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________________ खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक सुयखधं अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री आवश्यक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। गुरूसांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढू इच्छं। शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिर्जति नो समुद्धिसिजति नो अणुनविजंति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सग्गवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ आवस्सग्गस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं सामाइयस्स चउविसत्ययस्स वंदणयस्स पडिक्कमणस्स काउस्सग्गस्स पच्चक्खाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ 74 / योग विधि
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
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