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आचार्य श्री पद्मसागरसूरि भव्य आयोजन करवाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. तब से यह बाधा सदा के लिए दूर हो गई. इस सत्कार्य के अनुमोदन में सन् १९७८ के वालकेश्वर-मुम्बई चातुर्मास में आपका अभिनन्दन समारोह आयोजित हुआ. जिसमें अध्यक्ष स्थानीय उद्बोधन करते हुए श्री कस्तूरभाई शेठ ने प्रशंसात्मक वाक्यों में कहा था कि आचार्यश्री ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की जिससे यह प्रतिबंध सदा के लिए हट गया और भविष्य में दीक्षा का प्रश्न उपस्थित होने पर किसी भी साधु भगवन्त को अड़चन नहीं आयेगी.
दूसरा अनुमोदनीय कार्य हिंसाचार पर रोक लगवाने का किया. अपने अनन्य भक्त एवं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री बाबूभाई जसभाई पटेल को कह कर आपने शत्रुजय महातीर्थ के बाँध में होती मछलियों की जीव-हिंसा पर रोक लगवाई.
वालकेश्वर के इसी चातुर्मास की पूर्णाहुति के तुरन्त बाद आपके दीक्षा पर्याय की रजत जयन्ती महोत्सव का आयोजन हुआ. जैन शासन को दिये हुए आपके कीर्तिमानों से प्रेरित हो मुम्बई के सभी जैन संघों ने मिलकर इस महोत्सव को खूब दीपाया. आचार्यश्री से प्रभावित होकर आपके संयम-पर्याय की रजत जयन्ती के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री नीलम संजीव रेड्डी ने मुंबई के राजभवन के विशाल दरबार हॉल में आपका शानदार अभिनन्दन किया था.
उल्लेखनीय है कि स्वयं राष्ट्रपति महोदय ने श्रेष्ठीवर्य श्री कस्तुरभाई लालभाई (प्रमुख-आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी) से मिलकर इस विराट् समारोह के लिए जैन साधुओं की आचार-मर्यादाओं के अनुरूप समग्र व्यवस्था करवाई थी. वाकई आचार्यश्री का बहुमान आपकी महानता और जिनशासन की साधुता का बहुमान था. इसी समारोह में राष्ट्रपति ने अपने प्रवचन में आचार्यश्री का अभिवादन करते हुए आपको राष्ट्रसन्त की उपाधि प्रदान की.
आचार्यश्री जब मुनि थे उस समय की यह घटना है. अहमदाबाद स्थित एल. डी. इन्स्टीट्यूट (लालभाई दलपतभाई शोध संस्थान) को साहित्यिक समृद्धि प्रदान करने में पूज्य श्री का बहुत बड़ा योगदान रहा
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