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[७२६ ]
गणों का स्वरूप स्मरण रखने के लिए निम्नलिखित श्लोक कण्ठस्थ कर लेना चाहिए
मस्त्रिगुरुस्त्रिलघुश्च नकारो भादिगुरू, पुमरादिलधुर्यः । जो गुरुमध्यगतो, रलमध्यः
सोऽन्तगुरुः, कथितोऽन्तलघुस्तः॥ अर्थमगण में तीनों गुरु, नगण में तीनों लघु, भगण में आदि का अक्षर गुरु, यगण में आदि का लघु, जगण में मध्यम गुरु, नगण में मध्यम लधु, सगण में अन्तिम गुरु और तगण में अन्तिम लघु होता है। मात्रा-हस्व या लघु अक्षर के उच्चारण में जितना समय लगता है उसे एक मात्रा कहते हैं और दीर्घ या गुरु के उच्चारण-काल को दो मात्रा। इसलिए जब छंदों में मात्राओं की गिनती की जाती है तब लघु की एक और गुरु की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं। छन्दःशास्त्र में एक अक्षर की मात्राएँ दो से अधिक नहीं होती परन्तु संगीत में स्वर को यथेष्ट मात्राओं तक बढ़ाया जा सकता है। एक ही शब्द में अक्षरों और मात्राओं की संख्या समान भी हो सकती है और भिन्न भिन्न भी। जैसे-'कल' में दो अक्षर हैं और दो ही मात्राएँ, 'काल' में दो अक्षर और तीन मात्राएँ, 'काला' में दो अक्षर और चार मात्राएँ। गति-छन्दों में अक्षरों या मात्राओं की नियत संख्या से ही काम नहीं बनता, उनमें गति अर्थात् लय या प्रवाह का भी ध्यान रखना पड़ता है। वार्णिक छन्दों में तो प्रायः गणों का क्रम प्रवाह को अक्षुण्ण रखता है परन्तु मात्रिक छन्दों में इसकी ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता रहती ही है। जैसे
___ अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं तं न रञ्जयति ॥ ( भर्तृहरि । यदि उपर्युक्त आर्या छन्द को यों पढ़ें
'आराध्यः सुखमशः विशेषशः आराध्यते सुखतरम्' तो कान तुरन्त बता देते हैं कि इसमें भार्या छन्द की गति नहीं रही। यति-जिन छन्दों के एक-एक चरण में अक्षरों या मात्राओं की संख्या थोड़ी होती है उन्हें पढ़ने में तो कोई कठिनाई नहीं होती; परन्तु लम्बे चरणों के पाठ में बीच में रुकना ही पड़ता है । उस विश्राम-स्थल को ही यति या विराम कहते हैं। कुशल कवि इस बात का ध्यान रखते है कि यति किसी शब्द की समाप्ति पर ही आए परन्तु कभी-कभी वह किसी शब्द के मध्य में भी आ जाती है। चरण-अधिकतर छन्दों में चार चरण, पाद या पंक्तियाँ होती हैं, परन्तु कभी-कभी छन्द न्यूनाधिक चरणों के भी दिखाई देते हैं । छन्दों के भेद-रन्दों के मुख्य भेद दो हैं-वणिक छन्द और मात्रिक छन्द। मात्रिक छन्द को जाति छन्द भी कहा जाता है। वणिक छन्दों में वर्गों को संख्या और गणक्रम पर विशेष ध्यान रहता है तथा मात्रिक छन्दों में मात्राओं की संख्या और गति पर। वर्णवृत्तों के चरणों में गुरुलघु-क्रम प्रायः समान होता है, परन्तु भात्रिक छन्दों में यह बन्धन नहीं होता। उक्त दोनों भेदों के तीन-तीन अवान्तर भेद भी होते हैं-सम छन्द, अर्द्धसम छन्द और विषम छन्द । सम छन्दों के चारों चरणों में वर्णों या मात्राओं की संख्या समान होती है। अर्द्धसम छन्दों में प्रथम
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