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जिनशासन के समर्थ उन्नायक * महाराजश्रीनी वाणीमां जे खंडनमंडन, टीका-टिप्पणी अने राग-द्वेषनो
अभाव अने सरलता, मधुरता, मोतीनी माला जेवी झलक अने धर्मपरायणतानां आलादकारी दर्शन थाय छे एने एमनी जीवन-साधनानुं ज प्रतिबिंब लेखq जोईए. आवा जीवनना अने वाणीना यशस्वी साधक मुनिवरने एमनी आचार्य पदवीना गौरवभर्या प्रसंगे, आपणी अंतरनी अनेकानेक वंदना हो!
__ - रतिलाल दीपचंद देसाई (प्रसिद्ध जैन साहित्यकार) शब्दशास्त्र में आचार्य शब्द के कई अर्थ प्रतिपादित किये गये हैं. १. शिष्यों का उपनयन कराकर वेद पढ़ानेवाला आचार्य है.
(उपनीयतु यः शिष्यं वेदमध्यापयेद् बुधः- मनु) २. किसी मत अथवा पंथ का संस्थापक आचार्य कहलाता है जैसे
शंकराचार्य आदि. (मत प्रस्थापके शंकराचार्यादौ) ३. आचार्य शब्द का प्रयोग गुरु के अर्थ में होता है, जैसे देवताओं के
गुरु बृहस्पति. (आचार्यस्तु यथा स्वर्गे शक्रादीनां बृहस्पतिः) ४. व्यावहारिक शिक्षा देनेवाला आचार्य कहलाता है, जैसे द्रोणाचार्य. उपर्युक्त में से कोई भी अर्थ जैनाचार्य के अर्थ को नहीं समेट पाता. जैनाचार्य जिन अर्थों में परिभाषित होता है, वह बहुत व्यापक है. यहाँ आचार्य शब्द का अर्थ आध्यात्मिक-धर्मगुरु होता है. देव तत्व, गुरु तत्व और धर्म तत्व इन तीनों तत्वों से जैन धर्म का स्वरूप समझा जा सकता है.
देव तत्व में अरिहंत और सिद्ध, गुरु तत्व में आचार्य, उपाध्याय और साधु तथा धर्म तत्व में सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप आते हैं. जैन धर्म में आचार्य का स्थान पंचपरमेष्ठियों में तृतीय पद पर प्रतिष्ठित है. पंचाचार का पालन करना और शिष्यों से करवाना जैनाचार्य का मुख्य धर्म बनता है.
जैनाचार्य को पंचेन्द्रिय संवृतादि ३६ गुणों से युक्त बताया गया है. अन्य गुणों में गीतार्थ, बहुभाषाविद्, प्रवचनकर्ता, शिष्य संपदावान् और
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