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गुरू-सुणेह। गुरू महाराज प्रासंगिक प्रवचन दें। बाद में नंदी का विधिपूर्वक विसर्जन करे। पहले दिक्पालों का विसर्जन करे।
पूर्व दिशा- ओम् ह्रीं इन्द्राय सायुधाय सवाहमाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।।
- अग्निकोण- ओम् ह्रीं अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
दक्षिण दिशा- ओम् ही यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
नैऋत्य कोण- ओम् ही नैऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
. पश्चिम दिशा- ओम् ह्रीं वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
वायव्य कोण- ओम् ह्रीं वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
उत्तर दिशा- ओम् ह्रीं कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
ईशान कोण- ओम् ह्रीं ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।।
ऊर्ध्व दिशा- ओम् ह्रीं ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
. अधो दिशा- ओम् ह्रीं नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय. पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
फिर नंदी का विसर्जन करे- ओम् ही नमो अर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यार्चिताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा।
दीक्षा विधि पूर्ण होने के बाद जिनमंदिर जाकर विधिवत् चैत्यवंदन करे। तत्पश्चात् ईशान कोण में बैठकर नवकार मंत्र की एक माला फेरे।
(इति दीक्षा विधि)
26 / योग विधि
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