Book Title: Adarsha Hindi Sanskrit kosha
Author(s): Ramsarup
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 790
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७५२ ] जो संस्करण प्राप्त होते हैं उनमें पर्याप्त पाठभेद हैं । सच्चा कवि और उत्तम महाकाव्य कैसा होना चाहिए, यह हमें वाल्मीकि रामायण से ही विदित होता है । सामान्य मनुष्य गृहस्थ बनता है परन्तु गार्हस्थ्य को सफल बनाना कितना दुष्कर है, इसे गृहस्थ ही जानते हैं । इसी उच्च उद्देश्य की सिद्धि का मार्ग वाल्मीकि ने दशरथ, राम, लक्ष्मण, सीता, भरत आदि के दिव्य चरित्रों से प्रशस्त किया है। किसी विद्वान का यह विचार अत्युक्तियुक्त नहीं है कि संसार भर के साहित्य में सदाचार और काव्यत्व का जितना सुन्दर मिश्रण वाल्मीकि रामायण में हुआ है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं । रामायण करुणरस-प्रधान महाकाव्य है । इसमें बाह्य प्रकृति तथा मानवीय प्रकृति का अत्यन्त मनोरम चित्रण हुआ है। यह प्राचीन भारत की सभ्यता का उज्ज्वल दर्पण है । यही कारण है कि इसके उदात्त आदर्शों तथा पवित्र कथा के आधार पर परवर्त्ती असंख्य कवियों ने अपने काव्य, नाटक, चम्पू आदि की रचना की तथा इस पर तिलक, शृङ्गारतिलक, रामायणकूट, वाल्मीकितात्पर्यतरणि, विवेकतिलक आदि अनेक टीकाएँ लिखकर विद्वानों ने अपने प्रयास को सफल समझा । विशाखदत्त - इनके पितामहं बटेश्वरदन्त अथवा वत्सराज कहीं के सामन्त थे और पिता भास्करदन्त वा पृथु ने महाराज- पदवी प्राप्त की थी। विशाखदत्त राजनीति, दर्शन और ज्योतिष के विशेषज्ञ थे। ये वैदिकधर्मावलम्बी थे परन्तु साम्प्रदायिक कट्टरता से रहित थे। इन्होंने अपने प्रख्यात राजनीतिक तथा कूटनीतिक नाटक 'मुद्राराक्षस' की रचना छठी शती ईसवी के उत्तरार्द्ध में की थी। नाटक में चाणक्य का समग्र उद्योग इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए है कि राक्षस को चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधान मन्त्री बना दिया जाय और अन्ततः वे उसमें सफल होते हैं । राजनीतिक चालों तथा चरित्र चित्रण की दृष्टि से नाटक विशेष महत्वपूर्ण है। विशाखदत्त की दूसरी रचना ‘देवीचन्द्रगुप्त' के कुछ ही उद्धरण अन्य कृतियों में प्राप्त हुए हैं। उन्हीं के आधार ' पर चन्द्रगुप्त के अग्रज रामगुप्त की सत्ता ऐतिहासिकों ने स्वीकृत की है। विष्णुशर्मा - महिलारोप्य के शासक अमरशक्ति अपने मूर्ख राजकुमारों को चतुर बनाने के लिए योग्य शिक्षक की खोज में थे। इस कार्य को विष्णुशर्मा नामक ब्राह्मण ने पंचतंत्र की रचना द्वारा छह मास में ही पूर्ण कर दिया। 'पंचतंत्र' का रचना काल ३०० ई० के लगभग माना जाता है। छठी शती में इसका पहलवी भाषा में अनुवाद भी हो गया था। कदाचित् आरम्भ में इसके बारह भाग थे परन्तु वर्तमान में इसके पाँच भाग हैं - मित्रभेद, मित्र-सम्प्राप्ति,. काकोलूकीय, लब्धप्रणाश, अपरीक्षितकारक। इस कथा-ग्रन्थ में कथाएँ गद्य में हैं और शिक्षामंत्र पद्यों में । एक-एक मुख्य कथा के अन्तर्गत अनेक गौण कथाएँ दी गई हैं । - सदाचार, Doraeर और नीति के शिक्षार्थं यह कृति अत्यन्त उपयोगी है और यही कारण है कि अनेक विदेशी भाषाओं तक में अनूदित हो चुकी है। कटाध्वरि-ये मद्रास प्रान्त के श्रीवैष्णव थे । इन्होंने अपने 'विश्वगुणादर्शचम्पू' में मद्रास में अंग्रेजों के दुराचार का भी वर्णन किया है जिससे ये सत्रहवीं शती के मध्य के प्रतीत होते हैं । इनका यशोविस्तारक काव्य तो “लक्ष्मीसहस्र" है जिसको एक सहस्र ललित व भावपूर्णं पद्यों की रचना कहते हैं, इन्होंने एक ही रात में कर दी थी । काव्य में श्लेष तथा अन्यालंकारों की छटा अवलोकनीय है । इस अत्यन्त सरस व उत्प्रेक्षाबहुल रचना से कवि अमर हो गया है । व्यास - व्यासजी का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था । ये पराशर और सत्यवती के पुत्र थे । सुनते हैं, रंग से कृष्ण होने के कारण कृष्ण, द्वीप में उत्पन्न होने के कारण द्वैपायन तथा वैदिक मन्त्रों को वर्तमान व्यवस्थित रूप देने के कारण ये व्यास कहलाए । भारतीय परंपरा इन्हें महाभारत, १८ पुराणों तथा ब्रह्मसूत्रों का कर्ता मानती है, परन्तु आधुनिक विद्वान् महाभारत को न एककर्तृक मानते हैं न एककालीन । उनका मत है कि महाभारत के विभिन्न अंशों की रचना अनेक विद्वानों द्वारा समय-समय पर होती रही और उसे वर्तमान रूप ३२० ई० पू० तथा ५० ई० के मध्य में किसी समय प्राप्त हुआ । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831