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________________ ३४ अनुसन्धान-६८ ध्यान न जवाने लीधे अर्थमां केटली क्लिष्टता आवी छे ते आ श्लोकनी टीका जोवाथी ज समजाशे. • श्लोक ५१५मां पण अवग्रहनी शक्यता पर ध्यान न जवाने लीधे ओक सरस दलील तद्दन अस्पष्ट रही जवा पामी छे. ब्रह्माद्वैतमतमां जीवमात्रने परब्रह्मना अंशरूप समजाववामां आवे छे. आनी सामे तर्क करवामां आव्यो छे के ओ अंशो जो अविकारी मुक्तब्रह्मना अंशो छे तो तेमां विकारित्व केवु ? अने जो ओ अंशो खरेखर विकारी ज छे तो न्याय ओ ज छे के अंशी (-परब्रह्म) पण अमुक्त बनशे. केम के जेना अंशो विकारी छे ते अंशी मुक्त होय ज कई रीते ? आ दलीलनो श्लोक आम छे - मुक्तांशत्वे विकारित्वमंशानां नोपपद्यते । तेषां चेह विकारित्वे सन्नीत्याऽमुक्ततांऽशिनः ॥ आमां चोथा पदमां मुक्तता पहेला अवग्रह नथी ओम समजीने टीकाकारे व्याख्यान कर्यु छे. परंतु अने लीधे वक्तव्य तद्दन अस्पष्ट रहे छे. • टीकाकारे करेला सर्वनामना अर्थ पण घणी जग्याओ बदलवा जेवा लागे छे. जेमके - श्लोक पद टीका अर्थ संभवित अर्थ २१६ तस्याः मुक्तेः मुक्तीच्छायाः २६० अस्य स्त्रीरत्नस्य गुरुदेवादिपूजनस्य ३४४ पुरुषकारेणैव भावेनैव ३७२ अस्य पूर्वोक्तयोगभाजः चारित्रिणः अन्यसंयोगः अपगमः एषः अध्यात्मादिर्योगः वृत्तिसंक्षयः ५१३ तद्वैतै पुरुषार्थलक्षणे पुरुषद्वैते (पुरुषबहुत्वे) आ अर्थोने लीधे तात्पर्यमां घणो फेर पडी जाय छे. • सटीक ग्रन्थोनी अक सौथी मोटी समस्या ओ होय छे के टीकाकार भगवन्तने मूळ ग्रन्थनो जे पाठ मळ्यो अने जे पाठ तेओओ स्वीकार्यो ते पाठ तेनैव ४०७ अयम् ४१९
SR No.520569
Book TitleAnusandhan 2015 12 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages147
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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