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तो साधु हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही बड़ी दीक्षा आदि विधि कराते थे।
__ कई मुनियों का, विशेष रूप से मेरे लघु गुरू बन्धु मुनि मनोज्ञसागरजी का विशेष अनुरोध रहा कि बड़ी दीक्षा की कोई सरल पुस्तक प्रकाशित की जाये। यह उसी का परिणाम है। इसे सरल बनाने के कारण पुस्तक थोडी बड़ी जरूर हो गई है। पर हर साधु के लिये बहुत ही उपयोगी बनेगी।
इस पुस्तक के लिये प्रमाणों के संकलन में बहिन साध्वी डॉ. विद्युत्प्रभा का पूर्ण योगदान रहा है। जो मेरे पुरूषार्थ की पूंजी भी है और प्रेरणा भी है।
सामग्री के संकलन, पाण्डुलिपि निर्माण, प्रूफ संशोधन आदि में मुनि मनितप्रभ का अनुमोदनीय पुरूषार्थ रहा है।
( उपाध्याय मणिप्रभसागर)
श्री जिनकुशलसूरि जैन आराधना भवन, बैंगलोर गुरू सप्तमी पर्व, मिगसर वदि 7, वि.सं. 2061
14 / योग विधि