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आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
||श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ।। जिन शासन के समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
दृष्ट्वापि दृश्यते दृश्यं, श्रुत्वापि श्रूयते पुनः ।
सत्यं न साधुवृत्तस्य, दृश्यते पुनरुक्तता ।। यह सच है कि महापुरुषों का चरित्र ही इतना सुन्दर होता है कि
एक बार देखने-सुनने से बारंबार देखने-सुनने को मन करता है, फिर भी आश्चर्य है कि प्रत्येक बार देखने-सुनने में नया-नया ही लगता है.
अर्थात् पुनरुक्ति दोष विमुक्त होता है. बालक प्रेमचन्द से आचार्य श्री पद्मसागरसूरि तक की सफल यात्रा ___जैनाचार्यों की गरिमापूर्ण अर्वाचीन परंपरा में एक यशस्वी नाम है : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज. आपका व्यवहार-कौशल्य, वाक्पटुता, स्वाभाविक सहजता, निर्भीक अभिव्यक्ति, कर्तव्य परायणता, अनुशासनप्रियता, अद्भुत साहसिकता, नेतृत्व सक्षमता इत्यादि अनेकानेक सद्गुणों से दैदीप्यमान जीवन जनसामान्य के लिये प्रेरणास्पद और वरदान है तो मानवता व साधुता के लिए सुखद आदर्श. महान आदर्शों के ठोस धरातल पर निर्मित आपका प्रतिभासम्पन्न व बहुमुखी व्यक्तित्व प्रारंभ से ही संघर्षशील रहा है. ध्येय के प्रति निष्ठा और सद्विचारों के लिये समर्पित आपका जीवन अपने आप में एक महान उपलब्धि है. जन्म और बाल्यकाल
युगों की किसी सर्वोत्तम घड़ी में कभी ऐसी विरल आत्मा संसार में जन्म लेती है जो स्वयं तो आत्मोत्थान करती ही है साथ-साथ हजारों लाखों जीवों को जीवन जीने की कला का पथ-प्रदर्शन करती है और मानव कल्याण की गंगोत्री सदृश उपकारी बन जाती है. युगों-युगों तक जिनका नाम और कार्य पूरे संसार को परोपकार और कर्तव्यनिष्ठा की सतत प्रेरणा देता रहे, ऐसे महापुरुष के अवतार की गरिमा जिस भूमि को
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