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आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
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इन पैदल निकले संघों के अलावा आचार्यश्री के शुभाशीर्वाद से रेल व बसों से अनेक यात्रा संघ सम्पन्न हुए हैं.
पदवी दान तालिका
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श्री धरणेन्द्रसागरजी म.
श्री वर्द्धमानसागरजी म.
श्री अमृतसागरजी म.
श्री अरुणोदयसागरजी म.
श्री विनयसागरजी म.
श्री देवेन्द्रसागरजी म.
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गणि, पंन्यास, उपाध्याय पद. गणि, पंन्यास, आचार्य पद.
गणि, पंन्यास पद.
गणि, पंन्यास पद.
गणि, पंन्यास पद.
गणि पद.
आचार्यश्री ने अपने संयम जीवन में अनेक मुमुक्षु भाई-बहनों को दीक्षाएँ दी. आप ने कभी गच्छ मतों को महत्व नहीं दिया है. आज भी आपके पास चारों फिरकों के साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएँ आते है.. आपके सौजन्यशील व्यवहार और उदारतापूर्ण स्वभाव में सभी को आत्मीयता लगती है. मानवता के नातों को आपने जीवन्त रक्खा है. एक कवि ने अपने उद्गारों को काव्यमय स्वरूप देते हुए कहा है
अगाध होते हुए भी जो कभी न छलकाएँ उसे सागर कहते हैं पानी में रहते हुए भी जो जल से जुदा रहे उसे कमल कहते हैं, जो कमल भी है और सागर भी है उसे लोग पद्मसागर कहते हैं.
वास्तविकता पर गौर करने पर यह ज्ञात होता है कि आचार्यश्री के शब्दातीत व्यक्तित्व का मानव कल्याण के लिए कितना मूल्य है. इस संसार में ऐसे हजारों-लाखों लोग हैं जिनके जीवन को सँवारने, सजाने और आध्यात्मिकता का अनुभव कराने में आचार्यश्री का योगदान बड़ा महत्वपूर्ण रहा है. आपने प्रवचनों के माध्यम से हमेशा भव्य जीवों के आत्मिक भावों को उजागर करने का कार्य किया है. मानो इसी हेतु से ही सुर भारती ने आपकी जिह्वा पर अपना स्थान कायम बनाया है. आचार्य प्रवर के श्रीमुख से निसृत कुछ चुने हुए मौक्तिक.
आत्मबंधन के तीन मुख्य कारण हैं- भ्रम, शंका और अज्ञान. * अपने घर की सीढ़ियाँ मैली हो तो औरों की छत की गंदगी की शिकायत मत करो.
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