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खमा. इच्छा. संदि. भग. सज्झाय करूं। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।
खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो संदिसाउं। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं।
खमा. इच्छा. संदि. भग. पांगरणो पडिग्गीं। गुरू- पडिग्गहेह। शिष्यइच्छ।
अथ सायं क्रिया विधि (आवश्यक व दशवैकालिक योगोद्वहन में शाम की क्रिया प्रतिदिन यही होती है। मांडलिक योगों में शाम की क्रिया अलग होती है।) वसति संशोधन विधि
योगोद्वहन करने वाले वसति संशोधन करें तथा उपाश्रय में प्रवेश करते समय तीन बार निसीहि कहें और गुरू महाराज के समीप जाकर हाथ जोड़कर सिर झुकाकर 'भगवन् सुद्धावसहि' कहें। - शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह · भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं।
_इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें।
शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति पवेवा मुहपति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं।।
मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। फिर दो वांदणा दें। शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसति संदिसाहुँ। गुरू- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. भगवन् सुद्धावसहि। गुरू- तहत्ति। शिष्य- इच्छं। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भग. बहुपडिपुण्णापोरिसी। गुरू- तहत्ति
शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिक्कमामि। गुरू- पडिक्कमेह। शिष्य- इच्छं।
इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. एक लोगस्स का कायोत्सर्ग सागरवरगंभीरा तक करें, प्रकट लोगस्स कहें।
शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करू। गुरूकरेह। शिष्य- इच्छं।
शिष्य- खमा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वसहिं पमज्जेमि। गुरूपमज्जेह। शिष्य- इच्छं।
योग विधि / 37