Book Title: Adarsha Hindi Sanskrit kosha
Author(s): Ramsarup
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 777
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७३६ ] - प्रति चरण २१ वर्णवाले छन्द (१) स्रग्धरा लक्षण-नभ्नर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् । (७, ७, ७ पर विराम) अर्थ-स्रग्धरा के प्रत्येक पाद में मगण, रगण, भगण, नगण और तीन यगण के क्रम से २१ अक्षर होते हैं । सातवें, चौदहवें और इक्कीसवें अक्षर के अन्त में यति होती है। उदाहरण म र भ न य य य (क) प्राणाधातानिवृत्तिः, परधनहरणे संयमः, सत्यवाक्यं, sss, ss, s ।।।।।।ss,Is S, Iss काले शक्त्या प्रदान, युवतिजनकथा, मूकभावः परेषाम् । तृष्णास्रोतोविभंगो, गुरुषु च विनयः, सर्वभूतानुकम्पा, सामान्यं सर्वशास्त्रेष्वनुपहतविधिः, श्रेयसामेष पन्थाः। (भर्तृहरि ) ( ख ) नाना फूलों-फलों से, अनुपम जग की, वाटिका है विचित्रा, भोक्ता हैं सैकड़ों ही, मधुप शुक तथा कोकिला गानशीला । कौए भी हैं अनेकों, पर धन हरने में सदा अग्रगामी, कोई है एक माली, सुधि इन सबकी, जो सदा ले रहा है ।। (रामनरेश त्रिपाठी) (ख)वर्णवृत्त, अब्दसम छन्द (१) वियोगिनी ( अन्य नाम-सुन्दरी) लक्षण-विषमे ससजा गुरुः समे, सभरा लोऽथ गुरुर्वियोगिनी। अर्थ-वियोगिनी के विषम ( प्रथम, तृतीय ) चरणों में दो सगण, जगण और गुरु के क्रम से १०-१० अक्षर और सम ( द्वितीय, चतुर्थ) चरणों में सगण, भगण, रगण, लघु और गुरु के क्रम से ११-११ अक्षर होते हैं । ( १०, ११, १०, ११)। उदाहरण स स . ज (क) सहसा विदधीत न क्रियाम् , ।।5, 115, Is Is अविवेकः परमापदां पदम् । वृणुते हि विनुश्यकारिणं स भ .र - ~ -लगु गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥ (किरातार्जुनीय २।३०) ।।s, ।।, Sss (ख) चिर-काल रसाल ही रहा, जिस भाव कवीन्द्र का कहा। जय हो उस कालिदास की, कविता-केलि-कला-विलास की ॥ ( छन्दरत्नावली ) For Private And Personal Use Only

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