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अनुसन्धान-६८
श्लोक, अनेक चित्रकाव्योथी अलङ्कृत, पांच अधिकार - १. जिनस्तुतिरूप 'चित्रचमत्कार' नामनो २. गुरुभगवन्तना निवासस्थान-वर्णनरूप 'अलङ्कारचमत्कार' नामनो ३. वृत्तान्तवर्णनरूप 'अनुप्रासचमत्कार' नामनो ४. गुरुवर्णनरूप 'शेषचित्रचमत्कार' नामनो ५. लेखप्रशंसादिरूप 'दृष्टान्तन्यासचमत्कार' नामनो, 'आनन्दलेखप्रबन्ध' नाम, सटिप्पण, आदि - स्वस्तिश्रियां
मन्दिरमिन्दिरालीमिन्दिन्दिरालीमिव यः पिपति; पृ. ७३-८८. १३५. सूर्यद्रङ्ग(-सूरत) बिराजमान श्री विजयप्रभसूरिजी पर योधपुर(-जोधपुर)थी
उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १३१ श्लोक, मेघदूतनुं अनुकरण, 'इन्दुदूत' नाम, आदि - स्वस्तिश्रीणां भवनमवनीकान्तपङ्क्तिप्रणम्यम्; पृ. ८९-९७, (निर्णयसागर मुद्रणालय द्वारा प्रकाशित काव्यमाला - गुच्छक १४मां मुद्रित तेमज श्रीधुरन्धरसूरिजी कृत 'प्रकाश'
टीका सहित जैन साहित्यवर्धक सभा तरफथी ई.स. १९४६मां प्रकाशित). १३६. देवकपत्तन(-दीव) बिराजमान श्रीविजयदेवसूरिजी पर नव्यरङ्ग(
नवरंगाबाद?)थी उपाध्याय श्रीमेघविजयजी द्वारा लिखित, संस्कृत, १३१ श्लोक, 'मेघदूत-समस्यापूर्ति'मय लेख, सटिप्पण, आदि - स्वस्ति
श्रीमद्भुवनदिनकृवीरतीर्थाभिनेतुः; पृ. ९८-१०६. १३७. श्रीजिनसुखसूरिजी पर अकबराबादथी पं. श्रीविजयवर्धनजी द्वारा लिखित,
संस्कृत, १०८ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियालङ्कृत ईश्वरोऽग्यः सर्वज्ञ
आनन्दमयः स्वयम्भूः; पृ. १०७-११३. १३८. बीकानेर बिराजमान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी पर मालवद्रङ्गथी उपाध्याय
श्रीराजविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७२७, संस्कृत, १०२ श्लोक, प्रथम ३ श्लोक त्रुटित, ४था श्लोकनी आदि - मणुन्नरूवं सयणाणुकूलं
सुलोयणं राइमइं विहाय; पृ. ११४-११९. १३९. जीर्णदुर्ग(-जूनागढ) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर घनौघबन्दिर(
घोघा)थी पं. श्रीनयविजयजी द्वारा लिखित, सं. १७१७, संस्कृत, १०२ श्लोक, आदि - स्वस्तिश्रियेऽस्तु विमलादिरनन्ततीर्थयात्रा०; पृ. १२०
१२५. १४०. द्वीपबन्दिर(-दीव) बिराजमान श्रीविजयप्रभसूरिजी पर राजधन्यपुर(