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खमा. देकर शिष्य कहे- तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउसग्गं करेमि!
गुरू- करेह। शिष्य- इच्छं।
खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्यं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। पारकर प्रकट लोगस्स कहें।
खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अहं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं थिरीकरणत्यं काउसग्गं करावेह!
गुरू- करेह। शिष्य- इच्छ।
खमा. देकर कहे- सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं थिरीकरणत्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे। पारकर प्रकट लोगस्स कहें।
खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अहं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणियं निरूद्धतव करावेह!
गुरू- करावेमो।
शिष्य को उपवास का पचक्खाण करावें। यदि शक्ति न हो तो अपवाद स्वरूप आयंबिल भी कराया जा सकता है।
खमा. देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं नामठवणं करेह! शिष्य परमात्मा की प्रदक्षिणा देकर गुरू महाराज के आगे खडा रहे। गुरू महाराज वासक्षेप डालते हुए नवकार बोलकर नामकरण करे।
कोटिक गण, वज्र शाखा, चन्द्र कुल, खरतर बिरूद, महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म. का वासक्षेप, गणनायक श्री सुखसागरजी म. का समुदाय, वर्तमान में आचार्य/गणाधीश. ..... , उपाध्याय ......... पू. ....... के सानिध्य में, प्रवर्तिनी श्री ....., साक्षी विदुषी साध्वी रत्न श्री.. ........, साक्षी श्रावक प्रवर श्री.........., साक्षी सुश्राविका सौ.........,
____ एवं सर्व संघ समक्षे मुनि श्री/साध्वी श्री......... के शिष्य, मुनि/साध्वी.........नाम नित्थारगपारगाहोइ।
सभी साधुओं, साध्वियों से वासक्षेप ग्रहण करे। प्रदक्षिणा देते समय श्रावक श्राविका उन्हें अक्षतों से बधाये। इस प्रकार नामकरण की क्रिया तीन बार करें।
नूतन साधु / साध्वी गुरू महाराज को विधिवत् वंदना करे। फिर नूतन साधु । साध्वी को सकल संघ विधिवत् वंदना करे।
शिष्य खमा. पूर्वक कहे- इच्छाकारेण धम्मोवएसं करेह।
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योग विधि / 25