SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० अनुसन्धान-६८ योगबिन्दु - टीका अङ्गे थोडुक चिन्तन ___- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय वि.सं. २०६६ना वर्षमां पूज्य गुरुभगवन्त श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजे श्रीहरिभद्रसूरिजीरचित योगबिन्दुप्रकरण® टीका साथे अध्ययन कराव्युं. ते वखते वाचनानुं संशोधन-सम्पादन करवाना आशयथी योगबिन्दु-सटीकनी ताडपत्रीय अने कागळनी प्रतो पण साथे राखी हती. अध्ययन दरमियान ख्याल आव्यो के टीकाना संशोधनमां अटली मुश्केली पाठशुद्धिनी नथी, जेटली अर्थशुद्धिनी छे. अर्थशुद्धिनी आ समस्या प्रत्ये विद्वज्जनोनुं ध्यान दोरवानो ज आ लखाणनो आशय छे. योगबिन्दनी टीका स्वयं श्रीहरिभद्रसरिजीनी रचना नथी ते वात श्रुतस्थविर पूज्य मुनिराज श्रीजम्बूविजयजी महाराजे 'योगबिन्दुना टीकाकार कोण?' ओ लेख लखीने बहु सरस रीते साबित करी आपी छे. (जुओ 'महावीर जैन विद्यालय - सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ', पृ. ६८-७०). तेओओ स्वमन्तव्यना समर्थनमां जे सचोट पुरावा टांक्या छे तेमां ओक ओ छे के श्रीहरिभद्रसूरिजीओ योगबिन्दुमां श्लोक ४३९ थी ४४२ तरीके बौद्ध तार्किक धर्मकीर्तिना प्रमाणवातिकमांथी चार कारिका उद्धृत करी छे. आ कारिकाओ सर्वज्ञत्व विशेनुं बौद्ध मन्तव्य सूचवे छे. परन्तु टीकाकारे आ कारिकाओ मीमांसक कुमारिलना मत तरीके वर्णवी छे. आ अनाभोग, टीकाकार ग्रन्थकारथी जुदा होवानुं स्पष्टपणे सूचवे छे. • आQ ज अक अन्य दृष्टान्त श्लोक १०५नी उत्थापनिकामां अमने जोवा मळ्यु. योगशतक - गाथा १०नी टीकामां श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजे अन्य योगशास्त्रकारना नामे ५ श्लोक उद्धृत कर्या छे. आ ज ५ श्लोक नजीवा फेरफार साथे योगबिन्दुमां श्लोक १०१ थी १०५ तरीके भगवान गोपेन्द्रना नाम साथे उद्धृत छे. पण टीकाकार १०५मा श्लोकने श्रीहरिभद्रसूरिजी, पोतानुं कथन समजीने चाल्या छे – 'इत्थं गोपेन्द्रमतमनूद्य वस्तुस्थितिं प्रतिपादयन्नाह (-उत्थापनिका)।' आश्चर्यनी वात ओ छे के आ श्लोकना चोथा पादमां इति मनीषिणः अवा, उद्धरण पूरं थतुं होवाना सूचक शब्दोने टीकाकारे ध्यान पर ज नथी लीधा, परिणामे श्लोक १०६ -
SR No.520569
Book TitleAnusandhan 2015 12 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages147
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy