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10. श्री विणयसमाहिं अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 11. श्री सभिक्खु अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ.
12. श्री रइवक्का चूलिआ अध्ययन आराधनार्थ करंमि काउसग्ग अन्नत्थ. 13 श्री विवित्तचरिआ चूलिआ अध्ययन आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ 14. श्री दशैवालिक समुद्देश आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. 15. श्री दशवैकालिक अनुज्ञा आराधनार्थ करेमि काउसग्गं अन्नत्थ.
तप
आवश्यक योगोद्वहन में पहले दिन आयंबिल, दूसरे दिन से छठे दिन तक नीवी, सातवें व आठवें दिन आयंबिल होता है। मांडलिक योगों में आयंबिल होता है । दशवैकालिक योगोद्वहन में प्रथम, चौदहवें व पन्द्रहवें दिन दिन आयंबिल होता है। शेष दूसरे से तेरहवें दिन तक नीवी होती है। बड़ी दीक्षा के दिन उपवास होता है।
विशेष ज्ञातव्य
यांगोन में प्रतिदिन 20 माला पक्की नवकार मंत्र की फेरें । एक साथ पहली बार कम से कम पाँच माला गिननी अनिवार्य है।
प्रतिदिन पद बोलकर 100 लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग किये बिना आयंबिल या नीवी नहीं हो सकती।
प्रारंभ के आठ दिनों तक व बड़ी दीक्षा के दिन प्रतिदिन पद बोलकर 100 फेरी व 100 खमासमणे । दशवैकालिक सूत्र के योगों में भी प्रतिदिन 100 प्रदक्षिणा व 100 खमासमणं देने होते हैं।
प्रतिदिन प्रातः प्रतिक्रमण में नवकारशी का ही पच्चक्खाण करें। प्रतिलेखना करें लेकिन आदेश विधि में गुरू महाराज के पास लें। सज्झाय व उपयोग की विधि भी गुरू महाराज के पास क्रिया में करें। योग के दिनों में पेंसिल का ही प्रयोग करें। पेन या बालपेन का नहीं । सुई डोरा का प्रयोग नहीं करें।
वस्त्र प्रक्षालन नहीं करें। अपरिहार्य स्थिति में आदेश प्राप्त करें। दिन में शयन वर्जित है।
238 / योग विधि