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________________ डिसेम्बर ११. हेमचन्द्राचार्य माटे प्रवर्तेली भ्रमणाओ अने तेनुं निरसन - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी, अङ्क ५४, पृ. ६२-७८. १२. खारवेलनो हाथीगुफा - अभिलेख - डॉ. हसमुख व्यास, अङ्क ५४, पृ. १३३-१३९. - २०१५ १९२७ १३. Are Pāndava Brothers Jain or Non-Jaina ? : An unprec edented explanation by Acarya Hemacandra Padmanabh S. Jaini, अङ्क ५४, पृ. १५०-१६६. - १४. A note on Hemacandra's Abhidhāncintāmani & Sanskrit ‘Karmavati' - Nalini Balbir, अङ्क ५४, पृ. १६७-१९९. १५. सन्मतितर्क - गाथा १.४१ ( एवं सत्तविअप्पो ... ) ना तात्पर्य विशे विचारणा - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५५, पृ. ८३-११६. १६. भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो : औतिहासिक परिप्रेक्ष्यमां विवेचनात्मक अभ्यास - मणिभाई प्रजापति, अङ्क ५५, पृ. ११७-१४३. १७. दर्शन विशे विचारणा - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५६, पृ. १४३-१७३. १८. विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता जैनसाहित्य के सन्दर्भ में - डॉ. सागरमल जैन, अङ्क ५७, पृ. ११७-१२४. १९. जैन कथा साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ५८, पृ. १३२-१४५. २०. निह्नव रोहगुप्त, श्रीगुप्ताचार्य अने त्रैराशिकमत* - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५८, पृ. १४६-१६५. २१. पउमचरियं : एक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन, अङ्क ५९, पृ. ७२ - ९५. २२. माथुरी गणना अने वालभी गणना वच्चे वीरनिर्वाण संवत्ना १३ वर्षना तफावतना वास्तविक कारण विशे ऊहापोह - मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, अङ्क ५९, पृ. ९६-१०५. २३. सिद्धसेन दिवाकरजीना केवलज्ञान - दर्शन अंगेना मन्तव्य विशे विचारणा - मुनि श्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजी; अङ्क ५९, पृ. १०६-१४३ * जुओ अङ्क ५९, पृ. ९६.
SR No.520569
Book TitleAnusandhan 2015 12 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages147
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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