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सरल सामुद्रिक शास्त्र
होकर भी रानी बनती है। मन्दिर, कुण्डल, ध्वज, चक्र, छत्र तथा सरोवर का आकार होने पर स्त्री राजमाता होती है, अर्थात् उसका पुत्र राजा होता है। यस्याः करतले रेखा मयूरं छत्रमीक्ष्यते । राजपत्नित्वमाप्नोति पत्रैश्च सह वर्धते ।। पद्मं मालाकुशं छत्रं नन्दावतः प्रदक्षिणः । पाणिपादे भवेद्यस्याः राजो भोग्यात्र सा सुता।। अंगुल्यः संहता यस्या नसाः पद्मदलोपमाः । मृदुहस्ततला कन्या सा नित्यं सुखमेधते ।। जिसके हाथ में मोर, छत्र का निशान बनता हो तो ऐसी स्त्री रानी होकर पुत्रवती होती है। जिसके हाथ या पैर में कमल, माला, अंकुश, छत्र, स्वस्तिक, दक्षिणावर्त शंख हो, वह नारी राजा की भोग्या पत्नी होती है।
जिसकी अंगुलियां आपस में मिली हुई, कमल की पंखुड़ी के समान कोमल तथा लाल हों, हथेली कोमल हो, वह स्त्री सदा सुख प्राप्त करती है तथा दिनोदिन उन्नति करती है। नोट
क. जिस स्त्री के पैर की कनिष्ठा अंगुली से लेकर आगे तक जितनी अंगुलियां चलते समय जमीन से उठी रहें, वह उतने ही पति के दुर्भाग्य का कारण बनती है। आशय यह है कि वह बार-बार विधवा होती हैं
ख. यदि पैर में एक अंगुली कम हो तो वह झगड़ालू होती है। ग. यदि पैर का अंगूठा छोटा, गोल, टेढ़ा, चपटा हो तथा लाल रहता हो तो स्त्री अशुभ फलों की मूर्ति होती है। घ. जिसकी अंगुलियां लाल कमल की तरह कोमल हों, वह सदा सुख भोगती है।