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________________ गुरू- करावेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। प्रकट लोगस्स कहें। यह कायोत्सर्ग गुरू महाराज भी करें। दीक्षार्थी खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं वासक्खेवं करेह। गुरू- करेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। दीक्षार्थी नवकार मंत्र गिनते हुए परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें और गुरू महाराज से तीन बार वासक्षेप लें। गुरू महाराज वर्धमान विद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप डाले। , दीक्षार्थी खमा. देकर कहें- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं नंदीकड्ढावणियं चेइयं वंदावेह। गुरू- वंदावेमि। दीक्षार्थी- इच्छं। कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें। गुरू महाराज भी देववंदन करें। खमा, इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूँजी। इच्छं। चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिन। प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ जंकिचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अन्नत्थ, बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सुस्थिताः । तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविजविघातिने॥1॥ 18 / योग विधि
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
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