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________________ आचार दिनकर, समाचारी शतक आदि कितने ही ग्रन्थों में शास्त्र पाठों के आधार पर योगोद्वहन की सिद्धि की है। योगोद्वहन की जो विधियाँ प्रचलित हैं, उनमें सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ खरतरगच्छ के ही मिलते हैं। हमारे पालीताणा के हस्तलिखित भण्डार 'श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भंडार, लोहावट' में साधु समाचारी संबंधी प्रचुर सामग्री संग्रहित है। उसमें एक प्रपत्र है जो वि.सं. 1633 चैत्र वदि 5 को लिखा गया है। उसकी प्रशस्ति में लिखा है तथा स्वस्तिश्रीमन्नपविक्रमसमयातीत संवत् 1606 वर्षे श्री आषाढ़ चतुर्मासे श्री विक्रमनगरे सुविहित शिरोमणि श्री खरतरगच्छे भट्टा. श्री जिनमाणिक्यसूरि विजयराज्ये उपाध्याय श्री कनकतिलक, वाचनाचार्य श्री भावहर्षगणि तथा गणि श्री शुभवर्धन पंडित श्री मेघकलश समस्त......... ...... श्री खरतरगच्छइ ऋषीश्वरनी बांधणीए कीधी छइ स्थिति मर्यादा लोपइ ते गच्छ बाहिरि। ___ अर्थात् वि.सं. 1606 आषाढ़ चातुर्मास में आचार्य श्री जिनमाणिक्यसूरि ने गच्छ मर्यादा बनाई। इस मर्यादा पत्र में कुल 54 बोल लिखे गये। इसका बोल नं. 16 व 26 योगोद्वहन के संबंध में हैं। बोल 16- छमासि गणियोग पाखइ माला उपधान दीक्षादिक न करिवा। बोल 26- तप वह्या पाखइ सिद्धांत वांचिवउ नहीं। इन दो बोलों से खरतरगच्छ की सुविशुद्ध परम्परा का बोध होता है। छह मास के गणियोग अर्थात् भगवती के योग जिसने किये हों, वही मालारोपण, उपधान, दीक्षा-बड़ी दीक्षा आदि करा सकता है। योगोद्वहन किये बिना शास्त्र पढने का निषेध किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में बड़ी दीक्षा की विधि के साथ बड़ी दीक्षा के समय जो जरूरी योगोद्वहन कराये जाते हैं, उसकी विधि विस्तार से आलेखित है। बड़ी दीक्षा के संदर्भ में शास्त्र मान्यता और वर्तमान परम्परा में काफी भेद पाया जाता है। आचार दिनकर में आचार्य वर्धमानसूरि का कथन है प्रथमं नन्दिविधियुक्त आवश्यकदशवैकालिकयोगोद्वहनं विदध्यात्। ततश्च मण्डलीप्रवेशयोगोद्वहनान्तराले अध्ययनत्रयाचाम्लत्रये नन्दिरूत्थापनाख्या विधेया। . - आवश्यक एवं दशवैकालिक योग होने के बाद मांडलिक योगों में 4 / योग विधि
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
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