________________
अथ श्री दशवैकालिक योग विधि
प्रथम दिन
यह विधि समवशरण की रचना कर उसमें चौमुख परमात्मा को बिराजमान करके की जानी चाहिये । यदि संभव न हो तो स्थापनाचार्य जी के समक्ष करे । स्थापना जी खुला रखें।
आसन बिछावें, कमली दूर करें।
एक एक नवकार गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। खमा इरियावही करें। खमा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मुहपत्ति पडिलेहूं । गुरूपडिलेहेह । शिष्य- इच्छं ।
कहकर. मुहपत्ति की पडिलंहण करें।
खमा. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध उद्देसावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करोजी । गुरू-- करेमि । शिष्य- इच्छं । कहकर तीन प्रदक्षिणा देते हुए गुरू महाराज तीन बार वासक्षेप ग्रहण करें।
खमा. इच्छ. भग.! तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं उद्देसावणी नंदीकरावणी देववंदावोजी । गुरू- वंदावेमि । शिष्य- इच्छं । कहकर बायां घुटना उँचा करें और अठारह थुई का देववंदन करें।
खमा. इच्छा. संदि. भग. चैत्यवंदन करूँजी । इच्छं ।
चैत्यवंदन
आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम् ।
आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ।
"
सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं । प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम् । नरामरेन्द्रैः : स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम् ॥
योग विधि / 121