Book Title: Adarsha Hindi Sanskrit kosha
Author(s): Ramsarup
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 821
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ७८३ ] - भोटांग-काश्मीर-कामरूप के अन्तर्गत देश, भूटान, तिब्बत । ( तारातन्त्र )। मातृदर्शन-( अवध में ) नन्दिग्राम, श्रादरसा-जहाँ भरत ने राम के वियोग में १४ वर्ष काटे थे। ( अर्चावतार ) मगध-दक्षिण बिहार, जिसकी राजधानी गिरिवज्र थी। अजातशत्रु ने वैशाली के वृज्जियों की उन्नति पर रोक रखने के लिए 'पादलिग्राम' को नई राजधानी में परिणत कर दिया था। यहीं पर भीम ने जरासन्ध का वध किया था। मणिकर्णिका-कुल्लू की घाटी में व्यास की एक धारा, जिसके निकट कुण्डों के गरम पानी में सब्जियाँ आग के बिना उबाली जा सकती हैं। मणितट-(आसाम में ) मणिपुर । ( मेघ० ) मत्स्य-जयपुर का प्राचीन क्षेत्र, जिसमें आधु० अलवर तथा भरतपुर शामिल थे। पाण्डों का अज्ञातवास इधर ही विराट के महलों में गुजरा था। मद्र-रावी चनाब का मध्यदेश, जिसकी राजधानी शाकल ( स्यालकोट ) थी। शल्य तथा , अश्वपति ( सावित्री का पिता) यहाँ के राजा रहे। 'माद्री' कन्यार अपने रूप-लावण्य के लिए प्रसिद्ध थीं। मधुपुरी-मधुरा (मथुरा)। इसे शत्रुघ्न ने बसाया था। मधु ( राक्षस ) की नगरी संभवतः आजकल की ‘महोली' है ( जहाँ 'मधुवन' तीर्थ भी है)। मध्यदेश-हिमगिरि, विन्ध्य, सरस्वती और प्रयाग के अन्तर्गत देश (जिसमें अन्तर्वेद सम्मिलित था ), बौद्ध ग्रन्थों का 'मज्झिमदेश'। इसमें कुरु, पंचाल, मत्स्य, यौधेय, कुन्ती, शूरसेन आदि का समावेश होता था । ( मनु०) मध्यमराष्ट्र-दक्षिणकोसल, महाकोसल । ( अर्थशास्त्र ) मन्दाकिनी-गढ़वाल में, केदारपति से उद्गत, कालीगंगा । (मन्दाग्नि) मन्दारगिरि-भागलपुर की एक पहाड़ी, जो 'समुद्रमन्थन' में मंथन-दण्ड के रूप में प्रयुक्त हुई थी। -मरु(-धन्व,-स्थल)-राजपूताना, मारवाड़। मरुद्वृधा-मरुवदवां, असिनी ( चनाब को एक धारा, 'आंस' ) के पश्चिम में । मयूर-हरिद्वार के निकट, मायापुरी। मलयागिरि-पश्चिमी घाट का दक्षिण भाग, 'बावनकोर हिल्ज़' । मलयालम्-मल्लार, मालाबार-जिसके अन्तर्गत कोचीन-त्रावनकोर का सारा प्रदेश था। (राजाबली)। मल्लदेश-मालव-देश, मुलतान । मल्लराष्ट्र-महाराष्ट्र। महती, महिता-(मालवा में ) माही नदी। महाकोसल-दक्षिणकोसल । महाकौशिक-नेपाल में सात 'कोसियों' से निर्मित एक और 'सप्तसिन्धु' देश, जहाँ 'तामोर अरुण-सुन' की 'त्रि-वेणी' भी है । महाराष्ट्र-कृष्णा-गोदावरी के इस 'मध्यदेश' को पहले 'दक्खिन' भी कहा करते थे, अश्मक भी। अशोक ने यहाँ महाधर्मरक्षित को भेजा था। 'आन्ध्रभृत्य, क्षत्रप, राष्ट्रकूट, चालुक्यकितने ही राजवंशों के उत्थान-पतन के अनन्तर, इतिहास में, मराठों का युग आता है। महावन-व्रज, गोकुल । महिष(मण्डल)-अनूपदेश अथवा हैहय राज्य ( आधु० मैसूर से कुछ अधिक ), राज. माहिष्मती। यहीं शंकर तथा मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ हुआ था। (दीपवंश) For Private And Personal Use Only

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