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मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंथू ( ठाणंगसुत्त,५२९) 'मुखरता सत्यवचननी विघातक छे'
अनुसन्धान प्राकृतभाषा अने जैनसाहित्य-विषयक सम्पादन, संशोधन, माहिती वगेरेनी पत्रिका
६८
सम्पादक: विजयशीलचन्द्रसूरि
AIMINIMIT ANWOODDA
श्रीहेमचन्द्राचार्य कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि
अहमदाबाद २०१५
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अनुसन्धान ६८
आद्य सम्पादक : डॉ. हरिवल्लभ भायाणी
सम्पादक : विजयशीलचन्द्रसूरि
सम्पर्क: C/o. अतुल एच. कापडिया
A-9, जागृति फ्लेट्स, पालडी महावीर टावर पाछळ, अमदावाद-३८०००७ फोन : ०७९-२६५७४९८१
E-mail:s.samrat2005@gmail.com प्रकाशक : कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम
जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि,
अहमदाबाद प्राप्तिस्थान : (१) आ. श्रीविजयनेमिसूरि जैन स्वाध्यायमन्दिर
१२, भगतबाग, जैननगर, नवा शारदामन्दिर रोड, आणंदजी कल्याणजी पेढीनी बाजुमां, अमदावाद-३८०००७
फोन : ०७९-२६६२२४६५ (२) सरस्वती पुस्तक भण्डार
११२, हाथीखाना, रतनपोल, अमदावाद-३८०००१ फोन : ०७९-२५३५६६९२
प्रति : 250
मूल्य : ₹ 120-00
मुद्रक : क्रिश्ना ग्राफिक्स, किरीट हरजीभाई पटेल
९६६, नारणपुरा जूना गाम, अमदावाद-३८००१३ (फोन: ०७९-२७४९४३९३)
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निवेदन वर्षो अगाऊ, गुजराती भाषाना अग्रणी अने लोकप्रिय साहित्यकार गुलाबदास ब्रोकर- एक पुस्तक जोयेलुं : “साहित्य : तत्त्व अने तन्त्र'". साहित्य-विवेचनना ए - विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थमां एक लेखनुं शीर्षक आवं हतुं : "सर्जकनुं कर्तव्य : आसन से मत डोल".
आजे आ शीर्षक 'संशोधक'ना सन्दर्भमां याद आव्युं छे, अने कहेवानुं मन थाय छे के "संशोधक, कर्तव्य : आसन से मत डोल".
हा, संशोधक जो खरा अर्थमां, अथवा तो शोधकार्यने समर्पित-सन्निष्ठ संशोधक होय अने तेना संशोधनमां दम होय अने वजनदार मुद्दा होय, तो तेणे पोतानां तारणो थकी विचलित थर्बु न जोईए; कोई दबाण के भय के लालच के शरमने आधीन थई पोताना निष्कर्षोमां के संशोधनना मुद्दामां फेरफार करी नाखवानुं वलण अपनावतुं न जोईए.
एवं बने के संशोधन कोई परम्पराने, पारम्परिक धारणाओने के मान्यताओने प्रतिकूळ बनी जतुं होय. मान्यता जुदी होय, अने शिलालेखी, पुरातात्त्विक अने/ अथवा साहित्यिक प्रमाणो ते मान्यताथी जुदां, बल्के विपरीत होय. आवे वखते संशोधक पर दबाण आवे के तमारुं संशोधन फेरवी/बदली काढो, अथवा जाहेर ज न करो. आ माटे क्यारेक सम्बन्धोनी शरम लदाय, क्यारेक आर्थिक प्रलोभन अपाय, तो घणा भागे विरोध, प्रतिबन्ध, बहिष्कार, बदनामीनी धमकी अपाय. आवे वखते समर्पित अने सन्निष्ठ शोधकर्नु कर्तव्य एक ज होय : आसनसों मत डोल ! जे कार्य पोते स्वेच्छाए स्वीकार्यु छे; जेमां पोते विद्यानी उपासना मानी छे; जेने पोताना अन्तःकरणने यथार्थ जणायेलां तथ्यो अने साक्ष्यो द्वारा प्रमाणित ठरावेलुं छे; ते तारणो-निष्कर्षो के वस्तुस्थिति थकी, पोतानो अभिप्राय बदलवो नहि, एनुं नाम 'आसनसों मत डोल'.
संशोधक (अने सर्जक) ज्यारे आसन बदले छे; आसन पर ज विचलित थाय छे, त्यारे ते विद्यानो नहि, अविद्यानो उपासक, आपोआप, बनी बेसे छे. कोई लालच, भय के मजबूरीने कारणे, अथवा पोताना अंगत साम्प्रदायिक रागद्वेषने कारणे, प्रमाणित थयेला तथ्यने पण स्वीकारे नहि, पण नकारे, अने जे
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तथ्य वितथ-जूठं होय तेने तथ्यलेखे स्वीकारे-स्थापे, एवो संशोधक पोताना पक्षमां, सम्प्रदायमां मान-चांद भले मेळवे; शोध-जगत्मां तेनुं मूल्य 'जहांगीरी लोटा'थी विशेष नथी रहेतुं.
__क्यारेक क्यारेक, जोके हवे तो वारंवार, आवा संशोधकोनो परिचय/परचो मळतो रहे छे. अमुक तथ्य विद्वानो द्वारा निर्विवादपणे प्रमाणित/स्वीकृत थो होय; तेना अन्य तमाम पक्षो के मतान्तरोनुं समुचित रीते निरसन थई चूक्युं होय; ते संशोधक व्यक्ति पण ते मुद्दे विरोध के विपरीत प्रतिपादन करवाने असमर्थ होय; तो पण, ज्यारे तेमां संमति आपवानी आवे त्यारे, ते, कां तो मौनपणे अलिप्त रहे, कां 'हुं आने स्वीकारी शकीश नहि' - एम कहे, कां सभा त्यजी जाय. एक राजकारणीने छाजे तेवो आ ‘अनेकान्तवाद (!)', तेवा लोकोने, पोताना वर्तुळमां, थोडीक इज्जत के मान-पद-प्रतिष्ठा अपावी जतो हशे; परन्तु मध्यस्थ अने सदाप्रतिष्ठित विद्वानोना समाजमां तो तेमनुं तथा तेमनां संशोधनोनुं तथा शब्दनुं - अभिप्रायनु मूल्य 'जहांगीरी लोटा'नुं ज, सन्दिग्ध ज, होवामुं.
आपणी पासे आजे जे यत्किञ्चित् शोधजन्य इतिहासनी, पुरातात्त्विक तेमज साहित्यनी प्रसादी छे ते आवा - अडोल आसने बेठेला थोडाक - आंगळीना वेढे गणाय तेवा साचुकला संशोधकोने ज आभारी छे. अस्तु.
- शी.
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अनुक्रम
मुनि श्रीक्षमाकल्याणजी रचित 'जय तिहुअण० स्तोत्र-भाषा
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय एक इतिहास-पत्र
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय श्रीशाश्वतबिम्ब-स्तवन
- सं. रसीला कडिआ श्रीविजयसेनसूरि-प्रसादित बे दस्तावेजी मूल्य धरावता पत्रो
- विजयशीलचन्द्रसूरि योगबिन्दु-टीका अङ्गे थोडंक चिन्तन – मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय प्रकाशित विज्ञप्तिपत्रोनी सूचि - मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय अनुसन्धान : अङ्क ५१ थी ६७ - सूचि
__ - मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
२३ ३०
३८
८८
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आवरणचित्र - परिचय
आवरण पृष्ठ - १ सती द्रौपदी अने नारद ऋषि
द्रौपदी ए महासती तो छे ज, साथे दृढ सम्यक्त्वधारिणी पण छे. ते विरतिधर साधु सिवाय कोईने नमे के आदर करे नहि. नारद ऋषि अविरति होवाथी तेओ द्रौपदीने मळवा आव्या त्यारे तेणे पोतानी धर्मक्रिया - माळा छोडी नहि अने ऋषिनो आदरसत्कार न कर्यो. ते प्रसङ्गने दर्शावतुं एक चित्र.
सम्भवतः १९मो सैको. लाखथी बनेला पृष्ठ - पाटली उपर श्यामवर्णनी पार्श्वभू उपर आलेखायेल आकृतिओ, तेनी नजाकत -नीतरती कलम माटे ध्यान खेंचे छे. सिंहासन पर बेठेली द्रौपदीना हाथनी माळा, राजस्थानी शैलीना तेना अलङ्कारो, वेलबूटीओवाळां वस्त्रो - बधुं सोहामणुं दीसे छे. तो नारदनी विस्फारित आंख, 'तने जोई लइश' - एवं जाणे सूचववानी मुद्रामां लंबायेलो हाथ, वीणा, पगनी चाखडी, शैलीसहज वेलबूटानी भातवाळु वस्त्रपरिधान - आ बधुं पण ध्यानकर्षक ज.
आवरण पृष्ठ - ४ चन्दनबाळा अने मृगावती
बन्ने भगवान महावीरनी साध्वी बन्ने महासती. चन्दनबाळा सूतां छे, ने तेमना हाथ पासे काळोतरो नाग पसार थाय छे. ते जो हाथने स्पर्शे तो अवश्य करडे ने तो अनर्थ ज थाय.
पण ताजुं केवलज्ञान पामेलां मृगावतीने ज्ञानना प्रकाशबळे ते नाग देखाय छे, अने तेओ गुरुणीनो हाथ बहु ज कोमळताथी खसेडे छे. सर्प तो पसार थई गयो, पण कोईनो स्पर्श थतां ज चन्दनबाळा जागी जाय छे.
आ प्रसङ्गने आलेखता आ पुरातन चित्रमां बन्ने साध्वीओनुं वेषपरिधान, रजोहरण, बन्नेना मों पर लींपायेली सौम्यता, नागनी लयबद्ध गतिशीलता - बधुं नोंधपात्र रीते आलेखायुं छे.
साध्वीने पलंग - तकियो- पथारी न होय; पाट ने संथारो होय. परन्तु चित्रकार तो अतन्त्र होय, कविनी जेम, एटले ते क्षम्य ज होय. परन्तु पथारी - तकियानी वेलबूटीओ वाळी मधुर भात, उपर फूलवेल अने चंदरवो - आ बधुं वातावरणने समृद्ध बनावे छे.
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मुनि श्रीक्षमाकल्याणजी रचित 'जय तिहुअण'स्तोत्र-भाषा
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय स्तम्भनकपार्श्वनाथनी उत्पत्ति :
चिर्पटनाथ नामना योगी पासेथी सुवर्णरस साधवानी साधना पामी ते रस सिद्ध करवाना प्रयत्नो योगी नागार्जुने शरू कर्या. घणा प्रयत्नो करवा छतां ज्यारे रस सिद्ध न थयो त्यारे पादलिप्तसूरिजी पासेथी 'पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा समक्ष सिद्ध करातो रस कोटीवेधी थाय छे' एवं सांभळी कान्तिपुरथी पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा लावी तेनी समक्ष सुवर्णरसनी सिद्धि करी. रस सिद्ध कर्या पछी ते प्रतिमा त्यां ज सेढी नदीना तट पासे पधरावी. काळान्तरे चन्द्रगच्छीय नवाङ्गीटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजीने ज्यारे कोढ थयो त्यारे शासनदेवीए सूरिजीने सेढी नदीना तट पासे पधरावेला ते स्तम्भनक पार्श्वनाथप्रभुना बिम्बनी वन्दना करवा जणाव्यु. सूरिजी सङ्घ सहित त्यां पधार्या. 'जय तिहुअण' शब्दथी आरम्भाता नवा स्तोत्रनी रचना प्रभु समक्ष करता गया. स्तोत्र पूर्ण थतां (मतान्तरे १६मा श्लोके) पलास वृक्षना मूळमांथी प्रभुनी प्रतिमा प्रगट थई. तेमज तेना स्नात्रजलथी सूरिजीनो कोढ रोग दूर
थयो.
स्तम्भनकपुर अने स्तम्भनपुर :
सुवर्णरसनी सिद्धि पार्श्वनाथप्रभुनी प्रतिमा समक्ष कराई. रस स्तम्भित थयो तेथी ते प्रतिमा स्तम्भनकपार्श्वनाथना नामे ओळखाई. वळी ते ज प्रभुना नाम उपरथी गामनुं नाम पण स्तम्भनकपुर पड्युं. आजे आ गाम खेडा जिल्लाना आणन्द तालुकामां आवेला उमरेठ गाम पासे सेढी नदीना किनारे थामणा नामथी ओळखाय छे. ज्यारे स्तम्भनपुर एटले हालतुं खम्भात. आ बन्ने गाम जुदा जुदा छे. नामना साम्यपणाथी क्यारेक ए अंगे भ्रम थाय छे. परन्तु स्तम्भनाधीशप्रबन्धसङ्ग्रह ग्रन्थमां ए अंगे स्पष्ट नोंध मळे छे. “१३६८ वर्षे इदं च बिम्बं श्रीस्तम्भतीर्थे समायातं भविकानुग्रहाय' आ पङ्क्तिना अर्थ मुजब सं. १३६८मां ते बिम्ब स्तम्भनकपुरथी स्तम्भनपुरमां लवायुं हशे एम अनुमान थाय. मूळकृतिनी श्लोकसङ्ख्या अने भण्डारेली गाथा अंगे :
प्रबन्धचिन्तामणिकार श्रीमेरुतुङ्गाचार्यजीनी नोंध मुजब '...नवं द्वात्रिंशिका
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अनुसन्धान-६८
स्तवमवास्तवं कुर्वन्तस्त्रयस्त्रिंशत्तमे वृत्ते तत्र श्रीपार्श्वनाथबिम्बं प्रादुश्चक्रुः । देवतादेशेन च तद्वृत्तं गोप्यमेव निर्ममेशो निर्ममे.' नवी बत्रीसीनी रचना करता तेत्रीसमा वृत्त (पद्य) वखते ते पार्श्वनाथ प्रभुनुं बिम्ब प्रगट थयु. पाछळथी देवताना आदेशथी ते वृत्त (छेल्लुं पद्य) गोपावायु. अहिं प्रश्न थाय के मूळ स्तोत्रनी श्लोकसङ्ख्या ३२ के ३३ ? पाछळथी छेल्ली १ गाथा भण्डारी देवामां आवी एम कर्त्ता मेरूतुङ्गसूरिजी कहे छे तो हाल मळती कृतिनी श्लोक सङ्ख्या ३० शा कारणथी? के अनुश्रुति प्रमाणे सम्भळाती 'द्वात्रिंशिकानी छेल्ली २ गाथा भण्डारी देवामां आवी' ते वात वधु सङ्गत छे ? प्रस्तुत कृति परिचय :
चन्द्रगच्छीय श्रीअभयदेवसूरिजी कृत 'जय तिहुअण०' स्तोत्रना पद्यभाषानुवाद रूपे प्रस्तुत कृतिनी रचना कराई छे. मूळकृतिमां कविए प्रयोजेला पार्श्वनाथप्रभुना ते दरेक विशेषणोने चोपई, पद्धडि के नाराच छन्दमां भावबद्ध रीते रचवानी कविश्री क्षमाकल्याणजीनी शक्ति खरेखर मान उपजावे तेवी छे. कृतिमांना अपभ्रंश, मारूगुर्जर, हिन्दी भाषाना शब्दो कविना शब्दभण्डोळनी विशेषता छे. अन्त्यानुप्रास मेळववानी कळामां कवि खुब ज माहिर हशे एम मानवू अहीं अतिशयोक्तिभर्यु नहि गणाय. कदाच अपभ्रंशभाषानी कोई कृतिनो भाषानुवाद थयो होय तो तेवी प्रायः आ सर्व प्रथम रचना हशे. कृतिकार परिचय :
कृतिकार श्रीक्षमाकल्याणजी म. खरतरगच्छीय श्रीजिनलाभसूरिजीना शिष्य अमृतधर्म उपाध्यायना शिष्य छे. रास, स्तवनादि सिवाय पट्टावली जेवा ऐतिहासिक ग्रन्थो, भूधातुवृति जेवी व्याकरणसम्बन्धि रचनाओ, तर्कसङ्ग्रह-फक्किका जेवा न्यायग्रन्थो तेमज अन्य पण काव्य, सिद्धान्तसम्बन्धि घणी रचनाओ तेमणे करी छे. हजु एमना घणा ग्रन्थो अप्रकाशित छे. प्रत परिचय :
प्रस्तुत कृतिनी प्रत भावनगरस्थित श्रीजैन आत्मानन्द सभा भण्डार अन्तर्गत श्रीभक्तिविजयजीना सङ्ग्रहमांथी मळी छे. पत्र २ छे. अक्षरो मोटा छे. प्रतमां अन्ते सं. १९६६ लखेल छे. ते संवत् प्रायः प्रतनी नकल लखाई हशे त्यारनी ज हशे.
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डिसेम्बर - २०१५
दोहा : परमपुरूष परमेसिता, परमानंदनिधांन;
पुरसादाणी पासजिन, वंदु परमप्रधान. १ चौपई : कल्पवृक्ष-त्रिभुवन-जयवंत!, जय धन्वंतरि-वैद्य! महंत!;
जय त्रिभुवन-मंगल-भण्डार!, दुरित-महागज-केसरि! सार! २ त्रिभुवन-जन-अविलंघित-आण!, तीन-लोक-नायक! सुविहाण!; थंभणपुरमंडणश्रीपास!, करियै सुखसंप्रति(पत्ति) प्रकास. ३
द्वारगाथा-युग्मम्] तुम्ह ध्यांने लहै पुत्र-कलत्र, मणि-कनकादिक-पूरित-वित्त; भोगवे राज वरै सुख-मौक्ष, कलपवृक्ष! प्रभु! कर मुझ सौख्य. ४ दुष्ट-कष्ट-ज्वर-पीडित-लोक, क्षीणचक्षु-क्षय-सूल-शशौक; तुम ध्यांन-रसायण हुई नीरोग, जिन-धन्नंतरि! हर मुझ रोग. ५ विद्या-जोतिष-मंत्र-सुसिद्धि, तुम नामें हुइ आठे सिद्धि; असुचि-पुरुष भी हुइ सुचि-घोष, तुम हौ प्रभु! कल्याण-सुकोस. ६ दुष्ट किए मंत्रादि हरै, चर-थिर-विष-रिपु-ग्रह संहरै; करिय दया दुक्खित निस्तारि, दुरित हरो प्रभु! दुरित-गजारि!. ७ चोर-अगनि-जल-थलचार, पशु-योगी-योगिन-शुरचार; तुम्ह आणां थंभै भयदांन, जय प्रभु! त्रिजग-अलंघित-आंन!. ८ प्रभुसैं चाहत अर्थ प्रशस्त, अनरथ सेती होत जु नस्त; भक्तिवंत-रोमांचित-देह, सुर-नरवर-किन्नर गुनगेह. ९ सेवै जसु पद-पंकज सार, कलह-पंक प्रक्षालनहार; सो त्रिभुवन-नायक-श्रीपास, मुझ रिपुमर्दन करो उल्लास. १० [युग्मम्] जय योगी-मन-कमल-सुभुंग!, भय-पंजर-कुंजर! उत्तंग; त्रिभुवन-जन-आनंदन-चंद!, जय प्रभु! तीन-भुवन-दिनइंद! ११ जय सुमति-धरनी-जलधार!, जग-जंतु-पितामह! सार!; थंभनपुरमंडन-श्रीपास!, नाथभाव कर मुझ गुनवास! १२
__ [द्वारगाथा-युग्मम्] मोक्षादि कहें ते बहुवान, अवरन सून्य कहत विद्वांन; बहु दर्शनि ध्यावै तुम्ह रंग, कर सुखवृद्धि योगि-मन-भृग! १३
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अनुसन्धान-६८
भय-व्याकुल रणझणकित-दंत, थरहर-तन चल-चक्षु सचिंत; तुझ समरन नर निरभय हुति, मुझ भयहर भय-पंजर-दंति! १४ तुम्ह निरखित पुलकित नर-देव, विकसित-दृग-जल-कृत-दुख-भेव; धन्य गिणै आतम आनंद, जय प्रभु! जगदानंदन-चंद! १५ तुम्ह कल्याणक-उच्छव-वेर, देव-घंट-टंकार-विपेर; परम-भक्ति-उछलत-उर-हार, हरखित हुय सुरवर सुविचार. १६ उच्छव प्रगट करै उत्ताल, तीन भुवनमाहें ततकाल; जैसें भुवनानंदन-चंद!, जय जय पारसप्रभु! सुखकंद! १७ [युग्मम्] केवल-जोति हरत अग्यांन, दरसित-सकल-पदार्थ-सुभान!; पाप-मलिन-जन-घूक-अगम्य!, तमहर! त्रिभुवन-दिनकर! रम्य! १८ नर-मति-महि तुम स्मृति-जल-सिक्त, हुय फल-युत दुख-दाह-वियुक्त; सूक्ष्म-अर्थ-विद-अंकुरचारु, द्यौ मति मुझ मति-महि-जलधारु! १९ वृद्धि-करण कल्याण-सुवल्लि, भव-दुख-वन-छेदन-नीसल्लि; दरसित-स्वर्ग-मोक्ष-पद-वाट, दूरित-वारण दुरगति-थाट. २० जग-जंतुनकै जनक समांन, जिनिं उपजायौ धर्म प्रधांना हितकारी पारसप्रभु! जयौ, सो जग-जंतु-पितामह भयौ. २१ [युग्मम्]
अथ पद्धडीछंद ॥ जैमाल ॥ जग-अरन-वासि बुद्धादिदेव, वण-असुर-दुष्ट-नरमंत्र-सेव; मद-मत्त ते हु पशु-व्रज-समांन, तुमसें प्रभु! होत पलायमान. २२ मिथ्याति-लोक-हिरदै सुगुप्त, रहति हैं सदीव अतिभीति-युक्त; इन हेतु भुवन-वन-सिंह! पास!, जिनराज-देव! कर पाप-नास. २३
[युग्मम्] फणि-फण-फुरंत-मणि-रयण-चारू!, फलिनी-तमाल-दल-वरण-धारू!, कमठोपसर्ग-संगम-अगंज!, परतिच्छ-पास! जय सुगुन-पुंज! २४ मन वचन मुज्झ चलश्च(?) प्रमांन, अविनीत-देह आलस-भरांण; महिमा तमेव सुप्रमांन देव, माऽवगन मोहि रख लेहु सेव. २५ नहि कौन कौन चित चिंत कीन, प्रभु! कौन वैन बोल्यौ न दीन; नहि कौन क्लेस किय हीनसत्त, तुम त्यक्त में न कछु सरण पत्त. २६
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तुम तात-मात-स्वामी-सुमित्त, तुम सरन मोहि गति-मति पवित्त, में हु वराक दुखि भाग्यहीन, रख मुझहिं देव! तुम चरनलीन. २७ तुम किए केपि गत-रोग-चिंत, जसवंत मुक्ति-साधक महंत; रिपु-हीन केपि सुख-रासि-धाम, अवगणै केम मुझ पाससाम! २८ तुम हो निरीह प्रभु! सिद्धकांम, सुपरोपकारकर्ता सुनाम; । सब शत्रू-मित्रपरि तुल्ययोग, माऽवगन मोहि यद्यपि अयोग. २९ में दुःखतप्त तुम दुखनिवार, में करुणठाम तुम करुणकार, में हुं अनाथ तुम भुवनसाम, अवगनें मोहि यौ न शुभकाम. ३०
॥ अथ छंद - नाराच ॥ अयोग-योग-भेद नाथ! देख है न तो समा, परोपकार-भाविता कृपा-निधान उत्तमा; शमत भूमि-ताप मेघ नां गर्ने पटंतरो, इनें जू हेतु दीन-बंधु! पास! मो रछ्या करो. ३१ न दीनता विना जु कापि दीन-लोक-योग्यता, करै सहाय जाहिं देखकै सहाय-उद्यता; सुदीन तै जु दीन हीन में हुं तै तज्यौ यदा, जिनेश! पास! योग्य जान पाल मोहि सर्वदा. ३२ कछूक अल्प-कर्मतादि और योग्यता गनौ, जिनेश! जाहिं देखिकै करो सहाय दीननौं; प्रसन्न होउ नाथ! जेण सो हि में मंगलं, कछू न काम अन्यसें करौ तमेव निर्मलं. ३३ तवेश! प्रार्थना न होई निष्फला सुजानहुँ, तथापि में दुखी निसत्त उन्मना अकांमहुं; तिणै मनुं निमेषमांहि सर्वसिद्धि मो मिले, भयौ जू सत्पयौ क्षुधाव न उंबरू फलै. ३४ त्रिलोकनाथ! पास! में निजस्वरूप भाषितं, न जानहुं बहुत्त बोल कीजिये निजोचितं; न कोपि अन्य तो समौ दयानिधान लोकमें, तुही ज जौ न आदरै हताश होहिंगौ कि में. ३५
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अनुसन्धान-६८
किर्तेक देवता तुम स्वरूप धार वंचितो, तथापि जानहुं प्रभो! तुमे ज मोहि स्वीकृतो; न होय जो मदिष्ट-सिद्धि सो तवेव न्यूनता,
सुकीत्तिमंत! योग्य नांहि जो मुझे विसारता. ३६ चौपई : या प्रभु! है मुझ यात्रा-सेव, यौ हि स्नान-महोच्छव देव!;
जो मुनिजनकुं नाहि निषेध, साचे तुम गुण-ग्रहण-सुमेध. ३७ थंभनपुरमंडन-श्रीपास!, होउ प्रसन्न सदा सुखवास!; इनविध वीनति करै अनिंद, अभयदेवसूरीश मुनिंद. ३८ [युग्मम्] महिमापुरमंडन जिनराय, सुविधिनाथप्रभुकें सुपसाय, श्रीजिनचंद्रसूरि मुनिराज, धर्मराज्य जयवंत समाज. ३९ बंगदेशशोभित सुश्रोत, ओशवंश का तेलागोत्र, सोभाचंदसुत गूजरमल्ल, भ्राता तनसुखराय निसल्ल. ४० तिनके आग्रह से जु नवीन, 'जय तिहुअन की भाषा कीन, वाचक अमृतधर्म गनीस, सीस क्षमाकल्याण जगीस. ४१
इति श्रीजयतिहुअणस्तोत्रभाषा सम्पूर्णः समाप्तौ ॥ ग्र० ६५ ॥ श्रीरस्तु ॥
कल्याणमस्तु । सं० १९६९(?) ॥ छ ॥ श्री ॥
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डिसेम्बर - २०१५
एक इतिहास-पत्र
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
विक्रमनी १३-१५मी सदीमां थयेला तपागच्छना अधिपति महापुरुषो तथा अन्य प्रभावक आचार्योना जीवनकार्य, चमत्कार तेमज ज्ञानोपासनानी अछडती नोंध आपतुं ओक फुटकळ पत्र राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर, क्र. २११७६/ २ मां सचवायुं छे. तेनी पूज्य उपाध्याय श्रीभुवनचन्द्रजी म. द्वारा प्राप्त छायाप्रतिना आधारे प्रस्तुत सम्पादन थयुं छे. आ माटे पूज्य उपाध्याय भगवन्त तेमज संस्थानना कार्यवाहकोनो आभारी छु.
आ नोंधमा उल्लिखित आचार्यो अने तेमनां जीवनकार्यो व.नी सुविस्तृत नोंध जैन परम्परानो इतिहास भाग-३ (ले. त्रिपुटी महाराज)मां आपेली होवाथी ते अंगे वधु चर्चा न करता त्यांथी ज जोई लेवा भलामण छे. अत्रे फक्त जे विगतो त्यां नोंधाई नथी अथवा तो त्यांनी नोंध करतां जुदी पडे छे ते ज दर्शावाय छे. • वृद्धपोशाळना आद्याचार्य श्रीविजयचन्द्रसूरिजी कोना शिष्य हता अने तेओने
आचार्यपदवी कोणे आपी हती ते अंगे ऊहापोह करीने जैपइ - ३, पृ. ७-८मां एवी सम्भावना दर्शावाई छे के श्रीविजयचन्द्रसूरिजी श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना शिष्य हता अने तेमने आचार्यपदवी श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना काळधर्म पछी तेमना शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरिजीना हस्ते मळी हती. पण आ पत्रमा स्पष्ट कथन छे के श्रीविजयचन्द्रसूरिजी श्रीदेवभद्रगणि (चैत्रवालगच्छीय)ना शिष्य हता अने तेमने
आचार्यपद आपनार तपागच्छना आदिपुरुष श्रीजगच्चन्द्रसूरिजी हता. • (जैपइ-३, पृ. १२२-१२३) श्रीदेवेन्द्रसूरिजीना पट्टधर श्रीविद्यानन्दसूरिजीनी
आचार्यपदवीना सं. १३०४ अने सं. १३२३ ओम बे अलग-अलग उल्लेखो मळे छे. प्रस्तुत पत्रमा सं. १३०४मां आचार्यपदवी जणावाई छे. श्रीविद्यानन्दसूरिजीने कार्मणप्रयोगथी सूरिमन्त्रनी विस्मृति थई हती. आ ओक नवो उल्लेख छे. सं. १३२३ मां श्रीधर्मघोषसूरिजीनी आचार्यपदवी आ पत्रमा दर्शावाई छे, पण अन्य उल्लेखोना आधारे सं. १३२७ जोईओ अम जणाय छे. सं. १३२३ मां तेमनी उपाध्यायपदवी होई शके.
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अनुसन्धान-६८
• सोमनाथपाटणमां श्रीधर्मघोषसूरिजीओ प्रतिबोधेला यक्षनुं नाम अत्रे 'गोमुख' जणावायु
छे, अन्यत्र 'कपर्दी' मळे छे. श्रीसोमप्रभसूरिजी द्वारा कोडीनारमा अम्बिका मातानो कायोत्सर्ग करवानी वात पण नवी ज छे. ओ ज रीते तेओना पट्टधर श्रीसोमतिलकसूरिजीना अत्रे नोंधायेला घणाखरा प्रसङ्गो अन्यत्र प्रायः जोवा मळता नथी. ए दृष्टिले आ पत्र बहुमूल्य छे. श्रीसोमप्रभसूरिजीना शिष्य अने श्रीसोमतिलकसूरिजीना मोटा गुरुभाई श्रीपद्मतिलकसूरिजीनी आचार्यपदवी श्रीसोमतिलकसूरिजीना हाथे थई हती. आ सम्बन्धे आ पत्रमा आम उल्लेख छ : "श्रीसोमतिलकसूरिभिः क्रमेण श्रीपद्मतिलकसूरि १-श्रीचन्द्रशेखरसूरि २ - श्रीजयानन्दसूरि १ - श्रीदेवसुन्दरसूरीणां २ सूरिपदं दत्तम् । तेषु श्रीपद्मतिलकसूरयः श्रीसोमतिलकसूरिभ्यः पर्यायज्येष्ठा एक वर्षं जीविताः ।" आवो उल्लेख अन्यत्र पण आवे छे. हवे आनी पहेलां आवेलो श्रीपरमानन्दसूरिजी-सम्बन्धित उल्लेख जुओ - "... ७३ वर्षे श्रीपरमानन्दसूरिश्रीसोमतिलकसूरीणां द्वयेषां सूरिपदं ... श्री परमानन्दसूरयो वर्षचतुष्कं जीविताः।" आनो अर्थ आपणे ओम करीशुं के श्रीपरमानन्दसूरिजी आचार्यपद पछी चार वर्ष जीव्या. त्रिपुटी महाराजे पण अत्रे आवो ज अर्थ को छे. परन्तु उपरोक्त श्रीपद्मतिलकसूरिजीवाळा पाठमां तेओ ओवो अर्थ जणावे छे के "ते (= पद्मतिलकसूरिजी) दीक्षामां श्रीसोमतिलकसूरिजीथी एकवर्ष मोटा हता. तेमनाथी वधु एक वर्ष जीवीने तेओ पण स्वर्गे गया." अने अटले ज तेओओ श्रीपद्मतिलकसूरिजीनो स्वर्गवास सं. १४२४मां श्रीसोमतिलकसूरिजीना स्वर्गवास बाद एक वर्षे सं. १४२५*मां देखाड्यो छे. (जैपइ.-३, पृ. १३६). वास्तवमां श्रीपरमानन्दसूरिजीवाळा पाठनी माफक "श्रीपद्मतिलकसूरिजी आचार्यपदवी पछी एक वर्ष जीव्या" ओवो अर्थ न करवो जोईए ? तपागच्छपट्टावली (-महोपाध्याय श्रीधर्मसागरजी)मां श्रीजयानन्दसूरिजी - श्रीदेवसुन्दरसूरिजीना आचार्यपदनी मिति सं. १४२०नी चैत्र शुद १० अपाई छे. ज्यारे अत्रे वैशाखी दसम जणावाई छे. ज रीते श्रीज्ञानसागरसूरिजीनो जन्मसंवत् अत्रे
१४०४नो, तपागच्छपट्टावलीमां १४०५ छे. • श्रीजयानन्दसूरिजी कृत 'जावडिकथा'नो उल्लेख पण अन्यत्र जोवा नथी मळतो.
आ इतिहास-पत्रना लेखक के रचनासंवत् विशे पत्रमां कोई उल्लेख नथी. * अत्रे प्रूफनी भूलथी सं. १४१५ छपाई छे.
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पण लेखक श्रीदेवसुन्दरसूरिजीना परिवारमांथी ज कोई होय ते सहज समजाय तेम छे. रचनासंवत् पण १४६० थी १४८० वच्चे अनुमानी शकाय छे. केमके एक तरफ श्रीज्ञानसागरसूरिजीना सं. १४६०मां स्वर्गगमननो आमां उल्लेख छे, बीजी तरफ श्रीदेवसुन्दरसूरिजीना सं. १४८० आसपासना स्वर्गगमननो आमां उल्लेख नथी.
मूळ पानामां हांसियामां चारेक टिप्पणो हतां, ते अत्रे पण टिप्पणरूपे जोड्यां छे.
श्रीवज्रस्वामिशाखायां चान्द्रे कुले कौटिकगणे बृहद्गच्छे श्रीजगच्चन्द्रसूरयः । तैश्चैत्रावाल-श्रीदेवभद्रगणिभ्यश्चारित्रोपसम्पद् गृहीता । श्रीजगच्चन्द्रसूरीणां यावज्जीवमाचामाम्लाभिग्रहस्तेन सं. १२८५ वर्षे गच्छस्य तपा इति नाम । तैः स्वशिष्यस्य श्रीदेवेन्द्रसूरीणां श्रीदेवभद्रगणिशिष्य-श्रीविजयचन्द्रसूरीणां च सूरिपदं
ददे ।
श्रीदेवेन्द्रसूरिकृता ग्रन्थास्त्वेते - दिनकृत्यसूत्रवृत्ती, नव्यकर्मग्रन्थपञ्चकसूत्रवृत्ती, सिद्धपञ्चाशिकासूत्रवृत्ती, धर्मरत्नवृत्तिः, सुदर्शनाचरित्रम्, त्रीणि भाष्याणि, सिरिउसहस्तवादयश्च । चतुर्वेदनिर्णयदातॄणां श्रीदेवेन्द्रसूरीणां श्रीस्तम्भतीर्थचतुष्पथस्थिते श्रीकुमरविहारे देशनायां १८ शतमुखवस्त्रिकाः । नौवित्तब्राह्मणादयः सभ्याः मन्त्रिवस्तुपालादयश्च क्रियाबहुमानं गाढं वहन्ति । प्रह्लादनपुरे पाल्हणविहारे सं. १३०४ श्रीविद्यानन्दसूरीणां सूरिपदम् । तदा तन्मण्डपात् कुङ्कमवृष्टिः । तदा पाल्हणविहारे नित्यं ५०० वीसलपुरीभोगः ।
__२७ वर्षे श्रीदेवेन्द्रसूरयो मालवस्थिताः कार्मणविस्मृतश्रीसूरिमन्त्रा विद्यापुरस्थश्रीविद्यानन्दसूरयश्च १३ दिनान्तरे दिवं जग्मुः । २३ वर्षे श्रीविद्यानन्दसूरिभ्रातृ-धर्मकीर्तिपरनामक-श्रीधर्मघोषसूरीणामुपाध्यायानां सूरिपदम् । तैर्ज्ञानातिशयाद् योग्यतामवधार्य सा० पेथडः परिग्रहपरिमाणं सक्षिपन् नियम-भङ्गसम्भावनया नाऽनुज्ञातः । तेन च ९८ प्रासादाः, ७ ज्ञानकोशाः, १२ घटीसुवर्णेन श्रीशत्रुञ्जये स्वर्णप्रासादः२ । साधर्मिकवेषागमने ३२ वर्षे ब्रह्मचारी योऽभूत् । तत्सुतेन झांझणेन
१. वीरधवल-भीमसीहनामानौ भ्रातरौ । २. २१ घटी सुवर्णेन सुवर्णमयी ध्वजा श्रीशत्रुञ्जये गिरनारतीर्थे च संलग्न दत्ता ।
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तीर्थद्वये एका रक्तवस्त्रध्वजा दत्ता । राजा सारङ्गदेवश्च कर्पूरकृते येन हस्तयोजनामकार्यत ।
श्रीधर्मघोषसूरीणां देवपत्तनेऽब्धिना रत्नं दर्शितम् । स्वप्नात् प्रयाणकमेकं वलित्वा सोमनाथे कायोत्सर्गाद् गोमुखयक्षः प्रभावैर्मिथ्यात्वमुत्सर्पयन् निषेधितः । जंघरालायां विद्यापुरे वा वटकानि पाषाणा भूतास्तथैव कण्ठे केशगुल्मकरणाद् दुष्टां ज्ञात्वा श्राविकायाः पुतयोः पट्टको लगितः । श्राद्धैः दृष्टः । स्वरूपैः सा मोचिता। उज्जयिन्यां योगिभयात् साध्वस्थितौ श्रीगुरव आगताः । योगिना साधवः प्रोक्ताः - अत्राऽऽगतैः स्थिरैः स्थेयम् । साधुभिः प्रोचे - स्थिताः स्मः, किं करिष्यसि? तेन साधूनां दन्ता दर्शिताः । साधुभिः कफोणिर्दशिता । साधुभिर्गुरूणां विज्ञप्तम् । तेन शालायामुन्दरवृन्दविकुर्वणम् । साधवो भीताः । श्रीगुरुभिर्घटमुखं वस्त्रेणाऽऽछाद्य तथा जप्तं यथा राटि कुर्वन् योगी आगत्य पादयोर्लग्नः । क्वचन पुरेऽभिमन्त्रितद्वारदानं निशि । एकदाऽनभिमन्त्र्य द्वारदाने शाकिनीभिः पट्टिरुत्पाटिता। ता वाग्दाने मुक्ताः । सर्पदंशे प्रातः काष्टभारिकभारामध्ये विषापहारिणी वल्ली ग्राहिता। आहारे सदा जगा(वा?)रिः ।
तत्कृतग्रन्थाः - सनाचाराख्या भाष्यवृत्तिः, सुअधम्मकित्तियत्तं, कायस्थितिभवस्थितिस्तवौ, २४ जिनभवन(भव)स्तवाः २४, स्रस्ताशर्मास्तोत्रम्, देवेन्द्ररनिशंश्लेषस्तवः, यूयं युवां त्वमचि० श्लेषस्तुतयः ४, जयवृषभजिना २८ स्तुत्याद्याः । अष्टयमकं काव्यमेकमुक्त्वा एकेन मन्त्रिणा प्रोचे - ईदृक् केनापि कर्तुमधुना न शक्यते । गुरुभिः प्रोचे - अनस्तिर्नाऽस्ति । तेनोक्तं - तर्हि दर्शयत तं कविम्। गुरुभिरूचे - ज्ञास्यते । ततो जयवृषभस्तुतयः २८ अष्टयमका एकया निशा निष्पाद्य भित्तिलिखिता दर्शिता । स चमत्कृतः । ते १३५७ दिवङ्गताः ।
१३१० श्रीसोमप्रभसूरीणां जन्म, २१ दीक्षा, ३२ सूरिपदम् । श्रीगुरुदत्तमन्त्रपुस्तिका "चारित्रं मे यच्छत मन्त्रपुस्तिकां वे"त्युक्त्वा न गृहीता । अपरयोग्याभावाद् गुरुभिर्जले बोलिता सा । श्रीसोमप्रभसूरीणामेकादशाङ्गानां सूत्रार्थों
१. बोधितः । २. अन्ये त्वाहुर्योगिना क्षुल्लानां दन्ता दर्शिताः । ते च भीताः । श्रीसूरिणा रजोहरणं भ्रामयित्वा
कफोणिर्दशिता । स पादयोर्लग्नः । केचित् त्वाहुः - निशि मार्जार-श्वानादिवृन्दशब्दाः । गुरुभिस्तथा स्मृतं यथा स योगी पादयोर्लग्नः ।
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कण्ठस्थौ । एकदा भीमपल्ल्यां चतुर्मासीमवस्थिता एकादशस्वपरेष्वाचार्येषु वारयत्स्वपि कार्तिकद्वये प्रथमे कार्तिके चतुर्मासकं प्रतिक्रम्य विहृताः । पश्चाच्च ग्रामभङ्गोऽ-भवत् । तैः स्वप्नाद् वलित्वा कोडीनारे समागत्याऽम्बायाः कायोत्सर्गः कृतः ।
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ग्रन्थास्तु – यतिजीतकल्पः सविस्तरः । यत्राऽखिलेति २८ स्तुतयः । ज(जि)नेन येन २७ स्तुतयः, श्रीमद्धर्मकृत्यादयः ।
श्रीसोमप्रभसूरीणां शिष्याः ४ – श्रीविमलप्रभसूरि १ श्रीपरमानन्दसूरि २ श्रीपद्मतिलकसूरि ३ श्रीसोमतिलकसूरयः ४ । १३५७ वर्षे श्रीधर्मघोषसूरिअनन्तरं श्रीसोमप्रभसूरिभिः श्रीविमलप्रभसूरीणां पदं ददे। ते च स्तोकवर्षजीविताः । ततः स्वायुर्ज्ञात्वा ७३ वर्षे श्रीपरमानन्दसूरि-श्रीसोमतिलकसूरीणां द्वयेषां सूरिपदं दत्त्वा मासत्रयेण श्रीसोमप्रभसूरयो दिवङ्गताः । अन्यत्र क्वापि पुरे तद्दिने पात्रावतीर्णदेवतावच: – “तपाचार्याः प्रथमे सौधर्मे कल्पे उत्पन्ना इति प्रवादोऽधुना मया मेरौ देवमुखात् श्रुतः” । श्रीपरमानन्दसूरयो वर्षचतुष्कं जीविताः ।
संवत् १३५५ वर्षे माघे श्रीसोमतिलकसूरिवराणां जन्म, ६९ दीक्षा, ७३ वर्षे सूरिपदम् । १४२४ वर्षे दिवङ्गता महाभाग्यसाराः । श्रीसोमप्रभसूरिपादैः श्रीसोमतिलकसूरीणां गृहस्थत्वे क्षुल्लकत्वे वा पृष्टौ भारमोचनं कृतं रात्रौ । हास्यात् क्षुल्लेनोक्तं - मुञ्चत भारं सर्वमुद्धरिष्यामीति प्रतिवचनम् । मालवके सन्ध्यायां शकुनविशेषादन्यत्र संस्तारककरणम् । पूर्वसंस्तारकस्थाने शिर: प्रदेशस्थाने मुक्तमात्रकस्य केनापि प्रत्यनीकेन शिलामोचनेन भञ्जनम् । गुर्जरधरित्र्यां क्वापि क्षेत्रे उपाश्रयद्वारे पाषाणोपरि पादमोचने किञ्चित् तात्कालिकप्रतिभया पाषाणाधोदुष्टकृतदुष्टनिष्कासनम् । आवश्यकयोरन्धकारे रजोहरणचालने तेजोदर्शनम् । क्वचिद् व्यन्तरावतारे "वयं युष्माकं तेजः सोढुं न शक्ता" इति व्यन्तरकथनम् । इत्यादयः कियन्तोऽवदाता ज्ञातुं शक्याः ? सर्वायुः ६९ ।
तद्ग्रन्थाः – बृहन्नव्यक्षेत्रसमाससूत्रं, सत्तरिसयठाणं, यत्राऽखिल२८-जय वृषभ २८ – स्वकृतचतुर्थार्थ श्रीतीर्थराजः पद० स्तुति १ स्रस्ताशर्मा वृत्तयः, नत्वा त्वत्पादयोः स्तुतयः, शुभभावानतः श्रीमद्वीर ! स्तुवे० इत्यादि स्तवः कमलबन्धः, शिवशिरसि ० - श्रीनाभिसम्भव ० - श्रीशैवेयं शिवादि बहुस्तवनानि । श्रीसोमतिलकसूरिभिः क्रमेण श्रीपद्मतिलकसूरि १
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श्री चन्द्रशेखरसूरि
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२ - श्रीजयानन्दसूरि[१] - श्रीदेवसुन्दरसूरीणां २ सूरिपदं दत्तम् । तेषु श्रीपद्मतिलकसूरयः श्रीसोमतिलकसूरिभ्यः पर्यायज्येष्ठा एकं वर्षं जीविताः । येषां यतना वचनातिगा।
श्रीचन्द्रशेखरसूरीणां १३७३ जन्म, ८५ दीक्षा, ९२ वर्षे सूरिपदं, १४२३ स्वर्गः । उषितभोजनकथा, यवराजर्षिकथा, श्रीमत्स्तम्भनकहारबन्धादिस्तवनानि तत्कृतानि । धूलिक्षेपे स्मृतौ च व्याघ्र-गेहरिकटलनम् ।
श्रीजयानन्दसूरीणां १३८० वर्षे जन्म, ९२ वर्षे आषा० शु० ७ शुक्रे धारायां दीक्षा । साजणनामा भ्राताऽमानयन् देवतया निशि चपेटयाऽऽहतो दीक्षाग्रहणमनुमेने । सं. १४२० वर्षे वैशा० १० अणहिल्लपुरे सूरिपदं, १४४१ दिवङ्गताः । तत्कृतग्रन्थाः - श्रीस्थूलभद्रचरित्रं, जावडिकथा, स्तवनानि च ।
श्रीदेवसुन्दरसूरीणां १३९६ वर्षे जन्म, १४०४ दीक्षा महेश्वरे, १४२० अणहिल्लपुरे सूरिपदम् । मूंगडीसरसि कणयरीपायोगिशिष्येण उदायीपायोगिना सभक्ति नमस्कृताः । सं० नरीयादिपृष्टः स जगौ- “कणयरीपागुर्वादेशाद् युगोत्तमत्वेन नता" इति ।
नित्यनिरपायवैराग्यकराणां श्रीज्ञानसागरसूरीणां १४०४ वर्षे जन्म, १७ दीक्षा, १४४१ सूरिपदं, ६० दिवङ्गताः । तदैव कर्पूरादिभोगोद्ग्राहक-खरतर सं० गोवलेन "वयं तुर्ये कल्पे स्म' इति स्वप्नो लेभे । श्रीमदावश्यकौघनियुक्तिप्रभृत्यनेकग्रन्थावचूर्णयः । श्रीकैवल्या० मुनिसुव्रतस्तवो घोघानवखण्डश्रीपार्श्वस्तवादि च तत्कृतानि ।
__ श्रीकुलमण्डनसूरीणां १४०९ वर्षे जन्म, १७ दीक्षा, ४२ सूरिपदं, १४५५ दिवङ्गताः । सिद्धान्तालापकोद्धारः, विश्वश्रीद्वेत्यष्टादशारचक्रबन्धस्तवो गरीयो गुण इति हारबन्धस्तवादि च तत्कृतानि ॥छ।।
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श्रीशाश्वतबिम्ब-स्तवन
- सं. रसीला कडिआ वर्षो पूर्वे श्रीलक्ष्मणभाई भोजक (दादा)ए फुटकर पानांमांथी आ १ पत्र आपेल. जेमां ५० गाथा- 'श्रीशाश्वतबिम्ब-स्तवन' छे.
- रचनाकारे शरूमां अतीत-अनागत-वर्तमान चोविशीना तीर्थङ्कर तथा विहरमान २० तीर्थङ्कर, नामस्मरण करी पछी उत्कृष्टा १७० तीर्थङ्कर परमात्माना उत्कृष्टा ९ क्रोड केवलज्ञानी अने ९ हजार क्रोड साधुने नमस्कार कर्या छे. त्यार पछी त्रण लोक (तिर्छालोक, पाताललोक अने ऊर्ध्वलोक)मां शाश्वता जिनचैत्य क्यां केटलां अने तेमां रहेल जिनबिम्बनी संख्या कहेवापूर्वक (विस्तारथी) नमस्कार कर्या छे. त्यार बाद अशाश्वत जैन तीर्थोना तीर्थपतिने नामपूर्वक नमस्कार करी स्तवन पूरुं कर्यु छे गा. ३८मां 'तिहु[अ]णकीर्ति इम विनवइ'मां कर्तानो उल्लेख होय एवं लागे छे.
प्रस्तुत कृतिमां 'व'ना स्थाने 'ब'नो प्रयोग करेल छे, जे अहीं वाचनामां 'व' ज राख्यो छे. 'विचारि-विचारी' आ रीते क्यांक दीर्घ अने क्यांक ह्रस्व प्रयोग छे, जेने अहीं वाचनामां ह्रस्व प्रयोग करी दीधेल छे. गाथा बंधारणमां क्यांक अन्त्य प्रास नथी मलतो. एक श्लोक नम्बरनी गरबड छे जे यथातथ राखी ( )मां सुधारी लखेल छे.
___ पाछळ शाश्वता जिनचैत्य-जिनबिम्बनी संख्या- (अङ्कमां) परिशिष्ट तैयार करी मूकेल छे.
पहिली पणमउं तिन्नि काल तीनइ चउवीसी [-]तीयानागत वर्तमान जिणनाह नमंसी - - [सास?]इं चेइय पढम संख्य संखेवि वखाणउं अवर - - [असास? ]तय भूमिपीठ तिह संख न जाणउं ॥१॥ केवलनाणी पढम जाणि निरवाणी सागर । नमउं महाजस विमलनाह गुणमणि वइरागर सर्वानुभूति श्रीधर दत्त तिहि दामोदर जिण स(सु)तेज सामी जिणंद मुनिसुव्रत सुंदर ॥२॥
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अनुसन्धान-६८
सुर्भ (ग)ति सु सिर्वगति _ _अस्ताघे (अस्तांगति) जिन नमिय नेमीसर अनिल यसो धर अन कृतार्थजिण जाणि जिणेसर सुधमति शिवकर शंदनेस (शुभदीन) संप्रति चउवीसम भणिसु अणागइ जिणवरिंद हिव निज्जिय दूसम ॥३॥ पउर्मनाह सिरि सूरदेव सुपार्श्व स्वयंप्रभ पणमउ सिरि सर्वानुभूति देवस्रुत जगि दुल्लभ उदय पेढाल सुपोट्टिलेस सितकीर्ति सुव्रत अमम नमिजइ निष्कषाय निःपुलाक दृढवृत ॥४॥ निर्मम नमियई चित्रगुप्ति समाधि ससंक(व)र जाणि यसोधर विजय मल्लजिण देव दयापर अनंतवीरज भद्रक जिणंद ए नमउ चउवीसइ हिव पणमउ जिण वर्तमान जिम सिवपहु दीसइ ॥५॥ रिसह अर्जिय संभव जिणंद अभिनंदण सांमी सुमति पउमपह सिरिसुपास नमियइ सिर नामि चंदप्रभ जिण सुविधिं नाह सीतल श्रेयांस वासपूज्य सिरिविमल नाह अनंत जिनेश ॥६॥ धर्म संति अरु कुंथु नाह अरु मल्लि थुणीजइ मुनिसुव्रत नमि नेमि पास सिरिवीर नमीजइ पंच विदेहिं विहरमाण जिण वीसइ वंदउं सीमंधर युगमंधेरिंद भव पाप निकंदउं ।।७।। बाहु सुबाहु जिणंदचंद सं(सु)जाय सयंपह ऋषभानन अनंतविरिय सविसाल सूरप्पह वजधर चंद्राननु जिणंद चंदाहु भुजंग नेमिप्पह इसर थुणेवि वीरसेन सुचंग ।८।। देवकीरति महाभद्र अजितवीरजी ए वीस बि कोडिं केवली कोडि सहस दुइ नमउं मुणीस
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डिसेम्बर
पंच भरत इरवत पंच पंच महाविदेहिं
सत्तरिसउ उक्किट्ठ कालि जिण नमउं सनेहिं ॥९॥ केवलिया नवकोडि नमउं नवकोडि सहस्स पण साधु मुणंति जेह सिद्धंत - रि (र) हस्स रिसह चंदाणण वारिषेण ब्रधमानं सुनामिहिं सासय पडिमा पणमिय ए भवियण सिरिगामिहिं ॥ १० ॥
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२०१५
भास
नंदिसरि प्रासाद, बावन दीपहिं आठमए (?)
पणमउं छंडि विषाद, चउसठिसइ अठताल जिण [ ॥१॥] कुंडलि चेई चारि, छिन्नू अधिका च्यारिसइं जिणहबिम्ब अवधारि, रूचकदीवि पूणि जेतला ए ॥२॥ राजधानी जगदीस-मंदिर सोलह मई कह्या ए
बिम्बा सइ इगुणीस, वंदउं वीसां आगला ए ॥ ३ ॥ जिणहर असिय वखाणि, काननि मेर-संबंधिय ए जिणपडिमा तिहिं जाणि, छए सएसुं नव सहस ||४|| पंच भवण झलकंति, चूलां बिम्ब छसइ नमउं ए वींसति सा गइदंति, बिम्ब बि सहस चारि ॥५॥ दीपइं दस प्रासाद, देवकुरिहिं उत्तर कुरिहिं मेल्ही मन उनमाद, पणमउ बिम्बहं बारस ||६|| चारि भुवण इखुकारि, असी सहस अरु चारि स एह ज संख विचारि, मानषउत्तर परवतिहिं ॥७॥ असिय सु वष्कसकारि, छसइ नइ जिण नव सहस कुलगिरि तीस विचारि, पणमउ बिम्ब छतीस स ॥८॥ चालीस दिग्गज दाढ, सइ अठतालीस जिण नमउं ए सत्तरि सउ वैतादि, वीस सहस जिण चारिस ||९|| जंबूपमुहदसेहिं, सत्तरि गृह इग्यार सइ लक्ख एक सहसेहिं चालीसइ चहुं सइ सहिय ॥१०॥
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अनुसन्धान-६८
वस्तु कणइगिरिवरि कणइगिरिवरि, सहस जिणगेह एकु लक्ख वीसइ सहस, नमवि बिम्ब भवभइ निकंदउ महानदी जिणहर सत्तरि, आठ सहस सइ चारि वंदउं [उ]द[धि]हिं असी प्रासाद, नव सहस छ सइ जिणबिम्ब, नमिअ सुरासुरकिन्नरिहिं, मनि समरउं अविलंब ॥११॥
भास कुंडि भवण सुणिं त्रिनि सइ, असी सहिय नितु वंदि तिहिं पचताली सहस छ [स]इं, जिण थुणि नव नव छंदि ॥१२॥ वृत्तवैताढिहिं वीस, गृहपडिमा सइ चउवीस, यमक महीधरि तेतला, जिण पणमउं निसिदीस ॥१३॥ तिरयलोइ बत्तीस, सइ इगुणसट्ठि जिणगेह लक्ख त्रिक इकाणू सहस, त्रिहुं वीसोत्तरणे(से) छेह ॥१४॥ वंदउं विंतर-जोतिषीमाहे बिम्ब असंख हिव पायालि पयासियइ, भुवण-पडिमनी संख ॥१५॥ असुरकुमारिहिं जाणियइ, भवणहं चउसठि लाख, पनर कोडि इक कोडिसउ, वीस लाख जिन भाख ॥१५॥(१६) लाख चउरासी जिणभवण, नागकुमारि वखाणि । कोडि इकावन कोडिसउ, वीस लाख ज(जि)ण जाणि ॥१६॥(१७) लाख बहूतरि जिणहरह, सुवनकुमारि वखाणि कोडि गुणतीसइ कोडिसउ, साठि लाख सुविचारि ॥१७॥(१८) विद्य अग्नि दीवह उदहि, तह द(दि)स थणियकुमार छहतरि छहतरि लाख तिहिं, जिणहर मनि अवधारि ॥१८॥(१९) ठाणि इकेकिई कोडिसउ, पडिमा कोडि छतीस लाख असी अहनिसि नमुं, पूरउं मनहं जगीस ॥१९॥(२०) पवनकुमारिहिं भवणवर, छिन्नूं लाख वियाणि कोडि बहत्तरि कोडिसउ, लाख असी परमाण ॥२०॥(२१)
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डिसेम्बर - २०१५
एवंकारइ भवनपति, सात जिणालइ कोडि पायालिं समरठं सदा, लाख बहत्तरि जोडि ॥२१॥(२२) पडिमा तेरह कोडिसइ, अनइ नव्यासी कोडि साठि लाख सउं मेलि करि, अहनिसि मनहं म छोडि ॥२२॥(२३)
॥ वस्तु ॥ उढलोगिहिं उढलोगिहिं भणउं जिणसंख सोहमिंकप्प जिणभवण, लाख बत्तीस जाणउं सत्तावन कोडि गिणि साठि, लाख जिण चित्ति आणउं लाख विमाण विचारियइं, इसाणि अडवीस, कोडि पचास नमउं थुणउं, जिणह लक्ख चालीस ॥२३॥(२४)
भास बारह लाख विमाण, सनतकुमार संभारियइ इगवीस कोडि प्रमाण, साठि लाख प्रतिमा नमउं ॥२४॥(२५) माहिंदि सुरलोइ, आठ लाख जिणमंदिरह चउद कोडि जिण जोइ, चालीसे लाखे सहिअ ॥२५॥(२६) जिनहर चारइ लाख, ब्रह्म नाम कलपें कह्या ए सात कोडिनी भाख, वीस लाख जिन मइं सुणिअ ॥२६॥(२७) लंतकि छट्ठइ जाणि, सहस पचास जिणालयह निवइ लाख वखाणि, सासय जिणपडिमा नमउं ॥२७॥(२८) सुक्र सहस चालीस, देवलोकि पुण सातमए। तिहुयण तणा अधीस, लाख बहत्तरि वंदियए ॥२८॥(२९) आठम्मई सहसारि, छ सहस मंदिर देवना ए दह लख जिण अवधारि, असी सहसिइं आगला ए ॥२९॥(३०)
आनति बि सइ विमान, सहस छत्तीस जिणेसरहं पाणत एह प्रमाण, अधिकउ नई ओछउ नहिय ॥३०॥(३१) आरणि अच्युति जाणि, द्योढ द्योढ सउ देहुरहं । इक इक प्रति वखाणि, सहस सत्ताईस पडिम तिहिं ॥३१॥(३२)
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अनुसन्धान-६८
हेठिं तिहुं ग्रीवेकि, ग्यारोतर सउ गृहहं (जिनगृहइं?) तेर सहस सुविवेक, तिनि सइ बीसा वंदियइं ॥३२॥(३३) सतोत्तर सउ ठाण, माहिल तिहुं ग्रीवेयकिहिं बार सहस परिमाण, चालीसे सउ आठसइ ॥३३॥(३४) इकु सउ जिणप्रासाद, तिहुं ग्रैवेयकि ऊपिलिहिं मिल्ही मिथ्यावाद, बार सहस बिम्बह नमउं [॥३५॥] पंचाणुत्तर पंच, बिम्ब छसइ समरउं हियइ संख्या तणउ प्रपंच, हिव सरवंकिइं संभलहु ॥३६॥ गृह चउरासी लाख, अनइ सहस सत्ताणवइ सुणि जिनवरनी भाख, त्रेवीसे अधिका कह्या ए ॥३६।। एक कोडिसउ कोडि, बावन लाख चउराणवए सहस चउवालीस जोडि, सात सइ साठा नमसकरउं ॥३७।।
॥ वस्तु ॥ भणउं तिहुअण, भणउं तिहुअण, भवण जिण संख आठ कोडि सतावन लख, बि सइ गेह ब्यासी सरोहिय तिहिं पनर कोडिसइ, पडिम कोडि बायाल वंदउं
अडवन लख छतीस सइ, असी अधिक जिणबिम्ब तिह[अ]णकीरति इम वीनवइ, नमि नमि म करि विलंब ॥३८॥ हिवई असासता नमउं जिण, केवि सत्तुंजय आदि जिण नेमिनाह गिरनारि नायक, मुनिसुव्वय भरवच्छि पुण महुरपास सिव-सुक्खदाइक, साचउरिहिं सिरि वीर जिण अट्ठावय सम्मेति जीराउलि आबू, नमउ संखेसरिहिं सव्वेवि ॥३९॥
कलश इय भवण जिणवरं, संख सासय, कहिय केवलिसइं धणी, जिण सइ अधिकउ, अनइ ओछउ, नाण विणु जं मइ भणिउं । तं खमउ सहुअइ, निउण कवियण, जोडि बे कर वीनवउं, नितु भणउ निसुणउ भवण भवियण, तवन महियलि अभिनवउ ॥४०॥
सास्वता बिम्ब स्तवनं ॥
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डिसेम्बर - २०१५
कठिन शब्दोना अर्थ
शब्द
भास गाथा नं.
د
अर्थ द्वीप
दीवि
अने
ر ج
م
अरु गइदंति इखुकारि मानषउत्तर वष्कस्कारि
م
م
वितर
م
م
م
م
م
oc
विद्य अग्नि दीवह थणिय द(दि)स सोहमिंकप्प माहिदि निवइ सहसारि आनति पाणत देहुरहं असासता
गजदंत (पर्वत, नाम) इक्षुकार ( " ) मानुषोत्तर ( " ) वक्षस्कार ( " ) व्यंतर (देवनुं नाम) विद्युत्कुमार (भवनपतिना देव)
अग्निकुमार ( " ) द्वीपकुमार ( " ) स्तनितकुमार ( " ) दिशिकुमार ( " ) सौधर्मकल्प (देवलोकनुं नाम) माहेन्द्र ( " ) नेQ (९०) संख्यावाचक शब्द सहस्रार (देवलोकनुं नाम) आणत (देवलोकनुं नाम) प्राणत ( " ) दहेरासर । जिनमंदिर अशाश्वत थोडाक भरूच (शहेरनुं नाम) सांचोर (सत्यपुरी) अष्टापद (तीर्थनुं नाम)
m
०
०
०
مہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ لہ اللہ
०
केवि
०
०
भरवच्छि साचउरिहिं अट्ठावय
०
०
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२०
गा.नं.
(भास)
स्थल
१.
नंदीश्वरद्वीप
२. कुंडलद्वीप
२.
रुचकद्वीप
३. राजधानी
४.
५.
५.
६
७.
७.
७.
मेरु-वनखण्ड
चूलिका गजदन्त पर्वत
देवकुरु-उत्तरकुरु क्षेत्र इक्षुकार पर्व
मानुषोत्तर पर्वत
वक्षस्कार पर्वत
८.
कुलगिरि पर्वत ( वर्षधर)
९.
गजदन्त पर्वत
९. वैताढ्य पर्वत
परिशिष्ट तिर्च्छालोक
शाश्वतजिनचैत्य
संख्या
५२
४
४
१६
८०
५
२०
१०
oc
४
८०
३०
४०
१७०
११७०
१०००
७०
X १२४
१०. जम्बू प्रमुख दसमां
११. कंचनगिरि
११ महानदी
११ समुद्र (उदधि)
१२ कुंड
१३ वृत्तवैताढ्य
१४ यमकगिरि
तिर्च्छालोकमां कुल शा. चैत्य
३२५९
१५ व्यंतर तेमज ज्योतिषिमां असंख्य जिनबिम्ब छे.
८०
३८०
२०
२०
11
11
X १२०
"
44
"
"
44
"
44
17
"
4:4
"
14
"
11
11
11
14
"
""
11
शा. जिनबिम्ब
अनुसन्धान-६८
शाश्वतजिनबिम्ब
संख्या
६४४८
४९६
४९६
१९२०
९६००
६००
२४००
१२००
४८०
४८०
९६००
३६००
४८००
२०,४००
१,४०,४००
१,२०,०००
८४००
९६००
४५, ६००
२४००
२४००
३,९१,३२०
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डिसेम्बर
गा.नं.
(भास)
२०१५
स्थल
भवनपतिमां
"
11
१६
असुरकुमारनां भवनोमां
१७
नागकुमार
१८ सुवर्ण १९-२० विद्युतकुमार १९-२० अग्निकुमार १९-२० द्वीपकुमार १९-२० उदधिकुमार १९-२० दिशिकुमार १९-२० स्तनितकुमार
२१
पवनकुमार
२२- २३ पाताललोकमां शा . चैत्य ७,७२,००००० शा. बिम्ब १३,८९,६०,०००००
11
11
""
"
"
""
"
17
11
11
"
11
21
17
"
(पाताललोक )
शाश्वतजिनचैत्य
संख्या
11
६४,०००००
८४,०००००
७२,०००००
७६,०००००
७६,०००००
७६,०००००
७६,०००००
७६,०००००
७६,०००००
९६,०००००
11
X १८० ११५,२०,०००००
१५१,२०,०००००
१२९,६०,०००००
१३६,८०,०००००
१३६,८०,०००००
१३६,८०,०००००
१३६,८०,०००००
१३६,८०,०००००
१३६,८०,०००००
१७२,८०,०००००
11
11
"
"
""
17
२१
"
शाश्वतजिनबिम्ब
संख्या
""
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अनुसन्धान-६८
०
०
(ऊर्ध्वलोक) गा.नं. स्थल शाश्वतजिनचैत्य
शाश्वतजिनबिम्ब (भास)
संख्या
संख्या २४ १ सौधर्म देवलोक ३२,००००० x १८० ५७,६०,००००० २४ २ ईशान " २८,०००००
५०,४०,००००० २५ ३ सनत्कुमार " १२,०००००
२१,६०,००००० २६ ४ माहेन्द्र "
८,०००००
१४,४०,००००० २७ ५ ब्रह्म "
४,०००००
७,२०,००००० २८ ६ लांतक "
५०,०००
९०,००००० २९ ७ शुक्र
४०,०००
७२,००००० ३० ८ सहस्रार
६,०००
१०,८०००० ३१ ९ आनत
२००
३६,००० ३१ १० प्राणत
२००
३६,००० ३२ ११ आरण "
१५०
२७,००० ३२ १२ अच्युत
१५०
२७,००० ३३ नीचेना त्रण ग्रैवेयक देवलोक १११ x १२०
१३,३२० ३४ वचळा त्रण ग्रैवेयक " १०७
१२,८४० ३५ उपरना त्रण ग्रैवेयक "
१००
१२,००० ३५ पांच अनुत्तर
६०० ३६-३७ ऊर्ध्वलोकना कुल शा.चैत्य८४,९७,०२३ शा.बिम्ब-१५२,९४,४४,७६०
(त्रणे लोक) गा.नं. स्थल शाश्वतजिनचैत्य
शाश्वतजिनबिम्ब (भास) भवनपतिमां संख्या
संख्या १४ ति लोकमां
३२५९
३,९१,३२० २२-२३ पाताललोकमां ७,७२,००,००० १३,८९,६०,००,००० ३६-३७ ऊर्ध्वलोकमां ८४,९७,०२३ १,५२,९४,४४,७६० ३८ त्रणे लोकमां शा. ८,५७,००,२८२ शा.बिम्ब१५,४२,५८,३६,०८०
चैत्य कुल
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डिसेम्बर
२०१५
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श्रीविजय सेन सूरि-प्रसादित बे दस्तावेजी मूल्य धरावता पत्रो
२३
पत्र लखवो ओ ओक कळा छे, साहित्यिक विधा पण. भारतमां सदीओथी पत्रो लखाता आव्या छे, जेमां राजकीय पत्रो, सामाजिक व्यवहारोने लगता पत्रो, उपदेशात्मक पत्रो, औतिहासिक अथवा दस्तावेजी कही शकाय तेवुं वर्णन धरावता पत्रो, तत्त्वचर्चा करता पत्रो, व्यापार अने लेवड - देवड विषयना पत्रो ओम अनेक प्रकारना पत्रोनो समावेश थाय छे. आवा विविधविषयक पत्रो संस्कृत भाषामां पण लखाता, अने घणा भागे वहीवट अने व्यवहार माटे चलणी होय तेवी लोकभाषामां पण लखाता. आवा विविध पत्रोनुं संकलन करीने तेना ग्रन्थ पण वडोदराथी गायकवाड्झ ओरिएन्टल सिरिझमां वर्षो पूर्वे प्रकाशित थयेला छे, जेनुं वांचन जे ते समयना वातावरणनो सर्वाङ्गी अने रसप्रद परिचय करावी जाय छे.
- विजयशीलचन्द्रसूरि
-
जैन मुनिओ द्वारा पण पत्रलेखन थतुं हतुं. ओवा पत्रो मुख्यत्वे ‘विज्ञप्तिपत्र’ना नामे ओळखाय छे, जेमां चातुर्मास माटेनी गुरुजनोने विज्ञप्ति तेमज संवत्सरी पर्वने निमित्ते क्षमापना ए बे बाबतो मुख्य रहेती. पण आ बे मुद्दाने केन्द्रमां राखीने जे विद्वत्तापूर्ण काव्यरचनाओ थती, तेने लीधे ते पत्रो ओक स्वतन्त्र ग्रन्थनी के काव्यनी रचनास्वरूप बनी रहेता .
जैन मुनिओ द्वारा लखाता केटलाक पत्रोमा तात्त्विक चर्चा, चिन्तन तथा प्रश्नोत्तरो पण लखातां हतां. आवा पत्रो धर्मविषयक विविध प्रश्नोनी छणावट करता होय छे, अथवा दार्शनिक के तात्त्विक मुद्दाओ विशे गहन विमर्श करता होय छे. क्यारेक कोई बाबते कोईने शङ्का उद्भवे अथवा ते बाबत परत्वे प्रवर्तमान अर्थघटन के मान्यतामां कोईने भिन्न मत सूझे, तेवे वखते विवेकीजनो पोताना तेवा भिन्न मतने वळगी रहेवाने के महत्त्व आपवाने बदले, अधिकृत गुरुजनोने ते वात पत्रथी लखी जणावता - पूछावता, अने ते गुरुजन तरफथी तेनो स्पष्ट प्रत्युत्तर पण मळतो पत्र द्वारा ज, जे शास्त्र अने परम्पराना हार्दने अनुरूप
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अनुसन्धान-६८
रहेतो, अने तेथी ते पूछनारने ज नहीं, पण बधायने मान्य बनतो.
अहीं आ प्रकारना ज बे लघुपत्रो रजू थाय छे. बन्ने पत्रो अद्यावधि अप्रगट छे. बन्ने १७मा सैकानी प्रचलित गुजराती भाषामां छे. बन्ने पत्रो, प्रश्न पूछावता पत्रोना प्रत्युत्तररूपे लखायेला पत्रो छे. बन्ने पत्रो तपगच्छपति भट्टारक आचार्यश्री विजयसेनसूरीश्वरजी महाराजे लखेला छे. गच्छपति द्वारा लखाता आवा पत्रोने 'प्रसादीपत्र' तरीके ओळखवामां आवता. आटला महान गच्छपति, पोतानी विविध जवाबदारीओमांथी समय फाळवीने पत्र लखे के लखावे, अने संशयोनां समाधान करे, ते तेमनी कृपाप्रसादी ज गणाय.
विजयसेनसूरि ते जगद्गुरु हीरविजयसूरिना परम कृपापात्र पट्टधर शिष्य हता. शहेनशाह अकबर तथा जहांगीरना तेओ परम प्रीतिपात्र साधु हता. बादशाहे तेमने 'सवाई हीरला' जेवां बिरुद आपेलां, तेमज तेमनी प्रेरणाथी जीवदयानां अनेक कार्य कर्यां हतां. तेमनो सत्ताकाळ सत्तरमो सैको छे.
अत्रे प्रगट थता बे पत्रो पैकी प्रथम पत्र खम्भायित-खम्भात नगरना संघना 'लेख' (पत्र)ना जवाबमां लखायेल छे. खम्भातना सङ्घमुख्य श्रावक सा. सोमा वगेरेने सम्बोधीने लखवामां आवेला आ पत्रमां, श्रीहीरविजयसूरिओ आदेश रूपे फरमावेला बार बोलने अंगे उद्भवेला बे प्रश्नो परत्वे खुलासा मळे छे. हीरगुरुओ पोताना आदेशपट्टकमां ओक बोल ओवा मतलबनो लख्यो छे के, 'मिथ्यात्वीना पण, तथा जैन पण अन्य पक्ष(गच्छ)ना होय तेना पण; दाननी रुचि, स्वाभाविक विनय, कषायोनी अल्पता, परोपकार, भव्यत्व, दाक्षिण्य, दयाळुता, प्रियभाषिता जेवा साधारण गुणोनी अनुमोदना करी शकाय.'
___ आ बोलनो कोई विपरीत अर्थ अवो करवा मांड्या के 'जे लोकोमां असद्ग्रह होय तेवा लोकोना आ बधा गुणोनी अनुमोदना करवानी नहीं, पण असद्ग्रह न होय तो ज तेमना आ गुणोनी अनुमोदना करी शकाय, ओम हीरगुरुनो आदेश छे.'
आथी संघमां द्विधा थई हशे, तेना निराकरण माटे संघे गुरुमहाराजने पूछाव्युं हशे. तेना खुलासामा विजयसेनसूरिगुरु असन्दिग्ध शब्दोमां जणावे छे के 'आवो अर्थ करनारा जूठा छे. केम के ज्यां मिथ्यात्व होय त्यां असद्ग्रह तो अवश्य होवानो. मिथ्यात्व अटले ज असद्ग्रह. ते होवा छतां, तेना पण आ गुणो
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डिसेम्बर - २०१५
२५
अनुमोदनायोग्य ज गणाय. शास्त्र पण ओ ज कहे छे. वळी जैन पण परपक्षना होय, तेना पण दया आदि गुणोनी अनुमोदना करवानी ज होय, तेम करवानो जे निषेध करे तेनी बुद्धि सारी नथी.'
बीजी समस्या थोडी मोघम जणाय छे. बार बोलमां श्रीहीरगुरुओ कया जिनचैत्य वन्दनीय अने कया अवन्दनीय गणवा - अ समस्याना उकेलरूपे 'त्रणना अवन्दनीय चैत्योने बाद करतां बीजां सर्व चैत्य वांदवा-पूजवायोग्य' गणाव्यां छे. कोईक तेनो विपरीत अर्थ काढीने 'स्वपक्ष सिवायनां परपक्षनां सघळांय चैत्योने अवन्दनीय गणवां' - अवो मत चलावता हशे, तेने गच्छपतिले आकरो ठपको आपवानुं सूचव्युं छे. अने वधुमां, जो तेवा लोको संघनी वात न माने अने पोतानी मान्यता चालु राखे तो, पोताने जाण करवानुं जणावीने पोते ज तेने ठपको आपवानुं जणावे छे.
आमां समजवानं ओ छे के धर्मना क्षेत्रे कट्टरता तथा कट्टरपंथी लोको हमेशां, दरेक काळे, होय ज छे. तेओ उदार थई तो नथी शकता, पण उदारताने स्वीकारी पण नथी शकता. ओमनी कट्टरता ओमने शास्त्रचुस्त, धर्मचुस्त बनावे छे अथवा तेवा होवानो देखाव रची आपे छे. आवा लोकोनी कट्टरता अमने अन्यना, ओटले के जे पोताना मत, पक्ष, समूहना न होय तेवाना सद्गुणोनी प्रशंसा पण करवानी मनाई फरमावे छे. उदार अने विवेकसंपन्न गुरुजनो जो अन्यना गुणोनी प्रशंसा करवानी हा पाडे अथवा विधान करे, तो तेमना विधानना अर्थने पण तेवा कट्टरजनो, पोताने अनुकूळ आवे ते रीते, बदली नाखता होय छे. आवा लोको अन्य धर्मना लोकोना ज नहीं, पोताना धर्मना पण जुदो मत धरावता वर्गना लोकोनां पण, धर्मकार्योनो, सत्कार्योनो, सद्गुणोनो स्वीकार करवा राजी नथी थता; तेओ तेनो इन्कार ज करता रहे छे.
दुर्भाग्ये, आवा कट्टरपंथीओ तमाम धर्मो-सम्प्रदायोमां पथरायेला छे. दरेक काळे तेवा लोको होय छे. हीरगुरुना जमानामां पण तेवा लोको हशे तेनो पुरावो आ पत्रना बे मुद्दा जोतां सांपडे छे. आवी कट्टरता, 'अमे ज सारा अने अमाझं ज सारूं' ओवी भ्रान्त समजणमांथी ज नीपजती होय छे.
बीजो पत्र पण खम्भातना श्रावक काहान मेघजीओ विजयसेनसरिने लखेला पत्रना जवाबरूपे लखायेलो पत्र छे. आमां त्रण वातो छे, जे त्रण प्रश्नोना
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२६
अनुसन्धान-६८
प्रत्युत्तररूप वातो छे. आ जवाबो पण आचार्यनी उदार समजण- सुरेख प्रतिबिम्ब पाडी रह्या छे.
पहेलो प्रश्न अवो छे के माहेश्वर धर्मनो उपासक कोई माणस (मैश्रीमाहेश्री-माहेश्वरी),, टाढ-ठंडीना दिवसोमां, मोक्ष मेळववा माटे, 'महीसागर' (मही नदी)मां स्नान करे; अथवा कोई म्लेच्छ-मुस्लिम व्यक्ति, ठंडीना समयमां ज, केवळ मोक्ष पामवाना लक्ष्यथी ज, नमाज पढे; तो ते बे व्यक्तिओने जे पण कर्मनिर्जरा थाय ते 'सकामनिर्जरा' कहेवाय के 'अकामनिर्जरा' गणाय ??
आना जवाबमां आचार्ये लख्यु के, शास्त्रानुसारे, सम्यग्दृष्टि आत्माने जे निर्जरा थाय तेनी तुलनामां मिथ्यात्वीने ओछी निर्जरा थाय.
__ आ जवाबमां बे मुद्दा फलित थाय छे : (१) महीनुं स्नान के नमाज - ओ बन्ने जैन धर्मनी दृष्टिो सावद्य-सपाप प्रवृत्ति होवा छतां, ते करवा पाछळनुं लक्ष्य के आशय 'मोक्ष' होवाथी, ते करवाथी पण निर्जरा थई शके छे; (२) ते निर्जराने आचार्य 'अकामनिर्जरा'ना नामे नथी ओळखावता, फक्त 'निर्जरा' शब्द प्रयोजे छे, अने तेमां पण सम्यक्त्वी साथे तुलना करीने ते शब्द प्रयोजे छे.
____ शास्त्रमति धरावता जीवो समजी शकशे के आ जवाबमां अक ज्ञानी पुरुषनी दृष्टि केटली विशाळ अने समुदार बनती अनुभवाय छे ! अन्तर अनाग्रहभावथी अने नीतर्या विवेकथी महेकतुं होय, शास्त्रनां मर्मो चित्तमां परिणम्यां होय, त्यारे ज आवा जवाबो ऊगे, आपी शकाय. अलबत्त, आवो जवाब बीजुं कोई पण आपी शके, पण तेनी पासे ते माटेनो अधिकार न होय; अने अधिकार वगर अपाता जवाब मूल्य न होय.
___आ पत्रमा बीजो प्रश्न जरा साम्प्रदायिक छे, गच्छवादने लगतो छे. अमां पूछायुं के तपगच्छना आचार्य पासे, अन्य पक्ष (गच्छ)ना श्रावको, पोताना देरासरनी प्रतिष्ठा करावे तो, ते श्रावकने संसार, परिभ्रमण वधे के ओर्छ थाय?
(खरेखर अहीं प्रश्न आवो होवो जोईतो हतो : तपगच्छना देरासरनी प्रतिष्ठा बीजा गच्छना आचार्य पासे करावीओ तो ते श्रावकने संसारभ्रमण वधे
१. कर्मक्षयना अने मोक्षना लक्ष्यथी कराती क्रिया थकी जे कर्म खपे, ते सकामनिर्जरा; अने
तेवा लक्ष्य वगर ज यंत्रवत् के देखादेखीथी थती क्रिया थकी जे कर्म खपे, ते अकामनिर्जरा.
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डिसेम्बर - २०१५
२७
के घटे ? केम के जेमने प्रश्न पूछाय छे ते आचार्य तपगच्छना गच्छनायक छे. परंतु पूछनार गृहस्थ बहु विचक्षण अने विवेकी हशे, तेथी तेमणे प्रश्नने आ रीते वाळीने पूछ्यो होय तेवी कल्पना थाय छे.)
आचार्य स्पष्ट प्रत्युत्तर आपे छे : तेवा श्रावकने संसार- भ्रमण घटे छे, पण वधतुं नथी. आ ढूंका जवाबमां उपर कौंसमां मूकेला काल्पनिक प्रश्ननो उत्तर पण ओवी ज कल्पनापूर्वक समजी लेवो जोईओ. अर्थात् आचार्य गच्छवादने महत्त्व आपवाना मतना नथी, ते आ जवाबथी स्पष्ट थाय छे.
पत्रगत त्रीजो प्रश्न धार्मिक बाबत परत्वे छे. तेमां गच्छपतिने पूछवामां आव्युं छे के 'भगवानजी' अटले के गच्छपति आचार्य त्रण प्रकारना मनुष्योने पच्चक्खाण करावे : ओक, सम्यक्त्वधारी मनुष्यने; बे, परपक्षना (अन्य गच्छना जैन) मनुष्यने; त्रण, मिथ्यात्वी जनने; तो ते त्रणेने अपायेला पच्चक्खाण मार्गानुसारी समजवा के नहीं ?
____ आना उत्तरमा आचार्य जणावे छे के ते त्रणेने अपातुं पच्चक्खाण मार्गानुसारी समजवु.
आ उत्तरमां पण आचार्यनी स्वाभाविक उदार समजण ज पडघाती जणाय छे. अन्यथा बीजा कोई कट्टरतापरस्त आचार्य होत तो ते ओम ज कहेत के सम्यक्त्वधारीने अपातुं होय ते मार्गानुसारी, परपक्षीयने के मिथ्यात्वीने अपातुं होय ते नहीं.
अकंदरे बन्ने पत्रमांना प्रश्नोत्तरो, गच्छपति श्रीविजयसेनसूरिजी महाराजना अनाग्रही, उदार तेमज गच्छनायक पदने छाजे तेवा स्वभावनो परिचय आपी जाय तेवा छे. ओ रीते मूलवीओ तो आ पत्रोनुं दस्तावेजी मूल्य तो खलं ज, पण साथे साथे गुणवत्ता अने प्रेरकताथी सभर मार्गदर्शननी रीते पण मूल्य घणुं बधुं आंकी शकाय तेम छे.
आ बे पत्रो, अन्य पत्रो साथे ओक लांबा पाना पर लखायेल छे, जे जोतां ज जणाई आवे के १७मा शतकमां आ पत्रोनी कोईओ करेली नकलरूप आ पत्रो छे. ओ पानां विद्वान मुनिवर श्री धुरन्धरविजयजीना डीसाना ग्रन्थसङ्ग्रहमांथी तेमणे आप्यां छे, तेनुं साभार स्मरण थाय छे. हवे ते मूळ पत्रो ज वांची:
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२८
अनुसन्धान-६८
पत्र-१
स्वस्तिश्रीवीरजिनं प्रणम्य अहम्मदावादनगरात् श्रीविजयसेनसूरयः सपरिकराः खंभायितनगरे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्रीदेवगुरुभक्तिकारक श्रीजिनाज्ञाप्रतिपालक श्रीसम्यक्त्वमूलद्वादशव्रतधारक संघमुख्य सा. सोमा सा. श्रीमल्ल सं. सोमकरण उदयकरण सा. नेमिदास वजिया ठा. लाई कुंअरजी प्रमुख संघ योग्यं धर्मलाभपूर्वकं लिखन्ति । यथाकार्यं च --
अत्र धर्मकार्य सुखइं प्रवर्तइ छइ श्री देवगुरुप्रसादिं । अपरं तमारु लेख पुहुतु । समाचार प्रीश्या । तथा तुमारा धर्मोद्यम करवाना उद्यम सांभली संतोष उपनो ।
तथा श्रीहीरविजयसूरि प्रसाद कर्या जे बार बोल, ते मध्ये अनुमोदवाना बोलमंहिं - दानरुचिपणुं १, स्वभावि विनीतपणुं २, अल्पकषाईपणुं ३, परोपकारीपणुं ४, भव्यपणुं ५, दाक्षिणालूपणुं ६, दयालूपणुं ७, प्रियभाषीपणुं ८, इत्यादिक जे साधारण गुण मिथ्यात्वी संबंधिया तथा जैन परपक्षी संबंधीया अनुमोदवायोग्य लिख्या छइ, ते आसिरी कोई कोई एहवं विपरीत अर्थ करता सांभलीई छई - जेहनइ असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदीइ नही । जेहनइ किस्याइ बोलनु असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदीइ नही । पणि ते जूठं कहइ छइ । जे मार्टि जेहनइं मिथ्यात्व होइ तेहनइ असद्ग्रह अवस्यइं होइ । अनइ सास्त्रमाहिं तो मिथ्यात्वरूप असद्ग्रह थिकइ हुंतइ पणि गुण अनुमोदवायोग्य कह्या छइ । तो मिथ्यात्वीनुं तथा परपक्षीनुं दयाप्रमुख कस्योइ गुण अनुमोदवायोग्य नहीं एहवं जे कहइ तेहनी समी मति किम कहिई ॥१॥
तथा बार बोल माहिं लख्युं छइ जे त्रिणिनां अवंदनिक चैत्य विना बीजां सर्व चैत्य वांदवापूजवायोग्य जाणिवा । ते आसिरी पणि केतलाएक विपरीत वचन कहता सांभलीइ छइ, ते पणि रूढुं नथी करता । ते माटि ए बोल आसिरी तथा बीजा बार बोलना बोल आसिरी जे कुणइ यती तथा श्रावक विपरीत प्ररूपणा करइ तेहनइ आकरी सिखामण देयो । अनइ तुम्हारी सीख न मानइ तु तेहy नाम प्रगटपणइ अम्हनइ जणावयो । तेहनइ अम्हो सीख देस्युं ॥
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डिसेम्बर
२०१५
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पत्र
स्वस्ति श्रीवीरजिनं प्रणम्य राजनगरात् श्रीविजयसेनसूरयः सपरिकराः श्रीमति स्तम्भतीर्थे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्रीजिनाज्ञाप्रतिपालक सा. काहान मेघजी योग्यं धर्मलाभपूर्वकं लिखन्ति । यथाकार्यं च
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अत्र धर्मकार्य सुखिं निरवहइ छइ श्रीदेवगुरुप्रसादिं । अपरं च तुमारो लेख पुहुतु । समाचार प्रीछ्या । तथा तुम्हो धर्मोद्यम विशेषथी करयो । तथा अमारो धर्मलाभ जाणयो । जे वांछइ तेहनइ जणावयो । अम्हारी वती देव जुहारयो। तथा प्रश्नोत्तर लिखीइ छइ ।
महेसरी टाढिने दिहाढे मोक्षनइ अर्थिं महीसागरइं जाइ छइ, अनइं मलेछ टाढि माहिं नमाज करइ छइ केवल मोक्षनइ अर्थि, ए बिहु तो सकामनिर्जरा कहीइ के अकामनिर्जरा कहीइ ए प्रश्न आसिरी तत्त्वार्थ प्रमुख शास्त्रनई अनुसारिं एहवुं जणाइ छइ जे कोई सम्यग्दृष्टीनी अपेक्षाई मिथ्यादृष्टीनइं थोडी निर्जरा होइ ते प्रीछयो ।
तथा परपक्षीना श्रावक तपागच्छना आचार्यपिं प्रतीष्ठावी देहरइ पूजइ तेहना धणीनई संसार वाधइ किंवा खूटइ ? ए प्रश्न आश्रि परपक्षीनई तपाना आचार्यपिं प्रतिष्ठा करावी प्रतिमा पूजतां संसार घटतो जणाइ छइ, पणि वाधतो जाण्यो नथी ते प्रीछयो ।
तथा श्रीभगवनजी पच्चक्खाण करावइ समकितधारी तथा परपक्षी तथा मिथ्यात्वीनइं, ते पच्चक्खाण मार्गानुसारी समझें छइ ते वातनु जिम समझ्युं होइ तिम प्रसाद करयो, ए प्रश्न आश्रि तथा तपागच्छना आचार्य प्रमुख सम्यग्दृष्टी तथा परपक्षी प्रमुखनइ जेहनई पच्चक्खाण करावइ ते सर्व पच्चक्खाण मार्गानुसारी जाण्युं छइ । पणि पच्चक्खाणनुं करणहार जो पच्चक्खाणनुं विधि जाणतो [न] होइ तो विधि समझावीन कराववुं एतलो विशेष जाणवुं ॥ इति भद्रम् ॥
(महावीर जैन विद्यालयना शताब्दीग्रन्थमां प्रकाशित)
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अनुसन्धान-६८
योगबिन्दु - टीका अङ्गे थोडुक चिन्तन
___- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
वि.सं. २०६६ना वर्षमां पूज्य गुरुभगवन्त श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजे श्रीहरिभद्रसूरिजीरचित योगबिन्दुप्रकरण® टीका साथे अध्ययन कराव्युं. ते वखते वाचनानुं संशोधन-सम्पादन करवाना आशयथी योगबिन्दु-सटीकनी ताडपत्रीय अने कागळनी प्रतो पण साथे राखी हती. अध्ययन दरमियान ख्याल आव्यो के टीकाना संशोधनमां अटली मुश्केली पाठशुद्धिनी नथी, जेटली अर्थशुद्धिनी छे. अर्थशुद्धिनी आ समस्या प्रत्ये विद्वज्जनोनुं ध्यान दोरवानो ज आ लखाणनो आशय छे.
योगबिन्दनी टीका स्वयं श्रीहरिभद्रसरिजीनी रचना नथी ते वात श्रुतस्थविर पूज्य मुनिराज श्रीजम्बूविजयजी महाराजे 'योगबिन्दुना टीकाकार कोण?' ओ लेख लखीने बहु सरस रीते साबित करी आपी छे. (जुओ 'महावीर जैन विद्यालय - सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ', पृ. ६८-७०). तेओओ स्वमन्तव्यना समर्थनमां जे सचोट पुरावा टांक्या छे तेमां ओक ओ छे के श्रीहरिभद्रसूरिजीओ योगबिन्दुमां श्लोक ४३९ थी ४४२ तरीके बौद्ध तार्किक धर्मकीर्तिना प्रमाणवातिकमांथी चार कारिका उद्धृत करी छे. आ कारिकाओ सर्वज्ञत्व विशेनुं बौद्ध मन्तव्य सूचवे छे. परन्तु टीकाकारे आ कारिकाओ मीमांसक कुमारिलना मत तरीके वर्णवी छे. आ अनाभोग, टीकाकार ग्रन्थकारथी जुदा होवानुं स्पष्टपणे सूचवे छे.
• आQ ज अक अन्य दृष्टान्त श्लोक १०५नी उत्थापनिकामां अमने जोवा मळ्यु. योगशतक - गाथा १०नी टीकामां श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजे अन्य योगशास्त्रकारना नामे ५ श्लोक उद्धृत कर्या छे. आ ज ५ श्लोक नजीवा फेरफार साथे योगबिन्दुमां श्लोक १०१ थी १०५ तरीके भगवान गोपेन्द्रना नाम साथे उद्धृत छे. पण टीकाकार १०५मा श्लोकने श्रीहरिभद्रसूरिजी, पोतानुं कथन समजीने चाल्या छे – 'इत्थं गोपेन्द्रमतमनूद्य वस्तुस्थितिं प्रतिपादयन्नाह (-उत्थापनिका)।' आश्चर्यनी वात ओ छे के आ श्लोकना चोथा पादमां इति मनीषिणः अवा, उद्धरण पूरं थतुं होवाना सूचक शब्दोने टीकाकारे ध्यान पर ज नथी लीधा, परिणामे श्लोक १०६ -
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अत्राप्येतद् विचित्रायाः प्रकृतेर्युज्यते परम् । इत्थमावर्तभेदेन यदि सम्यग् निरूप्यते ॥
आ श्लोक गोपेन्द्रना मतनी साथे स्वमतनो संवादसूचक होवा छतां टीकाकारे अनी जुदी ज रीते व्याख्या करी छे -
___ 'अत्राप्युभयोस्तत्स्वभावत्वे, किं पुनस्तदभावे न घटते' इत्यपिशब्दार्थः । एतद्- निवृत्ताधिकारत्वं विचित्रायास्तत्तत्सामग्रीबलेन नानारूपायाः प्रकृतेःकर्मरूपायाः युज्यते परं- केवलम् । इत्थमुक्तप्रकारेण आवर्तभेदेन- चरमावर्तरूपेण यदि- चेत् सम्यग्- यथावत् निरूप्यते- विमृश्यत इति ॥'
वास्तवमां आ श्लोक गोपेन्द्रमत अने स्वमतनो समन्वयसूचक होवाथी ओनी टीका आम थवी जोईओ ओम लागे छे -
अत्रापि- जैनमतेऽपि एतद्- निवृत्ताधिकारत्वादि सर्वं युज्यते एव। कुतः? विचित्रायाः- चित्ररूपायाः प्रकृतेः- कर्मप्रकृतेः । यदुक्तं योगशतकटीकायामेतदुद्धरणसम्बन्धे – 'न च प्रकृति-कर्मप्रकृत्योः कश्चिद् भेदोऽन्यत्राभिधानभेदात्' । परं- किन्तु, इत्थं- दर्शितप्रकारेण 'तस्मादचरमावर्तेष्वि'त्यादिना, आवर्तभेदेन- चरमाचरमावर्तात्मकेन, यदि- चेत्, सम्यग्- यथावत् निरूप्यतेविमृश्यत इति ।'
मतलब के गोपेन्द्रना मते कहेवायेली तमाम वातो जो चरम-अचरम आवर्तनी अपेक्षाओ विचारीओ तो जैनमतमां पण सङ्गत थाय ज छे. केमके योगदर्शननी प्रकृति अने जैनदर्शननी कर्मप्रकृति वच्चे नाम सिवाय झाझो तफावत नथी.
उपरना उदाहरणथी जणाशे के टीका- वांचन केटली सावधानीथी करवू पडे तेम छे. आवां ज थोडांक अन्य स्थानो जोईओ -
• श्लोक २२-२९मां योगमां गोचर, स्वरूप, फळ वगेरेनी शुद्धि शा माटे चकासवी जोई तेनी चर्चा छे. तेमां २२मा श्लोकमां ओम जणाव्युं छे के योग तरीके विवक्षित क्रिया जो लोक अने शास्त्रथी विरुद्ध होय तो ते योग नथी गणाती. केमके ओवा फक्त श्रद्धाथी ज स्वीकार्य योगने विद्वानो मान्य नथी करता. त्यारबाद २३मो श्लोक आम छे -
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अनुसन्धान-६८
वचनादस्य संसिद्धिरेतदप्येवमेव हि ।
दृष्टेष्टाबाधितं तस्मादेतन्मृग्यं हितैषिणा ॥ अमां जे 'एतदप्येवमेव हि' शब्दो छे तेनी टीका आम करवामां आवी छे – 'यदि नामैवं ततः किमित्याह – एतदपि वचनं, किं पुनर्योग इत्यपिशब्दार्थः । एवमेव हि- योगवदेव परिणामिन्येवात्मनि घटते, भाषकपरिणामान्तरसम्भवेन वचनप्रवृत्तेरुपपद्यमानत्वात् ।'
खरेखर तो अत्रे आत्माना परिणामित्व वगेरेनो कोई सन्दर्भ ज नथी. वळी, वचन ओ भाषकना परिणामरूप होय के न होय, आत्मा परिणामी होय के न होय - अनाथी दृष्ट अने इष्टथी अबाधित वचननी गवेषणा शी रीते जरूरी बने ? माटे आ शब्दोनी टीका आ रीते करवी योग्य जणाय छे -
एतदपि- वचनमपि, एवमेव हि- लोकशास्त्रयोरुभयोरविरोधेनैव शुद्धं भवति; अन्यथा श्रद्धामात्रैकगम्यं सत् तद् विपश्चितामिष्टं न भवति (-पूर्व श्लोकनो सन्दर्भ अत्रे पकडवानो छे.) तस्माद् दृष्टेष्टाभ्यामबाधितमेव तद् मृग्यं भवति ।
जेम योग, लोक अने शास्त्रथी अविरुद्ध होवो जोईओ, तेम ते योगर्नु प्रतिपादक वचन पण लोक-शास्त्र उभयथी अविरुद्ध होवू जोईओ अQ अत्रे तात्पर्य समजाय छे.
• लोकरंजन माटे थती धर्मक्रिया लोकपक्ति कहेवाय छे. आवी क्रिया सामान्यतः कीति, धन वगेरेनी स्पृहाथी थाय छे. अने तेथी ज महान एवा धर्मनी अवहेलनामा निमित्त बननारी ते क्रिया अतिशय निन्द्य गणाय छे. आवी क्रिया 'विषानुष्ठान' कहेवाय छे, केमके ओनो विपाक दारुण होय छे.
हवे जे जीव धर्मक्रिया करती वखते अनाभोगथी वर्ते छे, मतलब के जेनुं चित्त प्रवर्तमान क्रियाने बदले बीजा विचारमा छे, तेवा जीवनी धर्मक्रिया 'सम्मूर्छनज क्रिया' गणाय छे. केम के ते जीव ते क्रियामां सम्मूर्छनज- असंज्ञी जीवनी जेम प्रवर्ते छे.
हवे आ लोकपक्तिवाळा जीवनी अने अनाभोगवाळा जीवनी - बन्नेनी धर्मक्रिया जोके अशुद्ध ज छे, तोपण लोकपक्तिवाळा जीवनी क्रिया, अनाभोगक्रियानी सरखामणीमां वधु निन्द्य छे. केम के तेमां धर्मनी हीलना छे. आ वात योगबिन्दु
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श्लोक ९१मां रजू थई छे : लोकपक्तिमतः प्राहुरनाभोगवतो वरम् । धर्मक्रिया न महतो, हीनताऽत्र यतस्तथा ॥
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आनी टीका आम थई शके - लोकपक्तिमतो- लोकचित्ताराधनप्रधानस्य सकाशात् अनाभोगवतः- सम्मूर्छनजप्रायस्य धर्मक्रियां वरं - प्रधानं यथा भवति तथा प्राहुः योगीन्द्राः । कुतो हेतोः ? यतः अत्र अनाभोगवतो धर्मक्रियायां न महतो धर्मस्य हीनता तथा - लोकपक्तिमतो धर्मक्रियावत् ।
परन्तु टीकाकारे आवी टीका करी छे - लोकपक्तिमतो- लोकचित्ताराधनप्रधानस्य प्राहु:- ब्रुवते, कीदृशस्येत्याह - अनाभोगवतः - सम्मूर्च्छनजप्रायस्य स्वभावत एव वैनयिकप्रकृतेः वरं पूर्वोक्ताल्पबुद्धिधर्मक्रियायाः सकाशात् प्रधानं यथा भवति....
अर्थात् टीकाकार ‘अनाभोगवतः' ने 'लोकपक्तिमतः 'नुं विशेषण गणे छे. तेथी अनाभोगवाळो लोकपक्तिमान् अने अल्पबुद्धि लोकपक्तिमान् ओवा भेद पाडी तेमां तरतमता घटावे छे. आ वात केटली असङ्गत थाय छे ते विद्वज्जनो समजी शकशे.
• जीव अक वार ग्रन्थिनो भेद करे पछी मिथ्यादृष्टि थाय तो पण मोहनीय कर्मनी उत्कृष्ट स्थितिनो बन्ध नथी करतो. कारण के ओनो परिणाम सामान्यतः शुभ ज रहे छे. आ वात श्लोक २६७मां सूचवाई छे
एवं सामान्यतो ज्ञेय: परिणामोऽस्य शोभनः । मिथ्यादृष्टेरपि सतोऽमहाबन्धविशेषतः ॥
परन्तु टीकाकारे 'अमहाबन्धविशेषतः 'ना स्थाने 'महाबन्धविशेषतः ' पाठ स्वीकार्यो छे. अने तेनो अर्थ अवस्थान्तरविशेष कर्यो छे. परिणामे अर्थसङ्गति बराबर नथी थती. तेने बदले 'अमहाबन्ध - उत्कृष्टस्थितिना अबन्धरूप विशेष होवाथी' ओवो अर्थ लेवामां सरस अर्थसङ्गति थाय छे.
• अवग्रहनी आवी स्खलना अन्यत्र पण जोवा मळे छे. जेमके श्लोक ४१०मां उपायोपगमेनो अर्थ उपायोऽपगमे ( - अपगमनो उपाय) करवाने बदले उपायस्योपगमे सति ( - उपायनो स्वीकार कर्ये छते) कर्यो छे. अवग्रह तरफ
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अनुसन्धान-६८
ध्यान न जवाने लीधे अर्थमां केटली क्लिष्टता आवी छे ते आ श्लोकनी टीका जोवाथी ज समजाशे.
• श्लोक ५१५मां पण अवग्रहनी शक्यता पर ध्यान न जवाने लीधे ओक सरस दलील तद्दन अस्पष्ट रही जवा पामी छे. ब्रह्माद्वैतमतमां जीवमात्रने परब्रह्मना अंशरूप समजाववामां आवे छे. आनी सामे तर्क करवामां आव्यो छे के ओ अंशो जो अविकारी मुक्तब्रह्मना अंशो छे तो तेमां विकारित्व केवु ? अने जो ओ अंशो खरेखर विकारी ज छे तो न्याय ओ ज छे के अंशी (-परब्रह्म) पण अमुक्त बनशे. केम के जेना अंशो विकारी छे ते अंशी मुक्त होय ज कई रीते ? आ दलीलनो श्लोक आम छे -
मुक्तांशत्वे विकारित्वमंशानां नोपपद्यते ।
तेषां चेह विकारित्वे सन्नीत्याऽमुक्ततांऽशिनः ॥ आमां चोथा पदमां मुक्तता पहेला अवग्रह नथी ओम समजीने टीकाकारे व्याख्यान कर्यु छे. परंतु अने लीधे वक्तव्य तद्दन अस्पष्ट रहे छे.
• टीकाकारे करेला सर्वनामना अर्थ पण घणी जग्याओ बदलवा जेवा लागे छे. जेमके -
श्लोक पद टीका अर्थ संभवित अर्थ २१६ तस्याः मुक्तेः मुक्तीच्छायाः २६० अस्य
स्त्रीरत्नस्य
गुरुदेवादिपूजनस्य ३४४
पुरुषकारेणैव
भावेनैव ३७२ अस्य पूर्वोक्तयोगभाजः चारित्रिणः
अन्यसंयोगः अपगमः एषः अध्यात्मादिर्योगः वृत्तिसंक्षयः ५१३ तद्वैतै पुरुषार्थलक्षणे पुरुषद्वैते (पुरुषबहुत्वे)
आ अर्थोने लीधे तात्पर्यमां घणो फेर पडी जाय छे.
• सटीक ग्रन्थोनी अक सौथी मोटी समस्या ओ होय छे के टीकाकार भगवन्तने मूळ ग्रन्थनो जे पाठ मळ्यो अने जे पाठ तेओओ स्वीकार्यो ते पाठ
तेनैव
४०७
अयम्
४१९
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अशुद्ध होय तोपण भेटलो रूढ थई जाय के काळक्रमे ओना सिवाय बीजा पाठनी कल्पना पण कोइने नथी आवती. टीका धरावती प्रतोमां तो ये पाठ होय ज, पण टीका वगरनी ओकला मूळनी केटलीक प्रतोमां पण अ ज पाठ प्रवेशी जाय छे. आ शक्यताने ध्यानमा राखीने अमे अध्ययन दरमियान योगबिन्दु - मूळनी पण प्राचीन प्रतो साथे राखी हती. आ प्रतोओ ओवा घणा पाठो पूरा पाड्या के जे टीकाकारे स्वीकारेला पाठ करतां वधु सङ्गत लाग्या. जेम के श्लोक २०७नी पहेली पङ्क्ति आम छे -
“प्रकृतेरा यतश्चैव नाऽप्रवृत्त्यादिधर्मताम् ।”
आनी टीका आम छे - प्रकृतेः- कर्मसंज्ञितायाः आ- अर्वाक् यतश्चैवयत एव च हेतो: न- नैव अप्रवृत्त्यादिधर्मताम्- अप्रवृत्तिर्निवृत्ताधिकारित्वं .... अहीं अमने मूंझवतो प्रश्न ओ हतो के आ - अर्वाक्नो कोनी साथे अन्वय करवो ? जो ओनो अन्वय अप्रवृत्त्यादिधर्मताम्नी साथे करवानो होय तो त्यां नियमानुसार पञ्चमी केम नथी ? वळी आवो अन्वय करीने 'प्रकृतिना अप्रवृत्तिधर्मथी पहेलां' आवो अर्थ करीओ तो आवा अर्थना सूचक शब्दो 'तथा विहाय' बीजी पङ्क्तिमां आवे छे तेनुं शुं काम ? विचार करतां जणायुं के अहीं बीजो ज कोई पाठ होवो जोईओ. अने योगबिन्दु - मूळनी प्रत जोतां प्रकृतेरात्मनश्चैव आवो साचो पाठ मळी आव्यो. आनो अर्थ से छे के प्रकृति अने आत्मा अ बन्नेमां ज्यां सुधी अप्रवृत्ति - अन्याधिकारनिवृत्ति वगेरे धर्मो न प्रगटे त्यां सुधी सम्यक् चिन्तन नथी ज थई शकतुं. आ अर्थ प्रकरण साथे तद्दन सङ्गत थाय छे. आवा ज केटलाक योगबिन्दु - मूळनी प्रतमांथी मळेला पाठ
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श्लोक
७
१४१
२५१
२५२
२०९
४८६
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टीकासम्मत पाठ
सर्वं न मुख्यमुपपद्यते
मलनायैव
०बन्धकस्यैवं
०नीतितस्त्वेव
न्यायात्सिद्धिर्नो हेतुभेदतः सम्बन्धश्चित्र०
शुद्ध मूळ पाठ
सर्वजनुषामुपपत्तित: मलमय्येव ०बन्धकस्यैव ० नीतितस्त्वेष
३५
न्याय्या सिद्धिर्नो हेत्वभेदतः
स चित्रश्चित्र०
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अनुसन्धान-६८
४९५ समाधि०
समाधे० ५१३ तदन्याभावनादेव तदन्याभाववादे वा ५२१ ततश्चिन्त्यो
ततश्चिन्त्या आ नोंध फक्त नमूना पूरती ज रजू करी छे. आ बधा शुद्ध मूळ पाठोथी ग्रन्थकारनो आशय केटली सरस रीते जाणी शकाय छे ते वात अभ्यासीओ ते ते स्थाने टीका जोईने समजी शकशे.
• अत्रे योगबिन्दु-टीका अंगे जे चिन्तनीय बिन्दुओ रजू कर्यां छे, ते बधां साचां ज छे ओवो आ लेखकनो दावो नथी. श्रीहरिभद्रसूरिजीओ अनेक योगपरम्पराओने अवगाहीने तेनां रहस्योने आत्मसात् करीने पोताना ग्रन्थोमां गूंथ्यां छे. तेथी जैनदर्शननी साथे ने साथे अन्य योगपरम्पराओने अवलोकीने ज तेओना योगग्रन्थोने योग्य न्याय आपी शकाय. तेथी जो कोई प्राज्ञपुरुष योगपरम्पराओना अवगाहनपूर्वक पूर्वापरना अनुसन्धान तपासीने जो आ टीकाने जोशे तो तेने अनेक स्थानो अवश्य विचारणीय जणाशे.
ओक वात खास ध्यान आपवा जेवी छे के आपणे त्यां टीकाओ के अनुवादोनुं अध्ययन करती वखते ओनी सङ्गति के शुद्धि अङ्गे भाग्ये ज विचारवामां आवे छे. आनुं मुख्य कारण ओ लागे छे के टीका के अनुवाद करतां जु, विचारवामां ते रचनारा भगवन्तोनी आशातनानो भय जणाय छे. पण बधी वखते आवो डर राखवो वाजबी नथी होतो. छद्मस्थसुलभ अनाभोगजन्य क्षतिनी सम्भावना तो कोई पण काळे रहेती ज होय छे. जोके प्राचीन महषिओनी बहुश्रुतता प्रश्नातीत होवाने लीधे आवी सम्भावना बहु ज ओछी होय छे, तोपण सामग्रीनी ते काळे प्रवर्तती दुर्लभता बहु मोटो भाग भजवती होय छे. तेथी वधु प्रमाणभूत सामग्री उपलब्ध थाय त्यारे, ते टीकाकार के अनुवादक प्रत्ये अखण्ड बहुमान जाळवी राखीने, जो योग्य रीते विचार करीओ तो अमां आशातना नहीं, पण आराधना ज छे. अलबत्त उपा. श्रीयशोविजयजीओ साचुं ज कह्यु छ के -
अरथकारथी आजना, अधिका शुभमति कोण ? तोले अमियतणे नहि, आवे कहिये लोण...
(३५० गाथा- स्तवन)
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पण आ बाबतमां तेओश्रीनां ज नीचेनां टंकशाळी वचनो अत्यन्त मननीय जणाय छे -
प्राचां वाचां विमुखविषयोन्मेषसूक्ष्मेक्षिकायां, येऽरण्यानीभयमधिगता नव्यमार्गानभिज्ञाः । तेषामेषा समयवणिजां सन्मतिग्रन्थगाथा, विश्वासाय स्वनयविपणिप्राज्यवाणिज्यवीथी ॥
(ज्ञानबिन्दु-प्रशस्तिः - १) 'शास्त्रनां प्राचीन वाक्योमांथी युक्तिसंगत नवो अर्थ शोधवामां ते ज लोको डरे छे जे तर्कशास्त्रथी अनभिज्ञ छे. तेवा लोको माटे आ सन्मतितर्कनी गाथाओ ज दृष्टान्तरूप छे के जेमां नयवादने अनुसरीने प्राचीन सूत्रोना युक्तिसङ्गत नवा अर्थो तारववामां आव्या छे.'
(महावीर जैन ग्रन्थालयना शताब्दी-ग्रन्थमा प्रकाशित)
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अनुसन्धान-६८
प्रकाशित विज्ञप्तिपत्रोनी सूचि
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
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अनुक्रमणिका सूचना १. पत्रोनी प्रकाशनवार सूचि - विज्ञप्तिपत्र
- अनुसन्धानमा प्रकाशित (१३१) - विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित (२२)* - अन्यत्र प्रकाशित (१२) प्रसादपत्री, स्नेहपत्र, कुङ्कुमपत्रिका व. - अनुसन्धानमा प्रकाशित (१६)
- अन्यत्र प्रकाशित (१) २. पत्र मेळवनार व्यक्ति - सूचि (अकारादिक्रमे) ३. पत्र लखनार व्यक्ति - सूचि (अकारादिक्रमे) ४. पत्र मेळवनारनां स्थानोनी सूचि (अकारादिक्रमे) ५. पत्र लखनारनां स्थानोनी सूचि (अकारादिक्रमे)
पत्रोनी भाषावार सूचि ७. पत्रोनी आदिपद प्रमाणे सूचि (अकारादिक्रमे) ८. विशिष्टनाम धरावता पत्रो। ९. पत्रोनी सम्पादकवार सूचि (अकारादिक्रमे) १०. सचित्र पत्रो
* विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां कुल २७ पत्रो प्रकाशित थया छे, तेमांथी ५ पत्रो
अनुसन्धानमां पण प्रकाशित होवाथी अत्रे २२ गण्या छे.
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सूचना * आ सूचिमां विज्ञप्तिपत्रोनी साथे तेना जवाबरूप प्रसादपत्री, स्नेहपत्र, समाचारपत्र
तेमज कुङ्कमपत्रिकानो समावेश को छे; परन्तु आज्ञापत्र, माफीपत्र, फरमानपत्र,
प्रश्नपत्र, उत्तरपत्र जेवा पत्रोनो समावेश नथी कर्यो. * शक्य प्रयत्ने जेटला प्रकाशित विज्ञप्तिपत्रो विशे माहिती मळी तेटलानो
समावेश थई शक्यो छे. आ सिवाय पण विज्ञप्तिपत्रो प्रकाशित होवानी शक्यता छे ज. ते अङ्गे जाण करनारनी साभार नोंध लेवाशे. प्रथम प्रकाशनवार सूचिमां विगतो नोंधवानो क्रम आ मुजब राख्यो छे - पत्रक्रमाङ्क → मेळवनार- स्थळ → पत्र मेळवनार व्यक्ति → पत्र लखनारनुं स्थळ → पत्र लखनार व्यक्ति → पत्र लख्या संवत् → सचित्र/अचित्र → भाषा → गद्य/पद्यनुं श्लोकप्रमाण → पत्र अङ्गे अन्य विगत → आदिपद → सम्पादक → सम्पादनमा उपयुक्त प्रतनुं स्थान → प्रतनी अन्य विगत
→ प्रकाशन स्थळ. * विगत पछी मूकेलुं (?) चिह्न ते विगतनी अनिर्णीतता सूचवे छे. * पत्र मेळवनार / लखनार व्यक्तिना नामोल्लेखमां → चिह्न शिष्यत्व सूचवे छे.
जेम के पत्र क्र. २मां श्रीगजेन्द्र गणि → श्रीपुण्यहर्ष गणिनो अर्थ श्रीपुण्यहर्ष
गणि श्रीगजेन्द्र गणिना शिष्य छे एम समजवानो छे. * सूचि क्र. २, ३, ९मां व्यक्तिनामोनी पदवीओ व. ( )मां मूक्या छे, जेथी
अकारादिक्रम करवामां सरळता रहे. * भाषाविभाग अने गद्य-पद्यविभाग प्राधान्यने अनुलक्षीने छे. * अन्य सूचिओमां फक्त प्रकाशनवार सूचिगत पत्र क्रमाङ्क ज नोंध्यो छे. * Ancient Vijnaptipatras अने अन्य स्थळे उल्लिखित अप्रकाशित
विज्ञप्तिपत्रोनो समावेश आ सूचिमां नथी थयो.
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१. पत्रोनी प्रकाशनवार सूचि
विज्ञप्तिपत्र
अनुसन्धानमा प्रकाशित १. पुरबन्दिर (-पोरबन्दर) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरि (?) पर राजनगर(
अमदावाद)थी उपाध्याय श्रीयशोविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७१७ पछी, संस्कृत, गद्य, लखवा धारेल पत्रना खरडा स्वरूप रचना, आदि - स्वस्ति-श्रीमद्यदीयक्रमकमलनमन्नाकिकोटीरकोटिः; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह, कर्ता द्वारा सं. १७१७मां लिखित 'समुद्रवहाणसंवाद'ना प्रान्तभागे कोरी जग्यामां लिखित पत्र; अङ्क
६, पृ. ६५-६७. २. फत्तेपुरसिक्री बिराजमान श्रीहीरविजयसूरिजी पर स्तम्भनतीर्थ(-खम्भात)थी
श्रीगजेन्द्र गणि → श्रीपुण्यहर्ष गणि द्वारा लिखित, सं. १६४२, गुजराती, १६४ कडी, 'लेखशृङ्गार' नाम, आदि - स्वस्ति श्रीऋषभजिन श्रीनाभिनरेन्द्र मल्हार; सं. - श्रीमहाबोधिसूरिजी, प्रत - संवेगी उपाश्रय - अमदावाद;
अङ्क १०, पृ. ५०-६७. ३. श्रीविजयनेमिसूरिजी पर बहुरसद(-बोरसद)थी श्रीविजयलावण्यसूरिजी द्वारा
लिखित, सं. १९९३, संस्कृत, गद्य, 'सप्तदलं लेखकमलम्' नाम, श्लेषप्रचुर, कर्ता कृत टिप्पणी सहित, आदि - स्वस्तिश्रीभृगुकच्छमच्छनगरं नित्यं पुनानं जिनम्; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - श्रीविजयशील
चन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क १२, पृ. ७१-८०. ४. मेडता बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर स्थिराद्र(-थराद)थी मुनि
श्रीविनयवर्धन द्वारा लिखित, सं. १७०१, संस्कृत, ४८ श्लोक, एकाक्षर वृद्धिछन्दोबद्ध, छन्दनामगुम्फित शब्दो, आदि - स्वस्तिश्रीशं देवाधीशं स्वस्ति-श्रीकं स्तोष्येऽस्तेयम्; सं. - मुनि श्रीरत्नकीर्तिविजयजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रहगत ओळियुं; अङ्क १४, पृ. ३१-३७. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयसेनसरिजी पर अमदावादथी श्रीधनहर्षशिष्य द्वारा लिखित, सं. १६५२ पछी, संस्कृत, १६२ श्लोक (अपूर्ण),
५.
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'विज्ञप्तिकालेख' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीकरिणी यदीयविलसत्पादद्वयी सोमजा; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - श्रीविजयनेमिसूरि ज्ञानशाळा
- खम्भात; अङ्क १६, पृ. १-२७. ६. जेसलमेर बिराजमान श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी पर पल्लियपुर(-पाली)थी पं.
श्रीजयशेखर द्वारा लिखित, सं. १८९७, प्राकृत, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीवरवर्णनी प्रियतमं विश्वत्रयैकाधिपम्; सं. - म. विनयसागर, प्रत - म. विनयसागरसङ्ग्रह; अङ्क ३३, पृ. ८-१९. द्वीप(दीव) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर बर्हानपुर(-बुरानपुर)थी महोपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १८९ श्लोक, 'सेवालेख' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीः प्रसभं सभासु भगवत्पादाग्रजाग्रन्नखान्; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - श्रीकान्तिविजयजी भण्डार - वडोदरा; अङ्क ३३, पृ. २८-४६. स्तम्भतीर्थ(-खम्भात) बिराजमान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी पर मालकोटथी महोपाध्याय श्रीसमयसुन्दरजी द्वारा लिखित, सं. १६५८, संस्कृत, १ श्लोक, 'महादण्डक' नाम, ९९९ अक्षर- १ अवां ४ चरण, आदि - सकलविमलशाश्वतस्वस्तिमज्ज्योतिरुयोतितम्; सं. - म. विनयसागर, प्रत - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर; अङ्क ३५, पृ. ५-१४. राधनपुर बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर जोधांण(जोधपुर)थी श्रीखुशालविजयजी → श्रीपद्मविजयजी → पं. श्रीमनरूप(-मनोर)विजयजी द्वारा लिखित, सं. १८६२, गुजराती, पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीवरनाभिनन्दनजिनम्; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीविजयशील
चन्द्रसूरि-सङ्ग्रहगत ओळियुं अङ्क ५०(१), पृ. ६५-९२. । १०. अवरंगाबाद(-औरंगाबाद) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर सरोतराथी
श्रीविजयसिंहसूरिजी द्वारा लिखित, सं. १६९९, संस्कृत, ३११ श्लोक, अनेक चित्रबन्धकाव्योथी समृद्ध, 'लेखराजहंस' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीमुद्यदुद्यधुसदधिपनमन्मौलिमौलिस्थरत्न०; सं. – मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी, अङ्क ६०, पृ. १-२७, (विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित - क्र. ९, पृ. १३६-१५७).
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११. मेदिनीपुर(-मेडता) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सादडीथी महोपाध्याय
श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, २३७ श्लोक (त्रुटित, अपूर्ण, भेळसेळ थई गयेलो पत्र), अनेक चित्रकाव्योथी अलङ्कृत, 'चित्रकोश काव्य' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीसदनं भजामि सुभगं श्रीविश्वसेनाङ्गजम्; सं. - म. विनयसागर, प्रत - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - बीकानेर, मोतीचंदजी खजांची सङ्ग्रह, 'श' २८४, पत्र संख्या ४-६; अङ्क ६०, पृ.
२८-५५. १२. उपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ४९ श्लोक, खण्डितप्राय,
आदि - अथ गगनरमायाचित्रमायानुकारी; सं. - म. विनयसागर; अङ्क
६०, पृ. ५६-६३. १३. सूर्यपुर(-सूरत) बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर वैजल्लपुर(वेजलपुर -
अमदावाद)थी श्रीविद्याविजयजी द्वारा लिखित, सं. १६५६-१६७२ वच्चे, संस्कृत, ८० श्लोक, शार्दूलविक्रीडित छन्दमां सर्व श्लोक, पत्रनी पाछली तरफ ७ जिनस्तोत्रो, 'गुरुराजविज्ञप्तिपत्रिका' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीसुखसञ्चयं रचयति स्फारीभवत्संवरो; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी,
प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियु; अङ्क ६०, पृ. ६४-८२. १४. राजनगर(-अमदावाद) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर योधपुर(
जोधपुर)थी पं. श्रीलावण्यविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ९१ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीः श्रयणीयमंहिकमलं श्रान्तेव यस्याऽऽश्रयत्; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियुं; अङ्क ६०, पृ. ८३-९०, (विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित - क्र. १८, पृ. १८५-१८९). सिंहरोधिका(-शिरोही?) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर भुजथी उपाध्याय श्रीअमरचन्द्रजी द्वारा लिखित, सं. १६८५(?), संस्कृत, ११२ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीर्यत्पदाम्भोजं भेजे भृङ्गीव सादरम्; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियु;
अङ्क ६०, पृ. ९१-९९. १६. सूर्यपुर(-सूरत) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर राजपुरथी उपाध्याय
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श्रीधनविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७०४, संस्कृत, ८६ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीसुकनी स्वयंवरवरा चञ्चत्कलाशालिनी; सं. मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; अङ्क ६०, पृ. १०० - १०६, (विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित क्र. १५, पृ. १७२-१७६).
१७. वर्गवटी(-वगडी) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर नाडुलाई ( - नाडलाई ) थी उपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १०१ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमूर्तिः सुरद्रुवन्निर्मितकामपूर्तिः; सं. - म. विनयसागर, प्रत राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर, क्र. २०४१५, ३ पत्र; अङ्क ६०, पृ. १०७-११४.
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१८. द्वीप(-दीव) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी उपर रामपुरथी उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, आदि - स्वस्ति श्रीचारुलोचनालोचनाचारुचेतश्चाञ्चल्य०; सं. – श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी प्रत - पाटण, डा. १९७, नं. ८००९; अङ्क ६०, पृ.
"
हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार ११५-१२३.
१९. जीर्णदुर्ग (-जूनागढ ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सिद्धपुरथी श्री - उदयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ५२ श्लोक, आदि स्वस्तिश्रीपार्श्वनाथस्य पदपद्मनखांशवः; सं. मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियुं; अङ्क ६०, पृ. १२४-१२८, (विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित क्र. १६; पृ. १७७-१७८).
२०. देवकपत्तन(-देवपुर - पाटण) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर जावालथी पं. श्रीनयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७१६, संस्कृत, ६३ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीर्व्रततीव पादपवरं गौरीव भूतेश्वरम्; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियुं; अङ्क
६०, पृ. १२९ - १३६.
२१. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर पत्तन ( - पाटण) थी पं. श्रीकमलविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य-पद्य, आदि स्वस्तिनीरनिधिनन्दनालसल्लोचनाम्बुजविकूणितांशुभिः; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियुं; अङ्क
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६०, पृ. १३७-१४१. २२. पुरबन्दिर(-पोरबन्दर) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर नीतिपद्र
(-नीकावा)थी श्रीलालविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ६८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रिया येन समं विलासाः पूर्णीकृताशाः पुरुषोत्तमेन; सं. -
मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डविजयजी; अङ्क ६०, पृ. १४२-१४८. २३. दीवबन्दिर(-दीव) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर प्रहलादनपुर(
पालनपुर)थी पं. श्रीलालकुशलजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ३२ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियः सेवधिरद्वितीयः श्रीपार्श्वसार्वो जगदर्हणीयः; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत
ओळियुं अङ्क ६०, पृ. १४९-१५१. २४. देवकपत्तन(-देवपुर-पाटण) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर साहिज्यपुर
(-शाजापुर?)थी पं. श्रीहीरविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १२१ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियः प्रस्तुतवस्तुकर्तुनिःशङ्कमकं सकलार्थसिद्ध्यै; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत
ओळियु; अङ्क ६०, पृ. १५२-१६२. २५. पुरबिन्दर(-पोरबन्दर) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर रामदुर्गथी पं.
श्रीकल्याणविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ११५ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीविश्वसेनान्वयसलिलरुहोद्योतने सप्तसप्तिम्; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियुं;
अङ्क ६०, पृ. १६३-१७२. २६. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर मालेपुर(
मालेगांव?)थी मुनि श्रीआगमसुन्दरजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ८१ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीः पदपङ्कजामलयुगं भेजे यदीयं मुदा; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियु; अङ्क ६०, पृ. १७३-१८२, (विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित – क्र. १९,
पृ. १९०-१९४). २७. स्तम्भतीर्थ(-खम्भात) बिराजमान श्रीसोमसुन्दरसूरिजी पर लास(-कैलास
नगर-राजस्थान)थी पं. श्रीशान्तिसुन्दर गणि द्वारा लिखित, संस्कृत, ११०
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श्लोक, प्रथम त्रण श्लोक त्रुटित, ४था श्लोकनी आदि - योऽत्याक्षीदायताक्षी नृपतिवरसुतां पुण्यकारुण्ययोगात्; सं. - पं. श्रीविमलकीर्तिविजयजी, प्रत – महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध केन्द्र - जोधपुर, क्र. ७४९;
अङ्क ६१, पृ. १-९. २८. देलवाडा बिराजमान श्रीदेवसुन्दरसूरिजी पर अजमेरु(-अजमेर)थी पं.
श्रीशान्तिसुन्दर गणि द्वारा लिखित, संस्कृत, १५१ श्लोक, ४८ थी ७० श्लोक त्रुटित, आदि - जयत्यनन्तं परमात्मसङ्गतं तदद्भुतं ज्योतिरमेयमव्ययम्; सं. - पं. श्रीविमलकीर्तिविजयजी, प्रत - महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध केन्द्र - जोधपुर, क्र. ७४९; अङ्क ६१, पृ. ९२०. सिद्धपुर बिराजमान श्रीदेवसुन्दरसूरिजी पर झरिपल्ली(-जीरावला?)थी पं. श्रीशान्तिसुन्दर गणि द्वारा लिखित, संस्कृत, ८२ श्लोक, आदि - प्रधानध्यानसन्धानसम्भवं भवभेदकम्; सं. - पं. श्रीविमलकीतिविजयजी, प्रत - महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध केन्द्र – जोधपुर, क्र. ७४९; अङ्क
६१, पृ. २०-२८. ३०. श्रीगुणरत्नसूरिजी पर पं. श्रीशान्तिसुन्दर गणि द्वारा लिखित, संस्कृत, ३२
श्लोक, अपूर्ण, आदि - अनन्तज्ञानदृक्रसौख्यवीर्यसंवलितात्मने; सं. - पं. श्रीविमलकीर्तिविजयजी, प्रत – महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध
केन्द्र - जोधपुर, क्र. ७४९; अङ्क ६१, पृ. २८-३२. ३१. देलवाडा बिराजमान श्रीसाधुरत्नसूरिजी पर कपिलपाटकर-केलवाडा
राजस्थान?)थी पं. श्रीशान्तिसुन्दर गणि द्वारा लिखित, संस्कृत, ४० श्लोक, अपूर्ण, आदि - सदध्यात्माधीतिप्रवणमतिभिर्योऽतिपुरुषैः; सं. - पं. श्रीविमलकीतिविजयजी, प्रत - महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध
केन्द्र - जोधपुर, क्र. ७४९; अङ्क ६१, पृ. ३२-३७. ३२. सिद्धपुर बिराजमान श्रीदेवसुन्दरसूरिजी पर बाउलुपुर(-बावळा?)थी पं.
श्रीशान्तिसुन्दरगणि द्वारा लिखित, संस्कृत, २५ श्लोक, अपूर्ण, आदि - श्रेयःश्रियं श्रीऋषभो जिनेन्दुर्दद्यादमन्दां स मुदं जनानाम्; सं. - पं. श्रीविमलकीर्तिविजयजी, प्रत - महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध
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केन्द्र - जोधपुर, क्र. ७४९ (क्र. २७ थी ३२ सुधीना पत्रोनो सङ्ग्रह धरावती ओक प्रत, क्र. ३० थी ३२ पत्रो प्रतलेखकने अपूर्ण प्राप्त); अङ्क ६१, पृ. ३७-४०.
३३. श्रीविजयसेनसूरिजी पर देवगिरि ( दोलताबाद) थी उपाध्याय श्रीसत्यसौभाग्य द्वारा लिखित, संस्कृत, ६३ श्लोक, आदि - स्वस्ति श्रीर्भजति स्म यस्य वदनाम्भोजन्म विश्वेशितु०; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत श्री धुरन्धरविजयजी - सङ्ग्रह, अङ्क ६१, पृ. ४१-४८.
३४. राजधनपुर(-राधनपुर) बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर वटपल्ली - वडाली)थी पं. श्रीमेरुविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १११ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियां सन्ततये स देवः श्रीविश्वसेनक्षितिपालपुत्रः; सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत जैनानन्द पुस्तकालय सूरत अने कान्तिविजयजी जैन शास्त्रसङ्ग्रह - वडोदरा, क्र. २०९०; अङ्क ६१, पृ. ४९-५७.
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३५. राजनगर(-अमदावाद ) बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर राणकमेरु (राणकपुर ? ) थी मुनि श्रीमेघचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ८३ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीः किलिकिञ्चिताद्भुतसुखान्यास्वादितुं स्वेच्छया; सं. श्रीश्रीचन्द्रसूरिजी; अङ्क ६१, पृ. ५८-६५.
३६. श्रीविजयदेवसूरिजी पर भृगुपुरथी मुनि श्रीमेघचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ४४ श्लोक, अपूर्ण, आदि - स्वस्ति... लितानि स्फूर्तिमान् जिनपतिर्विलसन्त्यः, सं. - श्रीश्रीचन्द्रसूरिजी; अङ्क ६१, पृ. ६५-६८.
३७. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर मण्डपदुर्ग (-मांडवगढ)थी मुनि श्रीमेघचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ७० श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीणां हेतवे सेतवेऽहं संसाराब्धेर्लब्धिसंसाधनाय; सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. ६९-७५.
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३८. पुरबन्दिर(-पोरबन्दर) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर राजनगर(अमदावाद)थी पं. श्रीनयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १०७ श्लोक, १२ गतप्रत्यागत श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीरङ्गभूमिर्भवभयतिमिरध्वंसहंस
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प्रकाशन; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरि-सङ्ग्रहगत ओळियुं अङ्क ६१, पृ. ७६-८६. ३९. श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सप्तपर्णीपुर(-सादडी)थी पं. श्रीदर्शनविजयजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, ६ श्लोक, ६ठ्ठो श्लोक 'महासमुद्र'नामना दण्डक छन्दमां, १ चरणमां ९९९ अक्षर, आदि - स्वस्तिश्रीमदमन्दनन्दनमन्नाकीन्द्रचूडामणि०; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धर
विजयजी-सङ्ग्रहगत ओळियु अङ्क ६१, पृ. ८७-९२. ४०. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सादडीथी मुनि
श्रीमेरुचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीसदनं जिनेशवदनं स्तौम्यन्वहं सुन्दरम्; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, क्र. ४३४१३; अङ्क ६१, पृ.
९३-९५. ४१. वर्गवटी(-वगडी) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर राजनगर(
अमदावाद)थी उपाध्याय श्रीयशोविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ३८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीमान् गुरुरपि कविप्रेमपात्रं प्रकामम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लावण्यविजय ज्ञानभण्डार -
राधनपुर, क्र. ९६३; अङ्क ६१, पृ. ९६-१००. ४२. शुद्धदन्त(-सोजत) बिराजमान श्रीविजयरत्नसूरिजी पर राजनगर(
अमदावाद)थी उपाध्याय श्रीयशोविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ३९ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियाऽऽश्रितमनिन्दितमंहिपद्मम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लावण्यविजय ज्ञानभण्डार -
राधनपुर, क्र. ९६३; अङ्क ६१, पृ. १०१-१०४. ४३. वर्गवटी(-वगडी) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर (बीजापुर - कर्णाटक
पासे) स्याहपुर (-शाहपुर)थी उपा. श्रीयशोविजयजी → पं. श्रीतत्त्वविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७३५, संस्कृत, ८५ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियां चन्दिरमन्दिरं सद्देवाधिदेवं क्षपितान्तरारिम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - शेठ आणंदजी कल्याणजी जैन ज्ञानभण्डार - लींबडी; अङ्क ६१, पृ. १०५-११२.
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४४. उदयपुर बिराजमान श्रीविजयरत्नसूरिजी पर स्याहपुर(-शाहपुर)थी पं.
श्रीतत्त्वविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७३५, संस्कृत, ७८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीरमणः करोतु कुशलं श्रीमारुदेवाभिधः; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - शेठ आणंदजी कल्याणजी जैन ज्ञानभण्डार -
लींबडी; अङ्क ६१, पृ. ११२-११८.। ४५. राजनगर(-अमदावाद) बिराजमान तपगच्छपति [?] पर विद्यापुर(
वीजापुर)थी मुनि श्रीपद्मानन्दजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ५६ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीरभवद् मरालदयिता नव्या पदाम्भोरुहे; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा, क्र. ३१०९१, थरादमां श्रीगौतमविजयजी द्वारा लिखित; अङ्क ६१,
पृ. ११९-१२६. ४६. समी बिराजमान [?] पर सिद्धपुर-लालपुरथी मुनि श्रीविद्याविजयजी द्वारा
लिखित, संस्कृत, १९ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीः शान्तितीर्थेशं द्वितीयेन्दुमिवोदितम्; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीधुरन्धर
विजयजी-सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. १२७-१२८. ४७. रामपुर बिराजमान श्रीविजयचन्द्रसूरिजी पर उपाध्याय श्रीविजयचारित्र द्वारा
लिखित, संस्कृत, ३३ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीसदनं प्रकामदलनं संसारविध्वंसनम्; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - अभय जैन
भण्डार - बीकानेर, क्र. २०६७६; अङ्क ६१, पृ. १२९-१३२. ४८. जालोर बिराजमान श्रीजिनसुखसूरिजी पर सोझित(-सोजत)थी उपाध्याय
श्रीविद्याविलास द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीसदनं वृषौघवदनं श्रीनाभिभूपाङ्गजम्, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत -
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. १३३-१३५. ४९. जहन्नाबादमां बिराजमान श्रीजिनसुखसूरिजी पर राजनगरथी मुनि श्रीलब्धि
विजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, आदि- स्वस्ति श्रीमन्तमर्हन्तमनन्ता तिशयनिलय०; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - लालभाई
दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६१, पृ. १३६. ५०. मेडता बिराजमान श्रीजिनलाभसूरिजी पर जयतारण(-जेतारण)थी उपाध्याय
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मुनि श्रीसुयशचन्द्र -
श्रीजीवनदास द्वारा लिखित, संस्कृत, २४ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीवरशङ्करादिविधियुक् श्रेयस्करं भास्करम्; सं. सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा क्र. ५२७४३; अङ्क ६१, पृ. १३७-१३८.
५१. पटियाला बिराजमान श्री लक्ष्मीचन्द्राचार्यजी पर विक्रमनगर (-बीकानेर) थी मुनि श्री परमानन्दजी द्वारा लिखित, सं. १८९०, संस्कृत, ३५ श्लोक, स्वस्तिश्रीश्रेयसाध्यै प्रवरहिमभरक्षीरधिक्षीरहीर०; सं. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क
आदि
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत
६१, पृ. १३९ - १४२.
-
-
४९
५२. जेसलमेर बिराजमान श्रीलक्ष्मीचन्द्राचार्यजी पर विक्रमनगर (-बीकानेर) थी मुनि श्रीपरमानन्दजी द्वारा लिखित, सं. १८८४, संस्कृत, ३४ श्लोक, आदि – स्वस्तिश्रीस्थितिभूतिविच्युतिमयं विश्वं हि विश्वं ध्रुवम्; सं. - मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी, प्रत श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क
६१, पृ. १४३-१४६.
५३. अमृतसर बिराजमान श्रीरामचन्द्रसूरिजी पर लक्ष्मीनिवास ( ? ) थी श्रीरघुनाथ मुनि द्वारा लिखित, प्राकृतमां ३२ गाथा, पछी संस्कृत - प्राकृत गद्य, आदि - सिवसिरिसुक्खनिहाणं तं जियमाणं सुलद्धनिव्वाणं; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, क्र. ४३८५५; अङ्क ६१, पृ. १४७ - १५१.
५४. तपगच्छपति [श्रीविजयसेनसूरि?] पर वसहीपुरथी उपाध्याय श्रीभानुचन्द्रजी → पं. श्रीदेवविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, २७ थी १४९ श्लोक उपलब्ध, २७मा श्लोकनी आदि - मन्दाकिनी द्वीपवती वज्री सुरेष्वशेषेषु नृपेषु चक्री; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, क्र. ४३४०४, अङ्क ६१, पृ. १५२ - १६२. ५५. जीर्णदुर्ग (-जूनागढ ) बिराजमान उपाध्याय श्रीविनयविजयजी पर राजकोटथी मुनि श्रीहीरचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, २२ श्लोक, आदि - सङ्घेषु शान्तिं कुरुतां स शान्तिर्नाम्ना गुणेनाऽपि सदर्थनाम्ना; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क
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६१, पृ. १६३-१६४. ५६. पत्तन(-पाटण) बिराजमान उपाध्याय श्रीलावण्यविजयजी पर मुनि
श्रीमेघचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १३ श्लोक, आदि - श्रिये स वः सप्तमतीर्थनेता यस्यांहियुग्मश्रयणादवाप; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क
६१, पृ. १६५-१६६. ५७. फलवर्द्धि(-फलोधि) बिराजमान उपाध्याय श्रीअमरचन्द्रजी पर थांदिलाणाथी
मुनि श्रीकर्मचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १७ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीमन्तमाप्तं परमसमरसीभावमासाद्य सद्यो; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी,
प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. १६७-१६८. ५८. मंगलपुर(-मांगरोल) बिराजमान पं. श्रीलब्धिचन्द्रजी पर वीरमगामथी मुनि
श्रीगुणचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ४५ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियं वस्तनुतां स नाथः कृपार्द्रचेता इह शान्तिनाथः; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. १६९
१७२. ५९. मण्डवीबिन्दर(-मांडवी-कच्छ) बिराजमान पं. श्रीपुण्यधीरजी पर विक्रमपुर
(-बीकानेर)थी मुनि श्रीजयकीति द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीविलसन्महामणिकलधौतकलितपादपीठ०; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि-सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ.
१७३-१७४. ६०. मधूकपुर(-महुवा/महुधा?) बिराजमान मुनि श्रीमहीचन्द्र-मेरुचन्द्रजी पर
पूषन्पुर(-सूरत)थी मुनि श्रीउदयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, पत्र पछी मुनिविमलकृत तपगच्छपति श्रीविजयसेनसूरिजी वगेरेनी स्तुति तेमज श्रीवीरप्रभुनुं गेयकाव्य छे, आदि - स्वस्ति सासारमसारसंसाराकूपारपारप्राप्तमाप्तोपदेश०; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. १७५-१७६. शुभनगर बिराजमान श्रीरत्नविजयजी पर जयपत्तन(-जयपुर)ना श्रीसङ्घनो पत्र, सचित्र, संस्कृत, गद्य, आदि - श्रीमत्पार्श्वजिनेन्द्रपादकमलध्यानैकतानाः
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६३.
सदा; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - प्रेमलभाई
कापडिया सङ्ग्रह - मुम्बई; अङ्क ६१, पृ. १७७-१७८. ६२. श्रीविजयदानसूरिजी पर लखायेल पत्र, संस्कृत, प्रथम सार्द्ध १९ श्लोक
अनुपलब्ध, २०मा श्लोक- त्रीजुं चरण - त्यक्तारं गमिता सरित् सुमनसामति हृदा विभ्रती; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. १७९-१८०. श्रीहीरविजयसूरिजी पर श्रीविजयसेनसूरिजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ६५मा श्लोकना त्रीजा चरणथी ९५मा श्लोक सुधी उपलब्ध, ६५नो उत्तरार्ध - तदपि मोहकरं न महात्मनां त्वमसि यस्य विवर्धनतत्परः; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर
- सूरत; अङ्क ६१, पृ. १७१-१८३. ६४. श्रीविजयसेनसूरिजी पर मोकलावेल पत्र, संस्कृत, प्रथम ७३ श्लोक
अनुपलब्ध, कुल १०४ श्लोक, ७४मा श्लोकनी आदि - यद्यशःक्षीरपाथोधौ कान्तिकल्लोलमालिनि; सं – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - लालभाई
दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६१, पृ. १८४-१८६. ६५. श्रीविजयदेवसूरिजी पर अहिमन्नगर(-अहमदनगर?)थी पं. श्रीलावण्य
विजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, २७-७४ श्लोक उपलब्ध, २७मा श्लोकनी
आदि - यया स्वीयशोभातिरेकेण पुर्याऽभिभूता पुरी निर्जराणां भरेण; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
- कोबा, क्र. ३१४३३; अङ्क ६१, पृ. १८७-१९१. ६६. श्रीविजयदेवसूरिजी पर अहिमन्नगर(-अहमदनगर)थी पं. श्रीलावण्य
विजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १-३५ श्लोक उपलब्ध, आदि - स्वस्तिश्रियं तनुमतां तनुतां स शान्तिर्यन्नासिका परमविभ्रममाबिभति; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
- कोबा, क्र. ३१४३३; अङ्क ६१, पृ. १९१-१९४. ६७. रायधन्नपुर(-राधनपुर) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर दधिपद्र(
देथली)थी मुनि श्रीविनयवर्धनजी द्वारा लिखित, सं. १७०२, संस्कृत, गद्य, अपूर्ण, आदि - स्वस्तिश्रियां निधिरयं किल पूर्णचन्द्रः; सं. - मुनि
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श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - सागरगच्छ जैन ज्ञानभण्डार - पाटण,
क्र. १९७/८०१२, १ पत्र; अङ्क ६१, पृ. १९५-१९६. ६८. श्रीविजयदेवसूरिजी पर मुनि श्रीहीरचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, श्लोक
१, २६-५७ उपलब्ध, आदि - स्वस्तिश्रियां सुन्दरमन्दरेण यदीयपादाम्बुजयामलेन; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, नेमिविज्ञानकस्तूर
सूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. १९७-१९९. ६९. उदयपुर बिराजमान [?] पर पं. श्रीलावण्यविजयजी द्वारा लिखित,
वच्चेना नगरवर्णनना २४ श्लोक उपलब्ध, उपलब्धनी आदि - पदे पदे पुष्करिण्यः वृत्तहंसोपसेवितसुनीराः; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी,
प्रत - जैन आत्मानन्द सभा - भावनगर; अङ्क ६१, पृ. २००-२०१. ७०. अहम्मदावाद(-अमदावाद) बिराजमान उपाध्याय श्रीहेमहंसगणि पर लिखित,
संस्कृत, गद्य-पद्य, आदि - श्रीमत्प्रेमपुरस्सरार्हतपदश्रीकन्यया निर्ममे; सं. -- मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर;
अङ्क ६१, पृ. २०२-२०३. ७१. उन्नतद्रङ्ग(-ऊना) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर उपाध्याय श्रीयशो
विजयजीना पत्रनो खरडो, संस्कृत, ४७ श्लोकमांथी ४६ श्लोक समस्यापूर्तिमय, आदि - स्वस्तिश्रियः प्रेयस ईश्वरस्य प्रजापतेरप्यभिभूतिहेतुम्; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - लावण्यविजयजी
जैन ज्ञानभण्डार - राधनपुर, क्र. ३४/१९८५; अङ्क ६१, पृ. २०४-२०७. ७२. उपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, २८ श्लोक, अपूर्ण,
आदि - स्वस्तिश्रियामप्रतिरूपरूपाः सर्वेऽपि देवासुरमर्त्यभूपाः; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर,
क्र. २०४१५; अङ्क ६१, पृ. २०८-२०९. ७३. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान [?] पर पत्तन(-पाटण)थी पं. श्रीलब्धि
विमल द्वारा लिखित, संस्कृत, ६३ श्लोक, अपूर्ण, आदि - स्वस्तिश्रीभरभाजनं सुनयनं निःशेषलोकावनम्; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६१, पृ. २१०-२१५.
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७४. श्रीरङ्गविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, गद्य, आरम्भनो भाग अप्राप्त,
उपलब्धनी आदि - व्यणुकसमवायिकारणरङ्गविजयः सविनयं सस्नेहं...; सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि
सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. २१६. ७५. ईलादुर्ग(-ईडर) बिराजमान [?] पर डभोक ग्रामथी मुनि श्रीरूपचन्द्रजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, ३८ श्लोक, अपूर्ण, आदि - स्वस्तिश्रियाऽन्वितो दद्यान्नो नाभेयः स शं जिनः; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. २१७
२१९. ७६. प्रारम्भिक भाग अप्राप्त, संस्कृत, गद्य, प्राप्तनी आदि - ०यसारकासारस्थास्नु
प्रसृमरशंवरभरसमानन्द्यमान०; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत - अभय ग्रन्थसङ्ग्रह - बीकानेर, क्र. ४५९१६; अङ्क ६१, पृ. २२०
२२१.
७७. तपगच्छपति [?] पर लिखित, संस्कृत, पद्य, अन्तिम १९ श्लोक
उपलब्ध, प्राप्तनी आदि - तथा प्रथाप्राप्तगुणैर्गुणानामप्याश्रयैस्तद्गणना
मतीतैः; सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; अङ्क ६१, पृ. २२२-२२३. ७८. श्रीदेवसुन्दरसूरिजी पर श्रीमुनिसुन्दरसूरिजी द्वारा लिखित 'त्रिदशतरङ्गिणी'नो
ओक अंश, संस्कृत, चैत्यषट्कबन्धचित्ररूप श्रीजिनस्तवावलि महाहद, ६ अन्तर्हद, ३३ तरङ्ग, २०९ श्लोक, आदि - जयश्रियं सर्वपुरेष्ववाप्य पुण्यर्द्धिभिः पत्तनमादधाति; सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, प्रत - हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर - पाटण, क्र. ११६/३३०७, १७ पत्र; अङ्क
६४, पृ. १-४३. ७९. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीहीरविजयसूरिजी पर महेवाथी मुनि श्रीविजयहर्ष
द्वारा लिखित, सं. १६३०, संस्कृत, २२२ श्लोक, अनेक चित्रकाव्योथी अलङ्कृत, आदि - स्वस्तिश्रीजिनपाणिपद्मयुगलं भेजे प्रवालप्रभम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरिज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६४, पृ. ४४-६३.
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८०. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर देवकपत्तन(
देवपुरपाटण)थी उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, प्राकृतमां पूर्वार्ध अने संस्कृतमा उत्तरार्ध धरावता ८२ श्लोक, आदि - सत्थिसिरिकमलिणीगहणदिणणायगं नेमिजिणभायगं; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - हंसविजयजी जैन ज्ञानमन्दिर - वडोदरा; अङ्क
६४, पृ. ६४-७१. ८१. महिशानक(-महेसाणा)थी लिखित, संस्कृत, ५७ श्लोक, 'आनन्दविज्ञप्ति'
नाम, आदि - पार्वं पार्श्वप्रणुतं प्रणिपत्य निरत्यैक०; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कान्तिविजयजी शास्त्रसङ्ग्रह -
वडोदरा; अङ्क ६४, पृ. ७२-७७.. ८२. वंशपालनपुर(-वांसवाडा) बिराजमान श्रीविजयरत्नसूरिजी पर उदयपुरथी
मुनि श्रीवृद्धिविजयजी द्वारा लिखित; सं. १७६७, संस्कृत, १४२ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीव्रततिस्थिरस्थितिकृतिस्कन्धप्रबन्धोधुरः; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, पं. श्री लालविजयजी द्वारा लिखित प्रथमादर्श; अङ्क ६४, पृ.
८२-९५. ८३. नवीननगर(-जामनगर)थी श्रीलावण्यविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत,
गद्य, आदि - स्वस्ति श्रीमतिमातनोतु जगतां गाङ्गोपगेयच्छवि०; सं. -
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; अङ्क ६४, पृ. १२३-१२४. ८४. त्रुटित पत्र, संस्कृत, २७-४३ श्लोक प्राप्त, २७मा श्लोकनी आदि -
रोचिष्णुरचिररोचिश्चामीकरकान्तिकान्तकरणानाम्, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४,
पृ. १२८-१२९. ८५. राजधन्यपुर(-राधनपुर) बिराजमान उपाध्याय [?] पर लिखित
(पत्रसङ्ग्राहक द्वारा नामो काढी नंखायां छे.) संस्कृत, २३ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियं स शान्तिर्दिशतु सतां यस्य दर्शनं नित्यम्; सं. - सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरिज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४, पृ. १२९-१३१.
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८६. उपाध्याय(?) पर लिखित (पत्रसङ्ग्राहक द्वारा नामो काढी नंखायां छे),
संस्कृत, ३८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीमरुदेवीयं प्रासूत प्रथमं जिनम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि
ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४, पृ. १३१-१३४. ८७. सिद्धपुरथी लखायेल, (सङ्ग्राहक द्वारा नामो काढी नंखायां छे), संस्कृत,
२५ श्लोक, आदि - मन्दारभासुरतरं द्विजराजराजमानं विमानिपथवद्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा; अङ्क ६४, पृ. १३४-१३६. ८८. संस्कृत, दोढ श्लोक उपलब्ध, आदि - स्वस्तिश्रीरमणीमणिदिनमणिः
श्यामामणीमण्डले; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत -
कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४, पृ. १३६. ८९. श्रीविजयदेवसूरिजी पर लिखित, छेल्ला ७ श्लोक प्राप्त, पत्र बाद गुरुवर्णनना
२० श्लोक, प्राप्तनी आदि - येषां निष्प्रतिमानतां गतवतां विद्याविलासाहतों; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि
ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४, पृ. १३६-१४०. ९०. लक्ष्मणपुर(-लखनऊ) बिराजमान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी पर जयपुरथी मुनि
श्रीकमलसुन्दरजी द्वारा लिखित, २०मी सदी, हिन्दी-संस्कृत, पद्य, आदि - स्वस्तिश्री शिवसुखकरण हरण अशिवदुख दूर; सं. - म. विनयसागर, प्रत - श्रीमालों की दादावाडी - जयपुर, पत्र ६; अङ्क ६४, पृ. १४१
१६६. ९१. पार्श्वचन्द्रगच्छीय श्रीविवेकचन्द्रसूरिजी पर राजनगर(-अमदावाद)थी पं.
श्रीरवचन्द्रजी → मुनि श्रीश्रीचन्द्रजी द्वारा लिखित, सचित्र, सं. १८४२, गुजराती, पद्य, आदि - स्वस्ति श्रीशर्मधामा त्रिभुवनविजयी दुष्टकर्मारिवा; सं. - साध्वी श्रीसमयप्रज्ञाश्रीजी, प्रत - पायचंदगच्छ संघ भण्डार -
खम्भात; अङ्क ६४, पृ. १६७-१७३. ९२. शिरोही बिराजमान श्रीविजयलक्ष्मीसूरिजी पर सूरतना श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित,
सचित्र, सं. १८५१, गुजराती, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीवृषभं जिनेन्द्रवृषभं त्रैलोक्यरत्नर्षभम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत -
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आर्ट गेलेरी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया; अङ्क ६४, पृ. १७४-१९३. ९३. राधनपुर बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर विजैवापुर(वीजोवा)थी पं.
श्रीजीवनसागरजी-पं. श्रीचतुरसागरजी द्वारा प्रेषित, सं. १८६२, गुजराती, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्ति श्रीशैव॒जधणी ऋषभ वडो महाराज; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर
- सूरत अने जम्बूसूरि ज्ञानमन्दिर - डभोई; अङ्क ६४, पृ. १९४-२०९. ९४. चांणसमापुर(-चाणस्मा) बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर घांणोरा(
घाणेराव)ना श्रीसङ्घवती पं. श्रीगौतमविजयजी द्वारा लिखित, सचित्र, राजस्थानी, पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीमधुपाङ्गनामुखरितं यत्पादपाथोरुहम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - पं. श्रीहिरेनभाई -
पालिताणा; अङ्क ६४, पृ. २१०-२४४. ९५. अमदावाद बिराजमान पं. श्रीरूपविजयजी पर जोधपुरना श्रीसङ्घ द्वारा
प्रेषित, सचित्र, सं. १८८२, राजस्थानी, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्ति श्रीपार्श्वजीन प्रणम्य श्रीराजनगरे अनेकओपमालायक; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - डहेलानो ज्ञानभण्डार - अमदावाद; अङ्क ६४
पृ. २४५-२४९. ९६. मकसूदाबाद - बंगाळ बिराजमान श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी पर बीकानेरना
बृहत्खरतरगणीय श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित, सं. १८९८, संस्कृत-राजस्थानी, गद्य-पद्य, मङ्गल श्लोक पछी आदि - प्रतिपदवनग्रामराजिते ऋद्धिवृद्धिकृतनिवासे अनेकग्राम०; सं. – मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी; अङ्क ६४, पृ.
२५०-२५७. ९७. नागपुर(-नागौर) बिराजमान श्रीसौख्यविजयजी(-सुखलालजी) पर रतलामथी
श्रावक मगनीराम वरमेचा द्वारा लिखित, सं. १९४२, राजस्थानी, गद्य-पद्य, मङ्गल श्लोक बाद आदि - स्वस्तिश्रीजयकारकं जिनवरं कैवल्यलीलाश्रितम्;
सं. - मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी; अङ्क ६४, पृ. २५८-२६४. ९८. राजनगर(-अमदावाद) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर खम्भातथी
उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७०५, गुजराती, २६ कडी, आदि - स्वस्तिश्री प्रणमुं सदा रे पास जिणेसर पाय; सं. - मुनि
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श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा, अङ्क ६५, पृ. १-४. ९९. श्रीपुर(-शिरपुर) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर अहमदनगरथी मुनि
श्रीकमलविजयजी → मुनि श्रीउदयविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, १८ कडी, आदि - स्वस्तिश्री जिनपय नमी श्रीपुर नगर सुथान; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा;
अङ्क ६५, पृ. ५-७. १००. श्रीविजयदेवसूरिजी पर मुनि श्रीमाणिक्यचन्द्रजी द्वारा लिखित, सं. १६७८,
गुजराती, ४३ कडी, आदि - स्वस्ति सदा तुझनई हयो श्री विजयदेवमुणिंद; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - वीरबाई जैन पाठशाळा - पालिताणा; सं. १६९२मां भरुचमां पं. श्रीसङ्घविजयजी → मुनिश्री क्षेमविजयजी द्वारा श्राविका हीरबाई माटे लिखित; अङ्क ६५, पृ.
८-११. १०१. खम्भात बिराजमान श्रीविजयानन्दसूरिजी पर सूरतना श्रीसङ्घ वती श्रीदर्शन
विजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, ४४ कडी, आदि - प्रगट प्रभावी त्रिभुवनि त्रिभुवनजन सुखकार; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी,
प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. १२-१६. १०२. श्रीविजयप्रभसूरिजी पर बीजापुर-साहपुरना श्रीसङ्घ वती मुनि श्रीवृद्धि
विजयजी → मुनि श्री कनकविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७३२, गुजराती, चन्द्राउलानी देशीमा २५ कडी, आदि - विजयप्रभ वाल्हेसरू रे परघल आंणी प्रेम; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई
दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. १७-२१. १०३. सूरत बिराजमान श्रीविजयदयासूरिजी पर सोझित(-सोजत)ना श्रीसङ्घ वती
मुनि श्रीरूपविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७९०, गुजराती, पद्य, मङ्गल श्लोक पछी आदि - दीठा गुरु दोलति हुवै प्रह उगतै सूर; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा; अङ्क ६५, पृ. २२-२८. १०४. वाल्होतरा(-बालोतरा) बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर सूरतथी मुनि
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श्रीरामविजयजी मुनि श्रीसुजांणविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८२३, गुजराती, २८ कडी, आदि - सरसति मुझ सुपसाय करि आपो वचनविलास; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर – कोबा; अङ्क ६५, पृ. २९-३२.
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१०५. राधनपुर बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर मेदनीपुर ( - मेडता ) थी पं. श्रीरत्नसागरजी मुनि श्रीसत्यसागरजी द्वारा लिखित, सं. १८३०, गुजराती, २०५ कडी, आदि - स्वस्ति श्रीसुखसंपदा दायकदेव दयाल; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, सं. १९४१ मां गौधाविमां पं. श्रीमांणिकनाथ द्वारा लिखित; अङ्क ६५, पृ. ३३-५१.
१०६. भीनमाल बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर सादडीथी मुनि श्रीजीवविजयजी → मुनि श्रीमोहनविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, गद्य-पद्य, मङ्गल श्लोक बाद आदि- श्रीतपगच्छमांहिं दिनकरणसमान भव्यजीवआसाविश्राम; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. ५२-५८.
१०७. उदयपुर बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर मंगलपुर ( - मांगरोळ) थी मुनि श्रीरूपविजयजी → श्रीमोहनविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, ९९ कडी, आदि - स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमीश! यमाश्रिता भव्यजना भवन्ति; सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - रत्नाकरविजयजी ज्ञानमन्दिर महुवा; अङ्क ६५, पृ. ५९-६९.
१०८. उदयपुर बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर मङ्गलपुर(-मांगरोळ)थी पं. श्रीकनकविजयजी मुनि श्रीहरिविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, ७४ कडी, आदि - स्वस्तिश्रीसदनं निरस्तमदनं कल्याणसम्पादनम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत रत्नाकरविजयजी ज्ञानमन्दिर महुवा; अङ्क ६५, पृ. ७०-७८.
१०९. भीनमाल बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजी पर सादडीना श्रीसङ्घवती मुनि श्रीजीवणसागरजी द्वारा लिखित, सचित्र, गुजराती, गद्य-पद्य, पत्र क्र. ९३नी नकल जेना आधारे थई हशे ते मूळ पत्र, नकल साथे मेळवीने विशिष्ट
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वातोनी अलग नोंधमात्र साथे सम्पादन; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र
सुजसचन्द्रविजयजी, अङ्क ६५, पृ. ७९-८१. ११०. सूरत बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर थांदलाथी मुनि श्रीप्रेमविजयजी
द्वारा लिखित, सं. १८४५, राजस्थानी, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्री जिनमानम्य पञ्चकल्याणनायकम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. ८२
८५. १११. रतलाम बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर जोधपुरना श्रीसङ्घ वती पं.
श्रीभक्तिविजयजी → मुनि श्रीमनरूपविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८७१, सचित्र, राजस्थानी, १८८ कडी अने गद्य, छेल्लो थोडोक अंश खण्डित, आदि - श्रीनाभेयजिनं सुरेन्द्रमहितं विश्वत्रयोद्योतकम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र -सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क
६५, पृ. ८६-१०५. ११२. मांगरोल बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर सोझाली(-सोजत)ना श्रीसङ्घ
वती पं. श्रीमनोहरविजयजी → मुनि श्रीराजेन्द्रविजयजी तेमज पं. श्रीमनरूपविजयजी → श्रीरूपविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८७६, सचित्र, राजस्थानी, पद्य, मङ्गल श्लोको बाद आदि - सहुदेसां सिरसेहरो सोरठ है सिरताझ; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत -
कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६५, पृ. १०६-१२१. ११३. पाटण बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर मेडताना श्रीसङ्ग वती पं.
श्रीविनयविजयजी तेमज तेमना शिष्यो कस्तूरविजयजी अने कुंवरविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८८१, सचित्र, राजस्थानी, २६९ कडी, मङ्गल श्लोको बाद आदि - गूर्जर देस छै वारु, तिहां सेहर घणा छै सारु हो; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा; अङ्क ६५, पृ. १२२-१४८. ११४. मुंबई बिराजमान श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजी पर सूरतना श्रीसङ्घ वती पं.
श्रीप्रेमविजयजी तथा शिष्य मुनि श्रीअमरविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८८९, सचित्र, गुजराती, २६३ कडी, मङ्गल श्लोको बाद आदि - स्वस्ति
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श्रीसुन्दरसुगुण सकलकलाभण्डार; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - केसरबाई जैन ज्ञानमन्दिर - पाटण; अङ्क ६५, पृ. १४९
१७७. ११५. वीसलनगर(-वीसनगर) बिराजमान श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजी पर जोधपुरना
श्रीसङ्घ वती पं. श्रीदीपविजयजी → पं. श्रीसिद्धविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८९६, सचित्र, राजस्थानी, पद्य, मङ्गल श्लोको बाद आदि - प्रेमे प्रणमुं भारती गणपति गुणगंभीर; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - आर्य जम्बूस्वामी मुक्ताबाई जैन ज्ञानमन्दिर - डभोई; अङ्क ६५, पृ. १७८-१८९, (श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी द्वारा क्र. ११६ साथे मेळवीने
अपुनरावृत्त अंश ज सम्पादन). ११६. पालनपुर बिराजमान श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजी पर नागोरना श्रीसङ्घ वती पं.
श्रीमानसागरजी → पं. श्रीरूपेन्द्रसागरजी द्वारा लिखित, सं. १९०७, सचित्र, गुजराती, १८२ कडी, महदंशे क्र. ११५नी नकल, मङ्गल श्लोक बाद आदि - सकल गुणे करि सोहतो सकल देश शिरदार; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - आर्य जम्बूस्वामी मुक्ताबाई जैन
ज्ञानमन्दिर - डभोई; अङ्क ६५, पृ. १९०-२०७. ११७. अमदावाद बिराजमान श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजी पर जोधपुरना श्रीसङ्घ वती पं.
श्रीकल्याणविजयजीना शिष्य मुनि श्रीप्रमोदविजयजी अने मुनि श्रीरत्नविजयजी द्वारा लिखित, सं. १९१६, राजस्थानी, पद्य, लांबी गझलो धरावतो पत्र, आदि - स्वस्तिपद्मा सदा यस्य पदपद्मावशिश्रयत्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - भीलडीयाजी जैन ज्ञानमन्दिर;
अङ्क ६५, पृ. २०८-२३४. ११८. साणंद बिराजमान श्रीविजयमहेन्द्रसूरिजी पर सेनापुर(-शिनोर)थी पं.
श्रीज्ञानविजयजी → मुनि श्रीहिम्मतविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८६३, राजस्थानी-गुजराती, शरुआतनो थोडोक अंश त्रुटित, प्राप्तनी आदि - मांगें सफरि सम फिरतीक्, बाडवलोक वहां आवेंक्; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - आर्य जम्बूस्वामी मुक्ताबाई जैन ज्ञानमन्दिर - डभोई; अङ्क ६५, पृ. २३५-२४७.
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११९. राजनगर(-अमदावाद) बिराजमान श्रीदानरत्नसूरिजी पर सूरतथी पं.
श्रीकनकरत्नजी द्वारा लिखित, सं. १७९२, गुजराती, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीमद्धर्मफलाद्भुविजये जम्बूद्वीपे राजतो; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६५,
पृ. २४८-२५५. १२०. राजनगर(-अमदावाद) बिराजमान श्रीदानरत्नसूरिजी पर मीयागामथी उपाध्याय
श्रीउदयरत्नजी द्वारा लिखित, सं. १७९२, ४ चित्रकाव्योनां चित्रो सहित, हिन्दी, पद्य, प्रथम ३ कडी त्रुटित, ४थी कडीनी आदि - तत्र परमगुरु पुण्यनिधि परमपूज्य आराध्य; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी,
प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. २५६-२६३. १२१. श्रीदेवगुप्तसूरिजी(-ककुदाचार्यसन्तानीय-कवलागच्छीय) पर मेडताना श्रीसङ्घ
द्वारा प्रेषित, सं. १९०७, सचित्र, राजस्थानी, गद्य, आदि - स्वस्ति श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य श्रीतत्र ग्रामनगर सुभ०; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र
सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - भो.जे. विद्याभवन; अङ्क ६५, पृ. २६४-२६६. १२२. साहजिहांपुर(-शाजापुर) बिराजमान श्रीअक्षयचन्द्रसूरिजी पर खम्भातना
श्रीसङ्घ वती मुनि श्रीखुशालविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, २० कडी, आदि - स्वस्ति श्रीगुरुपय नमी वीनतडी मनरंगई रे; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - शेठ डोसाभाई अभेचंद जैन
ज्ञानभण्डार - भावनगर; अङ्क ६५, पृ. २६७-२६९. १२३. विक्रमपुर(-बीकानेर) बिराजमान श्रीलक्ष्मीचन्द्रसूरिजी पर अजमेरना
बृहन्नागोरी लोंकागच्छ श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित, सं. १८८७, सचित्र, राजस्थानी, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्री समुरीकृतोद्यतिसुता दी.. मुदा यः स्तुतः; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि
ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६५, पृ. २७०-२७३. १२४. अमदावाद बिराजमान श्रीकल्याणसागरसूरिजी पर नौरंगाबादना श्रीसङ्ग वती
उपाध्याय श्रीसुजयसौभाग्यजी द्वारा लिखित, सं. १७९०, सचित्र, गुजराती, १२८ कडी, मङ्गल श्लोक पछी आदि - स्वस्ति श्रीमद् वृषभजिन प्रेमइ प्रणमी पाय; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई
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दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. २७४-२८५. १२५. राजपुर बिराजमान श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजी पर सूरतना श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित,
सं. १७७९, सचित्र, ५६ संस्कृत श्लोको अने त्यारबाद गुजराती गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीः श्रयति स्म यं जिनपतिं त्रैलोक्यलोकाधिपम्; सं. - मुनि
श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, अङ्क ६५, पृ. २८६-२९५. १२६. पेसकपुर बिराजमान श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी पर धनपुरथी पं. श्रीरामविजयजी
द्वारा लिखित, सं. १८५९, गुजराती, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञभवनं त्रैलोक्यलोकावनम्; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी,
प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६५, पृ. २९६-३०३. १२७. पाटण बिराजमान पं. श्रीरत्नविजयजी पर मालवणथी प्रेषित, सं. १८४९,
गुजराती, २२ कडी, आदि - स्वस्तिश्री अणहिल्लपुरे महाशुभस्थांन पवित्त; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि
ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६५, पृ. ३०४-३०६. १२८. त्रिकुट्टनगरमां बिराजमान गणि श्रीनयनसुखजी पर प्रेषित, हिन्दी, ३६ कडी,
आदि - स्वस्ति श्रीश्रीपासजिण पय प्रणमउ सुखकंद; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर -
पाटण; अङ्क ६५, पृ. ३०७-३१०. १२९. साध्वीजी श्रीपुण्यश्रीजी पर पालिताणाथी श्राविका द्वारा प्रेषित, गुजराती,
४० कडी, आदि- ... सुहाय श्रीचिंतामणि पासको चेत नमुं; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा; अङ्क ६५, पृ. ३११-३१५. १३०. लाडोल बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर बम्बावती(-खम्भात)थी उपाध्याय
श्रीकल्याणविजयजी → पं. श्रीजयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १६५६, गुजराती, ९३ कडी, आदि - स्वस्तिश्री जिनवरतणा पदपंकज प्रणमेवि; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई
विद्यामन्दिर; अङ्क ६७, पृ. ७१-८०. १३१. लाडोल बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर सूरतथी उपाध्याय श्रीकल्याण
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विजयजी द्वारा लिखित, सं. १६५६, गुजराती, २५ कडी, आदि - विवेक कहि सुरनर बहु पदपंकज प्रणमंति; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, श्राविका जयंतबाई माटे श्रीगुणविजयजी गणि द्वारा लिखित; अङ्क ६७, पृ. ८०८२.
विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमा प्रकाशित सं. - मुनि जिनविजयजी, प्रका.- सिंघी जैन ग्रन्थमाळा, ई.स. १९६० १३२. अयोध्यापुरीमा बिराजमान श्रीलोकहिताचार्य (खरतरगच्छीय) पर अणहिल्लपुर
पाटणथी श्रीजिनोदयसूरि द्वारा लिखित, पत्रलेखक - मुनि श्रीमेरुनन्दन, सं. १४३१, संस्कृत, गद्यपद्यमय, ११०० श्लोक प्रमाण, 'विज्ञप्तिमहालेख' नाम, वि.सं. १४३०-३१मां श्रीजिनोदयसूरिजीओ करेलां विचरण, तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा व.नां तिहासिक वृत्तान्तोथी अलङ्कृत, आदि - श्रीश्रेयांसि सतां दिशन्तु सततं ते स्वामिनस्तीर्थपाः; टिप्पण, लोकहिताचार्यस्तुति, गुर्वावलि, शत्रुञ्जयतीर्थस्तुति व. सहित सम्पादित, प्रत - १. श्रीपुण्यविजयजीसङ्ग्रह, सं. १४३७मां कपिलपाटक(-केलवाडा)मां लिखित २. बीकानेरना
श्रीपूज्यजीना सङ्ग्रहगत; पृ. १-३६. १३२. अणहिल्लपुर पाटणमां बिराजमान श्रीजिनभद्रसूरिजी पर सिन्धुमण्डलमां
आवेला मलिकवाहननगरथी उपाध्याय श्रीजयसागरजी द्वारा लिखित, सं. १४८४, संस्कृत, गद्य-पद्यमय, १०१२ श्लोकप्रमाण, 'विज्ञप्तित्रिवेणी' नाम, सरस्वतीकल्लोला-गङ्गातरङ्गा-यमुनाकल्लोला नामनी त्रण वेणीओ स्वरूप त्रण प्रस्ताव, अनेक ऐतिहासिक विगतोथी समृद्ध, आदि - जयति लसदनन्तज्ञाननिर्भाससान्द्रः; प्रत - वाडीपुर पार्श्वनाथ भण्डार - पाटण, ले.सं. १४८४; पृ. ३७-६९. (पृ. ७० पर पत्रलेखक द्वारा रचित नगरकोटचैत्यपरिपाटी मुद्रित) (आ पत्र मुनि श्रीजिनविजयजी द्वारा ज सम्पादित थईने विस्तृत प्रस्तावना साथे स्वतन्त्र पुस्तक रूपे जैन आत्मानन्द
सभा - भावनगरथी ईस. १९१६मां प्रकाशित थयेल छे.) १३४. स्तम्भतीर्थ(खम्भात) बिराजमान श्रीविजयाणन्दसूरिजी पर द्वारपुर(बारेजा)थी
उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १६९४, संस्कृत, २५२
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श्लोक, अनेक चित्रकाव्योथी अलङ्कृत, पांच अधिकार - १. जिनस्तुतिरूप 'चित्रचमत्कार' नामनो २. गुरुभगवन्तना निवासस्थान-वर्णनरूप 'अलङ्कारचमत्कार' नामनो ३. वृत्तान्तवर्णनरूप 'अनुप्रासचमत्कार' नामनो ४. गुरुवर्णनरूप 'शेषचित्रचमत्कार' नामनो ५. लेखप्रशंसादिरूप 'दृष्टान्तन्यासचमत्कार' नामनो, 'आनन्दलेखप्रबन्ध' नाम, सटिप्पण, आदि - स्वस्तिश्रियां
मन्दिरमिन्दिरालीमिन्दिन्दिरालीमिव यः पिपति; पृ. ७३-८८. १३५. सूर्यद्रङ्ग(-सूरत) बिराजमान श्री विजयप्रभसूरिजी पर योधपुर(-जोधपुर)थी
उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १३१ श्लोक, मेघदूतनुं अनुकरण, 'इन्दुदूत' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीणां भवनमवनीकान्तपङ्क्तिप्रणम्यम्; पृ. ८९-९७, (निर्णयसागर मुद्रणालय द्वारा प्रकाशित काव्यमाला - गुच्छक १४मां मुद्रित तेमज श्रीधुरन्धरसूरिजी कृत 'प्रकाश'
टीका सहित जैन साहित्यवर्धक सभा तरफथी ई.स. १९४६मां प्रकाशित). १३६. देवकपत्तन(-दीव) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर नव्यरङ्ग(
नवरंगाबाद?)थी उपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १३१ श्लोक, 'मेघदूत-समस्यापूर्ति'मय लेख, सटिप्पण, आदि - स्वस्ति
श्रीमद्भुवनदिनकृवीरतीर्थाभिनेतुः; पृ. ९८-१०६. १३७. श्रीजिनसुखसूरिजी पर अकबराबादथी पं. श्रीविजयवर्धनजी द्वारा लिखित,
संस्कृत, १०८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियालङ्कृत ईश्वरोऽग्यः सर्वज्ञ
आनन्दमयः स्वयम्भूः; पृ. १०७-११३. १३८. बीकानेर बिराजमान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी पर मालवद्रङ्गथी उपाध्याय
श्रीराजविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७२७, संस्कृत, १०२ श्लोक, प्रथम ३ श्लोक त्रुटित, ४था श्लोकनी आदि - मणुन्नरूवं सयणाणुकूलं
सुलोयणं राइमइं विहाय; पृ. ११४-११९. १३९. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर घनौघबन्दिर(
घोघा)थी पं. श्रीनयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७१७, संस्कृत, १०२ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियेऽस्तु विमलादिरनन्ततीर्थयात्रा०; पृ. १२०
१२५. १४०. द्वीपबन्दिर(-दीव) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर राजधन्यपुर(
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राधनपुर)थी मुनि श्रीउदयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ८१ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियः सन्ततमाश्रयन्ते यत्सुप्रसादैविषयीकृतं शम्; पृ. १२६
१२८. १४१. श्रीपुरी बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर वांसाथी उपाध्याय श्रीमेघविजयजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, १२५ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीमदमन्दमोद
विनमद्देवेन्द्रमौलिस्फुरन्०; पृ. १२९-१३६. १४२. द्वीप(-दीव)थी मुनि श्रीमेरुविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ७४ श्लोक,
त्रुटित, आदि - स्वस्तिश्रीः क्रमपङ्कजं क्रतुभुजां राजीभिरभ्यर्चितम् पृ.
१५१-१५४. १४३. इलादुर्ग(-ईडर) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर विद्यापुर(-वीजापुर)थी
उपाध्याय श्रीकीतिविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ८७ श्लोक, आदि -
स्वस्तिश्रीर्भजते भवार्णवभयं हर्तुं क्षमाधीश्वरम्; पृ. १५५-१५८. १४४. पत्तन(-अणहिल्लपुर पाटण) बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर सुरपत्तन
(-देवपत्तन)थी उपाध्याय श्रीअमरचन्द्रजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ६३ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीपतगेश्वरध्वजवधूर्यस्य क्रमाम्भोरुहम्; पृ. १५९
१६१. १४५. पुरबन्दिर(-पोरबन्दर) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर स्तम्भतीर्थ(
खम्भात)थी पं. श्रीउदयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७१८, संस्कृत, ५६ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियः केवलसम्पदश्च चक्रित्वलक्ष्म्याः सुषमाः
प्रभाश्च; पृ. १६२-१६५. १४६. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर पं. श्रीलाभविजयजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, १२७ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रीवनिताकटाक्षलहरी
सञ्चारिसच्छङ्खपु०; पृ. १६६-१७१. १४७. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर स्तम्भतीर्थ(-खम्भात)थी
उपाध्याय श्रीकमलविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १४३ श्लोक, विविध अष्टकोथी अलङ्कृत, आदि - स्वस्तिश्रीणां निधिरनवधिस्थामधामाभिरामः;
पृ. १७९-१८४. १४८. पत्तन(-पाटण) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर वर्गवटी(-वगडी)थी
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पं. श्रीलावण्यविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, ९७ श्लोक, आदि -
स्वस्तिश्रीः कमनीयमंहिकमलं कल्याणकारस्करो०; पृ. १९५-१९८. १४९. अहम्मदावाद बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर धीणोजथी पं. श्रीरविवर्धनजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, अपूर्ण, ५४ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियामभयदं
समुपास्महे तमेकाश्रयं जिनपति०; पृ. १९९-२०१. १५०. सूरत बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर विन्धिपुरथी पं. श्रीविनयवर्धनजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, ७५ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियो यान्ति सदाऽ
तिपुष्टिं यदीयविश्वाद्भुतनामजापात्; पृ. २०२-२०४. १५१. कृष्णकोट्ट बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर तिरवाडाथी पं. श्रीविनयवर्धनजी
द्वारा लिखित, सं. १७०३, संस्कृत, ९४ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियं
श्रीजिनराट सिषेवे शान्तीशिता पञ्चमसार्वभौमः; पृ. २०५-२०८. १५२. श्रीविजयसिंहसूरिजी पर विहदिथी पं. श्रीविनयवर्धनजी द्वारा लिखित, सं.
१७०३, संस्कृत, १०४ श्लोक, ६० वखत विभिन्न अर्थोमां सारङ्ग शब्द वापरीने कमलबन्ध, आदि - स्वस्तिश्रियाश्रितपदं विपदन्तकारी भव्या
भजध्वमिह तं महितं यथार्थः; पृ. २०९-२१३. १५३. जेसलमेर बिराजमान श्रीजिनसुखसूरिजी पर रूपावासथी पं. श्रीदयासिंहजी
द्वारा लिखित, संस्कृत, ५७ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियामाश्रयमीशमाश्रयन् सुविश्रुतं जेसलमेरपत्तनम्; पृ. २१४-२१६.
अन्यत्र प्रकाशित १५४. श्रीभानुचन्द्रसूरिजी पर वडउद्र(-वडोदरा)थी मुनि श्रीप्रभाचन्द्रजी द्वारा
लिखित, संस्कृत, गद्य, त्रुटित, उपलब्धनुं आदि - परिस्फुरच्चारुचन्द्रार्कमण्डलसमुच्छलदतिबहल०; सं. - मुनि जिनविजयजी, प्रत - ताडपत्रीय, १ पत्र उपलब्ध; विज्ञप्तित्रिवेणी (प्र. - जैन आत्मानन्द सभा - भावनगर,
ई.स. १९१६)नी प्रस्तावनामां उद्धत. १५५. वटपद्रनगर(-वडोदरा) बिराजमान [?] पर लखायेल, संस्कृत, गद्य,
त्रुटित, उपलब्धD आदि - ०दचिराय युगादिसद्धर्मकर्ममार्गोपलम्भसभय०; प्रत - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर, क्र. ३४२९, १ पत्र; संस्थाना प्रत-सूचिपत्रमा परिशिष्टमां उद्धृत.
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१५६. देवकपाटण(-देवपुर-पाटण) बिराजमान श्रीविजयसेनसूरिजी पर आगराकोट
(-आग्रा)ना श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित, सं. १६६७, शहेनशाह जहांगीरना दरबारी चितारा उस्ताद शालिवाहने दोरेलां, बादशाह जहांगीरे पं. श्रीविवेकहर्षने १२ दिवसनी अहिंसा- फरमान सुपरत कर्यु ते घटनाना आंखे देखेला अहेवाल जेवां चित्रो सहित, राजस्थानी, गद्य, आदि - स्वस्ता श्रीचंतामणापारस्वजण प्रणार्मो श्रीदेवकापाटणा; सं. - मुनि श्रीपुण्यविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, मूळ सचित्र पत्र, प्रका. - जैन साहित्य संशोधक - खण्ड १ - अङ्क - ४ (सं. - मुनि श्रीजिनविजयजी); Ancient Vijnaptipatras (by Hiranand Sastri, Baroda State Press, 1942); Studies in Indian Painting (by C.N. Mehta, 1926); 'अमारिघोषणानो दस्तावेज' (सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी,
भद्रङ्करोदय शिक्षण ट्रस्ट - गोधरा, सं. २०५२). १५७. वीरमपुर(-वीरमगाम) बिराजमान श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजी पर मेदिनीपुर(
मेडता)ना श्रीसङ्घ वती पं. श्रीगुलालविजयजी → मुनि श्रीदीपविजयजी द्वारा लिखित, सं. १८६७, सचित्र, राजस्थानी, गद्य-पद्य, मङ्गल श्लोक बाद आदि - सारद मात मया करी प्रणमी सद्गुरु पाय; सं. - भंवरलाल नाहटा, प्रत - गुजराती तपागच्छसङ्घ ज्ञानभण्डार - कलकत्ता; प्रका. -
महावीर जैन विद्यालय सुवर्ण महोत्सव ग्रन्थ, पृ. ४९-६४. १५८. वगडी बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर उज्जयिनीना श्रीसङ्ग वती उपाध्याय
श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, गुजराती, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञवचनं त्रैलोक्यलोकावनम्; सं. - मुनि जिनविजयजी; प्रका. - जैन
साहित्य संशोधक - खण्ड ३ - अङ्क ३, पृ. २७७-२८१. १५९. गांदलीबन्दिर(-गांघली) बिराजमान श्रीविबुधविमलसूरिजी पर औरंगाबादना
श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित, सं. १८१०, गुजराती, गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञवचनं त्रैलोक्यलोकावनम्; सं. - मुनि जिनविजयजी; प्रका. - जैन
साहित्य संशोधक - खण्ड ३ - अङ्क ४, पृ. ३२६-३३३. १६०. अमदावाद बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सूरतना श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित,
सं. १७२४, गुजराती, गद्य-पद्य, मङ्गल श्लोक बाद आदि - लेख लिखई
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श्रीसङ्घ पूज्य वीनती अवधारो; सं. - मुनि श्रीकान्तिसागरजी, प्रत - तुलापट्टीवाळु जैनमन्दिर - कलकत्ता; प्रका. - जैन सत्य प्रकाश - वर्ष
१३ - अङ्क १. १६१. चूरू बिराजमान श्रीलक्ष्मीचन्द्राचार्य (लोंकागच्छीय) पर रायपुरथी श्रीरघुनाथजी
ऋषि द्वारा लिखित, सं. १८६३, संस्कृत, ३७ श्लोक, आदि - सुधासमानोदर्यवाग्विलासरञ्जितनृपाः श्रीपूज्याः कविवर्यरत्नैः; सं. - मुनि श्रीकान्ति
सागरजी; प्रका. - जैन सत्य प्रकाश - वर्ष १९ - अङ्क १२. १६२. पाटण बिराजमान श्रीविजयसिंहसूरिजी पर ऊनाना श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित, सं.
१७०५, गुजराती, गद्य-पद्य, प्रारम्भिक अंश त्रुटित, उपलब्धD आदि - ...स अक्षर ब्राह्मी लिपिनइ विषइ विराजमान सततालीस सहस्र जोयण झाझेरा थकी०; सं. - मोहनलाल दलीचंद देशाई, प्रका. - जैन युग - वैशाख- जेठ, सं. १९८६, प्राचीन-मध्यकालीन जैनसाहित्यसङ्ग्रह, पृ.
४४७-४४९. १६३. वडोदरा बिराजमान श्रीविजयलक्ष्मीसूरिजी पर खम्भातथी पं. श्रीभपतिविजयजी
द्वारा लिखित, सं. १८२५, गुजराती, गद्य, आदि - स्वस्त श्रीआदिजिन प्रणम्य श्रीवडोदरा नगर महाशुभस्थाने; सं. - मोहनलाल दलीचंद देशाई, जैन युग - भादरवो-आसो, सं. १९८३; प्रका. - प्राचीन-मध्यकालीन जैन
साहित्यसङ्ग्रह, पृ. ४५०-४५१. १६४. दीव बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर सिद्धपुरथी पं. श्रीनयविजयजी
द्वारा लिखित, सं. १७११, संस्कृत, ८४ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियां चारुकुमुद्वतीनां विधुः समुल्लास०; सं. - श्रीयशोदेवसूरिजी, प्रका. - 'स्तोत्रावली', यशोभारती जैन प्रकाशन समिति, ई.स. १९७५ (हिन्दी अनुवाद सहित); सं. - श्रीविजयप्रद्युम्नसूरिजी, प्रका. - 'उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ', महावीर जैन विद्यालय - मुंबई, ई.स. १९९३;
प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, क्र. २७४३१. १६५. भूज बिराजमान अञ्चलगच्छीय श्रीकल्याणसागरसूरिजी पर खम्भातथी
उपाध्याय श्रीदेवसागरजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १२९ श्लोक, चतुःषष्टिदलकमल, मणिहार व. चित्रबन्धकाव्योथी अलङ्कृत, आदि - स्वस्ति
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उपाध्याय श्रीगुण
श्रीरतमोऽभयोऽमितकलोऽचण्डस्त्रिलोकीप्रभु०; सं. सागरजी, प्रका. ‘युगप्रधान दादासाहेब श्रीकल्याणसागरसूरीश्वरजीनी अष्टप्रकारी पूजाओ' पुस्तक, पृ. १-५१ ( गुजराती अनुवाद सहित).
प्रसादपत्री, स्नेहपत्र, समाचारपत्र, कुङ्कुमपत्रिका व. अनुसन्धानमां प्रकाशित
१६६. विक्रमनगर(-बीकानेर) ना प्रधान श्रीआनन्दराम पर बेनातट ( - बीलाडा) थी उपाध्याय श्रीरूपचन्द्रजी द्वारा लिखित, सं. १७८७, संस्कृत - प्राकृत व. भाषाओमां नाटकरूपे लखायेल पत्र, 'नाटिकानुकारि षड्भाषामयं पत्रम्' नाम, आदि स्वस्तिश्रीसिद्धसिद्धान्ततत्त्वबोधविधायिने; सं. विनयसागर, प्रत राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, क्र. २९६०६; अङ्क २७, पृ. १-१२.
म.
१६७. नवीननगर(-जामनगर) स्थित पं. श्रीसौभाग्यविजयजी पर द्वीपबन्दिर (दीव) थी श्रीविजयप्रभसूरिजीनी प्रसादपत्री, संस्कृत, गद्य-पद्य, आदि स्वस्तिश्रीलहरीलसद्धुतिरहो सौभाग्यभाग्यैकभूः; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, क्र. ४३४०८; अङ्क ६१, पृ. २२४-२२६.
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१६८. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ ) थी श्रीविजयप्रभसूरिजीनी प्रसादपत्री, संस्कृत, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रिया युक्तमसेवि यस्य स्वभ्रातृशङ्खाश्रित०; सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर,
-
क्र. ४३४११; अङ्क ६१, पृ. २२७-२२८.
मुनि
१६९. मेदिनीपुर(-मेडता ) थी श्रीविजयप्रभसूरिजीनी उपाध्याय श्रीसौभाग्यविजयजी पर प्रसादपत्री, संस्कृत, गद्य, आदि - स्वस्तिश्रीसङ्गरङ्गत्परिणतिजनिताभङ्गरङ्गप्रसङ्गात्; सं. मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, प्रत श्री धुरन्धरविजयजी - सङ्ग्रह; अङ्क ६१, पृ. २२९-२३०. १७०. स्तम्भतीर्थ(-खम्भात ) थी श्रीज्ञानविमलसूरिजीनी राजद्रङ्ग ( - राजपुर ? ) स्थित उपाध्याय श्रीजितविमलजी पर प्रसादपत्री, संस्कृत, १९ श्लोक, आदि स्वस्तिश्रीर्यत्पदाम्भोजे सदावासमुपेयुषी; सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क
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६१, पृ. २३१-२३२. १७१. बुरहानपुरथी अचलगच्छीय श्रीविद्यासागरसूरिजीनी प्रसादपत्री, संस्कृत, २४
श्लोक, अपूर्ण, आदि - स्वस्तिश्रीगौडिपार्श्वः शतमखप्रणतस्त्यक्तमोहान्धकारः; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – नेमिविज्ञान
कस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. २३३-२३४. १७२. नां(चां?)दसमाग्राम स्थित मुनि श्रीमेघराजजी पर सूरतथी अचलगच्छीय
श्रीविद्यासागरसूरिजीनी प्रसादपत्री, सं. १७७९, संस्कृत, पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीकरसम्भवं जिनपति श्रीसम्भवं संमुदा; सं. - पं. अंकित शाह, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. २३५
२३८. १७३. ब्रनपुर स्थित श्रीनागेश्वर भट्ट पर पं. श्रीवृद्धिविजयजी द्वारा लिखित,
संस्कृत, १९ श्लोक, आदि - स्वस्तीन्दिरागिरां देव्यौ यत्र द्वे अपि तिष्ठतः; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि
ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६१, पृ. २३९-२४०. १७४. देवकपत्तन(-दीव)थी श्रीविजयप्रभसूरिजीनी प्रसादपत्री, सं. १७१५, संस्कृत,
गद्य-पद्य, आदि - स्वस्तिश्रियाऽसेवि यदंहिपद्मं सदा प्रफुल्लं प्रणमत्रिलोकम्; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - हंसविजय जैन
ज्ञानमन्दिर - वडोदरा; अङ्क ६४, पृ. ७८-८१. १७५. मुनि श्रीधर्मविजयजी आदि रचित लेखपद्धति, विविध पत्रांशोनो सङ्ग्रह,
संस्कृत, पद्य, आदि - स्वस्तिश्रीमानजस्रं तिमिरविदलनाद् वासवाद्वैतकारी; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - कैलाससागरसूरि
ज्ञानमन्दिर - कोबा; अङ्क ६४, पृ. ९६-११८. १७६. सोमधरीनगरस्थित [?] पर मुनि श्रीदेवविमलजीनो स्नेहपत्र, संस्कृत, गद्य,
आदि - स्वस्तिक्षीरधिनन्दनां प्रदिशतु श्रीमन्महोक्षध्वज०; सं. -
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; अङ्क ६४, पृ. १२०-१२२. १७७. धलो० नगरथी पं. श्रीलावण्यविजयजीनो स्नेहपत्र, संस्कृत, गद्य, आदि -
स्वस्तिश्रियं सृजतु नेमिजिनेन्द्रचन्द्रः प्राज्यप्रपञ्चित०, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; अङ्क ६४, पृ. १२२.
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१७८. उन्नतपुर(-ऊना)थी श्रीविजयप्रभसूरिजीनी प्रसादपत्री, संस्कृत, गद्य-पद्य,
आदि - स्वस्तिश्रीसुभगोऽपि गोपललनालीलारसे सारसे; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत – नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर;
अङ्क ६४, पृ. १२५-१२६. १७९. वालोचरपुरी(-बालुचर, बंगाळ) श्रीसङ्घमां सं. १९१९ना चातुर्मास दरमियान
मुनि श्रीरतनविजयजी द्वारा श्रीभगवतीसूत्र वंचायानी अनुमोदनानो श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित पत्र, हिन्दी, २२ कडी, आदि - स्वस्तिश्री गुणयुत सदा जगपति जिनवरदेव; सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत -
नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ६५, पृ. ३१६-३१८. १८०. चौमुखजी - नन्दीश्वरद्वीप, तारङ्गा पर सं. १८८०ना महा शुदि ५,
शुक्रवारना दिवसे प्रतिष्ठा निमित्ते तारङ्गागढ अने तेनी आसपासनां गामोना महाजने मागसर वद ११, सं. १८८०ना रोज लखेली अने मुनि श्रीकीतिविजयजीने पाठवेली कुङ्कमपत्रिका, गुजराती, गद्य, आदि - स्वस्त श्रीपालीताणा श्रीआदीजीन प्रणमः, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्र
विजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. ३१९. १८१. पाटणनगरे बिराजमान साध्वीजी श्रीमाणेकश्रीजी पर, महा शुद २, सं.
१८८३ ना दिवसे पोते काढवाना श्रीसिद्धाचलजी तीर्थना अमदावादथी छरी पाळतां सङ्घ तेमज फागण सुद ४, सं. १८८३, ना दिवसे श्रीशत्रुञ्जय पर पोते करावेला देरासरनी प्रतिष्ठा निमित्ते, अमदावादना नगरशेठ श्रीवखतचन्द खुशालचन्दे मागसर वद १, सं. १८८३ना रोज लखेली कुङ्कुमपत्रिका, गुजराती, गद्य, आदि – स्वसत श्रीपाटणा महाशुभ सथांने सरेवे शुभोपमालाओक; सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, प्रत - लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर; अङ्क ६५, पृ. ३२०-३२१.
अन्यत्र प्रकाशित १८२. छांणी स्थित पं. श्रीप्रेमविजयजी पर श्रीविजयलक्ष्मीसूरिजीनी प्रसादपत्री,
गुजराती, गद्य, आदि - ॐ नत्वा भ. श्रीविजयलक्ष्मीसूरिभिलिख्यते पं. श्रीप्रेमविजय ग. वराणां; सं. - मोहनलाल दलीचंद देसाई, प्रका. - जैन युग - भादरवो-आसो, सं. १९८३; प्राचीन-मध्यकालीन जैनसाहित्यसङ्ग्रह, पृ. ४५१.
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२. पत्र मेळवनार व्यक्ति - सूचि (अकारादिक्रमे)
व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क
व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क अक्षयचन्द्रसूरिजी १२२
(सा.) माणेकश्रीजी १८१ (उपा.) अमरचन्द्रजी ५७ मेघराजजी १७२ आनन्दराम प्रधान १६६
(पं.) रत्नविजयजी १२७ कल्याणसागरसूरिजी १२४, १६५ रत्नविजयजी ६१ कीतिविजयजी १८०
रामचन्द्रसूरिजी ५३ गुणरत्नसूरिजी ३०
(पं.) रूपविजयजी ९५ (उपा.) जितविमलजी १७० लक्ष्मीचन्द्राचार्य ५१, ५२, १२३, १६१ जिनचन्द्रसूरिजी ८, ९०, १३८ लक्ष्मीसागरसूरिजी १२५ जिनभद्रसूरिजी १३३
(पं.) लब्धिविजयजी ५८ जिनमहेन्द्रसूरिजी ६
(उ.) लावण्यविजयजी ५६ जिनलाभसूरिजी ५०
लोकहिताचार्य १३२ जिनसुखसूरिजी ४८, ४९, १३७, १५३ विजयचन्द्रसूरिजी ४७ जिनसौभाग्यसूरिजी ९६ विजयजिनेन्द्रसूरिजी ९, ९३, ९४, दानरत्नसूरिजी ११९, १२०
११०-११३, १५७ देवगुप्तसूरिजी १२१
विजयदयासूरिजी १०३ देवसुन्दरसूरिजी २८, २९, ३२, ७८ विजयदानसूरिजी ६२ नयनसुख गणि १२८
विजयदेवसूरिजी १०, १४-१६, ३६, नागेश्वर भट्ट १७३
६५-६८, ७१, ८०, ८९, ९८(पं.) पुण्यधीरजी ५९
१००, १३६, १४१, १४३, १४९,
१५० (सा.) पुण्यश्रीजी १२९
विजयदेवेन्द्रसूरिजी ११४-११७ (पं.) प्रेमविजयजी १८२
विजयधर्मसूरिजी १०४-१०९ भानुचन्द्रसूरिजी १५४
विजयनेमिसूरिजी ३ महीचन्द्रजी ६०
विजयप्रभसूरिजी १, ७, ११, १७-२६,
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व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क
३८-४१, ४३, १०२, १३५, १३९, १४०, १४५, १४६, १४८, १५८,
१६०, १६४
विजयमहेन्द्रसूरिजी ११८
विजयरत्नसूरिजी ४२, ४४, ८२
विजयराजेन्द्रसूरिजी १२६
विजयलक्ष्मीसूरिजी ९२, १६३ विजयसिंहसूरिजी ४, ३७, १४४, १४७,
१५१, १५२, १६२
विजयसेनसूरिजी ५, १३, ३३-३५, ६४,
१३०, १३१, १५६
विजयहीरसूरिजी २, ६३, ७९
विजयानन्दसूरिजी १०१, १३४
व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क
(उपा.) अमरचन्द्रजी १५, १४४
अमरविजयजी ११४
आगमसुन्दरजी २६
व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क
( उपा.) विनयविजयजी ५५ विबुधविमलसूरिजी १५९ विवेकचन्द्रसूरिजी ९१
साधुरत्नसूरिजी ३१ सोमसुन्दरसूरिजी २७
सौख्यविजयजी ९७
सौभाग्यविजयजी १६७
३. पत्र लखनार व्यक्ति - सूचि (अकारादिक्रमे )
१४५
कनकविजयजी १०२ (पं.) कनकरत्नजी ११९ (उपा.) कमलविजयजी २१, १४७
कमलसुन्दरजी ९०
(उपा.) हेमहंस ७०
अनिश्चित व्यक्ति १२, ४५, ४६, ५४,
६९, ७२-७७, ८१, ८३-८८, १४२, १५५, १६८, १६९, १७१, १७४-१७९.
(उपा.) उदयरत्नजी १२०
उदयविजयजी १९, ६०, ९९, १४०, गुणचन्द्रजी ५८
७३
व्यक्ति - पत्रक्रमाङ्क
कर्मचन्द्रजी ५७
(उपा.) कल्याणविजयजी २५, १३१ (उपा.) कीर्तिविजयजी १४३ खुशालविजयजी १२२
(पं.) गुलालविजयजी १५७ गौतमविजयजी ९४
चतुरसागरजी ९३
जयकीर्ति मुनि ५९ (पं.) जयविजयजी १३०
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(पं.) जयशेखरजी ६
माणिक्यचन्द्र मुनि १०० (उपा.) जयसागरजी १३३ मुनिसुन्दरसूरिजी ७८ जिनोदयसूरिजी १३२
मेघचन्द्र मुनि ३५-३७, ५६ जीवणसागरजी १०९
(उपा.) मेघविजयजी ७, ११, १२, १७, (उपा.) जीवनदासजी ५०
७२, १३६, १४१ ज्ञानविमलसूरिजी १७०
मेरुचन्द्र मुनि ४० (पं.) तत्त्वविजयजी ४३, ४४ (पं.) मेरुविजयजी ३४, १४२ (पं.) दयासिंहजी १५३
मोहनविजयजी(१) १०६ (पं.) दर्शनविजयजी ३९, १०१ मोहनविजयजी(२) १०७ (पं.) दीपविजयजी ११५
(उपा.) यशोविजयजी १, ४१, ४२,७१ (पं.) देवविजयजी ५४
रघुनाथ ऋषि ५३, १६१ देवविमलजी १७६
रत्नविजयजी ११७ (उपा.) देवसागरजी १६५
(पं.) रविवर्धनजी १४९ (उपा.) धनविजयजी १६ रंगविजयजी ७४ धनहर्षगणि-शिष्य ५
(उपा.) राजविजयजी १३८ धर्मविजयजी १७५
(पं.) रामविजयजी १२६ (पं.) नयविजयजी २०, ३८, १३९, (उपा.) रूपचन्द्रजी ७५, १६६ १६४
(पं.) रूपविजयजी १०३ पद्मानन्दजी ४५
(पं.) रूपेन्द्रसागरजी ११६ परमानन्दजी ५१, ५२
लब्धिविजयजी ४९ पुण्यहर्ष मुनि २
लब्धिविमलजी ७३ प्रभाचन्द्र मुनि १५४
(पं.) लाभविजयजी १४६ प्रमोदविजयजी ११७
लालविजयजी २२ प्रेमविजयजी ११०
(पं.) लालकुशलजी २३ (पं.) भूपतिसागरजी १६३ (पं.) लावण्यविजयजी १४, ६५, ६६, मगनीराम वरमेचा ९७
६९, ८३, १४८, १७७ मनरूपविजयजी(१) ९
वखतचंद खुशालचंद १८१ मनरूपविजयजी(२) १११ (उपा.) विजयचारित्रजी ४७ (पं.) मनोहरविजयजी ११२ विजयप्रभसूरिजी १६७-१६९, १७४,
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(पं.) विनयविजयजी ११३ विजयलक्ष्मीसूरिजी १८२
(पं.) वृद्धिविजयजी ८२, १७३ विजयलावण्यसूरिजी ३
(पं.) शान्तिसुन्दर गणि २७-३२ (पं.) विजयवर्धनजी १३७ श्रीचन्द्रजी ९१ विजयसिंहसूरिजी १०
सत्यसागरजी १०५ विजयसेनसूरिजी ६३
(उपा.) सत्यसौभाग्यजी ३३ विजयहर्ष मुनि ७९
(उपा.) समयसुन्दरजी ८ विद्याविजयजी १३, ४६
(उपा.) सुजयसौभाग्यजी १२४ (उपा.) विद्याविलास ४८ सुजाणविजयजी १०४ विद्यासागरसूरिजी १७१, १७२ हरिविजयजी १०८ (पं.) विनयवर्धनजी ४, ६७, १५०- हिम्मतविजयजी ११८ १५२
हीरचन्द्रजी ५५, ६८ (उपा.) विनयविजयजी १८, ८०, ९८, (पं.) हीरविमलजी २४
१३४, १३५, १५८
श्रीसङ्घ द्वारा प्रेषित पत्रो
सङ्घ - पत्रक्रमाङ्क
सङ्घ - पत्रक्रमाङ्क
अजमेर १२३ आग्रा १५६ उज्जैन १५८ ऊना १६२ औरंगाबाद १५९ खम्भात १२२ घाणेराव ९४ जयपुर ६१ जोधपुर ९५, १११, ११५, ११७ तारंगागढ १८०
नागोर ११६ नौरंगाबाद १२४ बालुचर (बंगाळ) १७९ बीकानेर ९६ बीजापुर-शाहपुर १०२ मेडता ११३, १२१, १५७ सादडी १०९ सूरत १०१, ११४, १२५, १६० सोजत १०३, ११२
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अनिश्चित ६२, ६४, ७०, ७६, ७७, ८१, ८४-८९, १२७-१२९, १५५, १५९, १६०, १६२, १७९, १८० क्रमाङ्कना पत्रो
४. पत्र मेळवनारनां स्थानोनी सूचि (अकारादिक्रमे)
स्थान - पत्रक्रमाङ्क
स्थान - पत्रक्रमाङ्क
अमदावाद १४, ३५, ४५, ७०, ९५, त्रिकुट्ट नगर १२८ (राजनगर, अहम्मदाबाद) ९८, ११७. दीव (द्वीप) ७, १८, २३, १३६, १४०, ११९, १२०, १२४, १४९, १६०
१४२, १६४, १७४ अमृतसर ५३
देलवाडा २८, ३१ अयोध्यापुरी १३२
देवपुरपाटण (देवकपत्तन) २०, २४, ईडर (-इलादुर्ग) ७५, १४३
१५६ उदयपुर ४४, ६९, १०७, १०८
नागोर (नागपुर) ९७ ऊना (उन्नतद्रङ्ग) ७१
पटियाला ५१ औरंगाबाद (अवरंगाबाद) १०
पाटण (पत्तन) ५, ३७, ५६, ७९, ८०, कृष्णकोट्ट १५१
११३, १२७, १३३, १४४, १४६खम्भात (स्तम्भतीर्थ) ८, २७, १०१, १४८, १६२, १८१ १३४
पालनपुर (-प्रह्लादनपुर) ११६ गांघली १५९
पोरबन्दर (-पुरबन्दिर) १, २२, २५, ३८, चाणस्मा (चांदसमा) ९४, १७२
१४५ चूरु १६१
पेसकपुर १२६ छांणी १८२
फतेपुर सिक्री २ जहन्नाबाद ४९
फलोधि (फलवधि) ५७ जामनगर (-नवीननगर) १६७ बालोतरा (वाल्होतरा) १०४ जालोर ४८
बीकानेर (विक्रमपुर) १२३, १३८, १६६ जूनागढ (जीर्णदुर्ग) १९, २१, २६, ४०, ब्रनपुर १७३ ५५, ७३, १३९
भीनमाल १०६, १०९ जेसलमेर ६, ५२, १५३
भूज १६५
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डिसेम्बर - २०१५
७७
मकसूदाबाद ९६
वीरमगाम १५७ मधूकपुर ६०
वीसनगर ११५ मांगरोळ (मङ्गलपुर) ५८, ११२ शाजापुर (साहजिहांपुर) १२२ मांडवी - कच्छ ५९
शिरपुर (श्रीपुर) ९९ मुंबई ११४
शिरोही (सिंहरोधिका) १५, ९२ मेडता (मेदिनीपुर) ४, ११, ५० शुभनगर ६१ रतलाम १११
श्रीपुरी १४१ राजपुर १२५, १७०
समी ४६ राधनपुर (राजधनपुर, रायधन्नपुर) ९, साणंद ११८
३४, ६७, ८५, ९३, १०५ सिद्धपुर पाटण २९, ३२ रामपुर ४७
सूरत (सूर्यपुर, सूर्यद्रङ्ग) १३, १६, १०३, लखनउ (लक्ष्मणपुर) ९०
११०, १३५, १५० लाडोल १३०, १३१
सोजत (सोज्झित, सोझाली, शुद्धदन्त) वगडी (वर्गवटी) १७, ४१, ४३, १५८ ४२ वडोदरा १५५, १६३
। सोमधरी १७६ वांसवाडा (वंशपालनपुर) ८२
अनिश्चित ३, १२, ३०, ३३, ३६, ३९, ५४, ६२-६६, ६८,७२,७४, ७६-७८, ८१, ८३, ८४, ८६-८९, ९१, १००, १०२, १२१, १२९, १३७, १५२, १५४, १६८, १६९, १७१, १७५, १७७-१८० क्रमाङ्कना पत्रो
५. पत्र लखनारनां स्थानोनी सूचि (अकारादिक्रमे)
स्थान - पत्रक्रमाङ्क
अकबराबाद १३७ अजमेर २८, १२३ अमदावाद १, ५, ३८, ४१, ४२, ४९,
९१, १८१
स्थान - पत्रक्रमाङ्क अहमदनगर (अहिमन्नगर, अहमदानगर)
६५, ६६, ९९ आग्रा १५६ उज्जैन १५८
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________________
७८
उदयपुर ८२
ऊना १६२, १७८
औरंगाबाद १५९
केलवाडा (कपिलपाटक) ३१
खम्भात २, ९८, १२२, १३०, १४५,
१४७, १६३, १६५, १७०
घाणेराव ९४ घोघा (घनौघ) १३९
जयपुर ६१, ९०
जामनगर (नवीननगर ) ८३
जावाल २०
जीरावला (झरिपल्ली) २९
जूनागढ (जीर्णदुर्ग) १६८
जेतारण (जयतारण) ५०
डभोक ७५
तारंगा १८०
तिरवाडा १५१ थराद (स्थिराद्र) ४
थांदला ११०
थांदिलाणा ५७
दीव (द्वीप) १४२, १६७, १७४
देथली (दधिपद्र) ६७
देवपुरपाटण (देवपत्तन, सुरपत्तन ) ८०,
अनुसन्धान- ६८
१४४
दोलताबाद (देवगिरि) ३३
धनपुर १२६ धीणोज १४९
नागोर ११६ नाङलाई १७
नीकावा (नीतिपद्र) २२
नौरंगाबाद (नव्यरंग) १२४, १३६
९६
जोधपुर (योधपुर, जोधांण) ९, १४, ९५, बीजापुर - शाहपुर ४३, ४४, १०२
१११, ११५, ११७, १३५
बुरानपुर (बर्हानपुर) ७, १७१
बोरसद (बहुरसद) ३
पाटण ( पत्तन ) २१, ७३, १३२
पालनपुर २३ पालिताणा १२९
पाली (पल्लियपुर) ६
बाउलुपुर ३२
बारेजा (द्वारपुर) १३४
बालुचर (बंगाळमां) १०२, १७९ बिलाडा (बेनातट) १६६
बीकानेर (विक्रमपुर) ५१, ५२, ५९,
भुज १५
भृगुपुर ३६
मलिकवाहन (सिंधमां) १३३
महेवा ७९
महेसाणा (महिशानक) ८१
मालकोट ८
मालवण १२७
मालवर १३८
मालेपुर २६
मांगरोळ १०७, १०८
मांडवगढ (मंडपदुर्ग) ३७
मीयागाम १२०
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डिसेम्बर - २०१५
७९
मेडता (मेदिनीपुर) १०५, ११३, १२१, विन्धिपुर १५० १५७, १६९
विहदि १५२ रतलाम ९७
वीजापुर (विद्यापुर) ४५, १४३ राजकोट ५५
वीजोवा (विजैवापुर) ९३ राजपुर १६
वीरमगाम ५८ राणकमेरु ३५
वेजलपुर १३ राधनपुर १४०
शाजापुर (साहिज्यपुर) २४ रामदुर्ग २५
शिनोर (सेनापुर) ११८ रामपुर १८
सरोतरा १० रायपुर १६१
सादडी (सप्तपर्णी) ११, ३९, ४०, १०६, रूपावस १५३
१०९ लक्ष्मीनिवास ५३
सिद्धपुर पाटण १९, ८७, १६४ लास २७
सिद्धपुर - लालपुर ४६ वगडी (वर्गवटी) १४८
सोजत ४८, १०३, ११२ वडाली (वटपल्ली) ३४
सूरत (पूषन्पुर) ६०, ९२, १०१, १०४, वडोदरा १५४
११४, ११९, १२५, १३१, १६०, वसहीपुर ५४
१७२ वांसा १४१
अनिश्चित १२, ३०, ४७, ५६, ६२-६४, ६८-७२, ७४, ७६-७८, ८४-८६, ८८, ८९, १००, १२८, १४६, १५५, १७३, १७५-१७७, १८२ क्रमाङ्कना पत्रो
६. पत्रोनी भाषावार सूचि
प्राकृत-पद्य - ५३, ८०
६९,७१-७३, ७५, ७७-७९, ८१, प्राकृत-गद्य - ६
८२, ८४-९०, १३४-१५३, १६१, संस्कृत-पद्य - ४, ५, ७, ८, १०-१७,
१६४, १६५, १७०-१७३, १७५ १९, २०, २२-३९, ४१-४७, संस्कृत-गद्य - १, ३, १८, ४८, ४९, ५०-५२,५४-५८, ६२-६६, ६८, ५९-६१,६७,७४,७६, ८३, १५४,
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________________
अनुसन्धान-६८
१५५, १६८, १६९, १७६, १७७ १६२ संस्कृत-गद्य-पद्य - २१, ४०,७०, ९६, राजस्थानी-पद्य - ९४, ११२, ११३,
१३२, १३३, १६७, १७४, १७८ ११५, ११७, ११८ गुजराती-पद्य - २, ९, ९१, ९८-१०५, राजस्थानी-गद्य - १२१, १५६
१०७, १०८, ११४, ११६, ११८, राजस्थानी-गद्य-पद्य – ९५-९७, ११०,
१२२, १२४, १२७, १२९, १३१ १११, १२३, १५७ गुजराती-गद्य - १२५, १५८, १६३, हिन्दी-पद्य - ९०, १२०, १२८, १७९ १८०-१८२
षड्भाषा - १६६ गुजराती-गद्य-पद्य - ९२, ९३, १०६,
१०९, ११९, १२६, १५९, १६०,
७. पत्रोनी आदिपद प्रमाणे सूचि (अकारादिक्रमे)
आदि
पत्रक्रमाक
ॐ नत्वा भ. श्रीविजयलक्ष्मीसूरिभिर्लिख्यते अनन्तज्ञानदृक्सौख्यवीर्यसंवलितात्मने गुर्जर देस छै वारु तिहां सेहर घणा छै सारु हो। जयति लसदनन्तज्ञाननि ससान्द्रः जयत्यनन्तं परमात्मसङ्गतं तदद्भुतं ज्योति० दीठा गुरु दोलति हूवै प्रह उगते सूर। पार्श्व पार्श्वप्रणुतं प्रणिपत्य निरत्यैक० प्रगटप्रभावी त्रिभुवनिं त्रिभुवनजनसुखकार प्रतिपदवनग्रामराजिते ऋद्धिवृद्धिकृतनिवासे अनेक० । प्रप्यानध्यानसन्धानसम्भवं भवभेदकम् प्रेमें प्रणमुं भारती गणपत गुणगंभीर। मन्दारभासुरतरं द्विजराजराजमानं विमानिपथवद लेख लिखइ श्रीसङ्घ पूज्य वीनती अवधारो। विजयप्रभ वाल्हेसरू रे परघल आंणी प्रेम विवेक कहि सुरनर बहु पदपंकज प्रणमंति श्रिये स वः सप्तमतीर्थनेता यस्यांऽह्रियुग्मश्रयणा०
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डिसेम्बर - २०१५
१०६
aw
०
१३२ ३२
६
१०४ ११२
१५७
श्रीतपगच्छमांहिं दिनकरणसमान भव्यजीवआसा० श्रीनाभेयजिनं सुरेन्द्रमहितं विश्वत्रयोद्योतकम् श्रीमत्पार्श्वजिनेन्द्रपादकमलध्यानैकतानाः सदा श्रीमत्प्रेमपुरस्सरार्हतपदश्रीकन्यया निर्ममे श्रीश्रेयांसि सतां दिशन्तु सततं ते स्वामिनस्तीर्थपाः श्रेयःश्रियं श्रीऋषभो जिनेन्दुर्दद्यादमन्दां स सकल गुणे करि सोहतो सकल देश शिरदार। सकलविमलशाश्वतस्वस्तिमज्ज्योतिरुयोतितम् सधेषु शान्तिं कुरुतां स शान्तिर्नाम्ना गुणेनाऽपि सत्थिसिरिकमलिणीगहणदिणणायगं नेमिजिण० सदध्यात्माधीतिप्रवणमतिभिर्योऽतिपुरुषैः सरसति मुझ सुपसाय करी आपो वचनविलास सहुदेसां सिरसेहरो सोरठ है सिरताज। सारद मात मया करी प्रणमी सद्गुरु पाय। सिवसिरिसुक्खनिहाणं तं जियमाणं सुलद्धनिव्वाणं सुधासमानोदर्यवाग्विलासरञ्जितनृपाः श्रीपूज्याः ...सुहाय श्रीचिंतामणि पासको चेत नमुं स्वस्त श्रीआदिजिन प्रणम्य श्रीवडोदरानगर स्वस्तश्री पाटणा महाशुभ सथांने सरेवे शुभोपमा० स्वस्तश्री पालीतणा श्रीआदीजीन प्रणमः स्वस्ता श्रीचंतामणापारस्वजण प्रणार्मो श्रीदेवकापाटणा० स्वस्ति श्रीगुरु पय नमी वीनतडी मनरंगई रे स्वस्ति श्रीजिनवरतणा पदपंकज प्रणमेवि स्वस्ति श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य श्रीतत्र ग्रामनगरसुभ० स्वस्ति श्रीपार्श्वजीन प्रणम्य श्रीराजनगरे अनेक० स्वस्ति श्रीपासजिण पय प्रणमउ सुखकंद स्वस्ति श्रीमद् वृषभजिन प्रेमइं प्रणमी पाय। स्वस्ति सदा तुझनई हयो श्रीविजयदेवमुणिंद स्वस्ति... लिनानि स्फूर्तिमान् जिनपतिर्विलसन्त्यः स्वस्तिक्षीरधिनन्दनां प्रदिशतु श्रीमन्महोक्ष० स्वस्तिनीरनिधिनन्दनालसल्लोचनाम्बुजविकूणितां०
१६१ १२९ १६३
१८०
१५६ १२२
१३०
१२१
२५
१२८
१२४
१००
३६ १७६
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अनुसन्धान-६८
११७
६
८५
१७७
१४५
२४
७१
१४०
M
ar
N
Or
m
स्वस्तिपद्मा सदा यस्य पदपद्मावशिश्रयत् स्वस्तिश्रियं तनुमतां तनुतां स शान्तिर्यन्नासिका स्वस्तिश्रियं वस्तनुतां स नाथः कृपार्द्रचेता इह शान्ति० स्वस्तिश्रियं श्रीजिनराट सिषेवे शान्तीशिता स्वस्तिश्रियं स शान्तिर्दिशतु सतां यस्य दर्शनं नित्यम् स्वस्तिश्रियं सृजतु नेमिजिनेन्द्रचन्द्रः प्राज्य० स्वस्तिश्रियः केवलसम्पदश्च चक्रित्वलक्ष्म्या: स्वस्तिश्रियः प्रस्तुतवस्तुकर्तुनिःशङ्कमङ्कम् स्वस्तिश्रियः प्रेयस ईश्वरस्य प्रजापतेरप्यभिभूतिहेतुम् स्वस्तिश्रियः सन्ततमाश्रयन्ते यत्सुप्रसादैविषयी० स्वस्तिश्रियः सेवधिरद्वितीयः श्रीपार्श्वसार्वो स्वस्तिश्रिया युक्तमसेवि यस्य स्वभ्रातृशङ्खाश्रित० स्वस्तिश्रिया येन समं विलासाः पूर्णीकृताशा: स्वस्तिश्रियां चन्दिरमन्दिरं सद्देवाधिदेवम् स्वस्तिश्रियां चारुकुमुद्वतीनां विधुः समुल्लास० स्वस्तिश्रियां निधिरयं किल पूर्णचन्द्रः स्वस्तिश्रियां मन्दिरमिन्दिरालीमिन्दिन्दिरालीव यः स्वस्तिश्रियां सन्ततये स देवः श्रीविश्वसेन० स्वस्तिश्रियां सुन्दरमन्दरेण यदीयपादाम्बुज० स्वस्तिश्रियामप्रतिरूपरूपाः सर्वेऽपि देवासुरमर्त्यभूपाः स्वस्तिश्रियामभयदं समुपास्महे तमेकाश्रयम् स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमीश! यमाश्रिता भव्यजना स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमीशमाश्रयन् सुविश्रुतम् स्वस्तिश्रियामाश्रयणीयमूर्तिः सुरद्रुवन्निर्मित० स्वस्तिश्रियाऽन्वितो दद्यान्नो नाभेयः स शं जिनः स्वस्तिश्रियाऽलङ्कृत ईश्वरोऽग्यः सर्वज्ञ आनन्द० स्वस्तिश्रियाऽसेवि यदह्रिपद्म सदा प्रफुल्लम् । स्वस्तिश्रियाऽऽश्रितपदं विपदन्तकारी भव्या भजध्व० स्वस्तिश्रियाऽऽश्रितमनिन्दितमंह्रिपद्मम् स्वस्तिश्रियेऽस्तु विमलाद्रिरनन्ततीर्थयात्रा० स्वस्तिश्रियो यान्ति सदाऽतिपुष्टिं यदीयविश्वा०
१६४
६७ १३४
३४
६८
७२
१४९
१०७
१५२
१३७
१७४
به
ن
१३९
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१२७
१७९
१०५
१४८
३५
१४२
२५
१२५
१७२
स्वस्तिश्री अणहिल्लपुरे महाशुभ स्थान पवित्त स्वस्तिश्री ऋषभजिन नाभिनरेन्द्र मल्हार स्वस्तिश्री गुणयुत सदा जगपति जिनवरदेव स्वस्तिश्री जिन पय नमी श्रीपुर नगर सुथान स्वस्तिश्री प्रणमुं सदा रे पास जिणेसर पाय स्वस्तिश्री सुखसंपदा दायक देव दयाल स्वस्तिश्री: कमनीयमंहिकमलं कल्याणकारस्करो० स्वस्तिश्रीः किलिकिञ्चिताद्भुतसुखान्यास्वादितुम् स्वस्तिश्रीः क्रमपङ्कजं क्रतुभुजां राजिभिरभ्यर्चितम् स्वस्तिश्रीः पदपङ्कजामलयुगं भेजे यदीयं मुदा स्वस्तिश्री: प्रसभं सभासु भगवत्पादाग्रजाग्रन्नखान् स्वस्तिश्री: शान्तितीर्थेशं द्वितीयेन्दुमिवोदितम् स्वस्तिश्रीः श्रयणीयमंहिकमलं श्रान्तेव यस्याऽऽश्रयत् स्वस्तिश्रीः श्रयति स्म यं जिनपतिं त्रैलोक्यलोका० स्वस्तिश्रीकरसम्भवं जिनपतिं श्रीसम्भवं सम्मुदा स्वस्तिश्रीकरिणी यदीयविलसत्पादद्वयी सोमजा स्वस्तिश्रीगौडिपार्श्वः शतमखप्रणतस्त्यक्तमोहा० स्वस्तिश्रीचारुलोचनालोचना चारुचेतश्चाञ्चल्य० स्वस्तिश्रीजयकारकं जिनवरं कैवल्यलीलाश्रितम्। स्वस्तिश्रीजिनमानम्य पञ्चकल्याणनायकम् स्वस्तिश्रीणां निधिरनवधिस्थामधामाभिराम: स्वस्तिश्रीणां भवनमवनीकान्तपङ्क्तिप्रणम्यम् स्वस्तिश्रीणां हेतवे सेतवेऽहं संसाराब्धेर्लब्धि० स्वस्तिश्रीपतगेश्वरध्वजवधूर्यस्य क्रमाम्भोरुहम् स्वस्तिश्रीपार्श्वनाथस्य पदपद्मनखांशवः स्वस्तिश्रीभरभाजनं सुनयनं निःशेषलोकावनम् स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञभवनं त्रैलोक्यलोकावनम् स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञवचनं त्रैलोक्यलोकावनम् स्वस्तिश्रीभवनं मनोज्ञवचनं त्रैलोक्यलोकावनम् स्वस्तिश्रीभृगुकच्छमच्छनगरं नित्यं पुनानं जिनम् स्वस्तिश्रीमतिमातनोतु जगतां गाङ्गेयगेयच्छवि:
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१५८ १५९
WW०
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८४
अनुसन्धान-६८
११९
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/
६
१७५
४१
O
स्वस्तिश्रीमदमन्दनन्दकनमन्नाकीन्द्रचूडामणि० स्वस्तिश्रीमदमन्दमोदविनमद्देवेन्द्रमौलिस्फुरन् स्वस्तिश्रीमद्धर्मफलाद्भुविजये जम्बूद्वीपे राजतो स्वस्तिश्रीमद्भुवनदिनकृद्वीरतीर्थाभिनेतुः स्वस्तिश्रीमद्यदीयक्रमकमलनमन्नाकिकोटीरकोटि० स्वस्तिश्रीमधुपाङ्गनामुखरितं यत्पादपाथोरुहम् स्वस्तिश्रीमन्तमर्हन्तमनन्तातिशयनिलय० स्वस्तिश्रीमन्तमाप्तं परमसमरसीभावमासाद्य सद्यो स्वस्तिश्रीमरुदेवीयं प्रासूत प्रथमं जिनम् स्वस्तिश्रीमानजस्रं तिमिरविदलनाद् वासवा० स्वस्तिश्रीमान् गुरुरपि कविः प्रेमपात्रं प्रकामम् स्वस्तिश्रीमुद्यदुद्यधुसदधिपनमन्मौलिमौलिस्थरत्नः स्वस्तिश्रीरङ्गभूमिर्भवभयतिमिरध्वंसहंसप्रकाशः स्वस्तिश्रीरतमोऽभयोऽमितकलो चण्डस्त्रिलोकीप्रभुः स्वस्तिश्रीरभवद् मरालदयिता नव्या पदाम्भोरुहे स्वस्तिश्रीरमण: करोतु कुशलं श्रीमारुदेवाभिधः स्वस्तिश्रीरमणी मणिदिनमणिः श्यामा मणिमण्डले स्वस्तिश्रीर्जिनपाणिपद्मयुगलं भेजे प्रवालप्रभम् स्वस्तिश्रीर्भजति स्म यस्य वदनाम्भोजन्म विश्वे० स्वस्तिश्रीर्भजते भवार्णवभयं हर्तुं क्षमाधीश्वरम् स्वस्तिश्रीर्यत्पदाम्भोजं भेजे भृङ्गीव सादरम् स्वस्तिश्रीर्यत्पदाम्भोजे सदावासमुपेयुषी स्वस्तिश्रीव्रततीव पादपवरं गौरीव भूतेश्वरम् स्वस्तिश्रीलहरीलसद्द्युतिरहो सौभाग्यभाग्यैकभूः स्वस्तिश्रीवनिताकटाक्षलहरीसञ्चारिसच्छङ्खपु० स्वस्तिश्रीवरनाभिनन्दनजिनम् स्वस्तिश्रीवरवर्णनी प्रियतमं विश्वत्रयैकाधिपम् स्वस्तिश्रीवरशङ्करादि विधियुक् श्रेयस्करं भास्करम् स्वस्तिश्रीविलसन्महामणिकलधौतकलितपादपीठ० स्वस्तिश्रीविश्वसेनान्वयसलिलरुहोद्योतने स्वस्तिश्रीवृषभं जिनेन्द्रवदनं त्रैलोक्यरत्नर्षभम्
V
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२०
१६७ १४६
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डिसेम्बर - २०१५
४०
१०८
9
स्वस्तिश्रीव्रततिस्थिरस्थितिकृतिस्कन्धप्रबन्धोद्धरः स्वस्तिश्रीशं देवाधीशं स्वस्तिश्रीकं स्तोष्येऽस्तेयम् स्वस्तिश्रीशर्मधामा त्रिभुवनविजयी दुष्टकर्मारिवर्मा स्वस्तिश्रीशिवसुखकरण हरण अशिवदुःख दूर स्वस्तिश्रीशैज्रेजधणी ऋषभ वडो महाराज स्वस्तिश्रीश्रेयसाप्त्यै प्रवरहिमभरक्षीरधिक्षीरहीर० स्वस्तिश्रीसङ्ग्रङ्गत्परिणतिजनिताभङ्गरङ्गप्रसङ्गात् स्वस्तिश्रीसदनं जिनेशवदनं स्तौम्यन्वहं सुन्दरम् स्वस्तिश्रीसदनं निरस्तमदनं कल्याणसम्पादनम् स्वस्तिश्रीसदनं प्रकामदलनं संसारविध्वंसनम् स्वस्तिश्रीसदनं भजानि सुभगं श्रीविश्वसेनाङ्गजम् स्वस्तिश्रीसदनं वृषौघवदनं श्रीनाभिभूपाङ्गजम् स्वस्तिश्रीसमुरीकृतोद्यतिसुता... स्वस्तिश्रीसिद्धसिद्धान्ततत्त्वबोधविधायिने स्वस्तिश्रीसुंदरसुगुण सकलकलाभण्डार। स्वस्तिश्रीसुकनी स्वयंवरवरा चञ्चत्कलाशालिनी स्वस्तिश्रीसुखसञ्चयं रचयति स्फारीभवत्संवरो स्वस्तिश्रीसुभगोऽपि गोपललनालीलारसे सारसे स्वस्तिश्रीस्थितिभूतिविच्युतिमयं विश्वं हि विश्वं ध्रुवम् स्वस्तिसासारमसारसंसाराकूपारपारप्राप्तमाप्तो० स्वस्तीन्दिरागिरां देव्यौ यत्र द्वे अपि तिष्ठतः
१२३ १६६
११४
१७८
५२
१७३
* निशानीवाळां आदिपद मङ्गलश्लोक पछीनां छे.
अनुपलब्ध आदिपदवाळा पत्रो १२, २७, ५४, ६२-६५, ६९, ७४, ७६-७८, ८४, ८९, १०९, ११८, १२०, १३८, १५४, १५५, १६२ क्रमाङ्कना पत्रो
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________________
८६
नाम
लेखशृङ्गार
सप्तदलं लेखकमलम्
विज्ञप्तिकालेख
सेवालेख
महादण्डक
लेखराजहंस
चित्रकोशकाव्य
गुरुराजविज्ञप्तिपत्रिका
८. विशिष्ट नाम धरावता पत्रो
सम्पादक
(पं.) अंकित शाह
(मुनि) कल्याणकीर्तिविजयजी
(मुनि) कान्तिसागरजी
(उपा.) गुणसागरजी (मुनि) जिनविजयजी
(मुनि) त्रैलोक्यमण्डनविजयजी
पत्र
(मुनि) धुरन्धरविजयजी
(मुनि) पुण्यविजयजी (आचार्य) प्रद्युम्नसूरिजी
भंवरलाल नाहटा
२
३
५
७
८
१०
११
१३
नाम
महासमुद्रदण्डक
त्रिदशतरङ्गिणी
आनन्दविज्ञप्ति
विज्ञप्तिमहालेख
विज्ञप्तित्रिवेणी
आनन्दलेखप्रबन्ध
इन्दुदूत
मेघदूतसमस्यापूर्ति
अनुसन्धान- ६८
पत्र
३९
७८
९. पत्रोनी सम्पादकवार सूचि (अकारादिक्रमे )
पत्रक्रमाङ्क
१७२
५२, ९६, ९७
१६०, १६१
१६५
१०, १४, १६, १९, २६, १३२ - १५४, १५८, १५९
८१
१३२
१३३
१३४
१३५
१३६
१३-१६, १९-२६, ३३, ३८, ३९, ४६, ४९, ५८, ६०, ६४, ६७, ६९-७४, ७६, ७७, १६९
१०
१५६
१६४
१५७
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________________
डिसेम्बर - २०१५
(आचार्य) महाबोधिसूरिजी
मोहनलाल दलीचंद देशाई (आचार्य) यशोदेवसूरिजी (मुनि) रत्नकीर्तिविजयजी गणि (आचार्य) विजयशीलचन्द्रसूरिजी
१६२, १६३, १८२ १६४ ४ १, ३, ५, ७, ९, १८, ४७, ४८, ५१, ५७, ५९, ७८, ८३, १७६, १७७ ६, ८, ११, १२, १७, ९०, १६६ २७-३२
(महोपाध्याय) विनयसागरजी (पं.) विमलकीर्तिविजयजी गणि (आचार्य) श्रीचन्द्रसूरिजी (साध्वी) समयप्रज्ञाश्रीजी (मुनि) सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय
३५, ३६
३४, ३७, ४०-४५, ५०,५३-५६, ६१-६३, ६५, ६६, ६८,७५, ७९-८२, ८४-८९, ९२९५, ९८-१३१, १६७, १६८, १७०, १७१, १७३-१७५, १७८-१८१ १५५
अज्ञात
१०. सचित्र पत्रो पत्रक्रमाङ्क: ६१, ९१, ९२, ९४, ९५, १०९, १११, ११२, ११३, ११४, ११५, ११६, १२१, १२३, १२४, १२५, १५६, १५७.
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अनुसन्धान-६८
अनुसन्धान : अङ्क ५१ थी ६७ - सूचि
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय अनुक्रम सम्पादनखण्ड
w
१२६
or
१. कृतिओनी अङ्कवार सूचि (१६४) २. कृतिओनी नामवार सूचि ३. कृतिओनी कर्तावार सूचि
- निश्चितकर्तृक
- अज्ञातकर्तृक ४. कृतिओनी सम्पादकवार सूचि ५. कृतिओनी भाषावार सूचि कृतिओनां आदिवाक्योनी सूचि
स्वाध्यायखण्ड संशोधनलेख - अङ्कवार सूचि
- लेखकवार सूचि २. ट्रॅकनोंध
- अङ्कवार सूचि
- लेखकवार सूचि ३. पत्र, माहिती, सूचि, चर्चा व. ४. विहङ्गावलोकन
प्रकीर्णखण्ड १. नवां प्रकाशनोनो परिचय/समीक्षा २. श्रद्धाञ्जलि ३. आवरणचित्र ४. तवारीख
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सम्पादनखण्ड
सूचना : कृतिओनी अङ्कवार सूचिमां आम क्रम राख्यो छे – कृतिक्रमाङ्क, कृतिनाम, कर्ता, सम्पादक, भाषा, स्वरूप, श्लोकप्रमाण, रचनासंवत्, कृतिपरिचय, आदिवाक्य, अन्तवाक्य (अपूर्ण कृति अने गद्यात्मक कृति सिवाय), सम्पादनमा उपयुक्त प्रतनो परिचय, अनुसन्धान अङ्कक्रमाङ्क अने पृष्ठाङ्क. कर्तापरिचयमां → चिह्न शिष्यत्व सूचवे छे. जेमके उपा. रत्नहर्ष → उपा.
श्रीसार = उपा. रत्नहर्षना शिष्य उपा. श्रीसार. - आ पछीनी सूचिओमां फक्त 'कृतिओनी अङ्कवार सूचि'गत क्रमाङ्क ज
नोध्यो छे. तेना आधारे अन्य विगतो जाणी शकाशे. कृतिओनी सम्पादकवार सूचि अने लेखकवार सूचिमां व्यक्तिनामोनी पदवीओ व. ()मां मूक्या छे, जेथी अकारादिक्रम सहेलाईथी थई शके. कृतिओनी भाषावार सूचि प्राधान्यने अनुलक्षीने छे. विज्ञप्तिपत्रोनी अलग सूचि करी होवाथी तेमनो समावेश आ सूचिमां को नथी.
सङ्केतसूचि
क. = कर्ता टीका. = टीका कर्ता
अनु. = अनुवादक विवे. = विवेचक प्र. = प्रकाशक पृ. = पृष्ठक्रमाङ्क पं. = पण्डित / पंन्यास
उपा. = उपाध्याय सा. = साध्वीजी शी.सं. = शीलचन्द्रसूरिसङ्ग्रह ला.द. = लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर
- अमदावाद र.सं. = रचनासंवत् ले.सं. = लेखनसंवत्
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अनुसन्धान-६८
१. कृतिओनी अङ्कवार सूचि १. भक्तामरस्तवावचूर्णिः - क. - पं. श्रीनयविजयजी (उपाध्याय श्रीयशो
विजयजीना गुरु), सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत, गद्य, आदि - प्रणम्य परमानन्दप्रदं निजगुरोः क्रमम्; प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजीसङ्ग्रह, १२ पत्र, कर्ता द्वारा सं. १६१२ मां शुद्धदन्ती(सोजत)मां मुक्तिविजयगणि माटे लखायेल; अङ्क ५२, पृ. १-२२. भक्तामरस्तोत्रावचूरिः - क. - अज्ञात, सं. - श्रीश्रीचन्द्रसूरिजी; संस्कृत, गद्य, ३७६ श्लोक प्रमाण, रुद्रपल्लगच्छीय श्रीगुणाकरसूरि द्वारा सं. १४२६ वर्षे रचित वृत्तिना आधारे रचायेल, आदि - प्रणम्य श्रीयुगादीशं देलुल्लापुरनायकम्: प्रत - शी.सं., १० पत्र, लेखक - श्रीजिनचन्द्रसूरिजी → पं. श्रीहेममन्दिर → पं. श्रीआणन्दकीर्ति → पं. श्रीमेरुधीर → पं.
श्रीडूंगरजी; अङ्क ५२, पृ. २३-४६. ३. पार्श्वनाथ( जेसलमेर )स्तवः - क. - उपा. श्रीरत्नसार → उपा. श्रीरत्नहर्ष
→ उपा. श्रीश्रीसार (खरतरगच्छ - क्षेमकीर्तिपरम्परा), सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, १७ श्लोक, चतुःषष्टिदलकमलबन्ध, खण्डित, आदि - परममङ्गलराजितसञ्चरम्, अन्त- ० भविकसुरमणिबोधिबीजस्य दाता; प्रत -
जैसलमेर ज्ञानभण्डार; अङ्क ५२, ४७-५०. ४. पार्श्वनाथ( जेसलमेर )स्तवः - क. - उपा. श्रीश्रीसार, सं. - म.
विनयसागर; अपभ्रंश, ९ श्लोक, द्वात्रिंशद्दलकमलबन्ध, आदि - श्रीपार्श्व जिनेश्वर प्रणमउ धरि उल्हास, अन्त - प्रणमइ पाय परमेसर तणा; प्रत - जैसलमेर ज्ञानभण्डार; अङ्क ५२, पृ. ५०-५१. द्वादशाङ्गीपदप्रमाणकुलकम् - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनराजसूरिजी
→ श्रीजिनभद्रसूरिजी (सं. १४४९-१५१४) , सं. - म. विनयसागर; प्राकृत, २१ गाथा, आदि - नमिऊण जिणं अंगाण पयपमाणं अहं पयंपेमि, अन्त - लिहियं जिणभद्दसूरीहिं; प्रत - जैसलमेर ज्ञानभण्डार; अङ्क ५२,
पृ. ५२-५७. ६. सर्वजिन-चउतीसअतिसयविनति - क. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर;
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अपभ्रंश, २१ गाथा, तीर्थकरना ३४ अतिशयोनुं वर्णन; आदि - नाभिनरिंद मल्हार मरुदेवि माडिउ उरि रयणु; अन्त - अवरु न कांई इच्छिय ए, प्रत - जैसलमेर ज्ञानभण्डार; अङ्क ५२, पृ. ५८-६२. विगय-निवायताविवरण - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनहर्षसूरिजी → उपा. श्रीआनन्दरत्न → श्रीवच्छराज मुनि, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी; हिन्दी, ५५ कडी, र.सं. १८८७, नन्नीबीबी श्राविकाना आग्रहथी रचायेल, विकृतिजनक द्रव्यो अने तेमनां नीवियातानुं वर्णन; आदि - चरणांबुज गुरुदेव नमी कर समरण मन ध्यांन, अन्त - जैन धर्म सेवो सदा शिवमन्दिर की पाज; प्रत - आत्मानन्द जैन सभा - भावनगर, कर्ता द्वारा सं. १९०८ मां तपस्वी मोहन माटे लिखित; अङ्क ५२, पृ. ६३६९. कोणिकराज-साम्हइयु - क. - पं. श्रीशुभविजयजी → पं. श्रीवीरविजयजी, सं. - तीर्थत्रयी (मुनि तीर्थरुचि-तीर्थवल्लभ-तीर्थतिलकविजयजी); गुजराती, ढाळ ११ कडी २१२ श्लोकप्रमाण २५८, लींबडीनिवासी वोहरा जयराज माटे लींबडीमां सं. १८६४ना देवदीवाळीना दिवसे रचित, औपपातिकसूत्रगत कोणिक राजाओ करेला प्रभुवीरना सामैयाना वर्णननो रसाळ पद्यबद्ध भावानुवाद; आदि - विमल वचनरस वरसती सरसति प्रणमी पाय, अन्त - संघनें शान्ति करायो रे; प्रत - आ.क. पेढी ज्ञानभण्डार - लींबडी, क्र. २१८४, कर्ता द्वारा लिखित प्रथमादर्श; अङ्क ५२, पृ. ७०-९५. तत्त्वविचारप्रकरण - खरतरगच्छीय श्रीजिनपतिसूरिजी → श्रीजिनपाल गणि वाचनाचार्य (सं. १३१० काळधर्म), सं. - हरिवल्लभ भायाणी; गुजराती, गद्य, आदि - नमिउं जिणपासपयं विग्घहरं पणयवंछियत्थपयं; प्रत - सं. १३८४ वर्षे राजभूमि देशवछालसामां श्रीजिनप्रबोधसूरिजी → श्रीआनन्दमूर्ति द्वारा लिखित कोईक प्रतनां ३२०-३२७ पानामांथी सम्पादित;
अङ्क ५३, पृ. १-९. १०. उगतीयं शब्दसंस्कारः - क. - अज्ञात, सं. - श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी;
गुजराती, गद्य, मध्यकालीन शब्दसङ्ग्रह, आदि - आज-अद्य काल्हिकल्ये; प्रत - ऋषि रूपा लिखित; अङ्क ५३, पृ. १०-३७.
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११. थंभण-तीरथमालस्तवन - क. - अञ्चलगच्छीय श्रीपुण्यसागरसूरिजी
→ श्रीमुक्तिसागर मुनि, सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; गुजराती, ६२ कडी, र.सं. १९०५, खम्भातमां स्थित जिनालयोनी विगत, आदि - श्रीसारदा वरदायिनी प्रणमु श्रीगुरुपाय, अन्त - जिननाम भावे सुणो नाम
मंगलीक जय वरी; प्रत - पाटण ज्ञानभण्डार; अङ्क ५३, पृ. ३८-४९. १२. अपभ्रंशदोहा-सवृत्ति (अपूर्ण) - क. - अज्ञात, सं. - सा.
श्रीदीप्तिप्रज्ञाश्रीजी; संस्कृत, गद्य, सिद्धहेम-प्राकृतव्याकरणना अपभ्रंशभाषाविभागमां उदाहरणरूपे उद्धृत दोहाओनी वृत्ति, आदि - ढोल्ला नायकः सामला श्यामलः; प्रत - शी.सं., पत्र २; अङ्क ५३, पृ. ५०
६६.
१३. कुमारसम्भव-बालावबोध (अपूर्ण) - क. - अज्ञात, सं. - हरिवल्लभ
भायाणी; संस्कृत, गद्य, प्रथम ५ श्लोकनो बालावबोध उपलब्ध, आदि -
इह प्रेक्षापूर्वकारिणां महाकवीनां काव्यारम्भे...; अङ्क ५४, पृ. १-६. १४. लेखरत्नाकरपद्धतिः - क. - श्रीहेमचन्द्रसूरिजी, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरिजी; संस्कृत, २३ श्लोक, पत्र/लेख लखवानी विधिनुं वर्णन, आदि - श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा हेमचन्द्रेण सूरिणा, अन्त - लेखकैस्तु विचार्यन्ते स्वामिचित्तानुवर्तिभिः, प्रत - अज्ञात भण्डार, क्र. २७९३, कृतिना छेडे बे
श्लोकनो लेखिनीकल्प छ; अङ्क ५४, पृ. ७-९. १५. पार्श्वनाथ( विजयचिन्तामणि )स्तोत्र - क. - मुनि श्रीपरमानन्दजी, सं.
- उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; गुजराती, मारवाडी, कच्छी व. विविधभाषा, कडी ८५, र.सं. १९५९-१६९८ वच्चे, भुज-कच्छना राओ भारमल्ले बंधावेला राजविहार- स्तोत्र, आदि - त्रिभुवन तारण तीरथ पास चिंतामणि रे, अन्त - श्रीविजयसेनसूरिंदसेवक पण्डित परमाणंदकरू; प्रत - १. ला.द. ३०७७०, पत्र ४, पं. श्रीकमलवर्धन → श्रीरविवर्धन → श्रीऋषिवर्धन लिखित, २. माण्डवी खरतरगच्छ भण्डार, पत्र ३, वाचक श्रीजीवसौभाग्य लिखित, ३. शुभवीर जैन ज्ञानभण्डार - अमदावाद, पत्र २, ४. कोबा - क्र. ३२१६२, ५. २ पत्र, अपूर्ण, ६. पार्श्वचन्द्रगच्छ ज्ञानभण्डार – मांडल
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६.
- क्र. ५८/६४, पत्र ४, सं. १६९८ मां विंहृधि - कच्छमां तत्त्वविजयगणि माटे पं. श्रीसंघविजयजी - पं. श्रीदेवविजयजी द्वारा लिखित; अङ्क ५४, पृ. ७९-१००. रत्नप्रभसूरिस्तोत्रम् – क. – मुनि श्रीदेवतिलक, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, १० श्लोक, आदि - वामेयपट्टे शुभदत्तनामा तच्छिष्यजातो हरदत्तमुख्यः, अन्त - सानन्दं प्रमदेव दीव्यतितरां साम्राज्यलक्ष्मीः स्वयम्; प्रत - सुरेन्द्रनगर जैन सङ्घ ज्ञानभण्डार, पं.
श्रीधीरसुन्दर द्वारा लिखित; अङ्क ५४ पृ. १०७-१०८. १७. ऋषभदेव( हीरविहारविभूषण )स्तवनम् - क. - उपा. श्रीरत्नचन्द्र, सं.
- मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, १३ श्लोक, सुरत - निझामपुरा सं. १६७५ मां निर्मित हीरविहार- स्तवन, आदि - नत्वा श्रीगुरुचरणौ स्मृत्वा श्रीशारदां च वरवरदाम्, अन्त - स्तुतिपथं विनयादवतारितं नमत हीरविहारविभूषणम्; प्रत - आ.क. पेढी ज्ञानभण्डार -
लींबडी; अङ्क ५४, पृ. १०८-१०९. १८. हीरविजयसूरिस्वाध्याय - क. - मुनि श्रीविद्याकुशल, सं. मुनि
श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, ११ श्लोक, र.सं. १६१७, गुरुनामगर्भित, आदि - श्रीजिनपादरतं विधुतारं श्रीनन्दनरूपं धरसारम्, अन्त - विद्याकुशलकीरे सहकारं वन्दे हीरविजयगणधारम्; प्रत -
हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डार - पाटण; अङ्क ५४, पृ. ११०-१११. १९. विजयप्रभसूरिस्वाध्याय - क. - श्रीवीरसागर → मुनि श्रीभावसागर,
सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, १० श्लोक, कमलबन्ध, आदि - श्रीतपगण-पुष्करसवितारं विहितविधिशास्त्रार्थविचारम्, अन्त - भावस्येप्सितसम्पदं च सुपदं देयात् कृपाम्भोनिधिः; प्रत - तपोवन
जैन ज्ञानभण्डार - नवसारी; अङ्क ५४, पृ. ११२. २०. धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति-सटीक - क. - श्रीरत्नसिंहसूरिजी →
श्रीज्ञानसागरसूरिजी, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, १५ श्लोक, आदि - प्रणम्य विज्ञातसमस्तभावं श्रीस्तम्भनाधीशमुरुप्रभावम्, अन्त - व्योमधोमणिभानिभा भगवती श्रीधर्मलक्ष्मीरसौ; प्रत -
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नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, अङ्क ५४, पृ. ११३-११७. २१. रत्नाकरपच्चीसी-भास - क. - उपा. श्रीदीपचन्द्र → श्रीदेवचन्द्रजी,
सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, ३४ कडी, रत्नाकरपञ्चविंशतिकानो गुर्जर पद्यानुवाद, आदि - श्रेयश्रीरतिगेह छो जी सुरनरपती नतपाय, अन्त - संगभक्ती भविक जिवने करो मंगलवृंद ए;
अङ्क ५४, पृ. ११८-१२१. २२. साध्वाचारषट्त्रिंशिका - क. – मुनि श्रीरूपचन्द्र, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरिजी, संस्कृत, ३६ श्लोक, शिखरिणीछन्द, आदि - गृहीत्वा वैराग्यं गृहपरिगृहीत्या विरहितो, अन्त - ०नन्दार्थं प्रार्थ्यमानो निखिलतनुभृतां भूयसे श्रेयसे स्तात्; प्रत - जैन आत्मानन्द सभा - भावनगर; ले.सं.
१९६२; अङ्क ५४, पृ. १२२-१२८. २३. पार्श्वनाथस्तोत्रम् - क. - खरतरगच्छीय जिनराजसूरिजी, सं. - म.
विनयसागर; संस्कृत, ९ श्लोक, मुखनी स्तुति, आदि - आनन्दनं समसुरासुरमानवानां सञ्जीवनं शुभधियां सुरमानवानाम्, अन्त - दृष्टिं प्रसादविशदां मयि सन्निधेहि; प्रत - जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जैसलमेर;
अङ्क ५४, पृ. १२९-१३०. २४. श्रावकद्वादशव्रतचतुष्पदिका - क. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर;
अपभ्रंश, १९ कडी, आदि - वंदवि वीरु भविय निसुणेहु, अन्त - जीवदया विणु धर्म न होइ; प्रत - जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जैसलमेर;
अङ्क ५४, पृ. १३१-१३२. २५. नेमिजिनस्तुति-प्रकाशटीका - क. - चतुर्भुज, टीका. - श्रीरामचन्द्रर्षि
(लोकागच्छीय), सं. - मुनि श्रीशीलचन्द्रविजयजी (डहेलावाळा); संस्कृत, ९ श्लोक, सममात्र छन्द, टीका, र.सं. १९२३, आदि - जय जय यादववंशावतंसजगत्पते!, अन्त - चतुर्गतिभ्रान्तिहरः शिवङ्करः; प्रत -
ले.सं. १९२४, बालुचरनगर; अङ्क ५४, पृ. १४०-१४७. २६. सकलकुशलवल्ली-टीका - क. - श्रीवछराज गणि, सं. - सा. श्रीललित
यशाश्रीजी; संस्कृत, गद्य, आदि - भो भव्यजनाः! स श्रीपार्श्वनाथो भवतां...;
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प्रत - विक्रमपुरमां सं. १८१५मां लिखित; अङ्क ५४, पृ. १४८-१४९. २७. नन्दीश्वरस्तोत्रम् - क. अज्ञात, सं. – श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; प्राकृत, २५ गाथा, आदि - वंदिय नंदियलोयं जिणविसरं, अन्त - इंदाणिरायहाणिसु बत्तीसं सोलस य वंदे; प्रत - श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रह, १ पत्र; अङ्क ५५, पृ. १-३.
-
२८. अजितशान्तिस्तोत्रम् - क. - पं. श्रीमेरुविजयजी → श्रीलावण्यविजयजी, सं. – श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी ; प्राकृत, ४० गाथा, प्राचीन अजितशान्तिस्तोत्रना अनुकरणरूप रचना, आदि मेरुविजयविबुहाणं विबुहाणं जणिअवंछिअसुहाणं, अन्त - कुणउण्णयलावण्णं विहिअमहाणंदलावण्णं; श्री धुरन्धरविजयजी - सङ्ग्रह, २ पत्र; अङ्क ५५, पृ. ४-९. २९. पार्श्वनाथस्तवनम् (अजितशान्तिच्छन्दोरीत्या ) - क. – श्रीविजयदानसूरिजी → उपा. श्रीसकलचन्द्रजी, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत, ३० श्लोक, आदि सिद्धं हृदयनिरुद्धं बुद्धध्यानैर्लताभिरिव वृक्षम्, अन्त गुरुविजयदान भद्रं शान्तिकरं सर्वदा लोके; प्रत .सं. १८२४, मुनि श्रीदानसौभाग्य द्वारा लिखित; अङ्क ५५, पृ. १०-१४. ३०. साधुश्रीपृथ्वीधरकारितजिनभुवनस्तवनम् * - क. – श्रीसोमतिलकसूरिजी, सं. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी संस्कृत, १६ श्लोक, आदि श्री पृथ्वीधरसाधुना सुविधिना दीनादीषूद्दानिना, अन्त - तान्यप्यन्यानि यानि त्रिदशनरवरैः कारिताकारितानि; प्रत श्रीधुरन्धरविजयजी-सङ्ग्रह, पत्र
१; अङ्क ५५, पृ. १५-२२.
३१. पार्श्वनाथसहस्त्रनामस्तोत्रम् - क. अञ्चलगच्छीय श्रीधर्ममूर्तिसूरिजी श्रीकल्याणसागरसूरिजी, सं. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत, १३८
श्रीधुरन्धरविजयजी
श्लोक, आदि - पार्श्वनाथो जिनः श्रीमान् स्याद्वादी पार्श्वनायकः, अन्त - तस्य नाम्नि महालक्ष्मीरेधते सौख्यदायिका; प्रत सङ्ग्रह, पत्र ५, कर्ता द्वारा सुरतमां लिखित; अङ्क ५५, पृ. २३-३५. ३२. शीलोदाहृतिकल्पवल्ली - क. - वडतपागच्छीय श्रीजिनरत्नसूरिजी
* जुओ, अङ्क ६६, पृ. १६२
प्रत
-
-
-
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उपा. श्रीजयसुन्दर → उपा. श्रीसंवेगसुन्दर, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, संस्कृत, १११ श्लोक, आदि - स्तुत्वा वाचमनेकशास्त्रलहिरीगङ्गोपमां तीर्थकृद्, अन्त - श्रीमत्श्रीजयसुन्दराह्वगुरवो जीयासुरुर्वीतले; प्रत -
हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार - पाटण; अङ्क ५५, पृ. ३६-५२. ३३. भोजनविच्छित्ति (कल्पसूत्रटबार्थ-गत) - क. - अज्ञात, सं. - मुनि
श्रीपुण्यश्रमणविजयजी; गुजराती, गद्य, आदि - भलो उत्तंगतोरण मांडवो...; प्रत - ले. सं. १८२७, कोटामां श्रीरत्नसागर मुनि माटे पं. सूरजमल द्वारा
लिखित; अङ्क ५५, पृ. ५३-५८. ३४. सिद्धार्थकृत भोजनविधि - क. - पं. श्रीनेणचन्द्र, सं. - सा.
श्रीसमयप्रज्ञाश्रीजी; गुजराती, गद्य, र.सं. १८४०, द्राफा नगर, आदि - हवे
इहां राजा सिद्धार्थ जे ते पुत्रनुं श्रीवर्धमानकुमार...; अङ्क ५५, पृ. ५९-६७. ३५. सुखडी (वर्धमानरसोई) - क. - अज्ञात, सं. - सा. श्रीसमयप्रज्ञाश्रीजी;
राजस्थानी, चोपाई, २३ कडी, आदि - माय कहै मैरै चगनां मगनां, अन्त - सिद्धारथ कुल उदयो दिणंदा; प्रत - हुकममुनिजी भण्डार - सुरत;
अङ्क ५५, पृ. ६८-७०. ३६. गौतमस्वामिचउपई - क. - मुनि श्रीजयसागर, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरिजी; गुजराती, ११ कडी, आदि - गोयमसामी गुणनिलउ सोहगसिरि उरि हार, अन्त - श्रीजयसागर बोलइ सही; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५५,
पृ. ७२. ३७. सोहमगणधरगहुंली - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
गुजराती, ७ कडी, आदि - चंपानयरी उद्यान सुरतरु महुरि रह्यो री, अन्त - सोहव सरिखें साद घुयलीगीत भणे री; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५५,
पृ. ७३. ३८. षट्त्रिंशिकाचतुष्कगर्भितगूहली - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरिजी; गुजराती, ७ कडी, आदि - चेलणा लावें गूयली गुरु ए रूडा, अन्त - श्रीजिनशासनरीति सजनी ए रूडा; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५५, पृ. ७३-७४.
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३९. सौधर्मगणधरभास - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
गुजराती, ९ कडी, आदि - ज्ञानादिक गुणखांणि राजग्रही उद्यान गणधर लाल, अन्त - गावैं जिनशासन धणी जी; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५५, पृ.
७४-७५. ४०. गौतमभास - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; गुजराती,
४ कडी, आदि - राजग्रही रलीयांमणी जिहां गुणशिल चैत्य सुठांम, अन्त - करो जिनशासन प्रभावना वजडावो मंगलतूर; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५५,
पृ. ७५. ४१. ऋषिमण्डलस्तवः - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
प्राकृत, २७१ गाथा, ४८ महापुरुषोनी स्तुतिरूप रचना, आदि - इसिमंडलस्स गुणमंडलस्स तवनियममंडलधरस्स, अन्त - मज्झ य सिद्धिवसहिं उवविहिंतु; प्रत - शान्तिनाथ जैन ताडपत्रीय ज्ञानभण्डार - खम्भात, क्र. १२०-७,
पृ. ९७-१११, क्र. १३१, पत्र २८; अङ्क ५६, पृ. १-३३. ४२. नेमिजिन( रैवतकाद्रिमण्डन )स्तोत्रम् - क. - श्रीरत्नाकरसूरिजी, सं. -
पं. अमृत पटेल; संस्कृत, १४ श्लोक, आदि - श्रीरैवताद्रिकमलापृथुकण्ठपीठ०, अन्त - ०करगुरुरेष शिवङ्करोऽस्तु नेमिः; प्रत - ला.द.भे.सू.
४७९५०, १ पत्र; अङ्क ५६, पृ. ३४-३८. ४३. अभिनन्दनजिनस्तोत्रम् (श्रीअष्टोत्तरशत संवर'शब्दगर्भितम्) - सावचूर्णि
(स्वोपज्ञ) - क. - श्रीहेमविमलसूरिजी → श्रीसोमविमलसूरिजी (श्रीसौभाग्यहर्षसूरिजी-पट्टधर), सं. - पं. अमृत पटेल; संस्कृत, २८ श्लोक, र.सं. १६५६, सयंबिलनगर, आदि - वाणी वाणीमियं दद्यात् स्वरद्वन्द्वविपर्ययाम्, अन्त - स श्रीसौख्यनिधि सुसोमविमलः प्राप्नोतु पृथ्वीतले; प्रत - ला.द.भे.सू. ६१६१, कर्ता द्वारा लिखित प्रथमादर्श; अङ्क
५६, पृ. ३९-५०. ४४. आदिजिन( सोपारकमण्डन )स्तोत्रम्-सटीकम् - क. - श्रीजयानन्दसूरिजी,
टीका. - उपा. श्रीसुभोग, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, ११ श्लोक, आदि - जयानन्दलक्ष्मीलसद्वल्लिकन्दम्, अन्त -
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जिन! विशदपदाब्जोपासनां देव! देयाः; प्रत – नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, पं. अमृतकुशल द्वारा धौर्यपुरमा लिखित; अङ्क ५६, पृ. ५१
५७.
४५.
सोपाराविज्ञप्तिका - क. - अज्ञात, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, १४ कडी, आदि - कूकणदेसि नयर सोपारउं,
अन्त - घरि बइठां हुइ जात्र स्वभाविइं आवई सुखभण्डारो; प्रत -
नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, अङ्क ५६, पृ. ५८-६४. ४६. श्रीशत्रुञ्जयमुख्यतीर्थस्तुतिटीका - क. - खरतरगच्छीय उपा. श्रीजयसोम
→ उपा. श्रीगुणविनय, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, संस्कृत, गद्य, आदि - श्रीमयुगप्रधानश्रीजिनचन्द्रगुरोगिरा; प्रत - ला.द.भे.सू.
३४७९, ५ पत्र; अङ्क ५६, पृ. ६५-७१. ४७. द्वीपे जम्ब्वाह्वये ये०स्तुतिटीका - क. - खरतरगच्छीय उपा. श्रीजयसोम
→ उपा. गुणविनय, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, संस्कृत, गद्य, आदि - तेभ्यो जिनेभ्यो मामकीनो ममाऽयं...; प्रत - ला.द.भे.सू.
३४७९, ५ पत्र; अङ्क ५६, पृ. ७१-७५. ४८. श्रेयांसजिनचैत्य(टंकशाल - अमदावाद)सम्बन्ध - क. - धर्मघोष गच्छ
- सुराणाशाखा(यतिपरम्परा)ना दोलतचंद → मोतीचंद → भैरवचंद, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; गुजराती, ७ ढाळ १५६ कडी, र.सं. १९१५, शेठ हठीसिंहना धर्मपत्नी हरकुंवर शेठाणी अने पुत्र उमाभाईए करावेला चैत्यनी प्रतिष्ठानुं वर्णन, आदि - श्रीअर्हादिक पंच पद वंदू बे कर जोड, अन्त - संघसहित श्रीजिनगुण गातां नीत नीत मंगलमाला जी; प्रत - ले.सं.
१९१६, बाबा बालगिरजी द्वारा लिखित; अङ्क ५६, पृ. ७६-९५. ४९. गुणकित्त्वषोडशिका-सटीका(स्वोपज्ञ) - क. - खरतरगच्छीय उपा.
श्रीजयसोम → उपा. श्रीगुणविनय → उपा. श्रीमतिकीर्ति, सं. -म. विनयसागर; संस्कृत, १६ श्लोक, र.सं. १६७०-१६७४ वच्चे, पाणिनिव्याकरणगत 'गुण' अने 'कित्त्व'- निरूपण, आदि - सर्वत्रेको गुणः प्रोक्तो विद्भिः सार्वार्द्धधातुके, अन्त - श्रीमद्गुरोः प्रसादेन प्रापञ्चि
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खरतरगच्छ ज्ञानभण्डार जयपुर, क्र. २०६/५५९,
मतिकीर्तिना; प्रत ७ पत्र, पं. श्रीजीवकीर्ति द्वारा लिखित; अङ्क ५६, पृ. ९६-११५. ५०. मुरीबाईतेरमास - क. लोंकागच्छीय शिवराज श्रावक, सं.- रसीला कडीआ; गुजराती, ५२ कडी, र. सं. १८९२, मुरीबाई महासतीजीनुं जीवनचरित्र,
भणे हरखा
आदि - हुं तो नमुं रे सिद्ध नरंद मूकी आंबलो रे, अन्त
शिवराज सायलामां विराजे रे; प्रत - कोडाय जैन महाजन भण्डार; अङ्क
—
-
५६, पृ. ११६- १३०.
५१. पार्श्वनाथ (गोडीजी ) स्तवन - क. - श्रीउदयविजयजी (?), सं. उपा. श्री भुवनचन्द्रजी; गुजराती, १५ कडी, आदि प्रभु सहजइ महिर करउ सदा जी, अन्त - मनमोहन श्रीमहाराज हो; प्रत - श्रीभुवनचन्द्रजी-सङ्ग्रह; अङ्क ५६, पृ. १३२-१३३.
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-
-
५२. पार्श्वनाथ(भिलडीआ ) स्तवन क. मुनि श्रीजीवसौभाग्य, सं. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; गुजराती, २७ कडी, आदि - सरसति सामिन विनवुं रे, अन्त जीवसौभाग्य सेवक जंपि आसा पूरी जिनवरु; प्रत
श्रीभुवनचन्द्रजी-सङ्ग्रह; अङ्क ५६, पृ. १३४ - १३६.
-
५३. सम्भवनाथस्तवन क. - श्रीजिनविजयजी, सं. – उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; गुजराती, ११ कडी, आदि - सुखकारक हो श्रीसंभवनाथ किं साथ ग्रह्यो में ताहरो, अन्त - जिनविजयें हो पारण तुम्ह सेव किं साधन भावई संग्रही; श्रीभुवनचन्द्रजी-सङ्ग्रह; अङ्क ५६, पृ. १३६ -१३७.
प्रत
५४. पञ्चतीर्थीस्तवन – क. - पं. श्रीलावण्यसमय, सं. - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; गुजराती, ६ कडी, आदि - आदि ए आदि जिणेसरू ए, अन्त - भवियण पामे भव पार ए; प्रत श्रीभुवनचन्द्रजी - सङ्ग्रह; अङ्क ५६, पृ. १३७–
१३८.
—
९९
क.
५५. शीतलनाथ(अमरसरमण्डण ) स्तवन श्रीसमयसुन्दर, सं. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; गुजराती, १५ कडी, आदि मोरा साहिब हो श्रीसीतलनाथ की, अन्त ए तवन कीधउ समयसुंदर सुणत जण मोहए; प्रत - श्रीभुवनचन्द्रजी - सङ्ग्रह, अङ्क ५६, पृ. १३९-१४०.
५६. वीतरागस्तवनम् - क. - श्रीचारित्रसुन्दर, सं. – श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
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संस्कृत, १३ श्लोक, स्रग्धराछन्द, आदि - ॐ कारस्फाररूपं परमपदगतं छिन्नमोहप्ररोहम्, अन्त – चारित्रं सुन्दरं मे जिन ! जननहरं देहि त्वद्भक्तियुक्तम्; प्रत - हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार पाटण, क्र. १९१/७३९९; अङ्क ५७,
पृ. १-३.
-
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
५७. आदिनाथनमस्कार क. अज्ञात, सं. अपभ्रंश, ५ कडी, छप्पयछन्द, आदि भत्ति पणमिसु आदिदेव सेत्तुजसिरिमंडण, अन्त मणआणंदिरं मागीइए चरणशरण तुम्ह सामि; प्रत - हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार पाटण, क्र. १९१/७३९९; अङ्क ५७,
-
-
पृ. ४-५.
५८. पार्श्वनाथ( उम्बरवाडि ) प्रशस्ति - क. - तपागच्छीय उपा. श्रीमुक्तिसौभाग्य → श्रीकल्याणसौभाग्य गणि, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, ९ श्लोक, आदि ॐ श्रीपार्श्वजिनेश्वराय जगतां पूज्याय सिद्धात्मने, अन्त कल्याणसौभाग्यगणिर्लिलेख, र.सं. १८५३, पानाचंद माकनी विनन्तिथी रचित; प्रत मोहनलालजी भण्डार सुरत; अङ्क
-
-
५७, पृ. ६-९.
अज्ञात, सं.
५९. श्रुतिकटुश्लोक - सटीक - क. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; संस्कृत, १ श्लोक, आदि - वाश्चारेड् ध्वजधक् धृतोद्वधिपकः; अङ्क ५७, पृ. १०-११.
-
-
६०. समस्यापूर्ति - १ क. अज्ञात, सं. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; संस्कृत, ८ श्लोक, आदि - शरक्षेपे प्रष्टं किमयुतमितिः क्व भ्रमणकृत्, “धनुःकोटौ भृङ्गस्तदुपरि गिरिस्तत्र जलधिः" समस्या; अङ्क ५७, पृ. ११-१३. ६१. समस्यापूर्ति - २ क. - अज्ञात, सं. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; संस्कृत, ५ श्लोक, आदि - श्यामाया आर्जव श्रीप्रथितकृशतनोः, समस्या - "कूपा: सूच्यग्रतः षट् तदुपरि नगरं तत्र गङ्गाप्रवाहः / सूच्यग्रे किल कूपकाः षडभवन् गङ्गान्विता तत्र पू:'"; अङ्क ५७, पृ. ११-१३.
-
६२. जिनस्तुति (द्वात्रिंशद्व्यञ्जनमय) - सटीक (स्वोपज्ञ) - क.
श्रीलक्ष्मीकल्लोल गणि, सं. उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी; संस्कृत, १ श्लोक, आदि - कुखगाऽघं ङचाछाऽज; अङ्क ५७, पृ. १४-१५.
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६३. जिनस्तुति - क. - श्रीगुणचन्द्र, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजस
चन्द्रविजयजी; संस्कृत, १५ श्लोक, "भज गोविन्दं" ना अनुकरणरूप रचना, आदि - भज सर्वशं भज सर्वज्ञ, अन्त - भव्याः प्रणमत सेव्यं रे; प्रत - जैन सङ्घ ज्ञानभण्डार – सुरेन्द्रनगर, श्रीमणिविजयजी माटे सीताराम
गोरमलजी द्वारा लिखित; अङ्क ५७, पृ. १६-१७. ६४. कुमारपाळरास - क. - श्रीसोमतिलकसूरिजी → पं. श्रीदेवप्रभ, सं. -
मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, ४१ कडी, आदि – पढम जिणंदह नमीअ पाय, अन्त - सविहं दुरिहं करिअ छेह सिवपुर पामेइ;
प्रत - आत्मानन्द सभा - भावनगर; अङ्क ५७, पृ. १८-२५. ६५. ओसवालगोत्रकवित्त (त्रुटक) - क. - अज्ञात, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र
सुजसचन्द्रविजयजी; राजस्थानी, ३० कडी, आदि - प्रणतसुरासुरपटलम्;
प्रत - हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार - पाटण; अङ्क ५७, पृ. २६-३०. ६६. नेमिनाथस्तवन - क. - श्रीविजयदेवसूरिजी → उपा. श्रीलावण्यविजयजी
→ श्रीज्ञानविजयजी, सं. - श्रीप्रशमचन्द्रसूरिजी; गुजराती, ३१ कडी, आदि - ब्रह्मधूआ समरं सदा, अन्त - ज्ञानविजय सुहंकरो; प्रत - संवेगीशाला जैन ज्ञानभण्डार - वढवाण, कर्ता द्वारा लिखित; अङ्क ५७,
पृ. ३१-३५. ६७. आदिजिन( कोठारीपोळ - अमदावाद )स्तवन - क. - साध्वी हसतीश्री
→ साध्वी जडावश्री, सं. - रसीला कडीआ; गुजराती, ५ कडी, आदि - रीखवजी आवा गुजर देस रे, अन्त - जय जडावसरी दील धरवा रे;
प्रत - ला.द.; अङ्क ५७, पृ. ३८-३९. ६८. मुनिसुव्रतस्तवन - क. - शेठ बलुभाई, सं. - रसीला कडीआ; गुजराती,
७ कडी, आदि - श्रीसुव्रतजिन साहबा रे, अन्त - पछे आपो मोक्ष सुखना
राज जो; प्रत - ला.द.; अङ्क ५७, पृ. ३९-४०. ६९. हरियाली - क. - श्रीअमृतविजयजी → श्रीरंगविजयजी, सं. - रसीला
कडीआ; गुजराती, ११ कडी, आदि - ओकपुरुष नवलो तुमे, अन्त - निज आतम गुण प्रगटें रे; प्रत - ला.द.; अङ्क ५७, पृ. ४०-४१.
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अनुसन्धान-६८
७०. लोभनी सज्झाय - क. - पं. श्रीभावसागर → श्रीललितसागर, सं. -
रसीला कडीआ; गुजराती, ७ कडी, आदि - लोभ न करीइं प्राणीया,
अन्त - पूगे सयल जगीस; प्रत - ला.द.; अङ्क ५७, पृ. ४१. ७१. विजयजिनेन्द्रसूरिभास - क. - उत्तमचंद → शिवचंद, सं. - रसीला
कडीआ; गुजराती, ५ कडी, र.सं. १८५३, आदि - गाम नगर पूर वीचरता, अन्त - शिवचंद गुरुगुण खांण; प्रत - ला.द.; अङ्क ५७, पृ.
४२. ७२. नवतत्त्वचोपाई - क. - उपा. श्रीभानुचन्द्र → पं. श्रीदेवचन्द्र, सं. -
सा. श्रीदीप्तिप्रज्ञाश्रीजी; गुजराती, २०४ कडी, आदि - सयल जिणेसर प्रणमी पाय, अन्त - भणता गुणतां संपति कोडि; प्रत - चार हस्तप्रत - जेमांनी एक सं. १७६६ मां पोरबन्दरमा ऋषि प्रेमजीओ ऋषि ओधवजी → ऋषि हीरजी माटे लखेली; बीजी सं. १८१६मां राधनपुरमां लखायेली;
अङ्क ५७, पृ. ४३-६६. ७३. नवतत्त्वचउपई - क. - खरतरगच्छीय श्रीधनवर्धनसूरिजी → श्रीआणंद
वर्धनसूरिजी, सं. - सा. श्रीदीप्तिप्रज्ञाश्रीजी; गुजराती, २८९ कडी, र.सं. १६०७, आदि - श्रीअरिहंतनां पदयुगल, अन्त - मुगतिवधू जिम लीलां वरु; प्रत - शेठ डोसाभाई अभेचंद जैन सङ्ग ज्ञानभण्डार - भावनगर, पत्र ७, ले.सं. १६०८, लेखक - श्रीदेवगुप्तसूरिजी; अङ्क ५७, पृ. ६७
९२. ७४. पार्श्वनाथ( स्तम्भनक )स्तोत्रम् - क. - अज्ञात, सं. - पं. अमृत पटेल;
संस्कृत, १५ श्लोक, वसन्ततिलका छन्द, आदि - गीर्वाणचक्रनरनायकवृन्दवन्द्यम्, अन्त - ते प्राप्नुवन्ति कमलाकलितानि देव!; प्रत
- ला.द.भे.सू. १५९३६, पत्र १; अङ्क ५८, पृ. १-४. ७५. पार्श्वनाथ( स्तम्भनक)स्तोत्रम् - क. - अज्ञात, सं. - पं. अमृत पटेल;
संस्कृत, १० श्लोक, भुजङ्गप्रयात छन्द, "मुदा स्तौमि पार्वं जिनं स्तम्भनेशम्" ओ ध्रुवपङ्क्ति, आदि - जनानन्दमाकन्दसच्चैत्रमासम्; प्रत - ला.द.भे.सू. ५८०९/१, पत्र १; अन्त - क्रमाच्च जायेत भवाद् विमुक्ति; अङ्क ५८, पृ. ४.
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७६. नवग्रहस्तम्भनकपार्श्वदेवस्तवः - सावचूरिः - क. - अज्ञात, सं. -
पं. अमृत पटेल; संस्कृत, १२ पद्य, स्तम्भनपार्श्वनाथ अने नवग्रहोनी एकसाथे स्तुति करतुं द्विसन्धान काव्य, आदि - जीयाज्जगच्चक्षुरपास्तदोषः, अन्त - मनश्चकोरप्रमदं तनोतु वः; प्रत - ला.द. विद्यामन्दिरगत -
जिनशतक-काव्यनी प्रतना अन्ते लखायेल; अङ्क ५८, पृ. ५-१४. ७७. रत्नाकरपञ्चविंशतिका - टीका अने स्तबकार्थ सहित - क. -
श्रीरत्नाकरसूरिजी, टीका - तपगच्छपति श्रीविजयसेनसूरिजी → श्रीकनककुशल गणि, स्त. - अज्ञात, सं. - सा. श्रीसमयप्रज्ञाश्रीजी; काव्य अने वृत्ति संस्कृत, टबार्थ गुजराती, श्लोक २५, वृत्ति ग्रन्थान ३०० श्लोक, स्तबक ग्रन्थाग्र ११० श्लोक, आदि - काव्य - श्रेयःश्रियां मङ्गलकेलिसद्म!, वृत्ति - हे नरेन्द्रदेवेन्द्रनताङ्घि० । नरेन्द्राश्चक्रवर्त्यादयो०, टबो - श्रेयःश्रियां - कल्याणलक्ष्मी, अन्त - काव्य - श्रीरत्नाकर! मङ्गलैकनिलय! श्रेयस्करं प्रार्थये; प्रत - शी.सं., ले. सं. १८१०, संघवी फतेचंद
सूरसंघ द्वारा पालनपुरमां लिखित; अङ्क ५८, पृ. १५-३२.. ७८. प्रश्नोत्तरशतम् - सटीकम् - क. - श्रीजिनवल्लभसूरिजी, टीका. -
अज्ञात, सं. - मुनि श्रीरत्नकीर्तिविजयजी, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, १५८ श्लोक, प्रहेलिकामय रचना, आदि - क्रमनखदशकोद्यद्दीप्तदीप्तिप्रतानैः, अन्त - प्रणयविशदं कृत्वा धृत्वा प्रसादलवं मयि; प्रत -
शी.सं., ले.सं. १६१८; अङ्क ५८, पृ. ३३-७९. ७९. अनेकान्ततत्त्वमीमांसा - क. - श्रीविजयनेमिसरिजी, सं. - मनि
श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, ४ अध्याय १६ पाद ३४७ सूत्रो, आदि - अथाऽनेकान्ततत्त्वमीमांसा, अन्त - तस्मादनेकान्तात्मकत्वमेव कान्तम्;
अङ्क ५८, पृ. ८०-९७. ८०. गङ्गातैलीदृष्टान्तः - क. - अज्ञात, सं. - मुनि श्रीरत्नकीर्तिविजयजी;
संस्कृत, गद्य, आदि - सत्यमेतत् देवानुप्रियाः! यद् यूयं वदथ...; अङ्क
५८, पृ. ९८-१००. ८१. सच्चायिकाबत्तीसी - क. - उपकेशगच्छीय मुनि श्रीजयरत्नजी, सं. -
म. विनयसागर; राजस्थानी, कडी ३३, र.सं. १७६४, श्रीदेवगुप्तसूरिजीनी
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आज्ञाथी रचित, आदि - मन सुध ज्यां महिर करै माता, अन्त - कीर्ति
श्रीसाचल मातकइ; अङ्क ५८, पृ. १०१-१०४. ८२. पार्श्वनाथ( कृष्णगढमण्डन )स्तवन - क. - श्रीतेजविजयजी →
श्रीशान्तिविजयजी → श्रीरत्नविजयजी; सं. - म. विनयसागर; गुजराती, ७ कडी, र.सं. १९०६, आदि - रे प्रभु तार चिन्तामणि पासजी, अन्त
- बडवेगो दीजो सिवराज रे; अङ्क ५८, पृ. १०५-१०६. ८३. ऋषभदेव( रत्नपुरी-रतलाममण्डन )स्तवन - क. - श्रीरत्नविजयजी,
सं. - म. विनयसागर; गुजराती, ६ कडी, र.सं. १९०२, आदि - ऋषभ जिनेन्द्र दयाल मया करो, अन्त - आसा पूरो मुझ तणि हो लाल; अङ्क
५८, पृ. १०६-१०७. ८४. संवेगकुलकम् - क. - श्रीधनेश्वरसूरिजी, सं. - म. विनयसागर; प्राकृत,
१५ गाथा, आदि - गुरुवेयणविरहेण व जिणसासण०, अन्त - सिवसुक्ख धणेसरो होसि; प्रत - जैसलमेर भण्डार, क्र. १३२४/४२, पत्र २७०-२७२,
ले.सं. १२४६; अङ्क ५८, पृ. १०८-११०. ८५. नवतत्त्वचोपाई - क. - लोंकागच्छीय श्रीतेजसी → श्रीकान्ह → पण्डित
दामजी → श्रीवरसिंह, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, १२७ कडी, सं. १७६६मां कालावडमां गोकल गांधीनी विनन्तिथी रचित, आदि – पास जिनेसर प्रणमी पाय, अन्त – दाम मुनि शिष्ये चितमें धरी; प्रत - संवेगीशाळा भण्डार - वढवाण, कर्ताना शिष्य वालजी ऋषि
द्वारा रचनाना स्थळ-वर्षमां ज लिखित; अङ्क ५८, पृ. १११-१२१. ८६. पार्श्व( करहेटक)स्तवः - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनभद्रसूरिजी → वाचक
श्रीमेरुनन्दन, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, ५ श्लोक, आदि - आनन्दभन्दकुमुदाकरपूर्णचन्द्रम्, अन्त - ध्यानं तवाऽस्ति यदि महृदि मेरुधीरम्;
प्रत - जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जेसलमेर; अङ्क ५९, पृ. १-२. ८७. वीसविहरमाणस्तवनम् - क. - वाचक श्रीमरुनन्दन, सं. - म. विनयसागर;
अपभ्रंश, २५ कडी, आदि - भत्तिसरोवर ऊलटिउ जागी य हियइ जगीस, अन्त - वसउ मेरुनंदणिहिं जिम महु मणि सुह फलकार; प्रत -
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जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जेसलमेर; अङ्क ५९, पृ. २-४. ८८. नेमिनाथस्तवन (ज्ञानपञ्चभीगर्भित) - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनवर्धन
सूरिजी → श्रीकीतिरत्नसूरिजी, सं. - म. विनयसागर; अपभ्रंश, १३ कडी, आदि - वंदामि नेमिनाहं पंचमगइकुमरि०; अन्त - घउ सिद्धिसंपइ देव जंपइ कीर्तिराय मणोहरो; प्रत - अभय जैन ग्रन्थालय - बीकानेर, क्र.
९९३५; अङ्क ५९, पृ. ७-८. ८९. चत्तारिअट्ठदस-षडाः - क. - श्रीकीर्तिरत्नसूरिजी, सं. - म. विनयसागर;
प्राकृत, ७ गाथा, आदि - चत्तारि जिणवीसं ठाणेसु सिद्धिसंगमणुपत्ता, अन्त - रइआ इमेत्थ अत्था खरतरगणजलधिरयणेण; प्रत - अभय जैन
ग्रन्थालय - बीकानेर, क्र. ९६२५; अङ्क ५९, पृ. ९. ९०. शान्तिनाथ-अन्यार्थस्तुतिः - क. - श्रीकीर्तिरत्नसूरिजी, सं. - म.
विनयसागर; संस्कृत, ४ श्लोक, वानगीओनां नामगर्भित, आदि - वरसोलां
भला गूंदबडा, अन्त - सोपारी सुथितं क्रियात्; अङ्क ५९, पृ. ९-१०. ९१. पार्श्वनाथ( बृहच्छ्यामल )स्तुत्यष्टकम् – क. - पूनमीयागच्छीय श्रीललित
प्रभसूरिश्री → श्रीभावप्रभसूरिजी, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, ९ श्लोक, र.सं. १७७८, आदि - श्रीमत्कान्तिकलापमङ्गललस०, अन्त - कथयति भद्रं सूरिभावप्रभाख्यः; प्रत - हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डार
- पाटण; अङ्क ५९, पृ. १४-१५. ९२. पत्तनस्थजिनालयकवित्त - क. - श्रीभावप्रभसूरिजी, सं. - मुनि
श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, ५ कडी, आदि - कुमारपाल भूपाल दयाल जैनें, अन्त - धन मानव जैनें सुमारगे धन खरचीनो; प्रत
- हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डार - पाटण; अङ्क ५९, पृ. १६. ९३. इन्द्रनन्दिसूरिस्वाध्याय - क. - पं. श्रीलावण्यसमय, सं. - मनि
श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, ५१ कडी, आदि - दिउ सरसती वाणी अमीय समाणी, अन्त - चतुर्विध श्रीसंघ जयकरु ए; अङ्क
५९, पृ. २१-२४. ९४. इन्द्रनन्दिसूरिभास - क. - पं. श्रीलावण्यसमय, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र
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सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, १४ कडी, आदि - सरसति सरसति सामणि सेवीइ ए, अन्त द्रूअ नितां जां लगई; अङ्क ५९, पृ. २५-२६. ९५. भूषणनाभगर्भित गहूली - क. मेरू (?), सं. मुनि श्रीसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयजी; गुजराती, ९ कडी, आदि - कुंकुम केसर घोली रोली कचोली भरी रे, अन्त मेरु कहइ गुरुजी नमी आतमा तारो रे; प्रत नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि जैन ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ५९, पृ. २७–२९. ९६. प्रश्नोत्तरवाक्यरत्नसङ्ग्रहः - क. - अज्ञात, सं. - सा. श्रीचारुशीलाश्रीजी; गुजराती, गद्य, आदि - जगतमां ग्राह्य शुं छे ?; प्रत आत्मानन्द जैन सभा भावनगर, ले.सं. १९५९; अङ्क ५९, पृ. ३०-३४. ९७. सर्वज्ञसिद्धिः - क. श्रीविमलसूरिजी अजितसिंहसूरिजी, सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - मीमांसाविदः सर्वविदः प्रतिषेधार्थ०; प्रत - शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ३८-४०.
1
-
९८. सर्वज्ञाभावनिराकरणम् – क.
अज्ञात, सं. - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डन
विजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि इह केचिदहङ्कारशिखरिशिखामध्यमध्यारूढाः; प्रत शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ४०-४३.
१००. सर्वज्ञसिद्धिः
-
९९. सर्वज्ञव्यवस्थापनावाद:- क. अज्ञात, सं. - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - इह केचित् त्रिभुवनोदरविवरवर्ति०; प्रत
शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ४३-४५.
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-
क.
संस्कृत, गद्य, आदि शी.सं.; अङ्क ५९, पृ.
१०१. धर्मस्थापनस्थलम् - क.
अज्ञात, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी;
संस्कृत, गद्य, आदि आधारो यस्त्रिलोक्या जलधिजलधरा०; प्रत शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ५१-५५.
शी.सं.; अङ्क
१०२. वागर्थसंस्थापनम् - क. अज्ञात, सं. - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि – अनुदिनमखर्वसर्वानवद्य०; प्रत ५९, पृ. ५६-५९.
-
अज्ञात, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी;
-
इह केचिदज्ञानमहामहीधरभराक्रान्तचेतसः; प्रत
४६-५१.
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डिसेम्बर
१०३. अग्निशीतत्वस्थापनावादः – क.
-
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अज्ञात, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डन
विजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - शीतो वह्निर्दाहकत्वात्, प्रत - शी. सं.;
अङ्क ५९, पृ. ५९-६२.
१०४. प्रदीपनित्यत्वव्यवस्थापनम् - क.
अज्ञात, सं. - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - अथैकान्तानित्यतया परैरङ्गीकृतस्य;
प्रत
शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ६२-६३.
१०५. व्योम्नो नित्यानित्यत्वव्यवस्थापनम्
-
क.
अज्ञात, सं.
मुनि
श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि एवं व्योमाऽपि उत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वाद्; प्रत शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ६३-६४.
-
-
—
-
१०६. प्रमाणसाधनोपायनिरासः - क. अज्ञात, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - शुभवद्भिर्भवद्भिरायुष्मद्भिः स्वाभिमतसाधनाय; प्रत शी.सं.; अङ्क ५९, पृ. ६४.
1
१०७
-
-
१०७. वज्रशूचीप्रकरणम् - क. - बौद्धाचार्य अश्वघोष, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि वेदाः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणम्; प्रत शी.सं. (क्र. ९७-१०७नी एक ज प्रत); अङ्क ५९, पृ. ६४-७१. १०८. देवसुन्दरसूरिविज्ञप्ति :- १ क. पं. श्रीशीलशेखर गणि, सं. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; प्राकृत, १० गाथा, आदि - गोअम सुहम्म जंबू पभवो सिज्जंभवा, अन्त तह अम्ह मणं तुमं सरइ; प्रत
विजयगच्छ
-
-
ज्ञानभण्डार राधनपुर; अङ्क ६२, पृ. १-२.
१०९. देवसुन्दरसूरिविज्ञप्ति:- २ क. पं. श्रीशीलशेखर गणि, सं. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी ; प्राकृत, १५ गाथा, आदि - पाल्हणसीहकुलंबरहंस!, अन्त - भत्तिचंगिहिं ते भवई नर निव्वया; प्रत - विजयगच्छ ज्ञानभण्डार राधनपुर; अङ्क ६२, पृ. ३-४.
११०. मण्डपीयसङ्घप्रशस्तिः * - क. - श्रीज्ञानसागरसूरिजी, सं. – मुनि श्रीसुयश - चन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी, संस्कृत, ४० श्लोक, शणगारवसही - गिरनारमां माण्डवगढना श्रीसङ्घे बनावेल मण्डपनी प्रशस्ति, आदि - स्वस्तिश्री
* जुओ, अङ्क ६३, पृ. १५५
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अनुसन्धान-६८
विजयोद्वहः सुविदितः, अन्त - प्रासादे विमलेशस्य जयताज्जगतीनुतः; प्रत
- हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर - पाटण, २ पत्र, अङ्क ६२, पृ. ५-१०. १११. सीमन्धरस्वामीस्तवन - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनकुशलसूरिजी >
उपा. श्रीविनयप्रभ, सं. - म. विनयसागर; अपभ्रंश, २१ कडी, आदि - नमिसुरअसुरनरइंदवंदियपयं, अन्त - तात भव मे बोधिबीजह दायगो; प्रत
- जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जेसलमेर; अङ्क ६२, पृ. ११-१८. ११२. नेमिजिनस्तव (२१ स्थान गर्भित) - क. - उपा. श्रीविनयप्रभ, सं. -
म. विनयसागर; अपभ्रंश, ३२ गाथा, आदि - सयलजगललिय लावण्णसोभावहं, अन्त - बोधिबीजं देहि वंछिय पूरउ; प्रत - जिनभद्रसूरि
ज्ञानभण्डार - जेसलमेर; अङ्क ६२, पृ. १८-२३. ११३. अव्ययार्थसङ्ग्रहः - क. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर, डॉ. नारायण
शास्त्री कांकर; संस्कृत, गद्य, आदि - स्वरादिरव्ययं चादरसत्त्वे; प्रत -
जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार - जेसलमेर; अङ्क ६२, पृ. २४-४४. ११४. पुष्पाञ्जलिस्तोत्रम् - क. - उपा. श्रीशिवचन्द्र, सं. - म. विनयसागर;
संस्कृत, १० श्लोक, जय जय हे जिन!० ए ध्रुवपङ्क्ति, आदि - केवललोकितलोकालोक०, अन्त - जगदानन्दन! वामानन्दन! विश्वपते!;
अङ्क ६२, पृ. ४५-४६. ११५. चिदानन्दलहरी - क. - उपा. श्रीशिवचन्द्र, सं. - म. विनयसागर;
संस्कृत, ४४ श्लोक, पार्श्वनाथनी स्तुतिरूप काव्य, अपरनाम - अध्यात्मचत्वारिंशिका; आदि - यकः संसाराम्भोनिधितरण०, अन्त -
भक्तिमनसां जननिवामानन्दनः; अङ्क ६२, पृ. ४७-५३. ११६. सिद्धपदवृद्धस्तवन - क. - उपा. श्रीशिवचन्द्र, सं. - म. विनयसागर;
गुजराती, ७७ कडी, र.सं. १८८९, आदि - नेम जिणंद जयकारी रे लाला, अन्त - शिवचन्द्र पाठक तवनगभित सिद्धना गुण गाय ए; अङ्क ६२,
पृ. ५३-६१. ११७. ज्ञानस्तव - क. - उपा. श्रीशिवचन्द्र, सं. - म. विनयसागर; गुजराती,
७ कडी, आदि - ज्ञान निरंतर वंदीयै ज्ञान, अन्त - नित पाठक शिवचंद
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सनेही; अङ्क ६२, पृ. ६१-६२. ११८. स्तवचतुर्विंशतिका (५मा तीर्थङ्करना स्तवना ११मा श्लोक सुधी प्राप्त)
- क. - श्रीरामचन्द्रसूरिजी, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, दरेक स्तवना १३-१३ श्लोक, आदि – पादाः पुष्णन्तु पुण्यानि; प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, १ पत्र; अङ्क ६३, पृ.
१-६. ११९. चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् (भाषात्रयसमम्) - सावचूरि - क. -
श्रीरत्नशेखरसूरिजी, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत-प्राकृत २५ श्लोक, आदि - अमरगिरिगरीयोमारुदेवीयदेहे, अन्त - केवलकला लीलायते
मय्यपि; अङ्क ६३, पृ. ९-१६. १२०. पार्श्व( नवखण्ड)स्तवनम् - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखरसूरिजी,
अव. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, ८ श्लोक, आदि - जय प्रभो! त्वं नवखण्डपृथ्वी०, अन्त - स्फुरद्यशाः शाश्वतसम्पदेऽस्तु वः;
अङ्क ६३, पृ. १६-१८. १२१. पार्श्वजिनस्तवनम् (नवग्रहस्तुतिगर्भम्) - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखर
सूरिजी, अव. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, १० श्लोक, आदि - पार्श्वः श्रियेऽस्तु भास्वान्, अन्त - अशुभाः स्युर्ग्रहाः शुभदाः;
अङ्क ६३, पृ. १९-२१. १२२. तीर्थद्वयस्तवनम् - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखरसूरिजी, अव. -
अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, ५ श्लोक, आदि - श्रीअर्बुदाद्रिमुकुट०, अन्त - देयाः श्रीसोमसुन्दरस्वपदम्; अङ्क ६३, पृ.
२१-२२. १२३. कीर्तिकल्लोलिनीकाव्यम् - क. - पं. श्रीहेमविजयगणि, सं. - अम्बालाल
प्रेमचन्द शाह, म. विनयसागर, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, 'प्रताप', 'कीति' अने 'सौभाग्य' ए त्रण अधिकार, २०७ श्लोक, श्रीविजयसेनसूरिजीना गुणोना वर्णननुं काव्य, आदि - ऐन्द्रं वृन्दममन्दमोदमभजत्, अन्त - भवतु सुगहना गाह्यमाना चिरश्रीः; प्रत -
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१. विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमन्दिर - आग्रा २. भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट - पूना ३. सागर उपाश्रय - पाटण ४. जैन आनन्द पुस्तकालय - सुरत ५.
पूनमसागरसूरिसङ्ग्रह - कोटा; अङ्क ६३, पृ. २३-६३. १२४. 'नालिकेरसमाकाराः' इति वाक्यस्य चत्वारिंशदर्थाः - क. - उपा.
श्रीयशोविजयजी(?), सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, गद्य, आदि - हे नालिकेर! समा- सज्जना:०; प्रत - साहित्यमन्दिर -
पालिताणा; अङ्क ६३, पृ. ६४-६९. १२५. हर्मन जेकोबीना पत्रनो उत्तर - क. - पं. श्रीगम्भीरविजयजी, सं. -
मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, आचाराङ्गसूत्रगत मांसभक्षणपरक पाठना तात्पर्य सन्दर्भे, आदि - ॐ अज्ञानध्वान्तध्वंसनांशुमालिनम्;
प्रत - शी.सं.; अङ्क ६३, पृ. ७०-७६. १२६. श्रेयांसनाथस्तवन - क. - श्रीविजयाणन्दसूरिजी → श्रीअमरविजयजी,
सं. - सा. श्रीज्योतिर्मित्राश्रीजी; गुजराती, ५८ कडी, सं. १७०६मां खम्भातमां श्रीविजयराजसूरिजीना हस्ते सुवीर सोनीओ करावेली प्रतिष्ठा सन्दर्भे सं. १७१४मां रचित, आदि - सकल जिणेसर चित्त धरी, अन्त - सदा संघ मंगल करउ; प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, क्र. ४०९६;
अङ्क ६३, पृ. ७७-८५. १२७. ऋषभदेवस्तवन - क. - अज्ञात, सं. - सा. श्रीज्योतिर्मित्राश्रीजी;
गुजराती, ९ कडी, माता मरुदेवानी विरहव्यथानुं वर्णन, आदि - माताजी मरुदेवा रे भरतने, अन्त - तुझ मातलडी नीज वातलडी होय जो; प्रत - शी.सं., पाटणमां नानालाल हरीनंद द्वारा लिखित; अङ्क ६३, पृ. ८६
८७. १२८. पार्श्वनाथ( स्तम्भन-सेरीसा-शवेश्वर )स्तवनम् - क. - तपगच्छपति
श्रीहीरविजयसूरिजीनी परम्परामां श्रीनेमविजयजी, सं. - सा. श्रीकुमुदरेखाश्रीजी; गुजराती, २७ ढाळ २९८ कडी, र.सं. १८११, आदि - सरसतिने समरं सदा, अन्त - भारवी नेमविजय एक ध्यान हे; प्रत - जैनशाला ज्ञानभण्डार - खम्भात, क्र. ११.१५.५६, सं. १८५७मां पालिताणामां मुनि लालचन्द्र द्वारा लिखित; अङ्क ६३, पृ. ८८-११८.
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१२९. नन्दिषेणसज्झाय - क. - श्रीलब्धिविजयजी, सं. - अनिला दलाल;
गुजराती, १६ कडी, आदि - पंच सयां धण परिहरी, अन्त - लबधिविजय
निसदिसो रे; अङ्क ६३, पृ. १२१-१२२. १३०. पार्श्व( स्तम्भन )स्तवन - क. - श्रीमेघराज मुनि, सं. - अनिला दलाल;
गुजराती, ११ कडी, आदि - वंदउं जिण थंभण काया रे, अन्त - मेघराज
मुदा मुनि भारवइ रे; अङ्क ६३, पृ. १२३-१४५. १३१. पार्श्वनाथ( स्तम्भन )स्तवन - क. - उपा. श्रीविमलविजयजी →
रामविजयजी, सं. - अनिला दलाल; गुजराती, १० कडी, आदि - पासजी वामाजीना जायासुं एक विनति रे लो, अन्त - वाचक रामविजै भणे रे
लो; अङ्क ६३, पृ. १२४. १३२. सुमतिजिनआरति - क. - पं. श्रीमणिविजयजी → श्रीगुलाबविजयजी,
सं. - अनिला दलाल; गुजराती, ४ कडी, र.सं. १९४१, आदि - सुमति जिणंदने आगले भवि कीजें, अन्त - हां रे गुलाबें पुजोजी सवेरो; अङ्क
६३, पृ. १२५. १३३. रामकुंवरबाईनी पच्चक्खाणवही - सं. - मुनि श्रीधर्मकीर्तिविजयजी;
गुजराती, गद्य, र.सं. १९४८, आदि - सं. १९४८ना वीरर्षे वैसाख सुद...;
अङ्क ६३, पृ. १२६-१४२. १३४. वैराग्यकुलकम् - क. - अज्ञात महर्षि, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
प्राकृत, ३९ गाथा, आदि- ता कइया तं सुदिणं सा सुतिही, अन्त - बहले संसारे दुक्खघोरम्मि; प्रत - श्रीशान्तिनाथ ताडपत्रीय ग्रन्थ भण्डार -
खम्भात, क्र. १३३; क्र. १३३; अङ्क ६६, पृ. १-४. १३५. नेमिनाथविनति - क. - श्रीजयानन्दसूरिजी, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
गुजराती, ११ कडी, आदि - हरिखु माइ नही हियडइ किमइ, अन्त -
मूं देव देजे नीयपायवासु; अङ्क ६६, पृ. ७-८. १३६. अरासणतीर्थस्तवन-१ - क. - श्रीजयानन्दसूरिजी, सं. - श्रीविजय
शीलचन्द्र-सूरिजी; गुजराती, २१ कडी, आदि - रजत कांचन सीसक आगरा, अन्त - कतिपयैस्तु भवैर्लभते शिवम्; अङ्क ६६, पृ. ८-९.
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श्रीजयानन्दसूरिजी, सं.
श्रीविजय
शीलचन्द्रसूरिजी; अपभ्रंश, ११ कडी, आदि विलसिरकिन्नरपरमप्पउ लहंति भवुदहि तरिऊणं; अङ्क ६६,
महुरगीयजगगुरु०, अन्त पृ. १०-११.
१३७. अरासणतीर्थस्तवन- २ क.
-
-
१३८. पार्श्वनाथ( जीरापल्ली ) स्तवन
-
क.
श्रीदेवसुन्दरसूरिजी - शिष्य, सं.
जय
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; अपभ्रंश, २५ कडी, आदि भजहि पास अचिरेणुक्कंठिउ; अङ्क ६६,
सिरिपासजिणिंद-चंद, अन्त
-
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-
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-
पृ. ११-१५.
१३९. वैराग्यप्रेरणम् (अपूर्णम्)
क.
अज्ञात, सं. – श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; अपभ्रंश, २७ कडी, आदि - पणमवि गुणसायर भुवणदिवायर; अङ्क ६६, पृ. १५-१७.
१४०. द्रव्यपर्याययुक्तिः - क. मण्डनविजयजी; संस्कृत, गद्य, अपरनाम
ऐन्दवीयकलागौरम्; अङ्क ६६, पृ. १८-३५.
-
१४१. पार्श्वनाथसमसंस्कृतस्तवः क.- खरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिजी मुनि श्रीसमयराज, सं. – मुनि श्रीधर्मकीर्तिविजयजी; संस्कृत, ९ श्लोक, आदि - विमलकुलकमलरविकिरण०, अन्त - मुनिसमयराजविनेयकेनाऽऽनन्ददा बहुभाविना; अङ्क ६६, पृ. ३६-३७.
उपा. श्रीयशोविजयजी, सं. - मुनि श्री त्रैलोक्यस्याद्वादचर्चा, आदि
१४२. आदिनाथ( वागडपद्रपुरमण्डन ) स्तवनम्
क. श्रीरत्नशेखरसूरिजी → श्रीशिवमण्डन गणि, सं. पं. अमृत पटेल; संस्कृत, २४ श्लोक, आदि जयश्रीनिवासैकगेहं स्तुवेऽहं, अन्त शिवमण्डनाख्यपदवीं श्रीआदिनाथप्रभो!; प्रत ला.द.भे.सू. ३२८४, ले.सं. १५२०; अङ्क ६६,
पृ. ३८-४२.
१४३. वृन्दावनकाव्यम् - सटीकम्
मुनि
मानाङ्क नृपति, टीका पूर्णतल्लगच्छीय श्रीवर्धमानसूरिजी श्रीशान्तिसूरिजी, सं. श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, ५२ श्लोक, यमकमय काव्य, आदि वरदाय नमो हरये, टीका आदि - वर्धमानं सुधामानम्, अन्त - दशनैः सह लीलाजानाम्, टीका अन्त - तेन निर्वान्तु देहिनः; प्रत - हंसविजयजी
-
-
क.
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११३ जैन शास्त्रसङ्ग्रह - वडोदरा, क्र. १.१०, पत्र ८; अङ्क ६६, पृ. ४३-६४. १४४. चतुर्विंशतिजिनस्तवः - क. - उपा. श्रीमेघविजयजी, सं. - म. विनयसागर;
संस्कृत, २८ श्लोक, आदि - देवाधिदेवाधिकभाग्यलक्ष्मी०, अन्त -
कृपादिविजयप्राज्ञेन्दुशिष्ये मयि; अङ्क ६६, पृ. ६५-६७. १४५. पार्श्वनाथ( मगसी )स्तवनम् - क. - उपा. श्रीमेघविजयजी, सं. - म.
विनयसागर; गुजराती, ५ कडी, आदि - श्रीमगसीपुर पास आसपूरण,
अन्त - संपद पदवी राजलच्छी पामउ ससनेह; अङ्क ६६, पृ. ६७-६८. १४६. मेघकुमारना बारमासा - क. - लोंकागच्छीय देवजीऋषि → धर्मसिंह:
सं. - अनिला दलाल; गुजराती, ४५ कडी, आदि - श्रीजिनवर पयकमल प्रणमी, अन्त - संघ सहु जयकार; प्रत - ला.द., क्र. ८५४०, ३ पत्र,
वेरागी हरिदास द्वारा लिखित; अङ्क ६६, पृ. ८५-८८. १४७. अम्बिकाचउपई - क. - पुण्य मुनि, सं. - किरीट शाह; गुजराती, ११
कडी, आदि - ॐ अंबिक जय जय माय, अन्त - हीं देवि नमो आणंदि; प्रत - ला.द.भे.सू. २९०४९, ४ पत्र, सूर्यविजय उपाध्याय द्वारा श्राविका
अरघादेना वांचन माटे लिखित; अङ्क ६६, पृ. ८९-९०. १४८. बार व्रतनी टीप - सं. - श्रीजगच्चन्द्रसूरिजी; गुजराती, गद्य, सुरतना शा.
वल्लभदास वनमालीदासे सं. १९१२मां लीधेलां व्रतोनी नोंध, आदि - प्रथम
देवता श्रीअरिहन्त; अङ्क ६६, पृ. ९१-११६.. १४९. कालविचारशतक - क. - श्रीमुनिचन्द्रसूरिजी, सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्य
मण्डनविजयजी; प्राकृत, १०० गाथा, आदि - नमिअजिअकालकीलं, अन्त - देसिओ पयडवयणेहिं; प्रत - १. शी.सं. २-३. कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर -
कोबा, क्र. ०६०४४ अने ३५९३०; अङ्क ६७, पृ. १-२०. १५०. जिनस्तवः( महाभयहरः) - क. - वादीन्द्र श्रीधर्मघोषसूरिजी →
श्रीहर्षचन्द्रसूरिजी, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत, ९ श्लोक, आदि - तटीध्रतटताटनत्रुटितकोटिदन्तार्गलो, अन्त - द्रवन्ति किमुपद्रवे प्रसरविद्रवे विस्मयः; प्रत - आत्मारामजी जैन ज्ञानमन्दिर - वडोदरा, क्र. ३९ (ताडपत्र); अङ्क ६७, पृ. २२-२३.
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अनुसन्धान-६८
१५१. पूजाष्टकम् - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत,
८ श्लोक, आदि - काश्मीरैर्मलयोद्भवैर्मृगमदैः, अन्त - परमविनयतो बोधयामः प्रदीपम्; प्रत - आत्मारामजी जैन ज्ञानमन्दिर - वडोदरा, क्र.
३९ (ताडपत्र); अङ्क ६७, पृ. २४-२५. १५२. नवग्रहाह्वानम् - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी; संस्कृत,
९ मन्त्रो, आदि - ॐ तरुणोग्रतरकरविसरप्राग्भार०; प्रत - आत्मारामजी
जैन ज्ञानमन्दिर - वडोदरा; क्र. ३९ (ताडपत्र); अङ्क ६७, पृ. २५-२६. १५३. अहो, वर बोलि - सार्थ - क. - अज्ञात, सं. - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी;
संस्कृत, १६ श्लोक, अर्थ गुजराती, आदि - शत्रुञ्जयक्षोणिधरावतंसः,
अन्त - भूपः सुरत्राणमहम्मदाह्वः; अङ्क ६७, पृ. २७-३५. १५४. ऋषभदेव( धरणविहारस्थ )स्तवः - सावचूरिः - क. - तपगच्छपति
श्रीसोमसुन्दरसूरिजी → श्रीसोमदेवसूरिजी, अव. - अज्ञात, सं. - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, ९ श्लोक, र.सं. १४९६ पूर्वे, आदि - सुषमातिपुराणपुरे राणपुरे, अन्त - ०मनुपरमां वृषभ ! शिवरमां देयाः;
प्रत - शी.सं., श्रीसंवेगहंस गणि द्वारा लिखित; अङ्क ६७, पृ. ३६-३९. १५५. ऋषभदेव( देलउलालङ्कार )स्तोत्रम् - क. - तपगच्छपति श्रीसोमसुन्दर
सूरिजी → श्रीजयचन्द्रसूरिजी, सं. - पं. अमृत पटेल; संस्कृत, २५ श्लोक, आदि - कल्याणावलिवल्लरी वनसमुल्लासैक०, अन्त - पुष्याद् देलउलावसंतऋषभः सद्बोधिलाभोदयम्; प्रत - ला.द., क्र. २९४४४/१;
अङ्क ६७, पृ. ४०-४४. १५६. ऋषभजिनस्तवनम् (संस्कृतप्राकृतभाषानिबद्धम्) - क. - श्रीजयपुण्ढ़
सूरिजी → पं. श्रीदेवधर्म गणि, सं. - पं. अमृत पटेल; पूर्वार्ध संस्कृत, उत्तरार्ध प्राकृत, १० श्लोक, आदि - सुरवरेशनरेशशिरोमणि०, अन्त - सुदेवो मुदे वोऽस्तु युगादिनाथः; प्रत - ला.द., क्र. ४७९५३/१; अङ्क ६७,
पृ. ४५-४६. १५७. आषाढाभूतिप्रबन्ध - क. - खरतरगच्छीय मुनि श्रीदयाकलश → मुनि
श्रीसाधुकीर्ति, सं. - अनिला दलाल; गुजराती, १८४ कडी, र.सं. १६२४,
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योगिनीपुरी, आदि - सुखनिधानु जिनवरु मनि ध्याई, अन्त - कुसल मंगल अविचल धरइ सुणतां आणंद; प्रत - ला.द., क्र. ४७२८, मुनि
गुणजी लिखित; अङ्क ६७, पृ. ४७-६७. १५८. गजसिंहरायचरित्ररास( पूर्वार्ध) - क. – मुनि श्रीनेमिकुञ्जरजी, सं. -
किरीट शाह; गुजराती, ४ खण्ड, ४००+कडी (पूर्वार्धमां २ खण्ड, २०० कडी), र.सं. १५५६, आदि - पास जिणेसर पाय नमी; प्रत - रतलाम
भण्डार, ले.सं. १७०८; अङ्क ६७, पृ. ६८-८४. १५९. नेमनाथबारमासा - क. - उपा. श्रीयशोविजयजी → श्रीतत्त्वविजयजी
गणि, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; गुजराती, १७ कडी, आदि - सारद पदपंकज नमी, अन्त - भलई भावसुं प्रणमइ निसदीस; अङ्क ६७,
पृ. ८६-८७. १६०. नेमनाथस्तवन - क. - श्रीतत्त्वविजयजी गणि, सं. - मनि श्रीत्रैलोक्य___ मण्डनविजयजी; गुजराती, २२ कडी, र.सं. १७१३, आदि - सद्गुरुना
प्रणमी पाय, अन्त - सीस तत्त्व दिइ आसीस; अङ्क ६७, पृ. ८७-८९. १६१. विजयप्रभसूरिभास - क. - श्रीतत्त्वविजयजी गणि, सं. - मुनि
श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; गुजराती, ९ कडी, आदि - समरी श्रुतदेवी
माय, अन्त - सीस तत्त्वविजय गुण गाय; अङ्क ६७, पृ. ८९-९०. १६२. विजयप्रभसूरिस्वाध्याय - क. - श्रीतत्त्वविजयजी गणि, सं. - मुनि
श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; गुजराती, ७ कडी, आदि - शुभ सरस वाणी
दिओ माय जी, अन्त - ध्याओ गिरुओ गुरु एहजी; अङ्क ६७, पृ. ९०-९१. १६३. विजयप्रभसूरिभास - क. - श्रीतत्त्वविजयजी गणि, सं. – मुनि श्रीत्रैलोक्य
मण्डनविजयजी; गुजराती, ७ कडी, आदि - कास्मीरी मनमां धरी अति
ऊलटी; अन्त - तस सेवक हे तत्त्वविजय जयकार कि; अङ्क ६७, पृ. ९१. १६४. बाई मदैकवरनी बार व्रतनी टीप - सं. – मुनि श्रीधर्मकीर्तिविजयजी,
गुजराती, गद्य; आदि - अथ बारे व्रतनी टीप कंचित् लिख्यते; प्रत - शी.सं.; अङ्क ६७, पृ. ९२-९६.
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२. कृतिओनी नामवार सूचि (अकारादिक्रमे )
कृतिक्रमाङ्क
कृति
उगतीयं - शब्दसंस्कारः
अग्निशीतत्वस्थापनावादः
अजितशान्तिस्तोत्रम्
अरासणतीर्थस्तवन १
अरासणतीर्थस्तवन
२
अव्ययार्थसङ्ग्रहः
१०
१०३
२८
अपभ्रंशदोहा - सवृत्ति
१२
अभिनन्दनजिनस्तोत्रम् - अष्टोत्तरशत 'संवर'
४३
शब्दगर्भितम् अनेकान्ततत्त्वमीमांसा
७९
अम्बिकाच उप
१४७
१३६
१३७
११३
गौतमभास
अहो, वर बोल
१५३
गौतमस्वामिचउपई
आदिजिन(सोपारकमण्डन) स्तोत्रम् - सटीकम् चतुर्विंशतिजिनस्तवः
४४
चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् चत्तारि अट्ठदस-षडर्थाः
आदिनाथ(कोठारीपोल-अमदावाद) स्तवन ६७
आदिनाथ(वागडपद्रपुरमण्डन ) स्तवनम् १४२
आदिनाथनमस्कार
५७
आषाढाभूतिप्रबन्ध
१५७
इन्द्रनन्दिसूरिभास
९४
९३
इन्द्रनन्दिसूरिस्वाध्याय ऋषभदेव(देलउलालङ्कार) स्तोत्रम् १५५ ऋषभदेव(धरणविहारस्थ ) स्तवः - सावचूरि :
१५४
कृति
ऋषिमण्डलस्तवः
ओसवाल गोत्रकवित्त
कालविचारशतक
कीर्तिकल्लोलिनीकाव्यम्
१५६
अनुसन्धान- ६८
कुमारपालरास
कुमारसम्भव बालावबोध कोणिकराजसाम्हइयुं
गङ्गातैलीदृष्टान्तः
गजसिंहरायचरित्ररास - पूर्वार्ध
कित्त्वषोडशिका - सटीक
चिदानन्दलहरी
जिनस्तव:- महाभयहरः
जनस्तुति
ज्ञानस्तव
तत्त्वविचारप्रकरण
तीर्थद्वयस्तवनम्
८०
१५८
४९
४०
३६
१४४
११९
८९
११५
१५०
जिनस्तुति-द्वात्रिंशद्व्यञ्जनमय - सटीका ६२
६३
११७
९
१२२
११
१०८
१०९
१४०
५
थंभणतीरथमालस्तवन
ऋषभदेव(रतलाममण्डन ) स्तवन ८३ देवसुन्दरसूरिविज्ञप्तिः १ ऋषभदेव(हीरविहारविभूषण) स्तवनम् १७ देवसुन्दरसूरिविज्ञप्तिः २
१२७
द्रव्यपर्याययुक्तिः
कृतिक्रमाङ्क
ऋषभदेवस्तवन ऋषभदेवस्तोत्रम् - संस्कृतप्राकृतभाषानिबद्धम् द्वादशाङ्गीपदप्रमाणकुलकम्
४१
६५
१४९
१२३
६४
१३
८
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डिसेम्बर - २०१५
११७
द्वीपे जम्ब्वाह्वये ये० स्तुतिटीका ४७ कमलबन्धः धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति - सटीक २० पार्श्वनाथ(नवखण्ड)स्तवनम् १२० धर्मस्थापनस्थलम्
१०१ पार्श्वनाथ(बृहच्छ्यामल)स्तुत्यष्टकम् ९१ नन्दिषेणसज्झाय
१२९ पार्श्वनाथ(भीलडीयाजी)स्तवन ५२ नन्दीश्वरस्तोत्रम्
२७ पार्श्वनाथ(मगसी)स्तवनम् १४५ नवग्रहाह्वानम्
१५२ पार्श्वनाथ(विजयचिन्तामणि)स्तोत्र १५ नवतत्त्वचोपाई - १
७२ पार्श्वनाथ(स्तम्भक)स्तोत्रम् - २ ७५ नवतत्त्वचोपाई - २ __७३ पार्श्वनाथ(स्तम्भन)स्तवन १३० नवतत्त्वचोपाई - ३
८५ पार्श्वनाथ(स्तम्भन)स्तवन १३१ नालिकेर समाकारा इति वाक्यस्य पार्श्वनाथ(स्तम्भन-सेरीसा-शखेश्वर) चत्वारिंशदर्थाः १२४ स्तवनम्
१२८ नेमनाथबारमासा
१५९ पार्श्वनाथ(स्तम्भनक)-नवग्रहस्तवः ७६ नेमनाथस्तवन
१६० पार्श्वनाथ(स्तम्भनक)स्तोत्रम् - १ ७४ नेमिजिन(रैवतकाद्रिमण्डन)स्तोत्रम् ४२ पार्श्वनाथसमसंस्कृतस्तवः १४१ नेमिजिनस्तवन - २१ स्थानगर्भित ११२ पार्श्वनाथसहस्रनामस्तोत्रम् नेमिजिनस्तुति-प्रकाशटीका २५ पार्श्वनाथस्तवनम् (अजितशान्ति-छन्दोरीत्या) नेमिनाथविनति
१३५ नेमिनाथस्तवन-ज्ञानपञ्चमीगर्भित ८८ पार्श्वनाथस्तोत्रम् नेमिनाथस्तवन
पुष्पाञ्जलिस्तोत्रम्
११४ पञ्चतीर्थीस्तवन ५४ पूजाष्टकम्
१५१ पत्तनस्थजिनालयकवित्त ९२ प्रदीपनित्यत्वव्यवस्थापनम् १०४ पार्श्वजिनस्तवनम् - नवग्रहस्तुतिगर्भम् १२१ प्रमाणसाधनोपायनिरास: १०६ पार्श्वनाथ(उम्बरवाडि)प्रशस्ति ५८ प्रश्नोत्तरवाक्यरत्नसङ्ग्रहः पार्श्वनाथ(करहेटक)स्तवः ८६ प्रश्नोत्तरशतम् - सटीकम् ७८ पार्श्वनाथ(कृष्णगढमण्डन)स्तवन ८२ बार व्रतनी टीप (बाई मदैकवर) १६४ पार्श्वनाथ(गोडीजी)स्तवन ५१ बार व्रतनी टीप (शा. वल्लभदास पार्श्वनाथ(जीरापल्ली)स्तवन १३८ वनमालीदास) पार्श्वनाथ(जेसलमेर)स्तवः - चतुःषष्टिदल- भक्तामरस्तवावचूर्णि: कमलबन्धः
३ भक्तामरस्तोत्रावचूरिः पार्श्वनाथ(जेसलमेर)स्तवः - द्वात्रिंशद्दल- भूषणनामगर्भितगहूली
२९
९६
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________________
११८
अनुसन्धान-६८
११०
५०
१४ ७०
१०७
१०२
भोजनविच्छित्ति
श्रेयांसजिनचैत्य(टंकशाल - अमदावाद) मण्डपीयसङ्घप्रशस्तिः
सम्बन्ध मुनिसुव्रतस्तवन
६८ श्रेयांसनाथस्तवन मुरीबाईतेरमास
षट्त्रिंशिकाचतुष्कऍहली मेघकुमारना बारमासा १४६ सकलकुशलवल्ली-टीका रत्नप्रभसूरिस्तोत्रम्
१६ सच्चायिकाबत्तीसी रत्नाकरपच्चीसी-भास
समस्यापूर्ति - १ रत्नाकरपञ्चविंशतिका - सटीका ७७ समस्यापूर्ति - २ रामकुंवरबाईनी पच्चक्खाणवही सम्भवनाथस्तवन लेखरत्नाकरपद्धतिः
सर्वजिनचउतीसअतिसयविनति लोभनी सज्झाय
सर्वज्ञव्यवस्थापनावादः वज्रशूचीप्रकरणम्
सर्वज्ञसिद्धिः - १ वागर्थसंस्थापनम्
सर्वज्ञसिद्धिः - २ विगयनिवायताविवरण
सर्वज्ञाभावनिराकरणम् विजयजिनेन्द्रसरिभास
साधुश्रीपृथ्वीधरकारित-जिनभुवनस्तवनम् विजयप्रभसूरिभास - १
३० विजयप्रभसूरिभास - २
साध्वाचारषट्त्रिंशिका विजयप्रभसूरिस्वाध्याय
सिद्धपदवृद्धस्तवन विजयप्रभसूरिस्वाध्याय १६२ सिद्धार्थकृतभोजनविधि
३४ वीतरागस्तवनम्
सीमन्धरस्वामीस्तवन
१११ वीसविहरमाणस्तवनम् ८७ सुखडी (वर्धमानरसोई) वृन्दावनकाव्यम् - सटीकम् १४३ सुमतिजिनआरति
१३२ वैराग्यकुलकम्
सोपाराविज्ञप्तिका
४५ वैराग्यप्रेरणम्
सोहमगणधरगहुंली व्योम्नो नित्यानित्यत्वव्यवस्थापनम् १०५
सौधर्मगणधरभास शान्तिनाथ-अन्यार्थस्तुतिः
संवेगकुलकम् शीतलनाथ(अमरसरमण्डण)स्तवन ५५
स्तवचतुर्विंशतिका शीलोदाहतिकल्पवल्ली
१४० श्रावकद्वादशव्रतचतुष्पदिका २४ हरियाळी श्रीशत्रुञ्जयमुख्यतीर्थ. स्तुतिटीका ४६ हर्मन जेकोबीना पत्रनो उत्तर श्रुतिकटुश्लोक - सटीक ५९ हीरविजयसूरिस्वाध्याय
१६१
१६३
११६
३५
१३४
220
१३९
३९
११८
१२५
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डिसेम्बर - २०१५
११९
૬
७३
७७
१६
३. कृतिओनी कर्तावार सूचि (अकारादिक्रमे) । कर्ता कृतिक्रमाङ्क कर्ता
कृतिक्रमाङ्क अजितसिंहसूरिजी ९७ ज्ञानविजयजी अमरविजयजी १२६ ज्ञानसागरसूरिजी २०, ११० (बौद्धाचार्य) अश्वघोष १०७ तत्त्वविजय गणि १५९-१६३ आनन्दवर्धनसूरिजी
(पं.) देवचन्द्रजी (तपा.) ७२ उदयविजयजी
(पं.) देवचन्द्रजी (खर.) २१ कनककुशल गणि
देवतिलक मुनि कल्याणसागरसूरिजी ३१ (पं.) देवधर्म
१५६ कल्याणसौभाग्य गणि
(पं.) देवप्रभ
६४ कीर्तिरत्नसूरिजी ८८-९० देवसुन्दरसूरि-शिष्य १३८ (पं.) गम्भीरविजयजी १२५ धनेश्वरसूरिजी
८४ (पं.) गुणचन्द्रजी ६३ धर्मसिंह ऋषि
१४६ (उपा.) गुणविनय ४६, ४७ (पं.) नयविजयजी गुलाबविजयजी १३२ (पं.) नेणचन्दजी चतुर्भुज पण्डित
नेमविजयजी
१२८ चारित्रसुन्दरजी
नेमिकुञ्जर मुनि
१५८ (सा.) जडावश्री
(पं.) परमानन्दजी जयचन्द्रसूरिजी
पुण्य मुनि
१४७ जयरत्नजी
बलुभाई शेठ
६८ जयसागरजी
भावप्रभसूरिजी ९१, ९२ जयानन्दसूरिजी ४४, १३५-१३७ भावसागरजी जिनपाल गणि
भैरवचन्दजी यति जिनभद्रसूरिजी
(उपा.) मतिकीर्ति जिनराजसूरिजी
मानाङ्क नृपति
१४३ जिनवल्लभसूरिजी
मुक्तिसागरजी जिनविजयजी
मुनिचन्द्रसूरिजी
१४९ जीवसौभाग्य मुनि
मेघराजजी
१३०
२५
१५
१९
४८
१९
م م ه م
4
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________________
१२०
अनुसन्धान-६८
१११, ११२
११४-११७
५०
१४३
१४२ १०८, १०९
३,४ २९ १४१
(उपा.) मेघविजयजी १४४, १४५ (उपा.) विनयप्रभ (उपा.) मेरुनन्दन ८६, ८७ (पं.) वीरविजयजी मेरु मुनि
९५ शिवचन्द यति (उपा.) यशोविजयजी १२४, १४० (उपा.) शिवचन्द्रजी रङ्गविजयजी
६९ शिवराज श्रावक (उपा.) रत्नचन्द्रजी १७ शान्तिसूरिजी रत्नविजयजी ८२, ८३ शिवमण्डन गणि रत्नशेखरसूरिजी ११९-१२२ शीलशेखर गणि रत्नाकरसूरिजी ४२, ७७ (उपा.) श्रीसार रामचन्द्रसूरिजी
११८ (उपा.) सकलचन्द्रजी रामविजयजी
१३१ समयराज मुनि रूपचन्द्र मुनि
(उपा.) समयसुन्दरजी लक्ष्मीकल्लोल गणि
(उपा.) संवेगसुन्दरजी लब्धिविजयजी
साधुकीर्ति मुनि ललितसागरजी
(उपा.) सुभोग लावण्यविजयजी
सोमतिलकसूरिजी (पं.) लावण्यसमय ५४, ९३, ९४ सोमदेवसूरिजी वच्छराज मुनि
सोमविमलसूरिजी वछराज गणि
हर्षचन्द्रसूरिजी वरसिंह ऋषि
हेमचन्द्रसूरिजी विजयनेमिसूरिजी
(पं.) हेमविजयजी विद्याकुशल मुनि
१५७
४४
३० १५४
&B My 12
१५०
१४
१२३
अज्ञातकर्तक कृतिक्रमाङ्क - २, ६, १०, १२, १३, २४, २७, ३३, ३५, ३७-४१, ४५, ५७, ५९६१, ६५, ७४-७६, ८०, ९६, ९८-१०६, ११३, १२७, १३३, १३४, १३९, १४८, १५१-१५३, १६४
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________________
१२१
डिसेम्बर - २०१५
___४. कृतिओनी सम्पादकवार सूचि (अकारादिक्रमे) सम्पादक कृतिक्रमाङ्क सम्पादक
कृतिक्रमाङ्क (प्रा.) अनिला दलाल १२९-१३२, (उपा.श्री) भुवनचन्द्रजी १५, ५१-५५, १४६, १५७
५९-६२ (पं.) अमृत पटेल ४२, ४३, ७४-७६, (मुनिश्री) रत्नकीर्तिविजयजी ७८, ८० १४२, १५५, १५६
(प्रा.) रसीला कडीआ ५०, ६७-७१ (स्व.) अंबालाल शाह १२३ (सा.श्री) ललितयशाश्रीजी २६ (मुनिश्री) कल्याणकीर्तिविजयजी १० (आ.श्री) विजयशीलचन्द्रसूरिजी १, १४, किरीट शाह १४७, १५८
२२, २७-३२, ३६, ३७-४१, ४८, (सा.श्री) कुमुदरेखाश्रीजी १२८
५६, ५७, १०८, १०९, १३४(सा.श्री) चारुशीलाश्रीजी ९६
१३९, १५०-१५३ (आ.श्री) जगच्चन्द्रसूरिजी १४८ (महो.) विनयसागर ३-६, २३, २४, ४९, (सा.श्री) ज्योतिर्मित्राश्रीजी १२६, १२७ ८१-८४, ८६-९०, १११-११७, तीर्थत्रयी ८
११९-१२३, १४४, १४५ (मुनिश्री) त्रैलोक्यमण्डनविजयजी ११, (मुनिश्री) शीलचन्द्रविजयजी (डहेला
७८,७९, ९७-१०७, १२३, १२५, वाळा) २५ १४०, १४३, १४९, १५४, १५९- (आ.श्री) श्रीचन्द्रसूरिजी २ १६३.
(सा.श्री) समयप्रज्ञाश्रीजी ३४, ३५, ७७ (सा.श्री) दीप्तिप्रज्ञाश्रीजी १२, ७२, ७३ (मुनिश्री) सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी (मुनिश्री) धर्मकीर्तिविजयजी १३३, ७, १६-२१, ४४-४७,५८, ६३१४१, १६४
६५, ८५, ९१-९५, ११०, ११८, (मुनिश्री) पुण्यश्रमणविजयजी ३३ १२४ (आ.श्री) प्रशमचन्द्रसूरिजी ६६ (डॉ.) हरिवल्लभ भायाणी ९, १३
माना ९६
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________________
१२२
अनुसन्धान-६८
५. कृतिओनी भाषावार सूचि भाषा कृतिक्रमाङ्क भाषा
कृतिक्रमाङ्क प्राकृत (पद्य) ५, २७, २८, ४१, ८४, अपभ्रंश (पद्य) ४, ६, २४, ५७, ८७,
८९, १०८, १०९, १३४, १४९ ८८, १११, ११२, १३७-१३९ प्राकत-संस्कृत (पद्य) ११९, १५६ गुजराती (पद्य) ८, ११, २१, ३६-४०, संस्कृत (पद्य) ३, १४, १६-२०, २२, ४५, ४८,५०-५५, ६४,६६-७३,
२३, २५, २९-३२, ४२-४४, ४९, ८२, ८३, ८५, ९२-९४, ११६, ५६,५८-६३,७४-७६, ७८, ८६, ११७, १२६-१३२, १३५, १३६, ९०, ९१, ११०, ११४, ११५, १४५-१४७, १५७-१६३ ११८, १२०, १२१-१२३, १४१- गुजराती (गद्य) ९, १०, ३३, ३४, ९५,
१४४, १५०, १५१, १५३-१५५ ९६, १३३, १४८, १६४ संस्कृत (गद्य) १, २, १२, १३, २६, ४६, राजस्थानी (पद्य) ३५, ६५, ८१
४७, ७७, ७९, ८०, ९७-१०७, हिन्दी (पद्य) ७ ११३, १२४, १२५, १४०, १४३, विविधभाषा (पद्य) १५ १५२, १६४
६. कृतिओनां आदिवाक्योनी सूचि (अकारादिक्रमे)
आदिपद
कृतिक्रमाङ्क आदिपद
कृतिक्रमाङ्क
१०२
११९
१५२
ॐ अंबिक जय जय माय १४७ ॐ अज्ञानध्वान्तध्वंसनांशु० १२५ ॐ तरुणोग्रतरकरविसर० ॐ श्रीपार्श्वजिनेश्वराय जगतां ५८ ॐकारस्फाररूपं परमपदगतम् ५६ अथ बारे व्रतनी टीप कंचित् १६४ अथानेकान्ततत्त्वमीमांसा ७९ अथैकान्तानित्यतया परैरङ्गीकृतस्य १०४
अनुदिनमखर्वसर्वानवद्य० अमरगिरिगरीयो मारुदेवीयदेहे ओकपुरुष नवलो तुमे आज- अद्य काल्हि- कल्ये आदि ए आदि जिणेसरू ए आधारो यस्त्रिलोक्या जलधिजलधरा०१०१ आनन्दनं समसुरासुरमानवानाम् २३ आनन्दभन्दकुमुदाकरपूर्णचन्द्रम् ८६
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१२३
९६
१३८
१४०
११७
आदिपद कृतिक्रमाङ्क आदिपद
कृतिक्रमाङ्क इसिमंडलस्स गुणमंडलस्स तव० ४१ जगतमां ग्राह्य शुं छे । इह केचित् त्रिभुवनोदरविवर० ९९ जनानन्दमाकन्दसच्चैत्रमासम् इह केचिदज्ञानमहामहीधरभरा० १०० जय जय यादववंशावतंस० इह केचिदहङ्कारशिखरिशिरवा० ९८ जय प्रभो! त्वं नवखण्डपृथ्वी० इह प्रेक्षापूर्वकारिणां महाकवीनाम् १३ जय सिरिपासजिणिंदचंद० ऋषभ जिनेन्द्र दयाल मया ८३ जयश्रीनिवासैकगेहं स्तुवेऽहम् १४२ एवं व्योमाऽपि उत्पादव्ययध्रौव्या० १०५ जयानन्दलक्ष्मीलसद्वल्लिकन्दम् ४४ ऐन्दवीयकलागौरम्
जीयाज्जगच्चक्षुरपास्तदोषः ७६ ऐन्द्रं वृन्दममन्दमोदमभजत् १२३ ज्ञान निरंतर वंदीय ज्ञान कल्याणावलिवल्लरीवन० १५५ ज्ञानादिक गुणखांणि राजग्रही ३९ काश्मीरैर्मलयोद्भवैर्मृगमदैः १५१ ढोल्ला नायक: सामला श्यामलः १२ कास्मीरी मनमां धरी अति ऊलटी १६३ तटीध्रतटताटनत्रुटितकोटि० १५० कुखगाऽघं ङचाछाऽज
६२ ता कइया तं सुदिणं सा सुतिही १३४ कुमारपाल भूपाल दयाल जैनें ९२ तेभ्यो जिनेभ्यो मामकीनो ममा० ४७ केवललोकितलोकालोक० ११४ त्रिभुवनतारण तीरथ पास १५ कुंकुम केसर घोली रोली कचोली ९५ दिउ सरसती वाणी अमीय समाणी ९३ कूकणदेसि नयर सोपारउं
देवाधिदेवाधिकभाग्यलक्ष्मी० १४४ क्रमनखदशकोद्यद्दीप्रदीप्ति
नत्वा श्रीगुरुचरणौ स्मृत्वा गाम नगर पूर वीचरता ७१ नमिअ जिअकालकीलं
१४९ गीर्वाणचक्रनरनायकवृन्द० ७४ नमिउं जिणपासपयं विग्घहरं गुरुवेयणविरहेण व जिण० ८४ नमिऊण जिणं अंगाणं पय० गृहीत्वा वैराग्यं गृहपरिगृहीत्या २२ नमिरसुरअसुरनरइंदवंदियपयं गोअम सुहम्म जंबू पभवो १०८ नाभिनरिंद मल्हार मरुदेवि गोयमसामी गुणनिलउ सोहग ३६ नेमजिणंद जयकारी रे लाला चंपानयरि उद्यान सुरतरु महुरि ३७ पढम जिणंदह नमीअ पाय ६४ चत्तारि जिणवीसं ठाणेसु सिद्धि० ८९ पणमवि गुणसायर भुवण० चरणाम्बुज गुरुदेव नमी ७ परममङ्गलराजितसञ्चरम् चेलणा लावें गूयली गुरु ए ३८ पादाः पुष्णन्तु पुण्यानि
७८
१७
१३९
८
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१२४
अनुसन्धान-६८
७०
० mm ०
१४१
आदिपद कृतिक्रमाङ्क आदिपद
कृतिक्रमाङ्क पार्श्वः श्रियेऽस्तु भास्वान् १२१ रीखवजी आवा गुजर देस रे
६७ पार्श्वनाथो जिनः श्रीमान् ___३१ रे प्रभु तार चिन्तामणि पासजी पाल्हणसीहकुलंबरहंस! १०९ लोभ न करीइं प्राणीया पास जिणेसर पाय नमी १५८ वरदाय नमो हरये
१४३ पास जिनेसर प्रणमी पाय ८५ वरसोला भला गूंदवडा पासजी वामाजीना जायासुं एक १३१ वाणी वाणीमियं दद्यात् स्वर० पंचसयां धण परिहरी
१२९ वामेयपट्टे शुभदत्तनामा प्रणतसुरासुरपटलम्
६५ वाश्चारेड्ध्वजधक्धृतोड्वधि० प्रणम्य परमानन्दप्रदम्
विमल वचनरस वरसती प्रणम्य विज्ञातसमस्तभावम् २० । विमलकुलकमलरविकिरण प्रणम्य श्रीयुगादीशम् २ विलसिरकिन्नरमहुरगीयजग०
१३७ प्रथम देवता श्रीअरिहन्त १४८ वेदाः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणम् १०७ प्रभु सहजइ महिर करउ सदा ५१ वंदउं जिण थंभण राया रे १३० ब्रह्मधूआ समरं सदा
६६ वंदवि वीरु भविय निसुणेहु भज सर्वशं भज सर्वज्ञम् ६३ वंदामि नेमिनाहं पंचमगइ० भत्तिइं पणमिसु आदिदेव ५७ वंदिय नंदियलोयं जिणविसरं भत्तिसरोवरु ऊलटिउ जागीय ८७ शत्रुञ्जयक्षोणिधरावतंस: १५३ भलो उत्तंगतोरण मांडवो ३३ शरक्षेपे प्रष्टं किमयुतमितिः क्व ६० भो भव्यजनाः! स श्रीपार्श्वनाथो २६ शीतो वह्निर्दाहकत्वात् १०३ मनसुध ज्यां महिर करै माता ८१ । शुभ सरस वाणी दिओ मायजी १६२ माताजी मरुदेवा रे भरतने १२७ शुभवद्भिर्भवद्भिरायुष्मद्भिः स्वाभिमत० १०६ माय कहै मैरै चगनां मगनां ३५ श्यामाया आर्जवश्री प्रथितकृष० ६१ मीमांसाविदः सर्वविदः प्रतिषेधार्थ० ९७ श्रीअरिहंतनां पदयुगल
७३ मेरुविजयविबुहाणं विबुहाणं २८ श्रीअर्बुदाद्रिमुकुट० ।
१२२ मोरा साहिब हो श्रीसीतलनाथ कि ५५ श्रीअर्हादिक पंच पद वंदू बे कर । ४८ यकः संसाराम्भोनिधितरण०
श्रीजिनपादरतं विधुतारम् रजत कांचन सीसक आगरा १३६ । श्रीजिनवर पयकमल प्रणमी राजग्रही रलीयांमणी जिहां ४० श्रीतपगणपुष्करसवितारम्
२४
८८
२७
१४६
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डिसेम्बर - २०१५
१२५
आदिपद
कृतिक्रमाङ्क आदिपद
कृतिक्रमाङ्क
१२८
२९
श्रीपार्श्व जिनेश्वर प्रणमउ श्रीपृथ्वीधरसाधुना सुविधिना श्रीमगसीपुर पास आसपूरण श्रीमत्कान्तिकलापमङ्गललस० श्रीमयुगप्रधानश्रीजिनचन्द्रगुरो० श्रीरैवताद्रिकमलापृथुकण्ठपीठ० श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा श्रीसारदा वरदायिनी प्रणम् श्रीसुव्रतजिन साहबा रे श्रेयःश्रियां मङ्गलकेलिसद्म श्रेयश्रीरतिगेह छो जी सुरनर० सकल जिणेसर चित्त धरी सत्यमेतत् देवानुप्रियाः! यद् सद्गुरुना प्रणमी पाय समरी श्रुतदेवी माय सयल जिणेसर प्रणमी पाय सयलजगललियलावण्णसोभा० सरसति सरसति सामणि सेवीइ
४ सरसति सामिन विनवू रे ___ ५२ ३० सरसतिने समरुं सदा १४५ सर्वत्रेको गुणः प्रोक्तो विद्भिः ४९ ९१ सारद पदपंकज नमी
१५९ ४६ सिद्ध हृदयनिरुद्धं बुद्धध्यानै० ४२ सुखकारक हो श्रीसंभवनाथ किं ५३ १४ सुखनिधानु जिनवरु मनि ध्याई १५७ ११ सुमति जिणंदने आगले भवि १३२ ६८ सुरवरेशनरेशशिरोमणि० १५६ ७७ सुषमातिपुराणपुरे राणपुरे १५४ २१ सं. १९४८ना वीरर्षे वैसाख सुद १३३ १२६ स्तुत्वा वाचमनेकशास्त्रलहरी० ३२ ८० स्वरादिरव्ययं चादरसत्त्वे
११३ १६० स्वस्तिश्रीविजयोद्वहः सुविदितः ११० १६१ हरिखु माइ नही हियडउ किमइ १३५ ७२ हवे इहां राजा सिद्धार्थ जे ते ३४ ११२ हुं तो नमुं रे सिद्धनरंद मूकी ५० ९४ हे नालिकेर ! समा- सज्जनाः ।
पाय
१२४
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१२६
अनुसन्धान-६८
स्वाध्यायखण्ड संशोधनलेख
१. अङ्कवार सूचि १. संशोधकनुं कर्तव्य : "आसनसों मत डोल" - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी,
अङ्क ५१, पृ. १-४. २. Bhattakale upatthite : An Example of a "Mistransla
tion" in the Pali Canon - Yajima Michihiko, अङ्क ५१, पृ.
१२-१७. ३. लावण्यसमयकृत नेमिरङ्गरत्नाकरछन्द : आस्वाद अने पाठ/अर्थशुद्धि
- डॉ. कान्तिभाई बी. शाह, अङ्क ५३, पृ. ६७-७६. हेमचन्द्राचार्यनो देशीशब्दसङ्ग्रहः एक परिचय - डॉ. शान्तिभाई आचार्य, अङ्क ५३, पृ. ८१-१०१. आचार्य हेमचन्द्रसूरि रचित स्तोत्रसरिता - डॉ. मीताबेन जे. व्यास, अङ्क ५३, पृ. १०२-१०७. मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्याभ्यास सन्दर्भे हेमचन्द्राचार्य कृत
काव्यानुशासनम् - हसु याज्ञिक, अङ्क ५३, पृ. १०८-१२३. ७. कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरि - म. विनयसागर, अङ्क ५३, पृ. १२४
१५४. योगदृष्टिसमुच्चय-सटीकनुंध्यानार्ह संशोधन-सम्पादन - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी द्वारा संशोधन-सम्पादित वाचना
विशे, अङ्क ५३, पृ. १५५-१६२. ९. हेमचन्द्राचार्यनी अगमवाणी - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, त्रिषष्टिमहाकाव्यना
१०मा पर्वना अन्तभागमां आवेला भविष्यकथनना १६ श्लोक विशे, अङ्क
५४, पृ. १०-१४. १०. हेमचन्द्राचार्य-विरचित प्रमाणमीमांसाना परिप्रेक्ष्यमां मतिज्ञानना
उत्पत्तिक्रमनी विचारणा – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५४, पृ. १५-३८.
७
ज
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________________
डिसेम्बर
११. हेमचन्द्राचार्य माटे प्रवर्तेली भ्रमणाओ अने तेनुं निरसन - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, अङ्क ५४, पृ. ६२-७८.
१२. खारवेलनो हाथीगुफा - अभिलेख - डॉ. हसमुख व्यास, अङ्क ५४, पृ.
१३३-१३९.
-
२०१५
१९२७
१३. Are Pāndava Brothers Jain or Non-Jaina ? : An unprec edented explanation by Acarya Hemacandra Padmanabh S. Jaini, अङ्क ५४, पृ. १५०-१६६.
-
१४. A note on Hemacandra's Abhidhāncintāmani & Sanskrit ‘Karmavati' - Nalini Balbir, अङ्क ५४, पृ. १६७-१९९. १५. सन्मतितर्क - गाथा १.४१ ( एवं सत्तविअप्पो ... ) ना तात्पर्य विशे विचारणा - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५५, पृ. ८३-११६. १६. भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो : औतिहासिक परिप्रेक्ष्यमां विवेचनात्मक अभ्यास - मणिभाई प्रजापति, अङ्क ५५, पृ. ११७-१४३.
१७. दर्शन विशे विचारणा - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५६, पृ.
१४३-१७३.
१८. विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता जैनसाहित्य के सन्दर्भ में - डॉ. सागरमल जैन, अङ्क ५७, पृ. ११७-१२४.
१९. जैन कथा साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ५८, पृ. १३२-१४५.
२०. निह्नव रोहगुप्त, श्रीगुप्ताचार्य अने त्रैराशिकमत* - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५८, पृ. १४६-१६५.
२१. पउमचरियं : एक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ५९, पृ. ७२ - ९५. २२. माथुरी गणना अने वालभी गणना वच्चे वीरनिर्वाण संवत्ना १३ वर्षना तफावतना वास्तविक कारण विशे ऊहापोह - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५९, पृ. ९६-१०५.
२३. सिद्धसेन दिवाकरजीना केवलज्ञान - दर्शन अंगेना मन्तव्य विशे विचारणा - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी; अङ्क ५९, पृ. १०६-१४३
* जुओ अङ्क ५९, पृ. ९६.
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१२८
अनुसन्धान-६८
२४. जैनों का प्राकृत साहित्य : एक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६०, पृ. १८३-२०१.
२५. जीवसमास-प्रकरण: स्वाध्याय - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६२, पृ. ६३-७८.
२६. शिवदासकृत कामावती -मां आवती समस्याना अर्थनी समस्या - हसु याज्ञिक, अङ्क ६२, पृ. ७९-८१.
२७. जैन दार्शनिक साहित्य - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६२, पृ. ८२ - ९३. २८. जैन दर्शन में प्रमाणविवेचन - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६२, पृ. ९४
१००.
२९. हस्तप्रत-सम्पादननी शिस्त विषे थोडुंक दिशासूचन - डॉ. कान्तिभाई बी. शाह, अङ्क ६२, पृ. १०७-११४.
३०. जैन चित्रशैली का पृथक् अस्तित्व - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, अङ्क ६३, पृ. १४३ - १४५.
३१. उपाङ्गसाहित्य : एक विश्लेषणात्मक विवेचन - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६३, पृ. १४६-१५४.
३२. नेमीश्वरजिनप्रासादप्रशस्ति तथा मण्डपीयसङ्घप्रशस्ति विषे - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६३, पृ. १५५ - १८३.
३३. द्रव्यपुद्गलपरावर्त शक्य छे के नथी ? - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६३, पृ. १८४-१९१.
३४. अर्हत् पार्श्वनो असली समय - डो. मधुसूदन ढांकी, अङ्क ६६, पृ. ११७
११९.
३५. जैन दर्शन का नयसिद्धान्त - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६६, पृ. १२०
१३०.
३६. जैन दर्शन का निक्षेपसिद्धान्त - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ६६, पृ. १३१
१३४.
३७. ‘कज्जमाणे कडे 'मां नयसम्मति – मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६६, पृ. १३५ - १४३.
३८. आगमसूत्रों के शुद्धपाठ के निर्णयविषयक कुछ विचारबिन्दु - श्रीरामलालजी म., अङ्क ६७, पृ. ९७-१५३.
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__२. लेखोनी लेखकवार सूचि (अकारादिक्रमे) लेखक लेखक्रमाङ्क लेखक लेखक्रमाङ्क (डो.) कान्तिभाई बी. शाह ३, २९ (महो.) विनयसागर ७ (मुनिश्री) त्रैलोक्यमण्डनविजयजी ८, (डो.) शान्तिभाई आचार्य ४
१०, १५, १७, २०, २२, २३, २५, (प्रो.) सागरमल जैन १८, १९, २१, २४, ३२, ३३, ३७
२७, २८, ३१, ३५, ३६ (डो.) मणिभाई प्रजापति १६ (डो.) हसमुख व्यास १२ (डो.) मधुसूदन ढांकी ३४ (डो.) हसु याज्ञिक ६, २६ (डो.) मीताबहेन व्यास ५
Nalini Balbir १४ (आ.श्री) रामलालजी म. ३८ Padmanabh Jaini १३ (आ.श्री) विजयशीलचन्द्रसूरिजी १, ९, Yajima Michihiko २
११, ३०
की २५
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अनुसन्धान-६८
ढूंकनोंध
१. अङ्कवार सूचि १. अनुसन्धान ५०(१)मां छपायेली बे कृति विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्य___ मण्डनविजयजी, तेजबाईव्रतग्रहणसज्झाय अने मल्लिनाथनो रास ओ बे कृतिनी
पाठवाचना व.नी चर्चा, अङ्क ५१, पृ. ७-८. २. शान्तिनाथना पद (शान्ति जिनेश्वर साचो साहिब) विशे- श्रीविजयशीलचन्द्र
सूरिजी, स्तवननी साची वाचना अङ्गे चर्चा, अङ्क ५२, पृ. ९८-९९. ३. हेमचन्द्राचार्य-विरचित नमस्कारनी कनककुशल-कृत वृत्ति विशे
केटलीक नोंध - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५३, पृ. ७७-८०. ४. एक कल्पनाकथानी कथा - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, श्रीहेमचन्द्राचार्य
द्वारा गुरु पासे सुवर्णसिद्धिनी मांगणी अङ्गे, अङ्क ५४, पृ. ८ (आगळ). उपाध्याय श्रीयशोविजयजीनी गुरुशिष्यपरम्परा - मुनि श्रीधुरन्धर
विजयजी, अङ्क ५५, पृ. ७६. ६. काव्यानुशासननो स्वाध्याय करतां... - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी,
अङ्क ५५, पृ. ७७-८२. ७. मोटी खाखरना देरासरमांनो एक पादुकालेख - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी,
__ अङ्क ५६, पृ. १४१-१४२. ८. उत्तराध्ययननियुक्तिनी अक गाथा (मोत्तूण ओहिमरणं... ५.१६)ना अर्थ
विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५७, पृ. ९३-९६. ९. अर्हत्ना ३४ अतिशयो विशे* - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क
५७, पृ. ९७-१०३. १०. आदिनाथस्तव (ते धन्ना...) विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क
५७, पृ. १०३-१०६. ११. पुद्गलनो ग्रहणगुण एटले शुं ? - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क
६२, पृ. १०१-१०३.
* जुओ अङ्क ५९, पृ. १०५
* जुओ अङ्क ५८, पृ. ७९
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१३१ १२. श्रीआत्मारामजी विरचित सत्तरभेदी पूजा- रचनावर्ष : वि.सं. १९१९
के १९३९? - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६२, पृ. १०३-१०४. १३. स्तम्भनपार्श्वपञ्चविंशतिकाना कर्ता विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी,
अङ्क ६२, पृ. १०५. १४. श्रीसौभाग्यसागरसूरिजी विशे- मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६२,
पृ. १०६. १५. 'मस्करिन्' परिव्राजक अङ्गे * - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क
६६, पृ. १५६-१५९. १६. “दिट्ठाऽसि कसेरुमई०" गाथा विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी,
अङ्क ६६, पृ. १५९-१६०. १७. चूलिकापैशाची अङ्गे- मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६६, पृ. १६१
१६२. १८. साधुश्रीपृथ्वीधरकारित-जिनभुवनस्तवनम् विशे - मुनि श्रीत्रैलोक्य
मण्डनविजयजी, अङ्क ६६, पृ. १६२-१६३.
२. लेखकवार सूचि (अकारादिक्रमे)
लेखक
क्रमाङ्क
१, ३, ६, ८-१८
(मुनिश्री) त्रैलोक्यमण्डनविजयजी (मुनिश्री) धुरन्धरविजयजी (उपा.श्री) भुवनचन्द्रजी (आ.श्री) विजयशीलचन्द्रसूरिजी
39
२,
* जुओ अङ्क ६७, पृ. १६१-१६४
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अनुसन्धान-६८
ॐ
3
पत्र, माहिती, सूचि, चर्चा व. १. एक पत्र - सिलास पटेलिया, अनु. ५०(२)नो प्रतिभाव, अङ्क ५१, पृ. ९
११ अनुसन्धान १-५०नी सूचि - सं. – मुनि श्रीधर्मकीर्तिविजयजी, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५१, पृ. २१-१५५. कालद्रव्य विशे तात्त्विक चर्चा - डॉ. नगीन जी. शाह, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५२, पृ. १११-१३४. हेम-समारोह तथा संस्कृत-पर्वनो हेवाल - डॉ. निरञ्जन राज्यगुरु, अङ्क ५३, पृ. १७२-१८१. डॉ. पीटर पीटर्सन-प्रवचन - पूना, डेक्कन कॉलेजमां अपायेल हेमचन्द्राचार्य
तथा योगशास्त्र विषयक प्रवचन, अङ्क ५४, पृ. ३९-६१. ६. राजा कुमारपालनी अमारि-घोषणानी गवाही आपता बे प्राचीन
अभिलेखो - अङ्क ५४, पृ. १०१-१०३. विशेषावश्यक महाभाष्यनो स्वाध्याय करतां... - शुद्धिपत्रक, अङ्क ५७, __ पृ. १०७-११३. ८. नवतत्त्वविषयक संस्कृत-प्राकृत साहित्य - सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र
सुजस-चन्द्रविजयजी, अङ्क ५८, पृ. १२२-१३१. ९. मुनि श्रीधर्मरत्नविजयजी द्वारा थता संशोधननी माहिती - अङ्क ५९,
पृ. १५२. १०. निर्ग्रन्थ परम्परानी अतीतनी शोधयात्रानो परिपाक - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी,
Studies in Nirgranth Art & Architecture by M.A. Dhaky नो
परिचय, अङ्क ६०, पृ. २०२-२०४. ११. कहावली : एक सीमास्तम्भरूप प्रकाशन - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी,
श्रीभद्रेश्वरसूरिजी रचित कहावलीना मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी द्वारा सम्पादन-प्रकाशन सन्दर्भे, अङ्क ६०, पृ. २०४-२०८. पत्रचर्चा - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, श्रीअभयशेखरसूरिजी द्वारा 'बत्रीसीना सथवारे० भाग ६' मां करवामां आवेली एक टिप्पणी सन्दर्भे, श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजीनी सम्पादकीय नोंध साथे, अङ्क
i
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६०, पृ. २१२-२२०. १३. वर्धमान जिनरत्नकोश अङ्गे विनंति - अङ्क ६०, पृ. २२१-२२२. १४. हेमचन्द्राचार्य चन्द्रक - १४ : अर्पण समारोह - ता. ३०-६-२०१३,
अमरेली, श्रीवसन्तभाई परीखने अर्पण, हेवाल, अङ्क ६२, पृ. ११६-१२०. १५. प्राकृतभाषा के विकास हेतु केन्द्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत सुझाव -
प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी, अङ्क ६२, पृ. १२१-१२३.. १६. आवेदना छे, विरोध नहि- श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, ला.द. विद्यामन्दिरमां
सङ्ग्रहीत एक हस्तप्रत अङ्गे युनेस्कोए करेली 'वैश्विक सम्पत्ति'नी जाहेरात
सन्दर्भे, अङ्क ६२, पृ. १२४-१२७. १७. सिद्धहेमशब्दानुशासन - प्राकृतअध्यायगत केटलांक उदाहरणोनां
सम्पूर्ण पद्यो - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ६६, पृ. १४४-१४९. १८. शुं महत्त्वपूर्ण ? आपणुं मन्तव्य के शास्त्र- एदम्पर्य ? - एक चर्चा -
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, श्रीअभयशेखरसूरिजी लिखित 'बत्रीशीना सथवारे०
- भाग ७'मां प्रकाशित 'एक पत्र' सन्दर्भे, अङ्क ६६, पृ. १६५-१७१. १९. पत्रचर्चा - उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, 'मस्करिन्
| मङ्खलि' विशे, अङ्क ६७, पृ. १६१-१६४. २०. 'जैन साहित्य समारोह'मां रजू थयेला शोधपत्र विषे संशोधन -
श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, "गौतमस्वामीनो रास - एक अध्ययन" (-मीना पाठक) ए लेख विशे, अङ्क ६७, पृ. १६५-१६६.
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कया अङ्कनुं ?
५० (१)
५०(२)
५३-५४
५५
५६
५७
५८
५९
६०-६१
६२
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६३
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६५
६६
विहङ्गावलोकन
कया अङ्कमा ?
५२
५२
५५
५६
५७
५९
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६०
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६४
६४
६४
६७
अनुसन्धान-६८
- उपा. श्रीभुवनचन्द्रजी
कया पाने ?
१००-१०४
१०४ - १०८
१४५ - १५२
१७४-१७५
११४-११६
१४४-१४८
१४८ - १५०
२०९-२११
२६४-२६६
२६६-२६८
२६९-२७३
१५०-१५५
१५४-१५६
१५६-१६०
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डिसेम्बर
२.
४.
१. धर्माभ्युदयमहाकाव्यम् - क. - श्रीउदयप्रभसूरिजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. – भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५१, पृ. १८
धर्मकल्पद्रुममहाकाव्यम् - क. श्री उदयधर्म गणिजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन, अङ्क ५१, पृ. १८
३. प्राचीन श्रुतसमुद्धारपद्ममाला - प्र. - जिनशासन आराधना ट्रस्ट; अङ्क ५१, पृ. १९
५.
२०१५
६.
प्रकीर्णखण्ड
नवां प्रकाशनोनो परिचय / समीक्षा
१३५
विचाररत्नाकर - क. उपा. श्रीकीर्तिविजयजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५१, पृ. १९
धर्मविधिप्रकरणम् - क. - श्री श्रीप्रभसूरिजी टीका - श्रीउदयसिंहसूरिजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५१, पृ. २० जयवंतसूरिनी छ काव्यकृतिओ - सं. ग्रन्थरत्न कार्यालय; अङ्क ५२, पृ. १०९
• प्रा. जयंत कोठारी, प्र. - गूर्जर
-
७. विवेकमञ्जरी ( सटीक ) - १, २ क. आसड कवि, टीका श्रीबालचन्द्रसूरिजी, सं. – साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. - श्रुतरत्नाकर; अङ्क
-
५२, पृ. १०९
क.
८. अध्यात्मोपनिषत् (सटीक ) उपा. श्रीयशोविजयजी, टीका श्रीभद्रङ्करसूरिजी, प्र. – लब्धिभुवन जैन साहित्यसदन - छाणी; अङ्क ५२,
पृ. ११०
गणधरवाद - क.
ट्रस्ट - सुरत; अङ्क ५२, पृ.११०
१०. वसन्तविलासमहाकाव्यम् - क. - बालचन्द्रसूरिजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५३, पृ. १६३
११. कीर्तिकौमुदीमहाकाव्यं तथा सुकृतसङ्कीर्तनमहाकाव्यम् - क. १. महाकवि सोमेश्वरदेव २. कवि अरिसिंह ठक्कुर, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबाला
-
धीरजलाल डाह्यालाल महेता, प्र. - जैनधर्म प्रसारण
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१३६
श्रीजी, प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५३, पृ. १६३
१२. सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादिवस्तुपालप्रशस्तिसङ्ग्रहः – सं. साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५३, पृ. १६३
१३. त्रैलोक्यदीपक राणकपुरतीर्थ - क. - डॉ. कुमारपाल देसाई, प्र. - शेठ आणंदजी कल्याणजी; अङ्क ५३, पृ. १६३ - १६४
१४. व्यवहारसूत्रम्(सटीकम् ) - भाग १ - ६ - टीका. - श्रीमलयगिरिसूरिजी, सं. – श्रीमुनिचन्द्रसूरिजी प्र. - ॐ कारसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत; अङ्क ५३, पृ. १६४
१५. किरातार्जुनीयम्-प्रदीपिकावृत्तिः क. महाकवि भारवि, टीका श्रीधर्मविजयजी, सं. अम्बालाल प्रजापति, प्र. वीरशासनम् - सूरत; अङ्क
1
५३, पृ. १६४
१६. प्राकृतरूपावली - क. – श्रीविजयकस्तूरसूरिजी, प्र.
-
—
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-
अनुसन्धान-६८
अङ्क ५३, पृ. १६४
१७. भक्तामरस्तोत्र( सटीक ) - क.
श्रीमानतुङ्गसूरिजी, टीका. - १, उपा. श्रीमेघविजयजी २. श्रीकनककुशल गणि ३. श्रीगुणाकरसूरिजी, सं. - मुनि श्रीयुगचन्द्रविजयजी प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन; अङ्क ५३, पृ. १६४-१६५
१८. उवासगदसाओ - सं. - मुनि दुलहराज, प्र. - जैन विश्वभारती; अङ्क ५३,
भद्रङ्कर प्रकाशन;
पृ. १६५
१९. जीतकल्प- सभाष्य क. श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सं. - समणी कुसुमप्रज्ञा, प्र. - जैन विश्व भारती - लाडनूं; अङ्क ५३, पृ. १६५-१६६ २०. शोभनस्तुति - वृत्तिमाला - खण्ड १ - २, सं. - श्रीहितवर्धनविजयजी, प्र. - कुसुम अमृत ट्रस्ट - वापी; अङ्क ५३, पृ. १६६-१६८
२१-२२. निर्ग्रन्थसम्प्रदाय - जैनतर्कभाषा - ज्ञानबिन्दुपरिशीलन (गुजराती), पञ्चकर्मग्रन्थपरिशीलन (गुजराती) - क. - पण्डित सुखलालजी, अनु. - डॉ. नगीन जी. शाह, प्र. संस्कृत - संस्कृति ग्रन्थमाला
अमदावाद; अङ्क
५३, पृ. १६८
२३. उपदेशमाला-हेयोपादेयाटीका - क. श्रीधर्मदास गणि, टीका.
-
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डिसेम्बर - २०१५
१३७
श्रीसिद्धर्षि गणि, सं. - मुनि श्रीजम्बूविजयजी, प्र. - श्रुतज्ञान प्रसारक सभा -
अमदावाद; अङ्क ५३, पृ. १६९-१७० २४. भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकळा - क. - मुनि
श्रीपुण्यविजयजी, प्र. - श्रुतरत्नाकर - अमदावाद; अङ्क ५३, पृ. १७० २५-२७. TheJain Philosophy, The Yoga Philosophy, The Un
known Life of Jesus Christ - क. - वीरचंद राघवजी गांधी, सं. - कुमारपाळ देसाई, प्र. - वर्ल्ड जैन कोन्फेडरेशन - मुम्बई; अङ्क ५३, पृ.
१७०-१७१ २८. व्युत्पत्तिवाद( कारक-२, खण्ड -१)-गुजराती विवेचन - क. -
गदाधर भट्ट, वि. – मुनि श्रीभव्यसुन्दरविजयजी, प्र. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट; अङ्क
५३, पृ. १७१ २९. पटदर्शन - सं. - डॉ. कल्पना के. शेठ, प्रो. नलिनी बलबीर, प्र. - जैन
विश्व भारती - लाडनूं अङ्क ५४, पृ. २०० ३०. Elements of Jaina Geography - क. - Frank Van Den
Bossche, प्र. - MLBD; अङ्क ५५, पृ. १४४ ३१. शब्दप्रभेदः-सटीकः - क. - महेश्वर कवि, टीका. - उपा. श्रीज्ञानविमल,
सं. - श्रीचन्द्रसूरिजी, म. विनयसागर, प्र. - रांदेर रोड जैन सङ्घ - सूरत;
अङ्क ५६, पृ. १७६-१७७ ३२. प्रबोधचिन्तामणिः - क. - श्रीजयशेखरसूरिजी, सं. – मुनि श्रीहितवर्धन
विजयजी, प्र. - कुसुम अमृत ट्रस्ट – वापी; अङ्क ५६, पृ. १७७-१७८ ३३. अप्रगट प्राचीन गूर्जर साहित्यसंचय - सं. - साध्वी श्रीविरागरसाश्रीजी,
डॉ. कविन शाह, प्र. - ॐकारसूरि आराधना भवन - सूरत; अङ्क ५७, पृ.
१२५ ३४. पार्श्वनाथचरित्रम् – क. - श्रीहेमविजय गणि, सं. - मुनि श्रीहितवर्धनविजयजी,
प्र. - कुसुम अमृत ट्रस्ट – वापी; अङ्क ५७, पृ. १२५-१२७ ३५. ऋषिदत्ताचरित्रसङ्ग्रहः - सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, पं. अमृत पटेल, __प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन - अमदावाद; अङ्क ५७, पृ. १२७-१२८
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१३८
अनुसन्धान- ६८
३६. सम्मत्तम् - क. - डॉ. भानुबहेन सत्रा, प्र. - अजरामर जैन सेवा सङ्घ - मुम्बई;
अङ्क ५७, पृ. १२८-१२९
३७. जयन्तविजयमहाकाव्यम् - क. श्रीअभयदेवसूरिजी, सं. - साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजी, प्र. - भद्रङ्कर प्रकाशन - अमदावाद; अङ्क ५७, पृ. १२९ ३८. नन्दिसूत्रम् (मलयगिरीय वृत्ति अने तेना आंशिक अनुवाद साथे ) अनु. - श्रीअजितशेखरसूरिजी, प्र. - अर्हं परिवार ट्रस्ट - मुम्बई; अङ्क ५७, पृ. १२९
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३९. पिण्डनिर्युक्ति - सटीक - क. - श्रीभद्रबाहुस्वामी, टीका. - श्रीहरिभद्रसूरिजी, श्रीवीराचार्य, प्र. – अंधेरी गुजराती जैन सङ्घ - मुम्बई; अङ्क ५८, पृ.
१६६-१६७
४०. सन्मतितर्क - सटीक, सविवेचन भाग १-५ क. श्रीसिद्धसेन दिवाकरजी, टीका - श्रीअभयदेवसूरिजी, विवे. - श्रीजयसुन्दरसूरिजी प्र. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट - धोळका; अङ्क ५८, पृ. १६७
४१. समकित सडसठबोल बारप्रकारी पूजा - क. - मुनि श्रीरत्नयशविजयजी, प्र. - बकुभाई मणिलाल परिवार - अमदावाद; अङ्क ५८, पृ. १६७ - १६८ ४२. विशेष - णवति - सटीक - क. - श्रीजिनभद्रगणि, टीका - श्रीकुलचन्द्रसूरिजी, प्र. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट - धोळका; अङ्क ५८, पृ. १६८-१६९
४३. सिद्धहेमशब्दानुशासन - बृहद्वृत्तिदुण्डिका - भाग ३ - ४ - सं. - मुनि श्रीविमलकीर्तिविजयजी, प्र. - श्रीहेमचन्द्राचार्य निधि - अमदावाद; अङ्क ५८, पृ. १६९
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४४. योगग्रन्थव्याख्यासङ्ग्रहः – सं. - श्रीकीर्तियशसूरिजी, प्र. - सन्मार्ग प्रकाशन अमदावाद; अङ्क ५९, पृ. १५१
४५. आयारंगसुत्तं - चूर्णिसहित - भाग १, सं. - मुनिश्री अनन्तयशविजयजी, प्र. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट - धोळका; अङ्क ५९, पृ. १५१
४६. योगविंशिकाप्रकरणम् - सटीकम् - क. - श्रीहरिभद्रसूरिजी, टीका उपा. श्रीयशोविजयजी, सं. - श्रीकीर्तियशसूरिजी, प्र. – सन्मार्ग प्रकाशन अमदावाद; अङ्क ५९, पृ. १५१
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डिसेम्बर २०१५
२.
५६, पृ. १७९-१८१
३.
डॉ. नगीन जे. शाह - अङ्क ६३, पृ. १९१
४. महोपाध्याय विनयसागर - अङ्क ६५, पृ. ३२२
आवरणचित्र
अङ्क
५१
५२
५३
५४
५५
५६
५७
५८
५९
६०
श्रद्धाञ्जलि
आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ - अङ्क ५१, पृ. २०
आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी म. - अङ्क ५५, पृ. ५ (आगळ),
अङ्क
आवरण
१
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४
१
४
१
१
४
१
४
१
४
१
M
चित्र
आनन्द व. ५ श्रावको
अंग्रेजी स्टाइलमां नगर, किल्लो, जहाजो
हेमचन्द्राचार्य-मूर्ति कुमारपाल-मूर्ति
सिद्धहेमव्याकरणनी शोभायात्रा आचार्य अने अध्यापक द्वारा
सिद्धहेमव्याकरणनुं अध्यापन शालिभद्र अने धन्ना (काष्ठचित्रपट) विजयसूर्योदयसूरिजी म. सरस्वती देवी
सरस्वती देवी
छ लेश्या - पट्ट
छ लेश्या - चित्र
तीर्थङ्कर भगवान श्रीहेमचन्द्राचार्य-मूर्ति
१३९
उपाध्याय श्रीविनयविजयजीना हस्ताक्षर
सचित्र विज्ञप्तिपत्रनो प्रारम्भिक अंश
परिचय
पृ. ६
आव. ४
पृ. ४९
पृ. ५ (आगळ)
पृ. १५३
पृ. ४ (आगळ)
पृ. ४-५ (आगळ)
१५४
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१४०
अनुसन्धान-६८
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६१
१-४
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सचित्र विज्ञप्तिपत्रगत एक चित्र पं. श्रीनयविजयजीना हस्ताक्षर उपाध्याय श्रीयशोविजयजीना हस्ताक्षर सचित्र विज्ञप्तिपत्रगत चित्र सचित्र विज्ञप्तिपत्रगत चित्र ताडपत्रगत गुरुभगवन्तनुं चित्र समळीविहारतीर्थ तथा अश्वावबोधना प्रसंगने कंडारतुं प्राचीन शिल्प हस्तप्रतगत देव-देवीओ हस्तप्रतगत राजा-राणी सचित्र विज्ञप्तिपत्रगत चित्र सचित्र विज्ञप्तिपत्रगत चित्र कवि श्रीउदयरत्नना हस्ताक्षर ऐतिहासिक कुङ्कमपत्रिका सरस्वती-प्रतिमा प्रतिमा परनो लेख अम्बड-सुलसा सती सुभद्रा
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»
२० (आगनु)
&
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१७२
-
१६८
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________________ डिसेम्बर - 2015 141 अनुसन्धाननी तवारीख महिनो विशेष जून / सप्टेम्बर डिसेम्बर श्रीहेमचन्द्राचार्य - विशेषाङ्क - खण्ड 1 फेब्रुआरी श्रीहेमचन्द्राचार्य - विशेषाङ्क - खण्ड 2 अङ्क वर्ष (ई.स.) 51 2010 52 2010 2010 54 2011 55 2011 56 2011 57 2011 58 2012 59 2012 60 2013 61 2013 62 2013 63 2014 64 2014 65 2014 66 2015 67 2015 विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क - खण्ड 1 विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क - खण्ड 2 ओगस्ट डिसेम्बर फेब्रुआरी जून जान्युआरी जून ओगस्ट जान्युआरी जुलाई नवेम्बर फेब्रुआरी जून OC विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क - खण्ड 3 विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क - खण्ड 4