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डिसेम्बर - २०१५
एवंकारइ भवनपति, सात जिणालइ कोडि पायालिं समरठं सदा, लाख बहत्तरि जोडि ॥२१॥(२२) पडिमा तेरह कोडिसइ, अनइ नव्यासी कोडि साठि लाख सउं मेलि करि, अहनिसि मनहं म छोडि ॥२२॥(२३)
॥ वस्तु ॥ उढलोगिहिं उढलोगिहिं भणउं जिणसंख सोहमिंकप्प जिणभवण, लाख बत्तीस जाणउं सत्तावन कोडि गिणि साठि, लाख जिण चित्ति आणउं लाख विमाण विचारियइं, इसाणि अडवीस, कोडि पचास नमउं थुणउं, जिणह लक्ख चालीस ॥२३॥(२४)
भास बारह लाख विमाण, सनतकुमार संभारियइ इगवीस कोडि प्रमाण, साठि लाख प्रतिमा नमउं ॥२४॥(२५) माहिंदि सुरलोइ, आठ लाख जिणमंदिरह चउद कोडि जिण जोइ, चालीसे लाखे सहिअ ॥२५॥(२६) जिनहर चारइ लाख, ब्रह्म नाम कलपें कह्या ए सात कोडिनी भाख, वीस लाख जिन मइं सुणिअ ॥२६॥(२७) लंतकि छट्ठइ जाणि, सहस पचास जिणालयह निवइ लाख वखाणि, सासय जिणपडिमा नमउं ॥२७॥(२८) सुक्र सहस चालीस, देवलोकि पुण सातमए। तिहुयण तणा अधीस, लाख बहत्तरि वंदियए ॥२८॥(२९) आठम्मई सहसारि, छ सहस मंदिर देवना ए दह लख जिण अवधारि, असी सहसिइं आगला ए ॥२९॥(३०)
आनति बि सइ विमान, सहस छत्तीस जिणेसरहं पाणत एह प्रमाण, अधिकउ नई ओछउ नहिय ॥३०॥(३१) आरणि अच्युति जाणि, द्योढ द्योढ सउ देहुरहं । इक इक प्रति वखाणि, सहस सत्ताईस पडिम तिहिं ॥३१॥(३२)