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लोगस्स. सव्वलोए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें
सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः॥2॥
पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें
वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥
सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें.. नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः।
सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनान्नवतु मंगलेभ्यः।।
नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काहसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें
रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥5॥
श्री शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अनत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति
श्री शान्तिजिनभक्ताय भव्याय सुखसम्पदम्। श्री शान्तिदेवता देयादशान्तिममनीय मे॥6॥
श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति
सुवर्णशालिनी देयाद- द्वादशांगी जिनोदभवा। . श्रुतदेवी सदा मह्य मशेष श्रुतसम्पदम्॥7॥
श्री भवन देवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार. नमोऽर्हत्. स्तुति
चतुर्वर्णाय संघाय देवी भवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा करोतु सुखमक्षतम्॥8॥ श्री क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि कोउसग्गं अन्नत्थ. एक नवकार.
योग विधि / 19