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जिनशासन के समर्थ उन्नायक दिल्ली के आपके प्रथम चातुर्मास ने तो ऐसा गुणानुराग पैदा किया कि उन्हें दूसरी बार आचार्यश्री के वर्षावास कराने का दृढ़ मनोरथ हुआ. फलतः राजधानी की ओर विहार करने हेतु आपने कोलकाता में पदार्पण किया, यहाँ पर अपनी कोलकाता के सफर में आए प्रधानमन्त्री श्री देवेगौड़ाजी आपके आगमन की खबर सुनते ही सहसा दर्शनार्थ पधारे. देवेगौड़ाजी जब से राजनीति में प्रविष्ट हुए थे उससे पूर्व ही आपके भक्तों में से एक हैं. ___ कोलकाता में प्रथम बार आपकी निश्रा में एक प्रतिष्ठित घराने के नवयुवक की भागवती दीक्षा बड़े ठाठबाठ से सम्पन्न हुई. पुन: आपका विहार शुरु हुआ. शिखरजी, वाराणसी, अयोध्या, श्रावस्ती, लखनऊ, कानपुर, आगरा, मथुरा होते हुए पुनः भारत की राजधानी दिल्ली में चातुर्मास (सन् १९९७) हेतु प्रवेश किया. __ दिल्ली के आपके दूसरे यशस्वी चातुर्मास के बाद आपकी निश्रा में हरिद्वार में आदिनाथ भगवान की चरण पादुका मन्दिर की प्रतिष्ठा एवं नूतन धर्मशाला का शिलान्यास सम्पन्न हुआ. वापसी में आपने दिल्ली में अशोकविहार स्थित नूतन जिनमन्दिर निर्माण का खात-मुहूर्त एवं शिलान्यास विधि कराई. इसी समय सोने में सुगंध की तरह एक और अद्वितीय उपलब्धि ने आपके चरण चूमे. आपकी ही निश्रा में दिल्ली के विविध संघों में चल रहे १८ युवामंडलों का एक महासंघ गठित हुआ.
दिल्ली का दूसरा चातुर्मास सम्पन्न कर आपने राजस्थान होते हुए गुजरात में कोबा की ओर प्रस्थान किया. विहार के दौरान सोकलीया व खिरीया (मेवाड़) में जिनमन्दिरों की प्रतिष्ठा, अडपोदरा-गुजरात में नूतन उपाश्रय 'कैलास स्मृति भवन' का उद्घाटन एवं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि गुरुमूर्ति की दर्शनार्थ स्थापना, महेसाणा नगर में विनायक पार्क स्थित मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय की अंजनशलाका प्रतिष्ठा, पूज्य चारित्रमूर्ति मुनिराज श्री रविसागरजी महाराज की पुण्य शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित अष्टाह्निका महोत्सव, अहमदाबाद स्थित मीराम्बिका जैन श्वेतांबर मूर्तिपजक संघ-नारणपुरा के नूतन उपाश्रय का उद्घाटन जैसे मांगलिक कार्यों को सम्पन्न कराया.
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