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डिसेम्बर - २०१५
एक इतिहास-पत्र
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
विक्रमनी १३-१५मी सदीमां थयेला तपागच्छना अधिपति महापुरुषो तथा अन्य प्रभावक आचार्योना जीवनकार्य, चमत्कार तेमज ज्ञानोपासनानी अछडती नोंध आपतुं ओक फुटकळ पत्र राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुर, क्र. २११७६/ २ मां सचवायुं छे. तेनी पूज्य उपाध्याय श्रीभुवनचन्द्रजी म. द्वारा प्राप्त छायाप्रतिना आधारे प्रस्तुत सम्पादन थयुं छे. आ माटे पूज्य उपाध्याय भगवन्त तेमज संस्थानना कार्यवाहकोनो आभारी छु.
आ नोंधमा उल्लिखित आचार्यो अने तेमनां जीवनकार्यो व.नी सुविस्तृत नोंध जैन परम्परानो इतिहास भाग-३ (ले. त्रिपुटी महाराज)मां आपेली होवाथी ते अंगे वधु चर्चा न करता त्यांथी ज जोई लेवा भलामण छे. अत्रे फक्त जे विगतो त्यां नोंधाई नथी अथवा तो त्यांनी नोंध करतां जुदी पडे छे ते ज दर्शावाय छे. • वृद्धपोशाळना आद्याचार्य श्रीविजयचन्द्रसूरिजी कोना शिष्य हता अने तेओने
आचार्यपदवी कोणे आपी हती ते अंगे ऊहापोह करीने जैपइ - ३, पृ. ७-८मां एवी सम्भावना दर्शावाई छे के श्रीविजयचन्द्रसूरिजी श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना शिष्य हता अने तेमने आचार्यपदवी श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना काळधर्म पछी तेमना शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरिजीना हस्ते मळी हती. पण आ पत्रमा स्पष्ट कथन छे के श्रीविजयचन्द्रसूरिजी श्रीदेवभद्रगणि (चैत्रवालगच्छीय)ना शिष्य हता अने तेमने
आचार्यपद आपनार तपागच्छना आदिपुरुष श्रीजगच्चन्द्रसूरिजी हता. • (जैपइ-३, पृ. १२२-१२३) श्रीदेवेन्द्रसूरिजीना पट्टधर श्रीविद्यानन्दसूरिजीनी
आचार्यपदवीना सं. १३०४ अने सं. १३२३ ओम बे अलग-अलग उल्लेखो मळे छे. प्रस्तुत पत्रमा सं. १३०४मां आचार्यपदवी जणावाई छे. श्रीविद्यानन्दसूरिजीने कार्मणप्रयोगथी सूरिमन्त्रनी विस्मृति थई हती. आ ओक नवो उल्लेख छे. सं. १३२३ मां श्रीधर्मघोषसूरिजीनी आचार्यपदवी आ पत्रमा दर्शावाई छे, पण अन्य उल्लेखोना आधारे सं. १३२७ जोईओ अम जणाय छे. सं. १३२३ मां तेमनी उपाध्यायपदवी होई शके.