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सरल सामुद्रिक शास्त्र
हाथो में सभी तीर्थों का निवास
शत्रुजयस्तु तर्जन्यां मध्यमायां जयन्तकः । अर्बुदः खलु सावित्र्यां कनिष्ठायां स्यमन्तकः ।। तर्जनी में शत्रुजय, मध्यमा में जयन्तक, अनामिका में अर्बुद तथा कनिष्ठा में स्यमन्तक तीर्थ का निवास है। अङ्गुष्ठेऽष्टापदगिरिः पंचतीर्थान्यनुक्रमात् । स्वहस्तदर्शनेनैव वन्द्यन्ते प्रातरुत्तमैः ।। अंगूठे में कैलास तथा अंगुलियों में इसी तरह क्रमशः पांचों तीर्थों का निवास है। यही कारण है कि जो व्यक्ति प्रातःकाल अपने हाथ का दर्शन करता है वह अनायास ही सभी देवताओं व तीर्थों का दर्शन करता है स्त्रियों के हाथ के लक्षण अंकुशं कुण्डलं चक्रं यस्याः पाणितले भवेत् । पुत्रं प्रसूयते नारी नरेन्द्र लभते पतिम ।।
जिस स्त्री के हाथ में अंकुश, कुण्डल, चक्र का निशान हो, उसका पति राजा होता है, वह अनेक पुत्रों की माता होकर सुखी होती है। यस्याः पाणितले रेखा प्रासादछत्रतोरणम् ।
अपि दासकुले जाता राजपत्नी भविष्यति।। मन्दिरं कुण्डलं चैव ध्वजचक्रसरोवरम्। यस्याः करतले छत्रं सा नारी राजसूर्भवत् ।। यदि स्त्री के हाथ में महल, छत्र तोरण का आकार हो तो वह दास कुल में पैदा होकर भी रानी बनती है। मन्दिर, कुण्डल, ध्वज, चक्र, छत्र तोरण का आकार हो तो वह दास कुल में पैदा
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