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________________ डिसेम्बर २०१५ - श्रीविजय सेन सूरि-प्रसादित बे दस्तावेजी मूल्य धरावता पत्रो २३ पत्र लखवो ओ ओक कळा छे, साहित्यिक विधा पण. भारतमां सदीओथी पत्रो लखाता आव्या छे, जेमां राजकीय पत्रो, सामाजिक व्यवहारोने लगता पत्रो, उपदेशात्मक पत्रो, औतिहासिक अथवा दस्तावेजी कही शकाय तेवुं वर्णन धरावता पत्रो, तत्त्वचर्चा करता पत्रो, व्यापार अने लेवड - देवड विषयना पत्रो ओम अनेक प्रकारना पत्रोनो समावेश थाय छे. आवा विविधविषयक पत्रो संस्कृत भाषामां पण लखाता, अने घणा भागे वहीवट अने व्यवहार माटे चलणी होय तेवी लोकभाषामां पण लखाता. आवा विविध पत्रोनुं संकलन करीने तेना ग्रन्थ पण वडोदराथी गायकवाड्झ ओरिएन्टल सिरिझमां वर्षो पूर्वे प्रकाशित थयेला छे, जेनुं वांचन जे ते समयना वातावरणनो सर्वाङ्गी अने रसप्रद परिचय करावी जाय छे. - विजयशीलचन्द्रसूरि - जैन मुनिओ द्वारा पण पत्रलेखन थतुं हतुं. ओवा पत्रो मुख्यत्वे ‘विज्ञप्तिपत्र’ना नामे ओळखाय छे, जेमां चातुर्मास माटेनी गुरुजनोने विज्ञप्ति तेमज संवत्सरी पर्वने निमित्ते क्षमापना ए बे बाबतो मुख्य रहेती. पण आ बे मुद्दाने केन्द्रमां राखीने जे विद्वत्तापूर्ण काव्यरचनाओ थती, तेने लीधे ते पत्रो ओक स्वतन्त्र ग्रन्थनी के काव्यनी रचनास्वरूप बनी रहेता . जैन मुनिओ द्वारा लखाता केटलाक पत्रोमा तात्त्विक चर्चा, चिन्तन तथा प्रश्नोत्तरो पण लखातां हतां. आवा पत्रो धर्मविषयक विविध प्रश्नोनी छणावट करता होय छे, अथवा दार्शनिक के तात्त्विक मुद्दाओ विशे गहन विमर्श करता होय छे. क्यारेक कोई बाबते कोईने शङ्का उद्भवे अथवा ते बाबत परत्वे प्रवर्तमान अर्थघटन के मान्यतामां कोईने भिन्न मत सूझे, तेवे वखते विवेकीजनो पोताना तेवा भिन्न मतने वळगी रहेवाने के महत्त्व आपवाने बदले, अधिकृत गुरुजनोने ते वात पत्रथी लखी जणावता - पूछावता, अने ते गुरुजन तरफथी तेनो स्पष्ट प्रत्युत्तर पण मळतो पत्र द्वारा ज, जे शास्त्र अने परम्पराना हार्दने अनुरूप
SR No.520569
Book TitleAnusandhan 2015 12 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages147
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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