Book Title: Yuktiprakasha Sutram
Author(s): Padmasagar Gani,
Publisher: Mahavir Granthmala
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युक्ति
प्रकाशः
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विनाशकाला दधिककाला लाभाच्च, न, द्वितीय स्तस्या नाशस्याऽभावरूपत्वात्, अभावस्य प्रतियोगिकृत्याऽ करणात् । यद्य भावोऽपि प्रतियोगिकृत्यं करोति तदा घटाभावस्यापि जलाहरणक्रियाकरणप्रसक्त्या घटव्यति| रिक्ता अपि अर्धा जलाहरणं कुर्युरिति व्यवहारोच्छेदस्तस्माद्विनष्टा प्रमाणसंततिर्न पदार्थसंततिग्राहिकेति, कुत | इत्यत आह, विरुद्ध भावा द्विरुद्धत्वादित्यर्थः । अथात्र दृष्टांतः - इव यथा वृद्धबालते नोयुगपद्भवेतां, द्वंद्वांते श्रूयमाणं पदं उभयत्रापि संबंध्यत इति न्याया वृद्धताबालते सामानाधिकरण्येनायमर्थः - एकस्मिन्नेव पुरुषे युगपद् वृद्धताबालते न संभवत इत्यर्थः ॥ इतिवृत्तार्थः ॥ ३ ॥
टी. भा. - हवे क्षणपछी नाश पामता एवा प्रमाणवडे करीने पोतानी संतति उत्पन्न थाय छे. ( अने) तेणें करीने नाशपामती अवस्थावाला पदार्थथी उत्पन्न थयेली संततिथी क्षणिकपणुं सधायछे एमजो ( कहीशतो ) ते पण युक्त नथी ते कहे छे. तद् एटले तेनी संतति (अर्थात् ) प्रमाणनी संतति पदार्थनी संततिने क्षणिकपणा रूप साध्यने ग्रहणकरवापूर्वक संग्रहिका ( एटले ) सम्यक् प्रकारें ग्रहणकरनारी थती नथी. शामाटे ? तोके, विशेषणद्वारा हेतु कहेछे- ते प्रमाणसंतति केवी छे ? तोके नाशपामेलीछे क्यारे ? तोके प्रथम क्षणे ज. (एटले) आद्यक्षणेज. (अर्थात् ) उत्पत्तिपछी जे प्रथम क्षण तेज क्षणे क्षणिक होवाथी क्षय थईछे एवो अर्थ छे. भावार्थ तो आछे. - नाशपामता प्रमाणेंकरीने पोतानी संतति उत्पन्न थाय छे; ते पण नाश पामती थकी बीजी संततिने | ( उत्पन्न करेछे ) आमकारनी खरेवर बौद्धोनी परिपाटी छे। अने एवीरीते पोताना नाशमां व्यग्रहोवाथी प्रमाणसंतति
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