Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/008715/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन शासन के समर्थ उन्नायक आचार्य पद्मसागरसूरि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा । For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी के हाथों आचार्यपद ग्रहण करते हुए पूज्यश्री Caro तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी, संयम जीवन के २५ वर्ष के अभिनंदन समारोह प्रसंग पर पूज्यश्री को राष्ट्रसंत की उपाधि प्रदान करते हुए पूज्यश्री के आशीर्वाद ग्रहण करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई आचार्य श्री के साथ माननीय श्री अटलबिहारी वाजपेई For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || नमामि वीरं गिरिसार धीरम् ।। || आचार्य श्री बुद्धि कीर्ति- कैलास- कल्याण पद्मसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः || जिनशासन के समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि उपलक्ष्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि आचार्य पद रजतजयंति समारोह वि.सं. २०३३ - २०५८, ई. स. १९७६ - २००१ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००९ For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संपादन - संकलन (C) आवृत्ति प्रति वीर सं. वि. सं. इ. सन् मूल्य प्राप्ति स्रोत जिनशासन के समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि (JINA SASANA KĒ SAMARTHA UNNAYAKA ĀCĀRYA ŚRI PADMASĀGARASŪRI) प्रकाशक अक्षरांकन मुद्रक सौजन्य 10 : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र. प्रथम : : www.kobatirth.org : २५२८ : २०५८ : २००१ : ५००० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सद्वाचन : श्रुत सरिता (पुस्तक विक्रय केन्द्र) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००९ : श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र : कोबा, गांधीनगर, ३८२००९ फोन : (०७९) ३२७६२०४, ३२७६२०५, ३२७६२५२ E_mail: kobatirth@yahoo.com : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री नेमिनाथ प्रिन्टर्स, अहमदाबाद : श्रीमती शारदाबेन उत्तमभाई महेता परिवार. For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जैन शासन हेतु जिस महान आत्मा ने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया है, अपनी मधुर वाणी से लाखों श्रोताओं को धर्माभिमुख किया है, अपनी अनुपम प्रतिभा के प्रभाव से जैन संघ एवं जिनशासन से संबद्ध अनेकानेक जटिल कार्यों को सहज एवं सरलता से हल किया है, मानवमात्र के उपकार हेतु जो सतत प्रयासरत है ऐसे शासन प्रभावक व्याख्यान वाचस्पति राष्ट्रसंत परम पूज्य आचार्यदेवेश श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के आचार्य पद के रजत जयंति समारोह के प्रसंग पर परम पूज्य आचार्यश्री के उपकारों के अनुमोदन रूप पूज्यश्री के जीवन की झांकी कराने वाली इस लघु पुस्तिका का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है. परम पूज्य आचार्यदेव की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से जिनशासन के लिए गौरव समान श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (कोबा तीर्थ) कार्यरत हुआ है, जहाँ विशाल ज्ञानभंडार के रूप में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर जिनशासन की शोभा में चार चांद लगा रहा है. ऐसे परम उपकारी के अभिनंदनरूप प्रस्तुत प्रकाशन समस्त श्रीसंघ को समर्पित है. यद्यपि परम पूज्य आचार्यश्री के कार्यों का लेखा-जोखा तैयार करना एक बहुत बड़ा कार्य है फिर भी भक्ति से प्रेरित हो कर यहाँ पर इस पुस्तिका में आपश्री के जीवन- कवन को संक्षेप में आलेखित करने का प्रयास किया गया है. इस प्रयास में रही त्रुटियों के लिए क्षमा याचना. For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्व चिंतन में मग्न पूज्यश्री For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ||श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ।। जिन शासन के समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि दृष्ट्वापि दृश्यते दृश्यं, श्रुत्वापि श्रूयते पुनः । सत्यं न साधुवृत्तस्य, दृश्यते पुनरुक्तता ।। यह सच है कि महापुरुषों का चरित्र ही इतना सुन्दर होता है कि एक बार देखने-सुनने से बारंबार देखने-सुनने को मन करता है, फिर भी आश्चर्य है कि प्रत्येक बार देखने-सुनने में नया-नया ही लगता है. अर्थात् पुनरुक्ति दोष विमुक्त होता है. बालक प्रेमचन्द से आचार्य श्री पद्मसागरसूरि तक की सफल यात्रा ___जैनाचार्यों की गरिमापूर्ण अर्वाचीन परंपरा में एक यशस्वी नाम है : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज. आपका व्यवहार-कौशल्य, वाक्पटुता, स्वाभाविक सहजता, निर्भीक अभिव्यक्ति, कर्तव्य परायणता, अनुशासनप्रियता, अद्भुत साहसिकता, नेतृत्व सक्षमता इत्यादि अनेकानेक सद्गुणों से दैदीप्यमान जीवन जनसामान्य के लिये प्रेरणास्पद और वरदान है तो मानवता व साधुता के लिए सुखद आदर्श. महान आदर्शों के ठोस धरातल पर निर्मित आपका प्रतिभासम्पन्न व बहुमुखी व्यक्तित्व प्रारंभ से ही संघर्षशील रहा है. ध्येय के प्रति निष्ठा और सद्विचारों के लिये समर्पित आपका जीवन अपने आप में एक महान उपलब्धि है. जन्म और बाल्यकाल युगों की किसी सर्वोत्तम घड़ी में कभी ऐसी विरल आत्मा संसार में जन्म लेती है जो स्वयं तो आत्मोत्थान करती ही है साथ-साथ हजारों लाखों जीवों को जीवन जीने की कला का पथ-प्रदर्शन करती है और मानव कल्याण की गंगोत्री सदृश उपकारी बन जाती है. युगों-युगों तक जिनका नाम और कार्य पूरे संसार को परोपकार और कर्तव्यनिष्ठा की सतत प्रेरणा देता रहे, ऐसे महापुरुष के अवतार की गरिमा जिस भूमि को For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक प्राप्त हुई है वह रत्नभूमि है बंगाल की. अनेक अवतारी पुरुषों के जन्म और कर्म की अमर घटनाओं के साक्षी बंगाल प्रान्त का एक ऐतिहासिक नगर है अजीमगंज. बांगलादेश की सीमा पर स्थित तत्कालीन मुर्शिदाबाद स्टेट का यह नगर अपने में जैनों की अपार वैभवसंपन्नता और अदभुत धर्म-भावना को समेटे हुए था. उत्तुंग शिखरों से सुशोभित और सम्पत्ति के सदुपयोग के प्रतीक के रूप में विनिर्मित व्यक्तिगत सात भव्य जिन-प्रासादों के इस नगर में क्षत्रिय चौहान वंश के जगन्नाथसिंह (रामस्वरूपसिंह) जी के घर भवानीदेवी की पुण्य-कुक्षी से १० सितम्बर सन् १९३५ के मंगल दिन एक होनहार बालक ने जन्म लिया जिसका नाम प्रेमचन्द रखा गया. इस पुण्यात्मा ने समय के साथ सावधानी पूर्वक कदम बढ़ाकर राष्ट्रसन्त, महान जैनाचार्य, श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के बहुश्रुत नाम से जीवन में आशातीत सार्थकता व अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की. आपके पूर्वजों का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है. सैकड़ों साल पहले जोधपुर से प्रस्थानकर आपके पूर्वज मैनपुर (उत्तरप्रदेश) आये थे. कहा जाता है कि मैनपुर में किसी समय पाण्डवों का राज्य था. यहाँ से सूर्यभानसिंह, भगीरथसिंह और रामचरणसिंह तीनों पूर्वज भाई अपने शस्त्र सरंजाम सहित रण प्रयाण करके बिहार के सारण (छपरा) जिले के जलाल बसंत इलाके में आये और यहाँ के जागीरदार को पराजित करके अपना शासन कायम किया. इसके लिए मुसलमान जागीरदारों से संघर्ष भी करना पड़ा. सूर्यभानसिंह को यहाँ की गद्दी सौंपकर दो भाई पूर्व भारत की ओर आगे बढ़े. रामचरनसिंह ने वर्तमान समस्तीपुर के बेरीवारा में और भगीरथसिंहने उड़ीसा प्रान्त के चन्द्रगढ़ में अपनी हुकूमत स्थापित की. आचार्यश्री की वंश परंपरा के आद्य पुरुष श्रीमान् सूर्यभानसिंह थे. जलाल बसंत में अपने अधिनस्थ ब्राह्मण, धोबी, कुम्हार, अहीर, तैली, चमार, माली आदि आठ जाति के परिवारों को भी आपने अपने साथ लाकर यहाँ बसाया था. प्रेमचन्द श्री सूर्यभानसिंह से पंद्रहवीं पीढ़ी में आते हैं. (वंशावली की तालिका हेतु देखें पृ. ५८) पिता श्री जगन्नाथसिंहजी (रामस्वरूपसिंह) को For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि विरासत में अट्ठाईस गाँवों की जमींदारी मिली थी (जिसकी तालिका हेतु देखें पृ. ५९). आपकी ठकुराई और कीर्ति चारों दिशाओं में व्याप्त थी. राजस्थान की भूमि अपनी वीरता और शौर्य के लिए विश्वप्रसिद्ध है. श्रीमान जगन्नाथसिंहजी ने भी एक नीतिमान् कुशल जमींदार होने के नाते अपना कारोबार बखूबी चलाया था. समय-समय की बात है. जब देश की शासन प्रणाली में बदलाव आया तो जमींदारी भी समाप्त हो गई. पिताश्री की छत्रछाया खो चुके बालक प्रेमचन्द का पालन-पोषण माता श्रीमती भवानीदेवी ने बड़ी कुशलता व धैर्य के साथ किया. महात्माओं के चरित्र में कुछ विचित्र घटनाएँ अपने आप हुआ करती हैं. कृष्ण को मुक्त होना था तो वसुदेव की हथकड़ियाँ और कारागार के दरवाजे अपने आप खुल गये. इसी तरह प्रेमचन्द की माया की शृंखलाएँ अपने आप टूटने लगी. बड़ी माँ राजरानी देवी और पितामह श्री तपसी नारायणसिंह पहले ही गुजर चुके थे. बड़े भाई साहब श्री शत्रुघ्नप्रसादसिंह और उनकी धर्मपत्नी दयावन्ती देवी भी अपने छः पुत्रों का विशाल परिवार छोड़कर अचानक हृदय रोग से काल कवलित हो गए. अब प्रेमचन्द के विशाल परिवार में एक मात्र वात्सल्यमयी माता का शिरच्छत्र रह गया था. श्रीमती भवानीदेवी अपर माँ के पुत्रों को अपना ही समझती थी, वे स्वयं धर्मपरायण थी. अपने भाई जिनका बनारस में कारोबार था उनके वहाँ रहने गई. किसी परिचित से मिलने जब अजीमगंज आई तो इस अवधि में प्रेमचन्द का जन्म समय नजदीक होने से यहीं पर रुक जाना पड़ा और फिर जमीन-जायदाद परिवार को सौंप कर उन्होंने अपना निवास अजीमगंज में कायम बना लिया. आप बड़ी ही नेक स्वभाव की उदात्त चरित सन्नारी थी. सात्विकता, शान्तिप्रियता, सरलता, धर्म-परायणता इत्यादि गुणों से आप सचमुच दैवी प्रकृति की थी. निर्भीकता और कर्तव्यनिष्ठा के कारण समाज उन्हें हमेशा श्रद्धा से सन्मानीत करता था. आचार्य सुश्रुत के मतानुसार बच्चे में माता की सारी कोमलताओं का समावेश हो जाता है. वह तो सहज रूप से मिला ही, यथार्थ तो यह है कि आध्यात्मिक यात्रा में माता का अनुग्रह न For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक मिला होता तो प्रेमचन्द इतने उच्च सोपानों पर आरोहण कर आज जीवन के सर्वोच्च सार्थक शिखर पर न होते. प्रेमचन्द सचमुच प्रेम के अवतार हैं, जनम से ही आपकी तेजस्वी मुखमुद्रा, सौम्य-प्रकृति तथा चमकीली आँखों से आपके उज्ज्वल भविष्य का अनुमान तो प्रारंभ से ही सभी को हो गया था. लब्धिचन्द के लुभावने भविष्य को ढूंढती मासूम आँवों For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि नाम से परिजनों में प्रिय बने प्रेमचन्द ने शुरू से ही माता के बताए आदर्श जीवन-सूत्रों को बराबर ग्रहण कर लिया था. पतिदेव के स्वर्गवासी हो जाने के बाद कमर कस कर जीने तथा हर परिस्थिति को सहजता से झेलने की मानसिकता तो आपकी माता ने बना ही ली थी. माता भवानी देवी की इस विचारधारा ने बालक प्रेमचन्द को गहराई से प्रभावित किया. शैशव से ही प्रेमचन्द के कोमल कदम जीवन की कठोर डगर पर चलने के अभ्यस्त हो गए थे. निर्भीकता और सन्मार्ग पर निरंतर गतिशील जीवन - ये दोनों बहुमूल्य सूत्र, जो जनम के साथ ही प्रेमचन्द को माता से विरासत में मिले थे, आज तक की सफल जीवन यात्रा में पाथेय सिद्ध हुए हैं. इतना ही नहीं जैन शासन की प्रभावना के लिए इसे प्रकृति का अनमोल वरदान कहा जायेगा. ___ "होनहार बिरवान के होत चिकने पात." किन्तु ऐसे महान वृक्ष के लिए भूमि उर्वरक चाहिए. अजीमगंज एक ऐसा ही स्थान था, जहाँ बड़ी संख्या में सुसम्पन्न और सुसंस्कृत जैन परिवार थे. अनेक जिन मंदिर, उपाश्रय, विद्याशाला और उच्च कोटि के जैन शिक्षागुरु विद्यमान थे. श्री संघ में धार्मिक भावनाओं का एवं पारस्परिक सौहार्द का सुयोग उस जमाने में जैन संस्कृति को दिगन्त व्यापी बना रहे थे. ऐसे उर्वरक परिवेश से एक महामना युगपुरुष का आविर्भाव होना विधि के विधान में सुनिश्चित था. सौम्याकृति, विकसित पद्म सा मुखमंडल, ओजस्वी वाणी, और तेजस्वी नेत्र कुमार प्रेमचन्द की भावी भास्वरता के परिचायक थे. आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रेमचंद बचपन में जिस आसन और मुद्रा में बैठते थे वही आसन और भंगिमा आज भी प्रवचन पीठ पर विराजमान आचार्यश्री में पाई जाती है. कहावत है कि - गवादीनां पयोऽन्येद्युः सद्यो वा जायते दधि। क्षीरोदधेस्तु नाद्यापि महतां विकृतिः कुतः।। अर्थात् गाय-भैंस के दूध में कालान्तर में विक्रिया होने पर दही हो सकता है, परन्तु क्षीरोदधि में आज तक कोई विकृति नहीं होने पाई है. इसी प्रकार महापुरुषों में भी वही एकरुपता आजन्म रहती है. शुद्ध सुवर्ण For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ कभी गुण वैषम्य को नहीं पाता. आचार्यश्री के बचपन के गुणग्राम आज तक भी जात्यरत्न प्रभा की तरह अक्षुण्ण रहे हैं. शिक्षा और संस्कार माँ के दिशा निर्देशन में आगे बढ़े होनहार प्रेमचन्द की प्रारंभिक शिक्षा का श्रीगणेश अजीमगंज की श्री रायबहादुर बुधसिंह प्राथमिक विद्यालय से हुआ. छट्ठी कक्षा तक की शिक्षा प्रेमचन्द ने यहीं पर अर्जित की. विद्याभ्यास के क्षेत्र में आप कभी संतुष्ट नहीं हुए. अध्ययन के प्रति अपार लगन, अथक परिश्रम और अद्भुत स्मरण-शक्ति ने चरित्रनायक का नाम विद्यालय के होनहार विद्यार्थियों में दर्ज करा दिया. तन्दुरुस्त काया, निरन्तर निखरती प्रतिभा, सतत उद्यमशीलता इत्यादि गुणों ने प्रेमचन्द की विकास यात्रा को अनोखा रूप दिया. आपके पिताश्री का जो कि स्वयं भी जमींदार थे, अजीमगंज के लब्धप्रतिष्ठ जमींदार राजा साहब श्री निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा के खानदान के साथ परिचय होने के कारण माता भवानीदेवी वहीं पर कोठार सम्हालने का कार्य करती थी, परिणाम स्वरूप प्रेमचन्द की जीवन शैली प्रारम्भ से ही एक बड़े घराने की उच्च परम्पराओं के अनुरुप निर्मित हुई. शान से जीना, बन ठन कर टहलना, अदब से व्यवहार करना, सभ्यता से खाना, सौम्यता से बोलना, स्वच्छतापूर्वक रहना इत्यादि सभी कुछ नवलखा खानदान में सहज था जो कि प्रेमचन्द के जीवन-व्यवहार में भली-भाँति उतरा. श्रीपूज्यजी महाराज की गद्दी-ठिकाणा होने से अजीमगंज शहर उस जमाने में यतियों का केन्द्र था. जैन श्रीसंघ के करीब-करीब सभी जमींदारों के यहाँ बालकों के धार्मिक अध्ययन तथा अध्यापन हेतु यतिजी महाराज आया करते थे. नवलखा परिवार में यति श्री मोतीचन्दजी का नियमित रूप से आना जाना रहता था. मोतीचन्दजी महाराज बालब्रह्मचारी और आचार सम्पन्न व्यक्ति थे. वे जैन पाठशाला में अध्यापक होने से धार्मिक शिक्षा देने में कुशल थे. उनके सान्निध्य में ही बालक प्रेमचन्द को भी व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षा मिली थी. परिणामतः प्रारम्भ से ही आप में सुसंस्कारों का सिंचन हुआ. जैन इतिहास और अध्यात्म की बाराक्षरी उन्हीं से सुनने- सीखने को मिली. निर्मल-निर्दोष For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि बालमन आध्यात्मिक जीवनधारा का अनुरागी बन गया. पूर्व भव में अर्जित धर्मबीज तो थे ही, बस! जल के संयोग की प्रतीक्षा थी. श्री मोतीचन्दजी के साथी यति श्री करमचन्दजी महाराज भी बड़े सौम्य स्वभावी और ज्ञानानन्दी थे. वे रत्नों की परख करने में जौहरी की तरह निपुण थे. जैसे पवन ही पुष्पों की सुगंध को दशों दिशाओं में फैलाता है, उसी तरह सज्जन व्यक्ति ही उत्तम पुरुषों की गुणनिधि की पहचान करा सकते हैं. आपने भी प्रेमचन्द में विशिष्ट लब्धियाँ भाँप ली होगी अतः प्रेमचन्द का प्यारा सा दूसरा नाम लब्धिचन्द रख दिया. यही नाम बाद में सभी शिक्षा संस्थानों में चलता रहा. दोनों यतिवरों का लब्धिचन्द के ऊपर अपार स्नेह था. क्योंकि कुशाग्र, बुद्धिशाली और प्रतिभा सम्पन्न छात्र गुरुओं के स्नेह भाजन होते हैं. इतना ही नहीं यतिवर श्री मोतीचंन्दजी तो यहाँ तक चाहते थे कि यह बालक उन्हें सौप दिया जाय और वे अपने अभिभावकत्व में लब्धिचंद की शिक्षा-दीक्षा परिपूर्ण करायें. किन्तु शैशव की स्वाभाविक चंचलता के होते हुए आपकी महत्वाकांक्षा कुछ और ही थी. मोतीचन्दजी का स्नेहपाश उन्हें बाँध नहीं सका, क्योंकि बाल मानस और बहते पानी को कौन रोक पाया है? फिर भी भीतर में आध्यात्मिक भावनाओं का प्रवाह जारी ही रहा. अजीमगंज नगर देश के पूर्वी छोर का एक जाना-माना जैनों का केन्द्र था. यहाँ समय-समय पर जैनाचार्यों व मुनिवरों का चातुर्मास एवं विचरण होता था. एक दिन पाठशाला में बीकानेर गद्दी के श्रीपूज्य विजयेन्द्रसूरिजी महाराज आये थे. पीछे की पंक्ति में अध्ययन मग्न छात्र को बुलाते हुए कहा- 'लब्धिचन्द! इधर आओ' लब्धिचन्द विनय सहित नत मस्तक आचार्यश्री के पास पहुँचे, हाथ जोड़कर वंदना की. महाराज साहब ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और बोले 'तुम्हें जैन धर्म का एक होनहार प्रवक्ता बनना है'. मानो इस आशिष के रूप में भविष्य कथन ही किया था. महाराजश्री ने लब्धिचन्द को एक धार्मिक पुस्तक भी प्रदान की और अध्ययन के लिए उत्साहित किया. लब्धिचंद संघ के श्री पवनकुमारी जैन ज्ञानमंदिर में भी नियमित रूप से जाकर ज्ञानार्जन करते थे. आखिरकार एक दिन अन्तःकरण की उर्वर भूमि पर शैशव में For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक आन्दोलित हुए अध्यात्म के बीज जीवन में प्रव्रज्या ग्रहण की इच्छा के रूप में अंकुरित होने लगे. तेरह वर्ष तक मातृभूमि की पवित्र धूल में पलते-बढ़ते लब्धिचंद की छठी कक्षा तक की पढ़ाई सम्पन्न हुई. शिक्षा का दूसरा चरण प्रारंभ होने जा रहा था. कहा है - 'विद्यार्थीनां कुतः सुखं, सुखार्थीनां कुतो विद्या' अर्थात विद्यार्थी के जीवन में सुख नहीं होता और सुख चाहक विद्यार्थी को विद्या प्राप्त नहीं होती. आगे के अध्ययन के लिए माता श्रीमती भवानीदेवी और अन्य शुभचिन्तक चाहते थे कि इन्हें किसी उत्तम स्थान में शिक्षा दी जाय. राजा श्री निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा के अति आग्रह से शिवपुरी के सुविख्यात श्री वीर तत्त्व प्रकाशक मण्डल द्वारा संचालित जैन विद्यालय में आगे की शिक्षा के लिए भेजना तय हुआ. यतिजी महाराज अपना उत्तरदायित्व समझ कर स्वयं आपको साथ लेकर शिवपुरी गये. वहाँ आपके अध्ययन की सुचारु व्यवस्था की गई. महापुरुषों के जीवन में देवांशी तत्त्व होता है. वे कहीं भी जाएँ उनके पुण्य का प्रभाव सर्वत्र छाया बनकर चलता रहता है. यहाँ भी आपको इतना ही प्रेम और आदरभाव प्राप्त हुआ. शिवपुरी एक मनोरम्य हराभरा जनपद है. सिन्धिया राजाओं का यहाँ शासन चलता था. लाल पत्थरों से बने उनके ऐतिहासिक प्रासाद आज भी दर्शनीय है. यहाँ की पहाड़ियों से निकले लाल पत्थर भवन और मंदिरों के निर्माण हेतु उत्तम माने जाते हैं. कभी दस्यु सम्राट मानसिंह का यह क्षेत्र रहा था. यहाँ से कुछ दूरी पर चम्बल के बीहड़ जंगल आरंभ होते हैं. एक समय था जब शिवपुरी अंग्रेजों का प्रिय शिकारगाह था. उनके बंगले आज भी मौजूद हैं. पर्वत की सुरम्य गोद में हरी-भरी वनराजि से प्राकृतिक सौन्दर्य बिखेरती हुई शिवपुरी जहाँ पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है, वहीं वीर सेनानी तात्या टोपे का स्मारक हर देशवासी का मस्तक गौरवान्वित कर देता है. इन तमाम विशेषताओं के साथ-साथ शिवपुरी एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ और विद्यापीठ भी रहा है. किले पर स्थापित प्राचीन विशालकाय जैन मूर्तियाँ गौरवशाली अतीत की साक्षी हैं. For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ९ शास्त्र विशारद आचार्य प्रवर श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराज के अथक प्रयत्नों से स्थापित और उन्हींके विद्वान शिष्यरत्न मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज जो स्वयं एक अच्छे वक्ता और जाने-माने लेखक थे, उनके कुशल निर्देशन में संचालित इस ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान में लब्धिचन्द ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की. इस शिक्षण संस्थान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर दराज से जैन छात्र आया करते थे. जैन न्याय और संस्कृत के अलग-अलग खास विभाग थे. कोलकाता की बंगीय साहित्य परिषद् और इलाहाबाद के हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाओं का भी यहाँ केन्द्र था. अध्ययन के इस महत्वपूर्ण दौर में उन्हें मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज का पावन सान्निध्य मिला. मुनिश्री के विशेष प्रयत्नों के बदौलत ही इस संस्थान में प्रेमचन्द की बौद्धिक प्रतिभा का अभूतपूर्व विकास हुआ. वक्तृत्व कला की शिक्षा के अन्तर्गत आपने प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण की. केवल दो वर्षों के इस छोटे से अध्ययनकाल में आपने अनेक सफलताएं अर्जित की. धार्मिक अध्ययन के रूप में पंच प्रतिक्रमण व जीव विचार प्रकरणादि भी आपने यहीं पर कण्ठस्थ किये. मुनिश्री की अनूठी व आकर्षक प्रवचन - शैली से प्रेरित होकर आपने छोटे-छोटे भाषण देने भी यहीं सीखे. भाषणों की क्रमिक प्रगतिशील प्रक्रिया ने ही एक दिन प्रेमचन्द को जैन शासन का प्रखर प्रवक्ता बनाया और समाज ने आपको प्रवचन प्रभाकर का बिरुद दिया. शिवपुरी विद्यालय और कॉलेज को देश की कतिपय विभूतियों के निर्माण का यश प्राप्त है. प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार जयभिक्खु और सहृदय रतिलाल दीपचन्द देसाई यहाँ के छात्र रहे थे. भारत के भूतपूर्व प्रधान मन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री भी यहाँ कुछ दिनों रहे थे. मध्यप्रदेश के आइ. ए. एस. अधिकारी श्री शरच्चन्द्र पण्ड्या आपके अध्ययनकाल के सन्निकट मित्र व सहपाठी थे. भारत के महान महानुभावों को विद्यादान देनेवाली इस शिक्षण संस्था में ईसवी सन् १९५० तक रहने के बाद लब्धिचंद कोलकाता चले आए. यहाँ एक रिश्तेदार के घर में रहते हुए आपने श्री विशुद्धानन्द सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नौवीं व दसवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की. इसके बाद For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० जिनशासन के समर्थ उन्नायक आध्यात्मिक गतिविधियों की ओर निरन्तर प्रेरित करते मन ने लब्धिचन्द को व्यावहारिक शिक्षण में आगे बढ़ने नहीं दिया. ____ जीवन एक गतिशील मार्ग है. इस पर लोग आगे ही देखते जाते हैं. पीछे मुड़कर कौन देखता है, किन्तु लब्धिचंद जी को एक बार फिर शिवपुरी आना पड़ा. यह विद्याविजयजी महाराज का अपार स्नेह और ऋण था, जो उन्हें एक बार फिर वहाँ खींच लाया. कोलकाता में थे तब महाराज जी का पत्र मिला कि तुम मेरे पास आ जाओ. इस समय तुम्हारी बड़ी आवश्यकता है. लब्धिचन्द तुरन्त शिवपुरी पहुँचे और देखा तो विद्याविजयजी महाराज अपेन्डिक्स के कारण बहुत बीमार थे. आपने उनके पास तीन महिने रहकर खड़े पैर सेवा-सुश्रुषा की. मुनिश्री स्वस्थ हो गये. लब्धिचन्द को आत्मसंतोष हुआ कि उन्हें गुरु-ऋण अदा करने का कुछ अवसर मिला. मुनिवर को आपके इस वैयावच्च के अप्रतिम गुण ने गद्गदित कर दिया. स्नेह सिक्त वचनों द्वारा अति आग्रह किया कि "लब्धिचन्द तुम यहीं रह जाओ. बी. ए. करा दूंगा और यहीं पर काम भी दिला दूंगा' किन्तु लब्धिचन्द के मन में तो आध्यात्मिक चेतना का ज्वार उठा हुआ था. इसलिए 'अच्छा सोचूंगा' कहकर विद्यागुरु के चरण छुए और चल पड़े. भारत - भ्रमण ईसवी सन् १९५२ के अन्त में आप कोलकाता से पुनः अजीमगंज चले आए. अचानक माताजी के बीमार हो जाने से आपने कई महिनों तक उनकी सेवा सुश्रुषा की. अवकाश के समय का आपने सत्साहित्य के अध्ययन मनन में भरपूर उपयोग किया. स्वामी विवेकानन्द के साहित्य का अवगाहन किया. उनके विचारों ने भी आपको अच्छा खासा उत्साहित किया. प्रकृति का सर्वोत्तम सृजन मानव जीवन है. उसका श्रेयः तत्व क्या है यह रहस्य ढूँढ़ने के लिए लब्धिचन्द का मन सतत प्रयत्नशील था. प्रकृति के इस अनमोल अवदात को समझने की अति उत्कट भावना से प्रेरित हो लब्धिचंद शीघ्र ही भारत के प्रमुख ऐतिहासिक नगरों एवं तीर्थ स्थलों की यात्रा पर निकल पड़े. सूक्तों में कहा गया है कि देश विदेश में परिभ्रमण करने और पण्डितजनों के संपर्क से अनुभव ज्ञान की For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि वृद्धि होती है और बौद्धिक प्रतिभा जल में पड़े तेल की तरह विस्तृत होती है. १. देशाटन २. राज दरबार में गमन ३. व्यापारियों से मिलन ४. विद्वानों की संगति और ५. शास्त्रों का अवलोकन. संसार में इन पाँच कार्यों को ज्ञान-वृद्धि का निमित्त बताया गया है. किशोर लब्धिचंद के देशाटन का एक मात्र उद्देश्य था धार्मिक स्थलों का अवलोकन और सन्तों-महात्माओं का दर्शन वंदन. सर्व प्रथम आप विद्या और विद्वानों की नगरी काशी (बनारस) गये. उत्तर की ओर हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून तक यात्रा की. इस अवधि में किसी ने कहा कि पाण्डिचेरी में महर्षि अरविन्द का योगाश्रम देखना चाहिए तो आप तत्काल पाण्डिचेरी की ओर मुड़े. योगाश्रम के शिस्तबद्ध संन्यास जीवन को देखकर लब्धिचंद गहराई से प्रभावित हुए. मन में निश्चय कर लिया कि मुझे अब यही राह पकड़नी है. किन्तु संन्यास जीवन कहाँ और किसके सान्निध्य में आरम्भ करना है, यह निश्चित नहीं था. यहाँ से आप उत्तर भारत की ओर चल पडे. मथुरा, दिल्ली, आगरा, कोटा, ग्वालियर इत्यादि नगरों के अनेक ऐतिहासिक स्थलों, आश्रमों, धार्मिक-आध्यात्मिक संस्थानों को निकट से देखा-परखा. लब्धिचंद की यात्रा रेल से चल रही थी. आपकी आँखें तो ग्राम, नगर, वन, उपवन, पर्वत, नदी, झरने और कुदरत की बनाई अनमोल दुनिया को देखती थी परन्तु आपके भीतर की आँखें अध्यात्म की दुनिया की सफर कर रही थी. अन्तर्मन गहरे चिन्तन में मग्न था. बस एक ही चाहना उभरने लगी थी 'साजन सलुने संयम कब ही मिले' संसार की तमाम इच्छाएँ खत्म हो चुकी थीं. नहीं था कोई वैभव का मोह. थी मात्र आत्मिक वैभव पाने की महेच्छा. आचारांगसूत्र में भगवान् महावीर ने कहा है कि 'गृही तु यतिः स्यात् यतिस्तु ज्ञानी' अर्थात् मनुष्य भव का लक्ष्य साधु होने में तथा साधु का लक्ष्य ज्ञानी बनने में है. लब्धिचन्द की भावना अब दृढ़ हो गई थी कि मुझे साधु ही बनना है. For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ जिनशासन के समर्थ उन्नायक जीवन-शिल्पी की खोज परिभ्रमण के दौरान लब्धिचंद पालिताणा महातीर्थ की यात्रार्थ लालायित हुए. शिवपुरी के अध्ययन काल के एक सहपाठी मित्र का घर अहमदाबाद में था. आप उनके घर महेमान बने. बाद में उन्हीं के साथ शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा कर अपने जीवन को धन्यता प्रदान की. पालिताणा से अहमदाबाद लौट आने के बाद अपने एक परिचित मित्र की प्रेरणा से निकटवर्ती साणंद नगर में चातुर्मास विराजित परम श्रद्धेय, शासन-प्रभावक, सिद्धान्तवेत्ता, युगद्रष्टा, महान संयमी, अजातशत्रु, गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब (उस वक्त पंन्यास श्री कैलाससागरजी म. सा.) के दर्शन करने की उत्सुकता जागृत हुई. आप तुरंत साणंद रवाना हुए. लब्धिचंद के जीवन इतिहास में यह दिन स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित हुआ. ___आचार्यश्री के दर्शन पाकर जीवन में पहली बार आपको जिज्ञासाओं और समस्याओं का सम्यक् समाधान मिला. वे आचार्यश्री के दर्शन, तेजस्विता, स्वभाव और योग महात्म्य से बहुत प्रभावित हुए. आचार्यश्री की सत्प्रेरणा और उपदेश से संयम की रुचि पैदा हुई. उन्हें लगा कि मेरी दिव्य खोज का यही विराम स्थल है. यही वह सही राह है जिसकी मुझे इतने दिनों से खोज थी. __ आचार्यश्री की दिव्यवाणी ने लब्धिचंद की मनोभूमि पर अंकुरित वैराग्य वृक्ष का सिंचन किया. वह लहलहा उठा. उसमें लक्ष्यानुसंधान के फल लगे. आचार्यश्री का परम सान्निध्य और वात्सल्यपूर्ण मार्गदर्शन आपके यात्रा पथ का महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ. लब्धिचंद वीतराग के बतलाए अमर प्रव्रज्या-पथ पर चलने को तत्पर हो उठे. सचमुच मुनि प्रवर का पावन सान्निध्य लब्धिचन्द की अभूतपूर्व उपलब्धि थी. मन ही मन आचार्यश्री के समक्ष भागवती दीक्षा ग्रहण करने का शुभ संकल्प कर अहमदाबाद चले आए. लब्धिचन्द के कानों में आचार्यश्री के निस्पृही वचन बार-बार गूंज रहे थे- 'सेवा भाव से किसी अच्छे साधु के पास संयम ले लो तो तुम्हारे जीवन का जैसा चाहो वैसा विकास हो सकता है'. इस प्रसंग पर से चारित्र्यमूर्ति आचार्यश्री की चरम निःस्पृहता के दर्शन होते हैं. For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि .... १३ वे अपने पास दीक्षा लेने का आग्रह कर सकते थे. परन्तु आपने आग्रह किया कि अहमदाबाद में कई साधु महात्मा हैं, उनके पास जाओ और अपना आत्मकल्याण करो. ऐसी उत्कट निस्पृहता इस कलिकाल में सुनने को भी दुर्लभ है. किशोर लब्धिचन्द थे तो बाल मानस परंतु बुद्धि के धनी थे. वे आचार्यश्री की साधुता को और महानता को भाँप चुके थे. निश्चय अडिग था, अगर दीक्षा होगी तो इन गुरु भगवन्त के चरणों में ही होगी. इस प्रकार लब्धिचन्द के आध्यात्मिक जीवन-शिल्पी की महान् खोज पूर्ण हो रही थी. पुनः महान् गुरुवर को नमन कर लब्धिचन्द अहमदाबाद लौट आये. घर का परित्याग वीतराग का पथ वीरों का पथ है. बुज़दिलों का यहाँ काम नहीं. बंगाली खून बाबू लब्धिचंद को निरन्तर चुनौती दे रहा था और प्रेरित कर रहा था, सद्भावना के साथ इस अमर पथ पर चल पड़ने के लिये. आचार्य भगवन्त के असरकारक शब्द श्रवणपथ में बार बार गूंज रहे थे 'संसार में आसक्त व्यक्ति के लिये संयम काँटों की डगर है. साधक तो काँटों को फूल समझते है. बिना कष्ट के इष्ट की प्राप्ति नहीं होती. सहन करने वाला ही अन्ततः सिद्ध बनेगा.' मुमुक्षु लब्धिचंद मित्र से अनुमति लेकर अजीमगंज लौटने के लिए रवाना हुए. रेल यात्रा प्रारम्भ हुई. सफर में अकेले एक कोने में बैठे लब्धिचंद की पैनी आँखे, रेल की खिड़की से प्रकृति का परिदर्शन कर रही थी. सद्गुरु की महान् उपलब्धि के कारण हृदय में अकथ्य तोष था, आनन्दानुभूति के साथ मनोमन्थन चल रहा था. जीवन का क्या अर्थ है ? शाश्वत सुख को छोड़कर मनुष्य तुच्छ और क्षणजीवी पदार्थों के पीछे अपना बहुमूल्य जीवन क्यों व्यर्थ गँवाता है, इत्यादि चिन्तन करते-करते वैराग्यवासित महामना लब्धिचंद तीन दिन की अविराम यात्रा के बाद अजीमगंज आए. घर आकर भी आप अपने में ही खोए हुए थे. कुछ आवश्यक व्यावहारिक कार्यों को निपटाकर मुमुक्षु लब्धिचन्द ने संयम ग्रहण करने की अपनी उत्तम भावना अजीमगंज के ही अपने एक निकटतम मित्र के सामने अभिव्यक्त की. साथ में यह भी कह दिया कि तुम इस रहस्य को अपने तक ही सीमित For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ जिनशासन के समर्थ उन्नायक रखना. एक मित्र ही तो ऐसा होता है जिससे दिल की बात कही जा सकती है. एक दिन सुबह जब माता श्रीमती भवानीदेवी के पवित्र चरण कमल पकड़े तो वे इतना ही जानती थी कि यह फिर कहीं भ्रमण के लिए जा रहा होगा. वे नहीं जानती थी कि उनका लाड़ला सदा सदा के लिए जा रहा है, प्रेमचंद अब दर्शन कभी नहीं देगा. शायद विधि के अटल विधान को यह ही मंजूर था. अनगिनत उपकारों से भीगी आँखों वाले प्रेमचन्द ने जननी और जन्मभूमि को शत शत प्रणाम किया और घर से निकल पड़े. जेब में कुछ रुपयों के अलावा हाथ खाली थे, पर जीवन को संयम की सुरभि से महकाने की अहोभावना अनुमोदनीय थी. हृदय में पूर्ण विश्वास और मन की सुदृढ़ता अलौकिक थी. किसी गुर्जर कवि ने ललकारा है 'वीरनो मारग छे शूरानो कायरनुं नहि काम जोने' यहाँ कायरों को कतई स्थान नहीं है. वीरों का मार्ग कभी सरल नहीं होता. फिर यहाँ तो आन्तरिक शत्रुओं से युद्ध खेलना था. वीतराग के पथ पर महात्माओं के चरित्र संसारियों की गिनती से परे होते हैं. जिस उम्र में सामान्य लोग गृहस्थी का मार्ग चुनते हैं वहीं पर सन्त पुरुष त्याग का मार्ग अपना कर स्व-पर कल्याण साधते हैं. लब्धिचन्द को भारत के पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक पहुंचना था. रेल मार्ग से तीन दिन की मुसाफरी करके दिल्ली-बड़ौदा होते हुए अहमदाबाद आए. वह दिन 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' की याद दिलानेवाला ज्योति पर्व दीपावली का दिन था. मित्र ने घर आये महेमान को मिष्ठान्न भोज खिलाकर दूसरे जन्म (दीक्षा) के पूर्व ही सगुन कराये. मानो कि साजी का प्रारंभ यहाँ से ही हो गया था. मित्र को तो कुछ मालूम ही नहीं था किन्तु प्रकृति को माँ की तरह सब पहले से ही ज्ञात था. अनन्त लब्धिनिधान श्री गौतमस्वामी के कैवल्य प्राप्ति से प्रवर्तमान नूतन वर्ष के प्रारंभ के शुभ दिन प्रभात वेला में आप साणंद पहुँचे. अपने जीवन निर्माता आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के सान्निध्य में पहुँच कर आपको अपार संतोष हुआ. बाती को घी मिला. वैराग्य की भावना में तीव्रता आयी. For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि नूतन वर्ष के मांगलिक-श्रवण के बाद मुमुक्षु प्रेमचन्द ने अपने जीवन शिल्पी आचार्यश्री के समक्ष अपनी अभिलाषा सविनय व्यक्त की. यदि विवेक संयति से व्यक्त होता हो, विनय विद्या से प्रगट होता हो और प्रभुत्व में स्नेह- सिक्त व्यवहार हो तो निश्चयपूर्वक समझें कि ये महर्षियों के ही चिह्न हैं. भावी की महान् विभूति की पहचान करने के सामर्थ्य वाले चारित्र्यमूर्ति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज ने प्रेमचन्दकुमार की भावनाओं का आदर करते हुए उनको कुछ दिन साथ रहने का सुझाव दिया. आचार्यश्री की पावन निश्रा में आप श्रमण जीवन के आचार-विचारों का लगन से अभ्यास करने लगे. आगे का धार्मिक-तात्त्विक अध्ययन भी आपने प्रारंभ कर दिया. दिन ब दिन वैराग्य भावना का रंग निखरने लगा. एक दिन आपके निर्वेदी जीवन को देखकर अध्यात्म योगी आचार्यश्री ने श्रीसंघ के पदाधिकारियों के समक्ष दीक्षा महोत्सव के आयोजन का प्रस्ताव रखा. साणंद का संघ जैसे इस महोत्सव की प्रतीक्षा में ही था. आचार्य प्रवर के प्रस्ताव को शिरोधार्य कर तत्काल महोत्सव की जोरदार तैयारियाँ आरम्भ कर दी गई. ईसवी-सन् १९५५ के १३ नवम्बर की सुप्रभात हुई. साणंद का जैन संघ एक महान ऐतिहासिक घटना का साक्षी बनने को तत्पर था. जनमेदिनी उमड़ी, संयम के गीत गाये जाने लगे. शहनाइयों के सुर बजने लगे. साणंद के महाराजा ने अपने राजघराने की चाँदीमयी चार घोड़ों वाली बग्घी वरसीदान के वरघोड़े के लिये सहर्ष प्रदान की. माता भवानीदेवी के दुलारे कुमार प्रेमचन्द राजकुमार की भाँति सजाये गये. साणंद के इतिहास में प्रथम बार ऐसे ठाटबाट से भव्य जलूस निकला. जहाँ देखो वहाँ मात्र वीतराग के बतलाए अनूठे संयम मार्ग की भावभीनी अनुमोदना के सुहावने स्वर उठ रहे थे. शुभ घड़ी आयी. प्रेमचन्द के संकल्प की दृढ़ता ने विचारों को वास्तविकता का ठोस परिणाम दिया. बाजे-गाजे की तुमुल ध्वनि में नर-नारियों की अपार भीड़ के साथ यह दीक्षा जलूस एक विराट् धर्मसभा में परिवर्तित हुआ. For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६ जिनशासन के समर्थ उन्नायक आचार्यप्रवर की अध्यक्षता में हो रहे महाभिनिष्क्रमण के उस अवसर को देखना, निहारना भी एक लाहा था. जिन्होंने देखा वह मानो उनकी आँखों की सार्थकता थी. शुभ वेला में ग्रहों की उच्च स्थिति आने पर उपयोग से साध्य लग्नमुहूर्त में नाण क्रियाएँ प्रारंभ हुई. त्यागमूर्ति आचार्य प्रवर ने स्वयं मुमुक्षु प्रेमचन्द को देव दुर्लभ रजोहरण अर्पित किया. मनोवाञ्छित की सिद्धि होते ही लब्धिचन्द कुमार रजोहरण (ओघा) हाथ में लिये खूब नाचे. मुण्डन के बाद उज्ज्वल - धवल वस्त्रों में संयम की भव्यता को समेटे मुमुक्षु लब्धिचन्द श्रद्धासम्पन्न हजारों लोगों के दिलो दिमाग पर छा गये. निस्पृह चूड़ामणी दीक्षा प्रदाताश्री ने आपका नामाभिधान मुनिश्री पद्मसागरजी उद्घोषित किया. श्रमण जीवन में आपको अपने विद्वान् शिष्यरत्न शिल्पशास्त्र मर्मज्ञ श्रीमत् कल्याणसागरजी महाराज का पट्टधर शिष्यत्व प्रदान किया. अध्ययन ही एक लगन दीक्षा अंगीकार करने के बाद मुनि श्री पद्मसागरजी श्रमण - जीवन को भीतर व बाहर से संवारने तथा उसे सार्थक बनाने के लिए समग्रता से लग गये. पूज्यश्री के कुशल सान्निध्य में मुनि पद्मसागरजी ने अध्ययन के साथ साथ साधुजीवन की आचार मर्यादाओं को देखा, समझा और भलीभाँति परिपालना के द्वारा चरितार्थ किया. नूतन मुनि पद्मसागरजी का प्रथम चातुर्मास सन् १९५५ में पूज्य दादागुरु की सन्निधि में राजस्थान के सादड़ी नगर में हुआ. यहीं पर आपका अध्ययन प्रारंभ हुआ. मौन रहकर तल्लीनता से पढ़ना आपका स्वभाव है. कुशाग्र-बुद्धि के बलबूते पर आप प्रारंभिक वर्षों में गुरुकृपा से जैनदर्शनादि आधारभूत ग्रन्थों का अवगाहन करते रहे. पूज्य आचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज हमेशा आपको संयम में जागृत रहने की प्रेरणा देते रहे. प्रथम चातुर्मास में ही आपने प्रथम बार कर्मसूदनी अट्ठाई तपस्या भी की. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप में अयाचकता का एक अद्भुत गुण बचपन से ही था. कहावत है कि 'मंगनो भलो न बाप से, जो विधि राखे टेक.' अयाचकता की टेक में चातक को सर्वोपरी माना गया है, जो कि प्यास से मर जाता है किन्तु जल तो स्वाति नक्षत्र की वर्षा का ही पीता है, धरती का जल कभी नहीं For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि पीता. आप भी किसी से कुछ भी माँगने में बड़ा संकोच अनुभव करते थे. यहाँ तक की दीक्षा के बाद कुछ समय तक मुनिवृत्ति हेतु गोचरी के लिए जाने में भी बड़ी कठिनाई होती थी. यह सच है कि आज आपकी सफल जीवन-यात्रा में झाँक कर देखने पर पता चलता है कि आपने अनगिनत संघ-भक्ति और शासन-प्रभावना के कार्य किये हैं एवं हजारों लाखों लोगों के नैतिक-सामाजिक उद्धार करके उनके सफल मार्गदर्शक रहे हैं. परन्तु आज तक अपने लिए किसी से कुछ भी माँगना यह आप के लिए दुष्कर कार्य है. आपके जीवन का यह असाधारण पहलू है. माने पप्रस्वार. संयमपथ पर सज्ज युवा मुनि For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ जिनशासन के समर्थ उन्नायक मुनि - जीवन के स्वल्प समय में ही पद्मसागरजी ने अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया. औत्पातिकी बुद्धि तीव्र स्मरण शक्ति और प्रौढ़ - प्रतिभा के धनी मुनि पद्मसागरजी केवल विद्या के क्षेत्र में ही नहीं, आध्यात्मिक जगत में भी तेजी से आगे बढ़े. आचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी की अनवरत बरसती निःसीम कृपा के बल से समन्वय, मैत्री, करुणा, समता इत्यादि जीवन उन्नायक गुणों को भी आपने हृदयंगम कर लिया. विशेष कर अपने श्रद्धेय दादागुरु के प्रति आपका अद्भुत समर्पण भाव रहा. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महानता ऐसे ही उपलब्ध नहीं हो जाती. उसके लिए हर प्रकार का संघर्ष सहन करना पड़ता है. कठिनाइयों में भी दृढ़ रहना पड़ता है. मुनि श्री पद्मसागरजी महाराज को भी अपने प्रारम्भिक श्रमण जीवन में एक नहीं अनेक संघर्षों का समाना करना पड़ा. किन्तु हर संघर्ष में आप अडिग रहे. दुःखों को क्षणिक समझकर जीने की आपकी मानसिकता गजब की रही है. कहा है कि- 'संपत्ति भी और आपत्ति भी महापुरुषों को ही होती है जैसे कि वृद्धि-क्षय के प्रसंग चन्द्र को ही होते हैं तारागण को नहीं. फिर भी महात्माओं के चित्त हमेशा महोदय में उत्पल की तरह कोमल और आपदाओं में मेरु की तरह अड़िग होते है'. मुनिश्री के जीवन में ऐसे भी दिन आए जब बिना किसी के सहारे जीना पड़ा. कभी गहरी बीमारियों की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि मारने वाले से बचाने वाले के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. घातक परिस्थितियों में भी आपका सर्वदा बचाव होना एक चमत्कार ही तो है. ईसवीं सन् १९५६ के पाली (राज.) के चातुर्मास में आपको दुर्दैव वशात् जहरीले सर्प का दंश हो गया. परन्तु पुण्य-बल का साथ निरंतर था. प्राण तो बच गये लेकिन स्वास्थ्य को भारी धक्का लगा. असहनीय वेदना की भयंकर परिस्थिति में भी आपका धैर्य देखने वाले को दंग कर देनेवाला था. आखिरकार एक क्षत्रिय वंश की परंपरा का तेज जो था. उल्लेखनीय बात तो यह थी कि उन दिनों भी आपका अध्ययन अनवरत चालू रहा था. आपत्ति भी आपको ज्ञान संपदा देनेवाली सहायक सिद्ध हुई. कहते हैं कि 'आपत्ति में ही महापुरुषों की शक्तियाँ सम्यक् अभिव्यक्त For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ____१९ होती हैं. अगरु की सुगंध अग्नि में गिरने से पहले ऐसी नहीं होती है'. ऐसे तो कई प्रसंग आये और अपने कारनामे करके चले भी गये, लेकिन वे जैन शासन के जवाहिर मुनिवर पद्मसागरजी का कुछ बिगाड़ न सके. कैसे बिगाड़ सकते थे? आपका प्रारब्ध जो अतीव प्रबल था. उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम चारों दिशाओं के श्रद्धालु सज्जनों ने आपको तन, मन, धन से सदैव सहयोग दिया है. निःसंदेह आज आचार्य प्रवर अपने जीवन की महानतम ऊँचाइयों को छू चुके हैं. लाखों भक्तों के पूजनीय हैं. आपका गौरवमय वर्तमान अतीत की सहनशीलता पर ही निर्मित हुआ है. अतीत के संघर्ष ने ही वस्तुतः आपके वर्तमान को स्वर्णिम बनाया है. एक प्रसंग आपके बाल्यकाल का है जो आपके सहनशील स्वभाव, गंभीरता और करुणाभाव को अच्छी तरह उजागर करता है. बचपन के कुछ साथी बड़े चंचलस्वभावी थे. कोठियों में आते-जाते कहीं पर कोई चीज उत्सुकता प्रेरक लगी तो ग्रहण कर लेते थे और आपके पास सुरक्षित रहेगी ऐसा सोचकर आपके पास छोड़ जाते थे. एक दिन कहीं से कैमरा ले आए और आपको सौंपकर चले गए. पता चलने पर आपको बहुत कुछ सहन करना पड़ा. आपने स्वयं को दोषी बना दिया परंतु साथियों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए इसी भावना से सच्ची हकीकत को हृदय तक सीमित रखा. जब सच्चाई अवगत हुई तो आपके प्रशस्त भाव से सभी गद्गदित हो उठे. उन्नति के शिखर पर किसी कवि हृदय ने कहा है संघर्षों में जो व्यंग-बाण सहते हैं आजीवन पथ पर दृढ़ता से रहते हैं, जब फलितार्थ होता है अथक परिश्रम तो वे ही विरोधी बुद्धिमान कहते हैं. ___ मुनि श्री पद्मसागरजी के जीवन पर यह मुक्तक ठीक-ठीक चरितार्थ होता है. यह संसार शक्ति का पूजक है. शक्तिहीन की यहाँ कोई गिनती For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० जिनशासन के समर्थ उन्नायक नहीं होती. उदीयमान सूर्य को सभी नमस्कार करते हैं. उन्हीं विरोधियों ने मुनि पद्मसागरजी को आगे चल कर बुद्धिमान और महान कहा. सन् १९७१ के गोड़ीजी (पायधुनी) मुम्बई के चातुर्मास में आपने सर्व प्रथम देवद्रव्य की शुद्धि करवा के अपनी अप्रतिम बुद्धिप्रतिभा का परिचय दिया. लेकिन किसी के विरोध करने मात्र से आगे बढ़ने के इरादे बदल नहीं दिये जाते. विरोध और संघर्ष तो सतत आगे बढ़ते रहने का संदेश देते हैं. संसार का स्वभाव ही बड़ा विचित्र है. यहाँ भले कार्य की भी आलोचना करने वालों की कमी नहीं है. मुनि पद्मसागरजी ने विरोध के तूफान में मौन रहना श्रेष्ठ समझा. सुना अनसुना कर दिया. आँखों को गन्दगी से हटा लिया और निरन्तर आगे आगे बढ़ते रहे. बौद्धिक प्रतिभा, व्यावहारिक कुशलता जिनशासन के प्रति अपार आस्था और शासन प्रभावक बुलंदियों ने मुनिश्री की भविष्य के महान जैनाचार्य की उभरती प्रतिभा को उजागर कर दिया. चारित्र चूड़ामणी दादागुरुदेव श्री ने तुरन्त ही शुभ मुहूर्त में भगवतीसूत्र के योगोद्वहन प्रारंभ कराये और २८ जनवरी सन् १९७४ को पोपटलाल हेमचन्द जैननगर, अहमदाबाद में प्रभु-भक्ति उत्सव के साथ मुनि पद्मसागरजी को गणिपद से अलंकृत किया. इस पद की गरिमा को आपने खूब ऊँचाइयों पर पहुँचाया. ___सन् १९७४ के गोवालिया टेन्क, मुम्बई चातुर्मास के समय एक चौंकानेवाली घटना घटी. मुम्बई की महानगरपालिका ने विद्यालयों में बच्चों के अल्पाहार में फूड-टॉनिक के रूप में अण्डा देने का निर्णय लिया. जैन-जैनेतर मारवाड़ी, गुजराती प्रमुख शाकाहारी समाज ने मिलकर विरोध किया किन्तु इसे रोकने में सफल न हो सके. लोग मिलकर आपके पास आए और कहने लगे कि 'आप आगे आइये और कुछ करिये वरना महान् अनर्थ हो जाएगा'. समस्या बड़ी जटिल थी. आपको इसमें संस्कृति और धर्म भावना पर कुठाराघात होता नजर आया. फलस्वरूप महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शंकरराव चौव्हाण को कहकर इस निंदनीय प्रस्ताव को खारिज करवाया. इस तथ्य की विधिवत् For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. २१ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि घोषणा स्वयं मुख्यमंत्री ने लेमिंग्टन रोड पर स्थित नवजीवन सोसाइटी में आयोजित मुनि प्रवर के एक सार्वजनिक प्रवचन में आकर की. गणिवर श्री पद्मसागरजी के पुण्य प्रभाव को देखते हुए दादागुरुदेवश्री ने सन् १९७६, ८ मार्च, सोमवार के दिन जामनगर (काठियावाड़) में पूज्य गुरुदेव कल्याणसागरजी महाराज के आचार्य पद और एक युवा मुमुक्षु के दीक्षा के प्रसंग पर भव्य समारोह पूर्वक आपको पंन्यास पदासीन किया उसी प्रसंग पर एक मुमुक्षु की दीक्षा भी हुई. तत्पश्चात् योग्यता को देखकर गच्छाधिपति दादागुरुदेवश्री ने अतिशीघ्र ही आचार्य पद देने की उद्घोषणा कर दी. सचमुच योगी-अवधूतों की गत न्यारी होती है. कौन जान सकता है उनके योग महात्म्य को. पंन्यास श्री पद्मसागरजी महाराज ने जब आचार्यदेव से सानुनय आग्रह किया कि इतनी छोटी उमर में मैं अभी इस पद के लायक नहीं हूं, तो उनका कथन था कि मैंने सोच समझकर निर्णय लिया है. जो निर्णय ले लिया उसमें अब फेरफार की संभावना नहीं है. श्री संघ ने इस ऐतिहासिक शुभ समाचार को शिरोधार्य कर लिया. महेसाणा नगर की पावन धरा पर श्री सिमन्धरस्वामी तीर्थ भूमि के सानिध्य में भव्यातिभव्य महोत्सव आयोजित हुआ और ९ दिसम्बर सन् १९७६ के दिन एक विशाल व शानदार समारोह में आपको आचार्यपद से विभूषित किया गया. पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज, वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी महाराज, विद्वान् आचार्य श्री मनोहरकीर्तिसूरीश्वरजी महाराज, विद्वान गुरुदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी महाराज प्रमुख साधु-साध्वीजी भगवन्तों की अतिविशाल उपस्थिति इस आचार्यपद प्रदान समारोह के आकर्षण का मुख्य केन्द्र बनी रही थी. योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की यशस्वी पाट परंपरा में आचार्य बन जाने के बाद श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की ख्याति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. __ आचार्य पद के शुभ अवसर पर गणमान्य राजपुरुषों के व लब्धप्रतिष्ठ विशिष्ट व्यक्तियों के शुभेच्छामय हृदयोद्गार इस प्रकार थे. For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri २२ जिनशासन के समर्थ उन्नायक I am happy to know that Shri Padmasagarji who is known for his learned discourses on Jainism is being conferred Acharyapad on December 9. 1976 at Mehsana. Jainism has made a valuable contribution to the Indian culture and Philosophy. It played a noteble role in spreading the gospel of nonviolence and tolerance among men. Its inpact in Gujrat is distinctive and pervading. I wish the celebrations all success. -K.K. Viswanathan. (Governor of Gujarat) परम पूज्य पंन्यास श्री पद्मसागरजी महाराजे साधुपणानी निर्मल साधना करीने ज्ञान अने चारित्रनी जे सिद्धि मेळवी छे. एनां दर्शन एमना परिचयमां आवनार हरकोई व्यक्तिने सहजताथी थाय छे. आथी पण विशेष प्रभाव तो श्रोताजनो उपर तेमनी अलौकिक वाणी अने व्यक्तित्वथी भरपूर तेमनां मननीय व्याख्यानो द्वारा पडे छे. अने आ सांभलवानो ल्हावो जे कोईने मळे छे तेओ पोतानी जातने भाग्यशाळी माने छे...... आवा एक समर्थ ज्ञानी छतां नम्रता अने सरलताना उपासक मुनिवरने आचार्य पदवी अर्पण करवानो अवसर ए जैन शासनने माटे हर्ष अने गौरवनो प्रसंग छे. आचार्यपद प्रदान करवाना शुभ प्रसंगे वंदना साथे तेओने शतायु इच्छीए, एज भावना. - श्रेणिक कस्तूरभाई लालभाई. * एमनी प्रेरक वाणी, सकल जगतना ज्ञान-विज्ञानना संदर्भमां जैन धर्मना सनातन सिद्धान्तोने वाचा आपे छे. परिणामे भणेला-अभण सौने एमांथी मार्गदर्शन अने संतोष मले छे. आवा सम्यग्ज्ञान धरावता मुनिश्री गुजरातमां विहार करे छे ते गुजराती प्रजानुं हुं अहोभाग्य समजुं छु. ए अहोभाग्य दीर्घ काल टके तेवी परम कृपालु जिन प्रभुने हुं प्रार्थना करुं छु. पू. मुनिश्रीनी उपदेशवाणीनी अमृतगंगा अहोनिश वहेती रहो. - ईश्वरभाई पटेल (गुजरात युनिवर्सिटीना वाईस-चान्सेलर) For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि २३ * नानी उंमरमां ज अथक परिश्रम अने सतत अभ्यासथी जेमणे पोतानी वाणी उपर आवां संयम अने सिद्धि मेलव्या छे, जीवनमां सरलता, नम्रता, प्रसन्नता जेवा अनेक गुणो केलव्या छे, विद्वत्ता प्राप्त करी छे एवा प. पू. पंन्यासजी महाराजश्रीने जे आचार्यपद एनायत करवामां आवी रडुं छे, ते योग्य छे, एटलुं ज नहीं, परन्तु जैन शासनने माटे ए गौरवरुप पण छे. - कान्तिलाल घीया. ( उपमुख्यमन्त्री, वित्तमन्त्री व चेरमेन - इफको) * पूज्य पंन्यास श्री पद्मसागर गणिजी जैन-जेनेतर वर्गमां पोतानां आचार, विचार अने विशाल दृष्टिकोणवाला धार्मिक प्रवचनोथी घणा ज ख्यातनाम थया छे. आवा सुयोग्य मुनिश्रीने बहुमूली आचार्य पदवी अपाय छे, त्यारे तेमना गाढ परिचयमां आवेल एक प्रशंसक तरीके कांइक कहेवानुं प्रलोभन रोकी शकतो नथी. - शासनना एक प्रभावशाली अग्रणी मुनि तरीके तेओ बहार आवी रह्या छे, ते आपणा शासन- एक अहोभाग्य छे. एमना माटे घj घणुं लखी शकाय तेम छे. - नरोत्तम केशवलाल झवेरी (तत्कालीन मेयर, अमदावाद) Heartiest congratulations for the glorious function of your Acharya Padavi. ___ - Mohanlal Sukhadia. (Gevernor Of Tamilnadu) * व्यक्तित्वथी अने ज्ञानथी सौ कोईने जीती लेता आ मुनिश्रीना दर्शन करवां ए ल्हावो छे. मधुर वाणी ए तो एमना हैयानुं संगीत. कलोकोना कलाको सुधी सांभल्या ज करीए, एवी एमनी वाणीनी मीठाश. आ यन्त्रयुगनी भौतिकता वच्चे आत्मश्रीथी मानवकल्याणने झंखता जैन मुनि श्री पद्मसागरजीना आ पदवीप्रदान पर्वने ध्यान अने ज्ञानना संकेत तरीके स्वीकारी शुभ कामनाओ पाठवू छु. - चीमनभाई पटेल (पूर्व मुख्यमन्त्री) For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिनशासन के समर्थ उन्नायक * महाराजश्रीनी वाणीमां जे खंडनमंडन, टीका-टिप्पणी अने राग-द्वेषनो अभाव अने सरलता, मधुरता, मोतीनी माला जेवी झलक अने धर्मपरायणतानां आलादकारी दर्शन थाय छे एने एमनी जीवन-साधनानुं ज प्रतिबिंब लेखq जोईए. आवा जीवनना अने वाणीना यशस्वी साधक मुनिवरने एमनी आचार्य पदवीना गौरवभर्या प्रसंगे, आपणी अंतरनी अनेकानेक वंदना हो! __ - रतिलाल दीपचंद देसाई (प्रसिद्ध जैन साहित्यकार) शब्दशास्त्र में आचार्य शब्द के कई अर्थ प्रतिपादित किये गये हैं. १. शिष्यों का उपनयन कराकर वेद पढ़ानेवाला आचार्य है. (उपनीयतु यः शिष्यं वेदमध्यापयेद् बुधः- मनु) २. किसी मत अथवा पंथ का संस्थापक आचार्य कहलाता है जैसे शंकराचार्य आदि. (मत प्रस्थापके शंकराचार्यादौ) ३. आचार्य शब्द का प्रयोग गुरु के अर्थ में होता है, जैसे देवताओं के गुरु बृहस्पति. (आचार्यस्तु यथा स्वर्गे शक्रादीनां बृहस्पतिः) ४. व्यावहारिक शिक्षा देनेवाला आचार्य कहलाता है, जैसे द्रोणाचार्य. उपर्युक्त में से कोई भी अर्थ जैनाचार्य के अर्थ को नहीं समेट पाता. जैनाचार्य जिन अर्थों में परिभाषित होता है, वह बहुत व्यापक है. यहाँ आचार्य शब्द का अर्थ आध्यात्मिक-धर्मगुरु होता है. देव तत्व, गुरु तत्व और धर्म तत्व इन तीनों तत्वों से जैन धर्म का स्वरूप समझा जा सकता है. देव तत्व में अरिहंत और सिद्ध, गुरु तत्व में आचार्य, उपाध्याय और साधु तथा धर्म तत्व में सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप आते हैं. जैन धर्म में आचार्य का स्थान पंचपरमेष्ठियों में तृतीय पद पर प्रतिष्ठित है. पंचाचार का पालन करना और शिष्यों से करवाना जैनाचार्य का मुख्य धर्म बनता है. जैनाचार्य को पंचेन्द्रिय संवृतादि ३६ गुणों से युक्त बताया गया है. अन्य गुणों में गीतार्थ, बहुभाषाविद्, प्रवचनकर्ता, शिष्य संपदावान् और For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin आचार्य श्री पद्मसागरसूरि २५ प्रत्युत्पन्नमति होना जरूरी कहा गया है. उन्हें श्रीतत्त्व से भी सम्पन्न होना चाहिए, क्योंकि शासन की विशिष्ट रक्षा, प्रभावना, जिनमंदिर-उपाश्रय निर्माण प्रेरणा, प्रतिष्ठा इत्यादि कार्य उनके सूरिमन्त्राम्नायगत श्रीविद्या की सिद्धि से सम्पन्न होते है. इन सब से बढ़कर बात यह है कि शास्त्रों में इन्हें 'तित्थयर समो सूरि' कहा है. अर्थात् तीर्थकरों की गैरमौजूदगी में आचार्य को ही तीर्थंकर समान महिमावन्त स्थान प्राप्त होता है, ओजस्वी प्रवक्ता भव्यजन प्रबोधन For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक जंगम युग प्रधान जैनाचार्यों की याद दिलाने वाले तेजस्वी आचार्यश्री के प्रवचनों के संदर्भ में लोग कहते हैं कि आप जादूगर हैं. प्रवचन में लोगों को बांधे रखने के आपके सामर्थ्य की होड़ नहीं हो सकती. आप अमोघ देशनाकार व बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. भाषा की सरलता, स्पष्ट वक्तृत्व, अभिप्राय की गंभीरता, विचारों की व्यापकता व प्रस्तुति की मौलिकता आचार्यश्री के प्रवचनों की विशेषताएँ हैं. __ आपके प्रवचनों को सुनने के लिए जैनेतर संप्रदायों के भी असंख्य लोग सम्मिलित होते हैं. आपके प्रवचनों ने जनता जनार्दन में अद्भुत लोकप्रियता प्राप्त की है. जैन शासन को आप पर नाज़ है. आपके ओजस्वी प्रवचनों से व्यक्ति और समाज में आए परिवर्तन तो बेहिसाब हैं. भारत में जब पहली बार इमर्जन्सी लगी थी उस समय सारे देश में प्रशासन की ओर से एक तरह से दहशत छाई हुई थी. सरकार अपने इस कदम को उचित ठहराने पर तुली हुई थी. अनेक धर्मगुरुओं के इस हेतु इन्टरव्यु लेकर प्रसारित करवा रही थी. इसी सिलसिले में सरकार की ओर से शेठ श्री कस्तूरभाई का संपर्क करने पर, विचक्षण कस्तूरभाई को एक मात्र पूज्यश्री का ही नाम ध्यान में आया और पूज्यश्री ने भी अपनी अप्रतिम कुशलता का परिचय दिया. इसके लिए श्रीसंघ में सर्वत्र खूब ही सराहना की गई. यशस्वी काम : भारी बहुमान आचार्य बनने के बाद सन् १९७७ में भावनगर (गुज.) के अपने प्रथम चातुर्मास में दादागुरुदेव व गुरुदेव के सान्निध्य में पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने दो महत्वपूर्ण काम किये. उस समय बाल-दीक्षा के अनुचित विरोध ने पूरे समाज की शान्ति का भंग कर रक्खा था. भावनगर के जैन संघ ने भी अविचारी बाल-दीक्षा प्रतिबंध प्रस्ताव को पास कर दिया था. आपने अपनी अपार लोकप्रियता एवं कुशलता के आधार पर इसे परिवर्तित करवाकर भव्य समारोह में एक बाल मुमुक्षु को समग्र संघ की सहमति से दीक्षा प्रदान करवाई. इतना ही नहीं, संघ की भावनाओं को देखते हुए सात दशकों की अवधि के बाद प्रथम बार भावनगर-संघ में उपधान का For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि भव्य आयोजन करवाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. तब से यह बाधा सदा के लिए दूर हो गई. इस सत्कार्य के अनुमोदन में सन् १९७८ के वालकेश्वर-मुम्बई चातुर्मास में आपका अभिनन्दन समारोह आयोजित हुआ. जिसमें अध्यक्ष स्थानीय उद्बोधन करते हुए श्री कस्तूरभाई शेठ ने प्रशंसात्मक वाक्यों में कहा था कि आचार्यश्री ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की जिससे यह प्रतिबंध सदा के लिए हट गया और भविष्य में दीक्षा का प्रश्न उपस्थित होने पर किसी भी साधु भगवन्त को अड़चन नहीं आयेगी. दूसरा अनुमोदनीय कार्य हिंसाचार पर रोक लगवाने का किया. अपने अनन्य भक्त एवं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री बाबूभाई जसभाई पटेल को कह कर आपने शत्रुजय महातीर्थ के बाँध में होती मछलियों की जीव-हिंसा पर रोक लगवाई. वालकेश्वर के इसी चातुर्मास की पूर्णाहुति के तुरन्त बाद आपके दीक्षा पर्याय की रजत जयन्ती महोत्सव का आयोजन हुआ. जैन शासन को दिये हुए आपके कीर्तिमानों से प्रेरित हो मुम्बई के सभी जैन संघों ने मिलकर इस महोत्सव को खूब दीपाया. आचार्यश्री से प्रभावित होकर आपके संयम-पर्याय की रजत जयन्ती के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री नीलम संजीव रेड्डी ने मुंबई के राजभवन के विशाल दरबार हॉल में आपका शानदार अभिनन्दन किया था. उल्लेखनीय है कि स्वयं राष्ट्रपति महोदय ने श्रेष्ठीवर्य श्री कस्तुरभाई लालभाई (प्रमुख-आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी) से मिलकर इस विराट् समारोह के लिए जैन साधुओं की आचार-मर्यादाओं के अनुरूप समग्र व्यवस्था करवाई थी. वाकई आचार्यश्री का बहुमान आपकी महानता और जिनशासन की साधुता का बहुमान था. इसी समारोह में राष्ट्रपति ने अपने प्रवचन में आचार्यश्री का अभिवादन करते हुए आपको राष्ट्रसन्त की उपाधि प्रदान की. आचार्यश्री जब मुनि थे उस समय की यह घटना है. अहमदाबाद स्थित एल. डी. इन्स्टीट्यूट (लालभाई दलपतभाई शोध संस्थान) को साहित्यिक समृद्धि प्रदान करने में पूज्य श्री का बहुत बड़ा योगदान रहा For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ जिनशासन के समर्थ उन्नायक है. तब आप राजस्थान की धरती पर विचरण कर रहे थे. सन् १९६५ के आसपास का समय था. हिन्दुस्तान पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था. उस समय हस्तलिखित ग्रन्थों को बेचने वाले बहुत आया करते थे, आपने सोचा कि अपने पूर्वजों की महान् सांस्कृतिक धरोहर बाहर चली जाय और विदेश में बिकें यह बात तो अच्छी नहीं है. अपनी विरासत अपना साहित्य हम क्यों न रक्खे? इसे दूसरों के हाथ में क्यों पड़ने दें? मुनिश्री ने जहाँ से मिला जैसा भी मिला सारा का सारा पाण्डुलिपिबद्ध साहित्य इकट्ठा करवा के उसे एल. डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद में भेज दिया. इसी प्रकार शिल्प स्थापत्य की चीजें आप खोज खोज कर भेजते रहे. मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराज उन दिनों एल. डी. संस्था से जुड़े हुए थे और कस्तूरभाई शेठ संस्था के संरक्षक थे, उन दोनों ने आपके इस स्तुत्य प्रयास और योगदान की बड़ी प्रशंसा की. आगे भी अधिक से अधिक संग्रहणीय वस्तुओं का सहयोग करने की लेखित अपील की थी. पूज्य दादा गुरुदेव की निश्रा में शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई के साथ शासन के प्रश्नों पर विमर्श से पूर्व For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि इसी दौरान पूज्यश्री ने आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी को महोपाध्याय श्री यशोविजयजी के स्वयं के हस्ताक्षरों से लिखित पाण्डुलिपियाँ भेजी तो पुण्यविजयजी के उद्गार थे कि यदि तुमने मुझे पूज्य उपाध्यायजी के हस्ताक्षरों के दर्शन मात्र ही करवाए होते तो भी मैं अपने आप को धन्यभाग समझता, जब कि तुमने तो मुझे ये हस्तप्रतें भेंट ही भेज दी है. इस प्रकार लगभग आठ हजार बहुमूल्य हस्तलिखित ग्रन्थों का विशिष्ट योगदान करके आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी ने संस्थान को गौरवान्वित किया. और भारतीय संस्कृति की मूल्यवान निधि को नष्ट होने से बचाया. अमर कृतित्व सम्यग् ज्ञानयज्ञ के इस भगीरथ कार्य के दौरान एक बार मुरब्बी शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई और गुजरात के उप मुख्यमन्त्री श्री कान्तिलालजी घीया का आचार्यश्री से समयोचित मिलना हुआ. दोनों महानुभावों ने आपको निवेदन किया कि महाराजजी आप जो कार्य कर रहे हैं वह संघ के लिए बहुमूल्य है, परन्तु अब यह कार्य संपूर्ण श्रीसंघीय व्यवस्थापन के तहत किया जाय तो अत्युत्तम रहेगा. आचार्यश्री ने इस बात पर बड़ी गंभीरता से गौर किया और आपके सृजनशील विचारों ने आज के विश्व प्रसिद्ध श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र - कोबा जैसी आन्तर्राष्ट्रीय संस्थान को मानस-जन्म दिया. आचार्यश्री का पुण्य ही ऐसा जागरित है कि एक ओर संकल्प किया तो दूसरी ओर सहायक सामग्रियाँ एक-एक करके जुड़ने लगी. महान् योगीराज दादागुरुदेव की प्रेरणा और आशीर्वाद तो मानो पुरुषार्थ और सिद्धि की तरह साथ ही थे, गच्छाधिपति आचार्यदेव की सत्प्रेरणा से कोबा चौराहे के आसपास की मौके की जमीन इस पुण्य कार्य हेतु भेंट मिल गई. आचार्यश्री चाहते थे कि इसी जगह पर जिन मन्दिर, उपाश्रय और अध्ययन केन्द्र हो. महापुरुषों की इच्छा ही कुदरत की इच्छा बन जाती है. सन् १९८० के २६ दिसम्बर के शुभ दिन संस्था की विधिवत् स्थापना हुई. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० जिनशासन के समर्थ उन्नायक निस्पृह चूड़ामणि गच्छाधिपति दादागुरुदेवश्री एवं गुरुदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में सर्व प्रथम जिन मन्दिर के निर्माण हेतु शिलान्यास विधि सम्पन्न हुआ. अभी जिनालय की जगती मात्र बनी थी कि अचानक पूज्य दादागुरुदेव कालधर्म को प्राप्त हो गए. अब आपकी मनोनीत इच्छा को आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी महाराजने अपना शिरमोर कार्य बना दिया. आपकी निश्रा में यह कार्य तीव्र गति से आगे बढ़ा. ___ आज तो यह तीर्थभूमि भव्य जिनालय, विशालकाय आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, जैन आराधना भवन (उपाश्रय), आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मारक मन्दिर (गुरुमन्दिर), मुमुक्षु कुटीर आदि विविध विभागों के साथ विशाल पैमाने पर विकसित होकर जिन शासन की प्रभावना करने में समर्थ हुई है. कलिकाल में मोक्षमार्ग के दो आधारस्तंभ है. १. विश्व को आध्यात्मिक प्रकाश देनेवाले जिनबिम्ब. २. जिनागम की सम्यग् उपासना. इन दोनों का समन्वय है- श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा. जिनशासन की प्रतिनिधि संस्थाओं में यह केन्द्र अग्र स्थान प्राप्त कर चुका है. यहाँ धर्म एवं आराधना की एकाध नहीं अनेक विध प्रवृत्तियों का महासंगम हुआ है. । आचार्यश्री जब मुनिवर थे तब से आज तक अपनी विरल श्रुतज्ञान की परंपरा को जीवन्त रखने तथा धर्म, दर्शन, साहित्य, संस्कृति, कला, शिल्प एवं स्थापत्य के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में दृढ़ निष्ठा के साथ अथक प्रयत्न कर रहे हैं. इसके लिए भारत भर में आप हजारों मीलों का विहार करके गाँव-गाँव तक पहुँचे हैं. जहाँ भी आपको हस्तलिखित साहित्य नजर आया उसे बड़ी मेहनत से प्राप्त किया. कहीं पर नष्ट-भ्रष्ट हालात में, तो कहीं पर धूली धूसरित रूप में, कहीं पर जीर्ण शीर्ण रूप में, तो कहीं पर दीमक भक्षित चलनी जैसी हालात में, जहाँ पर जैसा भी उपलब्ध हुआ आपने सहर्ष अपना For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ आचार्य श्री पदासागरसूरि लिया और कुशल व्यक्तियों की देखरेख में उसे पुनर्जीवित कराके संस्था में सुरक्षित कराया. इतना ही नहीं परन्तु भारतीय कला स्थापत्य और खासकर जैन शिल्प स्थापत्य के जाज्वल्यमान नमूने संगृहीत कर इसी संस्था में एक भव्य संग्रहालय भी स्थापित किया. जो सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. आप ने अपनी सुविधा-दुविधा को हमेशा नजर-अंदाज ही किया है किन्तु जैन शासन की शान बढ़ाने के कार्यों को सदैव अग्रिम स्थान दिया है. आपका व्यक्तित्व जितना प्रभावपूर्ण है, उतना ही गौरवपूर्ण है आपका कृतित्व. सम्यग्ज्ञान और आध्यात्मिक साधना के संगम के रूप में जैन शासन को समर्पित यह केन्द्र आचार्यप्रवर का अमर सृजन है. सच कहा जाय तो सैकड़ों वर्षों के बाद इतने विशाल पैमाने पर जैन साहित्य की प्रभावना अगर किसी जैनाचार्य ने की है तो आचार्यश्री का सम्मानित नाम सदियों तक अग्र पंक्तियों में अंकित रहेगा. आपके सत्प्रयासों से आज इस संस्था में हस्तप्रत, ताड़पत्र व पुस्तकों का करीबन तीन लाख से उपर विशाल संग्रह, अनेकों स्वर्णलिखित ग्रन्थ, बेशकीमती सचित्र प्रतें, सैकड़ों मूर्तियाँ, शिल्प-स्थापत्य इत्यादि बहुमूल्य पुरातन सामग्री, जैन शासन की अमूल्य निधि व धरोहर विद्यमान है. जिसका लाभ चतुर्विध संघ और देशी-विदेशी विद्वानो को निरन्तर मिल रहा है. इतना ही नहीं यहाँ पर विकसित आधुनिक सुविधाओं के कारण संशोधन के क्षेत्र में कार्य कर रहे विद्वानों के लिए यह ज्ञानमन्दिर आशीर्वादरूप सिद्ध हुआ है. कई तीर्थभूमियों में तथा संघीय मन्दिरों के निर्माण कार्य में आपका मार्गदर्शन और प्रेरणा रही है. आपके मात्र अंगुलि निर्देश से चाहे लाखों-करोड़ों का कार्य क्यों न हो, पलभर में ही हो जाता है. आज भी आपकी सत्प्रेरणा से व्यक्तिगत रूप में भी करोड़ों की लागत से जिन मन्दिरादि निर्मित हो रहे हैं. अपने सामर्थ्य के आधार पर ऐसे छोटे-बड़े सैकड़ों सत्कार्य करवाकर आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. ने एक ओर जैन शासन की महान् प्रभावना की तो दूसरी ओर लोककल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया. For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ जिनशासन के समर्थ उन्नायक दक्षिण की यात्रा पर ___ आचार्य प्रवर की दक्षिण भारत की प्रथम यात्रा ने तो सचमुच ही आपको राष्ट्रसन्त बना दिया. दक्षिण की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आपने लोक-कल्याण, धर्म-जागरण और स्थानीय जनता की आध्यात्मिक चेतना के विकास व पोषण के लिये अभूतपूर्व कार्य किए. आपश्री की प्रेरणा से बेंगलोर में जैन संस्कारों से युक्त अंग्रेजी माध्यमवाली स्कूल की स्थापना की गई. दक्षिण भारत ने अनेक महान् साधु-सन्तों का पावन सान्निध्य पाया है. आगे भी उसे विरल प्रतिभाओं का संयोग मिलेगा, परन्तु आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज और उनके कार्य अपने आप में विशिष्टताओं से भरे हैं. युगद्रष्टा, प्रखर प्रवचनकार, आचार्यश्री के आगमन ने दक्षिण भारत को नई दिशा दी. उसे परम आलोक की अनुभूति करायी. आपश्री का दक्षिण भारत का प्रवास जैन संघ की चेतना में प्राणों का संचार करता अनोखा घटनाक्रम है. आपके मधुर व्यवहार से अनेक जैन संघों में अनुशासनप्रियता का जन्म हुआ. आचार्यश्री के सौजन्यशील व शालीन उपदेशों से वर्षों से चले आ रहे अनेक विवाद सरलता से हल हो गए. संघ एक जुट हुआ. बरसों बाद दक्षिण भारत के जैन संघों में धर्मजिज्ञासु जनता को सफल-कुशल नेतृत्व का अनुभव हुआ. दक्षिण भारत में धर्म आराधना व ज्ञान की मंद धारा एक बार फिर तेज गति से बहने लगी. प्रथम बार दक्षिण भारत की भूमि पर सात-सात मुमुक्षुओं ने संसार से विरक्त हो कर आपके चरणों में भागवती दीक्षा ग्रहण की. बेंगलोर, चैन्नेई, मैसूर, दावणगेरे, हुबली, बल्लारी, निपाणी, मड़गाँव, कोल्हापुर प्रमुख जैन संघों में आपके उपकार चिरस्मरणीय रहे हैं. आज भी समस्त दक्षिण भारत के जैन संघ आपके मार्गदर्शन में शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य करते आ रहे हैं. कभी भी कार्य-बाधा उत्पन्न होने पर आपके आदेश को शिरोधार्य मानते हैं. __ आपकी दिगन्तव्यापी कीर्ति और साधुता की महक से आकर्षित हो श्रीमती इन्दिरा गाँधी बेलगाँव में आपके दर्शनार्थ आई थी. इस शासन For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ३३ प्रभावक घटना से जैन धर्म की महत्ता में काफी अभिवृद्धि हुई. राजनैतिक महापुरुषों के दिलो-दिमाग में आचार्यश्री के दर्शन का इतना महत्व स्थापित हो गया कि तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती भी दावणगेरे के आपके विहार में दर्शनार्थ आये और आपके सौहार्द्र पूर्ण व्यवहार से खूब प्रभावित हुए. यह घटना आपके दिव्य प्रभाव की परिचायक है. दावणगेरे में प्रतिष्ठा के दौरान कर्नाटक के उस समय के डी. जी. श्री जी. वी. राव ने पूज्यश्री के परिचय में आकर मांसाहार आदि व्यसनों का त्याग कर दिया और पूज्यश्री के साथ स्वयं खुले पाँव चले. उनके उद्गार थे कि मैं आज तक पशु था, आचार्यश्री के परिचय में आने के बाद मैं इन्सान बना. दक्षिण भारत की प्रथम यात्रा की समाप्ति सन् १९८३ के वालकेश्वर (मुम्बई) के चातुर्मास से हुई. वालकेश्वर के मंदिर में काफी समय से देवद्रव्य का विवाद चर्चा का विषय बना हुआ था. स्वप्न की बोलियों के देवद्रव्य का यहाँ साधारण कार्यों में भी उपयोग होता था. कितने ही आचार्य भगवन्त यहाँ आये लेकिन इस विवाद का अन्त नहीं हो पाया था. पूज्य आचार्यश्री ने प्रेम से सबको समझाया. अपनी परंपरा और सिद्धान्त का मार्गदर्शन किया. बात सभी को समझ में आ गई और सर्व सम्मति से निर्णय किया गया कि आज से भगवान को अर्पित द्रव्य का उपयोग हम अन्य कार्यों में नहीं करेंगे. वालकेश्वर का बाबू अमीचन्द पन्नालाल जैन मंदिर मुम्बई के प्रथम कोटि के मन्दिरों में से एक है. इस प्रकार देवद्रव्य की प्राचीन परंपरा का पुनः स्थापन देश के दूसरे जैन संघों के लिए भी उदाहरण बन गया. इसी चातुर्मास में पूर्व भारत के श्वेताम्बर श्रीसंघों में वर्षों से तीर्थ प्रबन्धन को लेकर चला रहे गंभीर विवाद को आचार्यश्री ने शेठ श्री श्रेणिकभाई की विनती से बड़ी ही कुशलता से सुलझाया व तीर्थ में हो रही आशातनाओं, मुकदमेबाजी और सरकारी हस्तक्षेप की संभावनाओं को दूर करवाया. पूज्यश्री की इस उपलब्धि से प्रभावित हो श्रीसंघ ने आचार्यश्री को सम्मेतशिखर तीर्थोद्धारक के बिरूद से सम्मानित किया. इसी चातुर्मास में For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी श्री जैलसिंहजी पूज्यश्री के दर्शनार्थ पधारे और बाद में जीवन पर्यन्त आपके परम अनुरागी बने रहे. दक्षिण के विहार के बाद आपश्री गुजरात व राजस्थान आदि के क्षेत्रों में विहार के लिए सन् १९८४ में पुनः उत्तर की ओर आए. इस वर्ष का चातुर्मास पाली में किया. चातुर्मास के पूर्व जब आचार्यश्री जोधपुर में पधारे थे उस वक्त जोधपुर नरेश श्री गजसिंहजी विनती कर आपको राजमहल में पदार्पण हेतु ले गए. उस समय पूज्यश्री की प्रेरणा से श्री गजसिंहजी ने दशहरा के दिन महल में पिछले ४०० सालों से चली आ रही भैंसे की बलि देने की प्रथा को बंद करवाई. आपश्री की शुभ निश्रा में माघ सुदि १४, गुरुवार, वि. सं. २०४३ तदनुसार १२ फरवरी १९८७ को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा स्थित महावीरालय-मन्दिर की प्रतिष्ठा धाम - धूम एवं उल्लास पूर्वक सम्पन्न हुई. तदुपरांत आचार्यश्री का पुनः दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान हुआ. दक्षिणी जैन संघों की निरंतर आग्रह भरी विनती थी कि आपकी निश्रा में अनेक महत्वपूर्ण शासन के कार्य सम्पन्न कराने है, अतः प्रथम बार के विचरण से जो बीज बोये थे वे निश्चित रूप से फलान्वित हुए. विहार करते हुए आपका हैदराबाद में आगमन होनेवाला है, ऐसा सुना तो हैदराबाद के निजाम के दामाद (मछलीपट्टणम् के राजा) ने अपनी तरफ से ऐतिहासिक स्वागत किया. जैनेतर होते हुए भी उनकी भक्ति-भावना की तुलना नहीं हो सकती थी. कुलपाकजी तीर्थ में भी आपके पदार्पण से खूब प्रभावना हुई. कई स्थानों पर अंजनशलाका-प्रतिष्ठा व उपधान, उत्सव, महोत्सव सम्पन्न करने के पश्चात् आपने पुनः गुजरात की ओर पदार्पण किया. दक्षिण में आपके यशस्वी और जीवन्त कार्यों की यशोगाथा युगों-युगों तक जनता की जुबान पवित्र करती रहेगी. सन् १९९२ में आपने विश्व-विख्यात कोबा जैन तीर्थ में चातुर्मास किया. आपश्री द्वारा अभिप्रेरित श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर व आचार्य श्री कैलाससागरसूरि समाधि स्थल (गौतमस्वामी गुरूमंदिर) के उद्घाटन का भव्य समारोह हुआ. साथ ही महावीरालय की कुलिकाओं में मुनिसुव्रतस्वामी व नेमिनाथ प्रभु की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा महोत्सव आदि शासन प्रभावना के कार्य सम्पन्न हुए. यहाँ की रज-रज में आपकी धड़कनों का वास रहा है. आज कौन नहीं जानता इस त्रिवेणी संगम स्थान को.? आधुनिक विश्व के जैन इतिहास में इस केन्द्र का शिरमौर स्थान है. उत्तर भारत एवं नेपाल की यात्रा गुजरात में धर्म प्रभावना के अनेक प्रसंगों को नेतृत्व प्रदान कर, आपने मई, सन् १९९३ को उत्तर भारत की ओर विहार प्रारंभ किया. श्री मधुपुरी (महुड़ी) तीर्थ से तारंगाजी तीर्थ के पदयात्रा संघ में निश्रा प्रदान करते हुए अंबाजी-आबू होते हुए वीरों की भूमि राजस्थान में पावन पदार्पण किया. राजस्थान आपके प्रारम्भिक मुनि-जीवन की कर्मस्थली रही है. यहाँ के जैन संघों पर आपके द्वारा अनेकों उपकार हैं. उत्तर भारत की ओर प्रयाण के इस चरण में १९९३ का चातुर्मास आपश्री ने अपने शिष्यवृन्द के साथ प्राचीन ऐतिहासिक नगरी भीनमाल में किया. कविशेखर माघ एवं उपमितिकार श्री सिद्धर्षि की यह जन्म-भूमि मानी जाती है. इस अवधि में भीनमाल के श्री महावीरस्वामी जिन मन्दिर स्थित शिल्प कलायुक्त अष्टापद जिनमन्दिर की एवं सीमन्धरस्वामी जिन मन्दिर की प्रतिष्ठाएँ हुई. वर्षावास की पूर्णाहुति के बाद आचार्यश्री जब माउन्ट आबू थे उस अरसे में राजस्थान सरकार हर ट्रस्ट में अपनी ओर से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने हेतु अध्यादेश ला रही थी. इससे जैन-जैनेतर सारे समाज में एक तरह से तनाव और चिन्ता का वातावरण था. ___ पूज्य राष्ट्रसन्त ने उस वक्त राजस्थान के गवर्नर श्री चेन्ना रेड्डी को बुला कर अपनी कुशल युक्तियों के द्वारा उन्हें पूरी तरह से समझा कर For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक एक ही दिन में प्रस्तावित अध्यादेश वापस खिंचवा लिया और धर्मक्षेत्र को संभवित अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप से बचा लिया. इसी तरह राणकपुर तीर्थ के समीप एक पंचतारक होटल खुल रही थी जिससे तीर्थ की पवित्रता को आँच आती थी. आचार्यश्री ने अपने प्रभाव का उपयोग कर उसके निर्माण पर रोक लगवाई. राजस्थान के अनेक गाँव-नगरों में धर्म-प्रभावना करते हुए दिल्ली के जैन संघ की वर्षों की भावना को साकार करने हेतु चातुर्मासार्थ राजधानी में पधारे. सन् १९९४ के दिल्ली के चातुर्मास की शासन प्रभावक उपलब्धियाँ एक होती तो गिनी जा सकती थी. मगर यहाँ तो उपलब्धियों की शृङ्खला ही बन गई थी. इसी चातुर्मास के दौरान राजस्थान के जालोर व समीप के क्षेत्रों में कौमी तंगदिली फैली और जैन मन्दिरों पर हमले होने लगे. ऐसे में पूज्यश्री के प्रयासों से तत्कालीन प्रधानमन्त्रीजी ने एक तरह से असामान्य कदम उठाकर तत्काल जालोर में सेना भिजवा कर शान्ति कायम करवाई. राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्माजी ने आपके पावन पदार्पण राष्ट्रपति भवन में कराके आशीर्वाद ग्रहण किये. राष्ट्रपति भवन में आपका अद्भुत स्वागत होना जैन शासन का स्वागत था. इस चातुर्मास में अनेकों राजनेताओं ने आपके दर्शन-आशीर्वाद का लाभ प्राप्त किया. दिल्ली के श्रीसंघ में इस वर्षावास की उत्तम फलश्रुति रूप देवद्रव्य की शुद्धि का अनुमोदनीय कार्य हुआ. चातुर्मास पूर्णाहुति के पश्चात् दिल्ली से हस्तिनापुर तीर्थ का छरी पालित संघ का आयोजन आपकी प्रेरणा से हुआ. दिल्ली निवासी जैनों के हृदय कमलों में आपने ऐसी आर्हती ज्योत जगाई है कि आज भी वह अखण्ड जल रही है. राष्ट्रसंत ने सन् १९९५ में भारतवर्ष की पवित्र भूमि हरिद्वार में प्रथम जिनमन्दिर रूप श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भव्य अंजनशलाका-प्रतिष्ठा कराई. इस अवसर पर जैनेतर महामंडलेश्वर आदि सन्त-पुरुषों ने एवं जनता ने जो आपका स्वागत किया था वह अपने आप में एक अविस्मरणीय घटना थी. वहाँ की जनता में आपके प्रति अतुलनीय सद्भाव देखने को मिला. इतना ही नहीं सभी ने मिलकर आपका विशाल For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ३७ पैमाने पर नागरिक अभिनन्दन समारोह आयोजित किया था. तपो-भूमि ऋषिकेश के जिनमंदिर के प्रतिमाओं की अंजन विधि भी सम्पन्न हुई. यहाँ से आपने कोलकाता की ओर विहार करते हुए शौरीपुर तीर्थ में जिनमन्दिर परिसर में मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई. वर्तमान चौबीसी के तेईस तीर्थंकरों के पावन कल्याणकों की जन्मदात्री उत्तर भारत की पावन भूमि के लगभग सभी प्रमुख तीर्थों की स्पर्शना करते हुए आपने सन् १९९५ का चातुर्मास कोलकाता (भवानीपुर) में किया. इस चातुर्मास के दौरान आपकी निश्रा में अनेकविध शासन प्रभावना के अनुमोदनीय कार्य सम्पन्न हुए. आपश्री के उपदेश से पार्श्व फाउण्डेशन की स्थापना हुई और साधर्मिक भक्ति हेतु बहोत बड़ा फंड एकत्रित हुआ जो अनेकों के लिए वरदान साबित हुआ. चातुर्मास के बाद हावड़ा में सर्व प्रथम जिनमन्दिर की भव्य अंजनशलाका- प्रतिष्ठा हुई एवं उपाश्रय भवन का निर्माण भी हुआ. ___ कोलकाता के चातुर्मास के पश्चात् पूज्य गुरुदेव ने विहार करके सम्मेतशिखर महातीर्थ में श्री भोमियाजी धर्मशाला में जिनबिम्बों की भव्य अंजनशलाका कराई. तीर्थ के समुचित विकास हेतु महत्वपूर्ण मार्गदर्शन करते हुए स्थानिक जनता में धर्म-जागरिका रूप प्रवचनों का सोता बहाया. गौतमस्वामी की जन्म स्थली कुण्डलपुर (नालंदा) तीर्थ भूमि के मन्दिर की प्रतिष्ठा जो कई सालों से आपकी निश्रा के बगैर नहीं हो पा रही थी वह भी महोत्सव पूर्वक सम्पन्न कर, वीरगंज होते हुए अत्यंत दुर्गम व भयावह पहाडी मार्ग से गुजरते हुए नेपाल की राजधानी काठमाण्डु में पदार्पण किया. सैकड़ों वर्षों के बाद प्रथम बार किसी जैनाचार्य का नेपाल की धरती पर यह आगमन था. वीरगंज में श्री महावीर जन्म कल्याणक पर्व को जैनों के चारों संप्रदायों एवं अग्रवाल तथा वैष्णव समाज ने साथ मिलकर मनाया. काठमाण्डु (कमल पोखरी) में आपकी निश्रा में श्री महावीरस्वामी जिनमन्दिर की इतिहास सर्जक भव्यातिभव्य प्रतिष्ठा हुई. इस महान् कार्य को साकार करना हर किसी का काम नहीं था. प्रौढ़ प्रतापी आचार्यश्री के दिव्य धर्म-साम्राज्य के प्रभाव से ही यह संभव हुआ. लोग For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ जिनशासन के समर्थ उन्नायक कहते हैं कि नेपाल जैसे हिमालय की पहाड़ियों में बसे देश में आपका पैदल आगमन भी एक आश्चर्यकारी घटना है. कभी गहरी तराइयों में से, तो कभी उत्तुङ्ग शैलों के शिखरों पर से विहरते हुए, कहीं घनघोर जंगलों में, तो कहीं पर गिरि-कन्दराओं के भयानक आगोश में पड़ाव करते हुए, सतत दो महिनों का सफर हुआ था. नेपाली जनता ने हाल में पहली बार किसी जैन साधु के दर्शन किये थे. श्रद्धा देखनी हो तो वहाँ की. लोगों के दिलों में जो स्थान धन दौलत वैभव आदि का होता है उससे कई गुना अधिक स्थान धर्मगुरूओं के प्रति देखने को मिलेगा. __ प्रतिष्ठा के पुनीत कार्यक्रम को चारों संप्रदायों के लोगों ने मुक्त मन से हर्षोल्लास पूर्वक मनाया. इतना ही नहीं नेपाल नरेश श्री महाराजा वीरेन्द्र वीर विक्रमशाह देव एवं महाराणी ऐश्वर्या देवी सहित भारत के प्रमुख संघों के श्रावकों ने भी भाग लिया. नेपाल नरेश ने श्री जैन संघ को हर प्रकार से सहयोग देने की तत्परता दिखाई. इस अवसर पर पूज्य गुरूमहाराज के प्रेरक प्रवचनों के संकलन 'गुरुवाणी' ग्रन्थ की नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री देऊबा शेरबहादुर के द्वारा लोकार्पण विधि हुई. विश्व हिन्दू महासभा के अधिवेशन का प्रारंभ इन्हीं दिनों काठमाण्डू में आपकी निश्रा में हुआ जिसमें विश्व के १४ देशों से अग्रणी हिन्दू प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. नेपाल विश्व में एक मात्र हिन्दू राष्ट्र है. यहाँ की परंपरा रही है कि जो राजा होता है उसे भगवान् विष्णु का और महाराणी को भगवती महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है. नेपाली लोग भगवान् की तरह उन्हें पूजते हैं, मानते हैं. महाराजा एवं महारानी की प्रत्येक नागरिक के घर पूजा होती है. यह वहाँ का नियम है. राजा-रानी प्रजा को मात्र दशहरे के दिन ही दर्शन देते हैं. हजारों लोग उनके दर्शन से साक्षात् भगवान् के दर्शन होने का अहोभाग्य मानते हैं. उस देश के महाराजा और महारानी सामने से पूज्य गुरुदेव के दर्शनार्थ पधारे और जो सर किसी के सामने नहीं झुकता उस उत्तमांग से दोनों ने आचार्यश्री से वासक्षेप रूप आशीर्वाद ग्रहण किये. For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ३९ इस अजीब घटना को लेकर नेपाल की राजधानी काठमाण्डु में लोग चकित से रह गये. कई भव्यजनों के हृदय के उद्गार थे-कितने महान हैं ये जैन संत जिनके दर्शन स्वयं महाराज ने किये. इसके बाद तो ऐसा गजब का प्रभाव आम जनता पर भी पड़ा की दर्शनार्थियों का तांता सा रहने लगा. यह तो सिर्फ आचार्यश्री के पद्मांकित चरण-कमलों का ही प्रभाव था. महामहिम के गुणों की सुवास तो पूरे संसार में फैली हुई है. __ लौटते हुए जनकपुरी- नेपाल में मल्लिनाथ एवं नमिनाथजी भगवान के चार-चार कल्याणकों की पवित्र भूमि की स्पर्शना की तथा इस पावन भूमि में मन्दिर न होने के कारण जिनमन्दिर युक्त तीर्थ का रूप देने का विशाल आयोजन करने की प्रेरणा की. नेपाल से वापस आने के बाद अपनी जन्मभूमि अजीमगंज (मूर्शिदाबाद) में चातुर्मास हेतु सुविशाल शिष्य समुदाय के साथ पदार्पण किया. प्रेमचन्द से आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी बनने तक के ४३ सुदीर्घ वर्षों के बाद आपने अपनी जनमभूमि का स्पर्श किया. एक चातुर्मास आपकी अपनी भूमि में हो यह एक प्रकार से लम्बे समय से वहाँ के श्रीमन्त संघ के प्रत्येक परिवार का ख्वाब था. अंततः यह ख्वाब सन् १९९६ में पूरा हुआ. भागीरथी गंगा के सुरम्य किनारे पर बसा अजीमगंज वैसे भी मनोहारी स्थान तो है ही, साथ ही राष्ट्रसंन्त के पवित्र चरणों से वह पावन भी हो गया. जैसे ही आचार्य प्रवर का आगमन हुआ कि कोलकाता में व्यवसायार्थ रह रहे सैकड़ों परिवारों ने आकर आपके चातुर्मास का सुन्दर लाभ उठाया. पूज्यश्री ने प्रवचनों के माध्यम से उनकी सोयी हुई आत्मा को झकझोर दिया. धर्म-आराधनाओं की बाढ़ सी आ गई हो वैसा माहौल जमा रहा. पूज्य गुरुदेव ने यहाँ पर चार जिनमन्दिरों की पुनः प्रतिष्ठा कराकर संघ की समुन्नति में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया. संघ ने भी आपके महान् पदचिह्नों पर चलने हेतु अपनी उत्कृष्ट भक्ति का उदाहरण देते हुए अपने ही गाँव के दो-दो मुमुक्षु बालरत्नों को समर्पित करके चातुर्मास को चिर स्मरणीय बनाया. For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० जिनशासन के समर्थ उन्नायक दिल्ली के आपके प्रथम चातुर्मास ने तो ऐसा गुणानुराग पैदा किया कि उन्हें दूसरी बार आचार्यश्री के वर्षावास कराने का दृढ़ मनोरथ हुआ. फलतः राजधानी की ओर विहार करने हेतु आपने कोलकाता में पदार्पण किया, यहाँ पर अपनी कोलकाता के सफर में आए प्रधानमन्त्री श्री देवेगौड़ाजी आपके आगमन की खबर सुनते ही सहसा दर्शनार्थ पधारे. देवेगौड़ाजी जब से राजनीति में प्रविष्ट हुए थे उससे पूर्व ही आपके भक्तों में से एक हैं. ___ कोलकाता में प्रथम बार आपकी निश्रा में एक प्रतिष्ठित घराने के नवयुवक की भागवती दीक्षा बड़े ठाठबाठ से सम्पन्न हुई. पुन: आपका विहार शुरु हुआ. शिखरजी, वाराणसी, अयोध्या, श्रावस्ती, लखनऊ, कानपुर, आगरा, मथुरा होते हुए पुनः भारत की राजधानी दिल्ली में चातुर्मास (सन् १९९७) हेतु प्रवेश किया. __ दिल्ली के आपके दूसरे यशस्वी चातुर्मास के बाद आपकी निश्रा में हरिद्वार में आदिनाथ भगवान की चरण पादुका मन्दिर की प्रतिष्ठा एवं नूतन धर्मशाला का शिलान्यास सम्पन्न हुआ. वापसी में आपने दिल्ली में अशोकविहार स्थित नूतन जिनमन्दिर निर्माण का खात-मुहूर्त एवं शिलान्यास विधि कराई. इसी समय सोने में सुगंध की तरह एक और अद्वितीय उपलब्धि ने आपके चरण चूमे. आपकी ही निश्रा में दिल्ली के विविध संघों में चल रहे १८ युवामंडलों का एक महासंघ गठित हुआ. दिल्ली का दूसरा चातुर्मास सम्पन्न कर आपने राजस्थान होते हुए गुजरात में कोबा की ओर प्रस्थान किया. विहार के दौरान सोकलीया व खिरीया (मेवाड़) में जिनमन्दिरों की प्रतिष्ठा, अडपोदरा-गुजरात में नूतन उपाश्रय 'कैलास स्मृति भवन' का उद्घाटन एवं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि गुरुमूर्ति की दर्शनार्थ स्थापना, महेसाणा नगर में विनायक पार्क स्थित मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय की अंजनशलाका प्रतिष्ठा, पूज्य चारित्रमूर्ति मुनिराज श्री रविसागरजी महाराज की पुण्य शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित अष्टाह्निका महोत्सव, अहमदाबाद स्थित मीराम्बिका जैन श्वेतांबर मूर्तिपजक संघ-नारणपुरा के नूतन उपाश्रय का उद्घाटन जैसे मांगलिक कार्यों को सम्पन्न कराया. For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि __सन् १९९८ में आपने कोबा, गांधीनगर में चातुर्मास करके पिछले ५ वर्षों की श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की प्रतीक्षा पूरी की. आपकी उपस्थिति, निश्रा एवं मार्गदर्शन से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ने पुनः एक नई दिशा की ओर प्रस्थान किया एवं परिसर में अनेक नये कार्य सम्पन्न हुए. चातुर्मास के पश्चात आपकी निश्रा में चार-चार बालमुमुक्षुओं की भागवती दीक्षा बड़े भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हुई. इसी वर्ष अहमदाबाद में आपकी ही निश्रा में जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक युवक महासंघ, जैन डॉक्टर्स फेडरेशन एवं जैन चार्टर्ड एकाउन्टन्ट विंग की स्थापना हुई. फल स्वरूप सन् १९९९ में चैत्र सुदी १३ के श्री महावीरस्वामी जन्म कल्याणक के अवसर पर अहमदाबाद में प्रथम बार एक लाख से अधिक जैन समुदाय के व्यक्तियोंने साथ मिलकर भाग लिया. आज संगठन की यह प्रवृत्ति बहुत फली फूली है व पूरे भारत के जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघों को अपनी विशिष्ट सेवाएँ प्रदान कर रही . सन् २००० में आचार्यश्री का पुनः दक्षिण की ओर जाना तय हुआ. गोवा प्रदेश के इतिहास में सैकडो वर्षों बाद मड़गाँव में आपकी कृपामयी निश्रा में जिनालय की भव्य अंजनशलाका-प्रतिष्ठा बड़े पैमाने पर सम्पन्न जिनशासन की प्रभावना के एक से बढ़कर एक कार्य जो आपके पुनीत जीवन में हुए हैं और हो रहे हैं, उन सब की उपमा नहीं हो सकती. वे इस कलिकाल में बेजोड़ ही कहलाऐंगे. ईसवी सन् २००० के चातुर्मास का लाभ मुम्बई को मिले इसी भावना से मुम्बई के अनेक जैन संघों की आग्रहपूर्ण विनतियों को ध्यान में रखते हुए पूज्यश्री ने भायखला जैन संघ में चातुर्मास किया. यहाँ पर भी आपकी प्रेरणा से अनेक महत्वपूर्ण शासन प्रभावना के कार्य सम्पन्न हुए. योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि महोत्सवत्रयी का भव्य आयोजन चिर स्मरणीय रहेगा. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२. जिनशासन के समर्थ उन्नायक चातुर्मास के पश्चात् पायधुनी स्थित मोतीशा द्वारा निर्मित ऐतिहासिक शान्तिनाथ जिनमन्दिर के जीर्णोद्धार की पुनः प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से कराई. साथ ही एक बाल मुमुक्षु की दीक्षा व आपके शिष्यरत्न पंन्यास प्रवर शान्तमूर्ति श्री वर्द्धमानसागरजी महाराज को महामहोत्सव पूर्वक आचार्य पद से अलंकृत करके अपनी पाट परंपरा के पट्टधर स्थापित किया. इस अवसर पर बृहन्मुम्बई के विविध जैन संघों को आपके पावन पदार्पण का लाभ मिला. साथ ही एकता लक्षी युवक महासंघ एवं जैन डॉक्टर्स तथा सी. ए. एवं व्यापारियों के संगठन गठित हुए. मुम्बई में अनेकविध धर्म-प्रभावक कार्यों को सम्पन्न कर आपने राजस्थान की राजधानी जयपुर के जवाहरनगर में नवनिर्मित जिनमन्दिर की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा हेतु प्रस्थान प्रारंभ किया. सुरत, बड़ौदा होते हुए अहमदाबाद पधारे. वटवा आश्रम (शान्तिधाम) में जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा आपकी निश्रा में सम्पन्न हुई. राजनगर से कोबा (श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र), गांधीनगर (बोरीज), उदयपुर, अजमेर होते हुए आप जयपुर पहुंचे. जयपुर के श्रीसंघ ने व राजस्थान के शासकों ने आपके प्रवेशोत्सव पर अभूतपूर्व स्वागत किया. अंजनशलाका-प्रतिष्ठा महोत्सव भी जयपुर के इतिहास में अमर बन गया. यह सब आपके दिव्य प्रभाव के फल स्वरूप ही हुआ. आपके कर्मठ जीवन का ज्वलन्त उदाहरण हमें श्रद्धावनत किये बिना नहीं रह सकता. अपनी अनुकूलता तो सभी देखते हैं परन्तु सामनेवाले की भावनाओं को ठेस पहुँचाये बिना उन्हें धर्म आराधना में स्थिर करना परोपकार की छोटी सी भी संभावना को नजर-अंदाज नहीं करना, ये हैं आपके उदात्त चरित्त के अवदात पक्ष. आचार्यश्री ने दीक्षा के बाद कभी भी किसी को भी धर्म कार्य के लिए अपने सहयोग से इनकार नहीं किया. हाँ निजी प्रतिकूलताओं को जरूर नजर-अंदाज़ किया है. ___ गांधीनगर के श्रीसंघ ने चातुर्मास हेतु जोर-शोर से आग्रह किया कि आपको हमारे संघ को इस बार यह लाभ देना ही पड़ेगा. गांधीनगर के श्रावकों का सौभाग्य है कि ऐसे महान् जैनाचार्य के चातुर्मास का धन्य अवसर प्राप्त हुआ. अपनी प्रतिकूलता का ख्याल तक नहीं करके आप For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ४३ आग उगलती गर्मियों के दिनों में भी जयपुर से गुजरात की ओर विहार करके पधारे और सन् २००१ का चातुर्मास आपने यहाँ पर ही किया. यह सच है कि आपके लोकोत्तर जीवन का परिचय देना सामान्य मनुष्य के सामर्थ्य से परे है. अथवा तो यूँ कहिये कि किसी को सूर्य का परिचय देना कितना हास्यास्पद है तो भी बालक अपनी तूटी-फूटी भाषा में मंतव्य को अभिव्यक्त करने के लिए बड़ों से ही उत्साहित होता है. इन पंक्तियों का लेखक भी ऐसी ही बालचेष्टा कर रहा है. आज आपको कौन नहीं जानता? जैन समाज तो ठीक परन्तु जैनेतर समाज भी अच्छी तरह आपके प्रति श्रद्धावान् है. मानवता के मसीहा हो तो ऐसे हो. धन्य रत्नकुक्षि माता जिन्होंने आपको जन्म दिया. धन्य पिता जिनके एक वंशज ने जगत में जैन धर्म का डंका बजाया. धन्य धरा बंगाल की जिसकी मिट्टी ने सोना उगला और अहोभाग्य है जैन जगत का जिनको ऐसे अवतारी महापुरुष का सान्निध्य मिला. पूज्य आचार्यश्री के जीवन की कतिपय उपलब्धियाँ * पूज्य आचार्यश्री के प्रबोधन से प्रभु श्री महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी गाँव के सभी वर्ण के लोगों द्वारा मांस-मदिरा का पूर्णतः त्याग व जलमन्दिर में मछली पकड़ने की हमेशा के लिए पाबंदी एवं सरोवर की पवित्रता बनाए रखने का शुभ संकल्प. * मुंबई गोडीजी, वाल्केश्वर, दिल्ली, अजीमगंज - जियागंज आदि अनेक संघों में देवद्रव्य की पूर्णतः शुद्धि एवं शास्त्रीय परंपरा का पुनःस्थापन. * नेपाल जैसे विदेश में विचरण करके काठमाण्डू में जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा. सीताजी की जन्मभूमि एवं दो तीर्थंकरों की कल्याणकभूमि जनकपुर (नेपाल) में विशाल जैन मन्दिर एवं तीर्थस्थल के आयोजन का सफल उपदेश. * राष्ट्रपतिजी द्वारा राष्ट्रपति भवन में ससम्मान अभिनन्दन और मांगलिक श्रवण. * भारत की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी को राष्ट्रहित में मार्गदर्शन. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ जिनशासन के समर्थ उन्नायक * विश्व के जैन समुदाय की शान बढ़ानेवाले श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र - कोबा तीर्थ एवं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की स्थापना की प्रेरणा. भगवान महावीर की पाट-परम्परा में आचार्यश्री क्रम आचार्यनाम गच्छ १ सुधर्मास्वामी निर्ग्रन्थ गच्छ जम्बूस्वामी प्रभवस्वामी सय्यंभवसूरि यशोभद्रसूरि संभूतिविजय तथा भद्रबाहुस्वामी (प्रथम) ७ स्थूलीभद्रमुनि ८ आर्य सुहस्तिसूरि तथा आर्य महागिरिसूरि ९ सुस्थितसूरि और सुप्रतिबद्धसूरि कोटिगच्छ १० आर्य इन्द्रदिन्नसूरि ११ आर्य दिन्नसूरि १२ आर्य सिंहगिरि आर्य वज्रस्वामी (वयरी शाखा) १४ आर्य वज्रसेनसूरि १५ स्थवीर चन्द्रसूरि चन्द्रगच्छ १६ सामन्तभद्रसूरि वनवासीगच्छ वृद्धदेवसूरि १८ प्रद्योतनसूरि १९ मानदेवसूरि (प्रथम) २० मानतुंगसूरि २१ वीरसूरि २२ जयदेवसूरि २३ देवानन्दसूरि २४ विक्रमसूरि ३ For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचार्य श्री पद्मसागरसूरि २५ नृसिंहसूर समुद्रसूरि २६ मानदेवसूरि (द्वितीय) २७ २८ विबुधप्रभसूरि २९ जयानन्द सूरि ३० रविप्रभसूरि ३१ यशोदेवसूरि ३२ प्रद्युम्नसूर ३३ मानदेवसूरि (तृतीय) ३४ विमलचन्द्रसूरि ३५ उद्योतनसूरि ३६ सर्वदेवसूरि (प्रथम) ३७ देवसूरि ३८ सर्वदेवसूरि (द्वितीय) ३९ यशोभद्रसूरि और नेमिचन्द्रसूरि ४० मुनिचन्द्रसूरि ४१ अजितदेवसूरि ४२ विजयसिंहसूरि ४३ सोमप्रभसूरि (प्रथम) ४४ www.kobatirth.org तपस्वी हीरला श्री जगच्चन्द्रसूरि ४५ देवेन्द्रसूरि ४६ धर्मघोषसूरि ४७ सोमप्रभसूरि (द्वितीय) ४८ सोमतिलकसूरि ४९ देवसुन्दरसूरि ५० सोमसुन्दरसूरि ५१ मुनिसुन्दरसूरि ५२ रत्नशेखरसूरि ५३ लक्ष्मीसागरसूरि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only वनवासीगच्छ " "" " " " वडगच्छ (८४गच्छ निकले) वडगच्छ तपागच्छ " "1 ४५ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ ६० ६१ -- जिनशासन के समर्थ उन्नायक ५४ सुमतिसाधुसूरि तपागच्छ ५५ हेमविमलसूरि आणंद विमलसूरि ५७ विजयदानसूरि और ऋद्धिविमलसूरि ५८ विजयहीरसूरि (अकबर प्रतिबोधक) ५९ सहजसागर उपा. तपा. (सागर शाखा) जयसागर उपा. जितसागर गणि. ६२ मानसागर ६३ मयगलसागर ६४ पद्मसागर (प्रथम) ६५ स्वरुपसागर ६६ ज्ञानसागर (नाणसागर) ६७ मयासागर ६९ नेमिसागर ७० रविसागर ७१ सुखसागर ७२ बुद्धिसागरसूरि ७३ कीर्तिसागरसूरि ७४ जितेन्द्रसागरजी ७५ कैलाससागरसूरि ७६ कल्याणसागरसूरि ७७ पद्मसागरसूरि (राष्ट्रसन्त) आचार्यश्री का शिष्य-प्रशिष्य समुदाय इस तालिका में शिष्य प्र-प्रशिष्य आदि सूचक यथाक्रम a, b, C, d दिये गये है. सभी नाम दीक्षा पर्याय के अनुक्रम से दिये है एवं * चिह्नांकित कालधर्म पानेवाले मुनिवर है. ___a १ *उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी a २ आचार्यश्री वर्द्धमानसागरसूरिजी For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ १५ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि पंन्यास श्री अमृतसागरजी पंन्यास श्री अरुणोदयसागरजी पंन्यास श्री विनयसागरजी गणिवर्य श्री देवेन्द्रसागरजी मुनिश्री प्रेमसागरजी मुनिश्री निर्वाणसागरजी मुनिश्री विवेकसागरजी मुनिश्री अजयसागरजी मुनिश्री विमलसागरजी _b १२ मुनिश्री अरिहन्तसागरजी b १३ मुनिश्री अरविन्दसागरजी c १४ मुनिश्री महेन्द्रसागरजी मुनिश्री नयपद्मसागरजी मुनिश्री पद्मोदयसागरजी मुनिश्री प्रशान्तसागरजी मुनिश्री उदयसागरजी मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी मुनिश्री अमरपद्मसागरजी मुनिश्री गुणरत्नसागरजी मुनिश्री पद्मविमलसागरजी मुनिश्री रविपद्मसागरजी मुनिश्री कैलासपद्मसागरजी मुनिश्री हीरपद्मसागरजी मुनिश्री राजपद्मसागरजी मुनिश्री महापद्मसागरजी मुनिश्री पुनितपद्मसागरजी मुनिश्री कल्याणपद्मसागरजी ro ooooooooooooooooooooooooo १६ १७ १८ २४ २६ २७ ३ . For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८ पूज्य गुरुदेव श्री के चातुर्मास की तालिका ई. सन् १९५५ १९५६ १९५७ १९५८ १९५९ १९६० १९६१ १९६२ १९६३ १९६४ क्रम १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ www.kobatirth.org १९६५ १९६६ १९६७ १९६८ १९६९ १९७० १९७१ १९७२ १९७३ १९७४ १९७५ १९७६ १९७७ १९७८ १९७९ १९८० १९८१ स्थल सादड़ी (राजस्थान) पाली (राजस्थान) जोधपुर (राजस्थान ) साणंद (गुजरात) भावनगर (गुजरात) नागौर (राजस्थान) फलौदी (राजस्थान ) नागौर (राजस्थान) भावनगर (गुजरात) नागौर (राजस्थान) पाली (राजस्थान) पिण्डवाड़ा ( राजस्थान) जिनशासन के समर्थ उन्नायक साणंद (गुजरात) अरुण सोसाइटी, अहमदाबाद मलाड़ (पश्चिम), मुम्बई. सायन (पश्चिम) मुम्बई . गोड़ीजी ( पायधुनी), मुम्बई. नवरंगपुरा, अहमदाबाद. जैननगर, अहमदाबाद. गोवालिया टैंक, मुम्बई. चोपाटी, मुम्बई. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उस्मानपुरा, अहमदाबाद. भावनगर (गुजरात) वालकेश्वर, मुम्बई. निपाणी (महाराष्ट्र) चिकपेठ, बेंगलोर साहुकार पेठ, चेन्नई For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५ ३६ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि २८ १९८२ २९ १९८३ ३० १९८४ ३१ १९८५ ३२ १९८६ ३३ १९८७ ३४ १९८८ १९८९ १९९० १९९१ १९९२ १९९३ १९९४ १९९५ १९९६ १९९७ १९९८ १९९९ २००० २००१ सन् १९५५, १९५९, १९६३, १९७७, १९८४ के चातुर्मास पूज्य दादागुरु की निश्रा में, सन् १९५६, १९५७ के पूज्य गुरुदेव की निश्रा में और सन् १९५८ व १९७१ के चातुर्मास आचार्य श्री भद्रबाहुसागरसूरिजी की निश्रा में सम्पन्न किये. ३७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ www.kobatirth.org ४५ ४६ ४७ चिकपेठ, बेंगलोर वालकेश्वर, मुम्बई पाली (राजस्थान) उस्मानपुरा, अहमदाबाद साबरमती, अहमदाबाद चौपाटी, मुम्बई साहूकार पेठ, चेन्नई चिकपेठ, बेंगलोर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भायखला, मुम्बई वालकेश्वर, मुम्बई कोबा ( श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र) भीनमाल (राजस्थान) किनारी बाजार, दिल्ली भवानीपुर, कोलकाता अजीमगंज, (जन्मभूमि में ) प. बंगाल किनारी बाजार, दिल्ली. कोबा (श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र) साबरमती - रामनगर, अहमदाबाद. भायखला, मुम्बई. गांधीनगर (गुजरात) For Private And Personal Use Only ४९ राष्ट्रसन्त की निश्रा में उत्सव - महोत्सव तो बहुत हुए हैं, होते रहते हैं. वे सब गिनती से परे हैं. आचार्यश्री जहाँ भी विचरण करते हैं वहाँ पर जंगल में भी मंगल हो जाता है. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० जिनशासन के समर्थ उन्नायक पूज्यश्री की निश्रा में संपन्न कतिपय महत्वपूर्ण, अंजनशलाकाप्रतिष्ठा महोत्सवों की तालिका १. १९७५ अतुल प्लॉट, गुजरात २. १९७८ तड़केश्वर, ,, ३. १९७८ वालकेश्वर, मुम्बई ४. १९७९ साहुपुरी, कोल्हापुर ५. १९८० एलगुण्डपालियम्, बेंगलोर ६. १९८१ दावणगेरे, कर्नाटक ७. १९८१ दावणगेरे, कर्नाटक ८. १९८१ तिरुवन्नामलइ, तमिलनाडु ९. १९८२ सुलेपट्टालम्, चेन्नई १०. १९८२ नेल्लुर, आन्ध्रप्रदेश ११. १९८२ अरिहन्त एपार्टमेन्ट, चेन्नई १२. १९८२ गांधीनगर, बेंगलोर १३. १९८२ जयनगर, बेंगलोर १४. १९८३ मुरगुड़, कर्नाटक १५. १९८३ शिवाजी नगर, पूनासीटी १६. १९८४ निम्बाज, राजस्थान १७. १९८४ बिराठिया (खुर्द) राजस्थान १८. १९८५ सिरोही, राजस्थान १९. १९८५ सिरोही, राजस्थान २०. १९८५ कोलरगढ़ तीर्थ, राजस्थान २१. १९८५ राखी, राजस्थान २२. १९८५ लावण्य सोसाइटी, अहमदाबाद २३. १९८६ गांधीनगर, गुजरात २४. १९८७ कोबा (श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र) २५. १९८८ कड़प्पा, आन्ध्रप्रदेश २६. १९८८ श्री महावीर कॉलोनी, चेन्नई २७. १९८९ पोरूर, चेन्नई For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि २८. १९८९ गुजराती वाड़ी, चेन्नई २९. १९८९ अमरकोइल स्ट्रीट, चेन्नई ३०. १९८९ हिरीयूर, कर्नाटक ३१. १९९० मण्डिया, कर्नाटक ३२. १९९० कणगले, कर्नाटक ३३. १९९० कान्दिवली (प.) मुम्बई ३४. १९९१ कान्दिवली (पश्चिम) मुम्बई ३५. १९९१ बोरीवली (पश्चिम) मुम्बई ३६. १९९२ कोबा, (गुरु मन्दिर प्रतिष्ठा) ३७. १९९३ अष्टापद मन्दिर, भीनमाल. (राज.) ३८. १९९३ चिन्तामणी पार्श्वनाथ मन्दिर, भीनमाल ३९. १९९४ मालवीय नगर, जयपुर। ४०. १९९४ रावण पार्श्वनाथ मन्दिर, अलवर. (राज.)(अंजनशलाका) ४१. १९९५ चिन्तामणी पार्श्वनाथ मन्दिर, हरिद्वार ४२. १९९५ शौरीपुर तीर्थ, उत्तर प्रदेश ४३. १९९५ मल्लीकफाटक, कोलकाता-हावड़ा ४४. १९९६ कुण्डलपुर तीर्थ. (बिहार) ४५. १९९६ काठमाण्डु (कमल पोखरी, नेपाल) ४६. १९९७ अजीमगंज (चार प्रतिष्ठाएँ-जिन मंदिरों की मूर्ति प्रतिष्ठा.) ४७. १९९७ श्वेताम्बरकोठी परिषर (सम्मेतशिखरजी) ४८. १९९८ सोंकलिया (राज.) ४९. १९९८ खीरीया (राज.) ५०. १९९८ मिराम्बिका, अहमदाबाद (अंजन शलाका, पालडी हेतु) ५१. १९९८ पालड़ी, अहमदाबाद ५२. १९९८ विनायक पार्क, महेसाणा (गुज.) ५३. १९९९ भीनमाल (स्थाकार मंदिर) ५४. १९९९ प्रेमचन्दनगर, सेटेलाईट-अहमदाबाद ५५. २००० मड़गाँव, गोवा ५६. २००० पूना सिटी (केलिफोर्निया-जिनमन्दिर-अंजनशलाका) For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ . . जिनशासन के समर्थ उन्नायक ५७. २००० ५८. २००१ गामदेवी, मुम्बई ५९. २००१ शान्तिनाथ जिनमन्दिर, मुम्बई - पायधुनी (प्रतिष्ठा) ६०. २००१ शान्तिधाम वटवाआश्रम, अहमदाबाद (प्रतिष्ठा) ६१. २००१ अंजनशलाका प्रतिष्ठा जयपुर (जवाहरनगर) उपधान तपाराधना तालिका क्रम. ई. सन् स्थल १. १९७४ पृथ्वी एपार्टमेन्ट, गोवालिया टैंक, मुम्बई. २. १९७७ जैन बालाश्रम-उम्मेदपुर (राज.) ३. १९८० मुरगन मठ, धारवाड़ कर्नाटक. ४. १९८० जयनगर, बेंगलोर. कर्नाटक. ५. १९८२ रासेट कोलोनी, आदोनी. आन्ध्र प्रदेश. ६. १९८७ शेठ मोतीशा जैन मन्दिर, भायखला-मुम्बई. ७. १९८८ केशरवाड़ी तीर्थ, रेड़ हिल्स-चेन्नई. ८. १९९० शेठ मोतीशा जैनमन्दिर, भायखला-मुम्बई. छरी पालित यात्रा संघों की तालिका १. १९६० नागौर से मेड़ता रोड तीर्थ. २. १९८४ नागौर से गोगेलाव तीर्थ. ३. १९८५ बालोतरा से नाकोड़ाजी तीर्थ. १९८५ कोबा से शत्रुञ्जय महातीर्थ. १९८९ साहुकारपेठ से केशरवाड़ी, चेन्नई १९९३ महुड़ी तीर्थ से तारंगाजी तीर्थ. __ १९९३ माण्डोली से जीरावलाजी तीर्थ १९९४ पाली से कापरड़ा तीर्थ. १९९५ दिल्ली से हस्तीनापुर तीर्थ. १०. १९९५ आगरा से शौरीपुरी तीर्थ. ११. १९९६ धनबाद से सम्मेतशिखरजी महातीर्थ. १२. २००१ पानसर तीर्थ से शंखेश्वर महातीर्थ. ॐ ॐ ॐ . For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १. २. ३. ४. आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ५३ इन पैदल निकले संघों के अलावा आचार्यश्री के शुभाशीर्वाद से रेल व बसों से अनेक यात्रा संघ सम्पन्न हुए हैं. पदवी दान तालिका ५. ६. www.kobatirth.org श्री धरणेन्द्रसागरजी म. श्री वर्द्धमानसागरजी म. श्री अमृतसागरजी म. श्री अरुणोदयसागरजी म. श्री विनयसागरजी म. श्री देवेन्द्रसागरजी म. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणि, पंन्यास, उपाध्याय पद. गणि, पंन्यास, आचार्य पद. गणि, पंन्यास पद. गणि, पंन्यास पद. गणि, पंन्यास पद. गणि पद. आचार्यश्री ने अपने संयम जीवन में अनेक मुमुक्षु भाई-बहनों को दीक्षाएँ दी. आप ने कभी गच्छ मतों को महत्व नहीं दिया है. आज भी आपके पास चारों फिरकों के साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएँ आते है.. आपके सौजन्यशील व्यवहार और उदारतापूर्ण स्वभाव में सभी को आत्मीयता लगती है. मानवता के नातों को आपने जीवन्त रक्खा है. एक कवि ने अपने उद्गारों को काव्यमय स्वरूप देते हुए कहा है अगाध होते हुए भी जो कभी न छलकाएँ उसे सागर कहते हैं पानी में रहते हुए भी जो जल से जुदा रहे उसे कमल कहते हैं, जो कमल भी है और सागर भी है उसे लोग पद्मसागर कहते हैं. वास्तविकता पर गौर करने पर यह ज्ञात होता है कि आचार्यश्री के शब्दातीत व्यक्तित्व का मानव कल्याण के लिए कितना मूल्य है. इस संसार में ऐसे हजारों-लाखों लोग हैं जिनके जीवन को सँवारने, सजाने और आध्यात्मिकता का अनुभव कराने में आचार्यश्री का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण रहा है. आपने प्रवचनों के माध्यम से हमेशा भव्य जीवों के आत्मिक भावों को उजागर करने का कार्य किया है. मानो इसी हेतु से ही सुर भारती ने आपकी जिह्वा पर अपना स्थान कायम बनाया है. आचार्य प्रवर के श्रीमुख से निसृत कुछ चुने हुए मौक्तिक. आत्मबंधन के तीन मुख्य कारण हैं- भ्रम, शंका और अज्ञान. * अपने घर की सीढ़ियाँ मैली हो तो औरों की छत की गंदगी की शिकायत मत करो. For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४ www.kobatirth.org जिनशासन के समर्थ उन्नायक अगर आप का आचार उत्तम है तो जगत का कोई उपसर्ग आप को डिगा नहीं सकता. * कच्चा मन और कच्चा पारा जीवन का नाश कर देते हैं. * उपासना में वासना को खत्म करने की शक्ति है. * आध्यात्मिक मार्केट में ज्ञान रहित व्यक्ति चलेगा पर आचार शून्य नहीं चलेगा. * आत्मबल ही मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत है. आत्मप्रशंसा अपने आप में एक मानसिक बीमारी है. अशान्ति का मूल कारण हमारे विचारों की दुर्बलता है. अभिमान जीवन का पूर्ण विराम है. ** इच्छा और तृष्णा से केवल कर्म-बन्ध ही होगा. * जैसा संग करोगे, वैसा रंग भरोगे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * जो अन्तर्शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता, वह सही अर्थों में जैन नहीं है. * जो पाप की कमाई से सुखी होने की कामना करते हैं, वे अपने गले में पत्थर बाँध कर तैरने का प्रयत्न करते हैं. * दान मोक्ष का बीज है. * जो क्रोध करता है, उसमें विचार नहीं होता और जिसमें विचार होता है, उसमें क्रोध नहीं होता. * धर्म का सार यदि तीन अक्षरों में प्रकट करना हो तो हम कहेंगे अहिंसा. * धर्म में आचरण देखा जाता है, * प्रलोभन पाप का बाप है. ** भोजन के साथ पाचन, धन के साथ वितरण एवं पठन के साथ चिन्तन चाहिए. * मनुष्य भव बिना चारित्र, चारित्र बिना केवलज्ञान और केवलज्ञान बिना मुक्ति संभव नहीं. योग मन की तालीम है. विचार की पवित्रता आप को सद्गति तक पहुँचाती है. बहुमत नहीं. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि * विनय को नष्ट कर देनेवाला जो दुर्गुण है, उसे अभिमान कहते * विवेक के सो जाने पर ही मनोविकार हावी होते हैं. * सदाचार जीवन की आधारशिला है. * सद्गुणों के ढेर से भी त्याग अकेला वजनदार है. * समस्त दुःख हिंसा से उत्पन्न होते हैं. * स्वयं को शुद्ध करो, सिद्ध स्वतः बन जाओगे. * सारा ही जीवन मृत्यु के वर्तुल पर उपस्थित है. साहित्यिक अवदानः साधारण वाणी वचन और उत्कृष्ट या प्रकृष्ट वाणी प्रवचन कहलाती है. वचन का सम्बन्ध सांसारिक व्यवहार से है और प्रवचन का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत से. वचन से कर्म-बन्ध प्ररोहित होता है तो आध्यात्मिक वचन कर्म बीज को तीरोहित करता है. लोग भले ही आचार्यश्री को राष्ट्रसन्त से सम्बोधित करते है, परन्तु आपकी वाणी आन्तरराष्ट्रीयता की पहचान कराती है. वे भाषां, जाति, फिरके, धर्म, संप्रदायों व देशों की सीमाओं से परे हम सबके हैं. मानवता के प्रकाशस्तम्भ हैं. __ आचार्य पद्मसागरसूरिजी महाराज जिस प्रकार सहज साधु पुरुष है उसी प्रकार उनमें प्रवचन कला भी सहज विद्यमान है. आचार्यश्री के प्रवचनों ने स्वयं सिद्धान्त ग्रन्थों का स्वरूप ग्रहण किया है. आपके प्रवचनों से संकलित पुस्तकें आज के आधिभौतिक युग में सर्च-लाइट का काम देती हैं. वाचकों की सुविधा हेतु सूची दी जा रही है. १. हे नवकार महान् २. प्रतिबोध ३. मोक्ष मार्ग में बीस कदम ४. जीवन दृष्टि ५. संवाद की खोज ६. संशय सब दूर भये ७. गुरुवाणी ८. देवनार कतलखाना ९. मन का धन १०. पद्म पराग ११. प्रवचन पराग १२. प्रतिबोध For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri ५६ जिनशासन के समर्थ उन्नायक १३. चिन्तननी केड़ी. १४. मोक्षमार्गना वीस सोपान १५. आतम पाम्यो अजवालु १६. सद्भावना. १७. संसारनी सेन्ट्रल जेलनो हुँ पण केदी छु. १८. Golden Steps To Salvation. (अनूदित) १९. Beyond Dought. (अनूदित) २०. Light Of The Life. (अनूदित) पूज्य आचार्य प्रवर के जीवन का परिचय देती पुस्तकें - १. संयमनी सुवास (गुजराती). २. आचार्य पद्मसागरसूरि: एक परिचय. भारत के उन कतिपय विशिष्ट व्यक्तियों की सूची, जिन्होंने पूज्य गुरुवर के परिचय से स्वयं के लिए कुछ न कुछ संदेश पाया है. १. शेठ कस्तूरभाई लालभाई (शेठश्री आणंदजी कल्याणजी पेढी के प्रमुख व वरिष्ट उद्योगपति) २. महामहिम सर्वश्री नीलम संजीव रेड्डी (पूर्व राष्ट्रपति) ३. ज्ञानी झैलसिंह (पूर्व राष्ट्रपति) ४. शंकरदयाल शर्मा (पूर्व राष्ट्रपति) ५. बी. डी. जत्ती (पूर्व उपराष्ट्रपति) ६. मोरारजी देसाई (पूर्व प्रधानमन्त्री) ७. श्रीमती इन्दिरा गांधी (पूर्व प्रधानमन्त्री) ८. अटल बिहारी वाजपेयी (तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष) ९. वीरभद्रसिंह (भावनगर महाराजा) १०. श्री गजसिंह (जोधपुर के महाराजा) ११. श्री रघुवीरसिंह (सिरोही के महाराजा) १२. श्री सुन्दरलाल पटवा (मुख्यमन्त्री, मध्यप्रदेश) १३. श्री करुणानिधि (पूर्व मुख्यमन्त्री, तमिलनाडु) १४. श्री कान्तिलालजी घीया (पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि १५. श्री मोहनलाल सुखाड़िया ( पूर्व मुख्यमन्त्री, राजस्थान) १६. श्री चिमनभाई पटेल ( पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) १७. श्री बाबूभाई जसभाई पटेल ( पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) १८. श्री रामकृष्ण हेगड़े (पूर्व मुख्यमन्त्री, कर्नाटक) १९. श्री देवराज अर्स (पूर्व मुख्यमन्त्री, कर्नाटक) २०. श्री माधवसिंह सोलंकी ( पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) २१. श्री अमरसिंह चौधरी (पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात) २२. श्री शंकरसिंह वाघेला ( पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) २३. श्री शिवचरण माथुर (पूर्व मुख्यमन्त्री, राजस्थान) २४. श्री भैरोसिंह शेखावत ( पूर्व मुख्यमन्त्री, राजस्थान ) २५. श्री गुंडूराव (पूर्व मुख्यमन्त्री, कर्नाटक) २६. श्री अशोक गहलोत ( मुख्यमन्त्री, राजस्थान) २७. श्री केशुभाई पटेल (पूर्व मुख्यमन्त्री, गुजरात) २८. श्री नरेन्द्रभाई मोदी ( मुख्यमन्त्री, गुजरात) २९. श्री शंकरराव चौहाण (पूर्व मुख्यमन्त्री, महाराष्ट्र) ३०. श्री बूटासिंह (पूर्व गृहमन्त्री, भारत) ३१. श्रीमती मेनका गांधी ३२. श्रीमती विजयाराजे सिंधिया ( भा.ज.प.) ३३. श्रीमती कुमुदबेन जोशी ( पूर्व गवर्नर, आन्ध्रप्रदेश) ३४. श्रीमती सरोजिनी महिषी (पूर्व उद्योगमन्त्री) ३५. श्रीमान् ताराचन्दभाई शाह- पालनपुर. ५७ ३६. श्री दीपचन्दभाई गार्डी. ३७. साहू श्रेयांसप्रसादजी जैन (दिगंबर समाज के प्रमुख व उद्योगपति ) ३८. कल्याणजी आनंदजी (प्रसिद्ध संगीतकार) ३९. मल्लिकार्जुन मंसूर (प्रसिद्ध संगीतकार) आदि For Private And Personal Use Only कहते हैं कि जगत में वह एक ही पुरुष श्लाघ्य, मानवों में उत्तम, सत्पुरुष, और धन्य है, जिसके पास आनेवाले अभिलाषी व शरणागत की आशा विफल नहीं होती. वर्तमान युग में आचार्यश्री इसी कोटि के सन्त हैं. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८ पूज्य श्री का जगत को अमर संदेश www.kobatirth.org + गाय चाहे पीली हो, काली हो या चितकबरी हो, उसका दूध तो श्वेत-धवल ही होगा. उसे अमृत समझो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म चाहे वैदिक हो, इस्लाम हो, जैन हो या ईसाई हो, यदि वह आत्मोत्थान का पथ प्रशस्त करता है तो मानव जाति के लिए वरदान है. पेकिंग और लेबल चाहे जैसा हो, माल तो असली ही होना चाहिए. १. श्री सूर्यभानसिंह ३. श्री कलिनराय जिनशासन के समर्थ उन्नायक मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं. प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है. मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सबके लिए हूँ. व्यक्ति राग में मेरा विश्वास नहीं है. लोग वीतराग परमात्मा के बतलाये पथ पर चलकर अपना और दूसरों का भला करे यही मेरी हार्दिक शुभेच्छा है. आचार्यश्री के सांसारिक वंश की तालिका ५. श्री नरहरीसाही ७. श्री लालजीसाही श्री प्रेमचन्द जी सूर्यभानसिंह से पंद्रहवीं पीढ़ी में आते हैं. चौहानवंश की वंशावली के अनुसार आपके पूर्वजों के नाम इस प्रकार मिलते हैं. - २. श्री गरुड़राय ४. श्री वीरमसाही ६. श्री नसीबसाही ८. श्री नन्दुसाही १०. श्री गणेशसिंह १२. श्री शिवकरणसिंह ९. श्री हरनामसिंह ११. श्री चेथरुसिंह १३. श्री लक्ष्मीनारायणसिंह १४. श्री जगन्नाथसिंह उर्फ श्री रामस्वरूपसिंह और १५. श्री प्रेमचन्द उर्फ लब्धिचन्द. (वर्तमान में आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज) For Private And Personal Use Only आचार्यश्री के सांसारिक परिवार में आज भी बड़ी संख्या में सदस्य है. वे पूज्यश्री की प्रेरणा से धर्मानुरागी भी बने हैं. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि श्री जगन्नाथसिंहजी के अट्ठाईस गाँवों की जमींदारी के नाम - १. जलाल बसंत २. बनवाटी बसंत ३. इंटक ४. महेशिया ५. बंगाटी ६. जगदीशपुर ७. नरायनपुर ८. भुईगाँव ९. खोरीपाकर १०. भगवानी छपरा ११. मुरा १२. भैरवपुर १३. मानपुर १४. कुचाम १५. पिराड़ी १६. भजलिशपुर १७. जिल्काबाद १८. महम्मदपुर १९. मोहर्रमपुर २०. ताहीपुर २१. गलिमापुर २२. झौवा बसंत २३. रामगाढ़ा २४. देवरिया २५. पचपटिया २६ सलेमपुर २७. कोठिया और २८. जौहर बसंत. (ये सभी गाँव बिहार राज्य में है.) For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. प्रेरित श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा तीर्थ में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के दर्शन, वंदन तथा आराधना हेतु अवश्य पधारें अवश्यमेव दर्शनीय श्री महावीरालय आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मारक गुरुमंदिर श्री पार्श्वनाथ रत्नमन्दिर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार सम्राट संप्रति संग्रहालय आर्य रक्षितसूरि शोधसागर * उपलब्ध सुविधाएं * नवकारशी, चोविहार, आवास, वैयावच्च , अध्ययन श्रुत सरिता (जैन पुस्तक विक्रय केंद्र) + संपर्क सूत्र + श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२ ००९ फोन (०७९) ३२७६२०४, ३२७६२०५, ३२७६२५२ फेक्स ३२७६२४९ E_mail: kobatirth @yahoo.com For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचार्य श्री के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पूर्व उसास www.kobatirth.org आचार्य श्री के साथ राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा जिन शासन के महत्व के प्रश्नों पर विमर्श के बाद की क्षणों में अहम आचार्य श्री के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी झैलसिंहजी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में गुरुस्मृति मंदिर के शिलान्यास प्रसंग पर योगनिष्ट १०८ ग्रन्थ प्र बुद्धिसागर सूरीश्वर जी म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री के साथ नेपाल नरेश श्री राजा विरेन्द्रदेव व महाराणी ऐश्वर्यादेवी For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में सभी का हूँ, सभी मेरे हैं . प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है। मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं अपितु सबके लिए हूँ व्यक्ति-राग में मेरा विश्वास नहीं है. लोग वीतराग परमात्मा के बतलाये पथ पर चलकर अपना और दूसरों का भला करे यही मेरी हार्दिक शुभेच्छा है . आचार्य श्री पदासागरसूरि आचार्यपद रजतजयंति समारोह वि.सं. 2033-2058 * ई.स. 1976-2001 Design &Printed By:Bijal Shah Ph: 079-6600668 For Private And Personal Use Only