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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि ____१९ होती हैं. अगरु की सुगंध अग्नि में गिरने से पहले ऐसी नहीं होती है'. ऐसे तो कई प्रसंग आये और अपने कारनामे करके चले भी गये, लेकिन वे जैन शासन के जवाहिर मुनिवर पद्मसागरजी का कुछ बिगाड़ न सके. कैसे बिगाड़ सकते थे? आपका प्रारब्ध जो अतीव प्रबल था. उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम चारों दिशाओं के श्रद्धालु सज्जनों ने आपको तन, मन, धन से सदैव सहयोग दिया है. निःसंदेह आज आचार्य प्रवर अपने जीवन की महानतम ऊँचाइयों को छू चुके हैं. लाखों भक्तों के पूजनीय हैं. आपका गौरवमय वर्तमान अतीत की सहनशीलता पर ही निर्मित हुआ है. अतीत के संघर्ष ने ही वस्तुतः आपके वर्तमान को स्वर्णिम बनाया है. एक प्रसंग आपके बाल्यकाल का है जो आपके सहनशील स्वभाव, गंभीरता और करुणाभाव को अच्छी तरह उजागर करता है. बचपन के कुछ साथी बड़े चंचलस्वभावी थे. कोठियों में आते-जाते कहीं पर कोई चीज उत्सुकता प्रेरक लगी तो ग्रहण कर लेते थे और आपके पास सुरक्षित रहेगी ऐसा सोचकर आपके पास छोड़ जाते थे. एक दिन कहीं से कैमरा ले आए और आपको सौंपकर चले गए. पता चलने पर आपको बहुत कुछ सहन करना पड़ा. आपने स्वयं को दोषी बना दिया परंतु साथियों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए इसी भावना से सच्ची हकीकत को हृदय तक सीमित रखा. जब सच्चाई अवगत हुई तो आपके प्रशस्त भाव से सभी गद्गदित हो उठे. उन्नति के शिखर पर किसी कवि हृदय ने कहा है संघर्षों में जो व्यंग-बाण सहते हैं आजीवन पथ पर दृढ़ता से रहते हैं, जब फलितार्थ होता है अथक परिश्रम तो वे ही विरोधी बुद्धिमान कहते हैं. ___ मुनि श्री पद्मसागरजी के जीवन पर यह मुक्तक ठीक-ठीक चरितार्थ होता है. यह संसार शक्ति का पूजक है. शक्तिहीन की यहाँ कोई गिनती For Private And Personal Use Only
SR No.008715
Book TitleJina Shashan Ke Samarth Unnayak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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