवं धनवान होता है। 4. यदि शनि और गुरु की रेखाएं धनुष के आकार की हों, तो वह व्यक्ति दुष्ट स्वभाव वाला होता है। 5. यदि शनि की रेखा बहुत अधिक गहरी और झुकी हुई हो, तो वह हत्यारा होता है। 6. यदि शनि रेखा बहुत अधिक लम्बी और गहरी हो, तो पर- स्त्री से सम्पर्क होता है । 7. शनि रेखा टेढ़ी होने से व्यसनी बनाती है । 8. यदि मंगल रेखा सर्पाकार हो, तो वह हत्यारा होता है । 9. यदि ललाट में चार रेखाएं हों, तो वह सच्चरित्र तथा बुद्धिमान होता है। 39 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 10. यदि गुरू की रेखा साकार हो, तो वह व्यक्ति लोभी होता है। 11. जिसके ललाट में तीन रेखाएं सीधी, सरल और स्पष्ट हों, वह व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है। 12. यदि गुरु और शनि की रेखाएं परस्पर मिल गई हों तो उसकी मृत्यु फांसी से होती है। 13. जिसके ललाट में बहुत अधिक रेखाएं टूटी-फूटी हों, तो वह व्यक्ति दुर्भाग्यशाली एवं रोगी होता है। 14. यदि शनि की रेखा टेढ़ी हो, तो वह व्यसनी होता है। 15. यदि सूर्य रेखा छोटी और शुक्र रेखा लम्बी हो तो वह व्यक्ति सच्चरित्र चतुर और सौभाग्यशाली होता है। 16. यदि सूर्य की रेखा धनुष के आकार की और शुक्र की रेखा बीच में से कटी हुई हो, तो वह नम्र रसज्ञ और धनी होता है। 17. यदि शनि और गुरु की रेखाएं ऊपरी भाग में अर्द्ध चन्द्राकार हों, तो वह व्यक्ति बहुत अधिक सौभाग्यशाली होता है। 18. यदि ललाट में सर्प के आकृति की एक ही रेखा हो, तो वह बलवान होता है। 19. यदि दोनों भौंहों के बीच में त्रिशूल का चिन्ह होता है तो जीवन में उसका निश्चय ही अंग-भंग होता है। 20. यदि सूर्य रेखा बीच में कटी हुई हो तो वह क्रोधी, कामी तथा झगड़ालू होता है। 21. यदि शनि रेखा लम्बी हो तथा मंगल की रेखा साकार हो, तो वह धर्मात्मा, दयालु और उच्च समाज में रहने वाला होता है। 22. यदि शनि और गुरु की रेखा साकार हो, तो वह धूर्त स्वभाव वाला होता है। यदि सर्पाकार गुरु की रेखा शनि रेखा के पास पहुँचे हो तो वह कलहप्रिय Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र होता है। 23. यदि गुरु की रेखा लम्बी और लचीली हो, तो वह सुन्दर और सौभाग्यशाली माना जाता है। 24. यदि मंगल की रेखा झुकी हुई हो तथा शुक्र रेखा दाहिनी ओर कटी हुई हो, तो वह अभिमानी, क्रोधी तथा पर-स्त्री-सेवी होता है। 25. यदि शनि तथा गुरु की रेखाएं धनुष के आकार की हो तो वह व्यक्ति पराक्रमी होता है। 26. यदि शनि रेखा गहरी हो तथा दोनों भौंहों के बीच में अधिक बाल हो, तो वह एक से अधिक विवाह का इच्छुक तथा सम्पत्तिशाली होता है। 27. यदि शनि रेखा पतली और गुरु रेखा मोटी तथा लम्बी हो, तो वह व्यक्ति घातक होता है। अभ्यास प्रश्नावली 1. ललाट पर रेखाओं के प्रभाव को लिखें? 2. ललाट रेखाओं के नाम लिखें ? 3. ललाट पर शनि रेखा के बारे में आप क्या जानते हैं ? 4. ललाट पर बुध और शुक्र रेखा दोषी होने पर जातक पर क्या प्रभाव पड़ता है ? 5. ललाट पर एक भी रेखा न होने पर भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है ? 41 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय-3 3. Effect of Hairs on Human Body यदि स्त्रियों की त्वचा का बाहरी भाग रूखा, सिलवट पड़ा हुआ, दबा हुआ, शिरा में दिखाई देने वाला और केशों वाला कर पृष्ठ स्त्रियों के होता है तो ऐसा माना जाता है कि उसका वैधव्य योग है। पुरुष के लिए भी ऐसा होना अशुभ है। अधिक केश होने से तो वह दरिद्र सूचक है पर शारीरिक काम कर सकता है। महिला के हाथों पर बाल होने से पाश्चात्य मत वालों का कहना है कि वह स्त्री दुष्टा और लड़ाकू होती है। पुरुष के होने से वह आक्रोश प्रकृति का होता है। अंगूठे के ऊपर केश का होना वे अच्छा बतलाते हैं। अंगुली के तीसरे पोर के पीछे बालों का होना पुरुष को कठोर बनाता है। दूसरे और तीसरे दोनों अंतिम पोरों पर रहने से व्यक्ति सबका प्रियपात्र होता है। ब्रिटेन और अमेरिकन लेखक तीसरी पोर पर बालों के होने को कठोरता का सूचक बताते हैं। 'हार्ड टास्क मास्टर' ने कहा है, पृष्ठ भाग पर बिल्कुल ही बाल न हो तो डरपोक और पुरुषत्वहीन होता है। थोड़े बाल और कहीं कहीं पर बाल होना मतलबी और दूरदर्शिता का सूचक बताया है। एक लेखक ने अंगूठे पर स्थित बालों वाले व्यक्ति के बारे में यह कहा है कि इस प्रकार का व्यक्ति कोई नई चीज खोज करता है तथा उसमें पैतृक गुणों की प्रधानता के साथ-साथ प्रतिभा भी रहती है। नरम और मुलायम बाल स्त्रियोचित नाजुकता के परिचायक हैं। ऐसे पुरुष स्त्रीतुल्य काम, साज-सज्जा, चाल-ढाल वाले होते हैं। वह व्यक्ति भावुक, Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र काल्पनिक और प्रेमी सा व्यवहार करता है। ऐसा बाल जो कड़ा हो तथा रूखा एवं कड़ा हो तो व्यक्ति भी कड़ा, रूखा और निर्दयी होता है। अधिक बालों वाला व्यक्ति पंडित और गणी होता देखा गया है। बिना केशों वाला व्यक्ति अधिक धनी, सुखी अथवा दरिद्री होता है। 'खल्वाट् क्वचिदपि दरिद्रोः । शरीर पर, बाह पर जहां रोम होते हैं वे सिर के बालों से भिन्न होते हैं। यदि कांख में रोम अधिक हों तो व्यक्ति दुःखी होता है। हृदय पर रोम वाला व्यक्ति दयालु होता है, रोम से रहित व्यक्ति को शास्त्रकार 'दुःखी' कहता है। 43 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अन्य लक्षण प्राचीन भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में मनुष्यों के अंगों के बारे में विवेचन किया गया है, हस्तरेखा विशेषज्ञ को सामुद्रिक शास्त्र का अध्ययन भी आवश्यक होता है। सामुद्रिक ज्ञान होने से भविष्यवाणी करने में सहयोग मिलता है सामुद्रिक शास्त्र का व्यवहारिक विवेचन इस प्रकार है। • बेचैनी से एक दूसरे से हाथ रगड़ने वाले व्यक्ति किंकर्तव्य-विमूढ़, हतोत्साह और स्वभाव से अमीर होते है। • कुहनी पर मुड़े हुए हाथ आत्मगर्व, प्रपंच और दूसरों के प्रति हेय भावना रखने वाले होते हैं। • अंगूठे के जोड़ पर यव का चिह्न बुद्धि और सम्पत्तिवान पुरुषों के होते हैं। • पांच से ज्यादा उंगलियों वाला व्यक्ति दरिद्र और याचक होता है। • नसयुक्त टेढ़े पृष्टभाग वाला व्यक्ति दरिद्र होता है। • छोटी ग्रीवा श्रेष्ठ व्यक्ति की होती हैं। • टेढ़ी ग्रीवा चुगलखोर व्यक्ति की होती हैं। • चौड़ा मुंह दुर्भाग्य का सूचक हैं। • लम्बी ग्रीवा अधिक भोजन वाले व्यक्तियों की होती हैं। • स्त्रियों के समान मुख संतानहीनों का होता हैं। • चौकोर मुंह धोखेबाज, मायावी व्यक्तियों का होता है। • छोटे मुंह वाले व्यक्ति कंजूस कहे जा सकते हैं। • गुलाबी होठ प्रतिभावानों के होते हैं। • मोटे होठ प्रफुल्ल व्यक्तियों के होते हैं। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र • लम्बाई लिए होठ कामी के होते हैं। • छोटे होंठ भीरू (डरपोक) के होते हैं। • रुखे, पतले और कुरूप होठ धनहीन दुःखी व्यक्तियों के होते हैं। • ललाट पर पांच रेखायें शतजीवी की होती है। • चार रेखायें अस्सी वर्ष की आयु बतलाती है। • तीन रेखायें सत्तर की आयु की सूचक है। • मोर, बिल्ली अथवा शेर जैसी चाल वाले व्यक्ति भाग्यवान होते है। • हंस, हाथी और बैल की तरह चलने वाले व्यक्ति निरन्तर धर्म, अर्थादि कार्यों में तत्पर होते हैं। • गीदड़, ऊंट और खरगोश जैसी चाल वाले समाज में सम्मान खो बैठते हैं। अभ्यास प्रश्नावली 1. जातक के शरीर पर अधिक बाल होने से क्या प्रभाव पड़ता है ? 2. जातक के शरीर पर पायेजाने वाले शुभाशुभ लक्षण के बारे में लिखें? 3. आखों की दोनों भौहें परस्पर जुड़ी होने से क्या होता है ? 45 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय - 4 4. The Importance of Hand Symtomps अंगे हस्तः प्रशस्तोऽयं शीर्षादपि विशिष्यते । साध्यन्ते पादशौचाद्या धार्मिक्यो येन सत्क्रिया ।। अंग विद्या में यद्यपि समस्त शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, किन्तु शरीर के लक्षणों से हाथ के लक्षण विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हीं हाथों से मनुष्य सभी सांसारिक क्रियाएं करता है । सर्वाङ्गलक्षणप्रेक्षाव्याकुलानां नृणां मुदे । श्रीसामुद्रेण मुनिना तेन हस्तः प्रकाशितः । । मनुष्य स्वभावतः जिज्ञासु है इसीलिए वह सभी लक्षणों का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है मनुष्य की इस ज्ञान-पिपासा को शान्त करने के लिए महामुनि श्री सामुद्र या समुद्र ने मनुष्य के कल्याण के लिए यह हस्तरेखा व सामुद्रिक शास्त्र विद्या प्रकाशित की है। हथेलियों के लक्षण उंगली की जड़ से पहले मणिबन्ध तक हथेली की लम्बाई कहलाती है तथा अंगूठे की जड़ से दूसरे अन्तिम सिरे तक के भाग को हथेली की चौड़ाई कहा जाता है इस सारे भाग पर जो भी चिन्ह होते हैं, वे सभी चिन्ह हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। · 46 1. अत्यधिक चौड़ी हथेली ऐसे व्यक्ति सामान्यतः अस्थिर प्रकृति के होते हैं। इनकी पहचान यह है कि इन लोगों की हथेली लम्बाई की अपेक्षा चौड़ी ज्यादा होती है। ऐसी हथेली वाले व्यक्ति तुरन्त निर्णय नहीं ले पाते और किसी भी कार्य को करने से पूर्व बहुत अधिक सोचते - विचारते रहते हैं । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र इनके जीवन में किसी कार्य का व्यवस्थित रूप नहीं होता। एक बार में ये एक से अधिक कार्य अपने हाथ में ले लेते हैं और उनमें से कोई भी कार्य भली प्रकार से पूर्ण नहीं होता, जिसकी वजह से इनके मन में निराशा भी घर कर लेती है। सामान्यतः ऐसे व्यक्ति जीवन में असफल होते हैं। 2. संकड़ी हथेली – ऐसे व्यक्ति सामान्यतः कमजोर प्रकृति वाले होते हैं। ये व्यक्ति अपने ही स्वार्थ को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं अपने स्वार्थ साधन में T यदि अन्य व्यक्ति का अहित भी हो जाता है, तो ये परवाह नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों पर आसानी से विश्वास करना ज्यादा उचित नहीं कहा जा सकता। 3. समचौरस हथेली जिन व्यक्तियों की हथेली समचौरस होती है अर्थात् हथेली की लम्बाई और चौड़ाई बराबर होती है, वे व्यक्ति स्वस्थ, सबल, शान्त और दृढ़ निश्चयी होते हैं ऐसे व्यक्ति पूरी तरह से पुरुषार्थी कहे जाते हैं। जीवन में ये जो भी बनते हैं या जो भी उन्नति करते हैं वह अपने प्रयत्नों के माध्यम से ही करते हैं। इनके स्वभाव में दृढ़ निश्चय होता है । - 4. चौड़ी हथेली - जिन व्यक्तियों की चौड़ी हथेली होती है, वे चरित्र की दृष्टि से अच्छे तथा मजबूत हृदय वाले होते हैं। उनकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं होता और एक बार जो ये बात अपने मुंह से कह देते हैं, उस पर ये खुद भी दृढ़ रहते हैं और यदि किसी को इस प्रकार का कोई आश्वासन दे देते हैं, तो उसे यथासंभव पूरा करने की कोशिश करते हैं। 5. सख्त हाथ - ऐसे व्यक्तियों का जीवन रूखा और कठोर-सा होता है । प्रेम के क्षेत्र में भी कठोर बने रहते हैं और प्रेम के मामले को भी ये युद्ध के मामले की तरह समझते हैं। यदि बहुत अधिक सख्त हाथ हो तो ऐसे व्यक्ति सामान्यतः मजदूर होते हैं ऐसे व्यक्ति अपने कार्य को सबसे अधिक महत्व देने वाले होते हैं तथा बाधाओं के आने पर भी ऐसे व्यक्ति निराश नहीं होते, अपितु लगातार उस कार्य को करते रहते हैं। | I 47 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र हाथ का प्रकार देखते समय अवस्था को भी ध्यान में रखना चाहिए । यौवन-काल में हाथ सामान्यतः कम सख्त होता है, परन्तु उसी व्यक्ति का हाथ प्रौढ़ - काल में ज्यादा सख्त होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि हाथ का प्रकार देखते समय उसकी आयु का भी ध्यान रखना चाहिए परन्तु सामान्यतः सख्त हाथ वाले व्यक्ति बुद्धि जीवी नहीं होते और परिश्रम करके ही अपना जीवन-यापन करते हैं। 6. हाथ के प्रकार- हाथ के प्रकार का भी भविष्य कथन के लिए बहुत अधिक महत्व है। हाथ देखने वाले को चाहिए कि वह जिस समय सामने वाले व्यक्ति के हाथ का स्पर्श करे, उसी समय यह भी जान ले कि उसका हाथ किस प्रकृति का है। 7. अत्यन्त सख्त हाथ - ऐसा हाथ बुद्धि की न्यूनता और अत्याचार को प्रदर्शित करता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों को दुखी देखकर आनन्द का अनुभव करते हैं और घोर स्वार्थी बने रहते हैं अपराधी वर्ग के हाथ ऐसे ही होते हैं। I जल्लाद या पेशेवर हत्यारे के हाथों में इसी प्रकार की स्थिति देखी जा सकती है। 8. नरम हाथ - जिन व्यक्तियों के इस प्रकार के हाथ होते हैं, वे सामान्यतः कल्पनाशील व्यक्ति होते हैं। इनके स्वभाव में एक विशेष प्रकार की लचक एवं कोमलता होती है और उसी के अनुसार इनका जीवन भी होता है। किसी भी व्यक्ति की सहायता करने के लिए ये हर समय तैयार होते हैं। अधिकतर ऐसे हाथ स्त्रियों के होते हैं। यदि किसी पुरुष का भी ऐसा हाथ अनुभव हो जाए तो यह समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्ति में स्त्री सम्बन्धी गुण विशेष हैं । 9. ढीला-ढाला नरम हाथ यदि किसी व्यक्ति का हाथ नरम हो, परन्तु वह बड़ा ही ढीला-ढाला हो तो ऐसे व्यक्ति आलसी, निकम्मे तथा अत्यन्त स्वार्थी होते हैं। अधिकतर ऐसे व्यक्तियों में दया नाम की कोई चीज नहीं होती। अपराधी वर्ग के हाथ अधिकतर ऐसे ही होते हैं। बुरे तथा समाज विरोधी कार्यों में ऐसे व्यक्ति सर्वथा अग्रणी रहते हैं। ऐसे व्यक्ति हृदयहीन, धोखा देने वाले तथा कपटपूर्ण व्यवहार करने वाले होते हैं। 48 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र हाथो में सभी तीर्थों का निवास शत्रुजयस्तु तर्जन्यां मध्यमायां जयन्तकः । अर्बुदः खलु सावित्र्यां कनिष्ठायां स्यमन्तकः ।। तर्जनी में शत्रुजय, मध्यमा में जयन्तक, अनामिका में अर्बुद तथा कनिष्ठा में स्यमन्तक तीर्थ का निवास है। अङ्गुष्ठेऽष्टापदगिरिः पंचतीर्थान्यनुक्रमात् । स्वहस्तदर्शनेनैव वन्द्यन्ते प्रातरुत्तमैः ।। अंगूठे में कैलास तथा अंगुलियों में इसी तरह क्रमशः पांचों तीर्थों का निवास है। यही कारण है कि जो व्यक्ति प्रातःकाल अपने हाथ का दर्शन करता है वह अनायास ही सभी देवताओं व तीर्थों का दर्शन करता है स्त्रियों के हाथ के लक्षण अंकुशं कुण्डलं चक्रं यस्याः पाणितले भवेत् । पुत्रं प्रसूयते नारी नरेन्द्र लभते पतिम ।। जिस स्त्री के हाथ में अंकुश, कुण्डल, चक्र का निशान हो, उसका पति राजा होता है, वह अनेक पुत्रों की माता होकर सुखी होती है। यस्याः पाणितले रेखा प्रासादछत्रतोरणम् । अपि दासकुले जाता राजपत्नी भविष्यति।। मन्दिरं कुण्डलं चैव ध्वजचक्रसरोवरम्। यस्याः करतले छत्रं सा नारी राजसूर्भवत् ।। यदि स्त्री के हाथ में महल, छत्र तोरण का आकार हो तो वह दास कुल में पैदा होकर भी रानी बनती है। मन्दिर, कुण्डल, ध्वज, चक्र, छत्र तोरण का आकार हो तो वह दास कुल में पैदा 49 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र होकर भी रानी बनती है। मन्दिर, कुण्डल, ध्वज, चक्र, छत्र तथा सरोवर का आकार होने पर स्त्री राजमाता होती है, अर्थात् उसका पुत्र राजा होता है। यस्याः करतले रेखा मयूरं छत्रमीक्ष्यते । राजपत्नित्वमाप्नोति पत्रैश्च सह वर्धते ।। पद्मं मालाकुशं छत्रं नन्दावतः प्रदक्षिणः । पाणिपादे भवेद्यस्याः राजो भोग्यात्र सा सुता।। अंगुल्यः संहता यस्या नसाः पद्मदलोपमाः । मृदुहस्ततला कन्या सा नित्यं सुखमेधते ।। जिसके हाथ में मोर, छत्र का निशान बनता हो तो ऐसी स्त्री रानी होकर पुत्रवती होती है। जिसके हाथ या पैर में कमल, माला, अंकुश, छत्र, स्वस्तिक, दक्षिणावर्त शंख हो, वह नारी राजा की भोग्या पत्नी होती है। जिसकी अंगुलियां आपस में मिली हुई, कमल की पंखुड़ी के समान कोमल तथा लाल हों, हथेली कोमल हो, वह स्त्री सदा सुख प्राप्त करती है तथा दिनोदिन उन्नति करती है। नोट क. जिस स्त्री के पैर की कनिष्ठा अंगुली से लेकर आगे तक जितनी अंगुलियां चलते समय जमीन से उठी रहें, वह उतने ही पति के दुर्भाग्य का कारण बनती है। आशय यह है कि वह बार-बार विधवा होती हैं ख. यदि पैर में एक अंगुली कम हो तो वह झगड़ालू होती है। ग. यदि पैर का अंगूठा छोटा, गोल, टेढ़ा, चपटा हो तथा लाल रहता हो तो स्त्री अशुभ फलों की मूर्ति होती है। घ. जिसकी अंगुलियां लाल कमल की तरह कोमल हों, वह सदा सुख भोगती है। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र आयूरेखाभर्तृरेखा श्वश्रू स्याद्धनरेखया। श्वसुरी गोत्ररेखायां स्त्रीणां दक्षिणहस्ततः ।। स्त्रियों के दायें हाथ में आयुरेखा से पति का विचार करना चाहिए। धनरेखा से सास का विचार होता है। स्त्री के दायें हाथ की पितृरेखा से ससुर का विचार करना चाहिए। धर्मरेखा धर्मकारी वामरेखासु गोधनम्। रत्नाकराद्वामहस्ते दाससौख्यञ्चतुष्पदम् ।। स्त्रियों के बायें हाथ में धर्मरेखा (सूर्य पर्वत की रेखा) से धर्म का विचार किया जाता है। यदि दायें हाथ में माला या रस्सी का चिन्ह हो तो स्त्री के पास पशुधन खूब होता है। स्त्रियों के बायें मणिबन्ध से दास-दासियों, नौकरों तथा सवारियों का विचार करना चाहिए। अभ्यास प्रश्नावली 1. सख्त (कठोर) हाथों की क्या विशेषता होती है ? 2. स्त्रियों के हाथ के लक्षण के बारे में विवरण प्रस्तुत करें ? 3. भाग्यशाली के हाथ के बारे में लिखें? 4. अंग विद्या में हस्तलक्षण का महत्व लिखें। 51 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 5. The Effect of First Finger तर्जनी अंगुली का मानव जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, यह अंगुली बाह्य संसार (बाहरी दुनिया ) के साथ सम्बन्ध बनाये रखती हैं, जिसे हम सम्बोधन क्रिया कहते हैं । तर्जनी अंगुली अन्दर की ओर झुक जाए तो यह समझना चाहिए कि उस जातक का, बाहरी दुनियां से लगाव कम है। यह अंगुली पुरुष की अपेक्षा महिलाओं में कुछ अधिक लम्बी होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि बाहरी दुनियां को वे, अधिक संबोधित करती हैं । तर्जनी के छोटी होने पर व्यक्ति को सांसारिक कार्यों के करने में जो अड़चनें आती हैं, वह उन्हें अच्छी तरह से सुलझा नहीं सकता। समय समय पर एक के बाद दूसरी और अड़चन आ खड़ी होती है। तर्जनी अंगुली का पित्ताशय, तिल्ली और फेफड़ों से सम्बन्ध है । यह अंगुली मध्यमा की तरफ मुड़ी हुई हो और अंगुली का नख पीला हो तो फेफड़ों आदि में कहीं कुछ खराबी अवश्य होगी। ऐसे व्यक्ति की रुचि अलकोहल लेने की हो सकती है। मध्यमा का प्रभाव अध्याय-5 मध्यमा अंगुली हाथ की सबसे बड़ी अंगुली होती है तथा यह व्यक्तित्व को सूचित करती है । सामान्य लम्बाई की व ऊपर से चौकोर हो तो व्यक्ति में तर्कशक्ति अधिक होती है तथा अपने एक नियम व व्यवस्था से काम सम्पन्न करता है। इसके मुड़े हुए होने से बौद्धिक स्तर का पूरा विकास नहीं होने पाता। इसके ज्यादा लम्बी होने से मनुष्य में काव्य रुचि, चित्रकारिता के गुण ज्यादा होते हैं। शारीरिक और मानसिक गुणों में सामंजस्य बना रहे, इसके लिये मध्यमा का तर्जनी और अनामिका से बड़ा होना जरूरी है। मध्यमा अंगुली का नुकीला होना ठीक नहीं होता। इससे मनुष्य का स्वभाव लड़कपन - सा छिछोरा व समाज के लिये गम्भीर कार्यों के करने योग्य नहीं होता । नोकदार 52 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अंगुली के साथ शीर्ष रेखा छोटी हो, शुक्र पर्वत उठा हुआ हो तो हर प्रकार से व्यक्ति लापरवाह और असावधान होता है। इस अंगुली की पहली गांठ बड़ी हो तो भाग्य व्यक्ति को सहारा नहीं देता उसकी आर्थिक स्थिति भी कुछ कमजोर होती है। दूसरी गांठ से कठिनाइयों में जूझने वाला होता है यदि कोई भी गांठ न हो तो उच्च विचारों वाला व व्यक्ति प्रतिष्ठित होता है। मध्यमा अंगुली का नाम शनि की अंगुली भी है। इसके तीन पोरों पर मकर, कुम्भ और मीन राशियां स्थित होती है। अंगुली के जोड़ पुष्ट व लम्बे होने से व्यक्ति गणित का अच्छा जानकार होता है। मध्यमा का ज्यादा पुष्ट होना और लम्बी होना और इसके साथ ही शनि का पर्वत भी उठा हुआ हो तो व्यक्ति में सहनशीलता बिलकुल नहीं होती। मध्यमा अंगुली के टेढ़ी रहने से मनुष्य की प्रकृति भययुक्त बनी रहेगी तथा वह हमेशा रोगी रहेगा। मध्यमा अंगुली का अग्रभाग यदि चौड़ा हो तो वह मनुष्य को गौरवशाली बनता है। ऐसे जातक किसी काम को आरम्भ करने से पहले अच्छी तरह सोच लेते हैं और व्यापार, दलाली, कोई भी उद्योग करने से उसकी विस्तृत जानकारी तथा अन्य वातावरण आदि सब बातों पर गौर करता है। वह अचानक किसी काम को बिना पूरा सोचे समझे न करता है और न उसमें हाथ डालता है। शनि पृथ्वी पर शासन करता है, अतः खानों में काम करने वाले, किसान, जमीन के दलाल, बागवान आदि से जुड़े लोगों की यह अंगुली अच्छी होती है तथा उनका दूसरा पोर शेष दोनों से कुछ लम्बा होता है। पौर्वात्य पद्धति से मध्यमा अंगुली का पहला पोर कुछ लम्बा हुआ तो वह आदमी अन्धश्रद्धा वाला और हर समय उदास तथा खिन्न स्वभाव का रहता है। दूसरा पोर लम्बा होने पर कृषि तथा मशीनरी के काम में रुचि होती है। दूसरा पोर लम्बा भी हो तथा चिकना तथा साफ हो तो भूत विद्या, योग, चिकित्सा तथा जादू टोने में ज्यादा रुचि होगी। तीसरा पोर लम्बा होने से व्यक्ति समाज में आदरणीय, मितव्ययी तथा लोकप्रिय होता है। 53 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अनामिका का प्रभाव इसे अंग्रेजी में 'रिंग फिंगर' भी कहते हैं यह सूर्य पर्वत की अंगुली है इसके तीन पोरों पर कर्क, सिंह और कन्या राशि होती है। यह अंगुली सोना पहनती है तथा अतिथि सम्बन्धी को तिलक करते समय इस अंगुली से पहले बिन्दी स्पर्श करते हैं। तीसरी अंगुली का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क के अचेतन मन और व्यक्तिगत जीवन के साथ है। यह तर्जनी के बराबर तथा सीधी हो तो हम यह आशा करते हैं कि जीवन के संवेगों के साथ शेष व्यक्तित्व का ताल मेल बना रहेगा। अनामिका के टेढ़ी रहने से मनुष्य को कठिनाइयां, निराशा, धोखा और गलत प्रताड़नाएं मिलती रहती है। जीवन दूभर हो जाता है और कई बार धोखा खाने से हताश दिखाई देने लगते हैं। इस अंगुली में एक मानसिक चेतना अच्छे स्तर की होती है जो जीवन तत्व के साथ घुली मिली रहती है। उद्योगी हाथ की अंगुली व्यक्ति को कलात्मक रुचि प्रदान करती है। मानसिक और शारीरिक सम्बन्धों को अनामिका उंगली तालमेल बनाये रहती है। अनामिका के अधिक लम्बा होने से 'येन केन उपायेन' धनोपार्जन की चेष्टा हर वक्त बनी रहती है। वह सौदा सट्टा भी कर सकता है, जुआ, लॉटरी की तरफ उस व्यक्ति का झुकाव होगा तथा लम्बी अनामिका वाला व्यक्ति यह जानते हुए भी कि 'जुआ लोभ का पुत्र है, दुराचार का भाई है, और बुराइयों का पिता है फिर भी वह उसे खेले बगैर मानेगा नहीं। अचानक उसकी मनःस्थिति बिगड़ जाती है और गुस्से में आकर जल्दी ही गाली-गलौज कर सकता है। साथ में मंगल पर्वत उठा हुआ होने से ही यह बात पुष्ट होती है अन्यथा नहीं। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र कनिष्ठा का प्रभाव यह अंगुली बुध पर्वत की होती है इसका अधिक सम्बन्ध शीर्ष रेखा से है। • कनिष्ठा और अनामिका यदि बराबर हो तो व्यक्ति अच्छा भाषण देने वाला और अपने विचारों को स्टेज पर भलीभांति व्यक्त करने की क्षमता रखता है। • इसका ऊपरी सिरा अनामिका की पहली रेखा तक जाय तो वह वैज्ञानिक मस्तिष्कवाला होता है और एक अच्छा विद्वान भी होता है। • इसके लम्बी होने से व्यक्ति साधारण स्थिति से ऊपर उठकर अपनी ख्याति स्वयं अर्जित करता है। पौर्वात्य पद्धति में इसके लम्बे होने पर 'शुभ माना गया • कनिष्ठा का नुकीला होना हंसी मजाक पसन्द करे व उसे चुटकुले सुनाने का शौक रहे। • कनिष्ठा का पहला पोर सभा में चतुराई से भाषण दिलवाता है तथा वह श्रोताओं को मोहित कर सकता है। • अगर पहला पोर लचीला है और शीर्ष रेखा स्पष्ट है और पहली गांठ सुदृढ़ है तो व्यक्ति व्यापार, उद्योग चलायेगा और उसे कड़ी मेहनत और लगन से सम्पन्न करेगा। • कनिष्ठा का लम्बा होना चालाकी का सूचक है लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाय कि शीर्ष रेखा चन्द्र पर्वत की ओर तो नहीं जा रही है अन्यथा व्यक्ति धोखेबाज, धूर्त और असत्य भाषण करेगा। • अगर अनामिका और कनिष्ठा दोनों लम्बाई में समान है तो व्यक्ति एक अच्छा दार्शनिक होगा तथा थोड़ी और ज्यादा लम्बी होने पर जीवन की सारी कठिनाइयों को हल कर लेगा। • कनिष्ठा के टेढ़ी-मेढ़ी होने से उस व्यक्ति में सदगुण तो रहेंगे लेकिन अवसर आते ही उनका लाभ नहीं ले सकेगा और न शुद्ध विचार होंगे। यदि कनिष्ठा नुकीली और टेढ़ी-मेढ़ी है, अगुष्ठ और शीर्ष रेखा ठीक है तो वह केवल इस 55 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र सिद्धान्त को अपनायेगा कि किसी पर भी विश्वास मत करो । • इस अंगुली की नोक ज्यादा नुकीली हो तो वह दूसरों को किसी भी जाल में फंसा सकता है। इसका नुकीला भाग चौरस (चौकोन) हो तो वह व्यक्ति एक अच्छा शिक्षक होगा । • अगला भाग गोल और चपटा होने से व्यक्ति व्यापार की व्यवस्था अच्छी से अच्छी कर सकता है। सम्पूर्ण भाग अंगुली का सुगठित हो और ऊपरी भाग चौरस हो तो उस व्यक्ति में काल्पनिक गुण तथा वैज्ञानिक विचारधारा होगी। • अंगुली का अग्रभाग चौरस हो और पहला पोर लम्बा हो तो वह व्यक्ति तत्व वेत्ता, भाषण द्वारा दूसरों पर प्रभाव डालने वाला तथा अच्छी पोशाक पहनने वाला होता है। तीसरे पोर से पहले पोर तक यदि नुकीली है तो गुप्त विद्या का प्रेमी होता है । • कनिष्ठायदि दीर्घास्यादूर्ध्वरेखा समाश्रिता । व्यवसायात्ततो लाभो यशस्तस्य महोज्ज्वलम् ।। यदि किसी की कनिष्ठा अंगुली अनामिका से लम्बी तथा उससे ज्यादा उर्ध्व रेखाओं से युक्त हो तो व्यक्ति को व्यापार में लाभ होगा ऐसा व्यक्ति अत्यन्त प्रसिद्ध तथा यशस्वी होता है। तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठा के नाम तर्जनी- प्रदेशिनी, तर्जनी, शत्रुहा, आद्या, गवेषिणी आदि । मध्यमाः- ज्येष्ठा, मध्या, मध्यमा, लक्ष्मी, सौभाग्यवती अनामिका- सावित्री, गौरी, भगवती, शिवा । कनिष्ठा- कनीनिका, कनिष्ठा, अन्त्या, लघुतारा तथा कांचनी । 56 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अंगुलियों के नाम अड् करशाखाः स्युरड्गुल्यः करपल्लवाः । त्रिपुराः करजाम्बाश्च मायाः कर्मायुधा मताः इसी क्रम में आठ नाम अंगुलियों के भी पाये गये हैं जो इस प्रकार है अंगुली, करशाखा, करपल्लव, त्रिपुरा, करजा, कराम्बा, माया, कर्मायुधा आदि। अंगुलियों के वर्ण (रंग) अंगुलियों के रंग पांच प्रकार के माने गये हैं। भूरा, लाल, पीला, सफेद व काला। अंगुलियों का वर्ण ज्ञान ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राः स्युः करपल्लवाः। कनीनिकाद्या हंसोऽपि योगवान वर्णवर्जितः।। तर्जनी का शूद्र वर्ण है, मध्यमा का वैश्य वर्ण है अनामिका का क्षत्रिय और कनिष्ठा का ब्राम्हण वर्ण है। अंगूठे को योगी मान कर किसी भी वर्ण में नहीं रखा गया है। अंगुलियों में गन्ध तर्जनी का सम्बन्ध दुर्गन्ध से है। अंगूठे का सुगन्ध से कनिष्ठा व मध्यमा का कोई गंध नहीं अर्थात वे गन्ध रहित होती है। अंगुलियों के बीच का छिद्र तर्जनीमध्यमारंध्रे मध्यमानामिकान्तरे। अनामिकाकनिष्ठान्तः दिने सति यथाक्रमम् ।। 57 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र जन्मतः प्रथमेंऽशे वा द्वितीये च तृतीयके । भोजनावसरे दुःखं केप्याहुः श्रीमतामपि।। यदि तर्जनी व मध्यमा के बीच में अन्तर रहे तो जवानी के समय तक बड़े-बड़े धनवान लोगों को भी भोजन के समय मानसिक पीड़ा होती है। मध्यमा व अनामिका के बीच छिद्र हों तो मध्यमावस्था (30 से 50 वर्ष) तक तथा कनिष्ठा व अनामिका के बीच अन्तर रहता हो तो बुढ़ापे में ऊपर बताया गया फल होता है ऐसा विद्वानों का मत है। अंगुलियों की लम्बाई अनामिकान्त्यरेखायाः कनिष्ठा स्याद्यदाधिका। धनवृद्धिस्तदा पुंसां मातृपक्षो बहुस्तथा।। अनामिका के तीसरे पर्व से यदि कनिष्ठा अंगुली लम्बी हो तो ऐसे व्यक्ति की रात-दिन धन की बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे व्यक्ति का मातृपक्ष भी बलवान होता मध्यमाप्रान्तरेखाया अधिका यदि तर्जनी। प्रचुरस्तु पितुः श्रियश्च विपदोऽन्यथा।। मध्यमा के आखिरी पर्व से तर्जनी अंगुली ऊपर हो तो ऐसा व्यक्ति धन-सम्पत्ति प्राप्त करता है तथा इसका पितृपक्ष काफी बलवान होता है। मध्यमा के तीसरे पर्व से नीचे रहने वाली तर्जनी अशुभ फल देनेवाली होती है। अंगुष्ठस्यांगुलीनां च यद्यूनाधिकता भवेत् । धनैर्धान्यैस्तदा हीनो नरः स्यादायुषाऽपि च।। 58 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र यदि अंगूठे की तुलना में अंगुलियां अधिक छोटी या बड़ी हों तो वह व्यक्ति अल्पायु तथा धन-धान्य से रहित होता है। मध्यमायां तु दीर्घायां भार्याहानिर्विनिर्दिशेत् । अनामिकायां दीर्घायां विद्याभोगी भवेन्नरः ।। यदि मध्यमा असामान्य रूप से बड़ी हो तो ऐसे व्यक्ति को स्त्री का सुख प्रायः नहीं मिलता है। उसे कई विवाह भी करने पड़ सकते हैं अनामिका अंगुली लम्बी होने पर व्यक्ति बुद्धिमान तथा विद्यावान और पढ़ने का शौकीन होता है। अंगुलियों से आयु विचार अनामिकापर्व यदा बिलङघते कनीनिका वर्षशतं स जीवति। नवत्यशीतिर्विगमे च सत्पतिः समानभावे खलु षष्ठिजीवितम् ।। यदि कनिष्ठा अंगुली अनामिका के तीसरे पर्व से लम्बी हो तो वह व्यक्ति दीर्घायु वाला होता है। अनामिका के तीसरे पर्व से आगे निकलती हुई कनिष्ठा अंगुली के अनुपात से सौ, नब्बे, अस्सी, सत्तर तथा साठ वर्ष की लगभग आयु माननी चाहिए। पंचभिर्दशवर्षाणीत्येवं निर्णयमायुषि। ललाटे शतवर्षाणि रेखापंचकतो वदेत।। जिस प्रकार कनिष्ठा से आयु का विचार होता है, इसी प्रकार माथे पर पाई जाने वाली रेखाओं से भी आयु का निर्णय होता है। यदि माथे पर साफ पांच रेखाएं हों तो व्यक्ति सौ वर्ष की आयु वाला होता है। यहां भी अनुपात से आयु समझनी चाहिए। 59 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अंगुलियों में चक्र मायासु दशमिश्चक्रः राजा योगीश्वरोऽथवा । दशभिः शुक्तिभिः सर्वावस्थासु बहुदुःखदा । । यदि व्यक्ति की दसों अंगुलियों में चक्र हो तो मनुष्य राजा या योगी होता है। आशय यह है कि संसार में रमा रहेगा तो भी उच्च स्थिति में रहेगा तथा विरागी होकर भी ऊँची स्थिति में योगीश्वर होगा यदि दशों अंगुलियों में शंख होगा तो जातक असफल एवं धनहीन होता है सफलता के अन्य लक्षण पाये जाने पर यह बात नहीं लागू होगी। अभ्यास प्रश्नावली 1. तर्जनी अंगुली के बारे में लिखें । 2. अंगुलियों से आयु का विचार कैसे होता है ? 3. अंगुलियों पर पाये जाने वाले शंख एवं चक्र का फल लिखें । 4. राजयोग वाले हाथ में किस प्रकार की अंगुलियां पायी जाती हैं ? 60 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय-6 6. Legs प्राचीन शास्त्राकारों एवं आचार्यों ने पांव के 20 भेद माने हैं और सबको पांच श्रेणियों में बांटा गया है: 1. सर्वोत्तम 2. उत्तम 3. मध्यम 4. अधम 5. निकृष्ट 1. सर्वोत्तम- जिनका रंग कमल के समान लाल हो, तलवे कोमल हों, नाखून का रंग तांबे के समान हो, उंगलिया परस्पर सटी हुई हो तथा उनका ऊपरी भाग कछुए की पीठ की तरह उन्नत हो व नसें दिखाई नहीं दें, ऐसे पैरों में पसीना नहीं आता है, गुल्फ छिपे रहते हैं, ऐड़ीयां सुन्दर तथा ऊपरी भाग में उष्णता बनी रहती है। ऐसे पांव वाले जातक राजा, विपुल, ऐश्वर्यवान, धनवान, गुणवान, यशस्वी, सौभाग्यशाली, दीघार्यु तथा सुखी जीवन व्यतीत करने वाले महापुरूष माने गये हैं एवं इनकी सभी आकांक्षाएं पूर्ण होती हैं। 2. उत्तम- उंगलियां लम्बी तथा परस्पर मिली हुई, नाखून सामान्यतः लम्बे तथा त्वचा कोमल होती है शेष सभी गुण सर्वोत्तम वाले ही होते हैं। ऐसे पांव वाले व्यक्ति नीतिज्ञ, कार्यकुशल, तीक्ष्ण बुद्धि, अच्छी सलाह देने वाले, साहित्य प्रेमी, यशस्वी, धनी, यात्राप्रिय माने गये हैं। 3. मध्यम- पांव के तलवे कोमल तथा गेरूए रंग के, नाखून सर्पाकार तथा हल्के गुलाबी, गेरूआ अथवा पीले रंग के होते हैं तथा उन पर नसें सामान्य रूप से उभरी रहती हैं, उंगलियों पर बहुत ही सामान्य बाल होते हैं। ऐसे जातक परिश्रमी, व्यवहार कुशल, निर्भीक, दूरदर्शी, विद्वान, गणित तथा विज्ञान में रुचि रखने वाले, साहित्यिक, पारिवारिक चिन्ताओं से ग्रस्त तथा एक Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र सीमित-क्षेत्र में यश तथा सम्मान प्राप्त करने वाले होते हैं। उंगलियां कुछ मिली हुई तथा कुछ फैली हुई होती हैं। 4. अधम- पांव के तलवे कुछ भूरापन लिए हुए श्वेत रंग के होते हैं, त्वचा कठोर, रूखी तथा ठण्डी होती है एवं उंगलियां चौड़ी होती है उनके ऊपर बाल उगे होते हैं नाखून चपटे, लम्बे अथवा अधिक चौड़े होते हैं और पैर में पसीना आता है। गुल्फ बाहर की ओर निकला रहता है। नाखून का रंग पीला या सफेद होता है। ऐसे व्यक्ति कुल के अभिमान में डूबे रहने वाले सुविधाओं के विशेष प्रेमी, परिश्रम द्वारा भाग्योन्नति की इच्छा रखने वाले, कामुक प्रवृति तथा दरिद्री माने जाते हैं। 5. निकृष्ट- पांव के तलवे का रंग मिट्टी के रंग जैसा, ऐड़ी मोटी तथा जगह जगह से फटी हुई त्वचा स्पर्श से कठोर, ऊपरी भाग पर नसें उमरी हुई । उंगलियां टेढ़ी मेढ़ी तथा उन पर अधिक बाल उगे हुए गुल्फ बाहर की ओर निकले हुए नाखून छोटे, चपटे, नाखूनों का रंग कालापन या नीलापन लिए हुए होते हैं। ऐसे पांव वाला जातक बीमारियों से ग्रस्त एवं रोगी रहने वाला, दरिद्री, ज्यादातर अधिक समय तक घर से दूर रहने वाला, मिथ्याभिमानी, क्रोधी निश्चिन्त, तथा कुसंगति में रहने वाला माना गया है। विद्वानों के अनुसार पांवों के शुभ-अशुभ लक्षण निम्न है: 1. मांसलयुक्त कछुए की पीठ की तरह उन्नत तथा नस विहीन पांव श्रेष्ठ माना गया है । 2. कमल पुष्प की तरह गुलाबी रंग के तथा मुलायम पांव शुभ माने जाते हैं। 3. पांवों की उंगलियों का आपस में एक दूसरे से मिले हुए होना, नाखून सुन्दर होना, एड़ियां मांसल तथा गोलाई लिए हुए हो तथा गुल्फ की हड्डियों का दबा रहना शुभ लक्षण माना जाता है। 4. पांवों में पसीना आना, टखनों की हड्डियों का अधिक निकला रहना तथा पांव 62 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र के ऊपरी भाग पर नसों का दिखाई देना अशुभ लक्षण माना जाता है। 5. जिसके पांव के तलवे का रंग पीला हो वह कामी तथा व्यभिचारी माना गया 6. जिसके पांव की उंगलियों के नाखून नीलापन अथवा सफेदी लिए हो तथा रूखे हो तो ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हैं। 7. जिनके पांव बीच में कुछ अधिक उठे हुए हों वे ज्यादा यात्रा करते हैं। 8. जिनके पांव का रंग जली हुई मिट्टी के रंग जैसा हो वे पाप कर्म तथा हिंसक स्वभाव के होते हैं। ऐसे लोग हत्या तक कर सकते हैं। 9. जिनके पांवों के तलवे में रेखाएं न हो जो कठोर, फटे हुए अथवा रूखे हों ऐसे व्यक्ति दुखी रहते हैं। 10. जिनके पावों के तलवे मांस रहित प्रतीत हो वे व्यक्ति रोगी रहते हैं। 11. जिनके पावों के तलवे का मध्य भाग उठा हुआ हो वे यात्रा प्रेमी माने गए 12. पांव की उंगलियों के नाखून सूप के समान फैले हुए लम्बे, टेढ़े अथवा श्वेत रंग के हों तो वे दरिद्र माने गए हैं। 13. पांव के तलवे में पाई जाने वाली रेखा सरल, सुन्दर, स्पष्ट, निर्दोष तथा ऐड़ी से तर्जनी तक गई हो ऐसा व्यक्ति परम ऐश्वर्य शाली माना जाता है। 14. पांव में अंकुश के समान रेखा हो वह जीवन पर्यन्त सुखों को भोगता है। 15. पांव के तलवे में ध्वजा, कमल, वज्र, तलवार, शंख, छत्र, धनुष, बाण, चामर, कुण्डल, सर्प, आदि के चिन्ह स्पष्ट हो वे भाग्यशाली माने जाते हैं। यदि ये चिन्ह अस्पष्ट हो तो जीवन के उत्तरार्ध में और यदि इन चिन्हों को किसी अन्य रेखा द्वारा काटा गया हो तो उत्तरार्ध में फल मिलता है। पांव के अंगूठे के बारे में सामुद्र तिलक में लिखा है: Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र पांव का अंगूठा यदि सर्प के फण के समान गोल आकृति वाला, उन्नत तथा मांसलयुक्त हो तो वह शुभ माना जाता है। यदि अंगुठे पर नसें दिखती हो, वह बहुत छोटा हो या बहुत बड़ा हो टेढा अथवा चपटा हो वह अशुभ होता है। पांव के अंगूठे के बारे में अन्य विद्वानों का मत है: 1. पांव का अंगूठा यदि गोल, ताम्रवर्ण नख वाला तथा लालिमा लिए हुए हो तो ऐसे व्यक्ति राज्याधिकार (ऐश्वर्य) प्राप्त करते हैं । 2. चपटे फटे तथा टूटे अंगूठे वाला व्यक्ति निन्दित होता है। 3. टेढ़े रूखे और अधिक छोटे अंगूठे वाला व्यक्ति क्लेशमय जीवन यापन करता है। 64 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र महिलाओं के पैरों का लक्षण • समस्त अंगुलियां समान लंबाई की हों और अच्छी तरह पुष्ट हों तथा एक दूसरे से मिली हुई हों तो वे श्रेष्ठ फल देने वाली होती हैं। • पैर की चारों अंगुलियां छोटी हों और अलग-अलग फैली हुई हों, तो उस हालत में किसी की नौकरी या शारीरिक मेहनत करती हुई जीवन यापन करेगी। • कनिष्ठा अंगुली चलते समय जमीन को स्पर्श न करे तो वह शीघ्र विधवा होवे या दुःखी जीवन होगा। • तीसरी और अंतिम दोनों अंगुलियां अधिक छोटी हों तो वह पति का सुख नहीं प्राप्त होता। • अंगूठे के साथ शेष चारों अंगुलियां गोल, नरम और सुन्दरता से उठी हुई हो तो शुभ लक्षण है। ये चारों अंगुलियां छोटी और पतली न हों। चपटी होने से अधिक परिश्रम होता है। • लंबी अंगुलियों वाली स्त्री कुलटा कही गई है फैली हुई अंगुलियां दरिद्रिणी का संकेत देती है। • एक अंगुली दूसरी अंगुली पर चढ़ी हो तो 'हत्वा बहून् पतिन्परः' के आधार पर अपने पति के लिए षडयंत्र करती है और अशुभ कही गयी है। • जिस स्त्री के पांव की तर्जनी बड़ी हो वह स्वच्छन्द कामचारणी कही गई है। • मध्यमा अंगुली सामान्य से अधिक बड़ी हो तो वह दुर्भगा होती है। उसके साथ किसी पुरुष का विवाह बड़ी समझदारी से करना चाहिए। • यदि पैर की तीसरी अंगुली छोटी हो तो कलह करने वाली जानो। वह अंगुली यदि चलते समय जमीन की फर्श को स्पर्श न करे तो 'खादतेसा 65 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र पतिद्वयं' अर्थात् अशुभ है। • राह में चलते समय स्त्री के पैर से मिट्टी उड़े तो उसके घर में आने के बाद से कई परिवार नष्ट होंगे। वह परिवार के लिए अशुभ होगी और सुखी भी होवे तो मध्यमा के लंबी होने पर प्रतिष्ठा भंग होकर अपयश मिले। • कभी-कभी कनिष्ठा छोटी होकर गोल मटोल सी ही रहे, तो बचपन में दुःख हो, ऐसा सामुद्रिक में है। अभ्यास प्रश्नावली 1. पांव के लक्षणों के बारे में लिखें। 2. अच्छी महिलाओं के पैरों का लक्षण बताएं। 3. राजयोग वाले जातक का पैर कैसा होता है ? 4. दुर्भाग्यशाली जातक के पैरों का लक्षण लिखें। 66 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय- 7 7. Parts of the Body दांत सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार 32 दांत वाले व्यक्ति उत्तम, 30 दांत वाले मध्यम, 28 दांत वाले अधम माने जाते हैं। अगर दांतों में समानता न होकर स्थान से पतित हों तो उसके अनुसार भिन्न-भिन्न फल होता है। 1. जिस व्यक्ति के दांत सीधी रेखा में समान रूप से उठे हुए और चिकने हों, तो वह व्यक्ति धनवान होता है। 2. लम्बे दांत वाले व्यक्ति धनी होते हैं। 3. अन्दर की तरफ झुके हुए दांत वाले व्यक्ति दरिद्री होते हैं। 4. काले ऊबड़-खाबड़ दांत वाले व्यक्ति परेशानी उठाते हैं। 5. बत्तीस दांत वाले व्यक्ति भाग्यवान होते हैं। 6. तीस दांत वाले धन के अभाव में चिन्तित रहते हैं। 7. इकत्तीस दांत वाले भोगी होते हैं। 8. इससे कम दांत वाले व्यक्ति हमेशा दरिद्री रहते हैं। 9. जिनके दांत धीरे-धीरे उखड़ते हैं, वे दीर्घ जीवी होते हैं। 10. जिस व्यक्ति के दांत एक दूसरे से अलग-अलग हों, वह व्यक्ति दूसरों के धन पर मौज करता है। 11. जिन स्त्रियों के दांत नोकदार, एक सीध में, सफेद और आपस में मिले हुए हों, वे स्त्रियां सौभाग्यशाली होती हैं। 12. जिन स्त्रियों के ऊपर तथा नीचे सोलह-सोलह दांत हों तथा गौ दूध के समान श्वते रंग के हों, वे पति की अत्यन्त प्रिय होती हैं। 67 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 13. जिन स्त्रियों के दांत बहुत छोटे-छोटे हों, वे दुखी रहती हैं। 14. जिनके नीचे जबड़े में अधिक दांत हों उनको मां का सुख नहीं मिलता। 15. भयंकर तथा टेढ़े-मेढ़े दांत वाली स्त्री विधवा होती है। 16. सफेद मसूढ़े वाली स्त्री कुटिल होती है। 17. मोटे और डरावने दांत वाली स्त्री कष्ट भोगने वाली होती है। 18. यदि दांत अलग-अलग हों और बीच में दूरी हो, तो वह दुराचारिणी होती 19. यदि दांत ऊपर आए हुए हों, तो वह चतुर, स्वार्थी तथा पति को उंगली पर नचाने वाली होती है। 20. जिनके मसूढ़े काले हों, वे चोर होती हैं। कान शास्त्रानुसार कान सुडौल, बड़ा एवं रोमयुक्त होना शुभ माना गया है तथा छोटे कान, टेढ़े कान वाले व्यक्ति अविश्वासी एवं निम्न श्रेणी के कहे गये हैं। 1. यदि कान उभरे हुए हों तथा कान की नोक सुडौल तथा बड़ी हो, तो वह सौभाग्यशाली होता है। 2. यदि कान जन्म से ही लम्बे हों, तो वह सुखी व्यक्ति होता है। 3. जिसके कान मोटे हों, वह कोमल स्वभाव का होता है। 4. जिसके कान छोटे-छोटे हों, वह बुद्धिमान होता है। 5. शंख के समान कान वाला व्यक्ति मिलिट्री में ऊंचे पद पर पहुंचता है। 6. चपटे कानों वाला व्यक्ति भोगी होता है। 7. बड़े-बड़े रोम युक्त कान दीर्घायु को स्पष्ट करते हैं। 8. बहुत मोटे कान नेतृत्व करने वाले के सूचक होते हैं। 68 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 9. अत्यन्त छोटे कान वाला व्यक्ति कंजूस होता है। 10. सूखे हुए कान दरिद्रता की निशानी है। 11. लम्बे और फैले हुए कान क्रूर व्यक्ति का परिचय देते हैं। 12. बड़े कान वाला व्यक्ति पूजनीय होता है। 13. चिकनाई रहित कान कमजोरी का सूचक है। 14. स्त्रियों के कानों पर केश होना विधवापन का सूचक है। 15. स्त्री के कान लम्बे हों, तो अच्छे होते हैं। आंख दोनों आंखें समान और काली होने से व्यक्ति को साधारण और अच्छा माना जाता हैं लाल आंख वालों को शारीरिक कष्ट, नीली आंख वालों को सामाजिक कष्ट, पीली आंख वालों को पारिवारिक कष्ट, भूरी आंख वालों को धोका का सामना करना होता है। जब दो व्यक्ति आमने सामने बैठकर बातें करते हैं उस समय जो व्यक्ति बात करते समय इधर उधर देखे उसे कपटी तथा बार-बार पलकें झपकाने वाले चरित्रहीन एवं ऊपर की ओर देखने वाले अच्छे तथा आंखों से आंखें मिलाकर बात करने वाला विश्वासी कहा गया है। भौंहें जिसकी भौहें (Eye Brow) मोटी होती हैं वे शान्त स्वभाव के तथा पतली भौहों वाले अधिक चालाक होते हैं। दोनों भौहों के मध्य सामान्य अंतर शुभ माना गया है तथा जुड़ी हुई भौहों के व्यक्ति का विश्वास नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति किस समय क्या करते हैं वे खुद भी इस विषय से अनभिज्ञ पाये जाते हैं। सीधी भौहों के स्वामी उन्नति करने वाले तथा धैर्यवान होते हैं। टेढ़ी भौहों के स्वामी की बौद्धिक क्षमता अधिक होती है। 69 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र नाक 1 70 ঊ Lo तोते जैसी नाक दांयी ओर झुकी हुई छोटी नाक चपटी नाक 7 2 3 नकीली नाक 10 सुडौल नाक 125.1% 6 आगे का हिस्सा टेढ़ा 8 गढ मोटी नाक पतली नाक 12 उभरी हुई नाक 11 ما 9 विभिन्न प्रकार के नाक लम्बी नाक | तोते जैसी नाक वाले अधिक भाग्यशाली होते हैं, मोटी नाक वाले पूर्ण सुखी नहीं कहे जा सकते, चपटी नाक वाले मनमाने होते हैं तथा पतली नाक वाले परिश्रमी होते हैं। स्त्रियों के नाक पर तिल होना शुभ माना गया है, पुरुषों के नाक पर तिल अशुभ माना जाता है । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. यदि चार अंगुल लम्बी नाक हो, तो वे दीर्घायु होते हैं। 2. जिनकी नाक उभरी हुई हो, वे सदाचारी होते हैं। 3. हाथी के समान नाक वाला व्यक्ति भोगी होता है। 4. तोते के समान नाक रखने वाला व्यक्ति सुखी होता है। 5. जिसकी नाक सीधी हो, वह सौभाग्यशाली होता है। 6. जिनके नथुने छोटे हों, वे भाग्यवान पुरुष होते हैं। 7. जिसके नाक का आगे का हिस्सा ढेढ़ा हो, वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है। 8. नुकीली नाक वाला राजा होता है। 9. छोटी नाक वाला धर्मात्मा होता है। 10. जिसकी नाक का आगे का हिस्सा दो भागों में बंटा हुआ हो, वह दरिद्र होता है। 11. चपटी नाक वाला व्यक्ति सरल स्वभाव वाला होता है। 12. कटी हुई नाक वाला व्यक्ति पापी होता है। 13. दाई ओर झुकी हुई नाक कमजोरी का चिन्ह है। 14. बड़े नथुने श्रेष्ठ कहलाते हैं। 15. स्त्रियों में यदि नाक छोटी हो, तो वह मजदूर स्वभाव वाली होती है। 16. चपटी और लम्बी नाक वाली स्त्री विधवा होती है। 17. यदि नाक के आगे का हिस्सा लम्बाई लिए हुए हो, तो वह रानी के समान सुख भोगती है। 18. यदि नाक के आगे की नोंक पर काला तिल या मस्सा हो, तो वह दुराचारिणी होती है। 19. अत्यधिक लम्बी नाक वाली स्त्री सुखहीन होती है। 20. सुडौल और समान छिद्र वाली नाक श्रेष्ठता की सूचक है। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र मुख 1. यदि छोटा मुंह हो, तो वह अच्छा कहलाता है। 2. यदि बहुत अधिक फैला हुआ हो, तो यह दरिद्रता का सूचक है। 3. यदि मुंह चौड़ाई लिए हुए हो, तो अशुभ कहलाता है। गर्दन 1. छोटी गर्दन वाला भाग्यशाली होता है। 2. गोल और मजबूत गर्दन वाला व्यक्ति धनवान होता है। 3. शंख के समान गर्दन वाला व्यक्ति राजा होता है। 4. भैंसे के समान मोटी गर्दन वाला व्यक्ति बलवान होता है। 5. बैल के समान गर्दन वाला व्यक्ति अल्पायु होता है। 6. लम्बी गर्दन वाला व्यक्ति भोगी होता है। 7. टेढी गर्दन वाला चगलखोर होता है। 8. लम्बी और चपटी गर्दन वाला दुःखी होता है। 9. मांसहीन गर्दन निर्धनता की सूचक है। 10. चार अंगुल वाली गर्दन सबसे श्रेष्ठ मानी गई है तथा गर्दन का घेरा 24 से 26 अंगुल का अत्यन्त श्रेष्ठ होता है। 11. बड़ी-बड़ी हड्डियों से युक्त गर्दन निर्धनता की सूचक होती है। 12. यदि स्त्रियों के गले के मनके सीधे हों, तो वह दीर्घायु होती है। 13. यदि गले की गुटकी ऊंची हो, तो वह सौभाग्यदायी होती है। 14. मांस से भरी हुई सुन्दर गर्दन श्रेष्ठता की सूचक होती है। 15. तीन रेखाओं से युक्त गर्दन वाली स्त्री धनी होती है। 16. जिस स्त्री के गले में हड्डियां दिखाई देती हों, वह दुर्भाग्य युक्त होती है। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 17. मोटी गर्दन वाली स्त्री विधवा होती है। 18. जिसके गले में नाड़ियां दिखाई देती हों, वे दरिद्री होती हैं। 19. जिस स्त्री की गर्दन बहुत अधिक लम्बी हो, वह कुल का नाश करने वाली मानी जाती है। 20. जिसकी गर्दन सुन्दर, सुडौल चार अंगुल वाली हो, वह स्त्री श्रेष्ठ होती है। चिंबुक (ठोढ़ी) 1. यदि चिंबुक गोल या मांस से भरी हो, तो वह धनवान होता है। 2. लम्बी, पतली और दुबली चिंबुक दरिद्रता की सूचक होती है। 3. यदि जबड़े गोल हों, तो शुभ कहे जाते हैं। 4. यदि ठोढ़ी का अग्रभाग सुन्दर और कोमल हो तो शुभ है। 5. यदि ठोढ़ी के आगे के भाग में ललाई दिखाई दे तो अशुभ होता है। 6. यदि स्त्री की चिंबुक दो उंगली की, मांसल तथा सुन्दर हो, तो वह सौभाग्यशाली स्त्री होती है। 7. राम युक्त चिम्बुक रखने वाली स्त्री दुराचारिणी होती है। कपोल 1. यदि फूले हुए गाल हों, तो वह व्यक्ति सुखी होता है। 2. मांसल युक्त कपोल भोगी होने की सूचना देते हैं। 3. जिनके गाल सिंह के समान उभरे हुए हों, वे राजा होते हैं। 4. मांस रहित पिचके हुए गाल दुख भोगी होते हैं। 5. फूले गाल वाला व्यक्ति मंत्री होता है। 73 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 6. निर्मल तथा सुन्दर गाल जिन स्त्रियों के होते हैं, वे श्रेष्ठ कही जाती हैं। 7. जिन स्त्रियों के गालों पर रोग हों, वे दुखी होती हैं। 8. यदि गालों पर नाड़ियां न दिखाई देती हों, तो वह देवी के समान होती है। 9. जिसके गाल गड्डेदार हों, वह पूर्ण भौतिक तथा शौकीन मिजाज की स्त्री होती है। होंठ 1. लाल होंठ वाले व्यक्ति धनवान होते हैं। 2. गुलाबी होंठ वाले व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं। 3. मोटे होंठ वाला व्यक्ति धर्मात्मा होता है। 4. लम्बे होंठ वाला व्यक्ति भोगी होता है। 5. ऊबड़-खाबड़ होंठ वाला व्यक्ति दुख पाता है। 6. रूखे-सूखे पतले तथा कान्तिहीन होंठ निर्धनता के सूचक होते हैं। 7. जिस स्त्री के होंठ लाल तथा चिकने हों, वह श्रेष्ठ होती है। 8. जिसके होंठ के बीच में रेखा दिखाई दे, वह सौभाग्यशाली होती है। 9. आड़े-तिरछे होंठ वाली दुर्भाग्यशालिनी होती है। 10. काले और मोटे होंठ वाली स्त्री पति-सुख-हीन होती है। 11. बहुत अधिक मोटे होंठ वाली स्त्री कलह करने वाली होती है। 12. ऊपर का होंठ कोमल, झुका हुआ तथा चिकना हो, तो वह सौभाग्यदायी होती है। 13. यदि नीचे का होंठ ऊपर की ओर उठा हुआ हो, तो वह विधवा होती है। 14. गोल तथा लालिमा लिए हुए होंठ वाली, पूर्ण पति सुख प्राप्त करती है। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र जीभ 1. जिस पुरुष की जीभ लाल, पतली और नरम हो, वह ज्ञानवान, चतुर तथा ईश्वर भक्त होता है। 2. जिसका आगे का भाग नुकीला हो तथा लालिमा लिए हुए जीभ हो, वह पूर्ण वैभव सुख प्राप्त करता है। 3. जिसकी जीभ सफेदी लिए हुए हो, वे दिल के बुरे होते हैं। 4. काली या नीली जीभ वाले व्यक्ति निर्धन होते हैं। 5. मोटी और एक समान चौड़ी अथवा पीले रंग की जीभ हो, तो वह व्यक्ति मूर्ख होता है। 6. जिस पुरुष की जीभ नाक को छूती हो, वह उच्च कोटि का साधक या योगी होता है। 7. लम्बी जीभ वाला व्यक्ति स्पष्टवादी होता है। 8. चौड़ी जीभ वाला व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खर्च करने वाला होता है। 9. जिन स्त्रियों की जीभ कोमल, लाल तथा पतली होती है, वे सौभाग्यशाली होती हैं। 10. जिन स्त्रियों की जीभ संकीर्ण होती है, वे अशुभ कहलाती हैं। 11. जिस स्त्री की जीभ मोटी हो, वह पूर्णायु नहीं प्राप्त करती। 12. लाल रंग की जीभ रखने वाली स्त्री श्रेष्ठ पति से शादी करती है। 13. काली जीभ वाली स्त्री झगड़ालू होती है। 14. बहुत अधिक चौड़ी जीभ वाली स्त्री निरन्तर दुख उठाने वाली होती है। 75 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र हास्य 1. हंसते समय जिनके दांत बाहर नहीं आते, वे उत्तम व्यक्ति होते हैं। 2. जो व्यक्ति हंसते समय सिर और कंधा फड़काते हैं, वे भोगी अथवा पापी होते हैं। 3. आंख मूंदकर हंसने वाले व्यक्ति अधार्मिक होते हैं। 4. जिसका मुख हमेशा मुस्कराता रहता है, वह जीवन में निरन्तर उन्नति करता रहता है। 5. जिस स्त्री के हंसते समय दांत न दिखाई पड़ें और थोड़ा-सा मुंह खुले, वह स्त्री सौभाग्यशाली होती है। 6. यदि हंसते समय स्त्री बार-बार कांपती हो या जोरों से खिलखिलाती हो, तो वह रसिक मिजाज की तथा पर-पुरुष से सम्बन्ध रखने वाली होती है। 7. जिस जातक के हंसते समय गाल में गड्ढ़े पड़ते हों, वह पर-पुरुष की इच्छा रखने वाली होती है। अभ्यास प्रश्नावली 1. अच्छे होठों के प्रकार बताएं। 2. छोटी गर्दन वाले जातक के बारे में लिखें। 3. तोते के समान नाक के क्या गुण हैं ? 4. बिखरे हुए दातों पर प्रकाश डालें ? Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय-8 8. Female Native स्त्री की 21 मुख्य जातियां होती हैं, जिनका वर्णन संक्षेप में नीचे की पंक्तियों में स्पष्ट किया जाता है। 1. पदमिनी - ऐसी स्त्री दया और स्नेह रखने वाली, चित्त को मोहित करने वाली, हंस के समान चलने वाली तथा माता-पिता की सेवा करने वाली होती है। इसके शरीर से कमल के समान सुगंध निकलती है। वह सुन्दर, सामने वाले को प्रभावित करने वाली तथा पति सेवा में लीन रहती है। इसके नाक, कान तथा होंठ छोटे होते हैं। शंख के समान गर्दन और कमल के समान चेहरा होता है। ऐसी स्त्री सौभाग्यवती, कम सन्तान उत्पन्न करने वाली और पतिव्रता होती है। 2. चित्रणी- ऐसी स्त्रियां पतिव्रता और सब पर स्नेह करने वाली होती हैं। श्रृंगार आदि में उनकी रुचि रहती है। ये ज्यादा परिश्रम नहीं करतीं, पर बुद्धिमान होती हैं। इनका मस्तिष्क गोल तथा नेत्र चंचल होते हैं। इनकी चाल हाथी के समान, स्वर मोर के समान होता है। ऐसी स्त्रियां कोमल अंगों वाली तथा लज्जा रखने वाली होती हैं। ऐसी स्त्रियां नृत्य, प्रेम तथा सुन्दरता से पति को प्रसन्न रखने वाली होती हैं। 3. हस्तिनी- ये पुरुष के मनोनुकूल होती हैं तथा इनमें भोग की इच्छा विशेष होती है। इनका शरीर मोटा और थोड़ा बहुत आलस से भरा हुआ होता है। इनमें लज्जा, धर्म आदि कम होता है। इनकी कपोल, नासिका, कान और गर्दन मोटी होती है। आंखें छोटी और पीली होती हैं। होंठ मोटे और लम्बे होते हैं ये अपने पति से सन्तुष्ट नहीं होती तथा पति के अलावा अन्य पुरुषों से सम्बन्ध बनाने को लालायित रहती हैं। 4. शंखिनी- ये लम्बी होती हैं तथा इनके चलते समय पृथ्वी पर आवाज होती है। ये अपने कूल्हे हिला कर चलती हैं। इनकी आंखें टेढ़ी और शरीर बेडौल 77 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र होता है। इनमें क्रोध की भावना अधिक होती है तथा प्रत्येक क्षण भोग की इच्छा बनी रहती है। इनका मन दुष्ट होता है तथा मादक द्रव्यों का सेवन इन्हें रुचिकर लगता है। ये दुराचारिणी तथा पर-पुरुष में रत रहती हैं। 5. सहिनी- ये सरल स्वभाव वाली तथा डरपोक होती हैं। ऐसी स्त्रियां हंसमुख और लज्जायुक्त होती हैं। उनकी बोली कोमल होती है तथा प्रत्येक दृष्टि से पति को प्रसन्न करने की कला इन्हें आती है। 6. मेत्रायणि- ये सुन्दर, रूपवती, गौर-वर्ण, अभिनय के साथ काम करने वाली होती हैं, पर उन्हें पति दुष्ट या कमजोर मिलते हैं। इस वजह से इनका गृहस्थ जीवन ज्यादा सुखमय नहीं होता। इनके रूप को देखकर प्रत्येक पुरुष मोहित हो जाता है। ये पुरुष से दूर रहती हैं। 7. कलहकारिणी- ऐसी स्त्री की भौंहें हमेशा चढ़ी हुई रहती हैं। इसके दांत ऊंचे-नीचे तथा भैंस के समान शरीर होता है। रास्ते मे चलते समय इसके पैरों से धूल उड़ती रहती है। यह द्वेष रखने वाली तथा धोखे से पति को मारने वाली होती हैं। यह किसी भी प्रकार से परपुरुष से सम्बन्ध जोड़ने में ही अपनी चतुराई समझती हैं। 8. गृहस्थिनी- ऐसी स्त्री आदर्श रूप से घर को चलाने वाली होती है तथा पति में ही अनुरक्त रहती है। न तो यह अधिक बोलती है न किसी को धोखा देती है। न यह पर पुरुषों को चाहती है और न अधिक बनी ठनी रहती है। कुकर्मों से दूर रहने वाली यह स्त्री अपने दोनों पक्षों का नाम ऊँचा उठाती है। 9. आतुरा- ऐसी स्त्री प्रत्येक कार्य को तुर्त-फुर्त करने में विश्वास रखती है। यह साधारण रूप रंग वाली स्त्री पति से प्रेम करने वाली होती है, तो कभी पति से भयंकर लड़ाई भी कर लेती है। इस स्त्री को समझना अत्यन्त कठिन होता है। 10. भयातुरा- यह गौर वर्ण, नाजुक, लज्जा से सिकुड़ सिमट कर बात करने वाली तथा थोड़ी-थोड़ी बातों से डरने वाली है। यह कभी अकेली नहीं रहती है। यह सबसे प्रेम करने वाली, मधुर भाषण करने वाली तथा अपने धर्म को Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र निभाने वाली होती है। 11. डाकिनी- यह हंसकर बातें करने वाली तथा धोखा देने में चतुर होती है। इसके नेत्र लाल होते हैं। ऊपर से यह बहुत प्यार दिखाती है, पर निकट से यह लालची तथा धोखा देने वाली होती है। इससे प्रेम करना और सांप से प्रेम करना बराबर होता है। इसका पति इसकी बदनामी से हर समय दुखी रहता है। 12. हंसिनी- यह सुखी तथा समझदार होती है। इसकी चाल हंस के समान मनमोहक होती है। यह सत्य बोलने वाली तथा रति के समान सुन्दर होती है। यह मधुर प्रीति करने वाली होती है। ऐसी स्त्रियां सौभाग्यशाली पुरुषों को ही मिलती हैं। 13. बहुबंशिनी- ऐसी स्त्री गेहुएं रंग वाली तथा पूरी तरह से गृहस्थ धर्म को निभाने वाली होती है। यह असत्य नहीं बोलती तथा पति सेवा में ही प्रसन्न रहती है। समाज में इसका सम्मान होता है। 14. कृपणी- ऐसी स्त्री निर्लज्ज, कमजोर शरीर वाली तथा कंजूस होती है। यह थोड़े बहुत रूप में बदनाम होती है तथा किसी से भी किसी भी प्रकार की बात करने में इसको शर्म नहीं आती। यह धन अथवा भोग के लिए किसी भी पुरुष के साथ चरित्र नष्ट करने को तैयार हो जाती है। 15. घातिनी- यह स्त्री चालाक तथा दूसरों को धोखा देने में होशियार होती है। प्रकट में यह प्रेम जताती है, परन्तु इसके हृदय में जहर भरा हुआ रहता है। यह कुशल धोखा देने वाली होती है तथा बात-बात पर असत्य भाषण करती है। 16. प्रेमिणी- यह सुन्दर, प्रेम को निभाने वाली तथा पतिप्रिय होती है। यह हमेशा मन्द-मन्द मुस्कराती रहती है तथा जो भी इसकी भलाई करता है, उस पर यह सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती है। इसके केश लम्बे, सुन्दर तथा चेहरा आकर्षक होता है। 19 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 17. कुशतन्वी- यह स्त्री दुबली-पतली तथा क्रोध करने वाली होती है, यह अपने आपको बहुत अधिक चतुर समझती है तथा जब बोलती है, तो इसका शरीर थरथराता रहता है। 18. मदमस्तिनी- यह घमंड में चूर तथा कामपिपासु होती है। इससे काम कला में हमेशा पुरुष ही पराजित होता है । यह कभी भी हार नहीं मानती । यह अत्यधिक कामी होती है तथा अन्त में यह वेश्या के समान हो जाती है। एक स्थान पर टिक कर बैठना इसको अच्छा नहीं लगता । 19. कुलच्छेदिनी यह स्त्री जिस घर में भी जाती है, उसको दरिद्र बना देती है। यह पाप कर्म से प्रेम करती है। पति को बात-बात पर धोखा देती है । माता पिता पति, भाई, ससुर आदि किसी की इज्जत की यह परवाह नहीं करती और लगभग दुराचारिणी होती है। 20. नारकी ऐसी स्त्री छोटी आंखों वाली तथा पाप कार्यों में रत रहने वाली होती है। यह आपस में एक दूसरे की लड़ाई कराने में प्रसन्न होती है। ऐसी स्त्री दगाबाज तथा असत्यभाषिणी होती है। 21. स्वर्गणी - ऐसी स्त्री उत्तम विचार रखने वाली, धर्म को मानने वाली तथा सभी के साथ मधुर व्यवहार करने वाली होती है। ईश्वर में इसका चित्त बहुत अधिक रहता है। यह छोटे बड़े सभी का सम्मान करना जानती है। इसकी वाणी मीठी होती है। समाज में इसका सम्मान होता है। ऐसी स्त्री पति को ईश्वर से भी ज्यादा सम्मान देती है। ऊपर मैंने स्त्रियों के कुछ भेद स्पष्ट किए हैं। इसके अलावा माननी, धारकी, दुष्टा, पातकी आदि भी स्त्रियों के कई भेद होते हैं। कुल भेद 64 माने गए हैं, जिनमें ऊपर लिखे हुए इक्कीस भेद मुख्य होते हैं। स्वर (स्त्रियों के लिए) 1. बोलते समय जिस स्त्री का स्वर वीणा के समान हो, वह श्रेष्ठ होती है। 2. कोकिल के समान स्वर वाली भाग्यशाली स्त्री 'मानी' जाती है । 80 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 3. जिसकी ध्वनि मोर के समान हो, उसका धनी पुरुष से विवाह होता है। 4. फटी सी आवाज रखने वाली स्त्री दुखी होती है। 5. घरघराहट सी आवाज वाली स्त्री दुखी होती है। विशेष तथ्य (स्त्रियों के लिए) 1. लम्बी और काली पुतली लिए हुए जिस स्त्री की आंख हो, वह श्रेष्ठ होती है। 2. छोटे-छोटे और काले बालों वाली पलकें जिस स्त्री के हों, वह स्त्री सौभाग्यशाली होती है। 3. हरिण के समान नैन वाली स्त्री शुभ लक्षण वाली मानी गई है। 4. गोल या बिल्ली की तरह आंख रखने स्त्री कुटिल होती है। 5. जिस स्त्री की दोनों आंखें पीली होती हैं, वह कामातुर होती है। 6. जिस स्त्री के दोनों नेत्र लालिमा लिए हों, वह पर-पुरुष के साथ विचरण की इच्छा वाली होती है। 7.जिस स्त्री के नेत्र जल से भरे हुए होते हैं, वे शुभ कहलाते हैं। 8. जो स्त्री देखते समय आंख फाड़ती हो, वह कुटिल स्वभाव की होती है। 9. पुरुष के समान आंख वाली या धंसे हुए नेत्र वाली स्त्री चंचल होती है। 10. जो स्त्री बात करते समय बाई आंख दबाती है, वह व्यभिचारिणी होती है। 11. जो बात करते समय दाहिनी आंख दबाती हो, वह कम सन्तान वाली होती है। 12. कमाणीदार भौंहे रखने वाली स्त्री शुभ मानी गई है। 13. खुरदरे बालों वाली भौहें अशुभ होती हैं। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 14. जिन स्त्रियों की भौंहें न हों, वे निर्धन होती हैं। 15. जिनकी भौंहें मोटी हों, वे पर-पुरुष की इच्छा रखती हैं। 16. जिस स्त्री के भौहों के बाल बड़े-बड़े हों, वह सन्तान-हीन होती हैं। 17. जिस स्त्री के बाएं गाल पर मस्सा या तिल होता है, वे श्रेष्ठ कही जाती हैं। 18. कण्ठ पर तिल हो, उसके पहला पुत्र होता है। 19. जिसके नख सुन्दर हों, वह दयालु होती है। 20. जिसके नेत्र लम्बे चौड़े हों तथा चौड़ी छाती एवं पतली कमर हो, वह समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है। 21. जिस स्त्री की लम्बी और पतली उंगलियां हों, वह दीर्घायु होती है। 22. जिस स्त्री के गले में तीन रेखाएं दिखाई दें, वह ऐश्वर्यशालिनी होती है। 23. जिस स्त्री के होंठ लम्बे और मोटे हों, वह पति को धोखा देने वाली होती 24. जिस स्त्री के नख तथा होंठ कालापन लिए हुए हों, उसका चरित्र उज्जवल नहीं होता। 25. सोते समय जिस स्त्री के मुंह से लार टपकती हो, वह कुलटा होती है। 26. जिस स्त्री के हंसते समय गालों में गड्डे पड़ते हों और नेत्र घूमते हों, वह व्यभिचारिणी होती है। 27. बहुत छोटे मुंह वाली स्त्री पति को धोखा देती है। 28. बहुत लम्बे मुंह वाली स्त्री निर्धन होती है। 29. जो स्त्री सोते समय दांत पीसती हो, वह लक्ष्मीहीन होती है। 30. जिस स्त्री के नेत्र छोटे हों, वह शुभ लक्षण वाली नहीं मानी जाती। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 31. जिस स्त्री का सिर समान तथा गोल हो, वह दीर्घायु होती है। 32. जिस स्त्री के ललाट में चार रेखाएं होती हैं, वह सौभाग्यशाली होती है। 33. जिस स्त्री के ललाट में तीन रेखाएं हों, वह दीर्घायु होती है। 34. एक रेखा वाली स्त्री शुभ नहीं कहलाती। 35. जिन स्त्रियों के तलवे चिकने, कोमल तथा समान हों, वे सुख उठाती हैं। 36. रूखे और कठोर तलवे वाली स्त्री दुर्भाग्यवान होती है। 37. जिस स्त्रियों के चलते समय थप थप की आवाज आती है, वे मूर्ख होती 38. जिनके पैरों में शंख, कमल, ध्वजा या मछली का चिन्ह हो, वे धनवान से शादी करती हैं। 39. जिस स्त्री के चरण में पूरी ऊर्ध्व रेखा हो, वह अखण्ड भोग करती है। 40. जिस स्त्री के पैर का अंगूठा मांसलयुक्त तथा गोल हो, वह भोग कारक होती है। 41. यदि अंगूठा चपटा और टेढ़ा-मेढ़ा हो, वह सौभाग्य का नाश करता है। 42. जिस स्त्री के पैर का अंगूठा लम्बा होता है, वह दुर्भाग्यशलिनी होती है। 43. जिस स्त्री के पैर की उंगलियां कोमल तथा जुड़ी हुई हों, तो वे शुभ फल प्राप्त करने वाली होती हैं। 44. जिस स्त्री के पैर की उंगलियां लम्बी होती हैं, वे दुराचारिणी होती हैं। 45. यदि पैर की उंगलियां पतली हों, तो वे धनहीन होती हैं। 46. टेढ़ी उंगलियों वाली स्त्री कुटिल होती है। 47. चपटी उंगलियों वाली स्त्री नौकर के समान जीवन व्यतीत करने वाली 83 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र होती है। 48. यदि पैर की उंगलियां के बीच में दूरी हो, तो वह दरिद्री होती है। 49. जिस स्त्री के मार्ग में चलते समय धूल उड़ती हो, वह व्यभिचारिणी व बदनाम होती है। 50. चलते समय जिस स्त्री की सबसे छोटी उंगली भूमि का स्पर्श न करती हो, वह निश्चय ही पर-पुरुष से रत रहती है। 51. जिस स्त्री की दो उंगलियां पृथ्वी को स्पर्श नहीं करतीं, वह पति को धोखा देती है। 52. यदि पैर का ऊपर का हिस्सा चिकना, कोमल और मांसल होता है, वह सौभाग्यशाली होती है। 53. यदि स्त्री के टखने गोलाकार हों, तो शुभ होते हैं। 54. यदि ये टखने नीचे की ओर ढीले हों, तो दुर्भाग्यसूचक होते हैं। 55. जिस स्त्री की एड़ी चौड़ी हो, वह दुर्भाग्यशाली होती है। 56. जिस स्त्री की जंघाएं रोमहीन, चिकनी तथा गोल हों, वह राज्य–लक्ष्मी के समान होती है। 57. जिस स्त्री के दोनों घुटने गोल और मांस-युक्त हों, वह धनवान होती हैं। 58. जिस स्त्री की पिंडलियां हाथी की सूंड के समान हों, वे श्रेष्ठ होती हैं। 59. बड़े-बड़े रोम वाली पिंडली जिस स्त्री के हों वह शीघ्र ही विधवा होती हैं। 60. यदि स्त्री के कंधे झुके हुए न हो तो शुभ है। 61. जिनकी पिंडलियों का चर्म कठोर हो, वे धनहीन होती हैं। 62. जिस स्त्री की कमर चौबीस अंगुल की हो, वह श्रेष्ठ होती है। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 63. लम्बी तथा चपटी कमर संकट देने वाली होती है। 64. रोमयुक्त कमर वाली स्त्री विधवा होती है। 65. जिस स्त्री के नितम्ब चौड़े हों, वह भोगी तथा कामी होती है। 66. यदि नितम्ब गोल, कोमल तथा मांसल हों, वह शुभ कहा जाता है। 67. जिस स्त्री की नाभि गहरी तथा रेखाओं से युक्त हो, वह सम्पत्ति देने वाली होती है। 68. जिसकी नाभि ऊंची तथा मध्य भाग स्पष्ट दिखता हो, ऐसी स्त्री अशुभकारिणी होती है। 69. जिस स्त्री की पसलियां कोमल और मांसलयुक्त होती हैं, वह सुख पाने वाली मानी जाती है। 70. जिस स्त्री की पसलियों पर बाल हों, वह बुरे स्वभाव वाली होती है। 71. जिस स्त्री का पेट छोटा तथा कोमल त्वचा वाला हो, वह श्रेष्ठ होती है। 72. घड़े के समान पेट वाली स्त्री दरिद्री होती है। 73. यदि पेट बहुत चौड़ा हो, तो दुर्भाग्यशली होती है। 74. लम्बे पेट वाली स्त्री ससुर या जेठ का नाश करती है। 75. जिसके पेट पर तीन बल या तीन रेखाएं पड़ती हों, वह भाग्यवान होती है। 76. जिसके बाल सीधे और पतले हों, वह सुख उठाने वाली होती है। 77. जिसके बाल की पंक्ति टेढ़ी-मेढ़ी हो, वह विधवा होती है। 78. जिसका सीना बिना रोम का हो, वह अपने पति की प्रिय होती है। 79. जिसका सीना विस्तृत हो, वह स्त्री निर्दयी होती है। 80. छत्तीस अंगुल चौड़ा सीना शुभ माना गया है। अर्थात् स्त्री का सीना छत्तीस 85 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अंगुल का होना शुभ है। 81. यदि स्तन कठोर, गोल तथा दृढ़ हों , तो वे शुभ हैं। 82. यदि स्तन मोटे तथा सूखे हों, तो वे दुख देने वाले होते हैं। 83. यदि स्त्री का दाहिना स्तन ऊंचा हो, तो सौभाग्यशाली होती है। 84. जिस स्त्री के दोनों स्तन दबे हुए हों, वह कुलटा होती है। 85. जिस स्त्री के स्तनों के अग्रभाग काले तथा गोल हों, वह शुभ माना गया है। 86. जिस स्त्री की हंसुली मोटी हो, तो वह ऐश्वर्य भोगी होती है। 87. जिसकी हंसुली ढाली हो, तो वह स्त्री दरिद्री होती है। 88. यदि स्त्री के कंधे झुके हुए न हों, तो शुभ है। 89. यदि स्त्री के कंधे टेढ़े मोटे और बाल युक्त हों, तो वह विधवा होती है। 90. यदि आगे को कुछ झुके हुए और मजबूत हों, तो वह आनन्द करती है। 91. यदि उसकी भुजाएं कोमल तथा सीधी और रोम रहित हों, तो यह शुभ माना गया है। 92. यदि भुजाएं बालों से युक्त हों, तो वह विधवा होती है। 93. जिन स्त्रियों की भुजाएं छोटी हों, वे दुख उठाती हैं। 94. यदि हथेली लाल तथा छिद्र रहित हो, तो वह सौभाग्यशालिनी होती है। 95. यदि हथेली बहुत-सी नसों वाली या बहुत अधिक रेखाओं वाली हो, तो दरिद्री होती है। 96. यदि नख लाल और उभरे हुए हों, तो शुभ है। 97. पीले नख दरिद्रता के सूचक हैं। 86 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 98. नखों पर सफेद बिन्दु कुलटा का संकेत करते हैं। 99. जिसकी पीठ झुकी हुई हो वह दुख उठाने वाली होती है। 100. जिस स्त्री की पीठ में बहुत अधिक बाल हों, तो वह विधवा होती है। 101. सीधी दृष्टि वाली स्त्री पुण्यवान होती है। 102. जिस स्त्री की दृष्टि नीचे की ओर झुकी हुई हो, वह अपराधिनी होती है। 103. यदि दोनों आंखें अधिक निकट हों, तो वह स्त्री धोखा देने वाली तथा कम बुद्धि की होती है। 104. जिसकी आंखें बहुत दूर हों, तो वह स्त्री ज्ञानी होती है। 105. यदि ललाट में तिल हो, तो वह जीवन भर आनन्द उठाती है। 106. यदि हृदय पर तिल हो, तो वह सौभाग्यदायक होता है। 107. जिस स्त्री के दाहिने स्तन पर तिल हो, तो वह अधिक कन्याएं पैदा करने वाली होती है। 108. यदि बायें स्तन पर लाल तिल हो, तो वह विधवा होती है। 109. जिसकी नाक के अग्रभाग में लाल तिल हो, तो वह पति की प्रिय होती 110. जिसकी नाक के आगे के भाग में काला तिल हो, तो वह दुराचारिणी होती 111. जिसकी नाभी के नीचे तिल हो, तो वह शुभ है। 112. जिसके बायें हाथ में तिल हो, तो वह सौभाग्यशाली होती है। 113. जिसके गाल, होंठ, हाथ, कान या गले पर तिल हो, तो वह जीवन भर सुख पाती है। 87 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अभ्यास प्रश्नावली 1. रोमयुक्त स्त्रीजातक का शरीर किन बातों को दर्शाता है ? 2. पदमिनी स्त्री जातक के बारे में लिखें। 3. किन्हीं पांच प्रकार के स्त्री जातक का गुण लिखें। 4. सर्वोत्तम स्त्री जातक के बारे में लिखें। 88