SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन।।8।। जयवीयराय बोलें। खमा. इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेडं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य इच्छ। मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी। गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं। . . ___ खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अहं श्री दशवकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। - गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखधं उद्देसावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कह कर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी। गुरूसांभलो। गुरू भी खमा. इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढू इच्छं। शिष्य खड़े खड़े कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजोहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने। तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे। नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिजंति नो समुद्धिसिन्जंति नो अणुनविजंति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुना अनुओगो य पवत्तइ। जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना योग विधि / 125
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy