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आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
२५ प्रत्युत्पन्नमति होना जरूरी कहा गया है. उन्हें श्रीतत्त्व से भी सम्पन्न होना चाहिए, क्योंकि शासन की विशिष्ट रक्षा, प्रभावना, जिनमंदिर-उपाश्रय निर्माण प्रेरणा, प्रतिष्ठा इत्यादि कार्य उनके सूरिमन्त्राम्नायगत श्रीविद्या की सिद्धि से सम्पन्न होते है. इन सब से बढ़कर बात यह है कि शास्त्रों में इन्हें 'तित्थयर समो सूरि' कहा है. अर्थात् तीर्थकरों की गैरमौजूदगी में आचार्य को ही तीर्थंकर समान महिमावन्त स्थान प्राप्त होता है, ओजस्वी प्रवक्ता
भव्यजन प्रबोधन
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