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नानृतात्पातकं परम् ।
झूट से बड़ा कोई पाप नहीं। नारीणां भूषणं पतिः।
पति स्त्रियों का भूषण है। नार्कातपैलजमेति हिमैस्तु दाहम् । (नैषध०) कमल धूप से नहीं, पाले से झुलसता है। नाल्पीयान् बहु सुकृतं हिनस्ति दोषः। थोड़े से दोष से बहुत से पुण्यों का नाश नहीं
(किरात०) _होता। नासमोक्ष्य परं स्थानं पूर्वमायतनं त्यजेत् । | दूसरे स्थान को देखे बिना पहले को न छोड़े। नास्ति कामसमो व्याधिः।
काम के समान कोई रोग नहीं। नास्ति क्रोधसमो वह्निः।
क्रोध के समान कोई तेज नहीं। नास्ति चक्षुःसमं तेजः।
नेत्र के समान कोई आग नहीं । नास्ति आत्मसमं बलम् ।
आत्मा के तुल्य कोई बल नहीं । नास्ति प्राणसमं भयम् ।
प्राणभय के तुल्य कोई भय नहीं। नास्ति बन्धुसमं बलम् ।
बन्धु के तुल्य कोई बल नहीं। नास्ति मेघसमं तोयम्।
मेघ के समान कोई जल नहीं। नास्ति मोहसमो रिपुः।
मोह के समान कोई शत्रु नहीं। नास्त्यदेयं महात्मनाम् ।
ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसे महात्मा लोग न
दे सके। नास्त्यहो स्वामिभक्तानां पुत्रे वात्मनि वा | अहो ! स्वामिभक्तों को न पुत्र का मोह होता है स्पृहा । ( कथा० )
. न प्राणों का। निःसारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान । | प्रायः निकम्मी वस्तु का आडम्बर बहुत होता है। निजेऽप्यपत्ये करुणा कठिनप्रकृतेः कुतः? कठोर स्वभाववाले व्यक्ति को अपनी सन्तति
(प्रसन्नराघवे) पर भी दया नहीं आती। निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रमायते । | वृक्षहीन देश में एरण्ड भी वृक्ष माना जाता है। निद्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिकाः। | वेश्याएँ निर्धन पुरुष को छोड़ देती हैं। निर्धनता सर्वापदामास्पदम् ।
दरिद्रता सब दुःखों का कारण है। निर्धनस्य कुतः सुखम् ?
निर्धन को सुख कहाँ ? निर्वाणदीपे किमु तैलदानम् ?
दीपक बुझ जाने पर तेल डालने से क्या ? निवसन्ति पराक्रमाश्रया
समृद्धियाँ पराक्रम के आश्रय पर रहती हैं, . न विषादेन समं सशुद्धयः। (किरात०) विषाद के साथ नहीं। निवसन्नन्तदारुणि लंध्यो वह्निनं तु ज्वलितः। लकड़ी के अन्दर विद्यमान अग्नि पर से कूदा
जा सकता है, जलती पर से नहीं। निवृत्तरागस्य गृहं तपोवनम् ।
राग-रहित के लिए घर ही तपोवन है। निष्प्रज्ञास्त्ववसीदन्ति लोकोपहसिताः । बुद्धिहीन व्यक्ति दुःख उठाते हैं तथा लोगों के सदा । (कथा)
उपहासास्पद बनते हैं । निसर्गसिद्धो हि नारीणां सपत्नीषु हि स्त्रियों की सौतों के प्रति ईर्ष्या स्वाभाविक है ।
मत्सरः । (कथा) निःस्पृहस्य तृणं जगत्।
कामनारहित के लिये जगत् तृणतुल्य है। नीचाश्रयो हि महतामपमानहेतुः। नीच का आश्रय लेना बड़े लोगों के लिये अप
मानजनक होता है। नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण। पहिये के हाल के समान मनुष्य की अवस्था
(मेघ०) । ऊँची-नीची होती रहती है। नीचैरनीचैरतिनीचनीचैः
नीचे, ऊँचे और अत्यन्त नीचे, सभी उपायों से सर्वैरुपायैः फलमेव साध्यम् ।
अभीष्ट-सिद्धि करनी चाहिए।
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