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कराया जाता है तथा उस सूत्र के अध्ययनादि के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा आदि के दिन निर्विकृतिक तप कराया जाता है।
दीक्षा विधि
बड़ी दीक्षा की विधियाँ तो प्रायः एक सी हैं। खरतरगच्छ की सभी परम्पराओं में एक जैसी विधि प्रचलित है। परन्तु छोटी दीक्षा की विधि में छोटे छोटे समाचारी भेद नजर आते हैं। ___. लघु दीक्षा विधि में आचार दिनकर का यह उल्लेख जानने योग्य है कि पहले तीन बार सम्यक्त्व सामायिक दंडक उच्चराया जाता है। फिर देशविरति सामायिक दंडक तीन बार उच्चराया जाता है फिर उसे सर्वविरति सामायिक दंडक तीन बार उच्चराया जाता है
- ततश्विनमस्कारं पठित्वा गुरूणा सह शिष्यः सम्यक्त्व सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति पुनस्तयैव युक्त्या देशविरति सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति पुनस्तयैव युक्त्या सर्वविरति सामायिकदण्डकं त्रिरूच्चरति।
वर्तमान में यह परम्परा नहीं है। वर्तमान में पूर्व में यदि दीक्षार्थी ने विधि पूर्वक सम्यक्त्व आरोपण विधि नहीं की है तथा सम्यक्त्व नहीं उच्चरा है तो उसे तीन बार सम्यक्त्व सामायिक दंडक उच्चरा करके सर्वविरति दंडक उच्चराया जाता है। परन्तु देशविरति सामायिक दंडक उच्चराने का विधान तो और किसी भी ग्रन्थ में नहीं है। विधि मार्गप्रपा, समाचारी शतक आदि समाचारी विधि ग्रन्थों में देशविरति सामायिक दंडक उच्चराने का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वर्तमान में परम्परा भी यही है कि देशविरति सामायिक दंडक नहीं उच्चराया जाता। ___दीक्षा विधि के प्रारंभ में वैरागी भाई बहिन की परीक्षा लेने का विधान विधिप्रपादि ग्रन्थों में देखा जाता है। उसकी विधि इस प्रकार की जाती है कि दीक्षार्थी भाई या बहिन को परमात्मा के समवशरण के आगे खडा किया जाता है। फिर उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी जाती है। फिर उसके दोनों हाथों में चावल अर्पण कर उसे कहा जाता है कि वह चावलों को ठीक भगवान् पर उछालें। यदि चावल नंदी में अर्थात् समवशरण में गिरते हैं तो उसे योग्य माना जाता है। और यदि चावल बाहर गिरते हैं तो उसे अयोग्य माना जाता है।
हाँलाकि शास्त्रों में यह विधि है, परन्तु यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती और
8 / योग विधि