SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनशासन के समर्थ उन्नायक एक ही दिन में प्रस्तावित अध्यादेश वापस खिंचवा लिया और धर्मक्षेत्र को संभवित अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप से बचा लिया. इसी तरह राणकपुर तीर्थ के समीप एक पंचतारक होटल खुल रही थी जिससे तीर्थ की पवित्रता को आँच आती थी. आचार्यश्री ने अपने प्रभाव का उपयोग कर उसके निर्माण पर रोक लगवाई. राजस्थान के अनेक गाँव-नगरों में धर्म-प्रभावना करते हुए दिल्ली के जैन संघ की वर्षों की भावना को साकार करने हेतु चातुर्मासार्थ राजधानी में पधारे. सन् १९९४ के दिल्ली के चातुर्मास की शासन प्रभावक उपलब्धियाँ एक होती तो गिनी जा सकती थी. मगर यहाँ तो उपलब्धियों की शृङ्खला ही बन गई थी. इसी चातुर्मास के दौरान राजस्थान के जालोर व समीप के क्षेत्रों में कौमी तंगदिली फैली और जैन मन्दिरों पर हमले होने लगे. ऐसे में पूज्यश्री के प्रयासों से तत्कालीन प्रधानमन्त्रीजी ने एक तरह से असामान्य कदम उठाकर तत्काल जालोर में सेना भिजवा कर शान्ति कायम करवाई. राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्माजी ने आपके पावन पदार्पण राष्ट्रपति भवन में कराके आशीर्वाद ग्रहण किये. राष्ट्रपति भवन में आपका अद्भुत स्वागत होना जैन शासन का स्वागत था. इस चातुर्मास में अनेकों राजनेताओं ने आपके दर्शन-आशीर्वाद का लाभ प्राप्त किया. दिल्ली के श्रीसंघ में इस वर्षावास की उत्तम फलश्रुति रूप देवद्रव्य की शुद्धि का अनुमोदनीय कार्य हुआ. चातुर्मास पूर्णाहुति के पश्चात् दिल्ली से हस्तिनापुर तीर्थ का छरी पालित संघ का आयोजन आपकी प्रेरणा से हुआ. दिल्ली निवासी जैनों के हृदय कमलों में आपने ऐसी आर्हती ज्योत जगाई है कि आज भी वह अखण्ड जल रही है. राष्ट्रसंत ने सन् १९९५ में भारतवर्ष की पवित्र भूमि हरिद्वार में प्रथम जिनमन्दिर रूप श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भव्य अंजनशलाका-प्रतिष्ठा कराई. इस अवसर पर जैनेतर महामंडलेश्वर आदि सन्त-पुरुषों ने एवं जनता ने जो आपका स्वागत किया था वह अपने आप में एक अविस्मरणीय घटना थी. वहाँ की जनता में आपके प्रति अतुलनीय सद्भाव देखने को मिला. इतना ही नहीं सभी ने मिलकर आपका विशाल For Private And Personal Use Only
SR No.008715
Book TitleJina Shashan Ke Samarth Unnayak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy