Book Title: Pravrajya Yog Vidhi
Author(s): Maniprabhsagar
Publisher: Ratanmala Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रव्रज्या योग विधि संपादक उपाध्याय मणिप्रभसागर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रव्रज्या योग विधि [छोटी दीक्षा व बड़ी दीक्षा योग विधि] - संपादन - परम पूज्य गुरूदेव प्रज्ञा पुरुष आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. । के शिष्य पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रथम संस्करण पयुषण पर्व, वि.सं. 2062 1000 प्रतियाँ मूल्य 25 रूपये प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान रतनमालाश्री प्रकाशन श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट जहाज मन्दिर मांडवला-343042, जिला-जालोर (राज.) फोन-02973-256338 / 256107, A मुद्रक श्लोमो ग्राफिक्स, दिल्ली Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमात्मा श्री विमलनाथ मूलनायक, बसवनगुडी दादाबाड़ी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादागुरुदेव श्री जिनकुशलसूरि मूलनायक, बसवनगुडी दादाबाड़ी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वर जी म.सा. पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य माताजी म. श्री रतनमाला श्री जी म.सा पूज्य बहिन म. श्री विद्युत्प्रभा श्री जी म.सा. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य गुरूदेव प्रज्ञापुरूष आचार्यदेव स्व. श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की पावन प्रेरणा से श्रीमती नेमीबाई सरदारमलजी संकलेचा के ५वें वर्षीतप के उपलक्ष्य में श्रीमती नेमीबाई सरदारमलजी गजेन्द्रकुमार-सरोजादेवी ० धर्मेन्द्रकुमार-संगीतादेवी दिनेश नीलेश वरूण कुणाल बेटा पोता सरदारमलजी देवीचंदजी संकलेचा जोधपुर निवासी हाल बैंगलोर द्वारा अर्थ सहयोग प्रदत्त Page #9 --------------------------------------------------------------------------  Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका खरतरगच्छ परम्परानुसार दीक्षा, बड़ी दीक्षा विधि की यह आवश्यक पुस्तक प्रस्तुत करते समय हर्ष होना स्वाभाविक है। पिछले काफी लम्बे समय से ऐसी पुस्तक की अतीव आवश्यकता प्रतीत हो रही थी। खरतरगच्छीय परम्परानुसार दीक्षा विधि का प्रकाशन पूर्व में हुआ था परन्तु बड़ी दीक्षा विधि का प्रकाशन अद्यावधि हुआ नहीं है। हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही बड़ी दीक्षा कराने की परम्परा चल रही है। पूज्य गुरूदेव आचार्य भगवन्त स्व. श्रीमज्जिनकान्तिसागरसूरीश्वर जी म. सा. ने बड़ी दीक्षा योगोद्वहन विधि की कई प्रतियाँ हस्तलिपिकारों से लिखवाई थी, वे आज भी 'श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भंडार लोहावट पालीताणा' में सुरक्षित हैं। गुरूदेव श्री हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही योगोद्वहन कराते थे। __ पूर्व में खरतरगच्छ की परम्परा में बड़ी दीक्षा के योगोद्वहन आचार्य श्री या गणनायक के सानिध्य में ही संपन्न होते थे। बड़ी दीक्षा का अधिकार आचार्यश्री या गणनायक के अलावा और किसी को भी नहीं था। प्रव्रज्या कोई भी दे सकता था परन्तु उपस्थापना तो आचार्य ही करते थे। _ पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री बताते थे कि पूज्य आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरि जी म.सा. तक उपस्थापना का अधिकार उनके पास ही था। उसके बाद कारणवश परम्परा में परिवर्तन हुआ और यह परम्परा बनी कि जो पर्याय स्थविर हो, वह आचार्य अथवा गणनायक की अनुज्ञा से उपस्थापना कर सकता है। शास्त्र अपेक्षा से तो जिसने महानिशीथ सूत्र तक के योगोद्वहन किये हों, वही बड़ी दीक्षा, उपधान आदि विधि विधान कराने का अधिकारी होता है। योगोद्वहन पर सबसे ज्यादा जोर खरतरगच्छ परम्परा का रहा है। विधि प्रपा, योग विधि / 3 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार दिनकर, समाचारी शतक आदि कितने ही ग्रन्थों में शास्त्र पाठों के आधार पर योगोद्वहन की सिद्धि की है। योगोद्वहन की जो विधियाँ प्रचलित हैं, उनमें सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ खरतरगच्छ के ही मिलते हैं। हमारे पालीताणा के हस्तलिखित भण्डार 'श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भंडार, लोहावट' में साधु समाचारी संबंधी प्रचुर सामग्री संग्रहित है। उसमें एक प्रपत्र है जो वि.सं. 1633 चैत्र वदि 5 को लिखा गया है। उसकी प्रशस्ति में लिखा है तथा स्वस्तिश्रीमन्नपविक्रमसमयातीत संवत् 1606 वर्षे श्री आषाढ़ चतुर्मासे श्री विक्रमनगरे सुविहित शिरोमणि श्री खरतरगच्छे भट्टा. श्री जिनमाणिक्यसूरि विजयराज्ये उपाध्याय श्री कनकतिलक, वाचनाचार्य श्री भावहर्षगणि तथा गणि श्री शुभवर्धन पंडित श्री मेघकलश समस्त......... ...... श्री खरतरगच्छइ ऋषीश्वरनी बांधणीए कीधी छइ स्थिति मर्यादा लोपइ ते गच्छ बाहिरि। ___ अर्थात् वि.सं. 1606 आषाढ़ चातुर्मास में आचार्य श्री जिनमाणिक्यसूरि ने गच्छ मर्यादा बनाई। इस मर्यादा पत्र में कुल 54 बोल लिखे गये। इसका बोल नं. 16 व 26 योगोद्वहन के संबंध में हैं। बोल 16- छमासि गणियोग पाखइ माला उपधान दीक्षादिक न करिवा। बोल 26- तप वह्या पाखइ सिद्धांत वांचिवउ नहीं। इन दो बोलों से खरतरगच्छ की सुविशुद्ध परम्परा का बोध होता है। छह मास के गणियोग अर्थात् भगवती के योग जिसने किये हों, वही मालारोपण, उपधान, दीक्षा-बड़ी दीक्षा आदि करा सकता है। योगोद्वहन किये बिना शास्त्र पढने का निषेध किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में बड़ी दीक्षा की विधि के साथ बड़ी दीक्षा के समय जो जरूरी योगोद्वहन कराये जाते हैं, उसकी विधि विस्तार से आलेखित है। बड़ी दीक्षा के संदर्भ में शास्त्र मान्यता और वर्तमान परम्परा में काफी भेद पाया जाता है। आचार दिनकर में आचार्य वर्धमानसूरि का कथन है प्रथमं नन्दिविधियुक्त आवश्यकदशवैकालिकयोगोद्वहनं विदध्यात्। ततश्च मण्डलीप्रवेशयोगोद्वहनान्तराले अध्ययनत्रयाचाम्लत्रये नन्दिरूत्थापनाख्या विधेया। . - आवश्यक एवं दशवैकालिक योग होने के बाद मांडलिक योगों में 4 / योग विधि Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवेश करना चाहिये। मांडलिक योगों के बीच में तीन आचाम्ल के द्वारा तीन अध्ययन का योग होने के बाद बड़ी दीक्षा की नंदी करके उत्थापना करना चाहिये। विधि मार्गप्रपा में आचार्य जिनप्रभसूरि सर्वप्रथम आवश्यक योग करने का विधान बताते हैं। उसके बाद मांडलिक योग करने चाहिये और तत्पश्चात् दशवैकालिक योग करने के बाद बड़ी दीक्षा देनी चाहिये तत्तो य आवस्सगतवं कारिज्जइ। मंडलिसत्तगायंबिलाणि य। मंडलिसत्तगं च इम...... तओ दसवेयालियतवं कारित्ता उट्ठावणा कीरइ। .... धम्मोमंगलाइ-छज्जीवणियासुत्तं पाढित्ता, तस्सेव अत्थं कहित्ता, पुढविकायाइजीवरक्खणविहिं जाणावित्ता, पाणाइवाय विरमणाईणि वयाणि सभावणाइं साइयाराणि कहिय......। ___- तब आवश्यक योग का तप करे। फिर मांडलिक योग के सात आयंबिल करें। तत्पश्चात् दशवैकालिक योग का तप करके उपस्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा करें। धम्मो मंगल के प्रथम अध्ययन से लेकर छज्जीवणिया चतुर्थ अध्ययन पर्यन्त पढाकर, उसका अर्थ बतलाकर, पृथ्वीकायादि जीव रक्षण विधि समझा कर, प्राणातिपात विरमण आदि व्रत भावना व अतिचार सहित बताकर.. फिर बड़ी दीक्षा प्रदान करें, जिसकी विधि इस प्रकार है....। ___ इस संबंध में तपागच्छ की परम्परा कुछ भिन्न जान पड़ती है। सेन प्रश्न के 470 वें प्रश्नोत्तर में बड़ी दीक्षा होने के बाद मांडलिक योग कराये जाने का उल्लेख है। उन्होंने जोर देकर लिखा है कि दशवैकालिक योग हो जाने पर भी बड़ी दीक्षा हुए बिना मांडलिक योग के सात आयंबिल नहीं कराये जा सकते। उन्होंने इस हेतु योगविधि के प्रमाण का उल्लेख किया है। आचार दिनकर में दशवकालिक के अध्ययन के प्रति बहुत ही अधिक जोर दिया है प्रज्ञाहीनस्यापि दशवैकालिकाध्ययनचतुष्क-पाठमन्तरेण नोत्थापना। __. अर्थात् अल्पबुद्धि वाले को भी दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन पढ़े बिना उत्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा नहीं दी जा सकती है। पूर्व में आचारांग का अध्ययन करके ही बड़ी दीक्षा दी जाती थी। दशवैकालिक सूत्र की रचना के बाद आचारांग की अपेक्षा सरल, सुबोध संकलन होने से दशवैकालिक सूत्र को महत्व मिला और उपस्थापना के लिये आचारांग के स्थान पर इसका अध्ययन अनिवार्य कर दिया गया। योग विधि / 5 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस तथ्य का प्रमाण व्यवहार भाष्य के तीसरे उद्देशक की 174वीं गाथा प्रस्तुत करती है पुव्वं सत्थपरिणा, अधीयपढियाइ होउ उवट्ठवणा। इण्हिं छज्जीवणया किं सा उ न होउ उवट्ठवणा174॥ इस गाथा की टीका करते हुए आचार्य मलयगिरि फरमाते हैं पूर्वं शस्त्रपरिज्ञायामाचारांगान्तर्गतायामर्थतो ज्ञातायां पठितायां सूत्रतः उपस्थापना अभूत्। इदानीं पुनः सा उपस्थापना किं षट्जीवनिकायां दशवैकालिकान्तर्गतायामधीतायां पठितायां च न भवत्येवेत्यर्थः॥ __ - अर्थात् पूर्व में आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन शस्त्र परिज्ञा अर्थ सहित पढने पर उपस्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा प्रदान की जाती थी। किन्तु अभी दशवकालिक सूत्र के षट्जीवनिकाय अध्ययन पढकर उपस्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा प्रदान की जाती है। इन शास्त्र प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि आवश्यक सूत्र एवं दशवैकालिक सूत्र के योगोद्वहन किये बिना बड़ी दीक्षा हो ही नहीं सकती। परन्तु वर्तमान में खरतरगच्छ की परम्परा में दशवकालिक सूत्र के योगोद्वहन का बड़ी दीक्षा के साथ कोई संबंध नहीं रहा है। बड़ी दीक्षा हेतु आवश्यक योगोद्वहन को ही अनिवार्य माना जाता है। मांडलिक योग सांभोगिक व्यवहार के लिये कराये जाते हैं। इसमें भी समय समय पर सुविधानुसार परिवर्तन किये गये हैं। शास्त्रों के अनुसार तो आवश्यक योग के 8 दिन तथा दशवकालिक के 15 दिन अर्थात् 23 दिन के योगोद्वहन होने पर ही बड़ी दीक्षा होनी चाहिये। परन्तु वर्तमान में कई साधु साध्वियों की लघु दीक्षा होते ही तीसरे दिन बड़ी दीक्षा करा दी जाती है तथा बाद में योगोद्वहन चलता रहता है। यह सिद्धान्त विरुद्ध भी है और परम्परा विरुद्ध भी! कभी कभार किसी गीतार्थ आचार्य ने अपवाद स्वरूप मलमास आदि लगने के कारण, मुहूर्त न आने की स्थिति में परिस्थितिवश अपरिहार्य कारणों से जल्दी में बड़ी दीक्षा करा भी दी हो, तो भी वह परम्परा नहीं बन सकती। उसमें भी आवश्यक योग तो अनिवार्य है ही। विधानानुसार जल्दी से जल्दी अपवाद स्वरूप दशवैकालिक योगोद्वहन से पूर्व आवश्यक योग पूर्ण होने पर अर्थात् 9वें दिन बड़ी दीक्षा हो सकती है। तपागच्छ के एतद्विषयक ग्रन्थों में जल्दी से जल्दी 13वें दिन बड़ी दीक्षा 6 / योग विधि Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कराने का विधान है। आवश्यक एवं दशवैकालिक योगोद्वहन होने के बाद किसी कारणवश बड़ी दीक्षा नहीं हो पाई हो तो योगोद्रहन से बाहर आने के बाद छह माह के अन्दर अन्दर बड़ी दीक्षा अनिवार्य होती हैं। यदि छह महिने में बड़ी दीक्षा नहीं हो पाती तो योगोद्वहन पुनः करने होते हैं । " विधिमार्गप्रपा में इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार उपलब्ध होता हैउट्ठावणा जहन्नओ सत्तराइदिएहिं सा पुण पुव्वोवट्ठावियपुराणस्स कीर । मज्झिमओ चउहिं मासेहिं, सा य अणहिज्जओ मंदसद्धस्स य। उक्कोसओ छम्मासेहिं, सा य दुम्मेहस्स । अर्थात् जघन्य से सात दिन के बाद उपस्थापना हो सकती है। लेकिन इतनी शीघ्र उपस्थापना उसी की हो सकती है, जो पूर्व में उपस्थापित हो और कारणवश उसकी पुनः उपस्थापना करनी पडी हो । मध्यम से चार मास में उपस्थापना होती है। यह सामान्यबुद्धि वाले साधुओं के लिये हैं। जो अत्यन्त मंदबुद्धि हो, उनकी उपस्थापना उत्कृष्ट से छह मास में होती है। योग तप आवश्यक एवं दशवैकालिक सूत्र के तप के संदर्भ में भी परम्परा भेद पाया जाता है। विधि मार्ग प्रपा में सूत्र के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के दिन आयंबिल करने का विधान बताया गया है, शेष दिनों में निर्विकृतिक करनी चाहिये। यह विधान भगवती, प्रश्नव्याकरण एवं महानिशीथ को छोडकर हर सूत्र के योग में लागू होता है। सुयक्खंधस्स अंगस्स य उद्देसे समुद्देसे अणुण्णाए य आयंबिलं । अन्नदिणेसु निव्वीयं । एवं सव्वेजोगेसु नेयं, भगवई - पण्हावागरणमहानिसीहवज्जं। अन्नसामायारीसु पुण निव्वियंतरियाणि आयंबिलाणि चेव कीरति । आचार्य जिनप्रभसूरि ने विधि मार्गप्रपा अन्य समाचारी का वर्णन करते हुए ये भी लिखा है कि अन्यत्र एकान्तर आयंबिल और निर्विकृतिक से भी योगोद्वहन होते हैं। आचार दिनकर में आचार्य वर्धमानसूरि ने एकान्तर आयंबिल और निर्विकृतिक तप से योगोद्वहन करने का लिखा है। - आचार दिनकर, प्रथम विभाग, पत्र 92/93 वर्तमान में खरतरगच्छ की परम्परा में विधिमार्गप्रपा के आधार पर तपोविधि कराई जाती है। सूत्र के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के दिन आयंबिल योग विधि / 7 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कराया जाता है तथा उस सूत्र के अध्ययनादि के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा आदि के दिन निर्विकृतिक तप कराया जाता है। दीक्षा विधि बड़ी दीक्षा की विधियाँ तो प्रायः एक सी हैं। खरतरगच्छ की सभी परम्पराओं में एक जैसी विधि प्रचलित है। परन्तु छोटी दीक्षा की विधि में छोटे छोटे समाचारी भेद नजर आते हैं। ___. लघु दीक्षा विधि में आचार दिनकर का यह उल्लेख जानने योग्य है कि पहले तीन बार सम्यक्त्व सामायिक दंडक उच्चराया जाता है। फिर देशविरति सामायिक दंडक तीन बार उच्चराया जाता है फिर उसे सर्वविरति सामायिक दंडक तीन बार उच्चराया जाता है - ततश्विनमस्कारं पठित्वा गुरूणा सह शिष्यः सम्यक्त्व सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति पुनस्तयैव युक्त्या देशविरति सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति पुनस्तयैव युक्त्या सर्वविरति सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति। वर्तमान में यह परम्परा नहीं है। वर्तमान में पूर्व में यदि दीक्षार्थी ने विधि पूर्वक सम्यक्त्व आरोपण विधि नहीं की है तथा सम्यक्त्व नहीं उच्चरा है तो उसे तीन बार सम्यक्त्व सामायिक दंडक उच्चरा करके सर्वविरति दंडक उच्चराया जाता है। परन्तु देशविरति सामायिक दंडक उच्चराने का विधान तो और किसी भी ग्रन्थ में नहीं है। विधि मार्गप्रपा, समाचारी शतक आदि समाचारी विधि ग्रन्थों में देशविरति सामायिक दंडक उच्चराने का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वर्तमान में परम्परा भी यही है कि देशविरति सामायिक दंडक नहीं उच्चराया जाता। ___दीक्षा विधि के प्रारंभ में वैरागी भाई बहिन की परीक्षा लेने का विधान विधिप्रपादि ग्रन्थों में देखा जाता है। उसकी विधि इस प्रकार की जाती है कि दीक्षार्थी भाई या बहिन को परमात्मा के समवशरण के आगे खडा किया जाता है। फिर उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी जाती है। फिर उसके दोनों हाथों में चावल अर्पण कर उसे कहा जाता है कि वह चावलों को ठीक भगवान् पर उछालें। यदि चावल नंदी में अर्थात् समवशरण में गिरते हैं तो उसे योग्य माना जाता है। और यदि चावल बाहर गिरते हैं तो उसे अयोग्य माना जाता है। हाँलाकि शास्त्रों में यह विधि है, परन्तु यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती और 8 / योग विधि Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कभी निशाना ख्याल नहीं रख पाने के कारण यदि चावल बाहर गिरते हैं तो लोगों के सामने हँसी होती है । मन में वहम भी रह जाता है। दीक्षार्थी भी हीनभावों से भर जाता है। इस कारण वर्तमान में हम यह विधि नहीं कराते हैं। तब कई पुराने लोगों द्वारा कहा भी जाता है कि महाराज ! यह विधि क्यों नहीं कराते ! हकीकत में नहीं कराने का विधान भी शास्त्र आधारित ही है। विधिमार्गप्रपा का यह विधान द्रष्टव्य है जे पुण परंपरागयसावयकुलप्पसूया तेसिं परिक्खाकरणे न नियमो । अर्थात् जो परंपरागत श्रावक कुल में जन्मा है, उसके लिये परीक्षा का नियम नहीं है। देववंदन की विधि में चार स्तुति के बाद वर्तमान में णमुत्थुणं बोलकर श्री शान्तिनाथ देवाधिदेव की आराधना का कायोत्सर्ग किया जाता है। जबकि आचार दिनकर में चार स्तुति के बाद सीधे शान्तिनाथ प्रभु का कायोत्सर्ग करने का लिखा है । णमुत्थुणं करने का उल्लेख नहीं है । यह कायोत्सर्ग भी वर्तमान में एक नवकार का कराया जाता है, जबकि आचार दिनकर में 27 श्वासोच्छ्वास अर्थात् सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स या चार नवकार का विधान है। आचार दिनकर में दीक्षा विधि की पूर्णता के बाद धर्मोपदेश का विधान किया है, और तत्पश्चात् सर्वविरति सामायिक आरोपण का चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करने का विधान है। ततः सर्वविरति सामायिकारोवणिअं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ.... । कायोत्सर्गं चतुर्विंशतिस्तवचतुष्टयचिन्तनं पारयित्वा ..... । - आचार दिनकर भाग प्रथम पत्र 78 यह कायोत्सर्ग वर्तमान परम्परा में नामकरण से पूर्व एक लोगस्स का ही कराया जाता है। विधि मार्ग प्रपा तथा समाचारी शतक में आरोपण निमित्त एक लोगस्स के कायोत्सर्ग का ही विधान है तथा यह कायोत्सर्ग नामकरण, स्थिरीकरण के पूर्व ही कराने का उल्लेख है। आचार दिनकर में दीक्षा विधि में थिरीकरणत्थं का कायोत्सर्ग करने के बाद शक्रस्तव बोलने का विधान है। यह विधान विधिमार्गप्रपा आदि अन्य ग्रन्थों में नहीं है। वर्तमान में परम्परा में भी नहीं है। इसी प्रकार दिग्बंध से पूर्व शिष्य को चाहिये कि वह गुरू महाराज की तीन प्रदक्षिणा देते हुए वंदना करें, साथ ही योग विधि / 9 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यथायोग्य अन्य साधुओं को भी वंदना करें ततः शिष्यो गुरु त्रिप्रदक्षिणीकृत्य वन्दते यथार्हमन्यसाधूनपि । विधिमार्गप्रपादि ग्रन्थों में दिग्बंध से पूर्व ही वंदना करने का विधान है परन्तु गुरू महाराज की तीन प्रदक्षिणा देने का विधान नहीं है। नामकरण के समय साधु साध्वी शिष्य पर वासक्षेप डालते हैं जबकि श्रावक श्राविका अक्षतों से बधाते हैं परन्तु आचार दिनकर में लिखा है कि साधु ही वासक्षेप डालने का अधिकारी है। साध्वीजी म. श्रावक एवं श्राविकाएं अभिमंत्रित अक्षत डालें " ततो गुरूः साधूनां करे अभिमन्त्रितवासान् ददाति साध्वी श्रावकश्राविकाणां करेऽभिमन्त्रिताक्षतांश्च । विधिमार्गप्रपा में यह वर्णन अस्पष्ट है संघो य तस्स सिरे वासअक्खयनिक्खेवं करे । अर्थात् संघ उसके सिर पर वास एवं अक्षत का निक्षेप करें। यहाँ संघ से तात्पर्य साधु, साध्वी, श्रावक श्राविका है। इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि कौन वासक्षेप करें और कौन अक्षतक्षेप करें। 1 विधि मार्गप्रपा के पवज्जाविही नामक सोलहवें प्रकरण में दीक्षाविधि की पूर्णता के पश्चात् जो धर्मोपदेश दिया जाता है, उस संदर्भ में चत्तारि परमंगाणि. यह गाथा देकर उत्तराध्ययन सूत्र का तीसरा चाउरंगिज्जं, अथवा पवज्जा विहाणं अथवा जयं चरे जयं चिट्ठे का उपदेश दिये जाने का उल्लेख किया है। इच्चाइ उत्तरज्झयणाणं तइयज्झयणं चाउरंगिज्जं वक्खाणइ । पवज्जाविहाणं वा । जयं चरे जयं चिट्ठे इच्चाइयं वा । समाचारी शतक में महोपाध्याय श्री समयसुंदरजी महाराज ने भी इसे पुष्ट किया है। जबकि आचार दिनकर के अनुसार दशवैकालिक सूत्र का तीसरा क्षुल्लकाचार अध्ययन अवश्यमेव सुनाने का आग्रह किया है। अत्र च नियमा दशवैकालिकक्षुल्लकाचारकथाध्ययनयुक्त्या सामायिकसाधूनामाचारः क्षुल्लकानामप्ययमेवाचार: क्षुल्लकाचार कथाध्ययनं यथा - संजमे.... । वर्तमान परम्परा में ऐसा उपदेश अनिवार्य नहीं है। समयोचित उपदेश दिया भी जाता है, समयाभाव हो तो नहीं भी दिया जाता है। प्रायः तो नहीं ही दिया 10 / योग विधि Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाता है। जो कुछ उपदेश देना होता है, वह प्रारंभ में या विधि के मध्य में दे दिया जाता है। विधि मार्गप्रपा में आचार्य जिनप्रभसूरि ने धर्मोपदेश की चर्चा में यह भी लिखा है कि सो वि संवेगाइसयओ तहा सुणेइ, जहा अन्नो वि को वि पव्वज्जइ। अर्थात् वह शिष्य इस प्रकार संवेग रस में डूब कर उपदेश श्रवण करे कि उसे देख कर और उपदेश श्रवण कर कोई अन्य भी प्रव्रजित हो सकें । यही बात समाचारी शतक के दीक्षादानविधि के 86वें अधिकार में लिखी है। वैसे महोपाध्याय श्री समयसुंदरजी म. ने इस 86वें प्रश्न के उत्तर के प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया है कि यह विधि विधिमार्गप्रपा के आधार पर संस्कृत भाषा में अनुदित करके लिख रहा हूँ। एक विशेष तथ्य यह है कि वर्तमान में नामकरण एवं दिग्बंध को एक ही मान लिया गया है। जबकि विधि ग्रन्थों में ये दोनों अलग विधियाँ है। नामकरण में मात्र नये नाम की घोषणा की जाती है। जबकि दिग्बंध में गुरू महाराज अपनी पूरी परम्परा यथा- कोटिक गण, वज्र शाखा, चन्द्र कुल, खरतरबिरूद आदि का वांचन करते हुए नूतन साधु या साध्वी का नाम घोषित करते हुए उसे अपने समुदाय में सम्मिलित करने की घोषणा करते हैं। दिग्बंध का अर्थ होता है नूतन साधु या साध्वी को अपनी परम्परा से जोड़ना! विधिमार्गप्रपा, आचार दिनकर, समाचारी शतक आदि विधि ग्रन्थों में प्रव्रज्या विधि अर्थात् लघु दीक्षा विधि में दिग्बंध करने का विधान नहीं लिखा है। उपस्थापना विधि अर्थात् बड़ी दीक्षा में ही दिग्बंध करने का विधान किया है। यह प्रश्न होता है कि फिर छोटी दीक्षा में दिग्बंध क्यों नहीं करना चाहिये ! तो इसका उत्तर स्पष्ट है कि छोटी दीक्षा मात्र सामायिक चारित्र है । वह कोई भी सकता है और अवधि पूर्ण होने पर उपस्थापना कर छेदोपस्थापनीय चारित्र में भी प्रवेश कर सकता है और चारित्र पालन की असमर्थता में गृहवास भी स्वीकार कर सकता है। इसी कारण छोटी दीक्षा होने के बाद उसे साधु गण अपनी मांडली में सम्मिलित नहीं करते । जब उसे अपनी मांडली में शामिल किया ही नहीं है तो दिग्बंध कैसा ! क्योंकि दिग्बंध का अर्थ तो उसे अपने समुदाय में सम्मिलित करना है। यह युक्तियुक्त ही है कि बड़ी दीक्षा के समय ही समुदाय में सम्मिलित करते हुए दिग्बंध किया जाता है। दिग्बंध के बिना वह समुदाय में सम्मिलित नहीं माना जाता है। इसी कारण साधु साध्वियों के पारस्परिक वंदन व्यवहार में उपस्थापना योग विधि / 11 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को ही महत्व दिया जाता है। किसी साधु या साध्वी की लघु दीक्षा पूर्व में हुई हो, परन्तु उपस्थापना यदि पहले हुई है तो वही बडा माना जायेगा। उपस्थापना के आधार पर ही दीक्षा पर्याय की गणना की जाती है। हालाकि वर्तमान में छोटी दीक्षा के समय ही दिग्बंध का आदेश लिये बिना नामस्थापना के अन्तर्गत दिग्बंध किया जाता है। ऐसा कब से प्रारंभ हुआ, कहना मुश्किल प्रतीत होता है। जिनकल्प का उल्लेख - जिनकल्प का विच्छेद हो गया है, ऐसी घोषणा होने पर भी आचार दिनकर में प्रव्रज्याविधि के अन्तर्गत जिनकल्प दीक्षा विधि भी प्रस्तुत की है। यह आश्चर्य का विषय है। इससे कदाचित् यह अनुमान भी हो सकता है कि आचार दिनकरकार के समय में जिनकल्प प्रारंभ था। बाकी विधि तो समान ही कही है, कहीं कहीं अन्तर है। जैसे चोटी ग्रहण के स्थान पर जिनकल्पी दीक्षा विधि में संपूर्ण लोच होता है। वेष ग्रहण में मात्र तृणमय एक वस्त्रग्रहण किया जाता है। रजोहरण का निर्माण चामर से या मयूरपिच्छ से होता है। योगोद्वहन विधि में संघट्ट ग्रहण गृहस्थ के घर में ही होता है। हाथ रूप पात्र में ही भोजन होता है। तथा जिनकल्पिनां प्रव्रज्यायामयं विशेषः अट्टाग्रहणस्थाने संपूर्णलोचकरणं प्रथमं मुण्डनं नास्ति। वेषग्रहणस्थाने तृणमयैकवस्त्रग्रहणं रजोहरणं चामरमयूरपिच्छमयं शेषं तथैव उत्थापनायोगोद्वहनादौ गृहस्थगृह एव संघट्टादानं संघट्ट प्रतिक्रमणं पाणिपात्रभोजनं च। शेषः सर्वोऽपि विधिस्तथैव। खरतरगच्छ की परम्परा में वि. 1363 विजयादशमी के दिन आचार्य श्री जिनप्रभसूरि ने विधिमार्गप्रपा की रचना करके गच्छ की सुविहित शास्त्रीय विधियों का व्यवस्थित रूप से आलेखन किया। उसके 105 वर्षों के बाद आचार्य वर्धमानसूरि ने वि. 1468 में आचार दिनकर नामक महाग्रन्थ लिखा। विधि विषयक इस प्रकार के ग्रन्थ अन्यत्र दुर्लभ है। प्रश्न है कि जब दोनों आचार्य खरतरगच्छ की ही परम्परा के थे, तब विधि प्रणालिका में अन्तर किस कारण नजर आ रहा है। चिंतन करने पर इसका कारण यही ज्ञात होता है कि दोनों आचार्य खरतरगच्छ की परम्परा के होने पर भी ये पृथक् पृथक् शाखाओं के थे। आचार्य जिनप्रभसूरि लघु खरतर शाखा के आचार्य थे तो आचार्य वर्धमानसूरि रूद्रपल्लीय 12 / योग विधि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाखा के थे। समयसुन्दरजी महाराज थे तो बृहद् खरतरगच्छ की परम्परा के परन्तु जीवन के उत्तरकाल में जब गच्छ में मतभेद हुआ तो इन्हें खिन्न मन से अपने शिष्यों के हठाग्रह के कारण आचार्य जिनराजसूरि को छोडकर आचार्य शाखा के आचार्य जिनसागरसूरि के पक्ष को स्वीकार करना पड़ा था। परन्तु इस शाखाभेद से समाचारी में कोई भेद नहीं हआ था। विधिमार्गप्रपा और आचार दिनकर आदि ग्रन्थों का हर गच्छ में आदर रहा है। आचार्य हीरविजयसरि लिखित हीर प्रश्न, आचार्य सेनसूरि द्वारा लिखित सेन प्रश्न आदि ग्रन्थों में कई स्थानों पर इन ग्रन्थों को प्रमाणभूत मानकर इनका उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत विधि संकलन में इन सभी ग्रन्थों व परम्पराओं का सहयोग लिया गया है। जहाँ कहीं मतभेद नजर आया है, वहाँ वृहत् खरतरगच्छ शाखा के समाचारी शतक एवं इस परम्परा द्वारा पुरस्कृत योग विधि की हस्तलिखित प्रतियों को केन्द्र में रख कर तदनुसार विधि संकलन किया गया है।। ___मैंने देखा है कि अपनी परम्परा में अनुयोग विधि का प्रायः प्रचलन नहीं है। जबकि समाचारी शतक आदि ग्रन्थों में अनुयोग विधि का स्वतंत्र रूप से उल्लेख करके वांचना देने का विधान है। इस संकलन में वांचना विधि भी दी गई है। वांचना के अभाव में योगोद्वहन का उद्देश्य सार्थक भी नहीं होता। जैसे उपधान विधि में तप की पूर्णाहुति पर उस उस सूत्र की वांचना दी जाती है, उसी प्रकार आवश्यक, दशवैकालिक आदि सूत्रों के योगोद्वहन में वांचना दी ही जानी चाहिये। यथासंभव अर्थ सहित ही वांचना दी जानी चाहिये। यदि कारणवश अर्थ वांचना नहीं दी जा सके तो भी 'सूत्र वांचना तो देनी ही चाहिये। वर्षों से यह भावना थी कि खरतरगच्छ की परम्परा के अनुसार छोटी बड़ी दीक्षा विधि की एक प्रामाणिक पुस्तक का प्रकाशन हो। छोटी दीक्षा विधि का प्रकाशन पूर्व में आचार्य जिनआनन्दसागरसूरि द्वारा पुस्तक रूप में तथा प्रताकार में किया गया था। परन्तु बड़ी दीक्षा विधि का प्रकाशन अद्यावधि नहीं हुआ था। चूंकि खरतरगच्छ में साधु समुदाय बहुत अल्प रहा है। फिर उसमें बड़ी दीक्षा कराने का अधिकार पूर्व में मात्र गच्छनायक के पास ही सुरक्षित था। हर साधु बड़ी दीक्षा नहीं करा सकता था। वर्तमान में विहार क्षेत्र बढ़ा है। दीक्षाएं भी लगातार हो रही है। ऐसी स्थिति में ऐसी प्रामाणिक विधि ग्रन्थ की तीव्र आवश्यकता महसूस की गई। अभी तक योग विधि / 13 - Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो साधु हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही बड़ी दीक्षा आदि विधि कराते थे। __ कई मुनियों का, विशेष रूप से मेरे लघु गुरू बन्धु मुनि मनोज्ञसागरजी का विशेष अनुरोध रहा कि बड़ी दीक्षा की कोई सरल पुस्तक प्रकाशित की जाये। यह उसी का परिणाम है। इसे सरल बनाने के कारण पुस्तक थोडी बड़ी जरूर हो गई है। पर हर साधु के लिये बहुत ही उपयोगी बनेगी। इस पुस्तक के लिये प्रमाणों के संकलन में बहिन साध्वी डॉ. विद्युत्प्रभा का पूर्ण योगदान रहा है। जो मेरे पुरूषार्थ की पूंजी भी है और प्रेरणा भी है। सामग्री के संकलन, पाण्डुलिपि निर्माण, प्रूफ संशोधन आदि में मुनि मनितप्रभ का अनुमोदनीय पुरूषार्थ रहा है। ( उपाध्याय मणिप्रभसागर) श्री जिनकुशलसूरि जैन आराधना भवन, बैंगलोर गुरू सप्तमी पर्व, मिगसर वदि 7, वि.सं. 2061 14 / योग विधि Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ लघु दीक्षा विधि सर्वप्रथम नंदी रचना करें। परमात्मा का समवशवरण स्थापित करें। उसमें चौमुख परमात्मा बिराजमान करें। समवशरण के उपर चंदोवा बांधे । समवशरण की स्थापना से पूर्व उस भूमि का शुद्धिकरण करना चाहिये । • शुद्धिकरण विधि ओम् ह्रीँ वायुकुमारेभ्यः स्वाहा । श्रावक शुद्ध वस्त्र से भूमि का प्रमार्जन करें। ओम् ह्रीँ मेघकुमारेभ्यः स्वाहा । श्रावक उस भूमि पर जल का छिडकाव ओम् ह्रीँ ऋतुदेवीभ्यः स्वाहा । श्रावक पुष्पवृष्टि करे । ओम् ह्रीँ अग्निकुमारेभ्यः स्वाहा । श्रावक धूप करे । ओम् ह्रीँ वैमानिक - ज्योतिष्क - भवनवासीदेवेभ्यः स्वाहा। यह मंत्र 'बोलकर समवशरण की स्थापना करें। परमात्मा की चारों प्रतिमा पर तीन बार आह्वान मंत्र बोलते हुए वासक्षेप करें। करें आह्वान मंत्र ओम् ह्रीँ नमो अर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यार्चिताय अष्टदिक्कुमारिपरिपूजिताय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा । परमात्मा पर वासक्षेप करने के उपरान्त समवशरण के मध्य नीचे चावल का स्वस्तिक करें, नारियल, गुड़ और सवा रुपया चढ़ायें। चारों ओर अखण्ड दीप की स्थापना करें। चारों दिशाओं में चावल का स्वस्तिक करें, गुड़, नारियल, योग विधि / 15 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुपया चढायें। इसके बाद दशदिक्पालों की दशों दिशाओं में स्थापना करें व उनका पूजन करें। पूजन में मंत्र बोलकर क्रमश: जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप चढाकर पान में अक्षत, नैवेद्य, फल आदि लेकर चढ़ायें। पूर्व दिशा- ओम् ह्रीं इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। __अग्निकोण- ओम् ह्रौं अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। दक्षिण दिशा- ओम् ह्री यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। नैर्ऋत्य कोण- ओम् ह्रीं नैर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ___ पश्चिम दिशा- ओम् ह्रीं वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। वायव्य कोण- ओम् ह्रीं वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। उत्तर दिशा- ओम् ह्रीं कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ईशान कोण- ओम् ह्रीं ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ___ऊर्ध्व दिशा- ओम् ह्रीं ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। अधो दिशा- ओम् ह्रीं नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ आगच्छ स्वाहा। दशों दिशाओं में उक्त मंत्र बोलते हुए उन दिशाओं में जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल आदि क्रमशः चढायें। (इति नंदी रचना विधि) दीक्षा विधि ठवणी पर अनावृत्त स्थापनाजी बिराजमान करें। सर्व प्रथम दीक्षार्थी का परिवार गुरू महाराज से दीक्षा देने की प्रार्थना करे। इच्छामि खमासमणो. बोलकर कहे- इच्छाकारेण सचित्तभिक्खं गिह। 16 / योग विधि - Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- इच्छामो वड्ढमाणजोगेण । दीक्षार्थी - खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं पव्वावेह | गुरू- पव्वावेमो । दीक्षार्थी - इच्छं । दीक्षार्थी भाई अथवा बहिन उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख रखे । दीक्षार्थी के मिले हुए दोनों हाथों पर उसका भाई चंदन का स्वस्तिक करे। फिर वह दीक्षार्थी के हाथ में चावल, सवा रुपया और नारियल अर्पण करे। दीक्षार्थी हाथ में नारियल आदि लेकर नवकार मंत्र गिनते हुए परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें। पूर्ण होने पर नारियल परमात्मा के आगे चढादें । फिर क्रिया का प्रारंभ करें। वज्रपंजर द्वारा शुद्धिकरण करें। ओम् परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम् ॥1॥ ओम् नमो अरिहंताणं; शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्का, शिला वज्रमयी तले ॥ 4 ॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवई मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ||6|| महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ 7 ॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । " तस्य न स्याद्भयं व्याधि - राधिश्चापि कदाचन ॥8॥ खमा देकर इरियावही तस्स. अन्नत्थ. बोलकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग कर प्रकट लोगस्स कहें। खमा देकर मुहपत्ति का पडिलेहण करें। पुजारी से परमात्मा पर पडदा करें। दीक्षार्थी स्थापनाजी की ओर मुख करके दो वांदणा दें। पडदा दूर करें। दीक्षार्थी - खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं काउसग्गं करावेह | योग विधि / 17 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- करावेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। प्रकट लोगस्स कहें। यह कायोत्सर्ग गुरू महाराज भी करें। दीक्षार्थी खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं वासक्खेवं करेह। गुरू- करेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। दीक्षार्थी नवकार मंत्र गिनते हुए परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें और गुरू महाराज से तीन बार वासक्षेप लें। गुरू महाराज वर्धमान विद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप डाले। , दीक्षार्थी खमा. देकर कहें- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं चेइयं वंदावेह। गुरू- वंदावेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। गुरू महाराज भी देववंदन करें। खमा, इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूँजी। इच्छं। चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिन। प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ जंकिचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ, बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः । तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविजविघातिने॥1॥ 18 / योग विधि Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोगस्स. सव्वलोए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः॥2॥ पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें.. नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनान्नवतु मंगलेभ्यः।। नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काहसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥5॥ श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिममनीय मे॥6॥ श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति सुवर्णशालिनी देयाद- द्वादशांगी जिनोदभवा। . श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्॥7॥ श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि कोउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. योग विधि / 19 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमोऽर्हत्. स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवताः॥9॥ श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता। सिते सिंह स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम्॥10॥ श्री पद्मावती देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा। क्षद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावलिः॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. . नमोऽर्हत. स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सन्निभा। चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम्॥12॥ श्री अच्छुप्तादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत. स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः। तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे।13॥ श्री कुबेरा देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका। श्री कुबेरा नरारूढा., सुतांकावतु वो भयात्।।14।। श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत. स्तुति ब्रह्मशान्तिः स मां पाया- दपायाद् वीरसेवकः। श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा15॥ श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति- . या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा। श्री गोत्रदेवतारक्षा, सा करोतु नतांगिनाम्॥16॥ श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं 20 / योग विधि Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः। देवा देव्यस्तदन्येपि, संघं रक्षन्त्वपायतः॥17॥ श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें श्रीमद् विमानमारूढा यक्षमातंग संगता। सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी॥18॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोले, फिर बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर यह स्तोत्र पढ़े ओम् परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्। आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्॥1॥ ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्। ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम्॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम्॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले॥4॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगल। वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे॥6॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः।।7॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याभयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन॥8॥ । . जयवीयराय बोलें। फिर गुरू महाराज चारित्र के उपकरणों को वर्धमान विद्या से अभिमंत्रित करें। उपकरण अभिमंत्रण विधि रजोहरण- ओम् आँ ह्रीं क्रौँ अर्हते नमः वस्त्र- ओम् आँ ह्रीं क्रौं ते नमः योग विधि / 21 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दण्ड- ओम् ह्रीं अवतर अक्तर सोमे सोमे कुरू कुरू ओम् कवली कः क्षः स्वाहा शेष उपकरण 'वर्धमान विद्या' से अभिमंत्रित करें। फिर दीक्षार्थी के परिवार जन ओघा व मुहपत्ति गुरू महाराज को बहोराये । दीक्षार्थी खमासमण देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं रयहरणाई वेसं समप्पेह | गुरू महाराज तीन नवकार मंत्र गिनकर 'सुम्गहियं करेह' कहकर दशियाँ दीक्षार्थी के दायीं ओर रखते हुए रजोहरण व मुहपत्ति अर्पण करें। दीक्षार्थी रजोहरण को प्राप्त कर आनंद उत्सव को अभिव्यक्त करता हुआ परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें। पश्चात् झालर वादन के साथ कक्ष में जाकर सर्व आभूषणों, वस्त्रों को उतारे । चोटी पर कुछ केश रखते हुए क्षुरमुंडन करवा कर स्नान आदि करके साधु वेष धारण करे। साधु वेष धारण करने के बाद उसके मस्तिष्क पर चंदन से स्वस्तिक करें। झालर वादन के साथ मंडप में आवें । गुरू महाराज को मत्थएण वंदामि कहकर वंदना करें। धर्मदण्ड आदि अलग कर आसन बिछाकर खमासमणा देकर कहें- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं लटिं गिण्ह । गुरू- गिण्हामो । शिष्य- इच्छं । गुरू महाराज चोटी का लुंचन करें। शिष्य खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं इरियावहियं पडिक्कमाचेह । गुरू- पडिक्कमावेमो । शिष्य- इच्छं । कहकर इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. बोलकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। प्रकट लोगस्स कहें। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। पुजारी से परमात्मा पर पडदा करें। स्थापनाजी की ओर मुख करके दो वांदणा दें। पडदा दूर करें। शिष्य खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं काउसग्गं करावेह । गुरू- करावेमो । शिष्य- इच्छं । शिष्य खमा सम्मत्त साम्माइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ. कहकर गुरू म एवं शिष्य दोनों सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग कर प्रकट लोगस्स कहें। 22 / योग विधि Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्व में यदि सम्यक्त्व का ग्रहण किया हो तो निम्नलिखित विधि करनी आवश्यक नहीं है। यदि नहीं किया हो तो करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयसुत्तं उच्चरावेह। गुरू- उच्चरावेमो। शिष्य- इच्छं।। हाथ जोड़ कर सिर झुका कर यह पाठ तीन बार सुने। अहन्नं भंते तुम्हाणं समीवे मिच्छताओ पडिक्कमामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि तं जहा दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ दव्वओणं मिच्छत्तकरणाई पच्चक्खामि सम्पत्तकरणाई उवसंपज्जामि नो मे कप्पइ अज्जप्पभिइ अन्नउत्थिय वा अनउत्थिय देवयाणिं वा अन्नउत्थिय परिग्गाहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्वा अणलत्तेणं आलइत्तए वा संलइत्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा खित्तओणं इहेवा अन्नत्य वा कालओणं जावज्जीवाए भावओणं जाव गहेणं गहिज्जामि जाव छलेणं न छलिज्जामि जाव सनिवाए णं नाभिभविग्जामि जाव अन्नेण वा केणइ परिणामवसेणं परिणामो मे न पडिवज्जइ ताव मे एयं सम्मदसणं अनत्य रायाभियोगेणं बलाभियोगेणं गणाभियोगेणं देवाभियोगेणं गुरूनिग्गहेणं वित्तिकतारेणं वोसिरामि। यह पाठ तीन बार गुरू महाराज उच्चरावे। शिष्य- वोसिरामि कहै। शुभ लग्नवेला आने पर शिष्य- खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सवविरइ-सामाइयसुत्तं उच्चरवेह। गुरू- उच्चरावेमो शिष्य- इच्छं। हाथ जोड़ कर सिर झुका कर यह पाठ तीन बार सुने। करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावजं जोगं पच्चक्खामि जावग्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अनं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। बाद में गुरू महाराज परमात्मा पर वासक्षेप करें। फिर वर्धमान विद्या से अक्षत अभिमंत्रित करे। - योग विधि / 23 - Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्धमान विद्या ओम् ह्रीं श्रीं एँ ओम् नमो अरहओ भगवओं महावीरस्स सिज्झउ मे भगवइ महइ महाविज्जा वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे ज विज जयंते अपराजिते सव्वट्ठसिद्धे अणेहिए महाणसे महाबले स्वाहा ओम् नमो पुलाकलद्धीणं ओम् नमो कुट्ठबुद्धीणं ओम् नमो बीयबुद्धीणं ओम् नमो पयाणुसारीणं ओम् नमो संभिन्नसोयाणं ओम् नमो उज्जुमइणं ओम् नमो विउलमइणं महाविज्जे मम वंछियं कुरु कुरु शत्रुन् निवारय निवारय वर्धमानस्वामिन् ठः ठः ठः स्वाहा । इस वर्धमान विद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप चावलों में मिलावें तथा सप्त मुद्राओं से 'ओम् ह्रीं श्रीं अर्हं ' ये अक्षर लिखते हुए उन चावलों को अभिमंत्रित करे। 1. पंच परमेष्ठि मुद्रा 2. कामधेनु मुद्रा 3. सौभाग्य मुद्रा 4. गरूड़ मुद्रा 5. पद्म मुद्रा 6. मुद्गर मुद्रा 7. हस्त मुद्रा । अभिमंत्रित इन चावलों को संघ में वितरित करें। शिष्य खमा. देकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर गुरू महाराज को विधिवत् द्वादशावर्तवंदन करे | वंदन करते समय प्रतिमाजी पर पड़दा करें। वंदन हो जाने के बाद पडदा हटा दें। शिष्य खमा. देकर कहे - इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवेह | गुरू- आरोवेमो । शिष्य- इच्छं । खमा देकर कहे - संदिसह किं भणामो । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य हत्ति । खमा इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवियं ! गुरू म. शिष्य के सिर पर वासक्षेप डालते हुए कहें- आरोवियं आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं गुरुगुणेहिं वड्ढाहि नित्थारगपारगो हो । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि । खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि! गुरू- पवेयह । शिष्य - इच्छं । कहकर शिष्य नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। साधु साध्वी उनके सिर पर वासक्षेप डालें तथा संघ उन अभिमंत्रित चावलों से बधाये। 24 / योग विधि Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. देकर शिष्य कहे- तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउसग्गं करेमि! गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्यं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। पारकर प्रकट लोगस्स कहें। खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अहं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं थिरीकरणत्यं काउसग्गं करावेह! गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं थिरीकरणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। पारकर प्रकट लोगस्स कहें। खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अहं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं निरूद्धतव करावेह! गुरू- करावेमो। शिष्य को उपवास का पचक्खाण करावें। यदि शक्ति न हो तो अपवाद स्वरूप आयंबिल भी कराया जा सकता है। खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं नामठवणं करेह! शिष्य परमात्मा की प्रदक्षिणा देकर गुरू महाराज के आगे खडा रहे। गुरू महाराज वासक्षेप डालते हुए नवकार बोलकर नामकरण करे। कोटिक गण, वज्र शाखा, चन्द्र कुल, खरतर बिरूद, महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म. का वासक्षेप, गणनायक श्री सुखसागरजी म. का समुदाय, वर्तमान में आचार्य/गणाधीश. ..... , उपाध्याय ......... पू. ....... के सानिध्य में, प्रवर्तिनी श्री ....., साक्षी विदुषी साध्वी रत्न श्री.. ........, साक्षी श्रावक प्रवर श्री.........., साक्षी सुश्राविका सौ........., ____ एवं सर्व संघ समक्षे मुनि श्री/साध्वी श्री......... के शिष्य, मुनि/साध्वी.........नाम नित्थारगपारगाहोइ। सभी साधुओं, साध्वियों से वासक्षेप ग्रहण करे। प्रदक्षिणा देते समय श्रावक श्राविका उन्हें अक्षतों से बधाये। इस प्रकार नामकरण की क्रिया तीन बार करें। नूतन साधु / साध्वी गुरू महाराज को विधिवत् वंदना करे। फिर नूतन साधु । साध्वी को सकल संघ विधिवत् वंदना करे। शिष्य खमा. पूर्वक कहे- इच्छाकारेण धम्मोवएसं करेह। = योग विधि / 25 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू-सुणेह। गुरू महाराज प्रासंगिक प्रवचन दें। बाद में नंदी का विधिपूर्वक विसर्जन करे। पहले दिक्पालों का विसर्जन करे। पूर्व दिशा- ओम् ह्रीं इन्द्राय सायुधाय सवाहमाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।। - अग्निकोण- ओम् ह्रीं अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। दक्षिण दिशा- ओम् ही यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। नैऋत्य कोण- ओम् ही नैऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। . पश्चिम दिशा- ओम् ह्रीं वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। वायव्य कोण- ओम् ह्रीं वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। उत्तर दिशा- ओम् ह्रीं कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। ईशान कोण- ओम् ह्रीं ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।। ऊर्ध्व दिशा- ओम् ह्रीं ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। . अधो दिशा- ओम् ह्रीं नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय. पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। फिर नंदी का विसर्जन करे- ओम् ही नमो अर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यार्चिताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। दीक्षा विधि पूर्ण होने के बाद जिनमंदिर जाकर विधिवत् चैत्यवंदन करे। तत्पश्चात् ईशान कोण में बैठकर नवकार मंत्र की एक माला फेरे। (इति दीक्षा विधि) 26 / योग विधि - Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक सूत्र योगोद्वहन विधि योगप्रवेश से पूर्व संध्या को की जाने वाली विधि शाम चौविहार करके क्रिया करें। स्थापनाचार्य जी खोल दें। खमा. इरिया. करें। खमा. इच्छा. सदि. भग. मुहपत्ति पडिलेहुँ, इच्छं कहकर मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं आवसग्ग जोग उक्खेवोजी। गुरू- उक्खेवामि शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं आवसग्ग जोग उक्खेवावणी वासनिक्खेव करोजी। गुरू- करेमि। शिष्य इच्छं। नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दे व तीन बार वासक्षेप करे। खपा. इच्छा. संवि. भग. तुम्हे अहं आवसग्ग जोग उक्खेवावणी देववंदावोजी। गुरू- वंदावेमि। शिष्य इच्छं। खमासमण देकर जयवीयराय तक चैत्यवंदन करे। खया. इच्छा. मंदि. भग. तुम्हे अम्हं आवसग्ग जोग उक्खेवावणी काउसग्म करावोजी। मुरू- करावेमि। शिष्य इच्छं अन्नत्थ कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। गुरू महाराज को वंदन करें व खमासमण देकर चौविहार के पचक्खाण लें। - - योग विधि / 27 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम दिन यह विधि समवशरण की रचना कर उसमें चौमुख परमात्मा को बिराजमान करके की जानी चाहिये। यदि संभव न हो तो स्थापनाचार्य जी के समक्ष करे। स्थापना जी खुला रखें। आसन बिछावें, कमली दूर करें। एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। खमा. इरियावही करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहूं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति की पडिलेहण करें। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी। गुरू- करेमि। शिष्य- इच्छं। कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करे। . खमा. इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी। गुरू- वंदावेमि। शिष्य- इच्छं। कहकर बायां घुटना ऊँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूंजी। इच्छं। चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं। प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। । श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ जंकिंचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽहत्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविजविघातिने॥1॥ लोगस्स. सव्वलोए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। 28 / योग विधि Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः ॥2॥ पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिना: । सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः । गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये ॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः । सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः । श्री वर्द्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनान्नवतु मंगलेभ्यः ॥4॥ नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोले-. श्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलेंरोगशोकादिभिर्दोषैरजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये ॥ 5 ॥ श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिमपनीय मे ॥16 ॥ श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति- सुवर्णशालिनी देयाद् - द्वादशांगी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम् ॥7॥ श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार नमोऽर्हत् स्तुति चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी । निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम् ॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति साधवः श्रावकादयः । जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवताः ॥१ ॥ योग विधि / 29 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता । सिते सिंहे स्थिता गौरी वितनोतु समीहितम् ॥10॥ · श्री पद्मावती देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति धराधिपतिपत्नी या देवी पद्मावती सदा । क्षुद्रोपद्रवतः सा मां पातु फुल्लत्फणावलिः ॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार नमोऽर्हत् स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सन्निभा । चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम् ॥12॥ श्री अच्छुप्तादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार नमोऽर्हत् स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः । तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे ॥13॥ श्री कुबेरा देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका । श्री कुबेरा नरारूढा, सुतांकावतु वो भयात् ॥14॥ श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति ब्रह्मशान्तिः स मां पाया दपायाद् वीरसेवकः । श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्त्तिः कृता निजा ॥ 15 ॥ श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा । श्री गोत्रदेवतारक्षां, सा करोतु नतांगिनाम् ॥16॥ श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः । देवा देव्यस्तदन्येपि, संघं रक्षन्त्वपायतः ॥17॥ 30 / योग विधि Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें श्रीमद् विमानमारूढा यक्षमातंग संगता। सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी॥18॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोले, फिर बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर यह स्तोत्र पढ़े ओम् परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम्। आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्॥1॥ ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्। ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम्॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम्॥७॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले॥३॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रपयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगल। वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे॥6॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः॥7॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन॥8॥ जयवीयराय बोलें। खमा. इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेहुँ। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो . वांदणा दें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंचं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र - - योग विधि / 31 - Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। . गुरू- सांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्यूँ इच्छं। शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। नाणं पंचविहं पत्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिज्जति नो समुद्धिसिन्जंति नो अणुनविनंति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्थयस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ। .. तीन प्रदक्षिणा दें। नीचे लिखा पाठ नाम पूर्वक बोलकर तीन बार वासक्षेप डालें। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च ......... साहुस्स/साहुणीए आवस्सग्गस्स उद्देसा नंदी पवत्तइ नित्थारगपारगाहोह। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। हर बार कहें। 32 / योग विधि Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतस्कंध उद्देस विधि ___1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। . 2. खमा. संविसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधं उद्धिळं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिढं उद्धिळं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। - 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंचं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। प्रथम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढ़मं सामाइय अग्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइय अज्झयणं उद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिढं उद्धिढें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। - 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्यं- इच्छं। ___5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढम योम विधि / 33 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · सामाइय अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। प्रथम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइ अझ समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइय अज्झयणं समुद्धि इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- समुद्धिट्ठ समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि । शिष्य - इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करोमि । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइय अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ: कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें।' वायणा विधि शिष्य - इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए .... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि | इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमां. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- (शिष्य / शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य - तहत्ति । फिर तिविण पूर्वक खमा देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। प्रथम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं 34 / योग विधि Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाइय अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइय अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- अणुन्नायं अणुनायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तद्भएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) शिष्य- इच्छामो अणुसठिं। ___ 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पढमं सामाइय अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि____खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउ। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं पढमं सामायिक . अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। . गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। - खमा, इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छ। योग विधि / 35 - Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्य बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर- शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कहं लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ०...। (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। 36 / योग विधि = - Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गीं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छ। अथ सायं क्रिया विधि (आवश्यक व दशवैकालिक योगोद्वहन में शाम की क्रिया प्रतिदिन यही होती है। मांडलिक योगों में शाम की क्रिया अलग होती है।) वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। - शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह · भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। _इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं।। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुँ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करू। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि। गुरूपमज्जेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 37 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। ___शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। 38 / योग विधि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य- इच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। (इति सायंकालीन विधि) दूसरा दिन सर्व प्रथम वसति संशोधन की विधि, फिर पडिलेहण की विधि करावें। वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वमति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निमीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य -- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीग तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। . शिष्य -- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेह। गुरू-- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 39 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधि शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य – खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु | गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि । शिष्य – खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावी. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। द्वितीय अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चवीसत्थय अज्झयणं उद्दिसह । गुरू- उद्दिसामि । शिष्य- इच्छं । 40 / योग विधि Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं उद्धिटें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिटें उद्धिह्र खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिग्जाहि। शिष्य- इच्छं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। द्वितीय अध्ययन समुद्देस विधि ___ 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अग्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं।। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अग्झयणं समुद्धिढ़ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- समुद्धिढं समुद्धिळं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिग्जाहि। शिष्य- इच्छं। . खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। योग विधि / 41 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा विधि - शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिजाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छ। दो वादणा देकर अनुज्ञा विधि करें। द्वितीय अध्ययन अनुज्ञा विधि ___ 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं अणुनायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीय' यह पद नहीं कहें) । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। ____5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सयखंधे बीयं चउवीसत्थय अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। 42 / योग विधि Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छ। खमा, इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं बीय चउवीसत्थय अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। ___ खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कह लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर • गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो. मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय == योग विधि / 43 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाए । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । इच्छं। " खमा इच्छा. संदि, भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य तीसरा दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य - इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिले हेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरू 44 / योग विधि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूं। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। तृतीय अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय = योग विधि / 45 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदrय अज्झयणं उद्दिसह । गुरू - उद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं उद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- उद्धिट्ठे उद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्यइच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू - पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा, इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। तृतीय अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुखंधे इ वंदणय अज्झयणं समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुखंधे तइय वंदणय अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- समुद्धिट्ठ समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि । शिष्य - इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू - पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 46 / योग विधि Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। तृतीय अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- अणुन्नायं अणुनायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें)। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। ... 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। ... 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे तइय वंदणय अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूं- पडिलेहेह योग विधि / 47 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं तइय वंदणय अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संविसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करू। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें।। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। 48 / योग विधि Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। __खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य-- . इच्छं। . चौथा दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 49 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह · भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संविसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। चतुर्थ अध्ययन उद्देस विधि___ 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अग्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे 50 / योग विधि Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं उद्धिठें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिटुं उद्धिह्र खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छ। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं उद्देसावणी करेमिकाउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। चतुर्थ अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं समुद्धिजें इच्छामो अणुसळिं। गुरूसमुद्धिठं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। .. 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधिशिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... - योग विधि / 51 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- (शिष्य / शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य - तहत्ति । फिर तिविण पूर्वक खमा देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाए । शिष्य- इच्छं । दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। चतुर्थ अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं अणुजाणह । गुरू- अणुजाणामि । शिष्यइच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य- तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें)। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठिं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू - पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा, इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहूं । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । 52 / योग विधि Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउ। गुरू- पवेयह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी. वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। ____ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य'इच्छं। . एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बालकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसंह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू-जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलैहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य इच्छं। आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। तस्स योग विधि / 53 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि, भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं। पाँचवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं। शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य- इच्छं । 54 / योग विधि Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। __ इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पमायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचमं योग विधि / 55 इच्छ। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काउसग्ग अज्झयणं उद्धिढ़ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिठें उद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य इच्छ। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। ____5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचमं काउसग्ग अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अन्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य-- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचमं . काउसग्ग अन्झयणं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिढें समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य - इच्छं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 56 / योग विधि Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशृं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य-- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। पंचम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अग्झयणं अणुनायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुनायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पर्वणीयं' यह पद नहीं कहें।) शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू-- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे पंचम काउसग्ग अग्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। = योग विधि / 57 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं पंचमं काउसग्ग अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिनें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर __ शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कह लेसह। गुरू-जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह। 58 / योग विधि Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कड। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे ___ खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गह। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छ। छठा दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छ। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 59 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुँ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। 60 / योग विधि = Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अग्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं उद्धिठें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिळं उद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्यइच्छ। ____4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। षष्टम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य --- इच्छं।. 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य-- तहत्ति। . 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं समुद्धिनै इच्छामा अणुसटिं। गुरू -- समुद्धिटुं समुद्धिटें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 61 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए... गुरू-तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। षष्टम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें पच्चक्खाण अज्झयणं अणुनायं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- अणुनायं अणुनायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अनेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें) । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। ___5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। 'गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे छठें 62 / योग विधि Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चक्खाण अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसृग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधं छठें पच्चक्खाण अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू-करेह। शिष्य-इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल या नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छ। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अनत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें। शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। ___ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 63 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे-.. ___ खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा, इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। __ खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुँ। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। सातवां दिन वसति संशोधन विधि योगाद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें. प्रकट लोगस्स कहें। . 64 / योग विधि Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि___ शिष्य-. खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं योग विधि / 65 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। (इति प्रातः पडिलेहण विधि) आवश्यक समुद्देस विधि___ 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। ___- 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। ___ 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिठं समुद्धिजें खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। ____4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा दें। 66 / योग विधि Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउ। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंध समुद्देसावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___ खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संविसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य-- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अनत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कह लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। ___ शिष्य- इच्छं। आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। = योग विधि / 67 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा इच्छा. संदि, भग. राइयं आलोउं । गुरू-- आलोएह । शिष्य- इच्छं । आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं | दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा, इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह | शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह । शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाए । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू - संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणी पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं । आठवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य-- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। 68 / योग विधि Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य - इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पक्किमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहु । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। . शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु | गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं योग विधि / 69 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। नंदी विधि ' समवशरण की रचना कर उसमें चौमुख परमात्मा को बिराजमान करके की जानी चाहिये। यदि संभव न हो तो स्थापनाचार्यजी के समक्ष करे। स्थापनाजी खुला रखें। आसन बिछावें, कमली दूर करें। एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। खमा. इरियावही करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेडं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति की पडिलेहण करें। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी। गुरू- करेमि। शिष्यइच्छं। कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करे। खमा. इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी। गुरू- वंदावेमि। शिष्य- इच्छं। कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूंजी। इच्छं। चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिनी प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ किंचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का 70 / योग विधि %3 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविघ्नविघातिने।।1।। लोगस्स. सव्वलोए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें- . सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः।।2।। पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनानवतु मंगलेभ्यः॥4॥ नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥७॥ श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिमपनीय मे॥6॥ श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति सुवर्णशालिनी देयाद्- द्वादशांगी जिनोद्भवा। श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्॥7॥ श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति - योग विधि / 71 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ . श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवताः॥१॥ श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता। सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम्॥10॥ श्री पद्मावती देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा। क्षद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावलिः॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सन्निभा। चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम्॥12॥ श्री अच्छुप्तादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. . नमोऽर्हत्. स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः। तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे।।13॥ श्री कुबेरा देवी आराधनाथ, करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका। श्री कुबेरा नरारूढा, सुतांकावतु वो भयात्॥14॥ श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति ब्रह्मशान्तिः स मां पाया- दपायाद् वीरसेवकः। श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजाIns॥ श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति 72 / योग विधि - Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा। श्री गोत्रदेवतारक्षा, सा करोतु नतांगिनाम्॥16॥ श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः। देवा देव्यस्तदन्येपि, संघ रक्षन्त्वपायतः॥17॥ श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें श्रीमंद विमानमारूढा यक्षमातंग संगता। सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी॥8॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोले, फिर बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर यह स्तोत्र पढ़े ओम् परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्। आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्।।1।। ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्। , ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम्॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम्॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले।। सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगल। वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे॥6॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः7॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन॥8॥ जयवीयराय बोलें। खमा. इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्यइच्छं। कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। योग विधि / 73 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। गुरूसांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढू इच्छं। शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिर्जति नो समुद्धिसिजति नो अणुनविजंति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्ययस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ 74 / योग विधि Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। तीन प्रदक्षिणा दें। नीचे लिखा पाठ नाम पूर्वक बोलकर तीन बार वासक्षेप डालें। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च............ साहुस्स/साहुणीए आवस्सग्गस्स अणुन्ना नंदी पवत्तइ नित्थारगपारगाहोह। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। हर बार कहें। आवश्यक श्रुतस्कंध अनुज्ञा विधि __ 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य-तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंध अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- अणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहि वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अनेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें) शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठिा 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें।' पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणावणी योग विधि / 75 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। __ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। ___ एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार । गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अनत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें। शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कह लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरू- . पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य 76 / योग विधि - Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग, सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुँ। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। नवम दिवस मांडलिक योग विधि वसति संशोधन विधि योगाद्वहन करने वाल वमति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कह। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहिय पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य - इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। - मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य-- इच्छं। पडिलेहण विधिशिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं __ योग विधि / 77 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। प्रथम सूत्र मांडली उत्क्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं उक्खिवह। गुरूउक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं उक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर 78 / योग विधि Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाई वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छ। नवकार मंत्र गिनते हुए और तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं। कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउ। गुरू-पवेयह। शिष्य-इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री सुत्त मंडली तवं उक्खिवणत्यं पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। - शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर, योग विधि / 79 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कहं लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोङ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय चिंतिय दुभासिय दचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। ___ खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते 80 / योग विधि Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छ। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहूं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमन्जेमि। गुरूपमज्जेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। : शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। __ योग विधि / 81. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। ___एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। प्रथम सूत्र मांडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं निक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्त मंडली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बाया घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, किंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। फिर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय 82 / योग विधि : Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा इच्छा. संदि भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह | शिष्यइच्छं । खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य -- इच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया सेमिच्छामि दुक्कडम् । (इति सायंकालीन विधि) दशम दिवस वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर ‘भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति योग विधि / 83 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि. शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।। - मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। . इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। 84 / योग विधि - - Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय अर्थ मांडली उत्क्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं उक्खिवह। गुरू- उक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं उक्खिवणत्यं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। __खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री अर्थ मंडली तवं उक्खिवणत्थं पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि. शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग, सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। योग विधि । 85 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाह। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग, उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। 86 / योग विधि Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं । अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्यपडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी । गुरू- तहत्ति । शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं । इरियावी. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें. प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि । गुरूपमज्जेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेंह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । योग विधि / 87 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छ। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। द्वितीय अर्थ मांडली निक्षेप विधि .. खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं निक्खिवणत्यं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं निक्खिवणत्यं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अर्थ मंडली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाई वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छ। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। फिर, नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। 88 / योग विधि Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)।। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वादणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं।। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। . खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउँ। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा, इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग, पांगरणो पडिग्गहुँ। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। (इति सायंकालीन विधि) ग्यारहवां दिवस वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। = योग विधि / 89 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। 90 / योग विधि Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। तृतीय भोयण मंडली उत्क्षेप विधि खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं उक्खिवह। गुरू - उक्खिवामो । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं उक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह | गुरू- वंदावेमो । शिष्य- इच्छं । शिष्य- वासक्षेप करावेह | गुरू- करावेमो । शिष्य- इच्छं । नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारंण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करोमि । इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले. जंकिंचि णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू-- पवेयह शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री भोयण मंडली तवं उक्खिवणत्थं पाली तप करशु । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । योग विधि / 91 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा . इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य - खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि, भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर - शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य - शय्यातर घर गुरू - घर का नाम बोलें। शिष्य – खमा, इच्छा. संदि भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु । गुरूपडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा इच्छा. संदि, भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। 92 / योग विधि Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___ खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य इच्छ। अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। ___ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। __शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। . __ मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह . भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। = योग विधि / 93 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमन्जेमि। गुरूपमन्जेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। भोजन मंडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिकामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं निक्खिवणत्यं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर .. 94 / योग विधि Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रगट नवकार बोलें। ___ खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भोयण मंडली तवं निक्खिवणत्यं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। फिर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . योग विधि / 95 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य - इच्छं । विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। ( इति सायंकालीन विधि ) बारहवां दिवस वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य - इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । 96 / योग विधि S Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संविसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। चतुर्थ काल मंडली उत्क्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं उक्खिवह। . गुरू- उक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं उक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, किंचि, णमुत्थुणं. जाति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। योग विधि / 97 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री काल मंडली तवं उक्खिवणत्थं पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संविसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। . .. ____ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोगं निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्य बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। .. शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग, राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह 98 / योग विधि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्।। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दक्कड। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संवि. भग. बहुवेलं करू। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करू। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। ___ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संविसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 99 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं। शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी । गुरू- तहत्ति । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि । गुरूपमज्जेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । .शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहूं । गुरूपडिलेहेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य – खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं। 100 / योग विधि Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। काल मंडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं निक्खिवणत्थं काउसग्गं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् काल मंडली तवं निक्खिवणत्यं चेइयाई वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। फिर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरू-. पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। .. E योग विधि / 101 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा, इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। (इति सायंकालीन विधि) तेरहवां दिवस वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसहं भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। 102 / योग विधि = Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधि शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य – खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य – खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इंरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। आवश्यक मंडली उत्क्षेप विधि खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं उक्खिवह। गुरू - उक्खिवामो । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं योग विधि / 103 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं उक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें । व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा इच्छाकारेण संदिंसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह | गुरू- वंदावेमो । शिष्य- इच्छं । शिष्यवासक्षेप करावेह | गुरू - करावेमो । शिष्य- इच्छं । नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करोमि । इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिले हुं । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं । गुरू- पवेयह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक मंडली तवं उक्खिवत्थं पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । 104 / योग विधि Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्य बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य-- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य-- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं। आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। 'शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संविसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य . इच्छ। योग विधि / 105 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाह। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य-- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहि पमज्जेमि। गुरूपमजेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। 106 / योग विधि === Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संविसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। आवश्यक मंडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं निक्खिवणत्यं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् आवश्यक मंडली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छ। शिष्यवासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, किंचि, णमुत्थुणं. जावति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें, फिर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। = योग विधि / 107 - Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। __ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। (इति सायंकालीन विधि) चौदहवां दिवस वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक 108 / योग विधि Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहूं । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य - इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य- खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य – खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पंडिलावोजी । गुरू- पडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वसिरामि शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं। योग विधि / 109 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। सन्झाय मंडली उत्क्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं उक्खिवह। गुरू- उक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं उक्खिवणत्यं काउसग्गं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं उक्खिवणत्यं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। ___ खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं उक्खिवणत्यं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री सज्झाय मंडली तवं उक्खिवणत्थं पाली तप करश। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। 110 / योग विधि Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि भंग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं। शिष्य - खमा. इच्छा. संदि, भग, उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- लाभ | शिष्य- कहं लेसहं । गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं । शिष्य- इच्छं । आवस्सियाए । गुरूजस्स जोगुत्ति । शिष्य - शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा, इच्छा. संदि भग. राइ मुहपत्ति पडिले हु । गुरूपडिलेह । शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । योग विधि / 111 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य इच्छं। अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। ... शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संविसह भगवन् वसति संविसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह · भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि। गुरूपमज्जेह शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। 112 / योग विधि - Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। सज्झाय मंडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं निक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय मंडली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्यवासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करमि। इच्छं कहकर बायां योग विधि / 113 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बालं. जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमा. उवसग्गहरं. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचंइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोल। फिर नवकार मंत्र गिनत हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। . मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। - शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। ..... गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वाटणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। खमा, इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसा। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करू। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। __खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। - खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउँ। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुँ। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो, वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। (इति सायंकालीन विधि) 114 / योग विधि Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्द्रहवां दिवस . वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। __इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कार्यात्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें. प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। __ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू - पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 115 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं।। . इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। संथारा मंडली उत्क्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं उक्खिवह। गुरू- उक्खिवामो। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं उक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं उक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। ‘खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं उक्खिवणत्थं चेइयाइं वंदावेह। गुरू- वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य- वासक्षेपं करावेह। गुरू- करावेमो। शिष्य- इच्छं। नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदनं करेमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बोले, जंकिंचि, णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. ना. उवसग्गहर. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेडं। गुरू पडिलेहेह शिष्य-- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. मंदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री संथारा मंडली तवं 116 / योग विधि Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खिवणत्थं पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्वाण कराव। सज्झाय विधि-. शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार व धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर- शिष्य - इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहिं शिष्य - इच्छं आवस्सियाए गुरू- जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें।। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू-- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। E योग विधि / 117 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू-- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू... संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। अथ सायं क्रिया विधि वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करतं समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा... इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य-- इच्छ। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य-- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा द।। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसा। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिप्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लांगस्स कहें। _ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। 118 / योग विधि Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि। गुरू-- पमजेह शिष्य-- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य-- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक .. करें, प्रकट लोगस्स कहें।। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छ। • शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि मुहपत्ति पडिलेहुँ। गुरूपडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। __ . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य--- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार व धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिन। संथारा मंडली निक्षेप विधि खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं निक्खिवह। गुरू- निक्खिवामो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं निक्खिवणत्थं काउसग्गं करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं निक्खिवणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। व पारकर प्रगट नवकार बोलें। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संथारा मंडली तवं निक्खिवणत्थं चेइयाई वंढावेह। गुरू - वंदावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य-- वासक्षेप करावेह। योग विधि - 119 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू-- करावेमो। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन चैत्यवंदनं करमि। इच्छं कहकर बायां घुटना उँचा कर चैत्यवंदन बालं. जंकिंचि णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमा. उवसग्गहर. स्तवन. जयवीयराय. अरिहंतचंइयाणं. अन्नत्थ. एक नवकार का काउस्सग्ग कर स्तुति बोलें। फिर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा देते हुए तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसी मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. देवसियं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य-- इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि देवसिय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कड। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियों से गुरूवंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. उपधि पडिलेहण करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सन्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य -- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करू। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। . खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू-- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। विधि करते अविधि आशातना लगी हो. वह सब मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। ( इति सायंकालीन विधि) 120 / योग विधि - - Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ श्री दशवैकालिक योग विधि प्रथम दिन यह विधि समवशरण की रचना कर उसमें चौमुख परमात्मा को बिराजमान करके की जानी चाहिये । यदि संभव न हो तो स्थापनाचार्य जी के समक्ष करे । स्थापना जी खुला रखें। आसन बिछावें, कमली दूर करें। एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। खमा इरियावही करें। खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहूं । गुरूपडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । कहकर. मुहपत्ति की पडिलंहण करें। खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी । गुरू-- करेमि । शिष्य- इच्छं । कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। खमा. इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं उद्देसावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी । गुरू- वंदावेमि । शिष्य- इच्छं । कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूँजी । इच्छं । चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः । " सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं । प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम् । नरामरेन्द्रैः : स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम् ॥ योग विधि / 121 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तमुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ किंचि. णमुत्थुण. अरिहंतचंडयाणं. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोल्ने - नमोऽर्हत्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविघ्नविघातिने॥1॥ लोगस्स. सव्वलाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बाल सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीनौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः॥2॥ पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोले वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोले नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनानवतु मंगलेभ्यः।।4।। नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुण. बालकर खडं होकर बोल-- श्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ कोमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें रोगशोकादिभिर्दोष-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तये तस्मै, विहितानन्तशक्तये।।5।। श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करम काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिमपनीय मे॥6॥ श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ कमि काउमग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. 122 / योग विधि Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमोऽर्हत्. स्तुति सुवर्णशालिनी देयाद्- द्वादशांगी जिनोद्भवा। श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्।।7।। श्री भवन देवता आराधनार्थं करमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽहंत्. स्तुति चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवता:॥9॥ श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽहंत्. स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता। . सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम्॥10॥ श्री पद्मावती देवी आराधनार्थं करमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा। क्षद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावलिः॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवंकार. नमा हंत. स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सनिभा। चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम्।।12।। श्री अच्छप्तादेवी आराधनार्थं करमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः। तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे॥13॥ श्री कुबेरा देवी आराधनार्थं कमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽहंत्. स्तुति मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका। श्री कुबेरा नरारूढा, सुतांकावतु वो भयात्।।14॥ श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. = योग विधि , 123 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमोऽर्हत्. स्तुति-- ब्रह्मशान्तिः स मां पाया- दपायाद् वीरसेवकः। श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा।।15।। श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत. स्तुति या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा। श्री गोत्रदेवतारक्षा, सा करोतु नतांगिनाम्।।16॥ श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः। देवा देव्यस्तदन्येपि, संघं रक्षन्त्वपायतः॥17॥ श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोले श्रीमद् विमानमारूढा यक्षमातंग संगता। सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी॥18॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोलं. फिर बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर यह स्तोत्र पढ़े ओम् परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्। आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्।।1।। ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्। ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम्।।2।। ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम्॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले।4।। सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका।।5।। स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं। वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे।।6।। महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। . परमेष्ठिपदोभृता, कथिता पूर्वसृरिभिः।।7।। 124 / योग विधि Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन।।8।। जयवीयराय बोलें। खमा. इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . . ___ खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री दशवकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। - गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। गुरूसांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढू इच्छं। शिष्य खड़े खड़े कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिजंति नो समुद्धिसिन्जंति नो अणुनविजंति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना योग विधि / 125 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पचत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्थयस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिंपि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्त । तीन प्रदक्षिणा दें। नीचे लिखा पाठ नाम पूर्वक बोलकर तीन बार वासक्षेप डालें। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च दसवेआलिअस्स उद्देसा नंदी पवत्तइ नित्थारगपारगाहोह । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि । हर बार कहें । साहुस्स / साहुणी श्रुतस्कंध उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध उद्दिसह | गुरू - उद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसंह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध उद्धि इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- उद्धिट्ठ उद्धिट्ठे खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्य - इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करें। पारकर प्रगट लांगस्स कहें। प्रथम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अज्झयणं उद्दिसह । गुरू - उद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुष्फिय अज्झयणं उद्धिट्ठे इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू - उद्धिट्ठ 126 / योग विधि 3 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्धिट्टं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुष्यि अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। प्रथम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अज्झयणं समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य- तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- समुद्धिट्ठ समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुष्यि अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करें। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए..... गुरू- तिविहेण, शिष्य मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् योग विधि / 127 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। प्रथम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अन्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। . 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुनायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अनेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें) शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह।. शिष्य- इच्छ। - 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधे पढमं दुमपुफिय अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। 128 / योग विधि Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं पढमं दुमपुफिय अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू-करेह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छा. संदि भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं आवस्सियाए गुरू जस्स जोगुत्ति शिष्य- शय्यातर घर गुरू - घर का नाम बोलें। शिष्य - खमा इच्छा. संदि भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु । गुरूपडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्टियों से गुरुवंदन करें। योग विधि / 129 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 खमासमणे खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा, इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा, इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं। दूसरा दिन सर्व प्रथम वसति संशोधन की विधि, फिर पड़िलेहण की विधि करावें । वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पड़िक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले | गुरू - पडिलेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य - इच्छं । 130 / योग विधि Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधिशिष्य खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य - इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहु । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहु । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु | गुरू-- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वो सिरामि शिष्य – खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरिय़ावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। द्वितीय अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुव्विया अज्झयणं उद्दिसह । गुरू- उद्दिसामि । शिष्य- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य- तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे योग विधि / 131 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं सामण्णपुब्विया अल्झयणं उद्धिळं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिटें उद्धिह्र खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुब्विया अल्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। द्वितीय अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुब्विया अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुब्विया अज्झयणं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूसमुद्धिढं समुद्धिह्र खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। ___5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुब्विया अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 132 / योग विधि Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ..... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- ( शिष्य / शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य- तहत्ति । फिर तिविण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं। खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। द्वितीय अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुव्विया अज्झयणं अणुजाणह । गुरू- अणुजाणामि । शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुव्विया अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढजाहि नित्थारगपारगाहोह । ( यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें। ) । शिष्य - इच्छामो अणुसट्ठि । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुव्विया अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। योग विधि / 133 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीयं सामण्णपुब्विया अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह।, शिष्य इच्छ। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करू। गुरू- करेह। शिष्य • इच्छ। शिष्य-खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अनत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर । शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। 134 / योग विधि : Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य-- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) | शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं। खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह । शिष्य इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहूं। गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं। तीसरा दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्यपडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं योग विधि / 135 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अत्रत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। . शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। 136 / योग विधि Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। तृतीय अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं उद्धिळं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिठें उद्धिजें खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। . 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। तृतीय अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूसमुद्धिंठें समुद्धिह्र खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छ। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू ,महाराज से वासक्षेप लें। = योग विधि / 137 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ..... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- ( शिष्य / शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य- तहत्ति । * फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। तृतीय अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा, इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि । शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह । ( यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें। ) । शिष्य - इच्छामो अणुसट्ठि । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेंयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 138 / योग विधि Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे तइयं खुड्डिआयार अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू-करेह। शिष्य-इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। * शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं योग विधि / 139 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू-- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। __ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ____ दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे - खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। ' शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ____ खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। चौथा दिन वसति संशोधन विधि___योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। 140 / योग विधि - Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - = योग विधि / 141 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । शिष्य-- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि । शिष्य-- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह | शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। चतुर्थ अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं उद्दिसह । गुरू- उद्दिसामि । शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं उद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- उद्धिट्ठ उद्धिट्ठे खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। चतुर्थ अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्य -- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधे चउत्थ पडिक्कमण अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू142 / योग विधि Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुद्धिढं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिग्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् . वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरूः- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति।। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। चतुर्थ अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरूअणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि = योग विधि / 143 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्थारगपारगाहोह । ( यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें । ) । शिष्य - इच्छामो अणुसट्ठि । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्य कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। * पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे चउत्थं छज्जीवणिय अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । - खमा . इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा, इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार व धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । 144 / योग विधि Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कहं लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। योग विधि / 145 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँचवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू-- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। 146 / योग विधि = Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। ___ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक . करें, प्रकट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं।। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं उद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- उद्धिजें उद्धिळं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन प्रथम उद्देशक उद्देस विधि1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे = योग विधि / 147 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अन्झयणं पढम उद्देसं उद्धिठें इच्छामो अणुसळिं। गुरूउद्धिढं उद्धिढें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य-- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काठसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन द्वितीय उद्देशक उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छ। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं उद्धिठें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूउद्धिढं उद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। _____5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 148 / योग विधि Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन प्रथम उद्देशक समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्धिळं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूसमुद्धिटुं समुद्धिळं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स क्रा काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन द्वितीय उद्देशक समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरूसमुद्धिठं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं = योग विधि / 149 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं समुद्धिठें इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिढं समुद्धिढें खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। . 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् 150 / योग विधि Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशृं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। पंचम अध्ययन प्रथम उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कह) शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं पढम उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन द्वितीय उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। = योग विधि / 151 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अनेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। ____5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं बीय उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पंचम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अल्झयणं अणुनायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें) । शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 152 / योग विधि Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहूं । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पंचमं पिण्डैषणा अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । ● एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । योग विधि / 153 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य-- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। - दो वादणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। . 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। 154 / योग विधि Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठा दिन वसति संशोधन विधि योगाद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। . मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाह। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। योग विधि / 155 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। .. मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाह। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। षष्टम अध्ययन उद्देस विधि- 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अज्झयणं उद्धिठें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिटें उद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। ____4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। षष्टम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अग्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 156 / योग विधि = Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अज्झयणं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरूसमुद्धिठं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छ। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठं धम्मत्थकाम अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। : फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। - दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। षष्टम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छठें धम्मत्थकाम अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे = योग विधि / 157 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ धम्मत्थकाम अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह । ( यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं यह पद नहीं कहें। ) । शिष्य - इच्छामो अणुसट्ठि । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छट्ठ धम्मत्थकाम अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य - इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे छट्ठ धम्मत्थकाम अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्यइच्छं । खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । 158 / योग विधि Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं। आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरू. पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ___दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। - = योग विधि / 159 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। सातवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य-- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। ___ इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। ___मुहपत्ति का पडिलेहण करें। 160 / योग विधि - Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। सप्तम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। . 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं उद्धिठें इच्छामो अणुसळिं। गुरू- उद्धिठं उद्धिढें खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। = योग विधि / 161 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। सप्तम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं समुद्धिळं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- समुद्धिठें समुद्धिळं खमासंमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। ____5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि- शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण। शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। - खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य, इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। 162 / योग विधि Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अनेसि पि.पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें) शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। - 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयूखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे सत्तम वक्कसुद्धि अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। योग विधि / 163 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंविसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य – खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह | शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं। शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर -- शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं । शिष्य- इच्छं आवस्सियाए । गुरू- जस्स जोगुत्ति । शिष्य - शय्यातर घर । गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य – खमा, इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिले हु । गुरूपडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । रे शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । 164 / योग विधि Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुँ। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। आठवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। ___ मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्तिा शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। = योग विधि / 165 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेह । शिष्य - इच्छं । . मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि । “. शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावी. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। अष्टम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं उद्दिसह । गुरू- उद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं उद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरूउद्धि उद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्य - इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 166 / योग विधि Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। अष्टम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्यइच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य- तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । गुरूसमुद्धिट्ठ समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ..... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । योग विधि / 167 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशृं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। .. अष्टम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अग्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं बुढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। - 168 / योग विधि - Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंघे अष्टम आचार प्रणिधि अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करू। गुरू- करेह। शिष्य- . इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कह लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्यसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संवि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्मासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स = योग विधि / 169 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिच्छामि दुक्कडं। ..... दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___ खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ' खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। र खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्य इच्छ। नवम दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। ___ शिष्य- खमा: इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। ___इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें।। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाह। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। • शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य-- इच्छं। 170 / योग विधि Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहण विधिशिष्य खमा. पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह, भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा, इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु | गुरू - संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावी. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। नवम अध्ययनं उद्देस विधि 1. खमा, इच्छंकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं उद्दिसह । गुरू- उद्दिसामि । शिष्य- इच्छं । 2. खुमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे योग विधि / 171 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम विणयसमाहि अज्झयणं उद्धिळं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- उद्धिट्ठ उद्धिह्र खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छ। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। ... 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संविसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन प्रथम उद्देशक उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं उद्धिनॊ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिठं उद्धिठें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। । शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अग्झयणं पढम उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 172 / योग विधि Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन द्वितीय उद्देशक उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छं। . 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्धिठं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिठं उद्धिजें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। ___5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन प्रथम उद्देशक समद्देस विधि .. 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। . शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्धिढ़ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- समुद्धिढं समुद्धिह्र खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं।। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। . शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर मवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से योग विधि / 173 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासक्षेप लें। .. . 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन द्वितीय उद्देशक समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अल्झयणं बीय उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिढं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अल्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे 174 / योग विधि Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम विणयसमाहि अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूसमुद्धिट्ठ समुद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- (शिष्य / शिष्या का नाम कहकर ) लेजो। शिष्य- तहत्ति । फिर तिविण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। नवम अध्ययन प्रथम उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं अणुजाणह । गुरू- अणुजाणामि । शिष्य- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहन्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं पढम उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । योग विधि / 175 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- अणुन्नायं अणुनायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।)। शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। . 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अग्झयणं पढम उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन द्वितीय उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अग्झयणं बीय उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुन्नायं अणुनायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अनसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पर्वणीयं' यह पद नहीं कहें।)। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 176 / योग विधि Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं उद्देसावणी पढम बीय उद्देसं उद्देसावणी, नवम अज्झयणं समुद्देसावणी पढम बीय उद्देसं समुद्देसावणी पढम बीय उद्देसं अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- लाभ। शिष्य- कह योग विधि / 177 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेसह । गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं । शिष्य- इच्छं आवस्सियाए । गुरूजस्स जोगुत्ति । शिष्य - शय्यातर घर । गुरू- घर का नाम बोलें । शिष्य- खमा, इच्छा. संदि भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु । गुरूपडिलेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य – खमा. इच्छा. संदि, भग, राइयं आलोडं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें । 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं। N खमा, इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणी पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य इच्छं। दशवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। 178 / योग विधि Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य- इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य - खमा पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य - इच्छं । योग विधि / 179 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन तृतीय उद्देशक उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं उद्धिळं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- उद्धिढं उद्धिढें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं।। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन चतुर्थ उद्देशक उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयहा शिष्य- तहत्ति। 180 / योग विधि Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- उद्धिठे उद्धिजें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं बीय उद्देसं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन तृतीय उद्देशक समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुहिसामि। शिष्य- इच्छ। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिढं समुद्धिढं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिग्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं योग विधि / 181 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन चतुर्थ उद्देशक समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अल्झयणं चउत्थ उद्देसं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। . 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अल्झयणं चउत्थ उद्देसं समुद्धिठें इच्छामो अणुसळिं। • गुरू- समुद्धिढं समुद्धिढें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। * 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। .. 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं चउत्थ उद्देसं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू-तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ... खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेणं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। - 182 / योग विधि E - Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन तृतीय उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं अणुजाणह । गुरू- अणुजाणामि । शिष्य- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू-वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू-- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें। ) । शिष्य - इच्छामो अणुसट्ठि । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू करेह । शिष्य - इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसॅमाहि अज्झयणं तइय उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन चतुर्थ उद्देशक अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भन्छन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं चउत्थ उद्देसं अणुजाणह । गुरू- अणुजाणामि । शिष्य- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं चउत्थ उद्देसं अणुन्नायं इच्छामो अणुसट्ठि । गुरू- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुढिजाहि नित्थारगपारगाहोह । ( यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं योग विधि / 183 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।)। शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। - 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अग्झयणं चउत्थ उद्देसं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। नवम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अल्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुनायं अणुनायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं. पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।)। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 184 / योग विधि Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। ___मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे नवम विणयसमाहि अज्झयणं उद्देसावणी पढम बीय उद्देसं उद्देसावणी, नवम अग्झयणं समुद्देसावणी पढम बीय उद्देसं समुद्देसावणी पढम बीय उद्देसं अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संविसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सग्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छं। ___एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करू। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्य बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर- . शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कह लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरूजस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। = योग विधि / 185 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । दो वांदणा देकर दो खमा इच्छकार अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ । गुरू- संदिसावेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि, भग. पांगरणो संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं । गुरू- पडिग्गहेह । शिष्य ग्यारहवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिले । गुरू- पडिलेह । शिष्य - इच्छं । 186 / योग विधि Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू-- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि___शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूं। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। : मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। , शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. “इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पंडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें।। योग विधि / 187 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशम अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं उद्धिह्र इच्छामो अणुसळिं। गुरू- उद्धिट्ठ उद्धिढं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। दशम अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे । दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। ___3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं समुद्धिजें इच्छामो अणुसळिं। गुरू- समुद्धिटें समुद्धिढं खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। ____7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम 188 / योग विधि Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभिक्षुनाम अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संविसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। दशम अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं अणुनायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठिा ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम सभिक्षुनाम अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। योग विधि / 189 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदगा दें। खमा. इच्छा. संदि, भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य - इच्छं । खमा, इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे दशम भिक्षुनाम अझयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्यइच्छं । खमा, इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा, इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं शिष्य- इच्छं आवस्सियाए । गुरू- जस्स जोगुत्ति । शिष्य- शय्यातर घर । गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु । गुरूपडिलेहेह | शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। 190 / योग विधि Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्यस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कड। ___दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे. खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। ___खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छ।' खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। बारहवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें।। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति योग विधि / 191 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करू। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। मुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। 192 / योग विधि Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चूलिका अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं उद्दिसह। गुरू- उद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं उद्धिठें इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूउद्धिठं उद्धिढें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अन्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। प्रथम चूलिका अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्यइच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं समुद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूसमुद्धिजें समुद्धिठं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। योग विधि / 193 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- 'तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं।। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम . कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य - इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। प्रथम चूलिका अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरूअणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसिं पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) । शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 194 / योग विधि Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहु । गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे पढमा चूलिआ रइवक्का अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । नीवी का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य- खमा, इच्छा. संदि भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । एक नवकार व धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं। शिष्य - खमा, इच्छा, संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- लाभ। शिष्य- कहं योग विधि / 195 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय चिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ___ दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य इच्छ। खमा, इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। - खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। तेरहवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। 196 / योग विधि Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छ। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___ मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू-- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरु-- करेह। शिष्य- इच्छं। योग विधि / 197 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि । शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक "करें, प्रकट लोगस्स कहें। द्वितीय चूलिका अध्ययन उद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं उद्दिसह । गुरू - उद्दिसामि । शिष्य - इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं उद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि। गुरूउद्धिट्ठ उद्धिट्ठ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं जोगं करिज्जाहि । शिष्य- इच्छं । 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि । गुरू- पवेयह । शिष्य- इच्छं । 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि । गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं उद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे । पारकर प्रगट लोगस्स कहें। द्वितीय चूलिका अध्ययन समुद्देस विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं समुद्दिसह । गुरू- समुद्दिसामि । शिष्य- इच्छं । 2. खमा. संदिसह किं भणामि । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य - तहत्ति । 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं समुद्धिट्ठ इच्छामो अणुसट्ठि । 198 / योग विधि Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू- समुद्धिटुं समुद्धिजें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू-. पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। __ खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य- तहत्ति।। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। . दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। द्वितीय चूलिका अध्ययन अनुज्ञा विधि 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं अणुजाणह। गुरू- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं अणुन्नायं इच्छामो अणुसळिं। गुरू- अणुन्नायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि योग विधि / 199 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पर्वणीय' यह पद नहीं कह) । शिष्य-- इच्छामो अणुसट्ठि। ___4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य-- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू पडिलेहेह शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधे बीया विवित्तचरिआ चूलिआ अज्झयणं उद्देसावणी समुद्देसावणी अणुजाणावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। नीवी का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार व धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। 200 / योग विधि Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्य इच्छ। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अनत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- लाभ। शिष्य- कहं लेसह। गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। ___ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। - शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुभासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। . 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। ख़मा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। । योग विधि / 201 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदहवां दिन वसति संशोधन विधि- .. योगाद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य --- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू... पडिक्कमेह। शिष्य-- इच्छं। इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेडं। गुरू-- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। -. शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य-- इच्छं। पडिलेहण विधि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू-- पडिक्कमेह। शिष्य - इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लांगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक . करें. प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहु। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। ___ शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। - मुहपत्ति का पडिलेहण करें। . शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य-- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य-- इच्छं। 202 / योग विधि Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू-- पडिलेहेह। शिष्य - इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। श्री दशवकालिक श्रुतस्कंध समुद्देस विधि- . 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधं समुद्दिसह। गुरू- समुद्दिसामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंध समुद्धिह्र इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू-- समुद्धिटुं समुद्धिजें खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं थिरपरिचियं करिज्जाहि। शिष्य- इच्छं। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवेकालिक सुयखंधं समुद्देसावणी करेमि काउस्सग्गं अनत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। योग विधि / 203 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणा विधि शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउ जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू-- तिविहेण, शिष्य - मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले°। गुरू- (शिष्य/शिष्या का नाम कहकर) लेजो। शिष्य-- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य-- इच्छं। दो वांदणा देकर अनुज्ञा विधि करें। पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू- पवेयह शिष्य -- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. तुम्हे अहं श्री दशवेकालिक सुयखंधं समुद्देसावणी वायणा संदिसावणी वायणा लेवरावणी पाली तप करशु। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। आयंबिल का पच्चक्खाण करावें। सज्झाय विधि शिष्य-- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। . शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं। गुरू- करेह। शिष्यइच्छं। 204 / योग विधि Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर __शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- लाभ, शिष्य- कहं लेसहं गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहि। शिष्य- इच्छं आवस्सियाए। गुरू- जस्स जोगुत्ति। शिष्य- शय्यातर घर। गुरू- घर का नाम बोलें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउ। गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० (पूरा बोलें)। शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियो से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छ। खमा, इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। योग विधि / 205 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्द्रहवां दिन वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहूं । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य-- इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य- इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही तस्स. अन्नत्थ. एक लांगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहु । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ । गुरूकरेह | शिष्य - इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहूं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ । गुरू- करेह | शिष्य-- इच्छं । 206 / योग विधि Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपत्ति का पडिलेंहण करें। शिष्य - खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी । गुरू- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसाहुं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूँ। गुरू- करेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य- अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वो सिरामि । शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। नंदी विधि समवशरण की रचना कर उसमें चौमुख परमात्मा को बिराजमान करके की जानी चाहिये । यदि संभव न हो तो स्थापनाचार्यजी के समक्ष करे। स्थापनाजी खुला रखें। आसन बिछावें, कमली दूर करें। एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। खमा इरियावही करें। खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहुं । गुरूपडिलेह । शिष्य - इच्छं । कहकर मुहपत्ति की पडिलेहण करें। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी । गुरू- करेमि । शिष्यइच्छं । कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करे। खमा इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी । गुरू- वंदावेमि । शिष्य- इच्छं । कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। खमा इच्छा. संदि, भग. चैत्यवंदन करूँजी । इच्छं । योग विधि / 207 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्।। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिन। प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्।। अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ किंचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविघ्नविघातिने1॥ लोगस्स. सव्वलोए, अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः॥2॥ पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कार्यात्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनानवतु मंगलेभ्यः।4।। नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥5॥ 208 / योग विधि Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽहत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्तपय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिमपनीय मे।।6।। श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति सुवर्णशालिनी देयाद्- द्वादशांगी जिनोद्भवा। श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्।।7।। श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्त क्षेत्रदेवताः।।9।। श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता। सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम्॥10॥ श्री पद्मावती देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽहत्. स्तुति धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा। क्षुद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावलिः॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सन्निभा। चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम्॥12॥ श्री अच्छुप्तादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः। तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे।।13॥ . योग विधि / 209 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुबेरा देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति- मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका । श्री कुबेरा नरारूढा, सुतांकावतु वो भयात् ॥14 ॥ श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति ब्रह्मशान्तिः स मां पाया - दपायाद् वीरसेवकः । येन कीर्त्तिः कृता निजा ॥15॥ श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवका नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा । श्री गोत्रदेवतारक्षां, सा करोतु नतांगिनाम् ||16|| श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत् स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः । देवा देव्यस्तदन्येपि, संघं रक्षन्त्वपायतः ॥17॥ श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कहकर स्तुति बोलें श्रीमद् विमानमारूढा यक्षमातंग संगता । सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी ॥18 ॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोले. फिर बैठकर बायां घुटना ऊँचा कर णमुत्थुणं. जावंति खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर यह स्तोत्र पढ़ेंओम् परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्॥1॥ ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्का, शिला वज्रमयी तले ॥4॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । 210 / योग विधि Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ||6|| महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ 7 ॥ " यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद्भयं व्याधि - राधिश्चापि कदाचन ॥ 8 ॥ जयवीयराय बोलें। खमा इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेहुं । गुरू- पडिलेहेह । शिष्यइच्छं कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं । खमा इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी । गुरूसांभलो। गुरू भी खमा इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढूं इच्छं । शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजाहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने । तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे | बृहत् नंदी सूत्र - नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिज्जति नो समुद्धिसिज्जंति नो अणुन्नविज्जति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ । जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना योग विधि / 211 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरिसस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्थयस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। जइ आवस्सगस्स वइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ कालियस्सवि उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं दसवेआलिअस्स कप्पिआकप्पिअस्स चुल्लकप्पसुअस्स महाकप्पसुअस्स उववाइअस्स रायप्पसेणिअस्स जीवभिगमस्स पण्णवणाए महापण्णवणाए नंदीए अणुओगदाराणं देविंदत्थस्स तंदुलवेआलिअस्स चंदाविज्झयस्स पमायप्पमायस्स पोरिसि मंडलस्स गणिविज्जाए विज्जाचारणविणिच्छिअस्स झाणविभत्तीए मरणविभत्तीए आयविसोहीए संलेहणासुहस्स वीयरायसुअस्स ववहारकप्पस्स चरणविसोहीए आउरपच्चक्खाणस्स महापच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं उत्तरायणाणं दसाणं कप्पस्स ववहारस्स इसिभासिआणं निसीहस्स महानिसीहस्स जंबुद्दीवपन्नत्तीए चंदपन्नत्तीए सूरपन्नत्तीए दीवसागरपन्नत्तीए खुड्डियाविमाणपविभत्तीए महल्लिआविमाणपविभत्तीए अंगचूलियाए वग्गचूलियाए विवाहचूलिआए अरूणोववायस्स वरूणोववायस्स गरूलोववायस्स वेसमणोववायस्स वेलंधरोववायस्स देविंदोववायस्स उट्ठाणसुअस्स समुट्ठाणसुअस्स नागपरिआवलिआणं निरयावलिआणं कप्पिआणं कप्पवडिसिआणं पुष्फिआणं पुप्फचूलिआणं वण्हिआणं वण्हिदसाणं आसीविसभावणाणं दिट्ठीविसभावणाणं चारणसुमिणभावणाणं महासुमिणभावणाणं 212 / योग विधि - Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेअग्गिनिसग्गाणं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आयारस्स सुअगडस्स ठाणस्स समवाअस्स. विवाहपन्नत्तीए नायाधम्मकहाणं उवासगदसाणं अणुत्तरोववाइअदसाणं पण्हावागरणाणं विवागसुअस्स दिट्ठीवाअम्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। __फिर तीन प्रदक्षिणा दें। नीचे लिखा पाठ नाम पूर्वक बोलकर तीन बार वासक्षेप डालें। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च ............ साहुस्स/साहुणीए दसवेआलियस्स अणुना नंदी पवत्तइ नित्थारगपारगाहोह। __ शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। हर बार कहें। दशवैकालिक श्रुतस्कंध अनुज्ञा विधि. 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं अणुजाणह। गुरू-- अणुजाणामि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुनायं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- अणुनायं अणुन्नायं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्म धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेणीयं गुरूगुणेहिं वुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के .योगांद्वहन हो तो अनसिं पि पर्वणीयं' यह पद नहीं कहें)। शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि। 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू-- पवेयह। शिष्य- इच्छ। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से वासक्षेप लें। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ___7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। योग विधि / 213 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा इच्छा. संदि, भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिले | गुरु पडिलेह शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा इच्छा. संदि, भग. पवेयणा पवेडं गुरू- पवेयह शिष्य - इच्छं । खमा इच्छा. संदि भग. तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध अणुजाणावणी पाली तप करशु । गुरू- करेह । शिष्य - इच्छं । खमा इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी । आयंबिल का पच्चक्खाण करावें । सज्झाय विधि शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं। एक नवकार बोलकर धम्मो मंगल. की पाँच गाथाएं बोलकर एक नवकार गिने । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग संदिसाहुं । गुरू - संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग करूं । गुरू- करेह । शिष्य इच्छं । शिष्य - खमा इच्छा. संदि. भग. उपयोग निमित्तं करेमि काउसग्गं. अन्नत्थ बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें व प्रगट एक नवकार बोलें फिर शिष्य- इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । गुरू- लाभ। शिष्य कह सहं । गुरू- जह गहियं पुव्वसाहूहिं । शिष्य- इच्छं आवस्सियाए । गुरू- जस्स जोगुत्ति । शिष्य - शय्यातर घर | गुरू - घर का नाम बोलें। शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भग. राइ मुहपत्ति पडिलेहु । गुरूपडिलेह | शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा, इच्छा. संदि. भग. राइयं आलोउं । गुरू- आलोएह शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइओ० ( पूरा बोलें ) । 214 / योग विधि Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य- सव्वस्सवि राइय दुच्चिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। ___ गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। दो वांदणा देकर दो खमा. इच्छकार. अब्भुट्ठियां से गुरूवंदन करें। 8 खमासमणे खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं संदिसाहुं। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुवेलं करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउ। गुरू- संदिसावेह। शिष्यइच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गहुं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छं। योग विधि / 215 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ी दीक्षा विधि नंदी की स्थापना करें। फिर नंदी की तीन प्रदक्षिणा नवकार मंत्र गिनते हुए करें। - खमा. इरियावही करें। -खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- . पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। कहकर मुहपत्ति की पडिलेहण करें। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी। गुरू- करेमि। शिष्यइच्छ। कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करे। ___ खमा. इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी। गुरू- वंदावेमि। शिष्य- इच्छं। कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। खमा. इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूँजी। इच्छं। . चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं। प्रलम्बबाहुँ सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ जंकिंचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का 216 / योग विधि Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हन्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविजविघातिने . लोगस्स. सव्वलोए. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोले सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः।।2।। पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनान्नवतु मंगलेभ्यः।। नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खड़े होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें-- रोगशोकादिभिर्दोष-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥5॥ श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिमपनीय मे।।6।। श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति सुवर्णशालिनी देयाद्- द्वादशांगी जिनोद्भवा। श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्।।7।। श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति योग विधि / 217 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति यासां क्षेत्रगताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्त्यस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवताः॥9॥ श्री अम्बिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसुतान्विता। सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम्॥10॥ श्री पदमावती देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा। क्षुद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावलिः॥11॥ श्री चक्रेश्वरी देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति चंचच्चक्रकरा चारू- प्रवाल दल सन्निभा। - चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम्॥12॥ श्री अच्छुप्तादेवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार.' नमोऽर्हत्. स्तुति खड्ग खेटक कोदण्ड बाण पाणिस्तडिद्युतिः। तुरंग गमना च्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे13॥ श्री कबेरा देवी आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति मथुरापुरी सुपार्श्व श्री पार्श्वस्तूप रक्षिका। श्री कुबेरा नरारूढा, सुतांकावतु वो भयात्॥14॥ श्री ब्रह्मशान्ति यक्ष आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति ब्रह्मशान्तिः स मां पाया- दपायाद् वीरसेवकः। श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा15॥ श्री गोत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति 218 / योग विधि Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या गोत्रं पालयत्येव सकलापायतः सदा। श्री गोत्रदेवतारक्षा, सा करोतु नतांगिनाम्।।16।। श्री शक्रादिसमस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति श्री शक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंश्रिताः। देवा देव्यस्तदन्येपि, संघ रक्षन्त्वपायतः।।17।। श्री सिद्धायिका शासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. चार लोगस्स ऊपर एक नवकार का काउसग्ग कर पारकर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें श्रीमद् विमानमारूढा यक्षमातंग संगता। सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी॥18॥ लोगस्स बोले। तीन नवकार हाथ जोड़कर बोले, फिर बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. जावंति. खमा. जावंत. नमोऽर्हत् बोलकर-यह स्तोत्र पढ़े ओम् परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्। आत्मरक्षाकरं वज्रपंजराभं स्मराम्यहम्1॥ ओम् नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्। ओम् नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम्॥2॥ ओम् नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ओम् नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम्॥3॥ नमो लोएसव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले।। सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका।।5।। स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं। वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे॥6॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः।।7। यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन।।8।। जयवीयराय बोलें। खमा. इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्यइच्छं कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। योग विधि / 219 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं पंचमहव्वयं राइभोयण वेरमण षष्ठं आरोवावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। गुरूसांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढू इच्छं। शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ट के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। बृहत् नंदी सूत्र___ नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिजति नो समुद्धिसिजंति नो अणुनविज्जति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ कि अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देमो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्थयस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ 220 / योग विधि Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वेसिंपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ । जइ आवस्सगस्स वइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तई कालियस्सवि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओंगो य पवत्तइ जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं दसवेआलिअस्स कप्पिआकप्पिअस्स चुल्लकप्पसुअस्स महाकप्पसुअस्स उववाइअस्स रायप्पसेणिअस्स जीवभिगमस्स पण्णवणार महापण्णवणाए नंदीए अणुओगदाराणं देविंदत्थस्स तंदुलवेआलिअस्स चंदाविज्झयस्स धमायप्पमायस्स पोरिसि मंडलस्स गणिविज्जाए विज्जाचारणविणिच्छिअस्स झाणविभत्तीए मरणविभत्तीए आयविसोहीए संलेहणासुहस्स वीयरायसुअस्स ववहारकप्पस्स चरणविसोहीए आउरपच्चक्खाणस्स महापच्चक्खाणस्स उसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ जइ कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं उत्तरझयणाणं दसाणं कप्पस्स ववहारस्स इसिभासिआणं निसीहस्स महानिसीहस्स जंबुद्दीवपन्नत्तीए चंदपन्नत्तीए सूरपन्नत्तीए दीवसागरपन्नत्तीए खुड्डियाविमाणपविभत्तीए महल्लिआविमाणपविभत्तीए अंगचूलियाए वग्गचूलियाए विवाहचूलिआए अरुणोववायस्स वरूणोववायस्स गरूलोववायस्स वेसमणोववायस्स वेलंधरोववायस्स देविंदोववायस्स उट्ठाणसुअस्स समुट्ठाणसुअस्स नागपरिआवलिआणं निरयावलिआणं कप्पिआणं कप्पवडिंसिआणं पुष्फिआणं पुप्फचूलिआणं वहिआणं वहिदसाणं आसीविसभावणाणं दिट्ठीविसभावणाणं चारणसुमिणभावणाणं महासुमिणभावणाणं ते अग्गिनिसग्गाणं उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिंपि एएसि उद्देसो समुंद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगपविट्ठस्स उद्देसो संमुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आयारस्स सुअगडस्स ठाणस्स समवाअस्स विवाहपन्नत्तीए नायाधम्मकहाणं उवासगदसाणं अणुत्तरोववाइअदसाणं पण्हावागरणाणं विवागसुअस्स दिट्ठीवाअस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ सव्वेसिंपि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ । फिर तीन प्रदक्षिणा दें। नीचे लिखा पाठ नाम पूर्वक बोलकर तीन बार वासक्षेप डालें। योग विधि / 22.1 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च ............. साहुस्स/साहुणीए पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमण षष्ठं आरोवावणीया नंदी पवत्तइ नित्थारगपारगाहोह। शिष्य- इच्छामो अणुसळिं। हर बार कहें। दो वांदणा दें। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठ आरोवावणी नंदीकरावणी वासनिक्खेवकरावणी देववंदावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठ आरोवावणी नंदीकरावणी वासनिक्खेवकरावणी देववंदावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग कर पारकर प्रगट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी महाव्रतदंडक उच्चरावोजी। गुरू- उच्चरावेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य खड़े-खड़े कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर दोनों कोहनी पेट पर टिका कर पंचमहाव्रत दंडक पाठ सुने। गुरू नवकार पूर्वक महाव्रत का आलापक. इस प्रकार तीन तीन बार हर महाव्रत का आलापक सुनावें। पहिला महाव्रत पढमे भंते! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वं भंते पाणाइवायं पच्चक्खामि से सुहम वा बायरं वा तसं वा थावरं वा नेव सयं पाणे अइवाइज्जा नेवनेहिं पाणे अइवायाविज्जा पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पढमे भंते महव्वए उवठिओमि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं॥1॥ दूसरा महाव्रत अहावरे दुच्चे भंते! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते मुसावायं पच्चक्खामि से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायाविज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। दुच्चे भंते महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमण।।2।। 222 / योग विधि Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसरा महाव्रत अहावरे तच्चे भंते! महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं सव्वं भंते अदिन्नादाणं पच्चक्खामि से गामे वा नगरे वा अरण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचितमंतं वा नेव सयं अदित्रं गिहिज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिण्हाविज्जा अदिन्नं गिण्हंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तच्चे भंते महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं ॥3॥ चौथा महाव्रत अहावरे चउत्थे भंते! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते मेहुणं पच्चक्खामि से दिव्वं वा माणुस्सं वा तिरिक्खजोणिअं वा नेव सयं मेहुणं सेविज्जा नेवन्नेहिं मेहुणं सेवाविज्जा मेहुणं सेवते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। चउत्थे भंते महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं॥4॥ पाँचवा महाव्रत अहावरे पंचमे भंते! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते परिग्गहं पच्चक्खामि से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचितमंत वा नेव सयं परिग्गहं परिगिहिज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा परिग्गहं परिगिण्हंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पंचमे भंते महव्व उवट्ठिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥5॥ छट्ठा व्रत अहावरे छट्ठे भंते! वए राइभोयणाओ वेरमणं सव्वं भंते राइभोयणं पच्चक्खामि से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राइभोअणं भुंजिज्जा नेवनेहिं राइभोयणं भुंजाविज्जा राइभोयणं भुजंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि योग विधि / 223 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। छठे भंते वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं॥॥ मुहर्त का समय आने पर यह गाथा नवकार पूर्वक तीन बार सुनावें इच्चेइयाइं पंचमहव्वयाइं राइभोयणवेरमणछट्ठाई। अत्तहिअट्ठाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि॥ . अगली विधि करने से पूर्व चावलों को सप्त मुद्राओं के द्वारा अभिमंत्रित करना चाहिये। चावलों का वितरण कर देना चाहिये। बाद में जब नूतन मुनि या साध्वीजी प्रदक्षिणा दें तथा जब नामस्थापना हो तो उन्हें इन चावलों से 'बधाना चाहिये। _ मुद्रा- सौभाग्य, पंचपरमेष्ठि, धेनु, वज्र, हस्त, मुद्गर एवं 1. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठे आरोवेह। गुरू- आरोवेमि। शिष्य- इच्छं। 2. खमा. संदिसह किं भणामि। गुरू-- वंदित्तापवेयह। शिष्य- तहत्ति। 3. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं तुम्हे अहं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषटुं आरोवियं इच्छामो अणुसट्ठि। गुरू- आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसि पि पवेणीयं गुरूगुणवुड्ढिजाहि नित्थारगपारगाहोह। (यदि साध्वीजी म. के योगोद्वहन हो तो अन्नेसि पि पवेणीयं' यह पद नहीं कहें।) 4. खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि। गुरू-- पवेयह। शिष्य- इच्छं। 5. खमा. देकर नवकार मंत्र गिनत हुए तीन प्रदक्षिणा दें। गुरू महाराज से तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें। संघ भी अभिमंत्रित अक्षतों से बधाये। 6. खमा. तुम्हाणं पवेइयं साहणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। 7. खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठ आरोवावणी काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठ थिरीकरणत्थं काउस्सग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। ..खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अहं पंचमहव्वयं राइभोअणवेरमणषट्ठ थिरीकरणत्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लांगम्स का काउसग्ग करे। पारकर प्रगट लोगस्स कहें। 224 / योग विधि - Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउंजी। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण करावोजी। गुरूकरावेमो। शिष्य- इच्छं। गुरू महाराज उन्हें उपवास तप का पच्चक्खाण करावें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी मम दिग्बंधं करेह। गुरू- करेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य नवकार पूर्वक प्रदक्षिणा देकर आवें गुरू- नवकार। कोटिक गण. वज्र शाखा. चन्द्र कुल. खरतर बिरूद. महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी महाराज का वासक्षेप. गणनायक श्री सुखसागरजी महाराज का समुदाय. वर्तमान में आचार्य / गणाधीश....... ...............। उपाध्याय .........................., पू. ..................की निश्रा में। साक्षी साध्वीरत्न श्री....................म.। साक्षी श्रावकवर्य श्री........... ......... साक्षी सुश्राविका श्रीमती................. एवं सकल संघ समक्षे पू. ................... के शिष्य / शिष्या ............... (नूतन नाम बोलें) ........नाम नित्थारगपारगाहोह। सभी साधुओं, साध्वियों से वासक्षेप ग्रहण करे। प्रदक्षिणा देते समय श्रावक श्राविका उन्हें अक्षतों से बधाये। इस प्रकार नामकरण की क्रिया तीन बार करें। नूतन साधु । साध्वी गुरू महाराज को विधिवत् द्वादशावर्त वंदना करे। फिर नूतन साधु । साध्वी को सकल संघ विधिवत् वंदना करे। ___ शिष्य खमा. पूर्वक कहे- इच्छाकारेण धम्मोवएसं करेह। गुरू- सुणेह। गुरू महाराज प्रासंगिक प्रवचन दें। बाद में दिक्पालों का विसर्जन करने के बाद नंदी का विसर्जन करे। तत्पश्चात् जिनमंदिर जाकर विधिवत् चैत्यवंदन करे। बाद में ईशान कोण में बैठकर नवकार मंत्र की एक माला फेरे। बाद पच्चक्खाण पारने आदि की विधि करें। (इति बड़ी दीक्षा विधि) योग विधि / 225 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुयोग विधि अनुयोग अर्थात् वाचना! बड़ी दीक्षा के पूर्व दिन शाम को यह विधि की जाती है। वांचना ग्रहण करने के बाद पानी नहीं पीया जाता है। वसति संशोधन करकं स्थापनाजी खुला रखें। तब क्रिया करें। वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कार्यात्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कह। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेह। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहु। गुरूसंदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू-- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपति पडिलेहुँ। गुरूपडिलेहेह। शिष्य-- इच्छं।। कहकर मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अनुयोग आढq। गुरू-- आढवेह। शिष्य- इच्छं। 226 / योग विधि Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अनुयोग आढवावणी काउसग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं अनुयोग आढवावणी काउसग्गं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें व पारकर प्रगट नवकार बोलें। वायणा विधि शिष्य-- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। गुरू नवकार पूर्वक कहें नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ चत्तारि अनुओगदारा पन्नत्ता तं जहा उवक्कमो, निक्खेवो अणगमो नओ य। प्रथम सामायिक आवश्यक वांचना फिर तिविहण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू-- ठाएह। शिष्य-- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें नवकार एवं करेमि भंते की वांचना दें। यदि समय हो तो अर्थ सहित अन्यथा मूल की वांचना दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। द्वितीय चउवीसत्थो आवश्यक वाचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउँ। गुरू- ठाएह। शिष्य-- इच्छं। = योग विधि / 227 - Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वाचना ग्रहण करें। ... गुरू उन्हें लोगस्स. सव्वलोए अरिहंतचेइयाणं. की वांचना दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। तृतीय वंदनक आवश्यक वांचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। ___ गुरू उन्हें वांदणा सूत्र की वांचना दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक वाचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें इरियावही, तस्सउत्तरी, जयउ सामिय, जयतिहुअण, जयमहायस, जंकिंचि, नमुत्थुणं, अरिहंत चेइयाणं. पुक्खरवरदी, सुअस्स भगवओ. सिद्धाणं बुद्धाणं. वेयावच्चगराणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्, 228 / योग विधि Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवसग्गहरं, जयवीयराय, सयणासणन्न, अहोजिणेहिं, इच्छा. संदि. भग. देवसिअं आलोउं, ठाणे कमणे, संथारा उवट्टणकी, सव्वस्सवि, चत्तारि मंगलं, इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्झाए, अब्भुट्ठिओ, सुयदेवयाए, सुवर्ण, भवणदेवयाए, ज्ञानादि, खित्तदेवयाए, यासां, नमोस्तु, परसमय, चउक्कसाय, राइसंथारा, इन सूत्रों की वांचना दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। पंचम काउसग्ग आवश्यक वाचना __ शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशं। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य - इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें तस्सउत्तरी, तथा अन्नत्थ. सूत्र की वांचना दें। । खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। .. षष्ठ पच्चक्खाण आवश्यक वाचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशृं। गुरू- लेजो। शिष्य-- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य-- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें नवकारसी, पोरिसी, साढपोरिसी, पुरिमड्ढ, अवड्ढ, = योग विधि / 229 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बियासणा, एकासणा, एकलठाण, नीवी, आयंबिल, उपवास, अभिग्रह, विगड़, दिवसचरिमं चौविहार, पाणाहार इन सूत्रों की एवं पच्चक्खाण पारने के सूत्र फासिय, सूत्र की वांचना दें। इस प्रकार छह आवश्यक सूत्र की वांचना पूरी होने पर दो वांदणा दें। खमा देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। विशेष- यदि दशवैकालिक सूत्र के योग भी साथ ही चल रहे हों तो उन सूत्रों की वांचना भी साथ ही होगी । प्रथम अध्ययन वांचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए .... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं । खमा, इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- लेजो । शिष्य - तहत्ति ! गुरू नवकार पूर्वक कहें - नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ चत्तारि अनुओगदारा पन्नत्ता तं जहा उवक्कमो, निक्खेवो अणगमो नओ य । फिर तिविहेण पूर्वक खमा देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू -- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें दशवैकालिक सूत्र के प्रथम अध्ययन की वांचना दें। खमा देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि. दुक्कडम्। द्वितीय अध्ययन वांचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ..... गुरू- तिविहेण, शिष्य - मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं । खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- लेजो। शिष्य - तहत्ति । 230 / योग विधि Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिर तिविहण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू-- ठाएह। शिष्य-. इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करकं हाथ जोड़कर बेट और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। ___गुरू उन्हें दशवैकालिक सूत्र के दूसरे अध्ययन की वांचना दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। तृतीय अध्ययन वांचना - शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू-- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले°। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू--- संदिसावेह। शिष्य-- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू-- ठाएह। शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। गुरू उन्हें दशवैकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन की वांचना दें। खमा. देकर कहें-- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। चतुर्थ अध्ययन वाचना शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए.... गुरू-तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा ले\। गुरू- लेजो। शिष्य- तहत्ति। फिर तिविहेण पूर्वक खमा. देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं। गुरू- ठाएह। शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें। योग विधि / 231 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरू उन्हें दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन की वांचना दें। इस प्रकार चारों अध्ययन की वांचना पूर्ण होने पर दो वांदणा दें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। अनुयोग समापन विधि इस प्रकार आवश्यक या दशवकालिक या दोनों की योगोद्वहन के अनुसार अनुयोग विधि पूर्ण होने के बाद यह विधि करें शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अनुयोगं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं। ..खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अनुयोग पडिक्कमणत्थं काउसग्गं करेमि। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं अनुयोग पडिक्कमणत्यं काउसग्गं करेमि काउसग्गं अनत्थ. कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें व पारकर प्रगट नवकार बोलें। फिर गुरू महाराज को वंदना करें। (इति अनुयोग विधि) - 232 / योग विधि Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योगोद्वहन निक्षेप विधि योगोद्वहन पूर्ण होने पर प्रातःकाल प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना करके गुरू महाराज के पास पहुँच कर योगोद्वहन निक्षेप की क्रिया करें। सर्वप्रथम प्रतिदिन की भांति वसति संशोधन करें। फिर वसति संशोधन की क्रिया करें। वसति संशोधन विधि योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । इरियावी. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य - खमा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहु । गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं । मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। शिष्य - खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुं । गुरूसंदिसावेह | शिष्य- इच्छं । शिष्य - खमा. भगवन् सुद्धावसहि । गुरू- तहत्ति । शिष्य- इच्छं । पडिलेहण विधि शिष्य- खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि । गुरू- पडिक्कमेह । शिष्य- इच्छं । योग विधि / 233 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरियावही. तस्स. अनत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें. प्रकट लोगस्स कहें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूँ। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण संदिसाहुं। गुरू-- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंग पडिलेहण करूँ। गुरू-- करेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलावोजी। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का पडिलेहण करें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण संदिसा। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं।। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि पडिलेहण करूं। गुरू-- करेह। शिष्य-- इच्छं। शिष्य - अणुजाणह जस्सुग्गहो वोसिरामि वोसिरामि वोसिरामि शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छ। इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें। फिर स्थापनाचार्यजी की एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहुँ। गुरूपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवोजी। गुरू- निक्खेवामि। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवावणी वासनिक्षेप करेह। गुरू-- करेमि। शिष्य 234 / योग विधि Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छं। गुरू महाराज शिष्य पर तीन नवकार मंत्र गिनकर एक बार वासक्षेप करें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवावणी वासनिक्षेपकरावणी देववंदावोजी। गुरू- वंदावेमि। शिष्य- इच्छं। कहकर बायां घुटना ऊँचा करके चैत्यवंदन करें। जयउ सामिय. जंकिंचि. णमुत्थुण. जावंति. खमा. जावंत. नमो. उवसग्गहरं. जयवीयराय. तक कहें। फिर दो वांदणा दें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवावणी वासनिक्षेपकरावणी देववंदावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करावेमि। शिष्य- इच्छं। ___खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवावणी वासनिक्षेपकरावणी देववंदावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. बोलकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। फिर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउं गुरू-- पवेयह। शिष्य- इच्छ। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक (या दशवैकालिक) योग निक्खेवावणी परिमित विगइ विसजावणी पाली पारणु करशुं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण करावोजी। गुरू-. करेह। शिष्य- इच्छं। गुरू महाराज कम से कम बियासणा का पच्चक्खाण करावें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं परिमित विगइ विसज्जावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करावेमि। शिष्य- इच्छं। . खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं परिमित विगइ विसज्जावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। प्रकट नवकार कहें। फिर गुरू महाराज को विधिवत् द्वादशावर्त वंदन करें। खमा. देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कडम्। . (इति योगोद्वहन निक्षेप विधि) योग विधि / 235 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 दिन आवश्यक योगोद्वहन में खमासमणे का पद 1 दिन सामायिक अध्ययनाय नमो नमः 2 दिन चउवीसत्थो अध्ययनाय नमो नमः वंदणयं अध्ययनाय नमो नमः पडिक्कमणं अध्ययनाय नमो नमः 5 दिन काउसग्गं अध्ययनाय नमो नमः 6 दिन पच्चक्खाण अध्ययनाय नमो नमः 7 दिन आवश्यक समुद्देशाय नमो नमः 8 दिन आवश्यक अनुज्ञाय नमो नमः मांडलिक योगों में खमासमणे व प्रदक्षिणा नहीं होती। दशवकालिक योगोद्वहन में खमासमणे का पद 1. श्री दुमपुप्फिया अध्ययनाय नमो नमः 2. श्री सामण्णपुब्विया अध्ययनाय नमो नमः श्री खुड्डियायार अध्ययनाय नमो नमः श्री छज्जीवनिकाय अध्ययनाय नमो नमः श्री पिण्डैषणा अध्ययनाय नमो नमः श्री धम्मत्थकाम अध्ययनाय नमो नमः श्री वक्कसुद्धि अध्ययनाय नमो नमः श्री आयारप्पणिही अध्ययनाय नमो नमः श्री विणयसमाहि अध्ययनाय नमो नमः 10. श्री विणयसमाहि अध्ययनाय नमो नमः श्री सभिक्खु अध्ययनाय नमो नमः श्री रइवक्का चूलिआ अध्ययनाय नमो नमः 13 श्री विवित्तचरिआ चूलिआ अध्ययनाय नमो नमः 14. श्री दशैवालिक समुद्देशाय नमो नमः 15. श्री दशवैकालिक अनुज्ञाय नमो नमः बड़ी दीक्षा के दिन- श्री पंचमहाव्रताय नमो नमः 236 / योग विधि = Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायोत्सर्ग का पद 1 दिन सामायिक अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 2 दिन चउवीसत्थो अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 3 दिन वंदणयं अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अनत्थ. 4 दिन पडिक्कमणं अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 5 दिन. काउसग्गं अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. पच्चक्खाण अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. दिन आवश्यक समुद्देश आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 8 दिन आवश्यक अनुज्ञा आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. __सुत्त मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अनत्थ. 10 दिन अर्थ मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 11 दिन भोजन मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 12 दिन काल मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 13 दिन आवश्यक मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 14 दिन सज्झाय मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अनत्थ. 15 दिन संथारा मंडली आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 16 दिन श्री पंचमहाव्रत आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अनत्थ. दशवैकालिक योगोद्वहन में कायोत्सर्ग का पद 1. श्री दुमपुप्फिया अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 2. श्री सामण्णपुव्विया अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 3.. श्री खुड्डियायार अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 4. श्री छज्जीवनिकाय अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 5. श्री पिण्डैषणा अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 6. श्री धम्मत्थकाम अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 7. श्री वक्कसुद्धि अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अनत्थ. 8. श्री आयारप्पणिही अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 9. श्री विणयसमाहि अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. योग विधि / 237 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. श्री विणयसमाहिं अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 11. श्री सभिक्खु अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 12. श्री रइवक्का चूलिआ अध्ययन आराधनार्थ करंमि काउसग्ग अन्नत्थ. 13 श्री विवित्तचरिआ चूलिआ अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ 14. श्री दशैवालिक समुद्देश आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 15. श्री दशवैकालिक अनुज्ञा आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. तप आवश्यक योगोद्वहन में पहले दिन आयंबिल, दूसरे दिन से छठे दिन तक नीवी, सातवें व आठवें दिन आयंबिल होता है। मांडलिक योगों में आयंबिल होता है । दशवैकालिक योगोद्वहन में प्रथम, चौदहवें व पन्द्रहवें दिन दिन आयंबिल होता है। शेष दूसरे से तेरहवें दिन तक नीवी होती है। बड़ी दीक्षा के दिन उपवास होता है। विशेष ज्ञातव्य यांगोन में प्रतिदिन 20 माला पक्की नवकार मंत्र की फेरें । एक साथ पहली बार कम से कम पाँच माला गिननी अनिवार्य है। प्रतिदिन पद बोलकर 100 लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग किये बिना आयंबिल या नीवी नहीं हो सकती। प्रारंभ के आठ दिनों तक व बड़ी दीक्षा के दिन प्रतिदिन पद बोलकर 100 फेरी व 100 खमासमणे । दशवैकालिक सूत्र के योगों में भी प्रतिदिन 100 प्रदक्षिणा व 100 खमासमणं देने होते हैं। प्रतिदिन प्रातः प्रतिक्रमण में नवकारशी का ही पच्चक्खाण करें। प्रतिलेखना करें लेकिन आदेश विधि में गुरू महाराज के पास लें। सज्झाय व उपयोग की विधि भी गुरू महाराज के पास क्रिया में करें। योग के दिनों में पेंसिल का ही प्रयोग करें। पेन या बालपेन का नहीं । सुई डोरा का प्रयोग नहीं करें। वस्त्र प्रक्षालन नहीं करें। अपरिहार्य स्थिति में आदेश प्राप्त करें। दिन में शयन वर्जित है। 238 / योग विधि Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . आँसू आने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . विशेष- साध्वी वर्ग में अंतराय की स्थिति में उन्हें नित्य विधि ही करनी होती है। प्रातः प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना की विधि करने के बाद पवेयणा की क्रिया करानी होती है। अन्य विधियाँ प्रतिदिन की भाँति होती है। तीन या चार दिन बाद अध्ययन के उद्देश, समुद्देश आदि की विधि एक साथ करानी होती है। इन कारणों से प्रायश्चित्त आता है वमन हो जाय। मंदिर दर्शन करना भूल जाय। पच्चक्खाण पारना भूल जाय। आहार ग्रहण के बाद चैत्यवंदन करना भूल जाय। उग्घाडा पोरिसी पढानी भूल जाय। संथारा पोरिसी पढानी भूल जाय। प्रत्याख्यान से विरुद्ध आहार ग्रहण कर लिया हो। दिन में शयन किया हो। रूदन हो। रजोहरण, मुखवस्त्रिका की आड पडी हो। उपकरण गुम हुआ हो। मुट्ठिसहिय का पच्चक्खाण पारना भूल गया हो। विजातीय तिर्यंच का संघट्टा हो। गौचरी से उठने के बाद मुँह में से अन्न का कण निकला हो। __ आहार परठा हो। उल्लिखित प्रारंभ के सात कारणों से दिन बढता है, पर वर्तमान में प्रवृत्ति नहीं है। अभी इनके लिये उपवास का प्रायश्चित्त दिया जाता है। शेष कारणों के लिये आयंबिल. एकासणा, सज्झाय आदि का प्रायश्चित्त दिया जाता है। योग विधि / 239 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___नंदी विधि सामग्री सूची समवशरण या त्रिगडा चौमुख परमात्मा की प्रतिमाएँ चार अखंड दीपक दस छोटे दीपक, काँच की गिलास में या मिट्टी के दीये दीपकों हेतु घी पाँच नारियल सवा पाँच किलो चावल सवा पाँच किलो गुड सवा पाँच रुपये रोकड दो किलो चावल अलग से 20 नग फूल 10 नग पान 10 नग फल 10 नग नैवेद्य 10 नग बादाम 10 नग लोंग 10 नग इलायची 10 नग मिश्री के टुकड़े शुद्ध जल से भरा कलश केसर घिसा हुआ एक कटोरी एक अंगलूंछणां पूजा के वस्त्रों में किसी श्रावक की या पुजारी की उपस्थिति अनिवार्य है ताकि परमात्मा पर जरूरत मुताबिक पडदा किया जा सके। 240 / योग विधि - - Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ο Ο Ο Ο Ο Ο Ο Ο Ο Ο Ο