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बियासणा, एकासणा, एकलठाण, नीवी, आयंबिल, उपवास, अभिग्रह, विगड़, दिवसचरिमं चौविहार, पाणाहार इन सूत्रों की एवं पच्चक्खाण पारने के सूत्र फासिय, सूत्र की वांचना दें।
इस प्रकार छह आवश्यक सूत्र की वांचना पूरी होने पर दो वांदणा दें। खमा देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि
दुक्कडम्।
विशेष- यदि दशवैकालिक सूत्र के योग भी साथ ही चल रहे हों तो उन सूत्रों की वांचना भी साथ ही होगी ।
प्रथम अध्ययन वांचना
शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए .... गुरू- तिविहेण, शिष्य- मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह । शिष्य- इच्छं ।
खमा, इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- लेजो । शिष्य - तहत्ति ! गुरू नवकार पूर्वक कहें
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नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ चत्तारि अनुओगदारा पन्नत्ता तं जहा उवक्कमो, निक्खेवो अणगमो नओ य ।
फिर तिविहेण पूर्वक खमा देकर इच्छा. संदि. भग. बेसणो संदिसाउं । गुरू -- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं ।
खमा इच्छा. संदि. भग. बेसणो ठाउं । गुरू- ठाएह । शिष्य- इच्छं कहकर शिष्य बायां घुटना ऊँचा करके हाथ जोड़कर बैठे और विधि पूर्वक वांचना ग्रहण करें।
गुरू उन्हें दशवैकालिक सूत्र के प्रथम अध्ययन की वांचना दें। खमा देकर कहें- अविधि आशातना मन वचन काया से मिच्छामि.
दुक्कडम्।
द्वितीय अध्ययन वांचना
शिष्य- इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ..... गुरू- तिविहेण, शिष्य - मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वायणा संदिसाउं । गुरू- संदिसावेह | शिष्य- इच्छं ।
खमा. इच्छा. संदि. भग. वायणा लेशुं । गुरू- लेजो। शिष्य - तहत्ति ।
230 / योग विधि