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________________ डिसेम्बर - २०१५ तुम तात-मात-स्वामी-सुमित्त, तुम सरन मोहि गति-मति पवित्त, में हु वराक दुखि भाग्यहीन, रख मुझहिं देव! तुम चरनलीन. २७ तुम किए केपि गत-रोग-चिंत, जसवंत मुक्ति-साधक महंत; रिपु-हीन केपि सुख-रासि-धाम, अवगणै केम मुझ पाससाम! २८ तुम हो निरीह प्रभु! सिद्धकांम, सुपरोपकारकर्ता सुनाम; । सब शत्रू-मित्रपरि तुल्ययोग, माऽवगन मोहि यद्यपि अयोग. २९ में दुःखतप्त तुम दुखनिवार, में करुणठाम तुम करुणकार, में हुं अनाथ तुम भुवनसाम, अवगनें मोहि यौ न शुभकाम. ३० ॥ अथ छंद - नाराच ॥ अयोग-योग-भेद नाथ! देख है न तो समा, परोपकार-भाविता कृपा-निधान उत्तमा; शमत भूमि-ताप मेघ नां गर्ने पटंतरो, इनें जू हेतु दीन-बंधु! पास! मो रछ्या करो. ३१ न दीनता विना जु कापि दीन-लोक-योग्यता, करै सहाय जाहिं देखकै सहाय-उद्यता; सुदीन तै जु दीन हीन में हुं तै तज्यौ यदा, जिनेश! पास! योग्य जान पाल मोहि सर्वदा. ३२ कछूक अल्प-कर्मतादि और योग्यता गनौ, जिनेश! जाहिं देखिकै करो सहाय दीननौं; प्रसन्न होउ नाथ! जेण सो हि में मंगलं, कछू न काम अन्यसें करौ तमेव निर्मलं. ३३ तवेश! प्रार्थना न होई निष्फला सुजानहुँ, तथापि में दुखी निसत्त उन्मना अकांमहुं; तिणै मनुं निमेषमांहि सर्वसिद्धि मो मिले, भयौ जू सत्पयौ क्षुधाव न उंबरू फलै. ३४ त्रिलोकनाथ! पास! में निजस्वरूप भाषितं, न जानहुं बहुत्त बोल कीजिये निजोचितं; न कोपि अन्य तो समौ दयानिधान लोकमें, तुही ज जौ न आदरै हताश होहिंगौ कि में. ३५
SR No.520569
Book TitleAnusandhan 2015 12 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages147
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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