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भूमिका
खरतरगच्छ परम्परानुसार दीक्षा, बड़ी दीक्षा विधि की यह आवश्यक पुस्तक प्रस्तुत करते समय हर्ष होना स्वाभाविक है।
पिछले काफी लम्बे समय से ऐसी पुस्तक की अतीव आवश्यकता प्रतीत हो रही थी। खरतरगच्छीय परम्परानुसार दीक्षा विधि का प्रकाशन पूर्व में हुआ था परन्तु बड़ी दीक्षा विधि का प्रकाशन अद्यावधि हुआ नहीं है। हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही बड़ी दीक्षा कराने की परम्परा चल रही है।
पूज्य गुरूदेव आचार्य भगवन्त स्व. श्रीमज्जिनकान्तिसागरसूरीश्वर जी म. सा. ने बड़ी दीक्षा योगोद्वहन विधि की कई प्रतियाँ हस्तलिपिकारों से लिखवाई थी, वे आज भी 'श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भंडार लोहावट पालीताणा' में सुरक्षित हैं। गुरूदेव श्री हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर ही योगोद्वहन कराते थे।
__ पूर्व में खरतरगच्छ की परम्परा में बड़ी दीक्षा के योगोद्वहन आचार्य श्री या गणनायक के सानिध्य में ही संपन्न होते थे। बड़ी दीक्षा का अधिकार आचार्यश्री या गणनायक के अलावा और किसी को भी नहीं था। प्रव्रज्या कोई भी दे सकता था परन्तु उपस्थापना तो आचार्य ही करते थे। _ पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री बताते थे कि पूज्य आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरि जी म.सा. तक उपस्थापना का अधिकार उनके पास ही था। उसके बाद कारणवश परम्परा में परिवर्तन हुआ और यह परम्परा बनी कि जो पर्याय स्थविर हो, वह आचार्य अथवा गणनायक की अनुज्ञा से उपस्थापना कर सकता है।
शास्त्र अपेक्षा से तो जिसने महानिशीथ सूत्र तक के योगोद्वहन किये हों, वही बड़ी दीक्षा, उपधान आदि विधि विधान कराने का अधिकारी होता है।
योगोद्वहन पर सबसे ज्यादा जोर खरतरगच्छ परम्परा का रहा है। विधि प्रपा,
योग विधि / 3