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डिसेम्बर - २०१५
मुनि श्रीक्षमाकल्याणजी रचित 'जय तिहुअण'स्तोत्र-भाषा
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय स्तम्भनकपार्श्वनाथनी उत्पत्ति :
चिर्पटनाथ नामना योगी पासेथी सुवर्णरस साधवानी साधना पामी ते रस सिद्ध करवाना प्रयत्नो योगी नागार्जुने शरू कर्या. घणा प्रयत्नो करवा छतां ज्यारे रस सिद्ध न थयो त्यारे पादलिप्तसूरिजी पासेथी 'पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा समक्ष सिद्ध करातो रस कोटीवेधी थाय छे' एवं सांभळी कान्तिपुरथी पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा लावी तेनी समक्ष सुवर्णरसनी सिद्धि करी. रस सिद्ध कर्या पछी ते प्रतिमा त्यां ज सेढी नदीना तट पासे पधरावी. काळान्तरे चन्द्रगच्छीय नवाङ्गीटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजीने ज्यारे कोढ थयो त्यारे शासनदेवीए सूरिजीने सेढी नदीना तट पासे पधरावेला ते स्तम्भनक पार्श्वनाथप्रभुना बिम्बनी वन्दना करवा जणाव्यु. सूरिजी सङ्घ सहित त्यां पधार्या. 'जय तिहुअण' शब्दथी आरम्भाता नवा स्तोत्रनी रचना प्रभु समक्ष करता गया. स्तोत्र पूर्ण थतां (मतान्तरे १६मा श्लोके) पलास वृक्षना मूळमांथी प्रभुनी प्रतिमा प्रगट थई. तेमज तेना स्नात्रजलथी सूरिजीनो कोढ रोग दूर
थयो.
स्तम्भनकपुर अने स्तम्भनपुर :
सुवर्णरसनी सिद्धि पार्श्वनाथप्रभुनी प्रतिमा समक्ष कराई. रस स्तम्भित थयो तेथी ते प्रतिमा स्तम्भनकपार्श्वनाथना नामे ओळखाई. वळी ते ज प्रभुना नाम उपरथी गामनुं नाम पण स्तम्भनकपुर पड्युं. आजे आ गाम खेडा जिल्लाना आणन्द तालुकामां आवेला उमरेठ गाम पासे सेढी नदीना किनारे थामणा नामथी ओळखाय छे. ज्यारे स्तम्भनपुर एटले हालतुं खम्भात. आ बन्ने गाम जुदा जुदा छे. नामना साम्यपणाथी क्यारेक ए अंगे भ्रम थाय छे. परन्तु स्तम्भनाधीशप्रबन्धसङ्ग्रह ग्रन्थमां ए अंगे स्पष्ट नोंध मळे छे. “१३६८ वर्षे इदं च बिम्बं श्रीस्तम्भतीर्थे समायातं भविकानुग्रहाय' आ पङ्क्तिना अर्थ मुजब सं. १३६८मां ते बिम्ब स्तम्भनकपुरथी स्तम्भनपुरमां लवायुं हशे एम अनुमान थाय. मूळकृतिनी श्लोकसङ्ख्या अने भण्डारेली गाथा अंगे :
प्रबन्धचिन्तामणिकार श्रीमेरुतुङ्गाचार्यजीनी नोंध मुजब '...नवं द्वात्रिंशिका