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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ कभी गुण वैषम्य को नहीं पाता. आचार्यश्री के बचपन के गुणग्राम आज तक भी जात्यरत्न प्रभा की तरह अक्षुण्ण रहे हैं. शिक्षा और संस्कार माँ के दिशा निर्देशन में आगे बढ़े होनहार प्रेमचन्द की प्रारंभिक शिक्षा का श्रीगणेश अजीमगंज की श्री रायबहादुर बुधसिंह प्राथमिक विद्यालय से हुआ. छट्ठी कक्षा तक की शिक्षा प्रेमचन्द ने यहीं पर अर्जित की. विद्याभ्यास के क्षेत्र में आप कभी संतुष्ट नहीं हुए. अध्ययन के प्रति अपार लगन, अथक परिश्रम और अद्भुत स्मरण-शक्ति ने चरित्रनायक का नाम विद्यालय के होनहार विद्यार्थियों में दर्ज करा दिया. तन्दुरुस्त काया, निरन्तर निखरती प्रतिभा, सतत उद्यमशीलता इत्यादि गुणों ने प्रेमचन्द की विकास यात्रा को अनोखा रूप दिया. आपके पिताश्री का जो कि स्वयं भी जमींदार थे, अजीमगंज के लब्धप्रतिष्ठ जमींदार राजा साहब श्री निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा के खानदान के साथ परिचय होने के कारण माता भवानीदेवी वहीं पर कोठार सम्हालने का कार्य करती थी, परिणाम स्वरूप प्रेमचन्द की जीवन शैली प्रारम्भ से ही एक बड़े घराने की उच्च परम्पराओं के अनुरुप निर्मित हुई. शान से जीना, बन ठन कर टहलना, अदब से व्यवहार करना, सभ्यता से खाना, सौम्यता से बोलना, स्वच्छतापूर्वक रहना इत्यादि सभी कुछ नवलखा खानदान में सहज था जो कि प्रेमचन्द के जीवन-व्यवहार में भली-भाँति उतरा. श्रीपूज्यजी महाराज की गद्दी-ठिकाणा होने से अजीमगंज शहर उस जमाने में यतियों का केन्द्र था. जैन श्रीसंघ के करीब-करीब सभी जमींदारों के यहाँ बालकों के धार्मिक अध्ययन तथा अध्यापन हेतु यतिजी महाराज आया करते थे. नवलखा परिवार में यति श्री मोतीचन्दजी का नियमित रूप से आना जाना रहता था. मोतीचन्दजी महाराज बालब्रह्मचारी और आचार सम्पन्न व्यक्ति थे. वे जैन पाठशाला में अध्यापक होने से धार्मिक शिक्षा देने में कुशल थे. उनके सान्निध्य में ही बालक प्रेमचन्द को भी व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षा मिली थी. परिणामतः प्रारम्भ से ही आप में सुसंस्कारों का सिंचन हुआ. जैन इतिहास और अध्यात्म की बाराक्षरी उन्हीं से सुनने- सीखने को मिली. निर्मल-निर्दोष For Private And Personal Use Only
SR No.008715
Book TitleJina Shashan Ke Samarth Unnayak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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