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आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
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शास्त्र विशारद आचार्य प्रवर श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराज के अथक प्रयत्नों से स्थापित और उन्हींके विद्वान शिष्यरत्न मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज जो स्वयं एक अच्छे वक्ता और जाने-माने लेखक थे, उनके कुशल निर्देशन में संचालित इस ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान में लब्धिचन्द ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की. इस शिक्षण संस्थान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर दराज से जैन छात्र आया करते थे. जैन न्याय और संस्कृत के अलग-अलग खास विभाग थे. कोलकाता की बंगीय साहित्य परिषद् और इलाहाबाद के हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाओं का भी यहाँ केन्द्र था. अध्ययन के इस महत्वपूर्ण दौर में उन्हें मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज का पावन सान्निध्य मिला. मुनिश्री के विशेष प्रयत्नों के बदौलत ही इस संस्थान में प्रेमचन्द की बौद्धिक प्रतिभा का अभूतपूर्व विकास हुआ. वक्तृत्व कला की शिक्षा के अन्तर्गत आपने प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण की. केवल दो वर्षों के इस छोटे से अध्ययनकाल में आपने अनेक सफलताएं अर्जित की. धार्मिक अध्ययन के रूप में पंच प्रतिक्रमण व जीव विचार प्रकरणादि भी आपने यहीं पर कण्ठस्थ किये. मुनिश्री की अनूठी व आकर्षक प्रवचन - शैली से प्रेरित होकर आपने छोटे-छोटे भाषण देने भी यहीं सीखे. भाषणों की क्रमिक प्रगतिशील प्रक्रिया ने ही एक दिन प्रेमचन्द को जैन शासन का प्रखर प्रवक्ता बनाया और समाज ने आपको प्रवचन प्रभाकर का बिरुद दिया.
शिवपुरी विद्यालय और कॉलेज को देश की कतिपय विभूतियों के निर्माण का यश प्राप्त है. प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार जयभिक्खु और सहृदय रतिलाल दीपचन्द देसाई यहाँ के छात्र रहे थे. भारत के भूतपूर्व प्रधान मन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री भी यहाँ कुछ दिनों रहे थे. मध्यप्रदेश के आइ. ए. एस. अधिकारी श्री शरच्चन्द्र पण्ड्या आपके अध्ययनकाल के सन्निकट मित्र व सहपाठी थे. भारत के महान महानुभावों को विद्यादान देनेवाली इस शिक्षण संस्था में ईसवी सन् १९५० तक रहने के बाद लब्धिचंद कोलकाता चले आए. यहाँ एक रिश्तेदार के घर में रहते हुए आपने श्री विशुद्धानन्द सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नौवीं व दसवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की. इसके बाद
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