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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० जिनशासन के समर्थ उन्नायक नहीं होती. उदीयमान सूर्य को सभी नमस्कार करते हैं. उन्हीं विरोधियों ने मुनि पद्मसागरजी को आगे चल कर बुद्धिमान और महान कहा. सन् १९७१ के गोड़ीजी (पायधुनी) मुम्बई के चातुर्मास में आपने सर्व प्रथम देवद्रव्य की शुद्धि करवा के अपनी अप्रतिम बुद्धिप्रतिभा का परिचय दिया. लेकिन किसी के विरोध करने मात्र से आगे बढ़ने के इरादे बदल नहीं दिये जाते. विरोध और संघर्ष तो सतत आगे बढ़ते रहने का संदेश देते हैं. संसार का स्वभाव ही बड़ा विचित्र है. यहाँ भले कार्य की भी आलोचना करने वालों की कमी नहीं है. मुनि पद्मसागरजी ने विरोध के तूफान में मौन रहना श्रेष्ठ समझा. सुना अनसुना कर दिया. आँखों को गन्दगी से हटा लिया और निरन्तर आगे आगे बढ़ते रहे. बौद्धिक प्रतिभा, व्यावहारिक कुशलता जिनशासन के प्रति अपार आस्था और शासन प्रभावक बुलंदियों ने मुनिश्री की भविष्य के महान जैनाचार्य की उभरती प्रतिभा को उजागर कर दिया. चारित्र चूड़ामणी दादागुरुदेव श्री ने तुरन्त ही शुभ मुहूर्त में भगवतीसूत्र के योगोद्वहन प्रारंभ कराये और २८ जनवरी सन् १९७४ को पोपटलाल हेमचन्द जैननगर, अहमदाबाद में प्रभु-भक्ति उत्सव के साथ मुनि पद्मसागरजी को गणिपद से अलंकृत किया. इस पद की गरिमा को आपने खूब ऊँचाइयों पर पहुँचाया. ___सन् १९७४ के गोवालिया टेन्क, मुम्बई चातुर्मास के समय एक चौंकानेवाली घटना घटी. मुम्बई की महानगरपालिका ने विद्यालयों में बच्चों के अल्पाहार में फूड-टॉनिक के रूप में अण्डा देने का निर्णय लिया. जैन-जैनेतर मारवाड़ी, गुजराती प्रमुख शाकाहारी समाज ने मिलकर विरोध किया किन्तु इसे रोकने में सफल न हो सके. लोग मिलकर आपके पास आए और कहने लगे कि 'आप आगे आइये और कुछ करिये वरना महान् अनर्थ हो जाएगा'. समस्या बड़ी जटिल थी. आपको इसमें संस्कृति और धर्म भावना पर कुठाराघात होता नजर आया. फलस्वरूप महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शंकरराव चौव्हाण को कहकर इस निंदनीय प्रस्ताव को खारिज करवाया. इस तथ्य की विधिवत् For Private And Personal Use Only
SR No.008715
Book TitleJina Shashan Ke Samarth Unnayak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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