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जिनशासन के समर्थ उन्नायक निस्पृह चूड़ामणि गच्छाधिपति दादागुरुदेवश्री एवं गुरुदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में सर्व प्रथम जिन मन्दिर के निर्माण हेतु शिलान्यास विधि सम्पन्न हुआ. अभी जिनालय की जगती मात्र बनी थी कि अचानक पूज्य दादागुरुदेव कालधर्म को प्राप्त हो गए. अब आपकी मनोनीत इच्छा को आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी महाराजने अपना शिरमोर कार्य बना दिया. आपकी निश्रा में यह कार्य तीव्र गति से आगे बढ़ा. ___ आज तो यह तीर्थभूमि भव्य जिनालय, विशालकाय आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, जैन आराधना भवन (उपाश्रय), आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मारक मन्दिर (गुरुमन्दिर), मुमुक्षु कुटीर आदि विविध विभागों के साथ विशाल पैमाने पर विकसित होकर जिन शासन की प्रभावना करने में समर्थ हुई है.
कलिकाल में मोक्षमार्ग के दो आधारस्तंभ है. १. विश्व को आध्यात्मिक प्रकाश देनेवाले जिनबिम्ब. २. जिनागम की सम्यग् उपासना.
इन दोनों का समन्वय है- श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा. जिनशासन की प्रतिनिधि संस्थाओं में यह केन्द्र अग्र स्थान प्राप्त कर चुका है. यहाँ धर्म एवं आराधना की एकाध नहीं अनेक विध प्रवृत्तियों का महासंगम हुआ है. । आचार्यश्री जब मुनिवर थे तब से आज तक अपनी विरल श्रुतज्ञान की परंपरा को जीवन्त रखने तथा धर्म, दर्शन, साहित्य, संस्कृति, कला, शिल्प एवं स्थापत्य के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में दृढ़ निष्ठा के साथ अथक प्रयत्न कर रहे हैं. इसके लिए भारत भर में आप हजारों मीलों का विहार करके गाँव-गाँव तक पहुँचे हैं.
जहाँ भी आपको हस्तलिखित साहित्य नजर आया उसे बड़ी मेहनत से प्राप्त किया. कहीं पर नष्ट-भ्रष्ट हालात में, तो कहीं पर धूली धूसरित रूप में, कहीं पर जीर्ण शीर्ण रूप में, तो कहीं पर दीमक भक्षित चलनी जैसी हालात में, जहाँ पर जैसा भी उपलब्ध हुआ आपने सहर्ष अपना
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