Book Title: Adarsha Hindi Sanskrit kosha
Author(s): Ramsarup
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 788
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७०] . - १३. स्वप्नवासवदत्त-इसे 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण' का उत्तरार्द्ध कहना उचित है। इसमें उदयन का मगधकुमारी पद्मावती से विवाह और वासवदत्ता से पुनर्मिलन वर्णित है। यही भास की सर्वोत्तम कृति है। भास नवों रसों की व्यंजना में कुशल हैं। उनके चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक हैं और संवाद चुस्त तथा संक्षिप्त । सबसे बड़ी बात यह है कि ये नाटक अभिनय के लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं। भोज-सिंधुल के पुत्र परमार-वंशीय राजा भोज की राजधानी मालवा की धार या धारानगरी थी, जहाँ इन्होंने १०१८-१०६३ ई. तक शासन किया। पिता की मृत्यु के अनन्तर बालक भोज, राज्यलोलुप चाचा मंज के हाथों कालकवलित होने को थे वे परन्त भाग्यवश दच गये। ये बहुत उदार, विद्वान तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। भोजप्रबन्ध आदि कई ग्रंथों में इनके गुणों की कथाएँ लिखित हैं। ___शृङ्गारमंजरी ( आख्यायिका ), विद्याविनोद (काव्य), शिवदत्त (स्तोत्र), शिवतत्त्वरत्नकलिका ( शिवस्तोत्रव्याख्या ), सुभाषित, संगीतप्रकाशित, शृङ्गारप्रकाश, रामायणचम्पू और सरस्वतीकंठाभरण इनकी कृतियाँ कही जाती हैं। अंखक-काश्मीरनरेश महाकवि मंखक प्रख्यात आलंकारिक रुय्यक के शिष्य थे और गुरु-शिष्य दोनों ही काशीनरेश राजा जयसिंह (११२९-५० ई.) के सभापंडित थे। स्वर्गीय पिता की आशानुसार ही मंखक ने 'श्रीकण्ठचरित' नामक २५ सर्गों के सुन्दर महाकाव्य की रचना की जिसमें शंकर और त्रिपुर का युद्ध वर्णित है। इनकी शैली कालिदासानुसारिणी है। प्राकृतिक दृश्यों, सरस भावों तथा प्रभावक कल्पनाओं को कोमल पदावली में व्यक्त करने में मंखक विशेष कुशल हैं। मयूरभट्ट ये बाणभट्ट के सगे सम्बन्धी थे और वाराणसी के पूर्व में रहते थे। बाण के समान ये भी हर्षवर्द्धन की सभा के कवि थे। इन्होंने अपने कुष्ठ रोग के निवारणार्थ स्रग्धरा वृत्त में 'सूर्यशतक' स्तोत्र का प्रणयन किया जो वस्तुतः प्रौढ़ और मार्मिक कृति है। ये सूर्यदेव के रथ, अश्व आदि उपकरणों के वर्णन में तथा अनुप्रासमयी भाषा के प्रयोग में विशेष सफल हुए हैं। माघ-महाकवि माघ के पितामह सुप्रभदेव गुजरात के वर्मलात नामक राजा को मुख्यमंत्री थे और पिता दत्तक प्रकाण्ड विद्वान् तथा वदान्य । माघ का जन्म भीनमाल नगर में हुआ था ओर ये धारा के भोज से भिन्न किसी अन्य राजा भोज के मित्र थे। सुसम्पन्न कुल में उत्पन्न होने पर भी, कहते हैं इनकी मृत्यु अत्यधिक उदारता के कारण, दरिद्रता-वश हुई थी। ये सातवीं शती के उत्तरार्द्ध में विद्यमान थे। ये अपने एकमात्र उपलब्ध महाकाव्य 'शिशुपाल-वध के कारण अमर हो गये हैं । बीस सर्गों के इस महाकाव्य में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण के हाथों शिशुपाल के वध का विस्तृत वृत्त वणित है। काव्य के अध्ययन से माघ की राजनीतिशता और अलंकारप्रियता का अच्छा परिचय प्राप्त हो जाता है । माघ केवल रससिद्ध कवि ही नहीं, सर्वशास्त्रविद् गम्भीर विद्वान् भी थे। शास्त्रीय सिद्धान्तों का जितना सुन्दर सरस प्रतिपादन शिशुपालवध में उपलब्ध होता है, किसी अन्य काव्य में नहीं। माघ का पांडित्य सर्वतोमुखी है, बेद तथा दर्शन से लेकर राजनीति तक की विशेषज्ञता इनके ही काव्य में दिखाई देती है। नव-नव शब्दों के प्रयोग तथा व्याकरणानुरूप नव-नव शब्दरूपों के व्यवहार के कारण भी माघ विशेष प्रख्यात हैं। किसी भारतीय आलोचक का मत है उपमा कालिदासस्य, भारवेरर्थगौरवम् । दण्डिनः पदलालित्यं, माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥ अरारि-'अनवराघव' नाटक के रचयिता मुरारि मौदगल्यगोत्री वर्धमानक तथा तन्तुमती के पुत्र थे। ये संभवतः माहिष्मती ( दक्षिण में स्थित मान्धाता नगरी) के निवासी थे और ८०० ई० For Private And Personal Use Only

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