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जिनशासन के समर्थ उन्नायक प्राप्त हुई है वह रत्नभूमि है बंगाल की. अनेक अवतारी पुरुषों के जन्म
और कर्म की अमर घटनाओं के साक्षी बंगाल प्रान्त का एक ऐतिहासिक नगर है अजीमगंज. बांगलादेश की सीमा पर स्थित तत्कालीन मुर्शिदाबाद स्टेट का यह नगर अपने में जैनों की अपार वैभवसंपन्नता और अदभुत धर्म-भावना को समेटे हुए था. उत्तुंग शिखरों से सुशोभित और सम्पत्ति के सदुपयोग के प्रतीक के रूप में विनिर्मित व्यक्तिगत सात भव्य जिन-प्रासादों के इस नगर में क्षत्रिय चौहान वंश के जगन्नाथसिंह (रामस्वरूपसिंह) जी के घर भवानीदेवी की पुण्य-कुक्षी से १० सितम्बर सन् १९३५ के मंगल दिन एक होनहार बालक ने जन्म लिया जिसका नाम प्रेमचन्द रखा गया. इस पुण्यात्मा ने समय के साथ सावधानी पूर्वक कदम बढ़ाकर राष्ट्रसन्त, महान जैनाचार्य, श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के बहुश्रुत नाम से जीवन में आशातीत सार्थकता व अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की.
आपके पूर्वजों का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है. सैकड़ों साल पहले जोधपुर से प्रस्थानकर आपके पूर्वज मैनपुर (उत्तरप्रदेश) आये थे. कहा जाता है कि मैनपुर में किसी समय पाण्डवों का राज्य था. यहाँ से सूर्यभानसिंह, भगीरथसिंह और रामचरणसिंह तीनों पूर्वज भाई अपने शस्त्र सरंजाम सहित रण प्रयाण करके बिहार के सारण (छपरा) जिले के जलाल बसंत इलाके में आये और यहाँ के जागीरदार को पराजित करके अपना शासन कायम किया. इसके लिए मुसलमान जागीरदारों से संघर्ष भी करना पड़ा. सूर्यभानसिंह को यहाँ की गद्दी सौंपकर दो भाई पूर्व भारत की ओर आगे बढ़े. रामचरनसिंह ने वर्तमान समस्तीपुर के बेरीवारा में और भगीरथसिंहने उड़ीसा प्रान्त के चन्द्रगढ़ में अपनी हुकूमत स्थापित की. आचार्यश्री की वंश परंपरा के आद्य पुरुष श्रीमान् सूर्यभानसिंह थे. जलाल बसंत में अपने अधिनस्थ ब्राह्मण, धोबी, कुम्हार, अहीर, तैली, चमार, माली आदि आठ जाति के परिवारों को भी आपने अपने साथ लाकर यहाँ बसाया था.
प्रेमचन्द श्री सूर्यभानसिंह से पंद्रहवीं पीढ़ी में आते हैं. (वंशावली की तालिका हेतु देखें पृ. ५८) पिता श्री जगन्नाथसिंहजी (रामस्वरूपसिंह) को
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